मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand ka Jivan Parichay)

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand ka Jivan Parichay) :-

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand ka Jivan Parichay) के इस ब्लॉग पोस्ट मैं आप सभी पाठक हिन्दी साहित्य जगत के उपन्यास सम्राट के रूप मैं सुपरिचित मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे मैं सम्पूर्ण रूप से जान पाएंगे।

हिन्दी, विस्व के कुछ सबसे खुबसूरत भाषाओं मे से एक है। सिर्फ हिंदी भाषा ही नही, सभी भाषा के साहित्य को हर दिन ,एक नया रूप, एक नई पहचान देने वाले, उसके साहित्यकार उसके लेखकही होते है। उन्ही मे से, एक महान छवि मुंशी प्रेमचंद जी की भी है।

एक ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व, जिसने हिन्दी साहित्य विषय की काया पलट दी। एक ऐसे लेखक थे जो, समय के साथ बदलते गये और , हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान करते गए। आगे उनके जीवन परिचय का बिस्तार आलोचना किया गया है।

Munshi Premchand ka Jivan Parichay

नामप्रेमचन्द
उपनाममुंशी प्रेमचंद, कलम के सिपाही, नवाब राय
बचपन का नामधनपत राय श्रीवास्तव
पितामुंशी अजायबराय
माताआनंदी देवी
पत्नीशिवरानी देवी (द्वितीय पत्नी)
बहनसुग्गी राय
जन्म31 जुलाई 1880 ई॰ (लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
मृत्यु8 अक्टूबर 1936 ई॰ वाराणसी, उत्तर प्रदेश
आयु (मृत्यु के समय)56 वर्ष
व्यवसायलेखक, अध्यापक, पत्रकार
अवधि कालआधुनिक काल
भाषाहिंदी, उर्दू
संतानअमृत राय, कमला देवी, श्रीपत राय
प्रमुख कृतियाँगोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला, प्रेमाश्रम
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand ka Jivan Parichay)

munshi premchand ka jivan parichay
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मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही नामक गांव मे हुआ। इनकी माता का नाम आनंदी देवी एवं पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाक मुंशी थे। माता पिता के द्वारा दिए गए इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था तथा इनको नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है।

7 वर्ष की अवस्था में उनकी माता का तथा 16 वर्ष की अवस्था में उनके पिता का निधन हो गया। जिस कारण उनका प्रारंभिक जीवन काफी संघर्ष में गुजरा। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा (Munshi Premchand ki sikhkshya) :-

प्रेमचंद जी की प्रारम्भिक शिक्षा फारसी में सात साल की उम्र से, अपने ही गाँव लमही के, एक छोटे से मदरसा से शुरू हुई थी। वहीं पे उन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू व थोडा बहुत अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

ऐसे करते हुए धीरे-धीरे स्वयं के, बल-बूते पर उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढाया, और आगे स्नातक की पढ़ाई के लिये। उन्होंने पहले बनारस के एक कालेज मे पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। पैसो की तंगी के चलते अपनी पढ़ाई बीच मे ही छोड़नी पड़ी, और बड़ी कठिनाईयों से 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई भी जारी रखी। परन्तु उन्होंने जीवन के किसी पढ़ाव पर हार नही मानी, और 1919 मे फिर से अध्ययन कर बी.ए की डिग्री प्राप्त करी। बी.ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद का विवाह (Munshi Premchand ka vivaah) :-

प्रेमचंद जी बचपन से ही किस्मत की लड़ाई से लड़ रहे थे। पुराने रिवाजो के चलते, पिताजी के दबाव मे आकर, बहुत ही कम पंद्रह वर्ष की उम्र मे उनका विवाह हो गया। प्रेमचंद जी का यह विवाह उनकी मर्जी के बिना, उनसे बिना पूछे एक ऐसी कन्या से हुआ जोकि, स्वभाव मे बहुत ही झगड़ालू प्रवति की थी, जिसकी वजह से उनकी प्रथम विवाह बोहोत ही असफल रहा था। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

थोड़े समय मे, पिताजी की भी मृत्यु हो गयी, पूरा भार प्रेमचंद जी पर आ गया। एक समय ऐसा आया कि, उनको नौकरी के बाद भी जरुरत के समय अपनी बहुमूल्य वास्तुओ को बेच कर, घर चलाना पड़ा। बहुत कम उम्र मे ग्रहस्थी का पूरा बोझ अकेले पर आ गया। उसके चलते प्रेमचंद की प्रथम पत्नी से, उनकी बिल्कुल नही जमती थी जिसके चलते उन्होंने उसे तलाक दे दिया।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद्र का दूसरा विवाह :-

कुछ समय गुजर जाने के बाद 1906 में प्रेमचंद ने अपनी पसंद से दूसरा विवाह, लगभग पच्चीस साल की उम्र मे बाल विधवा शिवारानी देवी से किया जो फतेहपुर के पास, एक जमींदार की बेटी थी। लेकिन प्रेमचंद्र काफी आगे की सोच रखने वाले थे। उन्होंने विधवा विवाह के ऊपर भी कहानी लिखी क्यूँकी उस वक्त विधवा विवाह करना, सामाजिक नियमों के खिलाफ था। प्रेमचंद जी का दूसरा विवाह बहुत ही संपन्न रहा उन्हें इसके बाद, दिनों दिन तरक्की मिलती गई। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

