IGNOU MHD 13 Free Solved Assignment 2024

IGNOU MHD 13 Free Solved Assignment 2024 (For Jan and Dec 2024)

MHD 13 (उपन्यास : स्वरूप और विकास)

सूचना  :-

MHD 13 free solved assignment मैं आप सभी प्रश्नों  का उत्तर पाएंगे, पर आप सभी लोगों को उत्तर की पूरी नकल नही उतरना है, क्यूँ की इससे काफी लोगों के उत्तर एक साथ मिल जाएगी। कृपया उत्तर मैं कुछ अपने निजी शब्दों का प्रयोग करें। अगर किसी प्रश्न का उत्तर Update नही किया गया है, तो कृपया कुछ समय के उपरांत आकर फिर से Check करें। अगर आपको कुछ भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है, About Us पेज मैं जाकर हमें  Contact जरूर करें। धन्यवाद 

MHD 13 Free solved assignment (Hindisikhya) :-

mhd 13

1- उपन्यास के उदय के कारणों को विस्तार से समझाइये।

उत्तर-

उपन्यास का अर्थ :

उपन्यास शब्द के अर्थ में विविधता है , क्योंकि उसके निहित अर्थ में सदैव परिवर्तन होता रहता है। उपन्यास का पाठक समझता है कि उपन्यास वह गद्य रूप है जिसे आधुनिक युग का ‘महाकाव्य’ कहा जाता है। महाकाव्य में प्रबंध ध्वनित होता है जो जीवन के बहुविध विस्तार को समेटने में सक्षम है।

यही परिस्थिति उपन्यास की भी रही है पर उपन्यास का अर्थ और स्वरूप परिवर्तित होता रहता है। कथानक उपन्यास का मूल तत्व है , पर कुछ उपन्यास बिना कथानक के भी लिखे गए हैं वह ‘ आपबीती ‘ और ‘ जगबीती ‘ भी है।

किसी भी साहित्य प्रवृत्ति के पीछे उसकी तात्कालिक परिस्थितियां काम करती है , यह सत्य है यह भी सत्य है कि बिना किसी कारण का कोई भी कार्य संभव नहीं होता। उपन्यास उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्य विधा है।

उपन्यास के उदय के पीछे भी समाज और युग की विशिष्ट परिस्थितियों का योग है। उपन्यास पूंजीवादी युग में विकसित होने वाला साहित्य रूप है।

उपन्यास का उदय:

“यह केवल उपन्यास हैं जिनमें मन की सबसे बड़ी शक्तियों को प्रदर्शित किया जाता है, जिसमें मानव प्रकृति का सबसे गहन ज्ञान, इसकी किस्मों का सबसे सुखद चित्रण, बुद्धि और हास्य के जीवंत प्रवाह को सर्वोत्तम चुनी गई भाषा में दुनिया तक पहुंचाया जाता है। ।” जेन ऑस्टिन के उपन्यास की इतनी सुंदर और सटीक परिभाषा हैं।

एक उपन्यास लिखित कथा साहित्य का एक लंबा काम है। उपन्यास साहित्य का एक आधुनिक रूप है और मुद्रण के आविष्कार ने साहित्य के इस रूप को संभव बनाया है। उपन्यास मुद्रण संस्कृति और प्रौद्योगिकी के विकास का एक उत्पाद है।

उपन्यास मुद्रण का परिणाम है जो एक यांत्रिक आविष्कार है। उस समय बिना मुद्रण के उपन्यास बड़ी संख्या में दर्शकों तक नहीं पहुँच पाता था। संचार में सुधार पाठकों के बीच सामान्य रुचियों के उभरने का कारण था, वे स्वयं को पात्रों के जीवन और कहानियों के साथ देखते थे।

उपन्यास का प्रसार 17वीं सदी में शुरू हुआ और 18वीं सदी में फला-फूला। वे 17वीं शताब्दी के दौरान इंग्लैंड और फ्रांस में स्थापित हुए लेकिन 18वीं शताब्दी के दौरान ही पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई और लेखकों की कमाई में भारी वृद्धि हुई। इससे लेखकों को अभिजात वर्ग के संरक्षण पर वित्तीय निर्भरता से मुक्ति मिल गई। जैसे-जैसे उनकी कमाई बढ़ती गई, उन्होंने अलग-अलग शैलियों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया।

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उपन्यास के उदय के कारणों :

उपन्यास के उदय के कारणों का विस्तार से समझाने के लिए हमें उपन्यास की निगाह से इतिहास की ओर मुख करना होगा। उपन्यास का उदय, साहित्यिक और सामाजिक परिपेश्ष्य में कई कारणों के संघटन से हुआ है, और इनके समझने के लिए हमें समय के साथ उपन्यास की विकास की प्रक्रिया को देखना होगा। उपन्यास का उदय काव्य साहित्य की विकास की प्रक्रिया का हिस्सा है, और यह प्रक्रिया कई अंशों के संघटन से हुई। ये अंश निम्नलिखित हैं;

1. सामाजिक परिपेक्ष्य: उपन्यास का उदय समाज में हुई बदलती संरचनाओं, संघटनों, और मानवीय समस्याओं के साथ जुड़ा है। 18 वीं और 19 वीं सदी में औद्योगिकीकरण, औद्योगिक रोजणार की वृद्धि, और नगरीकरण की प्रक्रिया थी, जिसने लोगों के जीवन में बड़े परिवर्तन लाये। इसके परिणामस्वरूप, समाज में नई जरूरियां और मुदे उत्पन्न हुए, जिन्होंने उपन्यास के रूप में अद्वितीय माध्यम का निर्मॉण किया।

2. तकनीकी उन्नति: उपन्यास के उदय का एक और महत्वपूर्ण कारण था छपाई की तकनीकी उन्नति। 18 वीं सदी में, छपाई की प्रक्रिया में सुधार किया गया था, जिससे किताबें और पत्रिकाएऍँं सस्ते और पहुंचने में आसानी से उपलब्ध हो गई। यह छपाई की सरलता ने उपन्यास के लेखन और प्रकाशन की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया और इसके परिणामस्वरूप, लेखरकों को अपनी कहानियों को एक बड़े और विचारशील प्रेक्षाग्रह में प्रस्तुत करने का मौका मिला।

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3. पारंपरिक कथा-कहानी रुपकथा से उपन्यास की ओर: उपन्यास की उत्पत्ति में पारंपरिक कथा-कहानी रुपकथा का महत्वपूर्ण योगदान था। बड़ी गाथाएँ और कथाएँ हमें नियमित अंतरालों पर विचार करने का मौका नहीं देती थी, जिससे विशेष घटनाओं और चरित्रों के विकास को देखने का मौका मिलता था। यह कथाएँ लोगों के विच्ार और भाषा कौशल में वृद्धि करने में मदद करती थीं, और इसका उपयोग उन्होंने उपन्यास के लेखन में किया।

4. आधुनिकता की मांगः समाज में आधुनिकता की मांग भी उपन्यास के उदय का कारण बनी। लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं में परिवर्तन हुआ था, और इसके साथ ही वे अपने जीवन को और विशेष और सांविदानिक ततरीके से जीने की इव्छा रखते थे।

इसलिए, उपन्यास एक ऐसा माध्यम बन गया जिसमें ये अपनी जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को अधिक विस्तार से अध्ययन कर सकते थे। उप्युक्त कारणों के परिणामस्वरूप, उपन्यास का उदय बड़ी ही तेज़ी से हुआ, और यह साहित्यिक जगत में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया।

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यहाँ पर हम इन कारणों को विस्तार से समझेंगे:

1. सामाजिक परिपैक्ष्य में उपन्यास का उदयः

18 वीं और 19 वीं सदी के समाज में कई महर्यपूर्ण परिवर्तन हुए, जिन्होंने उपन्यास के उदय को प्रोत्साहित किया।

औद्योगिकीकरण: औद्योगिकीकरण ने नये रूपों के रोजगार के अवसर प्रदान किए, और यह लोगों के जीवन में स्थायी बदलाय लाया। इसके परिणामस्वरूप, नई सामाज़िक वर्गों की उत्पत्ति हुई, जिनमें से कुछ लोग शिक्षा प्राप्त करने और पढ़ाई करने का मौका प्राप्त करने लगे। उपन्यास के माध्यम से, इन लोगों ने अपनी सोच और विचारों को व्यक्त करने का माध्यम पाया और समाज के अधिकांश से जुड़ने का मौका प्राप्त किया।

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औद्योगिक रोजगार की बुद्धि :

औद्योगिकीकरण के साथ ही औद्योगिक रोजगार की वृद्धि हुई, और यह नई पीडियों को अधिक समय सुनने और पढ़ने का मौका दिया। यह रोजगारी की यृद्धि उनकी सोच और दृष्टिकोण में परिवर्तन लाई, और उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों के साथ जुड़ने का मौका मिला।

