Mahabharata stories for kids ||सम्पूर्ण महाभारत की कहानी || भाग 01

Mahabharata stories for kids || सम्पूर्ण महाभारत की कहानी :-

Mahabharata stories for kids || सम्पूर्ण महाभारत की कहानी :- हिन्दू धर्म के दो सबसे बड़े महाकाव्य रामायण और महाभारत, हिन्दू धर्म के अस्तित्व को वहाँ करते हैं। हिन्दू धर्म के सार आपको श्रीमद भगबदगीता पे मिलेगा जो महाभारत का अंश है और प्रभु श्रीराम जी का मर्यादा पुरुषोत्तम रूप आपको रामायण के महाकाव्य मैं मिल जाएगा।

इतने बड़े बड़े काव्य होने के बाबाजूद भी ये दो महाभारत और रामायण नैतिक कहानियों से भरपूर हैं, और नैतिक कहानियाँ तथा नैतिक शिक्षा बच्चों के बुद्धि तथा दैनिक आचरण के विकाश के लिए बोहोत आवश्यक हैं।

उन दो महाकाव्यों मैं से महाभारत एक अन्यतम महाकाव्य है जिसमे हिन्दू पौराणिक व दार्शनिक कथाओं का बोहोत ही सुंदर वर्णन मिलता हैं । माना जाता है कि यह सिर्फ बड़ों के लिए है पर यह एक महाकाव्य होने के अलावा भी बहुत कुछ है। इसमें मौजूद अलग-अलग कहानियां और पात्र बच्चों के लिए तथा उनके नैतिकता के विकाश के लिए भी एक अच्छी सीख का उदाहरण बन सकते हैं।

महाभारत के आनक्ष बने हुए श्रीमदभागवतगीता छोटे से लेकर बड़े तक सभी के लिए तथा उनके जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। दुनिया के सबसे बड़े बड़े लोग हर देश से इसस महग्रन्थ के सार तत्व को अनुसरण करते हैं तथा अपने सफलता के पीछे इसस महान ग्रंथ का बाद हाथ बताया हैं

महाभारत को सिर्फ टाइम पास के लिए नहीं पढ़ा जाता है। यदि आप इसे पढ़ते हैं तो पहले इसकी गंभीरता व इसकी गहराइयां जानें और इससे जुड़े हर एक पात्र के कर्मों व प्रतिक्रियाओं को समझें। महाभारत से जुड़ी कहानियां पढ़ने के बाद आप खुद को इतनी सारी भूमिकाएं निभाते हुए पाएंगे जैसी इन कहानियों में वर्णित हैं। mahabharat full story in hindi

महाभारत का युद्ध द्वापर युग में लड़ा गया। महर्षि वेदव्यास ने इस पूरी घटना को संस्कृत महाकाव्य का रूप दिया। इस महाकाव्य में कई प्रेरणादायक कहानियां शामिल हैं। ये कहानियां बच्चों को धर्म और कर्म का पालन करना सिखाती हैं। महाभारत की कथा में बहुत से महान पात्र हैं, जिनसे बच्चों का मार्गदर्शन हो सकता है। वीर अर्जुन, भगवान श्री कृष्ण, धर्मराज युधिष्ठर, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, दानवीर कर्ण और महात्मा विदुर ऐसे ही कुछ चरित्र हैं।

सिर्फ इतना ही नही बल्कि महाभारत के अनेकों ऐसी घटनाएं हैं जो की कुछ न कुछ शिक्षा जरूर देती हैं। हिन्दीसिक्षा मैं कहानी के इसस विभाग मैं हम हिन्दू धर्म के उसी महान काव्य महाभारत के बिषय मैं सरल भाषा मैं पढ़ेंगे। mahabharata stories for kids

इस तरह आप अपने बच्चों को भारत के इतिहास और संस्कृति से परिचित करा सकते हैं। श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में अर्जुन द्वारा लिए गए सभी निर्णय ज्ञान और बुद्धि के उपयोग के लिए अच्छे उदाहरण हैं।

कृष्ण-अर्जुन संवाद सुनने से बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। आप महाभारत की कहानी से श्री कृष्ण के चरित्र का उपयोग करके अपने बच्चों में ईश्वर के प्रति आस्था जगा सकते हैं। तो फिर चलिए आगे चल कर कहानियों की तरफ बढ़ते हैं :-

mahabharata stories for kids
mahabharat short story in hindi
mahabharat full story in hindi
Mahabharata stories for kids

महाभारत की कहानी :-

1) महाभारत कथा :-

महाभारत की कथा महर्षि पराशर के कीर्तिमान पुत्र वेद व्यास की देन है। व्यास जी ने महाभारत की यह कथा सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को कंठस्थ कराई थी और बाद में अपने दूसरे शिष्यों को। मानव-जाति में महाभारत की कथा का प्रसार महर्षि वैशंपायन के द्वारा हुआ। वैशंपायन व्यास जी के प्रमुख शिष्य थे। ऐसा माना जाता है कि महाराजा परीक्षित के पत्र जनमेजय ने एक बड़ा यज्ञ किया। इस महायज्ञ में सुप्रसिद्ध पौराणिक सूत जी भी मौजूद थे। सूत जी ने समस्त ऋषियों की एक सभा बुलाई। महर्षि शौनक इस सभा के अध्यक्ष हुए। mahabharat full story in hindi

सृत जी ने ऋषियों की सभा में महाभारत की कथा प्रारंभ की कि महाराजा शांतनु के बाद उनके पुत्र चित्रांगद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। उनकी अकाल मृत्यु हो जाने पर उनके भाई विचित्रवीर्य राजा हुए। उनके दो पुत्र हुए- धृतराष्ट्र और पांडुबड़े बेटे धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे, इसलिए उस समय की नीति के अनुसार पांडु को गद्दी पर बैठाया गया। mahabharat short story in hindi

पांडु ने कई वर्षों तक राज किया। उनकी दो रानियाँ थीं- कुंती और माद्री। कुछ समय राज्य करने के बाद पांडु अपने किसी अपराध के प्रायश्चत के लिए तपस्या करने जंगल में गए। उनकी दोनों रानियाँ भी उनके साथ ही गई। वनवास के समय कुंती और माद्री ने पाँंच पांडवों को जन्म दिया। कुछ समय बाद पांडू की मृत्यु हो गई। पाँचों अनाथ बच्चों का वन के ऋषि-मुनियों ने पालन-पोषण किया और पढ़ाया-लिखाया। जब युधिष्ठिर सोलह वर्ष के हुए, तो ऋषियों ने पाँचों कुमारों को हस्तिनापुर ले जाकर पितामह भीष्म को सोंप दिया। mahabharata stories for kids

पाँचों पांडव बुद्धि से तेज़ और शरीर से बली थे। उनकी प्रखर बुद्धि और मधुर स्वभाव ने सबको मोह लिया था। यह देखकर धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव उनसे जलने लगे और उन्होंने पांडवों को तरह-तरह से कष्ट पहुँचाना शुरू किया। mahabharat full story in hindi

दिन-पर-दिन कौरवों और पांडवों के बीच वैर-भाव बढ़ता गया। अंत में पितामह भीष्म ने दोनों को किसी तरह समझाया और उनके बीच संधि कराई। भीष्म के आदेशानुसार कुरु -राज्य के दो हिस्से किए गए। कौरव हस्तिनापुर में ही राज करते रहे और पांडवों को एक अलग राज्य दे दिया गया, जो आगे चलकर इंद्रप्रस्थ के नाम से मशहूर हुआ। इस प्रकार कुछ दिन शांति रही। mahabharat short story in hindi

उन दिनों राजा लोगों में चौसर खेलने का आम रिवाज था। राज्य तक की बाज़ियाँ लगा दी जाती थीं। इस रिवाज के मुताबिक एक बार पांडवों और कौरवों ने चौसर खेला। कौरवों की तरफ़ से कुटिल शकुनि खेला। उसने युधिष्ठिर को हरा दिया। इसके फलस्वरूप पांडवों का राज्य छिन गया और उनको तेरह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। उसमें एक शर्त यह भी थी कि बारह वर्ष के वनवास के बाद एक वर्ष अज्ञातवास करना होगा। उसके बाद उनका राज्य उन्हें लोटा दिया जाएगा।

द्रौपदी के साथ पाँचों पांडव बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास में बिताकर वापस लौटे, पर लालची दुर्योधन ने लिया हुआ राज्य वापस करने से इंकार कर दिया। अत: पांडवों को अपने राज्य के लिए लड़ना पड़ा। युद्ध में सारे कौरव मारे गए, तब पांडव उस विशाल साम्राज्य के स्वामी हुए।

इसके बाद छत्तीस वर्ष तक पांडवों ने राज्य किया और फिर अपने पोते परीक्षित को राज्य देकर द्रौपदी के साथ तपस्या करने हिमालय चले गए। संक्षेप में यही महाभारत की कथा है।

तो कुछ इस तरह संक्षेप मैं महाभारत की कहानी चलती है पर बिस्तार से इन कहानियों के बीच मैं नओहोत कुछ रोचक कहानियाँ छिपी रही हुई हैं। तो आइए शुरुवात से शुरू करते हैं।

Panchatantra Stories In Hindi-पहला तंत्र || पंचतंत्र की कहानियाँ || भाग 1

2) देवव्रत की काहानी :-

गंगा एक सुंदर युवती का रूप धारण किए नदी के तट पर खड़ी थी, उनके सौंदर्य और नवयौवन ने राजा शांतनु को मोह लिया था। गंगा बोली, “राजन्! आपकी पत्नी होना मुझे स्वीकार है, पर इससे पहले आपको मेरी शर्ते माननी होंगी। mahabharat short story in hindi

क्या आप मानेंगे?”
राजा ने कहा-” अवश्य!”

राजा शांतनु ने गंगा की सारी शर्तें मान लीं और वचन दिया कि वह उनका पूर्ण रूप से पालन करेंगे। समय पाकर गंगा से शांतनु के कई तेजस्वी पुत्र हुए, परंतु गंगा ने उनको जीने नहीं दिया। बच्चे के पैदा होते ही वह उसे नदी की बहर्ती हुई धारा में फेंक देती थी और फिर हँसती – मुसकराती राजा शांतनु के महल में आ जाती थी। mahabharata stories for kids

अज्ञात सुंदरी के इस व्यवहार से राजा शांतमू चकित रह जाते। उनके आश्चर्य और क्षोभ के पारावार न रहा। शांतनु वचन दे चुके थे, इस कारण मन मसोसकर रह जाते हैं। सात बच्चों को गंगा ने इसी भाँति नदी की धारा में बहा दिया। आठवाँ बच्चा पैदा हुआ। गंग उसे भी लेकर नदी की तरफ़ जाने लगी, त शांतनु से न रहा गया। बोले-“ माँ होकर अपने नादान बच्चों को अकारण ही क्यों मार दिय करती हो? यह घृणित व्यवहार तुम्हें शोभा नहीं देता है।” mahabharat short story in hindi

राजा की बात सुनकर गंगा मन-ही- मन मुसकराई, परंतु क्रोध का अभिनय करती हुई बोली-“राजन्! क्या आप अपना वचन भूल गए हैं? मालूम होता है कि आपको पुत्र से ही मतलब है, मुझसे नहीं। आपको मेरी क्या परवाह है! ठीक है, पर शर्त के अनुसार मैं अब नहीं ठहर सकती। हाँ, आपके इस पुत्र को मैं नदी में नहीं फेंकूँगी। इस अतिम बालक को मैं कुछ दिन पालूँगी और फिर पुरस्कार के रूप में आपको सौंप दूँगी।” mahabharata stories for kids

