Mahabharata stories for kids || सम्पूर्ण महाभारत की कहानी :-
Mahabharata stories for kids || सम्पूर्ण महाभारत की कहानी :- महाभारत पोस्ट के पूर्व भाग मैं हमने पांडवों की रक्षा के वारेमैं पढे थे। अब आगे इसस पोस्ट मैं द्रौपदी का स्वयंवर से पुनः महाभारत की कथा को प्रारंभ किया जा रहा हैं। आपका स्वागत है …
11) द्रौपदी का स्वयंवर :-
जिस समय पांडव एकचक्रा नगरी में ब्राह्मणों के वेश में जीवन बिता रहे थे, उन्हीं दिनों पांचाल – नरेश की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर की तैयारियाँ होने लगीं। एकचक्रा नगरी के ब्राह्मणों के झुंड पांचाल देश के लिए रवाना हुए।
पांडव भी उनके साथ ही हो लिए। पॉँचों भाई माता कुंती के साथ किसी कुम्हार की झोंपडी में आ टिके। पांचाल देश में भी पांडव ब्राह्मण-वेश ही धारण किए रहे। इस कारण कोई उनको पहचान न सका। स्वयंवर-मंडप में एक वृहदाकार धनुष रखा हुआ था, जिसकी डोरी तारों की बनी हुई थी। ऊपर काफ़ी ऊँचाई पर एक सोने की मछली टंगी हुई थी। mahabharat short story in hindi
उसके नीचे एक चमकदार यंत्र बड़े वेग से घूम रहा था। राजा द्रूपद ने घोषणा की थी कि जो राजकुमार पानी में प्रतिबिंब देखकर उस भारी धनुष से तीर चलाकर ऊपर टंगे हुए निशाने (मछली) को गिरा देगा, उसी को द्रौपदी वरमाला पहनाएगी। mahabharata stories for kids
इस स्वयंवर के लिए दूर-दूर से अनेक वीर आए हुए थे। मंडप में सैकड़ों राजा इकट्ठे हुए थे जिनमें धृतराष्ट्र के सौ बेटे, अंग-नरेश कर्ण, श्रीकृष्ण, शिशुपाल, जरासंध आदि भी शामिल हुए थे। दर्शकों की भी भारी भीड़ थी। राजकुमार धृष्टद्युम्न घोड़े पर सवार होकर आगे आया। उसके पीछे हाथी पर सवार द्रौपदी आई। हाथ में फूलों का हार लिए हुए राजकन्या हाथी से उतरी और सभा में पदार्पण किया।
राजकुमार धृष्टद्युम्न अपनी बहन का हाथ पकडकर उसे मंडप के बीच में ले गया। इसके बाद एक-एक करके राजकुमार उठते और धनुष पर डोरी चढ़ाते, हारते और अपमानित होकर लौट जाते। कितने ही सुप्रसिद्ध वीरों को इस तरह मुँह की खानी पड़ी। शिशुपाल, जरासंध, शल्य व दुर्योधन जैसे पराक्रमी राजकुमार तक असफल हो गए। mahabharat short story in hindi
जब कर्ण की बारी आई, तो सभा में एक लहर-सी दौड गई। सबने सोचा अंग-नरेश ज़रूर सफल हो जाएँगे। कर्ण ने धनुष उठाकर खड़ा कर दिया और तानकर प्रत्यंचा भी चढ़ानी शुरू कर दी। डोरी के चढाने में अभी बालभर की ही कसर रह गई थी कि इतने में धनुष का डंडा उसके हाथ से छूट गया तथा उछलकर उसके मुँह पर लगा। महाभारत की कहानी
अपनी चोट सहलाता हुआ कर्ण अपनी जगह पर जा बैठा। इतने में उपस्थित ब्राह्मणों के बीच से एक तरुण उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणों की मंडली में ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन को यों खड़ा होते देखकर सभा में बड़ी हलचल मच गई। लोगों में तरह-तरह की चर्चा होने लगी। तब अर्जुन ने धनुष हाथ में लिया और उस पर डोरी चढ़ा दी। mahabharata stories for kids
उसने धनुष पर तीर चढ़ाया और आश्चर्यचकित लोगों को मुसकराते हुए देखा। लोग उसे देख रहे थे। उसने और देरी न करके तुरंत एक के बाद एक पॉँच बाण उस घूमते हुए चक्र में मारे और हज़ारों लोगों के देखते-देखते निशाना टूटकर नीचे गिर पड़ा। सभा में कोलाहल मच गया। बाजे बज उठे। उस समय राजकुमारी द्रौपदी की शोभा कुछ अनूठी हो गई। वह आगे बढ़ी और संकुचते हुए लेकिन प्रसनतापूर्वक ब्राह्मण-वेश में खड़े अर्जुन को वरमाला पहना दी।
माता को यह समाचार सुनाने के लिए युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव तीनों भाई मंडप से उठकर चले गए। परंतु भीम नहीं गया। उसे भय था कि निराश राजकुमार कहीं अर्जुन को कुछ कर न बैठें। भीमसेन का अनुमान ठीक ही निकला। राजकुमारों में बड़ी हलचल मच गई। उन्होंने शोर मचाया। राजकुमारों का जोश बढता गया। mahabharat full story in hindi
ऐसा प्रतीत हुआ कि भारी विप्लव मच जाएगा। यह हाल देखकर श्रीकृष्ण, बलराम और कुछ राजा विप्लव मचानेवाले राजकुमारों को समझाने लगे। वे समझाते रहे और इस बीच भीम और अर्जुन द्रौपदी को साथ लेकर कुम्हार की कुटिया की ओर चल दिए।
जब भीम और अर्जुन द्रौपदी को साथ लेकर सभा से जाने लगे, तो द्रुपद का पुत्र धृष्टट्युम्न चुपके से उनके पीछे हो लिया। कुम्हार की कुटिया में उसने जो देखा, उससे उसके आश्चर्य की सीमा न रही। वह तुरंत लौट आया और अपने पिता से बोला-” पिता जी, मुझे तो ऐसा लगता है कि ये लोग कहीं पांडव न हों! बहन द्रौपदी उस युवक की मृगछाला पकड़े जब जाने लगी, तो में भी उनके पीछे हो लिया। वे एक कुम्हार की झोपड़ी में जा पहुँचै।
वहाँ अग्नि-शिखा की भाँति एक तेजस्वी देवी बैठी हुई थीं। वहाँ जो बातें हुई, उनसे मुझे विश्वास हो गया कि वह कुंती देवी ही होनी चाहिए।” mahabharata stories for kids
तब राजा द्रूपद के बुलावा भेजने पर पाँचों भाई, माता कुंती और द्रौपदी को साथ लेकर राजभवन पहुँचे। युधिष्ठिर ने राजा को अपना सही परिचय दे दिया। यह जानकर कि ये पांडव है, राजा द्रुपद फूले न समाए। उनकी इच्छा पूरी हुई। mahabharat full story in hindi
महाबली अर्जुन मेरी बेटी के पति हो गए हैं, तो फिर द्रोणाचार्य की शत्रृता की मुझे चिंता नहीं रही! यह विचारकर उन्होंने संतोष की साँस ली। माँ की आज्ञा और सबकी सम्मति से द्रौपदी के साथ पाँचों पांडवों का विवाह हो गया।
Mahabharata stories for kids ||सम्पूर्ण महाभारत की कहानी || भाग 01
12) पांडवों का इंद्रप्रस्थ :-
द्रौपदी के स्वयंवर में जो कुछ हुआ था, उसकी खबर जब हस्तिनापुर पहुँची, तो विदुर बड़े खुश हुए। धृतराष्ट्र के पास दौड़े गए और बोले- “पांडव अभी जीवित हैं। राजा द्रुपद की कन्या को स्वयंवर में अर्जुन ने प्राप्त किया है। पाँचों भाइयों ने विधिपूर्वक द्रौपदी के साथ व्याह कर लिया है और कुंती के साथ सब द्रुपद के यहाँ कुशल से हैं।” mahabharat full story in hindi
यह सुनकर धृतराष्ट्र हर्ष प्रकट करते हुए बोले- “भाई विदुर! तुम्हारी बातों से मुझे असीम आनंद हो रहा है। राजा द्रुपद की बेटी हमारी बहु बन गई है, यह बड़ा ही अच्छा हुआ।” mahabharata stories for kids
उधर दुर्योधन को जब मालूम हुआ कि पांडवों ने लाख के घर की भीषण आग से किसी तरह बचकर और एक बरस तक कहीं छिपे रहने के बाद अब पराक्रमी पांचालराज की कन्या से ब्याह कर लिया है और अब वे पहले से भी अधिक शक्तिशाली बन गए हैं, तो उनके
प्रति उसके मन में ईष्या की आग और अधिक प्रबल हो उठी। दबा हआ वैर फिर से जाग उठा। दुर्योधन और दुःशासन ने शकुनि को अपना दुखड़ा सुनाया-” मामा, अब क्या करें? अब तो द्रुपदकुमार धृष्टय्युम्न और शिखंडी भी उनके साथी बन गए हैं।” mahabharat full story in hindi
उसके बाद कर्ण और दुर्योधन धृतराष्ट्र के पास गए और एकांत में उनसे दुर्योधन ने कहा-“पिता जी, जल्दी ही हम ऐसा कोई उपाय करें, जिससे हम सदा के लिए निश्ंचित हो सकें।” धृतराष्ट्र ने कहा, “बेटा, तुम बिलकुल ठीक कहते हो। तुम्हीं बताओ, अब क्या करना चाहिए?”