नगरीकरण की प्रक्रियाः नगरीकरण के प्रक्रिया के साथ, लोगों का जीवन शहरों में हुआ। यह नई जीवनशैली के साथ आई, जिसमें व्यक्त के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के अंश बदल गए। उपन्यास ने इस नई जीवनशैली को अधिक सुंदर और अरूचिकर तरीके से प्रस्तुत करने का माध्यम प्रदान किया, और इससे उपन्यास के लेखन और पठन में वृद्धि हुई।

2, तकनीकी उननति का प्रभावः

तकनीकी उन्नति ने उपन्यास के लेखन और प्रकाशन की प्रक्रिया को भी सरल बना दिया। छपाई की तकनीकी उन्नति: 18 वीं सदी में, छपाई की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सुधार किए गए, जिससे बुक्स और पत्रिकाएँ सस्ते हो गए और ज्यादा पहुंचने में आसानी से उपलब्ध हो गए।

यह छपाई की सरलता ने उपन्यास के लेखन और प्रकाशन की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया और इसके परिणामस्वरूप, लेखकों को अपनी कहानियों को एक बड़े और विचारशील प्रेक्षाप्रह में प्रस्तुत करने का मौका मिला।

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3. पारंपरिक कथा-कहानी रुपकथा से उपन्यास की ओर:

पारंपरिक कथा-कहानी रपकथा ने भी उपन्यास के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। गाथाओं और कथाओं का पारंपरिक प्रयोग: पारंपरिक गाथाएँ और कथाएँ लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं और इन्हें नियमित अंतरालों पर सुनने का मौका मिलता था।

इसके परिणामस्वरूप, लोगों की सोच, विचार और भाषा कौशल में सुधार हुआ, और यह कथाएँ लोगों को अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से परिचित कराने में मदद करती थी। उपन्यास ने इस पारंपरिक प्रक्रिया को अपने रचनात्मकता और विचारशीलता के साथ एक नई दिशा देने में प्रेक्षाप्रह में प्रस्तुत करने का मौका मिला।

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3. पारंपरिक कथा-कहानी रुपक्था से उपन्यास की ओर:

पारंपरिक कुथा-कहानी रुपकथा ने भी उपन्यास के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। गाथाओं और कथाओं का पारंपरिक प्रयोग: पारंपरिक गाथाएँ और कथाएँ लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं और इन्हें नियमित अंतरालों पर सुनने का मौका मिलता था।

इसके परिणामस्वरूप, लोगों की सोच, विचार और भाषा कौशल में सुधार हुआ, और यह कथाएँ लोगों को अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से परिचित कराने में मदद करती थीं। उपन्यास ने इस पारंपरिक प्रक्रिया को अपने रचनात्मकता और विचारशीलता के साथ एक नई दिशा देने में मदद की।

4. आधुनिकता की मांगः

आधुनिकता की मांग ने उपन्यास के उदय को भी प्रोत्साहित किया। ज़रूरत से अधिक आधुनिक जीवनशैली: समाज के आधुनिकीकरण के साथ, लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं में परिवर्तन हुआ, और यह लोगों के जीवन को और विशेष और सांविदानिक तरीके से जीने की इच्छा रखते हैं।

इसलिए, उपन्यास एक ऐसा माध्यम बन गया जिसमें वे अपनी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को अधिक यिस्तार से अध्ययन कर सकते प्रेक्षाप्रह में प्रस्तुत करने का मॉका मिला।

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3. पारंपरिक कथा-कहानी रुपक्था से उपन्यास की ओर:

पारंपरिक कथा-कहानी रुपकथा ने भी उपन्यास के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। गाथाओं और कथाओं का पारंपरिक प्रयोग: पारंपरिक गाथाएँं और कथाएँ लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं और इन्हें नियमित अंतरालों पर सुनने का मौका मिलता था। इसके परिणामस्वरूप, लोगों की सोच, विचार और भाषा

कौशल में सुधार हुआ, और यह कथाऐं लोगों को अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से परिचित कराने में मदद करती थीं। उपन्यास ने इस पारंपरिक प्रक्रिया को अपने रचनात्मकता और विचारशीलता के साथ एक नई दिशा देने में मदद की।

4. आघुनिकता की मांगः

आधुनिकता की मांग ने उपन्यास के उदय को भी प्रोत्साहित किया। ज्रूरत से अधिक आधुनिक जीवनशैली: समाज के आधुनिकीकरण के साथ, लोगों की आवश्यकताओं और इच्छाओं में परिवर्तन हुआ, और यह लोगों के जीवन को और विशेष और सांविदानिक तरीके से जीने की इच्छा रखते हैं। इसलिए, उपन्यास एक ऐसा माध्यम बन गया जिसमें वे अपनी जिंदगी के विभिशन्न पहलुओं को अधिक विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं।

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इस तरह, उपन्यास का उदय कई महत्वपूर्ण कारणों के संधटन से हुआ है, जो साहित्यिक और सामाजिक परिपेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया है। यह साहित्यिक रूपकल्पना का एक महत्वपूर्ण और रचनात्मक हिस्सा बन गया है, जिसका महत्व समय के साथ और भी बढ़ गया है। उपन्यास का उदय एक समृद्ध साहित्यिक विरासत की शुरुआत है, जिसने हमारे साहित्यिक धरोहर को और भी महत्वपूर्ण बनाया है।

IGNOU MHD ALL FREE SOLVED ASSIGNMENT (2023-2024) 

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2. उपन्यासों में पात्रों के विकास पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

उपन्यासों में पात्रों के विकास पर प्रकाश डालने का यह विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है। उपन्यास एक ऐसा कला है जिसमें लेखक अपने पात्रों को जीवंत और गहरे रूप से चित्रित करते हैं और उनके विकास की कहानी सुनाते हैं।

इस लेख में, हम उपन्यासों में पात्रों के विकास को चार प्रमुख पहलुओं पर विचार करेंगे – भौतिक विकास, भावनात्मक विकास, सामाजिक विकास, और मानसिक विकास। हम कुछ महत्वपूर्ण उपन्यासों के माध्यम से इन पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे।

1. भौतिक विकास:

उपन्यासों में पात्रों का भौतिक विकास उनके शारीरिक गुणों, स्थास्थ्य, और भौतिक स्थारूप के साथ जुड़ा होता है। इसमें उनकी आयु, सेहत, रंग, ऊंचाई, और शारीरिक कशल शामिल होते हैं। उपन्यास के शुरुआती दौर में पात्र का विवरण आमतौर पर इसके आधार पर किया जाता है।

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उपन्यास “बेल जर” में, सर्कल ड्रमॉड, पात्र प्रारंभ में एक बचे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसे एक गोरी गोलु में बदल दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, उसका भौतिक रूप बिलकुल बदल जाता है, और वह एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होता है। इसके माध्यम से, लेखक पात्र के भौतिक विकास की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाते हैं और यह बताते हैं कि हमारे शारीरिक रूप का कैसे हमारे जीवन के प्रत्येक पहलु पर प्रभाव पड़ता है।

2. भावनात्भक विकासः

उपन्यासों में पात्रों का भावनात्मक विकास उनकी भावनाओं, भायनात्मक स्थिति, और मानसिक स्वास्थ्य के साथ जुड़ा होता है। इसमें पात्र के अंत्निहित भावनाओं का विकास, उनके संवादों में परिवर्तन, और उनके भावनाओं के बदलते माध्यमों का अध्ययन किया जाता है। एक अच्छे उपन्यास के माध्यम से, पाठक पात्र की भावनाओं में सहायक बनते हैं और उनकी सोच और भावनाओं को समझने का प्रयास करते हैं।

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“ट्र किल अ मॉकिंगबर्ड” जैसे उपन्यास में, हार्पर ली, प्रमुख पात्र, अपने दोस्त जेम् और दिल के साथ अपनी बच्चपन की दिनचर्या और उनकी भावनाओं को बड़े ही रूचिकर तरीके से युक्त करती हैं। यह उपन्यास पात्रों के भावनात्मक विकास को दश्शाता है और हमें समाज में विभिन्न भावनाओं के महत्व को समझाने में मदद करता है।

3. सामाजिक विकासः

सामाजिक विकास उपन्यासों में पात्रों के समाज में उनके रिश्तों, सामाजिक स्थिति, और सामाजिक जीवन के पहलुओं का अध्ययन करता है। यह दिखाता है कि पात्र कैसे अपने समाज में अपनी जगह बनाते हैं और कैसे उनके सामाजिक परिपर्णता का विकास होता है।

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“प्राइड एंड प्रेज्ज़डिस” जैसे उपन्यास में, जेन ऑस्टिन ने प्रमुख पात्र एलिज़ा बेनेट के सामाजिक विकास को दर्शाया है। उनकी सामाजिक परिपर्णता का विकास उनके संवादों, सोच, और उनके समाज में अपने स्थान को लेकर किए गए निर्णयों के माध्यम से होता है। इसके माध्यम से, लेखक समाज के संरचना और पात्रों के योगदान को बताते हैं, जो हमारे आस-पास के समाज के बारे में हमारी समझ को बढ़ाता है।