शिवारानी देवी और प्रेमचंद एक-दूसरे से बेहद प्रेम करते थे। इसलिए प्रेमचंद के देहांत के बाद, शिवारानी देवी ने उनके ऊपर एक किताब लिखी। प्रेमचंद और शिवा रानी देवी के तीन बच्चे थे। जिनमें 2 पुत्र अमृतराय व श्रीपद राय थे, जबकि उनकी एक पुत्री कमला देवी श्रीवास्तव भी थी।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

प्रेमचंद के अन्य नाम (Premchand ke anya naam)

प्रेमचंद उनका साहित्यिक नाम था और बहुत वर्षों बाद उन्होंने यह नाम अपनाया था। उनका वास्तविक नाम ‘धनपत राय’ था। जब उन्होंने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरम्भ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

बहुत से मित्र उन्हें जीवन-पर्यन्त नवाब के नाम से ही सम्बोधित करते रहे। जब अंग्रेज सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोज़े वतन’ ज़ब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा। बाद का उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित हुआ। इसी काल में प्रेमचंद ने कथा-साहित्य बड़े मनोयोग से पढ़ना शुरू किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

साहित्यिक परिचय (Sahityik Parichay) –

उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद के साहित्य जीवन का आरंभ 1901 मैं लगभग 13 वर्ष की आयु के से ही हो चुका था। शुरुआत में कुछ नाटक लिखे और बाद में उर्दू में उपन्यास लिखा। आरंभ में वह नवाबराय के नाम से उर्दू भाषा में लिखा करते थे।

उनकी पहली रचना अप्रकाशित ही रही। इसका जिक्र उन्होंने पहली रचना नाम के अपने लेख में किया है। उनका पहला उपलब्ध और उपन्यास असरारे मआबिद है। जिस का हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य से हुआ। इस तरह उनका साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो उनके अंतिम समय तक उनका हमसफर बना रहा। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

अध्यापक से प्रोमशन होकर वे स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर बने और इसी दौरान उनकी पांच कहानियों का संग्रह ‘सोज़े वतन’ छपा जो बहुत लोकप्रिय हुआ। देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस संग्रह को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित कर इनकी सभी प्रतियां जप्त कर ली और उनके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखक ना करने की चेतावनी दी। जिसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उन्हें इस प्रेमचंद नाम से लिखने का सुझाव देने वाले दया नारायण निगम थे।

प्रेमचंद्र नाम से उनकी पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ ‘जमाना‘ पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1915 में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती में पहली बार उनकी कहानी सौत नाम से प्रकाशित हुई।1919 में उनका पहला हिंदी उपन्यास ‘सेवासदन‘ प्रकाशित हुआ। इन्होंने लगभग 300 कहानियां तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखें। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सृजन में लग गए। रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए उन्हें मंगलप्रसाद पारितोषक सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रेमचंद की रचनाओं में उस दौर के समाज सुधारक आंदोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है।

उनमें दहेज,अनमोल विवाह,पराधीनता,लगान,छुआछूत जाति-भेद,आधुनिकता, विधवा-विवाह आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। खास इसी वजह से हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है।

बोहोत जगह से ऐसे सुनने को मिलता है की एक तम्बाकू-विक्रेता की दुकान में उन्होंने कहानियों के अक्षय भण्डार, ‘तिलिस्मे होशरूबा’ का पाठ सुना। इस पौराणिक गाथा के लेखक फ़ैज़ी बताए जाते हैं, जिन्होंने अकबर के मनोरंजन के लिए ये कथाएं लिखी थीं। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

एक पूरे वर्ष प्रेमचंद ये कहानियाँ सुनते रहे और इन्हें सुनकर उनकी कल्पना को बड़ी उत्तेजना मिली। कथा साहित्य की अन्य अमूल्य कृतियाँ भी प्रेमचंद ने पढ़ीं। इनमें ‘सरशार’ की कृतियाँ और रेनाल्ड की ‘लन्दन-रहस्य’ भी थी।

गोरखपुर में बुद्धिलाल नाम के पुस्तक-विक्रेता से उनकी मित्रता हुई। वे उनकी दुकान की कुंजियाँ स्कूल में बेचते थे और इसके बदले में वे कुछ उपन्यास अल्प काल के लिए पढ़ने को घर ले जा सकते थे। इस प्रकार उन्होंने दो-तीन वर्षों में सैकड़ों उपन्यास पढ़े होंगे।

Munshi Premchand ka Jivan Parichay

प्रेमचन्द का साहित्य में योगदान :-

प्रेमचन्द पहले नवाब राय के नाम से लिखते थे, जब उनकी कुछ रचनाओं, जिनमें ‘सोजेवतन’ प्रमुख है, को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया, तो उन्होंने प्रेमचन्द के छद्म नाम से लिखना शुरू किया। उर्दू में प्रकाशित होने वाली ‘जमाना’ पत्रिका मैं भी प्रेमचंद काफी सामिल हुए थे। प्रेमचन्द ने सबसे पहले जिस कहानी की रचना की थी, उसका नाम है – ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न‘ , जो पूनम नामक उर्दू कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई थी। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उनकी अन्तिम कहानी ‘कफन‘ थी। उन्होंने अठारह उपन्यासों की रचना की, जिनमें सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, प्रतिज्ञा, रंगभूमि उल्लेखनीय हैं। ‘मंगल सूत्र’ उनका अन्तिम उपन्यास था, जिसे वे पूरा नहीं कर पाए।