दुर्योधन ने कहा, “तो फिर हमें कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे पांडव यहाँ आएँ ही नहीं, क्योंकि यदि वे इधर आए, तो ज़रूर राज्य पर भी अपना अधिकार जमाना चाहंगे।” इस पर कर्ण को हँसी आ गई। उसने कहा-” दु्योधन! अब एक साल बाहर रहने और दुनिया देख लेने से उन्हें काफ़ी अनुभव प्राप्त हो चुका है। एक शक्ति संपन्न राजा के यहाँ उन्होंने शरण ली है।
तिस पर उनके प्रति तुम्हारा वैरभाव उनसे छिपा नहीं है। इसलिए छल-प्रपंच से अब काम नहीं बनेगा। आपस में फूट डालकर भी उनको हराना संभव नहीं। राजा द्रुपद धन के प्रलोभन में पडनेवाले व्यक्ति भी नहीं हैं। लालच देकर उनको अपने पक्ष में करने का विचार बेकार है। पांडवों का साथ वे कभी नहीं छोडंगे। mahabharata stories for kids
द्रौपदी के मन में पांडवों के प्रति घृणा पैदा हो ही नहीं सकती। ऐसे विचार की ओर ध्यान देना भी ठीक नहीं है। हमारे पास केवल एक ही उपाय रह गया है और वह यह है कि पांडवों की ताकत बढ़ने से पहले उन पर हमला कर दिया जाए। “
कर्ण तथा अपने बेटों की परस्पर विरोधी बातें सुनकर धृतराष्ट्र इस बारे में कोई निर्णय नहीं ले सके। वे पितामह भीष्म तथा आचार्य द्रोण को बुलाकर उनसे सलाह-मशबरा करने लगे। पांडू-पुत्रों के जीवित रहने की खबर पाकर पितामह भीष्म के मन में भी आनंद की लहरें उठ रही थीं।
भीष्म ने कहा-” बेटा! वीर पांडवों के साथ संधि करके आधा राज्य उन्हें दे देना ही उचित है।” आचार्य द्रोण ने भी यही सलाह दी। अंग-नरेश कर्ण भी इस अवसर पर धृतराष्ट्र के दरबार में उपस्थित था। पांडवों को आधा राज्य देने की सलाह उसे बिलकुल अच्छी न लगी। mahabharat full story in hindi
दुर्योधन के प्रति कर्ण के हृदय में अपार स्नेह था। इस कारण द्रोणाचार्य की सलाह सुनकर उसके क्रोध की सीमा न रही। वह धृतराष्ट्र से बोला-“राजन्! मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आचार्य द्रोण भी आपको ऐसी कुमंत्रणा देते हैं! राजन्! शासकों का कर्तव्य है कि मंत्रणा देनेवालों की नीयत को पहले परख लें, फिर उनकी मंत्रणा पर ध्यान दें।” mahabharata stories for kids
कर्ण की इन बातों से द्रोणाचार्य क्रोधित हो गरजकर बोले-“दुष्ट कर्ण! तुम राजा को गलत रास्ता बता रहे हो। यह निश्चित है कि यदि राजा धृतराष्ट्र ने मेरी तथा पितामह भीष्म की सलाह न मानी और तुम जैसों की सलाह पर चले, तो फिर कौरवों का नाश होनेवाला है।” mahabharat full story in hindi
इसके बाद धृतराष्ट्र ने धर्मात्मा विदुर से सलाह ली। विदूर ने कहा- “हमारे कुल के नायक भीष्म तथा आचार्य द्रोण ने जो बताया है, वही श्रेयस्कर है। कर्ण की सलाह किसी काम की नहीं है।” अंत में सब सोच-विचारकर धृतराष्ट्र ने पांडू के पुत्रों को आधा राज्य देकर संधि कर लेने का निश्चय किया और पांडवों को द्रौपदी तथा कुंती सहित सादर लिवा लाने के लिए विदुर को पांचाल देश भेजा।
विदुर पांचाल देश को रवाना हो गए। पांचाल देश में पहुँचकर विदूर ने राजा द्रुपद को अमूल्य उपहार भेंट करके उनका सम्मान किया और राजा धृतराष्ट्र की तरफ़ से अनुरोध किया कि पांडवों को द्रौपदी सहित हस्तिनापुर जाने की अनुमति दें। विदुर का अनुरोध सुनकर राजा द्रूपद के मन में शंका हुई। उनको धृतराष्ट्र पर विश्वास न हुआ। mahabharat full story in hindi
सिरफ़ इतना कह दिया कि पांडवों की जैसी इच्छा हो, वही करना ठीक होगा। तब विदृर ने माता कुंती के पास जाकर अपने आने का कारण उन्हें बताया। कुंती के मन में भी शंका हुई कि कहीं पुत्रों पर फिर कोई आफ़त न आ जाए। mahabharata stories for kids
विदुर ने उन्हें समझाया और धीरज देते हुए कहा-“देवी, आप निश्चित रहें। आपके बेटों का कोई कुछ नहीं बिगाड सकेगा। वे संसार में खूब यश कमाएँगे और विशाल राज्य के स्वामी बनेंगे। आप सब बेखटके हस्तिनापुर चलिए।” आखिर द्रेपद राजा ने भी अनुमति दे दी और विदुर के साथ कुंती और द्रौपदी समेत पांडव हस्तिनापुर को रवाना हो गए। उधर हस्तिनापर में पांडवों के स्वागत की बड़ी
धूमधाम से तैयारियाँ होने लगीं। जैसाकि पहले ही निश्चय हो चका था. यृधिष्ठिर का यथाविधि राज्याभिषेक हुआ और आधा राज्य पांडवों के अधीन किया गया।
राज्याभिषेक के उपरांत युधिप्ठिर को आशीर्वाद देते हुए धृतराष्ट्र ने कहा-” बेटा यृधिष्ठिर! मेरे अपने बेटे बड़े दुरात्मा हैं। एक साथ रहने से संभव है कि तुम लोगों के बीच वैर बढ़े। इस कारण मेरी सलाह है कि तुम खांडवप्रस्थ को अपनी राजधानी बना लेना और वहीं से राज करना। खांडवप्रस्थ वह नगरी है, जो पुरु, नहुष एवं ययाति जैसे हमारे प्रतापी पूर्वजों की राजधानी रही है। हमारे वंश की पुरानी राजधानी खांडवप्रस्थ को फिर से बसाने का यश और श्रेय तुम्हीं को प्राप्त हो। ” mahabharata stories for kids
धृतराष्ट्र के मीठे वचन मानकर पांडवों ने खांडवप्रस्थ के भग्नावशेषों पर, जोकि उस समय तक निर्जन वन बन चुका था, निपुण शिल्पकारों से एक नए नगर का निर्माण कराया। सुंदरभवनों, अभेद्य दुर्गों आदि से सुशोभित उस नगर का नाम इंदरप्रस्थ रखा गया। mahabharat full story in hindi
इंद्रप्रस्थ की शान एवं सुंदरता ऐसी हो गई कि सारा संसार उसकी प्रशंसा करते न थकता था। अपनी राजधानी में द्रौपदी और माता कुंती के साथ पाँचों पांडव तेईस बरस तक सुखपूर्वक जीवन विताते हुए न्यायपूर्वक राज्य करते रहे।
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13) जरासंध का वध :-
इंद्रप्रस्थ में प्रतापी पांडव न्यायपूर्वक प्रजा-पालन कर रहे थे। युधिष्ठिर के भाइयों तथा साथियों की इच्छा हुई कि अब राजसूय यज्ञ करके सम्राट-पद प्राप्त किया जाए। इस बारे में सलाह करने के लिए युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण को सदेश भेजा। mahabharata stories for kids
जब श्रीकृष्ण को मालूम हुआ कि युधिष्ठिर उनसे मिलना चाहते हैं, तो तत्काल ही वह द्वारका से चल पड़े और इंद्प्स्थ पहुँचे। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा-” मित्रों का कहना है कि मैं राजसूय यज्ञ करके सम्राट -पद प्राप्त करूँ। परंतु राजसूय यज्ञ तो वही कर सकता है. जो सारे संसार के नरेशों का पज्य हो और उनके द्वारा सम्मानित हो। आप ही इस विषय में मुझे सही सलाह दे सकते हैं। ” mahabharat full story in hindi
युधिष्ठिर की बात शाति के साथ सुनकर श्रीकृष्ण बोले-“मगधदेश के राजा जरासंध ने सब राजाओं को जीतकर उन्हें अपने अधीन कर रखा है। सभी उसका लोहा मान चुके हैं और उसके नाम से डरते हैं, यहाँ तक कि शिश्पाल जैसे शक्ति-संपन्न राजा भी उसकी अधीनता स्वीकार कर चुके हैं और उसकी छत्रछाया में रहना पसंद करते हैं। अत: जरासंध के रहते हुए और कौन सम्राट-पद प्राप्त कर सकता है?