4. मानसिक विकासः

मानसिक विकास उपन्यासों में पात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और विचारशीलता की प्रक्रिया का अध्ययन करता है। यह दिखाता है कि पात्र कैसे अपने विचारों, मानसिक स्वास्थ्य, और आत्मविश्वास में परिवर्तन करते हैं और कैसे वे अपने आत्मा के साथ संघर्ष करते हैं।

“टौँ किलर माकिंगबर्ड” में, प्रमुख पात्र स्कूट फिंच का मानसिक विकास एक मानसिक बीमारी और उसके परिवार के साथ के संघर्ष के माध्यम से दर्शाया गया है। लेखक इस उपन्यास के माध्यम से हमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझाते हैं और हमें यह दिखाते हैं कि एक व्यक्ति कैसे अपने अंदर के दुखত और खुशियों के साथ लड़ सकता है।

इन चार प्रमुख पहलुओं के माध्यम से, उपन्यासं में पात्रों के विकास का परिचय दिया गया है। यह उपन्यासों को मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को अध्ययन करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाता है और हमें समाज, मानसिकता, और सार्थक जीयन के पहलु के प्रति अधिक समइझने में मदद करता है।

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कुछ उपन्यासों की उदाहरणः

1. “टू किल अ मॉकिंगबर्ड” – हार्पर ली के इस उपन्यास में, पात्र जेमू फिंच और उनके दोस्त दिल और जेम् के साथ उनके बचपन के दिनों की कहानी है, जिसमें उनके भौतिक, भावनात्मक, सामाजिक, और मानसिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

2. “प्रাइड एंड प्रेज्ज़डिस” – जेन ऑस्टिन का यह उपन्यास एलिज्रा बेनेट और मिस्टर डार्सी की कहानी है, जिसमें उनके सामाजिक विकास और उनके संवादों के माध्यम से समाज की विभिन्न पहलुओं को दिखाया गया है।

3. “बेल जर” – सर्कल ड्मॉड के इस उपन्यास में, पात्र प्रारंभ में एक बचे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसके भौतिक विकास का महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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4. “टो किलर मॉकिंगवर्” – हार्पर ली का यह उपन्यास एक मानसिक बीमारी के साथ जूझ रहे पात्र स्कूट फिंच कीकहानी है, जिसमें उनके मानसिक विकास को दर्शाया गया है।

इन उपन्यासों के माध्यम से, हम पात्रों के विकास की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि हमारे अंदर छिपी भावनाओं, सोच, और सामाजिक परिपर्णता का कैसे विकास होता है। इसके अलावा, ये उपन्यास हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करते हैं और हमें व्यक्तिगता और सामाजिक स्तर पर समझदार नागरिक बनाते हैं।

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3- फ्रांसीसी उपन्यास की पृष्ठभूमि बताते हुए बाल्ज़ाक के उपन्यासों में यथार्थवादी दृष्टि को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

होनोरे डी बाल्ज़ाक (Honore de Balzac) फ्रांसीसी साित्य के एक महत्वपूर्ण उपन्यासकार हैं जिन्होंने अपने उपन्यासों में समाज, समाजी वास्तविकता, और मानव जीवन की यथार्थता को व्यक्त किया। उनके उपन्यासों में यथार्थवादी दृष्टि बड़े साहसी तरीके से प्रकट होती है, और वे अपने काम में समाज की विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों के मानवीय गुणों और कमियों को उजागर करते हैं।

बाल्ज़ाक के उपन्यासों की पृष्ठभूमि में समाज का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उनके समय के फ्रांसीसी समाज में विभिन्न वर्गों के लोग अलग-अलग तरीके से जीते थे, और बालज़ाक इस विभिन्नता को अपने उपन्यासों में बहुत विस्तार से छायांकित करते हैं। उनके उपन्यासों में यथार्थवादी दृष्टि के माध्यम से समाज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को सत्यापित किया जाता है।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में यथार्थवादी दृष्टि का पहला पहलु उनके किरोरी चरित्र वर्णन में है। उन्होंने अपने किरोरी चरित्रों को जीवंत और यथार्थ बनाने के लिए कई मानवीय गुण और कमियों को प्रस्तुत किया। उनके प्रमुख किरोरी चरित्र, जैसे कि एजिल, रास्तिगूर, गोर्डियास, और वॉट्रास, समाज़ के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं और उनकी यथार्थता को प्रमोट करते हैं। इन किरोरी चरित्रों के माध्य से बालज़ाक विभिन्न वर्गों के लोगों की जीवनी अनुभवों को दर्शाति हैं और उनके सामाजिक स्थिति को प्रस्तुत करते हैं।

उनके किरोरी घरित्रों के व्यक्तिगत गुणों के माध्यम से वे यथार्थता की ओर प्रवृत्त होते हैं। उनके किरोरी चरित्रों के व्यकि्तिगत गुण उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण और विद्यारधारा को प्रकट करते हैं, और यथार्थता की खोज में उनकी मदद करते हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में समाज की सामाजिक स्थिति और आर्थिक समस्याओं को भी व्यक्त किया गया है। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को विवरण किया है, जैसे कि उद्यमिता, औद्योगिकी, और सामाजिक रूप से स्वाधीनता की समस्याएँ।

ला कॉमेडी ह्यूमेन

1829 में, उन्होंने लेस चौअन्स लिखा , जो उनका पहला उपन्यास था जो उन्होंने अपने नाम से प्रकाशित किया था। यह उनके करियर-परिभाषित कार्य में पहली प्रविष्टि बन जाएगी: पुनर्स्थापन और जुलाई राजशाही अवधि (यानी, लगभग 1815 से 1848 तक) के दौरान फ्रांसीसी जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने वाली अंतर्निहित कहानियों की एक श्रृंखला।

जब उन्होंने अपना अगला उपन्यास, एल वर्डुगो प्रकाशित किया , तो उन्होंने फिर से केवल “होनोरे बाल्ज़ाक” के बजाय एक नया नाम: होनोरे डी बाल्ज़ाक का उपयोग किया। “डी” का उपयोग महान मूल को दर्शाने के लिए किया जाता था, इसलिए समाज के सम्मानित क्षेत्रों में बेहतर ढंग से फिट होने के लिए होनोरे ने इसे अपनाया।

ला कॉमेडी ह्यूमेन को बनाने वाले कई उपन्यासों में , होनोरे ने समग्र रूप से फ्रांसीसी समाज के व्यापक चित्रों और व्यक्तिगत जीवन के छोटे, अंतरंग विवरणों के बीच काम किया। उनके सबसे सफल कार्यों में ला डचेस डी लैंगैस, यूजिनी ग्रैंडेट और पेरे गोरियोट थे । उपन्यासों की लंबाई बहुत अधिक थी, हज़ार पन्नों के महाकाव्य इल्यूजन्स पर्ड्यूज़ से लेकर उपन्यास ला फिले ऑक्स युक्स डी’ओर तक ।

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इस श्रृंखला के उपन्यास अपने यथार्थवाद के लिए उल्लेखनीय थे, खासकर जब उनके पात्रों की बात आती है। ऐसे चरित्रों को लिखने के बजाय जो अच्छे या बुरे के प्रतिमान थे, होनोरे ने लोगों को अधिक यथार्थवादी, सूक्ष्म प्रकाश में चित्रित किया; यहां तक ​​कि उनके छोटे-छोटे किरदार भी अलग-अलग परतों से रंगे हुए थे। उन्होंने समय और स्थान के अपने प्राकृतिक चित्रण के साथ-साथ आख्यानों और जटिल संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए भी ख्याति प्राप्त की।

होनोर की लेखन आदतें किंवदंती का विषय थीं। वह अपनी एकाग्रता और ऊर्जा को बढ़ाने के लिए प्रचुर मात्रा में कॉफी के साथ, प्रतिदिन पंद्रह या सोलह घंटे लिख सकता था। कई उदाहरणों में, वह छोटी-छोटी बारीकियों को भी बेहतर बनाने के प्रति जुनूनी हो गया और अक्सर बदलाव के बाद बदलाव करता रहा। यह आवश्यक रूप से तब नहीं रुका जब किताबें मुद्रकों के पास भेज दी गईं, बल्कि उन्होंने कई मुद्रकों को प्रूफ भेजे जाने के बाद भी उन्हें दोबारा लिखकर और संपादित करके निराश किया।

एक और उदाहरण के रूप में, उनके उपन्यास “पेरे गोरियो” में वे पारिस के एक छोटे से ब्राह्यण पुरुष के जीवन की कहानी का यर्णन करते हैं। इस कहानी में वे समाज के अंधविश्वासों, धर्मिकता के मानवीय पहलुओं और सामाजिक असमानता के सभी पहलुओं को खोजते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे समाज के यथार्थ चित्र को प्रस्तुत करते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन के तथ्यों को उजागर करते हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में समाज के यथार्थ चित्र के अलावा, उन्होंने समाज की व्यक्तिगत और आर्थिक समस्याओं को भी बड़े यथार्थता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन के तथ्यों को बिना किसी शोभा या चित्रण के दर्शाया है, जिससे समाज की सचाई और यथार्थता प्रमोट होती है।

