IGNOU MHD 06 Free Solved Assignment 2024

IGNOU MHD 06 Free Solved Assignment 2024 (For Jan and Dec 2024)

MHD 06 (हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास)

सूचना  

MHD 06 free solved assignment मैं आप सभी प्रश्नों  का उत्तर पाएंगे, पर आप सभी लोगों को उत्तर की पूरी नकल नही उतरना है, क्यूँ की इससे काफी लोगों के उत्तर एक साथ मिल जाएगी। कृपया उत्तर मैं कुछ अपने निजी शब्दों का प्रयोग करें। अगर किसी प्रश्न का उत्तर Update नही किया गया है, तो कृपया कुछ समय के उपरांत आकर फिर से Check करें। अगर आपको कुछ भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है, About Us पेज मैं जाकर हमें  Contact जरूर करें। धन्यवाद 

MHD 06 Free solved assignment (Hindisikhya) :-

mhd 6

1. आदिकालीन साहित्य की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

उत्तर :

किसी भी युग  के साहित्य को समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि को जानना अति आवश्यक होता है।  आदिकाल के नामकरण पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसे समय सीमा के आधार पर आदि काल और प्रवृत्तियों के आधार पर वीरगाथा का नाम आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा दिया गया। 

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा इसे आदिकाल नाम दिया गया और यही नाम विद्वानों ने सर्वमान्य किया।  इस युग के साहित्य में साहित्य के विविध रूपों का संयोजन होता है। आदिकाल साहित्य का वह पहला काल है, जहां से हिंदी साहित्य की शुरुआत होती है।

आदिकाल की राजनीतिक पृष्ठभूमिः 7वीं-8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक के राजनीतिक घटना चक्र ने हिंदी साहित्य को भाषा और भाव दोनों ही दृष्टियों से प्रभावित किया। राजनीतिक दृष्टि से यह युग अराजकता और असंतुलन का युग है। सम्राट हर्षवर्धन ने सन 606 ई. में सिंहासन संभाला और अपनी योग्यता से अपने विरोधियों को वश में कर लिया। उसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया और उत्तर भारत के अधिकतर क्षेत्रों को एक सूत्र में बांधने में सफल हुए।

हर्षवर्धन के शासनकाल में ही चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था और उसने उस समय के भारत के धर्म और समाज के व्यवस्थित होने का उल्लेख किया था। 647 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात उत्तर भारत का साम्राज्य एक सूत्र ना रह सका और छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया। विभिन्न राज्यों के राजा सत्ता की लालसा में एक दूसरे से युद्ध करने लगे। MHD 06 free solved assignment

इन शासकों के युद्ध का अधिकांश कारण केवल शौर्य प्रदर्शन और पराक्रम दिखाना ही होता था। आपसी कलह और बढ़ते हुए विघटन ने सामंतवादी प्रथा को बल दिया तथा पश्चिम में मुसलमानों के आक्रमण भी हावी होने लगे। इस तरह की राजनीतिक परिस्थितियों में आदिकाल का साहित्य विकसित हो रहा था शासकों की आपसी लड़ाई, मुगलों के आक्रमण, एकता का अभाव और राज्यों का बिखराव ही मान अपमान के प्रश्न बने हुए थे। युद्ध ने देश को खोखला और जर्जर बना दिया था।

IGNOU MHD solved assignment

आदिकाल की सामाजिक पृष्ठभूमिः राजनीतिक उथल-पुथल में सामाजिक व्यवस्था का विश्रृंखल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। हिंदू राजाओं की आपसी कलह के कारण विदेशियों के भारत पर आक्रमण होने लगे। अनेक विदेशी जातियां हिंदू समाज में घुल मिल गई। राजपूतों के पास सत्ता होने से समाज में उनका दबदबा बढ़ता गया। MHD 06 free solved assignment