जब महाराज उग्रसेन का ना-समझ बेटा कंस जरासंध की बेटी से व्याह करके उसका साथी बन गया था, तब मैंने और मेरे बंधुओं ने जरासंध के विरुद्ध युद्ध किया था। तीन बरस तक हम उसकी सेनाओं के साथ लड़ते रहे, पर आखिर हार गए। हमें मथ्रा छोडकर दूर पश्चिम द्वारका में जाकर नगर और दुर्ग बनाकर रहना पड़ा। mahabharat full story in hindi
आपके साम्राज्याधीश होने में दुर्योधन और कर्ण को आपत्ति न भी हो, फिर भी जरासंध से इसकी आशा रखना बेकार है। बगैर युद्ध के जरासंध इस बात को नहीं मान सकता है। जरासंध ने आज तक पराजय का नाम तक नहीं जाना है। ऐसे अजेय पराक्रमी राजा जरासंध के जीते जी आप राजसूय यज्ञ नहीं कर सकेंगे। mahabharata stories for kids
उसने जो राजे-महाराजे बंदीगृह में डाल रखे हैं, किसी-न-किसी उपाय से पहले उन्हें छुड़ाना होगा। जब ये हो जाएगा, तभी राजसूय करना आपके लिए साध्य होगा।”
श्रीकृष्ण की ये बातें सुनकर शांति-प्रिय राजा युधिष्ठर बोले-“आपका कहना बिलकुल सही है। इस विशाल संसार में कितने ही राजाओं के लिए जगह है। कितने ही नरेश आपने- अपने राज्य का शासन करते हुए इसमें संतुष्ट रह सकते हैं। आकांक्षा वह आग है, जो कभी बुझती नहीं है। इसलिए मेरी भलाई इसी में दिखती है। कि साम्राज्याधीश बनने का विचार छोड़ दँ और जो है उसी को लेकर संतुष्ट रहूँ” युधथिष्ठिर की यह विनयशीलता भीमसेन को अच्छी न लगी।
उसने कहा-” श्रीकृष्ण की नीति-कुशलता, मेरा शारीरिक बल और अर्जुन का शौर्य एक साथ मिल जाने पर कौन सा ऐसा काम है, जो हम नहीं कर सकते? यदि हम तीनों एक साथ चल पड़ें, तो जरासंध की शक्ति को चुर करके ही लौटेंगे। आप इस बात की शंका न करें।” mahabharata stories for kids
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा-“यदि भीम और अर्जुन सहमत हों, तो हम तीनों एक साथ जाकर उस अन्यायी की जेल में पड़े हुए निर्दोष राजाओं को छुड़ा सकेंगे। ” परंतु युधिष्ठिर को यह बात न जँचौ। उन्होंने कहा-” मैं तो कहूँगा कि जिस कार्य में प्राणों पर बन आने की संभावना हो, उसके विचार तक को छोड़ देना ही अच्छा होगा। ” mahabharat full story in hindi
यह सुनकर वीर अर्जुन बोल उठा- “यदि हम यशस्वी भरतवंश की संतान होकर भी कोई साहस का काम न करें, तो धिक्कार है हमें और।हमारे जीवन को! जिस काम को करने की हममें सामर्थ्थ है, भाई युधिष्टिर क्यों समझते हैं कि।उसे हम न कर सकेंगे?” श्रीकृष्ण अर्जुन की इन बातों से मुग्ध हो गए। बोले-” धन्य हो अर्जुन! कुंती के लाल अर्जुन से मुझे यही आशा थी।”
जब जरासंध के साथ युद्ध करने का निश्चय हो गया, तो श्रीकृष्ण और पांडवों ने अपनी योजना बनाई। श्रीकृष्ण, भीमसेन और अर्जुन ने बिल्कुल पहन लिए, हाथ में कुशा ले ली और ब्रती लोगों का-सा वेश धारण करके मगध देश के लिए रवाना हो गए।
राह में सुंदर नगरों तथा गोाँवों को पार करते हुए वे तीनों जरासंध की राजधानी में पहुँचे। जरासंध ने कुलीन अतिथि समझकर उनका बड़े आदर के साथ स्वागत किया। जरासंध के स्वागत का भीम और अर्जुन ने कोई जवाब नहीं दिया। वे दोनों मौन रहे। mahabharat full story in hindi
इस पर श्रीकृषण बोले-” मेरे दोनों साथियों ने मौन व्रत लिया हुआ है, इस कारण अभी नहीं बोलेंगे। आधी रात के बाद व्रत खुलने पर बातचीत करेंगे।” जरासंध ने इस बात पर विश्वास कर लिया और तीनों मेहमानों को यज्ञशाला में ठहराकर महल में चला गया। कोई भी ब्राह्मण अतिथि जरासंध के यहाँ आता, तो उनकी इच्छा तथा सुविधा के अनुसार बातें करना व उनका सत्कार करना जरासंध का नियम था। mahabharata stories for kids
इसके अनुसार आधी रात के बाद जरासंध अतिथियों से मिलने गया, लेकिन अतिथियों के रंग-ढंग देखकर मगध-नरेश के मन में कुछ शंका हुई। राजा जरासंध ने कड़ककर पूछा- “सच-सच बताओ, तुम लोग कौन हो? ब्राह्मण तो नहीं दिखाई देते।” mahabharat full story in hindi
इस पर तीनों ने सही हाल बता दिया और कहा-“हम तुम्हारे शनत्र हैं। तुमसे अभी द्ंद्ध युद्ध करना चाहते हैं। हम तीनों में से किसी एक से, जिससे तुम्हारी इच्छा हो, लड़ सकते हो। हम सभी इसके लिए तैयार हैं।”
तभी भीमसेन और जरासंध में कुश्ती शुरू हो गई। दोनों वीर एक-दूसरे को पकड़ते, मारते और उठाते हुए लड़ने लगे। इस प्रकार पलभर भी विश्राम किए बगैर वे तेरह दिन और तेरह रात लगातार लड़ते रहे। चौदहवें दिन जरासंध थककर ज़रा देर को रुक गया।
पर ठीक मौका देखकर श्रीकृष्ण ने भीम को इशारे से समझाया और भीमसेन ने फ़ौरन जरासंध को उठाकर चारों ओर घुमाया और उसे ज़मीन पर जोर से पटक दिया। इस प्रकार अजेय जरासंध का अंत हो गया। mahabharat short story in hindi
श्रीकृष्ण और दोनों पांडवों ने उन सब राजाओं को छुड़ा लिया, जिनको जरासंध ने बंदीगृह में डाल रखा था और जरासंध के पुत्र सहदेव को मगध की राजगद्दी पर बैठाकर इंद्रप्स्थ लौट आए। इसके बाद पांडवों ने कि जय- यात्रा की और सारे देश को महाराज युधिष्ठिर की अधीनता में ले आए। mahabharat full story in hindi
जरासंध के वध के बाद पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया। इसमें समस्त भारत के राजा आए हुए थे। जब अभ्यागत नरेशों का आदर-सत्कार करने की बारी आई, तो प्रश्न उठा कि अग्र -पूजा किसकी हो? सम्राट युधिष्ठिर ने इस बारे में पितामह भीष्म से सलाह ली। वृद्ध भीष्म ने कहा कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की पूजा पहले की जाए। युधिष्ठिर को भी यह बात पसंद आई। mahabharata stories for kids
उन्होंने सहदेव को आज्ञा दी कि वह श्रीकृष्ण का पूजन करे। सहदेव ने विधिवत् श्रीकृष्ण की पूजा की। वासुदेव का इस प्रकार गौरवान्वित होना चेदि-नरेश शिशुपाल को अच्छा नहीं लगा। वह एकाएक उठ खड़ा हुआ और ठहाका मारकर हँस पड़ा। सारी सभा की दृष्टि जब शिशुपाल की ओर गई, तो वह ऊँचे स्वर में व्यंग्य से बोलने लगा-” यह अन्याय की बात है कि एक मामूली से व्यक्ति को इस प्रकार गौरवान्वित किया जाता है। ” mahabharat short story in hindi
युधिष्ठिर को यों आड़े हाथों लेने के बाद शिश्पाल सभा में उपस्थित राजाओं की ओर देखकर बोला-“उपस्थत राजागण! जिस दुरात्मा ने कुचक्र रचकर वीर जरासंध को मरवा डाला, उसी की युधिष्ठिर ने अग्र -पूजा की। इसके बाद उसे हम धर्मात्मा कैसे कह सकते हैं? उनमें हमारा विश्वास नहीं रहा है।”
इस तरह शब्द-बाणों की बौछार कर चुकने के बाद शिशुपाल दूसरे कुछ राजाओं को साथ लेकर सभा से निकल गया। राजाधिराज युधिष्ठिर नाराज हुए राजाओं के पीछे दौड़े गए और अनुनय -विनय करके उन्हें समझाने लगे। युधिष्ठिर के बहुत समझाने पर भी शिशुपाल नहीं माना। उसका हृठ और घमंड बढ़ता गया। अंत में शिशुपाल और श्रीकृष्ण युद्ध छिड़ गया, जिसमें शिशुपाल मारा गया। राजसूय यज्ञ संपूर्ण हुआ और राजा युधिष्ठर को राजाधिराज की पदवी प्राप्त हो गई।
Panchatantra Stories In Hindi-दूसरा तंत्र || पंचतंत्र की कहानियाँ || भाग 2
14) शकुनि का आगमन :-
एक दिन युधिप्ठिर ने अपने भाइयों से कहा- “भाइयो! युद्ध की संभावना ही मिय देने के उद्देश्य से में यह शपथ लेता हूँ कि आज से तेरह बरस तक मैं अपने भाइयों या किसी और बंधु को ब्रा-भला नहीं कहूँगा। सदा अपने भाई-बंधुओं की इच्छा पर ही चलूँगा। mahabharat full story in hindi
मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जिससे आपस में मनमुटाव होने का डर हो, क्योंकि मनमुटाव के कारण ही झगड़े होते हैं। इसलिए मन से क्रोध को एकबारगी निकाल दँगा। दुय्योधन और दूसरे कौरवों की बात कभी न टालँगा। हमेशा उनकी इच्छानुसार काम करूँगा।”
युधिष्ठिर की बातें उनके भाइयों को भी ठीक लगीं। वे भी इसी निश्चय पर पहुँचे कि झगड़े-फसाद का हमें कारण नहीं बनना चाहिए। उधर यृधिष्ठिर चिंतित हो रहे थे कि कहीं कोई लड़ाई-झगड़ा न हो जाए और इधर राजसूय यज्ञ का ठाट-बाट तथा पांडवों की यश-समृद्धि का स्मरण ही दुर्योधन के मन को खाए जा रहा था। वह ईष्र्यां की जलन से बेचैन हो रहा था। mahabharata stories for kids
दुर्याधन ने यह भी देखा कि कितने ही देशों के राजा पांडवों के परम मित्र बने हैं। इस सबके स्मरण मात्र से उसका दुख और भी असह्य हो उठा। पांडवों के सौभाग्य की याद करके उसकी जलन बढ़ने लगती थी। अपने महल के कोने में इसी भाँति चिंतित और उदास भाव से वह एक रोज़ खड़ा हुआ था कि उसे यह भी पता न लगा कि उसकी बगल में उसका मामा शकुनि आ खड़ा हुआ है। “बेटा! यों चितित और उदास क्यों खड़े हो? mahabharat short story in hindi
कौन सा दुख तुमको सता रहा है?” शकुनि ने पूछा। दुर्योधन लंबी साँस लेते हुए बोला-” मामा, चारों भाइयों समेत युधिष्ठिर ठाट-बाट से राज कर रहा है। यह सब इन आँखों से देखने पर भी मैं कैसे शोक न करू? मेरा तो अब जीना ही व्यर्थ मालूम होता है। ” mahabharat full story in hindi
शकुनि दुर्योधन को सांत्वना देता हुआ बोला-” बेटा दुर्योधन! इस तरह मन छोटा क्यों करते हो? आखिर पांडव तुम्हारे भाई ही तो हैं। mahabharat short story in hindi
उनके सौभाग्य पर तुम्हें जलन नहीं होनी चाहिए। न्यायपूर्वक जो राज्य उनको प्राप्त हुआ है, उसी का तो उपभोग वे कर रहे हैं। पांडवों ने किसी।का कुछ बिगाड़ा नहीं है। जिस पर उनका अधिकार था, वही उन्हें मिला है। अपनी शक्ति से प्रयत्न करके यदि उन्होंने अपना राज्य तथा सत्ता बढ़ा ली है, तो तुम जी छोटा क्यों करते हो?