उनके उपन्यास “ला कॉमेडी हुमेन” में वे समाज के विभिशन वर्गों के लोगों के जीवन की कहानी का वर्णन करते हैं, जिनमें उद्यमिता, श्रमिक, और व्यापारी श्रेणियाँ शामिल हैं। इस कहानी में वे समाज की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को बिना किसी रोचकता या भय्यता के प्रस्तुत करते हैं और इससे यथार्थता का महत्वपूर्ण संदेश देते हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में समाज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को खोलकर प्रस्तुत करने के अलावा, वे मानव जीवन के यथार्थता को भी प्रमोट करते हैं। उनके उपन्यासों में मानव जीवन के अस्तित्व के महत्वपूर्ण पहलु को छूने का प्रयास किया जाता है, जैसे कि जीवन के सभी पहलु, चुनौतियों, और संघर्ष।

एक उदाहरण के रूप में, उनका उपन्यास “ला कॉमेडी हयुमेन” एक श्रमिक परिवार के जीवन का वर्णन करता है जो अपने आर्थिक संघर्षों के बावजूद खुश रहता है। इस कहानी में उन्होंने शअ्रमिक परिवार के सदस्यों के जीकन के सभी पहलु, जैसे कि कठिनाइयो, संघर्ष, और सुख को यथार्थता के साथ दिखाया है। इससे ये यह संदेश देते हैं कि मानव जीवन की यथार्थता उसके सभी पहलु में होती है, ऑर आर्थिक समस्याओं के बाव्जूद लोग खुश रह सकते हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में यथार्थवादी दृष्टि का एक अन्य पहलु व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में होता है। वे यथार्थ और व्यक्तिगत दृष्टिकोण के माध्यम से व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मसमर्पण, और समाज सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका देते हैं। उनके उपन्यासों में कई किरोरी चरित्र और कार्यक्षेत्रों के व्यक्तियों की यथार्थ भावनाओं को प्रस्तुत किया गया है, जो आधारभूत मूल्यों के प्रति अपनी संकल्पना में सदैव स्थिर रहते हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यास “गोबसेक” में, के गोबसेक नामक एक व्यापारी के जीवन का वर्णन करते हैं, जो अपने उद्यमिता और आत्मसमर्पण के माध्यम से धन कमाता है। उन्होंने उसकी सफलता के पीछे उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समर्पण की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमोट किया है। इससे यह संदेश मिलता है कि यथार्थ और व्यक्तिगत मूल्य व्यक्तगत सफलता के पीछे महत्वपूर्ण होते हैं।

उनके उपन्यास “ला कॉमेडी ह्युमेन” में भी, वे एक औद्धयोगिक क्षेत्र में काम करने वाले किरोरी चरित्र की कहानी प्रस्तुत करते हैं, जो अपने काम में व्यक्तिगत समर्पण और समाज सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से ये यह संदेश देते हैं कि व्यक्तिगत समर्पण और समाज सेवा मानव जीवन के अभिन्न हिस्से हैं और यथार्थता की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।

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बाल्ज़ाक के उपन्यासों में यथार्थवादी दृषि का अगला पहलु समाजी समर्पण और सेवा के माध्यम से प्रमोट होता है। वे अपने किरोरी चरित्रों के माध्यम से व्यक्तिगत समर्पण के महत्व को दिखाते हैं और यह संदेश देते हैं कि समाज की सेवा और समाज सेवा मानव जीवन के महत्यपूर्ण हिस्से हैं।

उनके उपन्यास “पेरे गोरियो” में, वे पारिस के एक पुराने पादरी के जीवन की कहानी प्रस्तुत करते हैं, जो अपने समाज की सेवा में लगा रहते हैं। उन्होंने पादरी के आदर्श और सेवाभाव को प्रमोट किया है, और यह संदेश दिया है कि सेवा और समाज सेवा मानव जीवन के आदर्श होते हैं और व्यक्तिगत समर्पण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं ।

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इस प्रकार, होनोरे डी वालज़ाक के उपन्यासों में समाज, व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्य, और मानव जीवन की यथार्थता को स्पष्ट दृष्टि से प्रमोट किया जाता है। उनके उपन्यासों में समाज के विभिन्न पहलओं को बिना किसी रोचकता या भव्यता के प्रस्तुत किया जाता है, जिससे समाज की सचाई और यथार्थता प्रमोट होती है।

उनके किरोरी चरित्रों के व्यक्तिगत गुण और कमियों के माध्यम से वे मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलु को छूने का प्रयास करते हैं, और यथार्थता की खोज में उनकी मदद करते हैं। इससे ये समाज की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को सत्यापित करते हैं और मानव जीवन की यथार्थता को प्रमोट करते हैं।

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4- भारतीय उपन्यासों में नवजागरण की अभिव्यक्ति पर विचार कीजिए।

उत्तर –

नवजागरण भारतीय उपन्यासों में एक महत्वपूर्ण और गहरा विषय है, जिसने भारतीय साहित्य को एक नए प्रकार की अभिव्यक्त का स्रोत दिया है। नकजागरण एक ऐसी प्रक्रया है जिसमें समाज, संस्कृति, और आध्यात्मिकता के साथ- साथ मानवीय अनुभवों को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया जाता है। इस निबंध में, हम भारतीय उपन्यासों में नवजागरण की अभिव्यक्ति को विस्तार से जानेंगे और इसके महत्व को समझेगे।

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नवजागरण और भारतीय उपन्यास: नवजागरण का शा्दिक अर्थ होता है “नए जागरूक होना” यो “नया जागरूकता”।

इसका मतलब होता है कि नवजागरण उपन्यासों में नए और अद्वितीय दृष्टिकोण और विचारों का प्रतिष्ठापन करता है। यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवीय प्रक्रिया है जो लेखकों द्वारा उनके उपन्यासों के माध्यम से समझाई जाती है। भारतीय उपन्यासों में नवजागरण की अभिव्यक्ति का आदान-प्रदान मुख्य रूप से 19 वीं और 20 वीं सदी के उपन्यासकारों के द्वारा हुआ।

भारतीय साहित्य और नवजागरणः

भारतीय इतिहास एवं साहित्य में नवजागरण 19वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में प्रारंभ हुआ। यही समय है जब भारतीय भाषाओं के साहित्य में भी नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन का गहरा प्रभाव पड़ा। भारतीय भाषाओं में नवजागरण के अनुकूल नए विषयों को अपनाने, समाज सुधार के विभिन्न आयामों पर लिखने तथा स्वाधीनता संग्राम के नेताओं और घटनाओं पर विवेचन करने की परंपरा चली।

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ब्रिटिश राज की सत्ता का केंद्र कोलकाता अर्थात बंगाल रहा इसलिए अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव और प्रतिरोध में नवजागरण और पुनरुत्थान की शक्तियां सर्वप्रथम वही दिखाई पड़ी। तत्पश्चात् हिंदी, मराठी, गुजराती पश्चिम भारतीय क्षेत्रों एवं तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम के दक्षिणी क्षेत्रों और बांग्ला, असमिया आदि के पूर्वी क्षेत्रों में इन आंदोलनों की गूंज एक साथ सुनाई पड़ी। भारतीय साहित्य पर नवजागरण के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा रहा है-

1- भारतीय नवजागरण एवं राष्ट्रीय चेतनाः

भारत में नवजागरण फॉर्म प्रारंभ राजा राममोहन राय के लेखन से माना जाता है। यह केवल नवीन जीवन पद्धति, नवीन अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था का पक्षधर बनकर ही नहीं बल्कि इसमें राष्ट्रीयता के भावों को भी विकसित करने में सहायता की। इस राष्ट्रीय चेतना के विकास में हिंदी भाषा और साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में, हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी, के अनुसार अपने गौरव की अपनी अस्मिता की खोज होने लगी। लगभग सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यकार पराधीनता से मुक्ति हेतु एवं राष्ट्रीय चेतना विकसित करने के लिए साहित्य रचना करने लगे। भारतीय नवजागरण ने साहित्य को एक नवीन लेखन भूमि प्रदान की।

नवजागरण का आधार वर्तमान स्थितियां और उन स्थितियों में सुधार था, साथ ही वे नए विचारों को अपनाने पर बल दे रहे थे। तत्कालीन साहित्य इन्हीं सुधारो एवं विचारों का व्याख्यान करता है।

2- साहित्य में समाज सुधार और नव जागरणः

भारत में नवजागरण व्यापक समाज सुधार लेकर आया। स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला संघर्ष विदेशी शासन से मुक्ति के साथ-साथ सामाजिक-धार्मिक रूढ़ियों, असमानताओं और पिछड़ेपन से मुक्ति का संग्राम भी बन गया। इन सुधारों की प्रेरणा कुछ तो पश्चिमी विचारों के संपर्क में आने से मिली और कुछ परंपराओं के अध्ययन मनन से।