यह कहकर गंगा बच्चे को साथ लेकर चली गई। यही बच्चा आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुआ। गंगा के चले जाने से राजा शांतनु का मन विरक्त हो गया। उन्होंने भोग-विलास से जी हटा लिया और राज-काज में मन लगाने लगे। mahabharat full story in hindi

एक दिन राजा शिकार खेलते- खेलते गंगा के तट पर चले गए, तो देखा किनारे पर खड़ा एक सुंदर और गठीला युवक गंगा की बहती हुई धारा पर बाण चला रहा था। बाणों की बौछार से गंगा की प्रचंड धारा एकदम रुकी हुई थी। यह देखकर शांतनु दंग रह गए। mahabharat short story in hindi

इतने में ही राजा के सामने स्वयं गंगा आकर उपस्थित हो गई। गंगा ने युवक को अपने पास बुलाया और राजा से बोली-” राजन्, पहचाना मुझे और इस युवक को? यही आपका और मेरा आठवाँ पुत्र देवव्रत है। महर्षि वसिष्ठ ने इसे शिक्षा दी है। mahabharata stories for kids

शास्त्र -ज्ञान में शुक्राचार्य और रण-कौशल में परशुराम ही इसका मुकाबला कर सकते हैं। यह जितना कुशल योद्धा है, उतना ही चतुर राजनीतिज्ञ भी है। आपका पुत्र , मैं आपको सौंप रही हुँ। अब ले जाइए इसे अपने साथ।” गंगा ने देवव्रत का माथा चुमा और आशीर्वाद देकर राजा के साथ उसे विदा कर दिया।

3) भीष्म-प्रतिज्ञा :-

तेजस्वी पुत्र को पाकर राजा प्रफुल्लित मन से नगर को लौटे और देवव्रत राजक्मार के पद को सुशोभित करने लगे।

चार वर्ष और बीत गए। एक दिन राजा शांतनु यमुना-तट की ओर घूमने गए, तो वहाँ अप्सरा-सी सुंदर एक तरुणी खड़ी दिखाई दी। तरुणी का नाम सत्यवती था। गंगा के वियोग के कारण राजा के मन में जो विराग छाया हुआ था, वह इस तरुणी को देखते ही विलीन हो गया। mahabharat short story in hindi

उस सुंदरी को अपनी पत्नी बनाने की इच्छा उनके मन में बलवती हो उठी और उन्होंने सत्यवती से प्रेम-याचना की। सत्यवती बोली-” मेरे पिता मल्लाहों के सरदार हैं। पहले उनकी अनुमति ले लीजिए। फिर मैं आपकी पत्नी बनने को तैयार हूँ।” राजा शांतनु ने जब अपनी इच्छा उन पर प्रकट की, तो केवटराज ने कहा-” आपको मुझे एक वचन देना पडेगा।”
राजा ने कहा-” जो माँगोगे दूंगा, यदि वह मेरे लिए अनुचित न हो।”

केवटराज बोले-” आपके बाद हस्तिनापुर के राज-सिंहासन पर मेरी लड़की का पुत्र बैठेगा, इस बात का आप मुझे वचन दे सकते हैं?'” mahabharata stories for kids

केवटराज की शर्त राजा शांतनु को नागवार लगी। गंगा-सुत को छोड़कर अन्य किसी को राजगद्दी पर बैठाने की कल्पना तक उनसे न हो सकी। निराश और उद्विग्न मन से वह नगर की ओर लौट आए। किसी से कुछ कह भी न सके। पर चिंता उनके मन को कीड़े की तरह कुतर-कुतरकर खाने लगी।

देवव्रत ने देखा कि उसके पिता के मन में कोई-न-कोई व्यथा समाई हुई है। एक दिन उसने शांतनु से पूछा-“पिता जी, संसार का कोई भी सुख ऐसा नहीं है, जो आपको प्राप्त न हो, फिर भी इधर कुछ दिनों से आप दुखी दिखाई दे रहे हैं। आपको किस बात की चिंता है?” mahabharat short story in hindi

यद्यपि शांतनु ने गोलमोल बातें बताई, फिर भी कुशाग्र-बुद्धि देवत्रत को बात समझते देर न लगी। उन्होंने राजा के सारथी से पूछताछ करके, उस दिन केवटराज से यमुना नदी के किनारे जो कुछ बातें हुई थीं, उनका पता लगा लिया। पिता जी के मन की व्यथा जानकर देवव्रत सीधे केवटराज के पास गए और उनसे कहा कि वह अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह महाराज शांतनु से कर दें।

केवटराज ने वही शर्त दोहराई, जो उन्होंने शांतनु के सामने रखी थी। देवव्रत ने कहा-” यदि तुम्हारी आपत्ति का कारण यही है, तो मैं वचन देता हूँ कि मैं राज्य का लोभ नहीं करूँगा। सत्यवती का पुत्र ही मेरे पिता के बाद् राजा बनेगा।” mahabharat full story in hindi

केवटराज इससे संतुष्ट न हुए। उन्होंने और दूर की सोची। बोले-“आर्यपुत्र, इस बात का मुझे पूरा भरोसा है कि आप आपने वचन पर अटल रहेंगे, किंतु आपकी संतान से मैं वैसी आशा कैसे रख सकता हँ? आप जैसे वीर का पुत्र भी तो वीर ही होगा। बहुत संभव है कि वह मेरे नाती से राज्य छीनने का प्रयत्न करे। इसके लिए आपके पास क्या उत्तर है?” mahabharata stories for kids

केवटराज का प्रश्न अप्रत्याशित था। उसे संतुष्ट करने का यही अर्थ हो सकता था कि देवव्रत अपने भविष्य का भी बलिदान कर दें, किंत् पितृभक्त देवव्रत इससे ज़रा भी विचलित नहीं हुए। गंभीर स्वर में उन्होंने यह कहा-” मैं जीवनभर विवाह नहीं करूँगा! आजन्म ब्रह्चारी रहुँगा! मेरे संतान ही न होगी! अब तो तुम संतुष्ट हो?” किसी को आशा न थी कि तरुण कुमार ऐसी कठोर प्रतिज्ञा करेंगे। देवव्रत ने भयंकर प्रतिज्ञा की थी, इसलिए उस दिन से उनका नाम ही भीष्म पड़ गया। mahabharat short story in hindi

केवटराज ने सानंद अपनी पुत्री को देवव्रत के साथ विदा किया।

सत्यवती से शांतनु के दो पुत्र हुए –चित्रांगद और विचित्रवीर्य। शांतनु के देहावसान पर चित्रांगद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे और उनके युद्ध में मारे जाने पर विचित्रवीर्य। विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थीं- अंबिका और अंबालिका। mahabharata stories for kids

अंबिका के पुत्र थे धृतराष्ट्र और अंबालिका के पांडु। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए और पांडु के पांडव। महात्मा भीष्म, शांतनु के बाद से कुरुक्षेत्र-युद्ध का अंत होने तक उस विशाल राजवंश के सामान्य कुलनायक और पूज्य बने रहे। शांतनु के बाद कुरुवंश का क्रम यह रहा-

Panchatantra Stories In Hindi-दूसरा तंत्र || पंचतंत्र की कहानियाँ || भाग 2

4) अंबा और भीष्म :-

सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे। एक बार किसी गंधर्व के साथ युद्ध हुआ, उसमें वह मारे गए। उनके कोई पुत्र न था, इसलिए उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठे। विचित्रवीर्य की आयु उस समय बहुत छोटी थी, इस कारण उनके बालिग होने तक राज-काज भीष्म को ही सँभालना पड़ा। mahabharat full story in hindi

जब विचित्रवीर्य विवाह के योग्य हुए, तो भीष्म को उनके विवाह की चिंता हुई। उन्हें खबर लगी कि काशिराज की कन्याओं का स्वयंवर होनेवाला है। यह जानकर भीष्म बड़े खुश हुए और स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए काशी रवाना हो गए। mahabharat short story in hindi

देश-विदेश के अनेक राजकुमार उस स्वयंवर में भाग लेने के लिए आए थे। राजपुत्रियों को पाने के लिए आपस में बड़ी स्पर्धा थी। क्षत्रियों में भीष्म की प्रतिज्ञा की प्रतिष्ठा अद्वितीय थी। उनके महान त्याग और भीषण प्रतिज्ञा का हाल सब जानते थे। mahabharata stories for kids

इसलिए जब वह स्वयंवर-मंडप में प्रविष्ट हुए, तो राजकुमारों ने सोचा कि वह सिर्फ़ स्वयंवर देखने के लिए आए होंगे। परंतु जब स्वयंवर में सम्मिलित होनेवालों में भीष्म ने भी अपना नाम दिया, तो अन्य कुमारों को निराश होना पड़ा। उनको क्या पता था कि दृढ़व्रती भीष्म अपने लिए नहीं, वरन् अपने भाई के लिए स्वयंवर में सम्मिलित हुए हैं। mahabharat short story in hindi

सभा में खलबली मच गई। चारों ओर से भीष्म पर फब्तियाँ कसी जाने लगीं-” माना कि भरतवंशी भीष्म बड़े बुद्विमान और विद्वान हैं, स्वयंवर से इन्हें क्या मतलब? इनके प्रण का क्या हुआ? जीवनभर ब्रह्मचारी रहने की इन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, क्या वह झूठी थी?” mahabharat full story in hindi

इस भाँति सब राजकुमारों ने भीष्म की हँसी उड़ाई, यहाँ तक कि काशिराज की कन्याओं ने भी भीष्म की तरफ़ से दृष्टि फेर ली और उनकी अवहेलना-सी करके आगे की ओर चल दीं। भीष्म इस अवहेलना को सह न सके। उन्होंने सभी राजकुमारों को हराकर तीनों राजकन्याओं को बलपूर्वक रथ पर बैठा लिया और हस्तिनापुर को चल दिए। mahabharata stories for kids

सौभदेश का राजा शाल्व बड़ा वीर था। काशिराज की सबसे बड़ी कन्या अंबा उस पर अनुरुक्त थी और उसको मन-ही-मन अपना पति मान चुकी थी। शाल्व ने भीष्म के रथ का पीछा किया और उसको रोकने का प्रयल किया। इस पर भीष्म और शाल्व के बीच घोर युद्ध छिड गया। mahabharat short story in hindi

भीष्म ने उसे हरा दिया, किंतु काशिराज की कन्याओं की प्रार्थना पर उसे जीवित ही छोड़ दिया। भीष्म काशिराज की कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर पहुँचे। विचित्रवीर्य के विवाह की सारी तैयारी हो जाने के बाद जब कन्याओं को विवाह-मंडप में ले जाने का समय आया, तो काशिराज की बड़ी बेटी अंबा एकांत में भीष्म से बोली-” गांगेय, मैंने अपने मन में सौभदेश के राजा शाल्व को अपना पति मान लिया था। इसी बीच आप मुझे बलपूर्वक यहाँ ले आए। मेरे मन की बात जानने के बाद आप मेरे बारे में अब जो उचित समझें, करें।” mahabharat short story in hindi