ब्राह्मणों के वर्चस्व को थोड़ा खतरा महसूस हुआ इसलिए उन्होंने वर्ण वाद की कट्टरता को थोड़ा लचीला बनाकर राजपूत को क्षत्रिय की संज्ञा दी। इस युग में शिक्षा की व्यवस्था के अभाव में सांप्रदायिक तनाव, सती प्रथा, स्त्रियों की सुरक्षा के लिए पर्दा प्रथा तथा अन्य विभिन्न प्रकार के अंधविश्वासों का बोलबाला बढ़ता गया।

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र चार वर्णों की प्रधानता के साथ साथ समाज अनेक जातियों एवं उप जातियों में बंटकर भारतीय सामाजिक आदर्श खो बैठा। जाति-पाति के बंधन कड़े होते गए। निर्धनता और निरंतर होने वाले युद्ध तथा महामारियो ने सामान्य जनता के जीवन को संकट में डाल दिया था इस तरह की विषम सामाजिक परिस्थितियां आदिकालीन साहित्यकारों की साहित्य सामग्री बनती गई।

आदिकाल की आर्थिक पृष्ठभूमिः इस युग की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी। किसानों की पैदावार से ही हर छोटे-बड़े राज्य का पोषण होता था। राज्य के उच्च पदाधिकारियों और सरदारों को नगद वेतन नहीं मिलता था अभी तो इन्हें जागीर दी जाती थी।

इस समय समाज दो वर्गों में बांटा हुआ था उत्पादक और उपभोक्ता उत्पादक वर्ग को समाज में ही दृष्टि से देखा जाता था क्योंकि वह श्रम करते थे उपभोक्ता वर्ग सुख से रहता था इसलिए उनका संबंध उच्च वर्ग के साथ माना जाता था। कवि और चारण भी उच्च वर्गों के मनोनुकूल साहित्य की रचना करते थे कृषक को साहित्य में कोई स्थान नहीं मिला।

MHD 06 free solved assignment

धार्मिक साहित्य में भी कृषक जीवन की पीड़ा और संकट को अभिव्यक्त नहीं किया गया है। आर्थिक गतिविधि के तौर पर व्यापार का ह्रास हो रहा था। व्यापार के पतन से नगर उजाड़ हो गए। भारत में उत्पादित वस्तुओं के लिए बाहर कहीं भी बाजार नहीं रह गया था। नगरों के ह्रास से अखिल भारतीय संपर्क सूत्र कमजोर हो गया था। विकास से जिस विकास से सामान्य संपर्क भाषा का विकास होता है उस भाषा का विकास स्वाभाविकता से नहीं हो पाया और भाषा का स्वरूप भी स्थानीय हो गया।

आदिकाल की धार्मिक पृष्ठभूमिः सम्राट हर्षवर्धन के समय ब्राह्मण और बौद्ध धर्म का समान आदर था। यद्यपि हर्ष स्वयं बौद्ध धर्म को मानने वाले थे तथा उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया परंतु उनमें एक प्रकार की उदारता और धार्मिक सहिष्णुता थी।

उनके समय में विभिन्न धर्मों में आपसी मेलजोल था, परंतु जिस तरह हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद राजनीतिक स्थिति में उथल-पुथल हुआ उसी तरह धार्मिक स्थिति भी बदल गई। देश छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया और धीरे-धीरे धर्म के क्षेत्र में अराजकता फैलती गई। वेद-शास्त्रों के विधि विधान और कर्मकांड को लेकर चलने वाले ब्राह्मण धर्म तथा बौद्ध धर्म में संघर्ष होने लगे।

MHD 06 free solved assignment

बहुत समय पहले सभ्यताओं और संस्कृतियों द्वारा निर्मित साहित्यिक कृतियों को “प्राचीन साहित्य” कहा जाता है। यह शब्द विभिन्न प्रकार के लिखित कार्यों को संदर्भित करता है, जैसे मिथक, महाकाव्य कविताएं, धार्मिक ग्रंथ, ऐतिहासिक इतिहास, दाशनिक ग्रंथ और नाटक।

जिन सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों में ये रचनाएँ रची गई, उन्होंने प्राचीन साहित्य की पृष्टभूमि को आकार दिया, जिसने बदले में स्वयं कृतियों को आकार दिया। प्राचीन साहित्य के इतिहास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी की सूची निम्मलिखित है:

मौखिक परंपरा: लेखन प्रणालियों के विकास से पहले, प्राचीन साहित्य मुख्य रूप से मौखिक परंपरा की प्रक्रिया के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पारित किया जाता था। ये रचनाएँ स्मृति के लिए प्रतिबद्ध थीं और चारणों, कवियों और कहानीकारों द्वारा सुनाई गई, जिससे उनका संरक्षण और वितरण दोनों सुनिश्चित हुआ। MHD 06 free solved assignment

पौराणिक कथाएँ और धार्मिक लेख: मिथकों और धार्मिक रचनाओं को अक्सर प्राचीन साहित्य में शामिल किया जाता था । इन लेखों ने दुनिया के जन्म, देवी-देवताओं की विशेषताओं और मानव सभ्यता की शुरुआत के लिए स्पष्टीकरण प्रदान करने का प्रयास किया। मेसोपोटामिया से गिल गमेश का महाकाव्य, ग्रीक पौराणिक कथाएँ, हिंदू वेद और बाइबिल प्राचीन ग्रंथों के कुछ उदाहरण हैं।

महान व्यक्तियों और घटनाओं का सम्मान करने के लिए कई अलग-अलग प्राचीन समाजों द्वारा महाकाव्य कविताएँ और वीर गाथाएँ लिखी गई। इन महाकाव्यों और वीरगाथाओं ने काव्य का रूप ले लिया। इस प्रकार के लेखन के सबसे प्रसिद्ध उदाहरण होमर के महाकाव्य हैं, विशेष रूप से इलियट और ओडिसी, साथ ही महाभारत, जो एक भारतीय महाकाव्य है। MHD 06 free solved assignment

ऐतिहासिक इतिहास प्राचीन साहित्य में अक्सर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं, शासकों और सभ्पताओं को रिकॉर्ड करने और संरक्षित करने के उद्देश्य से लिखी गई ऐतिहासिक रिपोर्ट और इतिहास शामिल होते हैं। मिस्र की एनत्स ऑफ थुटमोस”, बेबीलोनियाई क्रॉंनिकल्स ऑॉफ द किंम्स ऑफ बेबीलोन” और सिमा कियान की चीनी “रिकॉर्ड्स ऑफ द ग्रैंड हिस्टोरिपन” ऐतिहासिक लेखन के कुछ उदाहरण हैं।

दार्शनिक और उपदेशात्मक प्रकृति के ग्रंथ प्राचीन साहित्य में अक्सर दार्शनिक और उपदेशात्मक लेखन शामिल होते थे जो नैतिकता, नैतिकता और तत्वमीमांसा से संबंधित कई विषयों की जांच करते थे। कन्फ्यूशियस, सुकरात, प्लेटो और अरस्तू जैसे दाशनिकों द्वारा दार्निक परंपराओं के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले कार्यों का निर्माण किया गया। MHD 06 free solved assignment

नाटक के कार्य: प्राचीन ग्रीस और प्राचीन रोम जैसी प्राचीन सभ्यताओं में, नाटक और रंगमंच के अन्य रूप संस्कृति के साहित्यिक सिद्धांत का एक अनिवार्य घटक थे। एस्किलस, सोफोकल्स, यूरिपिडीज़ और अरिस्टोफेन्स सभी ग्रीक नाटककार थे जिन्होंने अपने नाटकों में विभिन्न विषयों से संबंधित रचनाएँ प्रस्तुत की।

इन विषयों में पौराणिक कथाँ, इतिहास और सामाजिक आलोचना शामिल थे। सभ्यताओं का संगठन, शक्ति प्रणालियाँ, धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक मूल्य सभी सामाजिक- राजनीतिक तत्वों के उदाहरण थे जिनका प्राचीन साहित्य के उत्पादन और साम्री पर प्रभाव पड़ा।