इस उपन्यास को उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया। उनके द्वारा रचित तीन सौ से अधिक कहानियों में ‘कफन’ , ‘शतरंज के खिलाड़ी’ , ‘पूस की रात’ , ‘ईदगाह’ , ‘बड़े घर की बेटी’ , ‘पंच परमेश्वर’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं। उनकी कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में प्रकाशित है। नीचे इन कहानियों का नाम कुछ बिस्तर पूर्वक दिया हुआ है।

उनके द्वारा रचित नाटकों में ‘संग्राम’ , ‘कर्बला’ , ‘रूठी रानी तथा ‘प्रेम की वेदी’ प्रमुख हैं। उन्होंने इन सबके अतिरिक्त कई निबन्ध तथा जीवन चरित भी लिखे। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उनके निबन्धों का संग्रह ‘प्रेमचन्द के श्रेष्ठ निबन्ध‘ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित है। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अनुवाद भी किया, जिनमें ‘सृष्टि का प्रारम्भ’ , ‘आज़ाद’ , ‘अहंकार’ , ‘हड़ताल’ तथा ‘चाँदी की डिबिया’ उल्लेखनीय हैं।

प्रेमचन्द ने संवैधानिक सुधारों तथा सोवियत रूस और टर्की में हुई क्रान्ति आदि विषयों पर भी अधिक लिखा। उनकी कई कृतियाँ अंग्रेजी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में भी अनुवाद की गई हैं। प्रेमचन्द ने अपने साहित्य के माध्यम से भारत के दलित एवं उपेक्षित वर्गों का नेतृत्व करते हुए उनकी पीड़ा एवं विरोध को वाणी प्रदान की। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उनकी रचनाओं का एक उद्देश्य होता था। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने न केवल सामाजिक बुराइयों के दुष्परिणामों की व्याख्या की, बल्कि उनके निवारण के उपाय भी बताए। उन्होंने बाल विवाह, बेमेल विवाह, विधवा विवाह, सामाजिक शोषण, अन्धविश्वास इत्यादि सामाजिक समस्याओं को अपनी कृतियों का विषय बनाया एवं उनमें यथासम्भव इनके समाधान भी प्रस्तुत किए।
‘कर्मभूमि‘ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने छुआछूत की गलत भावना एवं अछूत समझे जाने वाले लोगों के उद्धार का मार्ग बताया है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उन्होंने लगभग अपनी सभी रचनाओं में धर्म के ठेकेदारों की पूरी आलोचना की है एवं समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते हुए जनता को उनसे सावधान रहने का सन्देश दिया है।

‘सेवासदन’ नामक उपन्यास के माध्यम से उन्होंने नारी शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई है। अपनी कई रचनाओं में उन्होंने हिन्दू – मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर गहरा आघात किया एवं ‘कर्बला’ नामक नाटक के माध्यम से उनमें एकता व भाईचारा बढ़ाने का सार्थक प्रयास किया।

1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्‌वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में संपादक के रूप में कार्य किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। उन्होंने मोहन दयाराम भवानानी की अजंता सिनेटोम कंपनी में कथा लेखक की नौकरी भी की।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

प्रेमचन्द का सामाजिक योगदान :-

इस प्रकार देखा जाए तो अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेमचन्द ने न केवल ‘कलम के सिपाही’ के रूप में ब्रिटिश सरकार से लोहा लिया, बल्कि समाज सुधार के पुनीत कार्य को भी अंजाम दिया।

प्रेमचन्द ने हिन्दी में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की शुरुआत की। उनके उपन्यास ‘गोदान’ को यथार्थवादी उपन्यास की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि इसके नायक होरी के माध्यम से उन्होंने समाज के यथार्थ को दर्शाया है। गाँव का निवासी होने के कारण उन्होंने किसानों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को नज़दीक से देखा था, इसलिए उनकी रचनाओं में यथार्थ के दर्शन होते हैं। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उन्हें लगता था कि सामाजिक शोषण एवं अत्याचारों का उपाय गाँधीवादी दर्शन में है, इसलिए उनकी रचनाओं में गाँधीवादी दर्शन की भी प्रधानता देखने को मिलती है। प्रेमचन्द ने गाँव के किसान एवं मोची से लेकर शहर के अमीर वर्ग एवं सरकारी कर्मचारियों तक को अपनी रचनाओं का पात्र बनाया है।

वस्तुतः यदि कोई व्यक्ति उत्तर भारत के रीति-रिवाजों, भाषाओं, लोगों के व्यवहार, भारतीय नारियों की स्थिति, जीवन-शैली, प्रेम प्रसंगों इत्यादि को जानना चाहे, तो वह प्रेमचन्द के साहित्य में ही पूरा-पूरा उपलब्ध हो पाएगा। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उनके पात्र साधारण मानव हैं, आम व्यक्ति हैं। ग्रामीण अंचल ही उनका कैनवास है। उन्होंने तत्कालीन समाज का चित्रण इतनी सच्चाई और ईमानदारी से किया है कि वह वास्तव में सजीव लगता है।

प्रेमचन्द की तुलना मैक्सिम गोर्की, थॉमस हार्डी जैसे लेखकों से की जाती है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहकर सम्बोधित किया।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