भीष्म को औंबा की बात जँची। उन्होंने अंबा को उसकी इच्छानुसार उचित प्रबंध के साथ शाल्व के पास भेज दिया और अंबा की दोनों बहनों- अंबिका और अंबालिका-का विचित्रवीर्य के साथ विवाह करा दिया। अंबा अपने मनोनीत वर सौभराज शाल्व के पास गई और सारा वृत्तांत कह सुनाया। उसने कहा-“राजन्! मैं आपको ही अपना पति मान चुकी हूँ। मेरे अनुरोध से भीष्म ने मुझे आपके पास भेजा है। आप मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर ले।” mahabharata stories for kids

पर शाल्व न माना। उसने अंबा से कहा-” सारे राजकुमारों के सामने भीष्म ने मुझे युद्ध में पराजित किया और तुम्हें बलपूर्वक हरण करके ले गए। इतने बड़े अपमान के बाद मैं तुम्हें कैसे स्वीकार कर सकता हूँ। तुम्हारे लिए अब उचित यही है कि तुम भीष्म के पास जाओ और उनकी सलाह के मुताबिक ही काम करो। ” mahabharat short story in hindi

बेचारी अंबा हस्तिनापुर लौट आई और भीष्म को सारा हाल कह सुनाया। उन्होंने विचित्रवीर्य से कहा-” वत्स, राजा शाल्व अंबा को स्वीकार नहीं करता। इससे विदित होता है कि उसकी इच्छा अंबा को पत्नी बनाने की नहीं थी। अब उसके साथ तुम्हारा ब्याह करने में कोई आपत्ति नहीं रही है।” पर विचित्रवीर्य अंबा के साथ ब्याह करने को राजी न हुए। mahabharat full story in hindi

बेचारी अंबा न इधर की रही, न उधर की। कोई और रास्ता न देख वह भीष्म से बोली- “गांगेय, मैं तो दोनों ओर से ही गई। मेरा कोई भी सहारा न रहा। आप ही मुझे हर लाए थे, अतः अब आपका यह कर्तव्य है कि आप मेरे साथ ब्याह कर लें।” mahabharata stories for kids

भीष्म ने उसकी बात ध्यान से सुनी और अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाकर बोले-” अपनी प्रतिज्ञा तो मैं नहीं तोड़ सकता।” उन्होंने अंबा की परिस्थिति समझकर विचित्रवीर्य से दोबारा आग्रह किया, पर वह न माना। भीष्म ने अंबा को फिर समझाया और कहा कि सौभराज शाल्व के ही पास जाओ और एक बार फिर प्रार्थना करो। mahabharata stories for kids

लाचार अंबा फिर शाल्व के पास गई और उसकी बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन दूसरे की जीती हुई कन्या को स्वीकार करने से सौभराज ने साफ़ इंकार कर दिया। अंबा इस प्रकार छह साल तक हस्तिनापुर और सौभदेश के बीच ठोकरें खाती फिरी। उसने अपने इस सारे दुख का कारण भीष्म को ही समझा। उन पर उसे बहुत क्रोध आया और प्रतिहिंसा की आग उसके मन में जलने लगी। mahabharat short story in hindi

भीष्म से बदला लेने की इच्छा से वह कई राजाओं के पास गई और उनको अपना दुखड़ा सुनाया। भीष्म से युद्ध करके उनका वध करने की उसने राजाओं से प्रारथना की, पर राजा लोग तो भीष्म के नाम से ही डरते थे।

किसी में इतना साहस न था कि भीष्म से युद्ध करे। क्षत्रियों से एकदम निराश होकर अंबा ने तपस्वी ब्रह्मणों की शरण ली। तपस्वियों ने कहा-” बेटी, तुम परशुराम के पास जाओ। वे तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।” तब ऋषियों की सलाह पर अंबा परशुराम के पास गई। mahabharat full story in hindi

अंबा की करुण कहानी सुनकर परशुराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने दया्द्र स्वर में कहा- “काशिराज-कन्ये, तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

अंबा ने कहा-” ब्राह्ण-वीर, मेरी प्रार्थना केवल यही है कि आप भीष्म से युद्ध करें। मैं आपसे भीष्म के वध की भीख माँगती हूँ।” mahabharat short story in hindi

परशुराम को अंबा की प्रार्थना पसंद आई। बड़े उत्साह के साथ वह भीष्म के पास गए और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों कुशल योद्धा थे और धनुष-विद्या के जानकार भी। दोनों ही जितेंद्रिय और ब्रह्मचारी थे। समान योद्धाओं की टक्कर थी। mahabharata stories for kids

कई दिनों तक युद्ध होता रहा, फिर भी हार-जीत का निश्चय न हो सका। अंत में परशुराम ने हार मान ली और उन्होंने अंबा से कहा-” जो कुछ मेरे वश में था, कर चुका। अब तुम्हारे लिए यही उचित है कि तुम भीष्म ही की शरण लो। “ mahabharat full story in hindi

पर अंबा ऐसी बातों से कब विचलित होनेवाली थी? उसने वन में जाकर फिर तपस्या शुरू की और तपोबल से स्त्री-रूप छोड़कर पुरुष बन गई और उसने अपना नाम शिखंडी रख लिया।

जब कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हुआ, तो भीष्म के विरुद्ध लड़ते समय शिखंडी रथ के आगे बैठा था और अर्जुन ठीक उसके पीछे। ज्ञानी भीष्म को यह बात मालूम थी कि अंबा ही शिखंडी का रूप धारण किए हुए है। mahabharat short story in hindi

इसलिए उन्होंने उस पर बाण चलाना अपनी वीरोचित प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझा। शिखंडी को आगे करके अर्जुन ने भीष्म पितामह पर हमला किया और अंत में उन पर विजय प्राप्त की। जब भीष्म आहत होकर पृथ्वी पर जाकर अंबा का क्रोध शांत हुआ। mahabharata stories for kids

Panchatantra Stories In Hindi-तीसरा तंत्र || पंचतंत्र की कहानियाँ || भाग 3

5) विदुर :-

विचित्रवीर्य की रानी अंबालिका की दासी की कोख से धर्मदेव का जन्म हुआ था। वह ही आगे चलकर विदूर के नाम से प्रख्यात हुए। धर्मशास्त्र तथा राजनीति में उनका ज्ञान अथाह था। वह बड़े निःस्पह थे। क्रोध उन्हें छू तक नहीं गया था। mahabharat full story in hindi

युवावस्था में ही पितामह भीष्म ने उनके विवेक तथा ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें राजा धृतराष्ट्र का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। जिस समय धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को जुआ खेलने की अनुमति दी, विदुर ने धृतराष्ट्र से बहुत आग्रहपूर्वक निवेदन किया- ” राजन्, मुझे आपका यह काम ठीक नहीं जैँचिता। इस खेल के कारण आपके बेटों में आपस में वैरभाव बढेगा। इसको रोक दीजिए। “

धृतराष्ट्र विदुर की बात से प्रभावित हुए और अपने बेटे दुर्योधन को अकेले में बुलाकर उसे इस कुचाल से रोकने का प्रयत्न किया। बड़े प्रेम के साथ वह बोले- “गांधारी के लाल! बिदुर बड़ा बुद्धिमान है और हमेशा हमारा भला चाहता आया है। उसका कहा मानने में ही हमारी भलाई है। वत्स! जुआ खेलने का विचार छोड़ दो। विदुर कहता है कि उससे विरोध बहुत बढ़ेगा और वह राज्य के नाश का कारण हो जाएगा। छोड़ दो इस विचार को।” mahabharata stories for kids

धृतराष्ट्र ने अपने बेटे को सही रास्ते पर लाने का प्रयत्न किया, किंतु दुर्योधन न माना। वृद्ध धृतराष्ट्र अपने बेटे से बहुत स्नेह करते थे। अपनी इस कमज़ोरी के कारण उसका अनुरोध वह टाल न सके और युधिष्ठिर को जुआ खेलने का न्यौता भेजना ही पड़ा। mahabharat short story in hindi

धृतराष्ट्र पर बस न चला, तो विदुर युधिष्ठिर के पास गए। उनको जुआ खेलने को जाने से रोकने का प्रयत्न किया। युधिष्ठिर ने विदुर की सब बातें ध्यानपूर्वक सुर्नी और बड़े आदर के साथ बोले-“चाचा जी! मैं यह सब मानता हूँ. पर जब काका धृतराष्ट्र बुलाएँ, तो मैं कैसे इंकार करू? युद्ध या खेल के लिए बुलाए जाने पर न जाना क्षत्रिय का धर्म तो नहीं है।” यह कहकर युधिष्ठिर क्षत्रिय- कुल की मर्यादा रखने के लिए जुआ खेलने गए।

6) कुंती :-

यदुवंश के प्रसिद्ध राजा शूरसेन श्रीकृष्ण के पितामह थे। इनके पृथा नाम की कन्या थी। उसके रूप और गु्णों की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। शूरसेन के फुफेरे भाई कुंतिभोज के कोई संतान न थी। शूरसेन ने कुंतिभोज को वचन दिया था कि उनकी जो पहली संतान होगी, उसे कुंतिभोज को गोद दे देंगे। उसी के अनुसार शूरसेन ने कुंतिभोज को पृथा गोद दे दी। कुंतिभोज के यहाँ आने पर पृथा का नाम कुंती पड गया। mahabharata stories for kids

कुंती के बचपन ऋषि दुर्वासा एक बार कुंतीभोज के यहाँ पधारे। कुंती ने एक वर्ष तक वडी सावधानी व सहनशीलता के साथ उनकी सेवा-सुश्रूषा की। उसकी सेवा-टहल से दुर्वासा ऋषि प्रसन्न हुए और उसे उपदेश दिया और चोले-“कुंतिभोज- कन्ये, तुम किसी भी देवता का ध्यान करोगी, तो वह अपने ही समान एक तेजस्वी पुत्र तुम्हें प्रदान करेगा। “

इस प्रकार सूर्य के संयोग से कुमारी कुंती ने सूर्य के समान तेजस्वी एवं सुंदर बालक को जन्म दिया। जन्मजात कवच और कुंडलों से शोभित वही बालक आगे चलकर शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण के नाम से विख्यात हुआ। लेकिन अब कुंती को लोक-निंदा का डर हुआ।

उसने बच्चे को छोड़ देना ही उचित समझा। इसलिए बच्चे को एक पेटी में बड़ी सावधानी के साथ बंद करके उसे गंगा की धारा में बहा दिया बहुत आगे जाकर अधिरथ नाम के एक सारथी की नज़र उस पर पड़ी। उसने पेटी निकाली औ खोलकर देखा, तो उसमें एक सुंदर बच्चा सोत हुआ मिला। अधिरथ नि:संतान था। बालक के पाकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। सूर्य -पुत्र कर्ण इस तरह एक सारथी के घर पलने लगा। mahabharat short story in hindi

इधर कुंती विवाह के योग्य हुई। राजा कुनतिभोज ने उसका स्वयंवर रचा। उससे विवाह करने की इच्छा से देश-विदेश के अनेक राजकुमार स्वयं में आए। हस्तिनापुर के राजा पांड़ भी स्वयंवर में शरीक हुए थे। कुंती ने उन्हीं के गले में वरमाला डाल दी। mahabharat full story in hindi

महाराज पांडु का कुंती से व्याह हो गया और वह कुंती सहित हस्तिनापुर लौट आए उन दिनों राजवंशों में एक से अधिक विवाह करने की प्रथा प्रचलित थी। इसी रिवाज के अनुसार पितामह भीष्म की सलाह से महाराज पांड़ ने मद्राज की कन्या माद्री से भी ब्याह कर लिया। mahabharata stories for kids