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नवजागरण मानवतावादी चेतना का भी प्रतीक बनकर उभरा। जहां तक साहित्य की बात है इसका प्रारंभ भारतेंदु युग से माना गया है। इस युग का पूरा साहित्य समाज सुधारों पर आधारित था, जिनमें स्वचेतना का विकास, अंधविश्वासों का खंडन, नवीन शिक्षा पद्धति का विकास, सती प्रथा की समाप्ति, बाल-विवाह का विरोध, विधवा विवाह को मान्यता दिलाना, वैज्ञानिक तर्कसंगत विचारों को मान्यता आदि प्रमुख हैं।

इन सभी विषयों को लेकर भारतीय साहित्य में लेख आने प्रारंभ हो गए। अनेक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्थाएं स्थापित हुई जिनके माध्यम से नवजागरण का संदेश जन-जन तक पहुंचा।

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इसका मुख्य कारण था समाज में हो रहे बदलाव, विच्चारधारा की परिकवर्तन, और भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन की मांग। नवजागरण के अंतर्गत उपन्यासकारों ने समाज के मुद्दे, आध्यात्मिकता, और मानवीय अनुभव को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया और अपने उपन्यासों के माध्यम से इसे जनसामान्य के सामने रखा।

प्रमुख उपन्यासकारों की नवजागरण भारतीय उपन्यास में:

1. रवींद्रनाथ टैगोर: रवींद्रनाथ टैंगोर ने अपने उपन्यासों में नवजागरण की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण योगदान किया। उनका उपन्यास “घरेबाइरे” भारतीय समाज के यिभिन्न पहलुओं को छुने का प्रयास करता है, और विद्या, धर्म, और समाज के रूप में नवजागरण की महत्वपूर्ण प्रासंगिकता प्रदान करता है।

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2. रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा, रवींद्रनाथ ठाकुर के उपन्यास भी नवजागरण की अभिव्यक्ति के रूप में महत्वपूर्ण हैं। उनका उपन्यास “चारुलता” और “घरेबाइरे” ने महिलाओं के समाज में स्थान के महत्वपूर्ण मुद्ध को उजागर किया हैं।

3. प्रेमचंद: प्रेमथंद भारतीय साहित्य के महान उपन्यासकार हैं और उन्होंने अपने उपन्यासों में समाज के सभी पहलुओं को छूने का प्रयास किया है। उनके उपन्यास “गोदान” ने गरीयी, जाति व्यवस्था, और समाज में विभाजन के मुद्दे पर चर्चा की है और नवजागरण के अद्वितीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। उनके उपन्यास “निर्गुण्ठ” और “गबन”में व्यक्त नवजागरण के अद्वितीय दृष्टिकोण को दिखाया गया है।

4. कमला दास: कमला दास भारतीय साहित्य की प्रमुख महिला उपन्यासकार थीं और उन्होंने अपने उपन्यासों में महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता के मुदेपर बात की है। उनके उपन्यास “वन्दनमुकी” और “दिगम्बर” में महिलाओं के जीवन के अलग-अलग पहतलुओं को प्रस्तुत किया गया है और नवजागरण की अभिव्यक्ति को समझाया गया है।

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नवजागरण के महत्वपूर्ण पहलुः

1. समाज के मुद्दे: नवजागरण के उपन्यासों में समाज के मुदों को प्रमुखता दी जाती है। उपन्यासकार समाज के सभी पहलुओं को छुने का प्रयास करते हैं, जैसे कि जाति व्यवस्था, गरीबी, शिक्षा, और आर्थिक असमानता।

2. धर्म और आध्यार्मिकता: भारतीय उपन्यासों में थर्म और आध्यात्मिकता के मुद्दे भी महत्वपूर्ण होते हैं। उपन्यासकार धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को नए और अद्रितीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं और धार्मिक तथा आध्यात्मिक समृद्धि की ओर प्रोत्साहित करते हैं।

3. महिला मुद्दे: नवजागरण के उपन्यासों में महिला मुदे भी महत्वपूर्ण होते हैं। उपन्यासकार महिलाओं के समाज में समानता और स्वतंत्रता के मुदे पर चर्चा करते हैं और महिलाओं के प्रति समाज की दृष्िकोण में परिव्तन की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

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4, व्यक्तिगत अनुभव: नवजागरण के उपन्यासों में व्यक्तिगत अनुभव और भावनाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उपन्यासकार अपने पात्रों के व्यक्तिगत अनुभवों को प्रस्तुत करके पाठकों के साथ सहभागिता का मार्ग प्रशस्त करते हैं और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से जीवन की सच्ाई को प्रकट करते हैं।

5. साहित्यिक उपन्यास; नवजागरण के उपन्यास भारतीय साहित्य के साथ ही साहित्यिक उपन्यास के भी रूप में महत्वपूर्ण हैं। उनमें व्यक्तिगत शैली, भाषा का सुंदर प्रयोग, और कथा का संरचना महत्वपूर्ण होते हैं, जो पाठकों को खींचते हैं और उन्हें अपनी कथा के साथ जु़ने में मदद करसते हैं।

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नवजागरण के उदाहरण:

1. “रचना संग्रह (सुंदर रामास्वामी): इस उपन्यास में रचना, एक महिला पात्र , अपने जीवन के माध्यम से महिलाओं के समाज में समानता की ओर कदम बढ़ाती है। उपन्यासकार ने महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता के मुद्दे पर गहरा विचार किया है और नवजागरण की अभिव्यक्ति को समझाया है।

2. “गोदान” (प्रेमचंद): इस उपन्यास में प्रेमचंद ने गरीबी, जाति व्यवस्था, और आर्थिक असमानता के मुद्धे पर च्ा की है। वे समाज के सभी पहलुओं को छूने का प्रयास करते हैं और नवजागरण की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करते हैं।

नवजागरण के माध्यम से उपन्यासकार और पाठकों को समाज के मुद्दों पर गहरा विचार करने का अवसर मिलता है और समाज में परिवर्तन की मांग करते हैं। यह उन्हें अपने समय के समाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक परिवर्तन के साथ मिलकर उनके आसपास के दुनिया को नए और सुधारित दृष्टिकोण से देखने में मदद करता है।

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इस प्रकार, नवजागरण भारतीय उपन्यासों में एक महत्वपूर्ण और गहरा विषय है जो साहित्य के माध्यम से समाज को सुधारने की मांग करता हैं।

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5- हिंदी उपन्यासों में किसान-मजदूर और निम्नवर्गीय समाज की अभिव्यक्ति पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर

हिदी उपन्यासों में किसान-मजदूर और निम्नवर्गीय समाज की अभिव्यक्ति पर प्रकाश डालने का कार्य लक्षणीय रूप से उपन्यासकारों द्वारा किया गया है। यह उनके कथाओं में इन वर्गों के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को दिखाने का माध्यम है और समाज की वास्तविकता को प्रकट करने का प्रयास है।

किसान-मजदूर या मध्यवर्गीय परिवार में प्यार करना बहुत बड़ा अपराध है। लड़का-लड़की के प्यार करने से मानो उनकी घर की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है। बिना विवाह अगर लड़की गर्भवती हो गई है, फिर तो वह परिवार या समाज के नजर में संसार की सबसे घटिया, नीच स्त्री बन जाती है। ‘धरती धन न अपना’ उपन्यास में जगदीश चंद्र जी ने इस मुद्दे को दर्शाया है।

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जस्सो अपनी बेटी ज्ञानो के अविवाहित गर्भवती होने पर जहर देकर उसे मार देती है-‘‘ तीन दिन के बाद मंगू ने अपनी माँ को संखिया की डलिया ला दी। जस्सो उस पुड़िया को हाथ में पकड़े बहुत देर तक बैठी रोती रही। कई बार उसके जी में आया कि उस पुड़िया को नाली में फेंक दे, लेकिन जब सोचती कि सात-आठ महीने बाद उसकी कुँवारी बेटी के बच्चा जन्म लेगा, तो वह काँप जाती है।”[3]

झूठी मान-मर्यादा के चलते किसी के जीवन को समाप्त कर देना भी समाज में व्याप्त कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। ज्ञानो और काली के प्रेम संबंध के बारे में पूरे गाँवों को पता था। दोनों की शायद गलती यही थी कि यह सब समाज के इजाजत के बिना हुआ था। यही काम अगर समाज में ढिंढोरा पीट कर लोगों को भोज देकर रीति-नीति से हुआ होता, तो धन्नो के गर्भवती होने पर उसे बधाइयाँ मिल रही होती।

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राधा कृष्ण के प्रेम की पूजा तो सब लोग करते हैं, लेकिन जब व्यवहारिक बात आती है, तो पूरा समाज उसका विरोधी बन जाता है। प्रेम अपने आप में एक क्रांति है, क्योंकि सारे बंधनों को सारे दायरों को लाँघकर यह आगे बढ़ता है।

प्रेम को अगर सामाजिक प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया जाए, तो समाज में व्याप्त अनेक समस्याओं का अंत अपने आप हो जाएगा। वैसे भी किसान-मजदूर परिवार में लड़की की शादी किसी अच्छे खानदान में नहीं हो पाती है और दहेज़ प्रथा इसमें एक बहुत बड़ी समस्या बन कर खड़ी है।