और फिर पांडवों की शक्ति और सौभाग्य से तुम्हारा बिगड़ता क्या है? तुम्हें कमी किस बात की है? द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा तथा कर्ण जैसे महावीर तुम्हारे पक्ष में हैं। यही नहीं, बल्कि मैं, भीष्म, कृपाचार्य, जयद्रथ, सोमदत्त सब तुम्हारे साथ हैं। इन साथियों की सहायता से तुम सारे संसार पर विजय पा सकते हो। फिर दुख क्यों करते हो?” mahabharata stories for kids
यह सुनकर दुर्यधिन बोला-“जब ऐसी बात है, तो मामा जी, हम इंद्रप्रस्थ पर चढ़ाई ही क्यों न कर दें?”।शकृनि ने कहा-” युद्ध की तो बात ही न करो। वह खतरनाक काम है। तुम पांडवों पर विजय पाना चाहते हो, तो युद्ध के बजाए चतुराई से काम लो। में तुमको ऐसा उपाय बता सकता हूँ, जिससे बगैर लड़ाई के ही युधिष्टठिर पर सहज में विजय पाई जा सके। ‘”
दुर्योधन की आँखें आशा से चमक उठीं। बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, “मामा जी! आप ऐसा उपाय जानते हैं?” mahabharat full story in hindi
शकुनि ने कहा-” दुर्योधन, युधिष्ठिर को चौसर के खेल का बड़ा शौक है। पर उसे खेलना नहीं।आता है। हम उसे खेलने के लिए न्यौता दें, तोयुधिष्ठिर अवश्य मान जाएगा। तुम तो जानते ही हो कि मैं मँजा हुआ खिलाड़ी हूँ। तुम्हारी ओर से।मैं खेलँगा और युधिष्ठिर को हराकर उसका सारा राज्य और ऐश्वर्य, बिना युद्ध के आसानी से छीनकर तुम्हारे हवाले कर दूँगा।” mahabharata stories for kids
इसके बाद दुर्योधन और शकुनि धृतराष्ट्र के पास गए। शकुनि ने बात छेड़ी-” राजन्! देखिए तो आपका बेटा दुर्योधन शोक और चिंता के कारण पीला-सा पड़ गया है।” अंधे और बूढ़े धृतराष्ट्र को अपने बेटे पर अपार स्नेह था। mahabharat short story in hindi
शकुनि की बातों से वह सचमुच बड़े चिंतित हो गए। अपने बेटे को उन्होंने छाती से लगा लिया और बोले-” बेटा! मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आता कि तुम्हें किस बात का दुख हो सकता है। तुम्हारे पास ऐश्वर्य की कमी नहीं है। सारा संसार तुम्हारी आज्ञा पर चल रहाहै। फिर तुम्हें चिंता काहे की?”
लेकिन शकुनि ने धृतराष्ट्र को सलाह दी कि चौसर के खेल के लिए पांडवों को बुलाया जाए। दोनों के इस प्रकार आग्रह करने पर भी धृतराष्ट्र ने तुरंत हा नहीं की। mahabharat full story in hindi
वह बोले-” मुझे यह उपाय ठीक नहीं जिँच रहा है। में विदुर से भी तो सलाह कर लँ। वह बड़ा समझदार है। मैं हमेशा से उसका कहा मानता आया हूँ। उससे सलाह कर लेने के बाद ही कुछ तय करना ठीक होगा। ” पर दुर्योधन को विदुर से सलाहकरने की बात पसंद नहीं आई।
धृतराष्ट्र बोले-“जुए का खेल वैर-विरोध की जड़ होता है। इसलिए बेटा, मेरी तो यह राय है कि तुम्हारा यह विचार ठीक नहीं है। इसे छोड़ दो।” दु्योंधन अपने हठ पर दृढ़ रहता हुआ बोला-” चौसर का खेल कोई हमने तो ईजाद किया नहीं है। यह तो हमारे पूर्वजों का ही mahabharata stories for kids
चलाया हुआ है।” दुर्योधन के इस तरह आग्रहकरने पर आखिर धृतराष्ट्र ने घुटने टेक दिए। बेटे का आग्रह मानकर धृतराष्ट्र ने चौसर खेलने के लिए अनुमति दे दी और सभा- मंडप बनाने की भी आज्ञा दे दी, परंतु विद्र से भी उन्होंने इस बारे में गुपचुप सलाह की। mahabharat short story in hindi
विदुर बोले-“राजन्, सारे वंश का इससे नाश हो जाएगा। इसके कारण हमारे कुल के लोगों में आपसी मनमुटाव और झगड़े- फसाद होंगे। इसकी भारी विपदा हम पर आएगी। ” mahabharat full story in hindi
धृतराष्ट्र ने कहा-” भाई विद्र! मुझे खेल का भय नहीं है। लेकिन हम क्या कर सकते हैं? सो तुम ही युधिष्ठिर के पास जाओ और उसे मेरी तरफ़ से खेल के लिए न्यौता देकर बुला लाओ।” अपने बेटे पर उनका असीम स्नेह उनकी कमज़ोरी थी और यही कारण था कि उन्होंने बेटे की बात मान ली।
15) द्रौपदी के आँसू :-
धृतराष्ट्र की बात मानकर विदुर पांडवों के पास आए। उनको देखकर महाराज युधिष्ठिर उठे और उनका यथोचित स्वागत-सत्कार किया। विदुर आसन पर बैठते हुए शांति से बोले-” हस्तिनापुर में खेल के लिए एक सभा-मंडप बनाया गया है जो तुम्हारे मंडप के समान ही सुंदर है। mahabharat full story in hindi
राजा धृतराष्ट्र की ओर से उसे देखने चलने के लिए मैं तुम लोगों को न्यौता देने आया हूँ। राजा धृतराष्ट्र की इच्छा है कि तुम सब भाइयों सहित वहाँ आओ, उस मंडप को देखो और दो हाथ चौसर भी खेल जाओ। “
युधिष्ठिर ने कहा-” चाचा जी! चौसर का खेल अच्छा नहीं है। उससे आपस में झगड़ पैदा होते हैं। समझदार लोग उसे पसंद नहीं करते हैं। लेकिन इस मामले में हम तो आप ही के आदेशानुसार चलनेवाले हैं। आपकी सलाह क्या है?” mahabharat full story in hindi
विदूर बोले-“यह तो किसी से छिपा नहीं है कि चौसर का खेल सारे अनर्थ की जड़ होता है। मैंने तो भरसक कोशिश की थी कि इसे न होने दूँ. किंतु राजा ने आज्ञा दी है कि तुम्हें खेल के लिए न्यौता दे ही आऊँ। इसलिए आना पड़ा। अब तुम्हारी जो इच्छा हो करो।” mahabharat short story in hindi
राजवंशों की रीति के अनुसार किसी को भी खेल के लिए बुलावा मिल जाने पर उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा युधिष्ठिर को डर था कि कहीं खेल में न जाने को ही धृतराष्ट्र अपना अपमान न समझ लें और यही बात कहीं लड़ाई का कारण न बन जाए।
इन्हीं सब विचारों से प्रेरित।होकर समझदार युधिष्ठिर ने न्यौता स्वीकार कर लिया, यद्यपि विदुर ने उन्हें चेता दिया था। युधिष्ठिर अपने परिवार के साथ हस्तिनापुर पहुँच गए। नगर के पास ही उनके लिए एक सुंदर विश्राम-गृह बना था। mahabharata stories for kids
वहाँ ठहरकर उन्होंने आराम किया। अगले दिन सुबह नहा-धोकर सभा-मंडप में जा पहुँचे। कुशल समाचार पूछने के बाद शकुनि ने कहा-” युधिष्ठिर, खेल के लिए चौपड़ बिछा हुआ है। चलिए, दो हाथ खेल लें।”
युधिष्ठिर बोले-” राजन्, यह खेल ठीक नहीं है! बाज़ी जीत लेना साहस का काम नहीं है। जुआ खेलना धोखा देने के समान है। आप तो यह सब बातें जानते ही हैं।”
वह बोला-“आप भी क्या कहते हैं. महाराज! यह भी कोई धोखे की बात है! हाँ, यह कहिए कि आपको हार जाने का डर लग रहा है।” युधिष्ठिर कुछ गरम होकर बोले-“राजन्! ऐसी बात नहीं है। अगर मुझे खेलने को कहा गया, तो मैं ना नहीं करूँगा। आप कहते हैं, तो मैं तैयार हूँ। मेरे साथ खेलेगा कौन?”। दुर्योधन तुरंत बोल उठा-” मेरी जगह खेलेंगे तो मामा शकुनि किंतु दाँव लगाने के लिए जो धन-रत्नादि चाहिए, वह मैं दूंगा”। mahabharat short story in hindi
युधिष्ठिर बोले-” मेरी राय यह है कि किसी एक की जगह दूसरे को नहीं खेलना चाहिए। यह खेल के साधारण नियमों के विरुद्ध है।” “अच्छा तो अब दुसरा बहाना बना लिया।शकुनि ने हँंसते हुए कहा।
युधिष्ठिर ने कहा-“ठीक है। कोई बात नहीं, मैं खेलॅँगा। ” और खेल शुरू हुआ। सारा मंडप दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। द्रोण, भीष्म, कृपाचार्य, विदुर, धृतराष्ट्र जैसे वयोवृद्ध भी उपस्थित थे। वे उसे रोक नहीं सके थे। उनके चेहरों पर उदासी छाई हुई थी।
अन्य कौरव राजकुमार बड़े चाव से खेल को देख रहे थे। पहले रत्नों की बाज़ी लगी, फिर सोने-चाँदी के खज़ानों की। उसके बाद रथों और घोड़ों की। तीनों दाँव युधिष्ठिर हार गए। शकुनि का पासा मानो उसके इशारों पर चलता थ। mahabharat full story in hindi
खेल में युधिष्ठिर बारी-बारी से अपनी गाएँ, भेड, बकरियाँ , दास-दासी, रथ, घोडे, सेना, देश, देश की प्रजा सब खो बैठे। भाइयों के शरीरों पर जो आभूषण और वस्त्र थे, उनको भी बाज़ी पर लगा दिया और हार गए। mahabharata stories for kids
“और कुछ बाकी है?” शकुनि ने पूछा “यह साँवले रंग का सुंदर युवक, मेरा भाई नकुल खड़ा है। वह भी मेरा ही धन है। इसकी बाजी लगाता हूँ। चलो!” युधिष्ठिर ने जोश के शकुनि ने कहा-” अच्छा तो यह बात है! तो साथ कहा यह लीजिए। महाभारत की कहानी
आपका प्यारा राजकुमार अब हमारा हो गया!” कहते-कहते शकृनि ने पासा फेंका और बाज़ी मार ली। युधिष्ठर ने कहा-” यह मेरा भाई सहदेव, जिसने सारी विद्याओं का पार पा लिया है। इसकी बाज़ी लगाना उचित तो नहीं है, फिर भी लगाता हूँ। चलो, देखा जाएगा। ” “यह चला और वह जीता, ” कहते हुए शकुनि ने पासा फेंका। सहदेव को भी युधिष्ठिर गैँवा बैठे।