एक दिन महाराजा पांडु वन में शिकार खेलने गए। वहीं जंगल में हिरण के रूप में एक ऋषि-दम्पति भी विहार कर रहे थे। पांडु ने अपने तीर से हिरण को मार गिराया। उनको यह पता नहीं था कि ये ऋषि- दम्पति हैं। ऋषि ने मरते-मरते पांडु को श्राप दिया। mahabharat short story in hindi

ऋषि के शाप से पांडु को बड़ा दुख हुआ, साथ ही वह अपनी भूल से खिन्न होकर नगर को लौटे और पितामह भीष्म तथा विदृर को राज्य का भार सौंपकर अपनी पत्नियों के साथ वन में चले गए और वहाँ पर ब्रह्मचारी जैसा जीवन व्यतीत करने लगे। कुंती ने देखा कि महाराज को संतान-लालसा तो है, लेकिन ऋषि के शापवश वह संतानोत्पत्ति नहीं कर सकते।

अतः उसने विवाह से पूर्व दुर्वासा ऋषि से पाए वरदानों का पांडू से ज़िक्र किया। उनके अनुरोध से कुंती और माद्री ने देवताओं के अनुग्रह से पाँच पांडवों को जन्म दिया। वन में ही पाँचों का जन्म हुआ और वहीं तपस्वियों के संग वे पलने लगे। mahabharat full story in hindi

अपनी दोनों स्त्रियों तथा बेटों के साथ महाराज पांडू कई बरस वन में रहे। वसंत ऋतु थी। सारा वन आनंद में डूबा हुआ-सा प्रतीत हो रहा था। महाराज पांडु माद्री के साथ प्रकृति की इस उद्गारमय सुषमा को निहार रहे थे। ऋषि के शाप का असर हो गया। तत्काल उनकी मृत्यु हो गई। माद्री के दुःख का पार न रहा। पति की मृत्यु का वह कारण बनी, यह सोचकर पांडू के साथ ही वह भी मर गई।

इस दुर्घटना से कुंती और पाँचों पांडवों के शोक की सीमा न रही। पर वन के ऋषि -मुनियों ने बहुत समझा – बुझाकर उनको शांत किया और उन्हें हस्तिनापुर ले जाकर पितामह भीष्म के सुपुर्द किया। युधिष्ठिर की उम्र उस समय सोलह वर्ष की थी। mahabharata stories for kids

हस्तिनापुर के लोगों ने जब ऋषियों से सुना कि वन में पांडु की मृत्यु हो गई है, तो उनके शोक की सीमा न रही। पोते की मृत्यु पर शोक करती हुई सत्यवती अपनी दोनों विधवा पुत्रवधुओं – औंबिका और अंबालिका को साथ लेकर वन में चली गई। तीनों वृद्धाएँ कुछ दिन तपस्या करती रहीं और बाद में स्वर्ग सिधार गई। अपने कुल में जो छल-प्रपंच तथा अन्याय होने वाले थे, उन्हें न देखना ही संभवत: उन्होंने उचित समझा। mahabharat short story in hindi

7) भीम :-

पॉँचों पांडव तथा धृतराष्ट्र के सौ पुत्र, जो कोरब कहलाते थे, हस्तिनापुर में साथ-साथ रहने लगे। खेलकूद, हँसी- मज्ञाक सब में वे साथ ही रहते थे। शरीर-बल में पांडु का पुत्र भीम सबसे बढ़कर था। खेलों में वह दुर्योधन और उसके भाइयों को खुब तंग किया करता। mahabharat full story in hindi

यद्यपि भीम मन में किसी से वैर नहीं रखता था और बचपन के जोश के कारण ही ऐसा करता था, फिर भी दुर्योधन तथा उसके भाइयों मन में भीम के प्रति द्वेषभाव बढने लगा। इधर सभी बालक उचित समय आने पर कृपाचार्य से अस्त्र-विद्या के साथ-साथ अन्य विद्याएँ भी सीखने लगे।

विद्या सीखने में भी पांडव कौरवों से आगे ही रहते थे। इससे कौरव और खीझने लगे। दुर्योधन पांडवों को हर प्रकार से नीचा दिखाने का प्रयत्न करता रहता था। भीम से तो उसकी ज्रा भी नहीं पटती थी।

एक बार सब कौरवों ने आपस में सलाह करके यह निश्चय किया कि भीम को गंगा में डुबोकर मार डाला जाए और उसके मरने पर युधिष्ठिर-अर्जुन आदि को कैद करके बंदी एक दिन दुर्योधन ने धूमधाम से जल-क्रीड़ा का प्रबंध किया और पाँचों पांडवों को उसके लिए न्योता दिया। बड़ी देर तक खेलने और तैरने के बाद सबने भोजन किया और अपने-अपने डेरों में जाकर सो गए। mahabharata stories for kids

दुर्योंधन ने छल से भीम के भोजन में विष मिला दिया था। सब लोग खुब खेले-तैरे थे, सो थक- थकाकर सो गए। भीम को विष के कारण गहरा नशा हो गया। वह डरे पर भी न पहुंच पाया और नशे में चूर होकर गंगा-किनारे रेत में ही गिर गया । उसी हालत में दुर्योधन ने लताओं से उसके हाथ-पैर बाँधकर उसे गंगा में बहा दिया। लताओं से जकड़ा हुआ भीम का शरीर गंगा की धारा में बहता हुआ दूर निकल गया।

इधर दुर्योधन मन-ही-मन यह सोचकर खुश हो रहा था कि भीम का तो काम ही तमाम हो गया होगा। जब युधिष्ठिर आदि जागे और भीम को न पाया, तो चारों भाइयों ने मिलकर सारा जंगल तथा गंगा का वह किनारा, जहाँ जल-क्रीड़ा थी, छान डाला। mahabharata stories for kids

पर भीम का कहीं पता न चला। अंत में निराश होकर दुखी हृदय से वे अपने महल को लौट आए। इतने में ही क्या देखते हैं कि भीम झुमता-झामता चला आ रहा है। पांडवों और कुंती के आनंद का ठिकाना न रहा! युधिष्ठिर, कुंती आदि ने भीम को गले से लगा लिया।

पर सब हाल देखकर कुंती को बड़ी चिंता हुई। उसने विदुर को बुला भेजा और अकेले में उनसे बोली – “दुष्ट दुर्योधन जरूर कोई-न-कोई चाल चल रहा है। राज्य के लोभ में वह भीम को मार डालना चाहता है। मुझे इसकी चिंता हो रही है।” mahabharat full story in hindi

राजनीति-कुशल विदुर कुंती को समझाते हुए बोले-” तुम्हारा कहना सही है, परंतु कुशल इसी में है कि इस बात को अपने तक ही रखो। प्रकट रूप से द्र्योधन की निंदा कदापि न करना, नहीं तो इससे उसका द्वेष और बढ़ेगा।” mahabharat short story in hindi

इस घटना से भीम बहुत उत्तेजित हो गया था। उसे समझाते हुए युधिष्ठिर ने कहा-” भाई भीम, अभी समय नहीं आया है। तुम्हें अपने आपको सँभालना होगा। इस समय तो हम पॉँचों भाइयों को यही करना है कि किसी प्रकार एक-दूसरे की रक्षा करते हुए बचे रहें।” mahabharata stories for kids

भीम के वापस आ जाने पर दुर्योधन को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसका हृदय और जलने लगा।

8) कर्ण :-

पांडवों ने पहले कृपाचार्य से और बाद में द्रोणाचार्य से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पाई। उनको जब विद्या में काफ़ी निपुणता प्राप्त हो गई, तो एक भारी समारोह किया गया, जिसमें सबने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। सारे नगरवासी इस समारोह देखने आए थे।

तरह -तरह के खेल हुए और हरेक राजकुमार यही चाहता था कि वही सबसे वढ़कर निकले। आपस में प्रतिस्पर्था बड़े जोर की थी, परंतु तीर चलाने में पांडु-पुत्र अर्जुन का कोई सानी न था। अर्जुन ने धनुष-विद्या में कमाल का खेल दिखाया। उसकी अद्भुत चतुरता को देखकर सभी दर्शक और राजवंश के सभी उपस्थित लोग दंग रह गए। mahabharat full story in hindi

यह देखकर दुर्योधन का मन ई्य्या से जलने लगा। अभी खेल हो ही रहा था कि इतने में रंगभूमि के द्वार पर खम ठोंकते हुए एक रोबीला और तेजस्वी युवक मस्तानी चाल से आकर अर्जुन के सामने खड़ा हो गया। यह युवक और कोई नहीं, अधिरथ द्वारा पोषित कुंती-पुत्र कर्ण ही था, लेकिन उसके कुंती-पुत्र होने की बात किसी को मालूम न थी। mahabharata stories for kids

रंगभूमि में आते ही उसने अर्जुन को ललकारा- “अर्जुन! जो भी करतब तुमने यहाँ दिखाए हैं, उनसे बढ़कर कौशल मैं दिखा सकता हूँ। क्या तुम इसके लिए तैयार हो?” इस चुनौती को सुनकर दर्शक – मंडली में बड़ी खलबली मच गई, पर ईप्या की आग से जलनेवाले दु्योंधन को बड़ी राहत मिली।

वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने तुपाक से कर्ण का स्वागत किया और उसे छाती से लगाकर बोला-” कहो कर्ण, कैसे आए? बताओ, हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?”
कर्ण बोला-“राजन्! मैं अर्जुन से द्वंद युद्ध और आपसे मित्रता करना चाहता हूँ।”

कर्ण की चुनौती को सुनकर अर्जुन को बड़ा तैश आया। वह बोला-” कर्ण! सभा में जो बिना बुलाए आते हैं और जो बिना किसी के पूछे बोलने लगते हैं, वे निंदा के योग्य होते हैं।” mahabharat short story in hindi

यह सुनकर कर्ण ने कहा-” अर्जुन, यह उत्सव केवल तुम्हारे लिए ही नहीं मनाया जा रहा है। सभी प्रजाजन इसमें भाग लेने का अधिकार रखते हैं। व्यर्थ डींगें मारने से क़ायदा क्या? चलो, तीरों से बात कर ले!”