प्रेमचंद्र का बॉलीवुड में योगदान :-

प्रेमचंद्र 31 मई 1934 में बॉलीवुड फिल्मों में, हाथ आजमाने के लिए बॉम्बे आ गए। यहाँ पर उन्हें ‘अजंता प्रोडक्शन कंपनी’ ने ₹8000 वार्षिक मेहनताने के साथ, स्क्रिप्ट लिखने का काम दिया। क्योंकि इससे प्रेमचंद अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की उम्मीद कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने मुंबई के दादर में रहकर, ‘मजदूर’ फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

इसमें मजदूरों की दुर्दशा को बोहोत ही अनोखे तरीके से दिखाया गया था। जिस पर बड़े बिजनेसमैन के दवाबों के साथ साथ पूंजीपतियों के अत्याचारों को भी बोहोत ही सत्याधारित तरीके से दर्शाया गया था। इसीलिए जब यह फिल्म दिल्ली और लाहौर में रिलीज हुई, तब इस फिल्म से मजदूर काफी प्रभावित हुए। जिसके फलस्वरूप, उन्होंने मिल मालिकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

क्योंकि यह आंदोलन उस समय के लिए एक क्रांतिकारी कदम था, और प्रेमचंद्र के लेखन में वो जादू था, जो किसी भी इंसान को, उसकी सच्चाई दिखा सकता था।

सत्यजीत राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं वर्ष 1977 में ‘शतरंज के खिलाड़ी’ तथा वर्ष 1981 में ‘सद्गति’। वर्ष 1938 में सुब्रह्मण्यम ने ‘सेवासदन’ उपन्यास पर फ़िल्म बनाई।

वर्ष 1977 में मृणाल सेन ने उनकी कहानी ‘कफ़न’ पर आधारित ‘ओका ऊरी कथा’ नामक तेलुगू फ़िल्म बनाई, जिसे सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

लेकिन उनकी ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर पाती थी। केवल ‘शतरंज के खिलाड़ी’ एक ऐसी फिल्म थी। जो बॉक्स ऑफिस पर, अच्छी खासी चली। जिसका निर्देशन सत्यजीत राय ने किया था। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

प्रेमचंद के कार्यक्षेत्र :-

प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई।

बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। उनसे पहले हिंदी में काल्पनिक, एय्यारी और पौराणिक धार्मिक रचनाएं ही की जाती थी। प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद की शुरूआत की। “ भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा चाहे वह दलित साहित्य हो या नारी साहित्य उसकी जड़ें कहीं गहरे प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं।”

प्रेमचंद के लेख ‘पहली रचना’ के अनुसार उनकी पहली रचना अपने मामा पर लिखा व्‍यंग्‍य थी, जो अब अनुपलब्‍ध है। उनका पहला उपलब्‍ध लेखन उनका उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है।

प्रेमचंद का दूसरा उपन्‍यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन नाम से आया जो १९०८ में प्रकाशित हुआ। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी थी, जिसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ था ।

उसके बाद ही ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ मानसरोवर नाम से 8 खंडों में प्रकाशित हुई।

कथा सम्राट प्रेमचन्द का कहना था कि साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है। यह बात उनके साहित्य में उजागर हुई है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

१९२१ में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने मर्यादा पत्रिका का संपादन भार संभाला, छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका का संपादन किया, १९३० में बनारस से अपना मासिक पत्र हंस शुरू किया और १९३२ के आरंभ में जागरण नामक एक साप्ताहिक और निकाला। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उन्होंने लखनऊ में १९३६ में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कहानी-लेखक की नौकरी भी की। १९३४ में प्रदर्शित मजदूर नामक फिल्म की कथा लिखी और कंट्रेक्ट की साल भर की अवधि पूरी किये बिना ही दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस चले आये क्योंकि बंबई (आधुनिक मुंबई) का और उससे भी ज़्यादा वहाँ की फिल्मी दुनिया का हवा-पानी उन्हें रास नहीं आया।

उन्‍होंने मूल रूप से हिंदी में 1915 से कहानियां लिखना और 1918 (सेवासदन) से उपन्‍यास लिखना शुरू किया। प्रेमचंद ने कुल करीब तीन सौ कहानियाँ, लगभग एक दर्जन उपन्यास और कई लेख लिखे। उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे और कुछ अनुवाद कार्य भी किया। प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ।

गोदान उनकी कालजयी रचना है। कफन उनकी अंतिम कहानी मानी जाती है। उन्‍होंने हिंदी और उर्दू में पूरे अधिकार से लिखा। उनकी अधिकांश रचनाएं मूल रूप से उर्दू में लिखी गई हैं लेकिन उनका प्रकाशन हिंदी में पहले हुआ। तैंतीस वर्षों के रचनात्मक जीवन में वे साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमीत। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

साहित्य में स्थान (Sahitya Mein Sthan) –

मुंशी प्रेमचंद एक अध्यापक, एक लेखक और एक पत्रकार हैं। जिनके द्वारा कई उपन्यास लिखे गए जिनमें से गोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन जैसे विख्यात उपन्यास शामिल है। प्रेमचंद को आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट कहा जाता है।

साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है, उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया। उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को एक नया मोड़ दिया। आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए जिन्हें भारतीय समाज और अछूत और घृणित समझता था। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

उन्होंने अपने प्रगतिशील विचारों को डरता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कह कर संबोधित किया।