अब दुरात्मा शकुनि को आशंका हुई कि कहीं युधिष्ठिर खेल बंद न कर दें। बोला- “युधिष्ठिर, शायद आपकी निगाह में भीमसेन और अर्जुन माद्री के बेटों से ज्यादा मूल्यवान हैं। सो उनको बाज़ी पर आप लगाएँगे नहीं।” mahabharata stories for kids
युधिष्ठिर ने कहा-” मूर्ख शकुनि! तुम्हारी चाल यह मालूम होती है कि हम भाइयों में आपस में फूट पड़ जाए! सो तुम क्या जानो कि हम पाँचों भाइयों के संबंध क्या हैं? पराक्रम में जिसका कोई सानी नहीं है, उस अपने भाई अर्जुन को मैं दाँव पर लगाता हूँ। चलो। “
शकुनि यही तो चाहता था। “तो यह चला”, कहते हुए पासा फेंका और अर्जुन भी हाथ से निकल गया। असीम दुर्दैव मानो युधिष्टिर को बेबस कर रहा था और उन्हें पतन की ओर बलपूर्वक लिए जा रहा था। वह बोले-“राजन्! शारीरिक बल में संसारभर में जिसका कोई जोड़ीदार नहीं है, अपने उस भाई को मैं दाँव पर लगाता हूँ।” mahabharat full story in hindi
यह कहते-कहते युधिष्टिर भीमसेन से भी हाथ धो बैठे। दुष्टात्मा शकुनि ने तब भी नहीं छोड़ा। पूछा-“और कुछ?” युधिष्ठिर ने कहा- “हाँ! यदि इस बार तुम जीत गए, तो मैं खुद तुम्हारे अधीन हो जाऊँगा। “
“लो, यह जीता! ” कहते हुए शकुनि ने पासा फेंका और यह बाज़ी भी ले गया। इस पर शकृनि सभा के बीच उठ खड़ा हुआ और पाँचों पांडवों को एक-एक करके पुकारा और घोषणा की कि वे अब उसके गुलाम हो चुके हैं। mahabharata stories for kids
शकुनि को दाव देनेवालों के हर्षनाद से और पांडवों की इस दुर्दशा पर तरस खानेवालों के हाहाकार से सारा सभा-मंडप गुँज उठा। सभा में इस तरह खलबली मचने के बाद शकु्नि ने युधिष्ठिर से कहा-” एक और चीज़ है, जो तुमने अभी हारी नहीं है। उसकी बाज़ी लगाओ, तो तुम अपने-आपको भी छुड़ा सकते हो। mahabharat short story in hindi
अपनी पत्नी द्रौपदी को तुम दाँव पर क्यों नहीं लगाते?” और जुए के नशे में चूर युधिष्ठिर के मुँह से निकल पड़ा-” चलो अपनी पत्नी द्रौपदी की भी मैंने बाज़ी लगाई!” उनके मुँह से यह निकल तो गया, पर उसके परिणाम को सोचकर वह विकल हो उठे कि ‘हाय यह मैंने क्या कर डाला! ‘ युधिष्ठिर की इस बात पर सारी सभा में एकदम हाहाकार मच गया। जहाँ वृद्ध लोग बैठे थे, उधर से धिक्कार की आवाजें आने लगीं।
लोग बोले-“छि:-छिः, कैसा घोर पाप है ” कुछ ने आँसू बहाए और कुछ लोग परेशानी के मारे पसीने से तर-ब-तर हो गए। दूर्योधन और उसके भाइयों ने बड़ा शोर मचाया। पर युयुत्स् नाम का धृतराष्ट्र का एक बेटा शोक संतप्त हो उठा और ठंडी आह भरकर उसने सिर झुका लिया।
शकुनि ने पासा फेंककर कहा-“यह लो, यह बाज़ी भी मेरी ही रही। ” बस, फिर क्या था? दुर्योधन ने विदुर को आदेश देते हुए कहा-“आप अभी रनवास में जाएँ और द्रौपदी को यहाँ ले आएँ। उससे कहें कि जल्दी आए। ” mahabharata stories for kids
विदुर बोले-” मूर्ख! नाहक क्यों मृत्यु को न्यौता देने चला है। अपनी विषम परिस्थिति का तुम्हें ज्ञान नहीं है। ” दुर्योधन को यों फटकारने के बाद विदूर ने सभासदों की ओर देखकर कहा-” अपने को हार चुकने के बाद युधिष्ठिर को कोई अधिकार नहीं था कि वह पांचालाज की बेटी को दाँव पर लगाए।” विदुर की बातों से दुर्योधन बौखला उठा। mahabharat short story in hindi
अपने सारथी प्रातिकामी को बुलाकर कहा-” विदुर तो हमसे जलते हैं और पांडवों से डरते हैं। रनवास में जाओ और द्रौपदी को बुला लाओ। ” आज्ञा पाकर प्रातिकामी रनवास में गया और द्रौपदी से बोला-“द्रुपदराज की पुत्री! चौसर के खेल में युधिष्ठर आपको दाँव में हार बैठे हैं। आप अब राजा दुर्योधन के अधीन हो गई हैं। राजा की आज्ञा है कि अब आपको धृतराष्ट्र के महल में दासी का काम करना है। मैं आपको ले जाने के लिए आया हँ । ” mahabharat full story in hindi
सारथी ने जुए के खेल में जो कुछ हुआ था, उसका सारा हाल कह सुनाया। वह प्रातिकामी से बोली-“रथवान! जाकर उन हारनेवाले जुए के खिलाड़ी से पूछो कि पहले वह अपने को हारे थे या मुझे? सारी सभा में यह प्रश्न उनसे करना और जो उत्तर मिले, वह मुझे आकर बताओ। उसके बाद मुझे ले जाना।”
प्रातिकामी ने जाकर भरी सभा के सामने युधिष्ठिर से वही प्रश्न किया, जो द्रौपदी ने उसे बताया था। इस पर दु्योधन ने प्रातिकामी से कहा-“द्रौपदी से जाकर कह दो कि वह स्वयं ही आकर अपने पति से यह प्रश्न कर ले।” mahabharata stories for kids
प्रतिकामी दोबारा रनवास में गया और द्रौपदी के आगे इझुककर बड़ी नम्रता से बोला-” देवि! दुर्योधन की आज्ञा है कि आप सभा में आकर स्वयं ही युधिष्ठिर से प्रश्न कर लें। ” द्रौपदी ने कहा-” नहीं, मैं वहाँ नहीं जाऊँगी। अगर युधिष्ठिर जवाब नहीं देते, तो सभा में जो सज्जन विद्यमान हैं, उन सबको तुम मेरा प्रश्न जाकर सुनाओ और उसका उत्तर आकर मुझे बताओ।”mahabharat short story in hindi
प्रातिकामी लौटकर फिर सभा में गया और सभासदों को द्रौपदी का प्रश्न सुनाया। यह सुनकर दुर्योधन झल्ला उठा। अपने भाई दुःशासन से बोला-“दुशासन, यह सारथी भीमसेन से डरता मालूम होता है। तुम्हीं जाकर उस घमंडी औरत को ले आओ।”
दुरात्मा दुःशासन के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी। उसने द्रौपदी के गुँथे हुए बाल बिखेर डाले, गहने तोड -फोड़ दिए और उसके बाल पकड़कर बलपूर्वक घसीटता हुआ सभा की ओर ले जाने लगा। द्रौपदी विकल हो उठी। द्रौपदी की ऐसी दीन अवस्था देखकर धृतराष्ट्र के एक बेटे विकर्ण को बड़ा दुख हुआ। mahabharata stories for kids
उससे नहीं रहा गया। वह बोला- “उपस्थित वीरो! सुनिए, चौसर के खेल के लिए युधिष्ठिर को धोखे से बुलावा दिया गया था। वह धोखा खाकर इस जाल में फँस गए और अपनी स्त्री तक की बाज़ी लगा दी। यह सारा कार्य न्यायोचित नहीं है।
दूसरी बात यह है कि द्रौपदी अकेले युधिप्ठिर की ही पत्नी नहीं है, बल्कि पाँचों पांडवों की पत्नी है। इसलिए उसको दाँव पर लगाने का अकेले युधिष्ठिर को कोई हक नहीं था। इसके अलावा खास बात यह है कि एक बार जब युधिष्ठिर ख़ुद को ही दाँव में हार गए थे, तो उनको द्रौपर्दी की बाज़ी लगाने का अधिकार ही क्या था? mahabharat short story in hindi
मेरी एक और आपत्ति यह है कि शकुनि ने द्रौपदी का नाम लेकर युधिष्ठर को उसकी बाज़ञी लगाने के लिए उकसाया था। लोगों ने चौसर के खेल के जो नियम बना रखें हैं, यह उनके बिलकुल विरुद्ध है। इन सब बातों के आधार पर मैं इस सारे खेल को नियम-विरूद्ध ठहराता हूँ। मेरी राय में द्रौपदी नियमपूर्वक नहीं जीती गई है।” mahabharata stories for kids
युवक विकर्ण के भाषण से वहाँ उपस्थित लोगों के विवेक पर से भ्रम का परदा हट गया। सभा में बड़ा कोलाहल मच गया। यह सब देखकर कणर्ण उठ खड़ा हुआ और क्कुद्ध होकर बोला-“विकर्ण, अभी तुम बच्चे हो। सभा में इतने बड़े-बूढ़ों के होते हुए, तुम कैसे बोल पड़े! तुम्हें यहाँ बोलने और तर्क -वितर्क करने का कोई अधिकार नहीं हैं।” mahabharat full story in hindi
यह देखकर दुःशासन द्रौपदी के पास गया और उसका वस्त्र पकड़कर खींचनें लगा। ज्यों-ज्यों वह खींचता गया त्यों-त्यों वस्त्र भी बढ़ता गया। अंत में खींचते-खींचते दुःशासन की दोनों भुजाएँ थक गई। हॉफता हुआ वह थकान से चूर होकर बैठ गया। mahabharat short story in hindi
सभा के लोगों में कंपकंपी-सी फैल गई और धीमे स्वर में बातें होने लगीं। इतने में भीमसेन उठा। उसके होंठ मारे क्रोध के फड़क रहे थे। ऊंचे स्वर में उसने यह भयानक प्रतिज्ञा की, “उपस्थित सज्जनो! मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि जब तक, भरत-वंश पर बट्टा लगानेवाले इस दुरात्मा दुःशासन की छाती चीर न लूँगा तब तक इस संसार को छोड़कर नहीं जाऊँगा। ” mahabharata stories for kids
भीमसेन की इस प्रतिज्ञा को सुनकर उपस्थित लोगों के हदय भय के मारे थर्रा उठे। इन सब लक्षणों से धृतराष्ट्र ने समझ लिया कि यह सब ठीक नहीं हुआ है। उन्होंने अनुभव किया कि जो कुछ हो चुका है, उसका परिणाम शुभ नहीं होगा। यह उनके पुत्रों और कुल के विनाश का कारण बन जाएगा।
इसीलिए उन्होंने परिस्थिति को सँभालने के इरादे से द्रौपदी को बड़े प्रेम से अपने पास बुलाया और शांत किया तथा सांत्वना दी। उसके बाद वह युधिष्ठिर की अर मुड्कर बोले-“युधिष्ठिर तुम तो अजातशत्रु हो। उदार- हृदय के भी हो। दुर्योधन की इस कुचाल को क्षमा करो और इन बातों को मन से निकाल दो और भूल जाओ। अपना राज्य तथा संपत्ति आदि सब ले जाओ और इंद्रप्स्थ जाकर सुखपूर्वक रहो!”