जब कर्ण ने अर्जुन को यों चुनौती दी, तो दर्शकों ने तालियाँ बजाई। उनके दो दल बन गए। एक दल अर्जुन को बढ़ावा देने लगा और दूसरा कर्ण को। इसी प्रकार वहाँ इकट्टी स्त्रियों के भी दो दल बन गए। कुंती ने कर्ण को देखते ही पहचान लिया और भय तथा लज्जा के मारे मूर्च्छित-सीहो गई। उसकी यह हालत देखकर विदुर ने दासियों को बुलाकर उसे चेत करवाया। mahabharata stories for kids

इसी बीच कृपाचार्य ने उठकर कर्ण से कहा-” अज्ञात वीर! महाराज पांडु का पुत्र और कुरुवंश का वीर अर्जुन तुम्हारे साथ द्वंद युद्ध करने के लिए तैयार है, किंतु तुम पहले अपना परिचय तो दो! तुम कौन हो, किसके पुत्र हो, किस राजकुल को तुम विभूषित करते हो? द्वंद युद्ध बराबर वालों में ही होता है। कुल का परिचय पाए बगेर राजकुमार कभी दंद्ध करने को तैयार नहीं होते।” कृपाचार्य की यह बात सुनकर कर्ण का सिर झुक गया। mahabharat short story in hindi

कर्ण को इस तरह देखकर दर्योधन उठ खड़ा हुआ और बोला-” अगर बराबरी की बात है, तो मैं आज ही कर्ण को अंगदेश का राजा बनाता हूँ” यह कहकर दुर्योधन ने तुरंत पितामह भीष्म एवं पिता धृतराष्ट्र से अनुमति लेकर वहीं रंगभूमि में ही राज्याभिषेक की सामग्री मँगवाई और कर्ण का राज्याभिषेक करके उसे अंगदेश का राजा घोषित कर दिया। mahabharata stories for kids

इतने में बूढ़ा सारथी अधिरथ, जिसने कर्ण को पाला था, लाठी टेकता हुआ और भय के मारे कॉपता हुआ सभा में प्रविष्ट हुआ। कर्ण, जो अभी-अभी अंगदेश का नरेश बना दिया गया था, उसको देखते ही धनुष नीचे रखकर उठ खड़ा हुआ और पिता मानकर बड़े आदर के साथ उसके आगे सिर नवाया।

बूढ़े ने भी बेटा’ कहकर उसे गले लगा लिया। यह देखकर भीम खुब कहकहा मारकर हँस पड़ा और बोला-“सारथी के बेटे, धनुष छोड़कर हाथ में चाबुक लो, चाबुक! वही तुम्हें शोभा देगा। तुम भला कब से अर्जुन के साथ द्वंद्ध युद्ध करने के योग्य हो गए?” mahabharat full story in hindi

यह सब देखकर सभा में खलबली मच गई। इस समय सूरज भी डूब रहा था। इस कारण सभा विसर्जित हो गई। मशालों और दीपकों की रोशनी में दर्शक – वृंद अपनी- अपनी पसंद के अनुसार अर्जुन, कर्ण और दुर्योधन की जय बोलते जाते थे। mahabharat short story in hindi

इस घटना के बहुत समय बाद एक बार इंद्र बृढ़े ब्राह्मण के वेश में अंग-नरेश कर्ण के पास आए और उसके जन्मजात कवच और कुंडलों की भिक्षा माँगी। इंद्र को डर था कि भावी युद्ध में कर्ण की शक्ति से अर्जुन पर विपत्ति आ सकती है। इस कारण कर्ण की ताकत कम करने की इच्छा से ही उन्होंने उससे यह भिक्षा माँगी थी। mahabharata stories for kids

कर्ण को सूर्यदेव ने पहले ही सचेत कर दिया था कि उसे धोखा देने के लिए इंद्र ऐसी चाल चलनेवाले हैं, परंतु कर्ण इतना दानी था कि किसी के कुछ मॉगने पर वह मना कर ही नहीं सकता था। इस कारण यह जानते हुए भी कि भिखारी के वेश में इंद्र धोखा कर रहे हैं, कर्ण ने अपने जन्मजात कवच और कुंडल निकालकर भिक्षा में दे दिए। mahabharat short story in hindi

इस अद्भुत दानवीरता को देखकर इंद्र चकित रह गए। कर्ण की प्रशंसा करते हुए बोले-” कर्ण, तुमसे में बहुत प्रसन्न हूँ। तुम जो भी वरदान चाहो, माँगो। “

कर्ण ने देवराज से कहा-” आप प्रसन्न हैं, तो शत्रुओं का संहार करनेवाला अपना ‘शक्ति‘ नामक शस्त्र मुझे प्रदान करें!” mahabharata stories for kids

बड़ी प्रसन्नता के साथ अपना वह शस्त्र कर्ण को देते हुए देवराज ने कहा-” युद्ध में तुम जिस किसी को लक्ष्य करके इसका प्रयोग करोगे, वह अवश्य मारा जाएगा, परंतु एक ही बार तुम इसका प्रयोग कर सकोगे। तुम्हारे शत्रु को मारने के बाद यह मेरे पास वापस आ जाएगा।”

इतना कहकर इंद्र चले गए। एक बार कर्ण को परशुराम जी से ब्रह्मास्त्र सीखने की इच्छा हुई। इसलिए वह ब्राह्मण के वेश में परश्राम जी के पास गया और प्रार्थना की कि उसे शिष्य स्वीकार करने की कृपा करें। mahabharata stories for kids

परशुराम जी ने उसे ब्राह्मण समझकर शिष्य बना लिया। इस प्रकार छल से कर्ण ने ब्रह्मास्त्र चलाना सीख लिया। एक दिन परशुराम कर्ण की जाँघ पर सिर रखकर सो रहे थे। इतने में एक काला भौँरा कर्ण की जाँध के नीचे घुस गया और काटने लगा। कीड़े के काटने से कर्ण को बहुत पीड़ा हुई और जाँघ से लह की धारा बहने लगी, पर कर्ण ने इस भय से कि कहीं गुरुदेव की नींद न खुल जाए, जाँध को जरा भी हिलाया -डलाया नहीं। mahabharat short story in hindi

जब खुन से परश्राम की देह भीगने लगी, तो उनकी नींद खुली। उन्होंने देखा कि कर्ण की जाँथ से खून बह रहा है। यह देखकर परशुराम बोले-“बेटा, सच बताओ, तुम कौन हो?” तब कर्ण असली बात न छिपा सका। उसने स्वीकार कर लिया कि वह ब्राह्मण नहीं, बल्कि सूत-पुत्र है। यह जानकर परशुराम को बड़ा क्रोध आया। mahabharata stories for kids

अतः उन्होंने उसी घड़ी कर्ण को शाप देते हुए कहा-” चूंकि तुमने अपने गुरु को ही धोखा दिया है, इसलिए जो विद्या तुमने मुझसे सीखी है, वह अंत समय में तुम्हारे किसी काम न आएगी। ऐन वक्त पर तुम उसे भूल जाओगे और रणक्षेत्र में तुम्हारे रथ का पहिया पृथ्वी में धँस जाएगा।”

परशुराम जी का यह शाप झूठा न हुआ। जीवनभर कर्ण को उनकी सिखाई हुई ब्रह्मास्त्र- विद्या याद रही, पर कुरुक्षत्र के मैदान में अर्जुन से युद्ध करते समय कर्ण को वह याद न रही। दुर्योधन के घनिष्ठ मित्र कर्ण ने अंत समय तक कौरवों का साथ न छोड़ा। mahabharata stories for kids

कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म तथा आचार्य द्रोण के आहत हो जाने के बाद दुर्योधन ने कर्ण को ही कौरव-सेना का सेनापति बनाया था। कर्ण ने दो दिन तक अद्भुत कुशलता के साथ युद्ध का संचालन किया। आखिर जब शापवश उसके रथ का पहिया ज़मीन में धँस गया और वह धनुष-बाण रखकर ज़मीन में धँसा हुआ पहिया निकालने का प्रयत्न करने लगा, तभी अर्जुन ने उस महारथी पर प्रहार किया। माता कुंती ने जब यह सुना, तो उसके दुःख का पार न रहा। mahabharat full story in hindi

आचार्य द्रोण महर्षि भरद्राज़ के पुत्र थे। पांचाल-नरेश का पुत्र द्रुपद भी द्रोण के साथ ही भरद्धाज-आश्रम में शिक्षा पा रहा था। दोनों में गहरी मित्रता थी। कभी-कभी राजकुमार द्रुपद उत्साह में आकर द्रोण से यहाँ तक कह देता था कि पांचाल देश का राजा बन जाने पर में आधा राज्य तुम्हें दे दूँगा।

शिक्षा समाप्त होने पर द्रोणाचार्य ने कृपाचार्य की बहन से व्याह कर लिया। उससे उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने अश्वत्थामा रखा। द्रोण अपनी पत्नी और पुत्र को बड़ा प्रेम करते थे।

द्रोण बड़े गरीब थे। वह चाहते थे कि धन प्राप्त किया जाए और अपनी पत्नी व पुत्र के साथ सुख से रहा जाए। उनहें खबर लगी कि परशुराम अपनी सारी संपत्ति गरीब ब्राह्मणों को बाँट रहे हैं, तो भागे-भागे उनके पास गए. लेकिन उनके पहुँचने तक परशुराम अपनी सरी संपत्ति वितरित कर चुके थे और वन-गमन की तैयारी कर रहे थे। mahabharata stories for kids

द्रोण को देखकर वह बोले- “ब्राह्मण-श्रेष्ठ! आपका स्वागत है। पर मेरे पास जो कुछ था, वह मैं बाँट चुका हूँ। अब यह मेरा शरीर और धनुर्विद्या ही है।

बताइए, में आपके लिए क्या करूँ?” तब द्रोण ने उनसे सारे अस्त्रों के प्रयोग तथा रहस्य सिखाने की प्रार्थना की। परशुराम ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और द्रोण को धनुर्विद्या की पूरी शिक्षा दे दी।

कुछ समय बाद राजकुमार द्रुपद के पिता का देहावसान हो गया और द्रुपद राजगद्दी पर बैठा। द्रोणाचार्य को जब द्रुपद के पांचाल देश की राजगद्दी पर बैठने की खबर लगी, तो यह सुनकर वह बड़े प्रसन्न हुए और राजा द्रुपद से मिलने पांचाल देश को चल पड़े। mahabharata stories for kids

उन्हें गुरु के आश्रम में द्रुपद की लडकपन में की गई बातचीत याद थी। सोचा, यदि आधा राज्य न भी देगा तो कम-से-कम कुछ धन तो जरूर ही देगा। यह आशा लेकर द्रोणाचार्य राजा द्रूपद के पास पहुँचे और बोले-“मित्र द्रुपद , मुझे पहचानते हो न? मैं तुम्हारा बालपन का मित्र द्रोण हँ।” mahabharat short story in hindi

ऐश्वर्य के मद में मत्त हुए राजा द्रुपद को द्रोणाचार्य का आना बुरा लगा और द्रोण का अपने साथ मित्र का-सा व्यवहार करना तो और भी अखरा। वह द्रोण पर गुस्सा हो गया और बोला-“ब्राह्मण, तुम्हारा यह व्यवहार सज्जनोचित नहीं है। mahabharata stories for kids

मुझे मित्र कहकर पुकारने का तुम्हें साहस कैसे हुआ? सिंहासन पर बैठे हुए एक राजा के साथ एक दरिद्र प्रजाजन की मित्रता कभी हुई है? mahabharat short story in hindi

तुम्हारी बुद्धि कितनी कच्ची है। लड़कपन में लाचारी के कारण हम दोनों को जो साथ रहना पड़ा, उसके आधार पर तुम द्वपद से मित्रता का दावा करने लगे! दरिद्र की धनी के साथ, मुर्ख की विद्वान के साथ और कायर की वीर के साथ मित्रता कहीं हो सकती है? मित्रता बराबरी की हैसियतवालों में ही होती है। जो किसी राज्य का स्वामी न हो, वह राजा मित्र कभी नहीं हो सकता।” mahabharat full story in hindi

द्रुपद की इन कठोर गर्वोक्तियों को सुनकर द्रोणाचार्य बड़े लज्जित हुए और उन्हें क्रोध भी बहुत आया। उन्होंने निश्चय किया कि मैं इस अभिमानी राजा को सबक सिखाऊँगा और बचपन में जो मित्रता की बात हुई थी, उसे पूरा करके चैन लूँगा। वह हस्तिनापुर पहुँचे और वहाँ अपनी पत्नी के भाई कृपाचार्य के यहाँ गुप्त रूप से रहने लेगे। mahabharat short story in hindi