इन कारकों का उस सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ पर भी प्रभाव पड़ा जिसमें साहित्य लिखा गया था। साहित्य अक्सर लिखे जाने के समय बौद्धिक अभिजात वर्ग और शासक वर्गों की राय, आदर्शों और चिंताओं को प्रतिबिंबित करता है। MHD 06 free solved assignment

प्राचीन साहित्यिक कार्यों को समय और स्थान के साथ-साथ भगोलिक बाधाओं दोनों के पार प्रसारित करना संभव बना दिया।

अपनी विरासत और प्रभाव दोनों के संदर्भ में, प्राचीन साहित्य का भविष्य के समाजों की साहित्यिक परंपराओं पर महत्वपूर्ण और स्थायी प्रभाव पड़ा है। इसने प्राचीन सभ्यताओं की मान्यताओं, मूल्यों और अनुभवों में अंतर्टंश्ट प्रदान की है, जो कहानी कहने, भाषा और साहित्यिक शैलियों के निर्माण की नींव के रूप में कार्य करती है। MHD 06 free solved assignment

यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि प्राचीन साहित्य का ऐतिहासिक संदर्भ बहुआयामी और जटिल है, जिसमें विभिन्र सभ्यताओं और समय अवधियों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार शामिल हैं । मानव साहित्यिक विरासत का समूद्ध ताना-बाना कई अलग-अलग प्राचीन संस्कृतियों के योगदान का परिणाम है, जिनमें से प्रत्येक ने अपने विशिष्ट टष्टिकोण, विचार और साहित्यिक रूप सामने लाए है।

IGNOU MHD FREE SOLVED ASSIGNMENT (2023-2024)

2. प्रमुख भक्तिकालीन संत कवियों का परिचय दीजिए।

उत्तर :

भक्ति काल के संत कवि:

कबीर: कबीर एक आध्यात्मिक कवि थे जो 15वीं शताब्दी के दोौरान रहते थे और उन्होंने पृथ्वी पर अपने पूरे समय में हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच विभाजन को पाटने का प्रयास किया। उनकी गीतात्मक रचनाएँ जटिलता, सपष्टता और कहू सामाजिक टिप्पणी की कमी के लिए उल्लेखनीय थीं। कबीर ने कई अलग-अलग समूहों के बीच एकता को बढ़ावा दिया और अपनी शिक्षाओं में ईश्वर की विलक्षणता पर जोर दिया।

ये मध्यकालीन भारत के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर कबीरपंथ नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। MHD 06 free solved assignment

कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। इनका कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। फलत: इस संबंध में तथा इनके मत के भी विषय में बहुत कुछ मतभेद पाया जाता है।

MHD 06 free solved assignment

संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।

IGNOU MHD solved assignment

तुकाराम एक प्रमुख संत कवि थे जो 17वीं शताब्दी के दौरान महाराष्ट्ट में रहते थे। उन्हें अभेगों (भक्ति कविताओ) के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है जो उन्होंने भगवान विट्टल को समर्पित करते हुए लिखे थे। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि किसी की वास्तविक क्षमता का एहसास करना, स्वयं को सम्पित करना और नैतिकता के लिए प्रयास करना कितना महत्वपूर्ण है।

तुकाराम को चैतन्य नामक साधु ने ‘रामकृष्ण हरि’ मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। इसके उपरांत इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। तुकाराम के मुख से समय-समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होने वाली ‘अभंग’ वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति उपलब्ध नहीं है।

MHD 06 free solved assignment

अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग 4000 ‘अभंग’ आज उपलब्ध हैं। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में संत ज्ञानेश्वर और नामदेव, इन पूर्वकालीन संतों के ग्रंथों का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया था। इन तीनों संत कवियों के साहित्य में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है। उस समय तुकाराम द्वारा लिखी गई कविताओं का उनके काल के साधारण लोगों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

MHD 06 free solved assignment

सूरदास :15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान रहने वाले अंधे कवि और संत सूरदास को उनकी लिखी कविताओं के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण के गुणों का गुणगान किया गया था। उनकी रचनारँ, विशेष रूपसे सूर सागर, कृष्ण की पवित्र लीलाओं (चंचल कृत्यों) की कहानियों बताती हैं और कविता के माध्यम से गहन आध्यामिक शिक्षाओं का संचार करती हैं। जो किसी के लिए भी समझ में आती हैं। उनकी रचनाएँ व्यापक दर्शकों के लिए लिखी गई।