किसान परिवार में लड़कियों को ज्यादा पढ़ने-लिखने नहीं दिया जाता। बचपन में ही कड़ी अनुशासन में रखा जाता है ताकि वह समाज के बने बनाए उस दायरे से बाहर न जा सके। अंतिम लक्ष्य भी यह होता है कि किसी तरह लड़की को घर से विदा कर दे तो माँ-बाप मुक्त हो जाए। शिबू की छोटी लड़की कलावती एक दिन स्कूल से घर देर रात तक लौटती है, तो गाँव में तरह-तरह की अफवाहें उड़ने लगती हैं।

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तो मंदिर का पुजारी कहता है-“हमें तो पहले से ही पता था कि एक दिन यह होकर रहेगा। और पढ़ाओ मुर्गियों को, जैसे पढ़-लिखकर बैरिस्टर बनेंगी।”[4] लोगों के और पुजारी के इस कुत्सित मानसिकता से प्रभावित होकर लड़की की पढ़ाई-लिखाई बंद करवा दी जाती है। यहाँ महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जिस समाज में महिलाओं के पढ़ने-लिखने पर पाबंदी है, वह समाज कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।

लड़की अकेले कहीं जा नहीं सकती, रात को घर से नहीं निकल सकती, तो फिर कैसी आजादी?महिला तो आज भी गुलाम ही है। पुरुष के सहयोग बिना अगर वह दो कदम आगे भी नहीं चल सकती तो फिर यह आजादी झूठी है।

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कलावती की पढ़ाई छूट जाने के बाद वह घर में ही रह जाती है और एक दिन जंगल जाते समय उसे अकेली पाकर वन विभाग का सिपाही बलात्कार करने की कोशिश करता है। हम एक ऐसे समाज का गठन कर चुके हैं, जहाँ माँ, बेटी, बहन, बच्ची या बूढी कोई भी महिला सुरक्षित नहीं है। हमेशा एक डर के साये मे जी रहे हैं।

किसानी समाज में स्त्री को दूसरे दर्जे में रखा जाता है। यह पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री को अनेक प्रकार के अधिकारों से वंचित रखने जैसा है। स्त्री को एक भोग-विलास की वस्तु व बच्चा पैदा करने की मशीन के तरह देखा गया है। यही कारण है कि महिलाओं के साथ आए दिन बलात्कार होते हैं, एसिड अटैक होते हैं। ‘डूब’उपन्यास में कैलाश गोराबाई को अपने प्रेम जाल में फाँसने की कोशिश में असफल होने पर गोराबाई का बलात्कार करवाता है।

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इन हरकतों से गोराबाई डर से चुप रह कर सोचती है, “कभी हाथ उठ गया कैलाश महाराज पर, तो अपने ही बचुआ के बाप की हत्या का पाप चढ़ेगा सिर। फिर बिटुआ हमें माफ करेगा भला! हमरी चिता को अग्नि देगा भला!” बलात्कार ज्यादातर शोषित-पीड़ित, किसान-मजदूर परिवार की लड़कियों के साथ ही होता है।

उच्च वर्ग इन लोगों के साथ अपनी पशु संपत्ति की तरह व्यवहार करता है। बलात्कार की खबर न फैले, इसलिए वे लोग पुलिस में खबर भी नहीं करते, खबर करें तो केस लड़ने के लिए पैसा नहीं है। खबर फैल गई तो लड़की की शादी में अड़चन आदि कई कारण हैं, जिसके चलते वे ऐसी हरकतों को भी चुपचाप सह जाते हैं ।

इस लेख में, हम कुछ महत्वपूर्ण हिंदी उपन्यासों के माध्यम से देखेंगे कि किस प्रकार से किसान-मजदूर और निम्नवर्गीय समाज की अभिव्यक्ति की गई है।

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1. प्रेमचंद की गोदान’: गोदान’ प्रेमचंद का एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो किसान-मजटूर समुदाय के जीयन को अत्यंत विविधता के साथ प्रस्तुत करता है। उपन्यास के प्रमुख पात्र होने वाले होनहार और धनी जनरल मूंजी, और उसके विरोधी गोव के निवासी धनिया की यह कहानी है। उपन्यास में किसानों की दरिद्रता, उनकी भूमि की अधिग्रहण के लिए लड़ाई, अर उनके सामाजिक स्थान की कमी को बड़े ही संवेदनशीलता से चित्रित किया गया हैं l

2. मुंशी प्रेमचंद की निर्मला: ‘नर्मला’ एक और प्रेमचंद की कासिक उपन्यास है जिसमें उन्होंने समाज में निम्नवर्गीयों की स्थिति को जताया है। पात्रों के माध्यम से यह दरिद्रता, समाज में उनके प्रति भेदभाव, और उनके समाज में जीवन की चुनौतियों को दशति हैं। ‘निर्मला’ उनकी कल्पना में एक सामाजिक सुधार की आवश्यकता को प्रकट करता है।

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3. यशपाल की ‘जहापानाह’: ‘जहापानाह’ यशपाल का एक और महत्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें उन्होंने किसान-मजदूर समुदाय के साथीपन और साहस को प्रमुख बिना पात्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास में व्यक्तिगत और सामाजिक संधर्ष की गहराईयों में जाने का प्रयास किया गया है, और किसान-मजदूरों के जीवन की कठिनाइयों को उजागर किया गया है।

4. राजेंद्र यादव की ‘अमुता प्रेमा’: राजेंद्र यादव की ‘अमृता प्रेमा’ एक उपन्यास है जो निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन को सुंदरता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। इसमें दिखाया गया है कि निम्नवर्गीयों का जीयन भी उनके दरिद्रता के बावजूद कितना महत्वपूर्ण हो सकता है और उनके जीवन में कैसे संघर्ष किया जाता है।

5, शरत चंद्र चट्दोपाध्याय की ‘देवदास: ‘देवदास’ एक और हिंदी उपन्यास है जो निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन को एक दुखद और संवेदनशील दृष्टिकोण से दिखाता है। पात्र देवदास की गवाही में हमें उनके जीवन की कठिनाइयों, सामाजिक दबाों, और उनकी भविष्य की उम्मीद के बारे में विचार करने का अवसर मिलता है।

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6. रवींद्रनाथ टैंगोर की ‘गोरा: ‘गोरा’ रवींद्रनाथ टैगोर का एक प्रमुख उपन्यास है, जिसमें समाज के निम्नवर्गीयों के जीवन को एक महान और दर्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। गोरा के मुख्य पात्र गोरा नामक व्यक्ति के माध्यम से हमें समाज में जातिवाद और दरिद्रता के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संदेश मिलता है। IGNOU MHD solved assignment

7. चंद्रकांता के ‘हरिचंद्र : हरिवंद्र वंद्रकांता के उपन्यास का एक हिस्सा है जो निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन को रोमांचक और विविधता से प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में किसानों के जीवन की समस्याओं को दर्शने के साथ ही उनके संघर्ष और समाज में उनकी स्थिति के बारे में भी विचार किया गया है।

৪. कविता की मैने पाया निम्नता को’: यह कविता किसान-मजदूर समुदाय के दरिद्रता और संघर्ष को बयान करती है। कवि ने आपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त किया है और निम्नवर्गीयों के जीवन की कठिनाइयों को सुंदरता से चित्रित किया है।

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9. मुंशी प्रेमचंद की गबन : ‘गबन मुंशी प्रेमचंद का और एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें वह निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन की समस्याओं को दशति हैं। इसमें प्रमुख पात्र गबन की कहानी है, जिनके साथ उनकी समस्याओं को दिखाने के माध्यम से उपन्यासकार ने निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को छूने का प्रयास किया है।

10. अरविन्द आदिगा की ‘दुर्गा: ‘दुर्गा’ अरविन्द आदिगा का एक उपन्यास है जो किसान-मजदूर समुदाय के जीवन को दर्शाता है। इसमें प्रमुख पात्र दुर्गा के माध्यम से हमें उनके जीवन की कठिनाइयों, सामाजिक दबावों, और उनके सपनों के बारे में जानकारी मिलती है।

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इन उपन्यासों के माध्यम से हम देखते हैं कि कैसे विभिन्न उपन्यासकारों ने किसान-मजदूर और निम्नवर्गीय समुदाय के जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रकट किया है। इन उपन्यासों में सामाजिक न्याय, समाज में जातिवाद के खिलाफ लड़ाई, और दरिद्रता के साथ जीवन की वास्तविकता को प्रकट करने का प्रयास किया गया है। IGNOU MHD solved assignment

ये उपन्यास समाज को उनकी अवस्था को समझने और सुधारने के लिए प्रेरित करते हैं और हमें निम्नवर्गीय समुदाय के लोगों के अनुभरवों का सम्मान करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को याद दिलाते हैं।