प्रेमचंद का रचना संसार :-

प्रेमचंद का रचना संसार बहुत बड़ा और समृद्ध है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, उपन्यास, लेख, आलोचना, संस्मरण, संपादकीय जैसी अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया है।

उन्होंने कुल 300 से ज़्यादा कहानियां, 3 नाटक, 15 उपन्यास, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें लिखीं। इसके अलावा सैकड़ों लेख, संपादकीय लिखे जिसकी गिनती नहीं है। हालांकि उनकी कहानियां और उपन्यास उन्हें प्रसिद्धि के जिस मुकाम तक ले गए वो आज तक अछूता है।

उपन्‍यास (Premchand ka upanyas) :-

  • प्रेमचंद के उपन्यासों में ‘गोदान’ सबसे ज़्यादा मशहूर हुआ और विश्व साहित्य में भी उसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। एक सामान्य किसान को पूरे उपन्यास का नायक बनाना भारतीय उपन्यास परंपरा की दिशा बदल देने जैसा था। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • गोदान पढ़कर महसूस होता है कि किसान का जीवन सिर्फ़ खेती से जुड़ा हुआ नहीं होता। उसमें सूदखोर जैसे पुराने ज़माने की संस्थाएं तो हैं ही नए ज़माने की पुलिस, अदालत जैसी संस्थाएं भी हैं।
  • यह सब मिलकर होरी की जान लेती हैं। होरी की मृत्यु पाठकों के ज़हन को झकझोर कर रख देती है। गोदान का कारुणिक अंत इस बात का गवाह है कि तब तक प्रेमचंद का आदर्शवाद से मोहभंग हो चुका था।
  • गोदान का हिंदी साहित्‍य ही नहीं, विश्‍व साहित्‍य में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इसमें प्रेमचंद की साहित्‍य संबंधी विचारधारा ‘आदर्शोन्‍मुख यथार्थवाद’ से ‘आलोचनात्‍मक यथार्थवाद’ तक की पूर्णता प्राप्‍त करती है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • उनकी आख़िरी दौर की कहानियों में भी ये देखा जा सकता है। जीवन के आख़िरी दिनों में वे उपन्यास मंगलसूत्र लिख रहे थे जिसे वे पूरा नहीं कर सके।
  • प्रेमचंद अपने उपन्यासों में भारतीय ग्रामीण जीवन को केंद्र में रखते थे। प्रेमचंद ने हिंदी उपन्यास को जिस ऊंचाई तक पहुंचाया वो आने वाली पीढ़ियों के उपन्यासकारों के लिए एक चुनौती बनी रही। प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियों का भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • प्रेमचंद के उपन्‍यास न केवल हिन्‍दी उपन्‍यास साहित्‍य में बल्कि संपूर्ण भारतीय साहित्‍य में मील के पत्‍थर हैं। प्रेमचन्द कथा-साहित्य में उनके उपन्यासकार का आरम्भ पहले होता है।
  • उनका पहला उर्दू उपन्यास (अपूर्ण)असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य’ उर्दू साप्ताहिक ‘’आवाज-ए-खल्क़’’ में ८ अक्टूबर, १९०३ से १ फरवरी, १९०५ तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • उनका दूसरा उपन्‍यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। चूंकि प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे और उर्दू से हिंदी में आए थे, इसलिए उनके सभी आरंभिक उपन्‍यास मूल रूप से उर्दू में लिखे गए और बाद में उनका हिन्‍दी तर्जुमा किया गया।
  • उन्‍होंने ‘सेवासदन’ (1918) उपन्‍यास से हिंदी उपन्‍यास की दुनिया में प्रवेश किया। इस उपन्यास को उन्होंने पहले ‘बाज़ारे हुस्न’ नाम से उर्दू में लिखा लेकिन हिंदी में इसका अनुवाद ‘सेवासदन’ के रूप में प्रकाशित हुआ। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • यह एक स्त्री के वेश्या बनने की कहानी है। हिंदी साहित्यकार डॉ. रामविलास शर्मा के मुताबिक़ सेवासदन भारतीय नारी की पराधीनता की समस्या को सामने रखता है।
  • इसके बाद किसान जीवन पर उनका पहला उपन्‍यास ‘प्रेमाश्रम’ (1921) आया। जो किसान जीवन पर उनका पहला उपन्यास हुआ । Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • अवध के किसान आंदोलनों के दौर में ‘प्रेमाश्रम’ किसानों के जीवन पर लिखा हिंदी का शायद पहला उपन्यास है। इसका रचना भी पहले उर्दू में ‘गोशाए-आफियत’ नाम से तैयार हुआ था लेकिन ‘सेवासदन’ की भांति इसे पहले हिंदी में प्रकाशित कराया। ‘
  • इसके बाद ‘रंगभूमि’ (1925), ‘कायाकल्‍प’ (1926), ‘निर्मला’ (1927), ‘गबन’ (1931), ‘कर्मभूमि’ (1932) से होता हुआ यह सफर ‘गोदान’ (1936) तक पूर्णता को प्राप्‍त हुआ।
  • प्रेमचंद ने हिंदी उपन्‍यास को जो ऊँचाई प्रदान की, वह परवर्ती उपन्‍यासकारों के लिए एक चुनौती बनी रही। प्रेमचंद के उपन्‍यास भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुदित हुए, खासकर उनका सर्वाधिक चर्चित उपन्‍यास गोदान। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