एक रोज़ हस्तिनापुर के राजकुमार नगर से बाहर कहीं गेंद खेल रहे थे कि इतने में उनकी गेंद एक कुएँ में जा गिरी। युधिष्ठिर उसको निकालने का प्रयत्न करने लगे, तो उनकी अँगूठी भी कुएँ में गिर पड़ी। सभी राजकुमार कुएँ के चारों ओर झाँक -झाँककर देखने लगे, पर उसे निकालने का उपाय उनको नहीं सूझता था। mahabharat full story in hindi

एक कृष्ण वर्ण का ब्राह्मण मुसकराता हुआ यह सब चूपचाप देख रहा था। राजकूमारों को उसका पता नहीं था। राजकुमारो को अचरज में डालता हुआ वह बोला-“राजकुमारो! बोलो, मैं गेंद निकाल
दूं, तो तुम मुझे क्या दोगे?” “ब्राह्मणश्रेष्ठ! आप गेंद निकाल देंगे, तो कृपाचार्य के घर आपकी बढ़धिया दावत करेंगे।” mahabharata stories for kids

युधिष्ठिर ने हँसते हुए कहा। तब द्रोणाचार्य ने पास में पड़ी हुई सींक उठा ली और उसे पानी में फेंका। सींक गेंद को ऐसे जाकर लगी, जैसे तीर और फिर इस तरह लगातार कई सींकं वे कुएँ में डालते गए। सींकें एक-दूसरे के सिरे से चिपकती गई। जब आखिरी सींक का सिरा कुएँ के बाहर तक पहुँच गया, तो द्रोणाचार्य ने उसे पकड़कर खींच लिया और गेंद निकल आई।mahabharat short story in hindi

सब राजकुमार आश्चर्य से यह करतब देख रहे थे। उन्होंने ब्राद्मण से विनती की कि युधिष्ठिर की अँगूठी भी निकाल दीजिए। द्रोण ने तुरंत धनुष चढ़ाया और कुएँ में तीर मारा। पलभर में बाण अँगुठी को अपनी नोंक में लिए हुए ऊपर आ गया। द्रोणाचार्य ने अगूठी युधिष्ठिर को दे दी। यह चमत्कार देखकर राजकुमारों को और भी ज्यादा अचरज हुआ। mahabharat full story in hindi

उन्होंने द्रोण के आगे आदरपूर्वक सिर नवाया और हाथ जोड़कर पूछा-“महाराज! हमारा प्रणाम स्वीकार कीजिए और हमें अपना परिचय दीजिए कि आप कौन हैं? हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? हमें आज्ञा दीजिए।” mahabharata stories for kids

द्रोण ने कहा-“राजकृमारो! यह सारी घटना सुनाकर पितामह भीष्म से ही मेरा परिचय प्राप्त कर लेना।”

राजकुमारों ने जाकर पितामह भीष्म को सारी बात सुनाई, तो भीष्म ताड़ गए कि हो -न-हो वे सुप्रसिद्ध आचार्य द्रोण ही होंगे। यह सोचकर उन्होंने निश्चय कर लिया कि अब से राजकुमारों की अस्त्र-शिक्षा द्रोणाचार्य के ही हाथों पूरी कराई जाए। mahabharat short story in hindi

बड़े सम्मान से उन्होंने द्रोण का स्वागत किया और राजकुमारों को आदेश दिया कि वे गुरु द्रोण से ही धनुर्विद्या सीखा करें । कुछ समय बाद जब राजकुमारों की शिक्षा पूरी हो गई, तो द्रोणाचार्य ने उनसे गुरु-दक्षिणा के रूप में पांचालराज द्रुपद को कैद कर लाने के लिए कहा।

उनकी आज्ञानुसार पहले दुर्योधन और कर्ण ने द्रुपद के राज्य पर धावा बोल दिया, पर पराक्रमी द्रूपद के आगे वे न ठहर सके। हारकर वापस आ गए। तब द्रोण ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने पांचालराज की सेना को तहस-नहस कर दिया और राजा द्रुपद को उनके मंत्री सहित कैद करके आचार्य के सामने ला खड़ा किया। mahabharata stories for kids

द्रोणाचार्य ने मुसकराते हुए द्रुपद से कहा-” हे वीर! डरो नहीं। किसी प्रकार की विपत्ति की आशंका न करो। लड़कपन में तुम्हारी-हमारी मित्रता थी। साथ-साथ खेले- कूदे, उठे-बैठे।

बाद में जब तुम राजा बन गए, तो ऐश्वर्यं के मद में आकर तुम मुझे भूल गए और मेरा अपमान किया। तुमने कहा था कि राजा ही राजा के साथ मित्रता कर सकता है। इसीकारण मुझे युद्ध करके तुम्हारा राज्य छीनना पड़ा। mahabharat short story in hindi

परंतु में तो तुम्हारे साथ मित्रता ही करना चाहता हूँ। इसलिए आधा राज्य तुम्हें वापस लौटा देता हँ, क्योंकि मेरा मित्र बने के लिए भी तो तुम्हें राज्य चाहिए न! मित्रता तो बराबरीकी हैसियतवालों में ही हो सकती है।”

द्रोणाचार्य ने इसे अपने अपमान का काफ़ी बदला समझा और उन्होंने द्रूपद को बड़े सम्मान के साथ विदा किया। इस प्रकार राजा द्वुपद का गर्व चूर हो गया, लेकिन बदले से घृणा दूर नहीं होती। किसी के अभिमान को ठेस लगने पर जो पीड़ा होती है, उसे सहन करना बड़ा कठिन होता है।

द्रोण से बदला लेने की भावना द्रुपद के जीवन का लक्ष्य बन गई। उसने कई कठोर व्रत और तप इस कामना से किए कि उसे एक ऐसा पुत्र हो, जो द्रोण को मार सके। mahabharata stories for kids

साथ ही एक ऐसी कन्या हो, जो अर्जुन को ब्याही जा सके। आखिर उसकी कामना पूरी हुई। उसके धृष्टद्युम्न नामक एक पुत्र हुआ और द्रौपदी नाम की एक कन्या। आगे चलकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अजेय द्रोणाचार्य इसी धृष्टद्युम्न के हाथों मारे गए थे। mahabharat short story in hindi

9) लाख का घर :-

भीमसेन का शरीर-बल और अर्जुन की युद्ध-कुशलता देखकर दुर्योधन की जलन दिन-पर-दिन बढ़ती ही गई। वह ऐसे उपाय सोचने लगा कि जिससे पांडवों का नाश हो सके। इस कुमंत्रणा में उसका मामा शकुनि और कर्ण सलाहकार बने हुए थे। mahabharat full story in hindi

बृढ़े धृतराष्ट्र बुद्धिमान थे। अपने भतीजों से उनको स्नेह भी काफ़ी था, परंतु अपने पुत्रों से उनका मोह भी अधिक था। दूढ़ निश्चय की उनमें कमी थी, पर वह किसी बात पर वह स्थिर नहीं रह सकते थे। अपने बेटे पर अंकुश रखने की शक्ति उनमें नहीं थी। इस कारण यह जानते हुए भी कि दुर्याधन कुराह पर चल रहा है, उन्होंने उसका ही साथ दिया। mahabharata stories for kids

इधर पांडवों की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। चौराहों और सभा- समाजों में लोग कहते कि राजगद्दी पर बैठने के योग्य तो युधिष्ठिर ही हैं। वे कहते थे-” धृतराष्ट्र तो जन्म से अंधे थे, इस कारण उनके छोटे भाई पांडू ही सिंहासन पर बैठे थे। mahabharat short story in hindi

उनकी अकाल मृत्यु हो जाने और पांडवों के बालक होने के कारण कुछ समय के लिए धृतराष्ट्र ने राज -काज सँभाला था। अब युधिष्ठिर बड़े हो गए हैं, तो फिर आगे धृतराष्ट्र को राज्य अपने ही अधीन रखने का क्या अधिकार है? पितामह भीष्म का तो कर्तव्य है कि वह धृतराष्ट्र से राज्य का भार युधिष्ठिर को दिला दें। युधिष्ठिर ही सारी प्रजा के साथ न्यायपूर्वक व्यवहार कर सकेंगे।” mahabharata stories for kids

ज्यों-ज्यों पांडवों की यह लोकप्रियता दिखाई देती थी, ईष्य्या से वह और भी अधिक कुढ़ने लगता था।
एक दिन धृतराष्ट्र को अकेले में पाकर दुर्योधन बोला-” पिता जी, पुरवासी तरह- तरह की बातें करते हैं। जन्म से दिखाई न देने के कारण आप बड़े होते हुए भी राज्य से वंचित ही रह गए।

राज-सत्ता आपके छोटे भाई के हाथ में चली गई। अब यदि युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया, तो फिर पीढ़ियों तक हम राज्य की आशा नहीं कर सरकेंगे। पिता जी, हमसे तो यह अपमान न सहा जाएगा।”

यह सुनकर राजा धृतराष्ट्र सोच में पड़ गए। बोले-“बेटा, तुम्हारा कहना ठीक है। लेकिन युधिष्ठिर के विरुद्ध कुछ करना भी तो कठिन है। युधिष्ठिर धर्मानुसार चलता है, सबसे समान स्नेह करता है, अपने पिता के समान ही गुणवान है। इस कारण प्रजाजन भी उसे बहुत चाहते हैं। “ mahabharata stories for kids

यह सुनकर दुर्योधिन बोला-” पिता जी, आपको और कुछ नहीं करना है, सिर्फ़ पांडवों को किसी-न-किसी बहाने वारणावत के मेले में भेज दीजिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ इतनी सी बात से हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं होगा।” mahabharat short story in hindi

इस बीच अपने पिता पर और अधिक दबाव डालने इरादे से दुयोंधन ने कुछ कूटनीतिज्ञां को अपने पक्ष में मिला लिया। वे बारी-बारी से धृतराष्ट्र के पास जाकर पांडवों के विरुद्ध उन्हें उकसाने लगे। इनमें कणिक नाम का ब्राह्मण मुख्य था, जो शकुनि का मंत्री था। mahabharat full story in hindi

उसने धृतराष्ट्र को राजनीतिक चालों का भेद बताते हुए अनेक उदाहरणों एवं प्रमाणों से अपनी दलीलों की पुष्टि की। अंत में बोला-” राजन्! जो ऐश्वर्यवान है, वही संसार में श्रेष्ठ माना जाता है। यह बात ठीक है कि पांडव आपके भतीजे हैं, परंतु वे बड़े शक्ति-संपन्न भी हैं। इस कारण अभी से चौकन्ने हो जाइए। आप पांडु- पुत्रों से अपनी रक्षा कर लीजिए, वरना पीछे पछताइएगा।” mahabharata stories for kids

कर्ण की बातों पर धृतराष्ट्र विचार कर रहे थे कि दुर्योधिन ने आकर कहा- “पिता जी, आप अगर किसी तरह पांडवों को समझाकर वारणावत भेज दें, तो नगर और राज्य पर हमारा शासन पक्का हो जाएगा। फिर पांडव बड़ी खुशी से लौट सकते हैं और हमें उनसे कोई खतरा नहीं रहेगा।”

दुर्योधन और उसके साथी धृतराष्ट्र को रात-दिन इसी तरह पांडवों के विरुद्ध कुछ-न-कुछ कहते-सुनाते रहते और उन पर अपना दबाव डालते रहते थे। आखिर धृतराष्ट्र कमजोर पड़ गए और उनको लाचार होकर अपने बेटे की सलाह माननी पड़ी। mahabharat short story in hindi