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6- (क) उपन्यास और आत्मकथा

उत्तर –

उपन्यास और आत्मकथा, दोनों ही साहित्यिक रूपों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो किसी व्यक्ति की कहानी को समर्पित करने का तरीका हो सकते हैं। ये दोनों अपने अद्वितीय चरमों पर होतेहै, लेकिन उनके माध्यम से किसी व्यक्ति की जीवन की रूपरेखा को प्रस्तुत करने के तरीके विभिन्न होते हैं।

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उपन्यास, एक उपन्यासकार की कल्पना की गई दुनिया का रूप लेता है। यह कहानी को लबे समय के लिए विकसित करता है और चरणों में प्रस्तुत करता है। उपन्यास अक्सर व्यक्ति के जीवन की उन घटनाओं को शामिल करता है जो उसकी प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, और सफलता की कहानी को संवादित करते हैं। यह व्यक्ति की भावनाओं, विवारों, और व्यक्तिगत अनुभवों को गहराई से छूने का माध्यम बन सकता है, और पाठकों को एक नए दुनिया में ले जाने में मदद कर सकता है। IGNOU MHD solved assignment

उपन्यास गद्यलेखन की एक विधा है।उपन्यास का अर्थ होता है-सामने रखना।अर्थात उपन्यास वह विधा है जिसमें मानव जीवन के किसी तत्व को उक्ति उक्त रूप में समन्वित कर रखा जाये।उपन्यास को मानव जीवन का प्रतिबिंब भी कह सकते है।

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वस्तुतः उपन्यास में एक विस्तृत कथा होती है जो अपने भीतर अन्य गौण कथाएं समेटे रहती है। इस कथा के भीतर समाज और व्यक्ति की विविध अनुभूतियां और संवेदनाएं, अनेक प्रकार के दृश्य और घटनाएं और बहुत प्रकार के चरित्र हो सकते हैं और यह कथा विभिन्न शैलियों में कही जा सकती है।

आतमकथा, दूसरी ओर, किसी व्यक्ति द्वारा उनके खुद के जीवन की कहानी का एक स्वच्छंद स्वरूप है। यह व्यतिगत अनुभयों, भावनाओं, और सोच को व्यक्त करने का माध्यम होता है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के उच्च और निचे समय के पलों को साइझा करता है। आत्मकथा व्यक्ति के सचाई और स्वयं के आअद्वितीय दृष्टिकोण को प्रकट करने का माध्यम बनती है।

आत्मकथा विधा के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न पाश्चात्य एवं भारतीय कोषों तथा विद्वानों ने अपनी – अपनी परिभाषा प्रस्तुत की है । “ आत्मकथा अंग्रेजी के ‘ Auto-Biography ’ ( ऑटोबायोग्राफी ) का हिन्दी रूपान्तरण है। यहाँ Auto का अर्थ ‘ आत्मा ’ और ‘ Biography ’ का अर्थ ‘ जीवनी ’ है। इस प्रकार से आत्मकथा का अर्थ हुआ ‘ सम्बद्ध व्यक्ति द्वारा अपने जीवन की कहानी स्वयं लिखी जाना। ’ अथवा यह भी कह सकते है कि ‘ स्व ’ के जीवन पर स्वरचित कथा ही आत्मकथा होती है। ”

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  1. आधुनिक हिन्दी शब्दकोश में “ आत्मकथा शब्द ‘ स्त्री लिंगी ’ संज्ञा में दिया गया है , तथा उसका अर्थ ‘ स्वयं ’ द्वारा लिया गया जीवनचरित्र , जीवनी , आपबीती , आत्मकहानी ”
  2. आदि विकल्प स्वरूप लिया गया है। नूतन पर्यायवाची एवं विपर्याय कोश में आत्मकथा का अर्थ “ आत्मचरित्र , आत्मवृत्त , आत्मवृत्तांत , आप – बीती , जीवनी , स्वकथा ” आदि के रूप में लिया गया है ।

उपन्यास और आत्मकथा के बीच कई मुख्य अंतर होते हैं। पहला अंतर यह है कि उपन्यास एक काल्पनिक कहानी होती है, जबकि आत्मकथा एक वास्तयिक जीवन की कहानी होती है। टूसरा अंतर यह है कि उपन्यास के लेखक का उद्देश्य अक्सर मनोरंजन और उपन्यासकार की कल्पना को प्रस्तुत करना होता है, जबकि आत्मकथा के लेखक का उद्देश्य अपने जीवन के अहम घटनाओं और सिख सिखाना होता है। IGNOU MHD solved assignment

उपन्यास और आत्मकथा का एक और मुख्य अंतर यह है कि उपन्यास अक्सर एक व्यक्ि के जीवन के कुछ हिस्सों को बड़ी तरह से रोमांचक बनाता है, जबकि आत्मकथा व्यक्तिगत अनुभवों और जीवन के अधिक न्यायिक हिस्सों को ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है।

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समापकरण रूप में, उपन्यास और आत्मकथा दोनों साहित्य के महत्वपूर्ण और अद्वितीय रूप हैँ, जो व्यक्ति की कहानी को साझा करने के विभिन्न तरीकों में मदद करते हैं। उपन्यास कल्पनाशीलता और मनोरंजन का माध्यम हो सकता है, जबकि आतमकथा व्यक्तिगत सत्यता और अद्वितीयता का प्रतीक होती है।

ये दोनों साहित्य के साथ व्यक्ति के जीवन के अहम पहलुओं को अदृश्य से दिखाने में मदद करते हैं, जिससे हम समाज में अधिक समझदार और जागरूक बन सकते हैं।

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(ख) आधुनिकतावाद – अस्तित्ववाद

उत्तर –

आधुनिकतावाद और अस्तित्ववाद दो ऐसे दृष्टिकोण हैं जो मानव समाज के विकास और विचार के प्रति भिन्न दृष्टिकोणों को प्रकट करते हैं। आधुनिकतावाद समृद्धि, तकनीकी प्रगति, और वैज्ञानिक अनुसंधान को महत्व देता है, जबकि अस्तित्ववाद मानव समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को महत्व देता है।

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आधुनिकतावाद का अर्थ हैं ‘आधुनिक’ या ‘नवाचारी’ होना। इसे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और अध्यात्मिक सुधार की ओर प्रवृत्त करने वाले दरवारी दृष्टिकोण के रूप में भी देखा जा सकता है। आधुनिकतावाद के प्रतिनिधि व्यक्त्व जैसे कि विलियम शेक्सपियर, एल्बर्ट आइंस्टीन, और स्टीव जॉब्स के जैसे महान व्यक्तित्व विशेष ध्यान में रखते हैं, जिन्होंने अपने विचारों और काम में नवाचार और प्रणगति को प्रमोट किया।

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विरद्धता में, अस्तित्ववाद समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पक्ष में है। इसे परंपरा, धर्म, और समाज के संरक्षण के प्रति जोर दिया जाता है। अस्तित्ववाद के प्रतिनिधि व्यक्तित्व जैसे कि महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, और स्वामी वियेकानंद के जैसे महात्मा विचारक और धार्मिक नेता इस परंपरा के पक्ष में थे। आधुनिकतावाद और अस्तितववाद के बीच अद्वितीय भिन्नताएँ हैं।

पढ़ने के अनुसार, मानव समृद्धि केंद्रित होनी चाहिए, जबकि दूसरे के अनुसार, मानव समृद्धि केंद्रित होनी चाहिए। आधुनिकतावाद मानव समाज के प्रगति और सफलता के माध्यम के रूप में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है, जबकि अस्तित्ययाद मानव समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की रक्षा करता है।

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आधुनिकतावाद का प्रमुख लक्ष्य है मानव समृद्धि के लिए सबसे बेहतर तकनीकी समाधान और अद्वितीय सोचने के साथ समृद्धि और सफलता की प्रासिहै। इसमें तकनीकी नयाचारों, जैसे कि ईटरनेट, ऑटोमेशन, वायोटेक्नोलॉजी, और अंतरिक्ष अनुसंधान का बड़ा योगदान है।

अस्तित्ववाद का मूल मानना है कि मानव समाज की सफलता और सुख केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पालन करने से होती है। यह विश्वास करता है कि मानव समाज को अपनी परंपराओं और धार्मिक तत्वों की सख्त पालना चाहिए, और यही समृद्धि का मार्ग है।

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आधुनिकतावाद और अस्तित्ववाद के बीच की व्यक्तिगत, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों की वजह से ये विचार अकेले विमर्श करने के लिए लायक हैं। दोनों के पक्षों के बीच अक्सर विवाद होते हैं, लेकिन इन विवादों से ही समृद्धि और सोच में सुधार होता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि हम दोनों के पक्षों को समझें और उनके दृष्टिकोणों को सहयोग करने के लिए प्रयासर्थ रखें, ताकि हम मानव समाज के विकास में सफल हो सके।

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(ग) अमरीकी उपन्यास

उत्तर –

अमरीकी साहित्य एक अत्यधिक विविधतावादी क्षेत्र है जो विश्व साहित्य के माध्यम से मानवता के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता है। अमरीकी उपन्यास इस विविधतावाद का प्रतीक है और विभिन्न लेखकों द्वारा रचित की जाने वाली गढ़ी कहानियों के माध्यम से यह व्यक्त होता है। इस लेख में, हम अमरीकी उपन्यास के महत्व को और उसकी मुख्य विशेषताओं पर विचार करेंगे।