धृतराष्ट्र की इन मीठी बातों को सुनकर पांडवों के दिल शांत हो गए और यथोचित अभिवादनादि के उपरांत द्रौपदी और कुंती सहित सब पांडव इंद्रप्रस्थ के लिए विदा हो गए। पांडवों के विदा हो जाने के बाद कौरवों में बड़ी हलचल मच गई। mahabharat short story in hindi
पांडवों के इस प्रकार अपने पंजे से साफ़ निकल जाने के कारण कौरव बड़ा क्रोध-प्रदर्शन करने लगे और दु:शासन तथा शकुनि के उकसाने पर दुर्योधन पुन: अपने पिता धृतराष्ट्र के सिर पर सवार हो गया और पांडवों को खेल के लिए एक बार और बुलाने को उनको राज़ी कर लिया। युधिष्ठिर को खेल के लिए बुलाने को फिर दूत भेजा गया। mahabharata stories for kids
पिछली घटना के कारण दुखी होते हुए भी युधिष्ठिर को यह निमंत्रण स्वीकार करना पड़ा। युधिष्ठिर हस्तिनापुर लौटे और शकुनि के साथ फिर चौसठ खेला। इस बार खेल में यह शर्त थी कि हारा हुआ दल अपने भाइयों के साथ बारह वर्ष तक वनवास करेंगा तथा उसके उपरांत एक वर्ष अज्ञातवास में रहेगा। यदि इस एक वर्ष में उनका पता चल जाएगा, तो उन सबको बारह वर्ष का वनवास फिर से भोगना होगा। इस बार भी युधिष्ठिर हार गए और पांडव अपने किए वादे के अनुसार वन में चले गए।
महाभारत की कहानी
16) धृतराष्ट्र की चिंता :-
जब द्रोपदी को साथ लेकर पाडव वन की ओर जाने लगे थे, तो धृतराष्ट्र ने विदुर को बुला भेजा और पूछा-“विदुर, पांडू के बेटे और द्रौपदी कैसे जा रहे हैं? मैं कुछ देख नहीं सकता हूँ। तुम्हीं बताओ, कैसे जा रहे हैं वे?”
विदुर ने कहा- “कुंती-पुत्र युधिष्ठिर, कपड़े से चेहरा ढककर जा रहे हैं। भीमसेन अपनी दोनों भुजाओं को निहारता, अर्जुन हाथ में कुछ बालू लिए उसे बिखेरता, नकल और सहदेव सारे शरीर पर धूल रमाए हुए, क्रमशः युधिष्ठिर के पीछे-पीछे जा रहे हैं। द्रौपदी ने विखरे हुए केशों से सारा मुख ढक लिया है और ऑँसू बहाती हुई, युधिष्ठर का अनुसरण कर रही है। ” यह सुनकर धृतराष्ट्र की आशंका और चिंता पहले से भी अधिक प्रबल हो उठी। mahabharata stories for kids
विदुर बार-बार धृतराष्ट्र से आग्रह करते थे कि आप पांडवों के साथ संधि कर लें। विद्र अकसर इसी भाति धृतराष्ट्र को उपदेश दिया करते थे। विद्र की बुद्धिमता का धूृतराष्ट्र पर भारी प्रभाव था। इसलिए शुरू-शुरू में वह विदुर की बातें सुन लिया करते थे। परंतु बार-बार विदुर की ऐसी ही बातें सुनते-सुनते वह ऊब गए।
एक दिन विदुर ने फिर वही बात छेड़ी, तो धृतराष्ट्र झुँझलाकर बोले- “विदुर। मुझे अब तुम्हारी सलाह की ज़रूरत नहीं है। अगर चाहों तो तुम भी पांडवों के पास चले जाओ। ” धृतराष्ट्र यह कहकर बड़े क्रोध के साथ विदुर के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना अंत:पुर में चले गए। mahabharata stories for kids
विदूर ने मन में कहा कि अब इस वंश का सर्वनाश निश्चित है। उन्होंने तुरंत अपना रथ जुतवाया और उस पर चढ़कर जंगल में उस ओर तेज़्ी से चल पड़े, जहाँ पांडव अपने वनवास का काल व्यतीत कर रहे विदुर के चले जाने पर धृतराष्ट्र और भी चिंतित गए। वह सोचने लगे कि मैंने यह क्या कर दिया। विदुर को भगाकर मैंने भारी भूल कर दी। mahabharat full story in hindi
यह सोचकर धृतराष्ट्र ने संजय को बुलाया और कहा-“संजय! मैंने अपने प्रिय विदुर को बहुत ब्रा-भला कह दिया था, इससे गुस्सा होकर वह वन में चला गया है। तुम जाकर उसे किसी तरह समझा-बुझाकर मेरे पास वापस ले आओ। ” mahabharat short story in hindi
धृतराष्ट्र की बात मानकर संजय जंगल में पांडवों के आश्रम में जा पहुँचे। संजय ने विदुर से बड़ी नम्रता के साथ कहा-” धृतराष्ट्र अपनी भूल पर पछता रहे हैं। आप यदि वापस नहीं लौटेंगे, तो वह अपने प्राण छोड़ देंगे। कृपया अभी लौट चलिए।” mahabharata stories for kids
यह बात सुनकर विदुर युधिष्ठिर आदि से विदा लेकर हस्तिनापुर के लिए चल पड़े। हस्तिनापुर पहुँचकर जब धृतराष्ट्र के सामने गए, तो धृतराष्ट्र ने उन्हें बड़े प्रेम से गले लगा लिया और गदुगद स्वर में बोले-” निर्दोष विदुर!। मैं उतावली में जो बुरा-भला कह बैठा, उसका बुरा मत मानना और मुझे क्षमा कर देना।”
इसी तरह एक बार महर्षि मैत्रेय धृतराष्ट्र के दरबार में पधारे। राजा ने उनका समुचित आदर-सत्वकार करके प्रसन्न किया। फिर मह्षि से हाथ जोड़कर पूछा-“कुरुजांगल के वन में आपने मेरे प्यारे पूत्र वीर पांडवों को तो देखा होगा! वे कुशल से तो हैं ”
महर्षि मैत्रेय ने कहा- ” राजन्, काम्यक वन में संयोग से युधिष्ठिर से मेरी भेंट हो गई थी। वन के दूसरे ऋषि- मुनि भी उनसे मिलने उनके आश्रम में आए थे। हस्तिनापुर में जो कुछ हुआ था, उसका सारा हाल उन्होंने मुझे बताया था। यही कारण हैं कि मैं आपके यहाँ आया हूँ। आपके और भीष्म के रहते ऐसा नहीं होना चाहिए था।” mahabharat full story in hindi
इस अवसर पर दुर्योंधन भी सभा में मौजूद था। मुनि ने उसकी ओर देखकर कहा-“राजकुमार, तुम्हारी भलाई के लिए कहता हूँ, सुनो! पांडवों को धोखा देने का विचार छोड़ दो। उनसे वैर मोल न लो। उनके साथ संधि कर लो। इसी में तुम्हारी भलाई है। ” mahabharata stories for kids
ऋषि ने यों मीठी बातों से दुर्योंधन को समझाया, पर जिद्दी व नासमझ दुर्योधन ने उसकी ओर देखा तक नहीं। वह कुछ बोला भी नहीं, बल्कि अपनी जाँघ पर हाथ ठोकता और पैर के अँगूठे से ज्ञमीन कुरेदता, मुसकराता हुआ खड़ा रहा। mahabharat short story in hindi
दुर्योधन की इस ढिठाई को देखकर महर्षि बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने कहा-“दुर्योधन! याद रखो, अपने घमंड का फल तुम अवश्य पाओगे। ” इसी बीच हस्तिनापुर में हुई घटनाओं की खबर श्रीकृष्ण को लगी। उन्हें यह पता चला कि पाँचों पांडव द्रौपदी समेत वन में चले गए हैं। यह खबर पाते ही वह फ़ौरन उस वन को चल पडे जहाँ पांडव ठहरे हुए थे।
श्रीकृष्ण जब पांडवों से भेंट करने के लिए जाने लगे, तो उनके साथ कैकेय, भोज और वृष्टि जाति के नेता, चेदिराज धृष्टकेतु आदि भीगए। इन लोगों के साथ पंडवों का बड़ा स्नेह -संबंध था और वे उनको बड़ी श्रद्धा से देखते थे। mahabharata stories for kids
द्रौपदी श्रीकृष्ण से मिली। श्रीकृष्ण को देखते ही उसकी आँखों से अविरल अश्रुधार बह चली। बड़ी मुश्किल से वह बोली- ” इस तरह अपमानित होने के बाद मेरा जीना ही बेकार है। मेरा कोई नहीं रहा और आप भी मेरे न रहे!” यह कहते- कहते द्रौपदी की बड़ी-बड़ी आँखों से गरम-गरम आँसुओं की धारा बहने लगी। वह आगे न बोल सकी। mahabharat short story in hindi
करुण स्वर में विलाप करती हुई द्रौपदी को श्रीकृष्ण ने बहुत समझाया और धीरज बँधाया। वह बोले-“बहन द्रौपदी! जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया है, उन सबकी लाशें युद्ध के मैदान में खून से लथपथ होकर पड़ेंगी। तुम शोक न करो। मैं वचन देता हूँ कि पांडवों की हर प्रकार से सहायता करूगा। यह भी निश्चय मानो कि तुम साम्राज्ञी के पद को फिर सुशोभित करोगी। “
धृष्टद्युन्न ने भी बहन को सांत्वना दी और समझाते हुए कहा कि श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा अवश्य पूरी होगी। इसके बाद श्रीकृष्ण पांडवों से विदा हुए। साथ में अर्जुन की पत्नी सुभद्रा और उसके पुत्र अभिमन्यु को भी वे द्वारकापुरी लेते गए । द्रौपदी के पुत्रों को लेकर धृष्टद्युम्न पांचाल देश चला गया।
महाभारत की कहानी
17) भीम और हनुमान :-