दु्योंधन के पृष्ठ-पोषकों ने वारणावत की सुंदरता और खूबियों के बारे में पांडवों को बहुत ललचाया। कहा कि वारणावत में एक भारी मेला होनेवाला है, जिसकी शोभा देखते ही बनेगी। उनकी बातें सुन-सुनकर खुद पांडवों को भी वारणावत जाने की उत्सुकता हुई, यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं आकर धृतराष्ट्र से वहाँ जाने की अनुमति माँगी। mahabharat full story in hindi

धृतराष्ट्र की अनुमति पाकर पांडव बड़े खुश हुए और भीष्म आदि से विदा लेकर माता कुंती के साथ वारणावत के लिए रवाना हो गए। पांडवों के चले जाने की खबर पाकर दुर्योधन की खुशी की तो सीमा न रही। वह अपने दोनों साथियों कर्ण एवं शकुनी के साथ बैठकर पांडवों तथा कुंती का काम तमाम करने का उपाय सोचने लगा। mahabharata stories for kids

उसने अपने मंत्री पुरोचन को बुलाकर गुप्त रूप से सलाह दी और एक योजना बनाई। पुरोचन ने यह सारा काम पूर्ण सफलता के साथ पूरा करने का वचन दिया और तुरंत वारणावत के लिए रवाना हो गया। एक शीघ्रगामी रथ पर बैठकर पुरोचन पांडवों से बहुत पहले वारणावत जा पहुँचा।

वहाँ जाकर उसने पांडवों के ठहरने के लिए सन, घी, मोम, तेल, लाख, चरबी आदि जल्दी आग पकड़नेवाली चीजों को मिट्टी में मिलाकर एक सुंदर भवन बनवाया। इस बीच अगर पांडव वहाँ जल्दी पहुँच गए, तो कुछ समय उनके ठहरने के लिए एक और जगह का प्रबंध पुरोचन ने कर रखा था।

दुर्योधन की योजना यह थी कि कुछ दिनों तक पांडवों को लाख के भवन में आराम से रहने दिया जाए और जब वे पूर्ण रूप से नि:शंक हो जाएँ, तब रात में भवन में आग लगा दी जाए, जिससे पांडव तो जलकर भस्म हो जाएँ और कौरवों पर भी कोई दोष न लगा सके। mahabharata stories for kids

10) पांडवों की रक्षा :-

पाँचों पांडव माता कुंती के साथ वारणावत के लिए चल पड़े। उनके हस्तिनापुर छोड़कर वारणावत जाने की खबर पाकर नगर के लोग उनके साथ हो लिए। बहुत दूर जाने के बाद युधिष्ठिर का कहा मानकर नगरवासियों को लौट जाना पड़ा। दुर्योधन के षड्यंत्र और उससे बचने का उपाय विदुर ने युधिष्ठिर को इस तरह गूढ़ भाषा में सिखा दिया था कि जिससे दुसरे लोग समझ न सकें।

वारणावत के लोग पांडवों के आगमन की खबर पाकर बड़े खुश हुए और उनके वहाँ पहुँचने पर उन्होंने बड़े ठाठ से उनका स्वागत किया। जब तक लाख का भवन बनकर तैयार हुआ, पांडव दूसरे घरों में रहते रहे, जहाँ पुरोचन ने पहले से ही उनके ठहरने का प्रबंध कर रखा था। लाख का भवन बनकर तैयार हो गया, तो पुरोचन उन्हें उसमें ले गया।mahabharat short story in hindi

भवन में प्रवेश करते ही युधिष्ठिर ने उसे खूब ध्यान से देखा। विदुर की बातें उन्हें याद थीं। ध्यान से देखने पर युधिष्ठिर को पता चल गया कि यह घर जल्दी आग लगनेवाली चीज्जों से बना हुआ है।

युधिष्ठिर ने भीम को भी यह भेद बता दिया; पर साथ ही उसे सावधान करते हुए कहा-

” यहद्यपि यह साफ़ मालूम हो गया है कि यह स्थान खतरनाक है, फिर भी हमें विचलित नहीं होना चाहिए। पुरोचन को इस बात का ज़रा भी पता न लगे कि उसके षड्यंत्र का भेद हम पर खुल गया है। मौका पाकर हमें यहाँ से निकल भागना होगा। पर अभी हमें जल्दी से ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे शत्र् के मन में ज्तरा भी संदेह पैदा होने की संभावना हो। “ mahabharat full story in hindi

युधिष्ठिर की इस सलाह को भीमसेन सहित सब भाइयों तथा कुंती ने मान लिया। वे उसी लाख के भवन में रहने लगे। इतने में विदूर का भेजा हुआ एक सुंरंग बनानेवाला कारीगर वारणावत नगर में आ पहुँचा। उसने एक दिन पांडवों को अकेले में पाकर उन्हें अपना परिचय देते हुए कहा- “आप लोगों की भलाई के लिए हस्तिनापुर से रवाना होते समय विद्र ने युधिष्ठिर से सांकेतिक भाषा में जो कुछ कहा था, वह बात मैं जानता हूँ। यही मेरे सच्चे मित्र होने का सबूत है। आप मुझ पर भरोसा रखं। मैं आप लोगों की रक्षा
का प्रबंध करने के लिए आया हूँ।”
mahabharata stories for kids

इसके बाद वह कारीगर महल में पहुँच गया और गुप्त रूप से कुछ दिनों में ही उसमें एक सुरंग बना दी। इस रास्ते से पांडव महल के अंदर से नीचे-ही- नीचे चहारदीवारी और गहरी खाई को लाँघकर सुरक्षित बेखटके बाहर निकल सकते थे। mahabharat short story in hindi

यह काम इतने गुप्त रूप से और इस खूबी से हुआ कि पुरोचन को अंत तक इस बात की खबर न होने पाई। पुरोचन ने लाख के भवन के द्वार पर ही अपने रहने के लिए स्थान बनवा लिया था। इस कारण पांडवों को भी सारी रात हथियार लेकर चौकन्ने रहना पड़ता था।

एक दिन पुरोचन ने सोचा कि अब पांडवों का काम तमाम करने का समय आ गया है। समझदार युधिष्ठिर उसके रंग-ढंग से ताड गए कि वह क्या सोच रहा है। युधिष्ठिर की सलाह से माता कुंती ने उसी रात को एक बड़े भोज का प्रबंध किया। नगर के सभी लोगों को भोजन कराया गया। बड़ी धूमधाम रही, मानो कोई बड़ा उत्सव हो। खुब खा-पीकर भवन के सब कर्मचारी गहरी नींद में सो गए।

पुरोचन भी सो गया। आधी रात के समय भीमसेन ने भवन में कई जगह आग लगा दी और फिर पाँचों भाई माता कुंती के साथ सुरंग के रास्ते अँधेरे में रास्ता टटोलते-टटोलते बाहर निकल गए। भवन से बाहर वे निकले ही थे कि आग ने सारे भवन को अपनी लपटों में ले लिया। पुरोचन के रहने के मकान में भी आग लग गई। mahabharata stories for kids

सारे नगर के लोग इकट्ट हो गए और पांडवों के भवन को भयंकर आग की भेंट होते देखकर हाहाकार मचाने लगे। कौरवों के अत्याचार से जनता क्षुब्ध हो उठी और तरह-तरह से कौरवों की निंदा करने लगी। लोग क्रोध में अनाप -शनाप बकने लगे, हाय-तोबा मचाने लगे और उनके देखते-देखते सारा भवन जलकर राख हो गया। mahabharat short story in hindi

पुरोचन का मकान और स्वयं परोचन भी आग की भेंट हो गया। वारणावत के लोगों ने तुरंत ही हस्तिनापुर में खबर पहुँचा दी कि पांडव जिस भवन में ठहराए गए थे, वह जलकर राख हो गया है और भवन में कोई भी जीता नहीं बचा। धृतराष्ट्र और उनके बेटों ने पांडवों की मृत्यु पर बड़ा शोक मनाया।

वे गंगा-किनारे गए और पांडवों तथा कुंती को जलांजलि दी। फिर सब मिलकर बड़े जोर-जोर से रोते और विलाप करते हुए घर लौटे। परंतु दार्शनिक विदुर ने शोक को मन ही में दबा लिया। अधिक शोक – प्रदर्शन न किया। mahabharata stories for kids

इसके अलावा विदुर को यह भी पक्का विश्वास था कि पांडव लाख के भवन से बचकर निकल गए होंगे। पितामह भीष्म तो मानो शोक के सागर ही में थे, पर उनको विद्र ने धीरज बँधाया और पांडवों के बचाव के लिए किए गए अपने सारे प्रबन्ध का हाल बताकर उन्हें चितामुक्त कर दिया।

लाख के घर को जलता हुआ छोडकर पाँचों भाई माता कुंती के साथ बच निकले और जंगल में पहुँच गए। जंगल में पहुँचने पर भीमसेन ने देखा कि रातभर जगे होने तथा चिंता और भय से पीड़ित होने के कारण चारों भाई बहुत थके हुए हैं। माता कुंती की दशा तो बड़ी ही दयनीय थी।

बेचारी थककर चूर हो गई थी। सो महाबली भीम ने माता को उठाकर आपने कंधे पर बैठा लिया और नकुल एवं सहदेव को कमर पर ले लिया। युधिष्ठिर और अर्जुन को दोनों हाथों से पकड़ लिया और वह उस जंगली रास्ते में उन्मत्त हाथी के समान झाड़-झंखाड़ और पेड-पौधों को इधर-उधर हटाता व रोंदता हुआ तेज़ी से चलने लगा। mahabharata stories for kids

जब वे सब गंगा के किनारे पहुँचे, तो वहाँ विदुर की भेजी हुई एक नाव मिली। युधिष्ठिर ने मल्लाह से सांकेतिक प्रश्न करके जाँच लिया कि वह मित्र है। वे लोग अगले दिन शाम होने तक चलते ही रहे, ताकि किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएँ। mahabharat short story in hindi

सूरज डूब गया और रात हो चली थी। चारों तरफ़ अंधेरा छा गया। कुंती और पांडव एक तो थकावट के मारे चूर हो रहे थे, ऊपर से प्यास और नींद भी उन्हें सताने लगी। चक्कर-सा आने लगा। एक पग भी आगे बढना असंभव हो गया। भीम के सिवाए और सब भाई वहीं ज़मीन पर बैठ गए।

कुंती से तो बैठा भी नहीं गया। वह दीनभाव से बोली-” मैं तो प्यास से मरी जा रही हूँ। अब मुझसे बिलकुल चला नहीं जाता। धृतराष्ट्र के बेटे चाहें तो भले ही मुझे यहाँ से उठा ले जाएँ, मैं तो यहीं पड़ी रहूँगी।” mahabharata stories for kids

यह कहकर कुंती वहीं जमीन पर गिरकर बेहोश हो गई। माता और भाइयों का यह हाल देखकर क्षोभ के मारे भीमसेन का हृद्य दग्ध हो उठा। वह उस भयानक जंगल में बेधड्क घुस गया और इधर-उधर घूम-घामकर उसने एक जलाशय का पता लगा ही लिया।

उसने पानी लाकर माता व भाइयों की प्यास बुझाई। पानी पीकर चारों भाई और माता कुंती ऐसे सोए कि उन्हें अपनी सुध-बुध तक न रही। अकेला भीमसेन मन-ही-मन कुछ सोचता हुआ चिंतित भाव से बैठा रहा। पाँचों भाई माता कुंती को लिए अनेक वि्न-बाधाओं का सामना करते और बड़ी मुसीबतें झेलते हुए उस जंगली रास्ते में आगे बढ़ते ही चले गए। mahabharat short story in hindi