कहानी (premchand ke kahani):-

  • उनकी अधिकतर कहानियोँ में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है। डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिंदी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली नाम से प्रकाशित कराया है।
  • उनके अनुसार प्रेमचंद ने कुल ३०१ कहानियाँ लिखी हैं जिनमें ३ अभी अप्राप्य हैं। प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े वतन नाम से जून १९०८ में प्रकाशित हुआ।
  • इसी संग्रह की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम (इश्के दुनिया और हुब्बे वतन) वास्तव में उनकी पहली प्रकाशित कहानी है।
  • उनके जीवन काल में कुल नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- सोज़े वतन, ‘सप्‍त सरोज’, ‘नवनिधि’, ‘प्रेमपूर्णिमा’, ‘प्रेम-पचीसी’, ‘प्रेम-प्रतिमा’, ‘प्रेम-द्वादशी’, ‘समरयात्रा’, ‘मानसरोवर’ : भाग एक व दो और ‘कफन’। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नामक शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद साहित्‍य के मु्दराधिकार से मुक्‍त होते ही विभिन्न संपादकों और प्रकाशकों ने प्रेमचंद की कहानियों के संकलन तैयार कर प्रकाशित कराए।
  • उनकी कहानियों में विषय और शिल्प की विविधता है। उन्होंने मनुष्य के सभी वर्गों से लेकर पशु-पक्षियों तक को अपनी कहानियों में मुख्य पात्र बनाया है। उनकी कहानियों में किसानों, मजदूरों, स्त्रियों, दलितों, आदि की समस्याएं गंभीरता से चित्रित हुई हैं। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • उन्होंने समाजसुधार, देशप्रेम, स्वाधीनता संग्राम आदि से संबंधित कहानियाँ लिखी हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियाँ तथा प्रेम संबंधी कहानियाँ भी काफी लोकप्रिय साबित हुईं। प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों में ये नाम लिये जा सकते हैं-
  1. अन्धेर
  2. अनाथ लड़की
  3. अपनी करनी
  4. अमृत
  5. अलग्योझा
  6. आखिरी तोहफ़ा
  7. आखिरी मंजिल
  8. आत्म-संगीत
  9. आत्माराम
  10. आलहा
  11. इस्तीफा
  12. इजत का खून
  13. ईदगाह
  14. ईश्वरीय न्याय
  15. एक ऑँच की कसर
  16. उद्धार
  17. एक्ट्रेस
  18. कपतन साहब
  19. कमों का फल
  20. कफन
  21. कातिल
  22. कवच
  23. कोई दुख न हो तो बकरी कौशल
  24. क्रिकेट मैच
  25. खरीद ला खुदी
  26. गुल्ली डण्डा
  27. गैरत की कटार
  28. गृह दाह
  29. घमण्ड का पुतला
  30. जुलूस
  31. जेल
  32. ज्योति
  33. झाँकी
  34. ठाकुर का कुआँ
  35. तांगेवाले की बड़
  36. तिरसूल
  37. त्रिया-चरित्र
  38. तेंतर
  39. दिल कीरानी
  40. दण्ड
  41. दुर्गा का मन्दिर
  42. दूसरी शादी
  43. दूध का दाम
  44. देवी
  45. देवी – एक और कहानी 47. दो बैलों की कथा
  46. दो सखियाँ
  47. धिक्कार
  48. नबी का नीति-निर्वाह
  49. धिक्कार – एक और कहानी
  50. नमक का दरोगा
  51. नरक का मार्ग
  52. नशा
  53. नसीहतो का दफ्तर
  54. नाग-पूजा
  55. निर्वासन
  56. नादान दोस्त
  57. नेउर
  58. नेकी
  59. नैराश्य लीला
  60. नैराश्य
  61. पत्नी से पति
  62. पंच परमेश्वर
  63. परीक्षा
  64. पर्वत-यात्रा
  65. पुत्र- प्रेम
  66. पूस की रात
  67. प्रतिशोध
  68. पैपुजी
  69. प्रेम-सूत्र
  70. प्रायश्रित
  71. बड़े घर की बेटी
  72. बड़े बाबू
  73. बड़े भाई साहब
  74. बन्द दरवाजा
  75. बॉँका जमींदार
  76. बेटोंवाली विधवा
  77. बोहनी
  78. बैंक का दिवाला
  79. बोहनी
  80. मंत्र
  81. मनावन
  82. मन्दिर और मस्जिद
  83. ममता
  84. माँ
  85. माता का हृदय
  86. मिलाप
  87. मुक्तिथन
  88. मुबारक बीमारी
  89. मैकू
  90. मोटेराम जी शास्त्री
  91. राजहठ
  92. राष्ट्र का सेवक
  93. स्वग की देवी
  94. लैला
  95. वफ़ा का खजर
  96. वासना की कडियां
  97. विजय
  98. विश्वाश
  99. शंखनाद
  100. शादी की वजह
  101. शराब की दुकान
  102. शान्त्ति
  103. शान्ति
  104. शूद्र
  105. सभ्यता का रहस्य
  106. समर यांत्रा
  107. समस्या
  108. सवा सेर गेहूँ नमक का
  109. सिर्फ एक आवाज
  110. दरोगा
  111. सैलानी बन्दर
  112. सौत
  113. सोहाग का शव
  114. स्वर्ग की देवी
  115. स्त्री और पुरूष
  116. स्वामिनी
  117. स्वांग
  118. होली की छुट्टी आदि