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अमरीकी उपन्यास का इतिहास बहत प्राचीन है, और यह नाटिव अमेरिकन, यूरोपीय, और अफ्रीकी आदि से आए लोगों की भाषा, संस्कृति, और विचारों का मिश्रण है। पहले के युग में, लेखकों ने अमेरिकी जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया, जैसे कि मानवीय संघर्ष, धर्म स्वतंत्रता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता। IGNOU MHD solved assignment

19वीं शताब्दी में, एडगर एलन पो और नाथनियल हॉँ्थॉर्न जैसे लेखकों ने अपनी रचनाओं में आलोचना का माध्यम बनाया और मानवता के अंधविश्वास और अंतरात्मा के अन्धकार को खोलकर प्रस्तुूत कि्या। मार्क द्वेन का “हकलदेरी फिन अमरीकी उपन्यास के उदाहरण में से एक है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मजाकियता का सफल मिश्रण प्रस्तुत करता है।

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20 वीं शताब्दी में, फ्रांसीस स्कॉट फिटजेराल्ड की “महाकवि गैट्सबी” जैसी उपन्यासे आर्यीं, जो व्यक्तिगत सपनों, समृद्धि, और असफलता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इसके बाद, तकनीकी प्रगति, राजनीति, और सामाजिक परिवर्तन के दौरान, लेखकों ने समाज की बदलती दिशाओं को पकड़ने के लिए उपन्यास का उपयोग किया। इसमें आर्थिक असमानता, जातिवाद, और पारंपरिक विचारधाराओं के प्रतिष्ठापन के मुहे शामिल हैं।

अमरीकी उपन्यास ने समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से छूने का प्रयास किया है, और इसका परिणामस्वरूप, यह एक महत्वपूर्ण साहित्यिक साधना है जो मानवता के मुद्ों को उजागर करता है। यह उपन्यासों के माध्यम से समाज को सोचने और विचार करने का मौका प्रदान करता है और व्यक्तिगत और सामाजिक परिपेक्ष्य से दुनिया को देखने की क्षमता प्रदान करता है।

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इस तरह, अमरीकी उपन्यास साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह लेखकों के माध्यम से मानवीय अनुभव को व्यक्त करने का माध्यम है। यह उपन्यासों के माध्यम से विचारशीलता, समझ, और बदलते समाज के प्रति हमारी दृष्टिकोण को विस्तारित करता है और हमें साहित्य की गहराईयों में ड़ुबने का अवसर प्रदान करता है। IGNOU MHD solved assignment

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(घ) भारतीय उपन्यास में इतिहास और मिथक

उत्तर –

भारतीय साहित्य का अग्रणी भाग, उपन्यास, भारतीय समाज, इतिहास, और मिथक को जीवंत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय उपन्यासों में इतिहास और मिथ्क का मिलन एक रिच और प्रभावशाली लेरखन परंपरा का हिस्सा बन गया है। IGNOU MHD solved assignment

भारतीय उपन्यासों में इतिहास का महत्वपूर्ण स्थान है। कई प्रमुख उपन्यासकारों ने भारतीय इतिहास के विभिन्न प्रकार के पहलुओं को अपनी कहानियों में उजागर किया है। उन्होंने विशेषकर ऐतिहासिक घटनाओं, युगों, और राजा-रानियों के जीवन के संदर्भ में उपन्यासों का निर्माण किया है।

उपन्यासकारों ने विभिन्न कालों के समाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक परिपेक्ष्य में इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं को बड़े रूप से जाँचा है। वे इतिहास को अपनी कहानियों के माध्यम से आज के पाठकों के लिए जीवंत अर सुखद बनाते हैं।

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उपन्यासों में मिथकों का महत्वपूर्ण योगदान भी होता है। मिथक भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह उपन्यासकारों को अनगिनत कथाओं और पौराणिक कहानियों का उपयोग करने का अवसर प्रदान करता है। यह मिथकों के माध्यम से उन्हें कहानी के माध्यम से अधिक प्रासंगिक बनाता है और उपन्यास की कथा को आगामी पीढियों तक पहुंचाने में मदद करता है। IGNOU MHD solved assignment

एक उपन्यासकार का उदाहरण लें, जैसे कि चित्रपुर्ण सिंह, जिन्होंने अपनी प्रमुख उपन्यास “शरीर के अंदर” में भारतीय इतिहास और मिथक को पजबूती से जोड़ा है। इस कहानी में, ये अपने प्रमुख पात्र के माध्यम से भारतीय समाज के अद्वितीय पहलुओं को छूने का प्रयास करते हैं, और पिथकों का बड़ा हिस्सा उनकी कहानी की प्लॉट और पात्रों के स्वभाव में होता है। इससे पाठकों को इतिहास और मिथक के महत्वपूर्ण संदर्भों को समझने में मदद मिलती है, और उन्हें भारतीय समाज के विकास में हुए गतिविधियों के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है।

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इस तरह, भारतीय उपन्यासों में इतिहास और मिथक का मिलन एक प्रासंगिक और विशेष रूप से योगदान करता है। यह पन्यासकारों को न केवल कथाओं की रवना में मदद करता है, बल्कि पाठकों को भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति अधिक जागरूक बनाने में भी मदद करता है।

इसके फलस्वरूप, भारतीय उपन्यास साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनते हैं जो इतिहास और मिथक के साथ एक व्यापक और गहरे धाराओं का प्रस्तुतन करते हैं, और वाचकों को सोचने और समझने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। IGNOU MHD solved assignment

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(ভ) प्रेमचंद के उपन्यास

उत्तर –

प्रेमचंद भारतीय साहित्य के एक महान और प्रमुख कथाकार और उपन्यासकार थे। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांय में हुआ था। प्रेमचंद के उपन्यासों ने भारतीय साहित्य को एक नया दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके उपन्यास भारतीय समाज की समस्याओं, सामाजिक आपत्तियों और व्यक्तिगत जीवन की गहराइ्यों को प्रकट करते हैं।

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प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में शुमार किया जाता है। प्रेमचंद की रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास में एक नई परंपरा की शुरुआत की जिसने आने वाली पीढ़ियों के साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया। प्रेमचंद ने साहित्य में यथार्थवाद की नींव रखी। प्रेमचंद की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।

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प्रेमधंद के उपन्यासों में ‘गोदान’, ‘निर्गुण्ठ’, गबन’, ‘करमभूमि’, “रंगभूमि’, ‘इदगाह’ और ‘काफाना’ जैसे कई प्रमुख उपन्यास शामिल हैं। गोदान’ प्रेमचंद का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है और यह उनके उपन्यास का एक महत्वपूर्ण कृति है। इस कथा में एक गरीब किसान की कहानी है, जिसकी जीवन यात्रा धर्म, समाज, और प्रेम की तलाश में होती है। उपन्यास गोदान का संदेश यह है कि मानवीय भावनाओं और कर्मों का महत्व सबसे आधिक होता है।

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“निर्गुण्ठ’ एक अन्य महत्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें समाज की तबादला और प्रेम की अनगिनत रूपों को परिचय किया गया है। “गबन’ कहानी एक साधू के और उसके अनुयायियों के बीच होती है, जिसमें धार्मिंक दलित समुदाय के अधिकारों की समर्थन में एक साधू की भूमिका होती है। यह उपन्यास धर्म, राजनीति और समाज के मुद्दों को प्रकट करता है। ‘कर्मभूमि’ और रंगभूमि’ उपन्यास भारतीय समाज की तबादला और जनजाति व्यवस्था की चुनौतियों को उजागर करते हैं।

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‘इदगाह’ एक छोटी सी कथा है जिसमें एक मासूम बचे की संधर्षपूर्ण जीवन यात्रा का वर्णन होता है, जिसमें वह अपनी जरूरतों के लिए बापू के साथ बड़ी संघर्ष करता है।

‘कफन’ एक द्ःखद कहानी है जिसमें गरीबी और भूख के कारण एक छोटे से लड़के की मौत का वर्णन होता है, जिसके बाद उसके पिता उसके शरीर को कफन के लिए जूतने की कोशिश करते हैं।

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प्रेमचंद के उपन्यास सामाजिक समस्याओं, व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं और मानवीय भावनाओं को गहराई से छूने का प्रयास करतेहैं। उनकी रवनाएँ भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से मानी जाती हैं और उनका काम आज भी पढने और समझने में महत्वपूर्ण है।

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प्रेमचंद के उपन्यास न केवल व्यक्तिगत जीवन का परिचय करते हैं, बल्कि समाज की विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं और हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। इनके उपन्यासों में हमें समाज के दुख-दर्द को समझने का मौका मिलता है और हमें उन समस्याओं का समाधान ढूँढने के लिए प्रेरित करते हैं।

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