वे कभी माता को उठाकर तेज़ चलते, कभी थके-माँदे बैठ जाते। कभी एक-दूसरे से होड़ लगाकर रास्ता पार करते। वे ब्राह्मण ब्रह्मचारियों का वेश धरकर एकचक्रा नगरी में जाकर एक ब्राह्मण के घर में रहने लगे। mahabharat short story in hindi

माता कुंती के साथ पाँचों पांडव एकचक्रा नगरी में भिक्षा मॉगकर अपनी गुज़र करके दिन बिताने लगे। भिक्षा के लिए जब पाँचों भाई निकल जाते, तो कुंती का जी बड़ा बेचैन हो उठता था। वह बड़ी चिंता से उनकी बाट देखती रहती। उनके लौटने में ज़रा भी देर हो जाती तो कुंती के मन में तरह-तरह की आशंकाएँ उठने लगती थीं। mahabharata stories for kids

पाँचों भाई भिक्षा में जितना भोजन लाते, कुंती उसके दो हिस्से कर देती। एक हिस्सा भीमसेन को दे देती और बाकी आधे में से पाँच हिस्से करके चारों बेटे और खुद खा लेती थी। इसपर भी भीमसेन की भूख नहीं मिटती थी। mahabharat short story in hindi

हमेशा ही भूखा रहने के कारण वह दिन-पर-दिन दुबला होने लगा। भीमसेन का यह हाल देखकर कुंती और युधिष्ठिर बड़े चिंतित रहने लगे। थोडे से भोजन से पेट न भरता था, सो भीमसेन ने एक कुम्हार से दोस्ती कर ली। mahabharat full story in hindi

उसने मिट्टी आदि खोदने में मदद करके उसको खुश कर दिया। कुम्हार भीम से बड़ा खुश हुआ और एक बड़ी भारी हाँडी बनाकर उसको दी। भीम उसी हॉडी को लेकर भिक्षा के लिए निकलने लगा। उसका विशाल शरीर और उसकी वह विलक्षण हाँडी देखकर बच्चे तो हँसते -हँसते लोटपोट हो जाते। एक दिन चारों भाई भिक्षा के लिए गए। mahabharat short story in hindi

अकेला भीमसेन ही माता कुंती के साथ घर पर रहा। इतने में ब्राह्मण के घर के भीतर से बिलख-बिलखकर रोने की आवाज़ आई। अंदर जाकर देखा कि ब्राह्मण और उसकी पत्नी आँखों में आँसू भरे सिसकियाँ लेते हुए एक -दूसरे से बातें कर रहे हैं।

ब्राह्मण बड़े दुखी हृदय से अपनी पत्नी से कह रहा था-” कितनी ही बार मैंने तुम्हें समझाया कि इस अंधेर नगरी को छोड़कर कहीं और चले जाएँ, पर तुम नहीं मानीं। यही हठ करती रहीं कि यह मेरे बाप-दादा का गाँव है, यहीं रहुँगी। बोलो, अब क्या कहती हो? अपनी बेटी की भी बलि कैसे चढ़ा दूँ और पुत्र को कैसे काल कवलित होने दूँ? mahabharata stories for kids

यदि मैं शरीर त्यागता हूँ, तो फिर इन अनाथ बच्चों का भरण-पोषण कौन करेगा? हाय! मैं अब क्या करूँ? और कुछ करने से तो अच्छा उपाय यह है कि सभी एक साथ मौत को गले लगा लें। यही अच्छा होगा। ” कहते-कहते ब्राह्मण सिसक-सिसककर रो पड़ा। ब्राह्मण की पत्नी रोती-रोती बोली-“प्राणनाथ! मुझे मरने का कोई दुख नहीं है। मेरी मृत्यु के बाद आप चाहें, तो दूसरी पत्नी ला सकते हैं। अब मुझे प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा दें, ताकि मैं राक्षस का भोजन बनुँ।” mahabharat full story in hindi

पत्नी की ये व्यथाभरी बातें सुनकर ब्राह्मण से न रहा गया। वह बोला-” प्रिये! मुझसे बड़ा दुरात्मा और पापी कौन होगा, जो तुम्हें राक्षस की बलि चढ़ा दे और खुद जीवित रहे? “

माता-पिता को इस तरह बातें करते देख ब्राह्मण की बेटी से न रहा गया। उसने करुण स्वर में कहा-” पिताजी, अच्छा तो यह है कि राक्षस के पास आप मुझे भेज दें। ” सबको इस तरह रोते देखकर ब्राह्मण का नन्हा सा बालक पास में पड़ी हुई सूखी लकड़ी हाथ में लेकर घुमाता हुआ बोला-“उस राक्षस को तो मैं ही इस लकड़ी से इस तरह जोर से मार डालूँगा। ” mahabharat short story in hindi

कुंती खड़ी-खड़ी यह सब देख रही थी। अपनी बात कहने का उसने ठीक मौका देखा। वह बोली–” हे ब्राह्मण, क्या आप कृपा करके मुझे बता सकते हैं के आप लोगों के इस असमय दुख का कारण क्या है?”

ब्राह्मण ने कहा-” देवी! सुनिए, इस नगरी के समीप एक गुफ़ा है, जिसमें बक नामक एक बड़ा अत्याचारी राक्षस रहता है। पिछले तेरह वर्षों से इस नगरी के लोगों पर वह बड़े जुल्म ढा रहा है। इस देश का राजा, जो वेत्रकीय नाम के महल में रहता है, इतना निकम्मा है कि प्रजा को राक्षस के अत्याचार से बचा नहीं रहा है। mahabharata stories for kids

इससे घबराकर नगर के लोगों ने मिलकर उससे बड़ी अनुनय-विनय की कि कोई-न-कोई नियम बना ले। बकासूर ने लोगों की यह बात मान ली और तब से इस समझौते के अनुसार यह नियम बना हुआ है कि लोग बारी- बारी से एक-एक आदमी और खाने की चीज़ें हर सप्ताह उसे पहुँचा दिया करते हैं।

इस सप्ताह में उस राक्षस के खाने के लिए आदमी और भोजन भेजने की हमारी बारी है। अब तो मैंने यही सोचा है कि सबको साथ लेकर ही राक्षस के पास चला जाऊँगा। आपने पूछा सो आपको बता दिया। इस कष्ट को दूर करना तो आपके बस में भी नहीं है। ” mahabharat short story in hindi

ब्राह्मण की बात का कोई उत्तर देने से पहले कुंती ने भीमसेन से सलाह की। उसने लौटकर कहा-“विप्रवर, आप इस बात की चिंता छोड़ दें। मेरे पाँच बेटे हैं, उनमें से एक आज राक्षस के पास भोजन लेकर चला जाएगा।” mahabharata stories for kids

सुनकर ब्राह्मण चौंक पड़ा और बोला-” आप भी कैसी बात कहती हैं।! आप हमारी अतिथि हैं। हमारे घर में आश्रय लिए हुए हैं। आपके बेटे को मौत के मुँह में मैं भेजूँ, यह कहाँ का न्याय है? मुझसे यह नहीं हो सकता।”कुंती को डर था कि यदि यह बात फैल गई, तो दु्योधन और उनके साथियों को पता लग जाएगा कि पांडव एकचक्रा नगरी में छिपे हुए हैं।

इसीलिए उसने ब्राह्मण से इस बात को गुप्त रखने का आग्रह किया था। कुंती ने जब भीमसेन को बताया कि उसे बकासुर के पास भोजन-सामग्री लेकर जाना होगा, तो युधिष्ठिर खीझ उठे और बोले-“यह तुम कैसा दुस्साहस करने चली हो, माँ” युधिष्ठिर की इन कड़ी बातों का उत्तर देते हुए कुंती बोली – ” बेटा युधिष्ठिर! इस ब्राह्मण के घर में हमने कई दिन आराम से बिताए हैं।

जब इन पर विपदा पड़ी है, तो मनुष्य होने के नाते हमें उसका बदला चुकाना ही चाहिए। मैं बेटा भीम की शक्ति और बल से अच्छी तरह परिचित हूँ। तुम इस बात की चिंता मत करो। mahabharata stories for kids

जो हमें वारणावत से यहाँ तक उठा लाया, जिसने हिडिंब का वध किया, उस भीम के बारे में मुझे न तो कोई डर है, न चिंता। भीम को बकासुर के पास भेजना हमारा कर्तव्य है। ” इसके बाद नियम के अनुसार नगर के लोग खाने-पीने की चीज़ें गाड़ी में रखकर ले आए। भीमसेन उछलकर गाडी में बैठ गया। शहर के लोग भी बाजे बजाते हुए कुछ दूर तक उसके पीछे-पीछे चले। एक निश्चित स्थान पर लोग रुक गए और अकेला भीम गाड़ी दौड़ाता हुआ आगे गया। mahabharata stories for kids

उधर राक्षस मारे भूख के तड्प रहा था। जब बहुत देर हो गई, तो बड़े क्रोध के साथ वह गुफ़ा के बाहर आया। देखता क्या है कि एक मोटा सा मनुष्य बड़े आराम से बैठा हुआ भोजन कर रहा है। यह देखकर बकासुर की आँखें क्रोध से एकदम लाल हो उठीं। इतने में भीमसेन की भी निगाह उस पर पड़ी।

उसने हँसते हुए उसका नाम लेकर पुकारा। भीमसेन की यह ढिठाई देखकर राक्षस गुस्से में भर गया और तेज़ी से भीमसेन पर झपटा। भीमसेन ने बकासुर को अपनी ओर आते देखा, तो उसने उसकी तरफ़ पीठ फेर ली और कुछ भी परवाह न करके खाने में ही लगा रहा। खाली हाथों काम न बनते देखकर राक्षस ने एक बड़ा सा पेड़ जड़ से उखाड़ लिया और उसे भीमसेन पर दे मारा, परंतु भीमसेन ने बाएँ हाथ पर उसे रोक लिया। दोनों में भयानक मुठभेड हो गई। mahabharat short story in hindi

भीमसेन ने बकासुर को ठोकरें मारकर गिरा दिया और कहा-“दुष्ट राक्षस! ज़रा विश्राम तो करने दे।” थोड़ी देर सुस्ताकर भीम ने फिर कहा- “अच्छा! अब उठो!” बकासुर उठकर भीम के साथ लड़ने लगा। भीमसेन ने उसको ठोकरें लगाकर फिर गिरा दिया। mahabharat full story in hindi

इस तरह बार-बार पछाड़ खाने पर भी राक्षस उठकर भिड जाता था। आखिर भीम ने उसे मुहँ के बल गिरा दियाऔर उसकी पीठ पर घुटनों की मार देकर उसकी रीढ़ तोड डाली। राक्षस पीड़ा के मारे चीख उठा और उसके प्राण – पखेरू उड़ गए। भीमसेन उसकी लाश को घसीट लाया और उसे नगर के फाटक पर जाकर पटक दिया। फिर उसने घर आकर माँ को सारा हाल बताया।

mahabharata stories for kids

mahabharat short story in hindi

mahabharat full story in hindi

महाभारत कथा – विकिपिडिया पेज

Quieres Solved :-

  • mahabharat story in hindi
  • महाभारत की पूरी कहानी हिंदी में pdf
  • महाभारत शुरू से अंत तक
  • mahabharat book in hindi
  • संपूर्ण महाभारत कथा भाग 1
  • असली महाभारत कथा
  • महाभारत कथा हिंदी में डाउनलोड
  • Mahabharat short story in hindi with moral
  • short stories from mahabharata with moral

Leave a Comment