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नाटक (Premchand ke natak):-

  • प्रेमचंद ने संग्राम (1923), कर्बला (1924) और प्रेम की वेदी (1933) नाटकों की रचना की।
  • ये नाटक शिल्‍प और संवेदना के स्‍तर पर अच्‍छे हैं लेकिन उनकी कहानियों और उपन्‍यासों ने इतनी ऊँचाई प्राप्‍त कर ली थी कि नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक वस्‍तुतः संवादात्‍मक उपन्‍यास ही बन गए हैं। Munshi Premchand ka Jivan Parichay

लेख/निबंध (Premchand ke nibandh):-

  • प्रेमचंद एक संवेदनशील कथाकार ही नहीं, सजग नागरिक व संपादक भी थे। उन्‍होंने ‘हंस’, ‘माधुरी’, ‘जागरण’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन करते हुए व तत्‍कालीन अन्‍य सहगामी साहित्यिक पत्रिकाओं ‘चाँद’, ‘मर्यादा’, ‘स्‍वदेश’ आदि में अपनी साहित्यिक व सामाजिक चिंताओं को लेखों या निबंधों के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍त किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • अमृतराय द्वारा संपादित ‘प्रेमचंद : विविध प्रसंग’ (तीन भाग) वास्‍तव में प्रेमचंद के लेखों का ही संकलन है। प्रेमचंद के लेख प्रकाशन संस्‍थान से ‘कुछ विचार’ शीर्षक से भी छपे हैं। ‘
  • प्रेमचंद के मशहूर लेखों में निम्‍न लेख शुमार होते हैं– साहित्‍य का उद्देश्‍य, पुराना जमाना नया जमाना, स्‍वराज के फायदे, कहानी कला (1,2,3), कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार, हिंदी-उर्दू की एकता, महाजनी सभ्‍यता, उपन्‍यास, जीवन में साहित्‍य का स्‍थान आदि।

अनुवाद (Premchand ke anuvaad):-

  • प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। उन्‍होंने दूसरी भाषाओं के जिन लेखकों को पढ़ा और जिनसे प्रभावित हुए, उनकी कृतियों का अनुवाद भी किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • ‘टॉलस्‍टॉय की कहानियाँ’ (1923), गाल्‍सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल (1930), चाँदी की डिबिया (1931) और न्‍याय (1931) नाम से अनुवाद किया।
  • आजाद-कथा (उर्दू से, रतननाथ सरशार), पिता के पत्र पुत्री के नाम (अंग्रेजी से, जवाहरलाल नेहरू) उनके द्वारा रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्‍यास फसान-ए-आजाद का हिंदी अनुवाद आजाद कथा बहुत मशहूर हुआ।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

प्रेमचंद के रचनाओं की आलोचना :-

  • प्रेमचन्द उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी के महान लेखक बने। उन्होंने हिन्दी को अपना खास मुहावरा और खुलापन दिया। कहानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी परिवर्तन किए। उन्होने साहित्य में सामयिकता प्रबल आग्रह भी स्थापित किया।
  • इसके अलावा आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया और उसकी समस्याओं पर खुलकर कलम चलाते हुए उन्हें साहित्य के नायकों के पद पर आसीन किया। प्रेमचंद से लेखकों के द्वारा पहले हिंदी साहित्य राजा-रानी के किस्सों, रहस्य-रोमांच में उलझा हुआ था। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • प्रेमचंद ने हिन्दी साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा तथा उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा। वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, ज़मींदारी, कर्ज़खोरी, ग़रीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे।
  • प्रेमचन्द की ज़्यादातर रचनाएँ उनकी ही ग़रीबी और दैन्यता की कहानी कहती है। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे।
  • उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझा था। उन्होंने सरल, सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • १९३६ में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है।
  • प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक हैं। उन्होंने हिन्दी कहानी में आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की एक नई परंपरा शुरू की।