सुहावना मौसम था। द्रौपदी आश्रम के बाहर खड़ी थी। इतने में एक सुंदर फूल हवा में उड़्ता हुआ उसके पास आ गिरा। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीमसेन के पास जाकर बोली-” क्या तुम जाकर ऐसे ही कुछ और फूल ला सकोगे?” mahabharat full story in hindi
यह कहती हुई द्रौपदी हाथ में फूल लिए युधिष्ठिर के पास दौड़ी गई। द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए भीमसेन उस फूल की तलाश में निकल पड़ा। चलते-चलते वह पहाड़ की घाटी में जा पहुँचा, जहाँ केले के पेड़ों का एक विशाल बगीचा लगा हुआ था। mahabharata stories for kids
बगीचे के बीच एक बड़ा भारी बंदर रास्ता रोके लेटा हुआ था। बंदर ने भीम की तरफ़ देखकर कहा-“मैं कुछ अस्वस्थ हूँ। इसलिए लेटा हुआ हूँ। जरा आँख लगी थी, तो तुमने आकर नींद खराब कर दी। मुझे क्यों जगाया तुमने?” mahabharat short story in hindi
एक बंदर के इस प्रकार मनुष्य जैसा उपदेश देने पर भीमसेन को बड़ा क्रोध आया और बोला-” जानते हो, मैं कौन हूँ? मैं कुरुवंश का वीर, कुंती का बेटा हूँ। मुझे रोको मत! मेरे रास्ते से हट जाओ और मुझे आगे जाने दो। ” mahabharata stories for kids
बंदर बोला-” देखो भाई, मैं बूढ़ा हूँ। कठिनाई से उठ-बैठ सकता हूँ। ठीक है, यदि तुम्हें आगे बढ़ना ही है, तो मुझे लॉँघकर चले जाओ।” भीमसेन ने कहा-“किसी जानवर को लॉँघना अनुचित कहा गया है। इसी से मैं रुक गया, नहीं तो मैं कभी का तुम्हें एक ही छलाँग में लाँघकर चला गया होता।”
बंदर ने कहा-” भाई, मुझे ज़रा बताना कि वह हनुमान कौन था, जो समुद्र को लॉघ गया था।” भीमसेन जरा कड़्ककर बोला-” क्या कहा? तुम महावीर हनुमान को नहीं जानते? उठकर रास्ता दे दो, नाहक मृत्यु को न्यौता मत दो।'” बंदर बड़े करुण स्वर में बोला-” हे वीर! शांत हो जाओ! इतना क्रोध न करो। यदि मुझे लाँना तुम्हें अनुचित लगता हो, तो मेरी इस पूँछ को हटाकर एक ओर कर दो और चले जाओ। “
भीमसेन ने बंदर की पूँछ एक हाथ से पकड़ ली, लेकिन आश्चर्य भीम ने पूँछ पकड़ तो ली; पर वह उससे जरा भी नहीं हिली-उठने की तो कौन कहे! उसे बड़ा ताज्जुब होने लगा कि यह बात क्या है ? उसने दोनों हाथों से पँछ पकड़कर खूब जोर लगाया। किंतु पुंछ वैसी- की-वैसी ही धरी रही।
भीम बड़ा लज्जित हुआ। उसका गर्वे चूर हो गया। उसे बड़ा विस्मय होने लगा कि मुझसे अधिक ताकतवर यह कौन है। भीम के मन में बलिष्ठों के लिए बड़ी श्रद्धा थी। वह नम्र हो गया। बोला-” मुझे क्षमा करें। आप कौन हैं?” हनुमान ने कहा-” हे पांडुवीर! हनुमान मैं ही हूँ।” mahabharat full story in hindi
“वानर- श्रेष्ठ! मुझसे बढ़कर भाग्यवान और कौन होगा, जो मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए।” कहकर भीमसेन ने हनुमान को दंडवत प्रणाम किया। मारुति ने आशीर्वाद देते हुए कहा-“भीम! युद्ध के समय तुम्हारे भाई अर्जुन के रथ पर उड़नेवाली ध्वजा पर मैं विद्यमान रहूँगा। विजय तुम्हारी ही होगी। “
इसके बाद हनुमान ने भीमसेन को पास के झरने में खिले हुए सुगंधित फूल दिखाए। फूलों को देखते ही भीमसेन को द्रौपदी का स्मरण हो आया। उसने जल्दी से फूल तोड़ और वेग से आश्रम की ओर लौट चला। mahabharat short story in hindi
18) द्वेष का परिणाम :-
पांडवों के वनवास के दिनों में कई ब्राह्मण उनके आश्रम गए थे। वहाँ से लौटकर वे हस्तिनापुर पहुँचे और धृतराष्ट्र को पांडवों के हाल-चाल सुनाए। धृतराष्ट्र ने जब यह सुना कि पांडव वन में बड़ी तकलीफ़ें उठा रहे हैं, तो उनके मन में चिंता होने लगी। mahabharata stories for kids
लेकिन दुर्योधन और शकुनि कुछ और ही सोचते थे। कर्ण और शकुनि दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे, किंतु दुर्योंधन को भला इतने से संतोष कहाँ होता! वह कर्ण से कहता-” कर्ण, मैं तो चाहता हूँ कि पांडवों को मुसीबतों में पड़े हुए अपनी आँखों से देखूँ। इसलिए तुम और मामा शकुनि कुछ ऐसा उपाय करो कि वन में जाकर पांडवों को देखने की पिता जी से अनुमति मिल जाए।”
कर्ण बोला-“द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं, जो हमारे अधीन हैं। हर साल उन बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना करना राजक्मारों का ही काम होता है। बहुत समय से यह प्रथा चली आ रही है। इसलिए उस बहाने हम पिता जी की अनुमति आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।” mahabharat full story in hindi
कर्ण अपनी बात पूरी तरह से कह भी न पाया था कि दुर्योधन और शकुनि मारे खुशी के उछल पड़े। राजकुमारों ने भी धृतराष्ट्र से आग्रहपूर्वक प्रार्थना की कि वह इसकी अनुमति दे दें। किंतु धृतराष्ट्र न माने। दुर्योधन ने विश्वास दिलाया कि पांडव जहाँ होंगे, वहाँ वे सब नहीं जाएँगे और बड़ी सावधानी से काम लेंगे।
इसीलिए विवश होकर धृतराष्ट्र ने अनुमति दे दी। एक बड़ी सेना को साथ लेकर कौरव द्वैतवन के लिए रवाना हुए। दुर्योधन और कर्ण फूले नहीं समाते थे। उन्होंने पहुँचने पर अपने डेरे ऐसे स्थान पर लगाए, जहाँ से पांडवों का आश्रम चार कोस की दूरी पर ही था। गंधर्वराज चित्रसेन भी अपने परिवार के साथ उसी जलाशय के तट पर डेरा डाले हुए था। mahabharat short story in hindi
दुर्योधन के अनुचर जलाशय के पास गए और किनारे पर तंबू गाडने लगे। इस पर गंधर्वराज के नौकर बहुत बिगड़े और दु्योंधन के अनुचरों की उन्होंने खूब खबर ली। वे कुछ न कर सके और अपने प्राण लेकर भाग खड़े हुए। दुर्योधन को जब इस बात का पता चला, तो उसके क्रोध की सीमा न रही।
वह अपनी सेना लेकर तालाब की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचना था कि गंधर्वों और कौरवों की सेनाएँ आपस में भिड गई। घोर संग्राम छिड् गया। यहाँ तक कि कर्ण जैसे महारथियों के भी रथ और अस्त्र चूर -चूर हो गए और वे उलटे पाँव भाग खड़े हुए। अकेला दुर्योधन लड़ाई के मैदान में अंत तक डटा रहा। गंधर्वराज चित्रसेन ने उसे पकड़ लिया। फिर रस्सी से बाँधकर उसको अपने रथ पर बैठा लिया और शंख बजाकर विजय -घोष किया। mahabharata stories for kids
जब युधिष्ठिर ने सुना कि द्र्योधन व उसके साथी अपमानित हुए हैं, तो उसने गंभीर स्वर में कहा-” भाई भीमसेन! ये हमारे ही कुटुंबी हैं। तुम अभी जाओ और किसी तरह अपने बंधुओं को गंधर्वों के बंधन से छुड़ा लाओ।”
युधिष्ठिर के आग्रह पर भीम और अर्जुन ने कौरवों की बिखरी हुई सेना को इकट्टा किया और वे गंधर्वों पर टूट पडे। अंतत: गंधर्वराज ने कौरवों को बंधनमुक्त कर दिया। इस प्रकार अपमानित कौरव हस्तिनापुर लौट गए । mahabharat short story in hindi
पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की तो इच्छा राजसूय यज्ञ करने की थी, किंतु पंडितों ने कहा कि धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर के रहते उसे राजसूय यज्ञ करने का अधिकार नहीं है। तब ब्राह्मणों की सलाह मानकर दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ करके ही संतोष कर लिया। इसी समय की बात है कि महर्षि दु्वासा अपने दस हज़ार शिष्यों को साथ लेकर दुर्योधन के राजभवन में पधारे। दुर्योधन के सत्कार से ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और कहा- ” वत्स, कोई वर चाहो, तो माँग लो। ” mahabharat full story in hindi
दुर्योधन बोला-” मुनिवर! प्रार्थना यही है कि जैसे आपने शिष्यों-समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर उनका भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें । mahabharata stories for kids