Munshi Premchand ka Jivan Parichay

प्रेमचंद के जीवन संबंधी कुछ विवाद :-

  • इतने महान रचनाकार होने के बावजूद प्रेमचंद का जीवन आरोपों से मुक्‍त नहीं है। प्रेमचंद के जीवन की अध्‍येता कमलकिशोर गोयनका ने अपनी पुस्‍तक ‘प्रेमचंद : अध्‍ययन की नई दिशाएं’ में प्रेमचंद के जीवन पर कुछ आरोप लगाकर उनके साहित्‍य का महत्‍व कम करने की कोशिश की।
  • उनके द्वारा प्रेमचंद पर लगे मुख्‍य आरोप मैं से एक है हैं- प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्‍नी को बिना वजह छोड़ा और दूसरे विवाह के बाद भी उनके अन्‍य किसी महिला से संबंध रहे (जैसा कि शिवरानी देवी ने ‘प्रेमचंद घर में’ में उद्धृत किया है)। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • उनके अनुसार प्रेमचंद ने ‘जागरण विवाद’ में विनोदशंकर व्‍यास के साथ धोखा किया, प्रेमचंद ने अपनी प्रेस के वरिष्‍ठ कर्मचारी प्रवासीलाल वर्मा के साथ धोखाधडी की, प्रेमचंद की प्रेस में मजदूरों ने हड़ताल की, प्रेमचंद ने अपनी बेटी के बीमार होने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया आदि। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • कमलकिशोर गोयनका द्वारा लगाए गए ये आरोप प्रेमचंद के जीवन का एक पक्ष जरूर हमारे सामने लाते हैं जिसमें उनकी इंसानी कमजोरियों जाहिर होती हैं लेकिन इन सब से उनके व्‍यापक साहित्‍य के मूल्‍यांकन पर इन आरोपों का कोई असर नहीं पड़ पाया है।
  • प्रेमचंद्र को लोग आज उनकी काबिलियत की वजह से याद करते हैं जो विवादों को बहुत कम जगह देती है।
  • प्रेमचंद को प्रायः “मुंशी प्रेमचंद” के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद के नाम के साथ ‘मुंशी’ कब और कैसे जुड़ गया? इस विषय में अधिकांश लोग यही मान लेते हैं कि प्रारम्भ में प्रेमचंद अध्यापक रहे। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • और अध्यापकों को प्राय: उस समय मुंशी जी कहा जाता था। इसके अतिरिक्त कायस्थों के नाम के पहले सम्मान स्वरूप ‘मुंशी’ शब्द लगाने की परम्परा रही है। संभवत: प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी शब्द जुड़कर रूढ़ हो गया।
  • प्रोफेसर शुकदेव सिंह के अनुसार प्रेमचंद जी ने अपने नाम के आगे ‘मुंशी’ शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया। उनका यह भी मानना है कि मुंशी शब्द सम्मान सूचक है, जिसे प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

मुंशी प्रेमचंद के कुछ अनमोल वचन

मुंशी प्रेमचन्द दुसरो के स्वभाव को समझने वाले तार्किक व्यक्ति थे जो हमेशा दलित, दमित, स्त्री, किसान व समाज के लिए हमेशा न्याय चेतना का विचार करते थे वह व्यक्तिगत जीवनी बातों को लेकर पूर्ण रूप से परिचित थे जिसमें इनके निम्न अनमोल वचन है-

  • अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है।
  • आलस्य वह राजरोग है जिसका रोगी कभी संभल नहीं पाता।
  • आलोचना और दूसरों की बुराइयां करने में बहुत फ़र्क़ है। आलोचना क़रीब लाती है और बुराई दूर करती है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है।
  • अपमान का भय क़ानून के भय से किसी तरह कम क्रियाशील नहीं होता।
  • कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है।
  • कुल की प्रतिष्ठा भी नम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुखाई से नहीं।
  • क्रांति बैठे-ठालों का खेल नहीं है। वह नई सभ्यता को जन्म देती है।
  • कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं।
  • क्रोध और ग्लानि से सद्भावनाएं विकृत हो जाती हैं। जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल वस्तु को दूषित कर देती है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है।
  • जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
  • जवानी जोश है, बल है, साहस है, दया है, आत्मविश्वास है, गौरव है और वह सब कुछ है जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है।
  • जब दूसरों के पांवों तले अपनी गर्दन दबी हुई हो, तो उन पांवों को सहलाने में ही कुशल है।
  • जो शिक्षा हमें निर्बलों को सताने के लिए तैयार करे, जो हमें धरती और धन का ग़ुलाम बनाए, जो हमें भोग-विलास में डुबाए, जो हमें दूसरों का ख़ून पीकर मोटा होने का इच्छुक बनाए, वह शिक्षा नहीं भ्रष्टता है। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • संतान वह सबसे कठिन परीक्षा है जो ईश्वर ने मनुष्य को परखने के लिए गढ़ी है।
  • सफलता में अनंत सजीवता होती है, विफलता में असह्य अशक्ति।
  • समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं। Munshi Premchand ka Jivan Parichay
  • स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है।
  • आत्मसम्मान की रक्षा करना हमारा सबसे पहला धर्म है।
  • सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम ही जिंदगी है।
  • अन्याय होने पर चुप रहना अन्याय करने के ही सम्मान है।
  • जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।
  • क्रौध मौन सहन नही कर सकता है मौन के आगे क्रौध की शक्ति असफल हो जाती है।
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्या को पा सके तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।
  • गलती करना उतना गलत नहीं जितना उसे दोहराना है।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

मुंशी प्रेमचंद किस लिए प्रसिद्ध है?
मुंशी प्रेमचंद आधुनिक हिन्दुस्तानी साहित्य के लिए प्रसिद्ध है।

मुंशी प्रेमचंद की कौन सी उपासना है?
मुंशी प्रेमचंद की गोदान, ईदगाह, कफन, निर्मला, दो बेलों की कथा है।

मुंशी प्रेमचंद कितनी रचनाएं हैं?
मुंशी प्रेमचंद 300 रचनाएं हैं।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ था?
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमती वाराणसी में हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ कब हुई?
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ।

अंतिम कुछ शब्द :-

दोस्तों मै आशा करता हूँ आपको ” मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand ka Jivan Parichay) ” Blog पसंद आया होगा। अगर आपको मेरा ये Blog पसंद आया हो तो अपने दोस्तों और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे अन्य लोगो को भी इसकी जानकारी दे। यह Blog Post मुख्य रूप से अध्यायनकारों के लिए तैयार किया गया है, हालांकि सभी लोग इसे पढ़कर ज्ञान आरोहण कर सकते है।

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