वह यह कि आप अपने शिष्यों समेत ठीक ऐसे समय युधिष्टिर के आश्रम में जाएँ, जब द्रौपदी पांडवों एवं उनके परिवार को भोजन करा चुकी हों और जब सभी लोग आराम से बैठे विश्राम कर रहे हों।”
उन्होंने दुर्योधन की प्रार्थना तुरंत मान ली। दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ युधिष्ठिर के आश्रम में जा पहुँचे। युधिष्ठिर ने भाइयों समेत ऋषि की बड़ी आवभगत की और उनका सत्कार किया। ‘
कुछ देर बाद मुनि ने कहा- ” अच्छा! हम सब अभी स्नान करके आते हैं। तब तक भोजन तैयार करके रखना। कहकर दुर्वासा शिष्यों समेत नदी पर स्नान करने चले गए। वनवास के प्रारंभ में युधिष्ठिर से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें एक अक्षयपात्र प्रदान किया था और कहा था कि बारह बरस तक इसके द्वारा मैं तुम्हें भोजन दिया करूँगा। mahabharat short story in hindi
इसकी विशेषता यह है कि द्रौपदी हर रोज़ चाहे जितने लोगों को इस पात्र में से भोजन खिला सकेगी; परंतु सबके भोजन कर लेने पर जब द्रोपदी स्वयं भी भोजन कर चुकेगी, तब इस बरतन की यह शक्ति अगले दिन तक के लिए लुप्त हो जाएगी।mahabharata stories for kids
जिस समय दुर्वासा ऋषि आए, उस समय सभी को खिला-पिलाकर द्रौपदी भी भोजन कर चुकी थी। इसीलिए सूर्य का अक्षयपात्र उस दिन के लिए खाली हो चुका था। द्रौपदी बड़ी चिंतित हो उठी और कोई सहारा न पाकर उसने परमात्मा की शरण ली। mahabharat short story in hindi
इतने में श्रीकृष्ण कहीं से आ गए और सीधे आश्रम के रसोईघर में जाकर द्रौपदी के सामने खड़े हो गए। बोले-” बहन कृष्णा, बड़ी भूख लगी है। कुछ खाने को दो।” द्रौपदी और भी दुविधा में पड़ गई। कृष्ण बोले-“ज़रा लाओ तो अपना अक्षयपात्र। देखें कि उसमें कुछ है भी या नहीं।”
द्रौपदी हड़बड़ाकर बरतन ले आई। उसके एक छोर पर अन्न का एक कण और साग की पत्ती लगी हई थी। श्रीकृष्ण ने उसे लेकर मुँह में डालते हुए मन में कहा-“यह भोजन हो, इससे उनकी भूख मिट जाए।”
द्रौपदी तो यह देखकर सोचने लगी -” कैसी हूँ मैं कि मैंने ठीक से बरतन भी नहीं धोया! इसलिए उसमें लगा हआ अन्न-कण और साग वासुदेव को खाना पड़ा। धिक्कार है मुझे! ” इस तरह द्रौपदी अपने-आपको ही धिक्कार रही थी कि इतने में श्रीकृष्ण ने बाहर जाकर भीमसेन को कहा-” भीम, जल्दी जाकर ऋषि दुर्वांसा को शिष्यों समेत भोजन के लिए बुला लाओ।” mahabharata stories for kids
भीमसेन उस स्थान पर गया, जहाँ दुर्वासा ऋषि शिष्यों-समेत स्नान कर रहे थे। नज़दीक जाकर भीमसेन देखता क्या है कि दुर्वासा ऋषि का सारा शिष्य-समुदाय स्नान करके भोजन भी कर चुका है। शिष्य दुर्वासा से कह रहे थे-” गुरुदेव! युधिष्ठिर से हम व्यर्थ में कह आए कि भोजन तैयार करके रखें। हमारा तो पेट भरा हुआ है। हमसे उठा भी नहीं जाता। इस समय तो हमारी ज़रा भी खाने की इच्छा नहीं है।”
यह सुनकर दुर्वासा ने भीमसेन से कहा- ” हम सब तो भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से जाकर कहना कि असुविधा के लिए हमें क्षमा करें।” यह कहकर ऋषि अपने शिष्यों सहित वहाँ से रवाना हो गए।
19) एक मायावी सरोवर :-
पांडवों के वनवास की अवधि पूरी होने को ही थी। बारह बरस समाप्त होने में कुछ ही दिन रह गए थे। उन्हीं दिनों एक निर्धन ब्राह्मण की सहायता करते हुए पॉचों भाई जंगल में काफ़ी दूर निकल आए। वे थके हुए थे, सो ज़रा सुस्ताने लगे। mahabharat short story in hindi
युधिष्ठिर नकुल से बोले-” भैया! जरा उस पेड पर चढ़कर देखो तो सही कि कहीं कोई जलाशय या नदी दिखलाई दे रही है?” नकुल ने पेंड़ पर चढ्कर देखा और उतरकर कहा कि कुछ दूरी पर ऐसे पौधे दिखाई दे रहे हैं जो पानी के नजदीक ही उगते हैं। आसपास कुछ बगुले भी बैठे हुए हैं। वहीं कहीं आसपास पानी अवश्य होना चाहिए। युधिष्ठिर ने कहा कि जाकर देखो और पानी मिले, तो ले आओ।
यह सुनकर नकुल तुरंत पानी लाने चल पड़ा। कुछ दूर चलने पर अनुमान के अनुसार नकुल को एक जलाशय मिला। उसने सोचा कि पहले तो मैं अपनी प्यास बुझा लूँ और फिर तरकश में पानी भरकर भाइयों के लिए ले जाऊँगा। यह सोचकर उसने दोनों हाथों की अंजुलि में पानी लिया और पीना ही चाहता था कि इतने में
आवाज़ आई-” माद्री के प्त्र! दुःसाहस न करो। यह जलाशय मेरे अधीन है। पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। फिर पानी पियो। ” mahabharat short story in hindi
पर उसे प्यास इतनी तेज्ञ लगी थी कि उस वाणी की परवाह न करके उसने अंजुलि से पानी पी लिया। पानी पीकर किनारे पर चढ़ते ही उसे कुछ चक्कर-सा आया और वह गिर पड़ा।
बड़ी देर तक नकुल के न लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हो गए और उन्होंने सहदेव को भेजा। सहदेव जलाशय के नज़दीक पहुँचा तो नकुल को ज़मीन पर पड़ा हुआ देखा। पर उसे भी प्यास इतनी तेज़ लगी थी कि वह कुछ ज्यादा सोच न सका। वह पानी पीने को ही था कि पहले जैसी वाणी उसे भी सुनाई दी। उसने वाणी की चेतावनी पर ध्यान न देते हुए पानी पी लिया और किनारे पर चढ़ते-चढ़ते वह अचेत होकर नकुल के पास ही गिर पड़ा। mahabharat full story in hindi
जब सहदेव भी बहुत देर तक नहीं लौटा, तो युधिष्ठिर घबराकर अर्जुन से बोले-“जाकर देखो तो उनके साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई?” अर्जून बड़ी तेज़ती से चला। तालाब के किनारे पर दोनों भाइयों को उसने मृत पड़े हुए देखा, तो वह चौंक उठा।mahabharat short story in hindi
वह नहीं समझ पाया कि इनकी मृत्यु का क्या कारण है! यह सोचते हुए अर्जुन भी पानी पीने के लिए जलाशय में उतरा कि तभी उसे भी वही वाणी सुनाई दी-” अर्जुन! मेरे प्रश्नों का उत्तर देने के बाद ही प्यास बुझा सकते हो। यह तालाब मेरा है। मेरी बात नहीं मानोगे, तो तुम्हारी भी वही गति होगी, जो तुम्हारे दो भाइयों की हुई है। “
अ्जुन यह सुनकर गुस्से से भर गया। उसने बाण छोड़ने शुरू कर दिए। जिधर से आवाज़ सुनाई दी थी, उसी ओर निशाना लगाकर वह तीर चलाता रहा, किंतु उन बाणों का कोई असर नहीं हुआ।
अपने बाणों को बेकार होते देखकर अर्जुन के क्रोध की सीमा न रही। उसने सोचा पहले अपनी प्यास तो बुझा ही लँ। फिर लड़ लिया जाएगा। यह सोचकर अर्जुन ने जलाशय में उतरकर पानी पी लिया और किनारे आते- आते चारों खाने चित्त होकर गिर पड़ा। mahabharat short story in hindi
बाट जोहते-जोहते युधिष्ठिर बड़े व्याकुल हो उठे। भीमसेन से चितिंत स्वर में बोले -” भैया भीमसेन! देखो तो अर्जुन भी नहीं लौटा। ज़रा तुम्हीं जाकर तलाश करो कि तीनों भाइयों को क्या हो गया है।”
युधिष्ठिर की आज्ञा मानकर भीमसेन तेज़ी से जलाशय की ओर बढ़ा। तालाब के किनारे पर देखा कि तीनों भाई मरे -से पड़े हुए हैं। सोचा, यह किसी यक्ष की करतूत मालूम होती है। ज़रा पानी पी लँ फिर देखता हँ। यह सोचकर भीमसेन तालाब में उतरना ही चाहता था कि फिर वही आवाज आई।
” मुझे रोकनेवाला तू कौन है?” कहता हुआ भीमसेन बेधड़क तालाब में उतर गया और पानी भी पी लिया। पानी पीते ही अपने भाइयों की तरह वह भी वहीं ढेर हो गया। उधर युधिष्ठर अकेले बैठे घबराने लगे और सोचने लगे कि बड़े आश्चर्य की बात है कि कोई भी अब तक नहीं लौटा! आखिर भाइयों को हो क्या गया? क्या कारण है कि अभी तक वे लौटे नहीं ? जल की खोज में वे जंगल में इधर-उधर भटक तो नहीं गए? मैं ही चलकर देखूँ कि क्या बात है!
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