नामदेव एक संत और कवि थे जो 3वीं शताब्दी में महाराष्ट्रमेंरहते थे। उन्हें भजनों की उनकी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है, जिसमें वह भगवान और विशेष रूप से भगवान विद्ठुल के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करते हैं। उनके गीत सामाजिक टिप्पणियों से भरे हुए थे, जिसमें उन्होंने समान व्यवहार की वकालत की और उस समय के समाज के मानकों को चुनौती दी।

MHD 06 free solved assignment

संत काव्य’ का प्रयोग निर्गुण धारा के कवियों की बानियों के लिए ही किया जाता है। संत काव्य का प्रारंभ सामान्यतः पंद्रहवी शताब्दी में माना जाता है किंतु उसकी आधार भूमि उससे भी पुरानी है। भक्ति का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर आया, दक्षिण में वैष्णव भक्तों ने भक्ति को एक संबल पुष्ट दिया था।

दक्षिण में वैष्णव भक्तों को ‘आलवार’ कहा गया हैं। ये आलवार भक्त पांचवी से दसवी शताब्दी तक होते रहे हैं। ऐसे बारह आलवार हुए। इनमें आंडाल एक स्री भक्त थी। अपनी इस उत्तरी यात्रा में जब भक्ति की लहर महाराष्ट्र में पहुंची तो संत ज्ञानेश्वर और नामदेव ने उत्तर भारत में पर्यटन कर उसका प्रसार किया। इस प्रकार 13 वी शताब्दी में आकर भक्ति की भावना में एक नए विकास की स्थिति आई, जिसमें जाति और वर्ग की भावनाएं मिट गई। नामदेव स्वय दर्जी थे।

उनके विट्ठल संप्रदाय में चक्रधर, गोरा कुम्हार, सावला माली, नरहरि सुनार, चोखा भंगी, सेना नाई आदि सभी लोग थे, जैसे सब जातियों के बंधनों से मुक्त हो गए और केवल संत रह गए। संत ज्ञनेश्वर और नामदेव ने उत्तर भारत की यात्रा की और भक्ति का प्रसार किया। MHD 06 free solved assignment

15 वी शताब्दी में महाराष्ट्र की यह भक्ति भावना जब उत्तर में निर्गुण संप्रदाय के संतों ने ग्रहण की तो रामानंद के आश्रय में उस पर एक नया रंग चढ़ गया। दूसरी और मुसलमानों के संपर्क में भी विशेष सूफियों के प्रेम तत्व ने उसकी प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त भूमि तैयार कर दी।

IGNOU MHD solved assignment

रैदास : रैदास का जन्म काशी, 1398 ई. में और मृत्यु काशी का गंगा घाट पर 1448 ई. में हुआ था। इनका रविदास नाम भी प्रचलित है। रैदास की पत्नी का नाम लोना था। इनके गुरु रामानंद थे। रैदास दिल्‍ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी के समकालीन थे, उसके निमंत्रण पर वे दिल्‍ली भी गये थे। ये जाति के चमार थे अपने बारे में स्वयं कहा-

“कह रैदास खलास चमारा, ऐसी मेरी जाति विख्यात चमारा।”

गुरु ग्रंथ साहिब में रैदास के 40 पद मिलते हैं जबकि ‘सतबनी’ में फुटकल पद मिलते है। निरीहता एवं जातीय कुंठाहीनता रैदास की कविताओं की प्रमुख विशेषता है। धन्ना एवं मीराबाई ने अपने पदों में इनका सादर उल्लेख किया है लेकिन रैदास ने अपनी रचनाओं में अपने गुरु रामानंद का उल्लेख नहीं किया है। इनको उदय और मीराबाई का गुरु माना जाता है।

MHD 06 free solved assignment

गुरु नानक: गुरु नानक का जन्म लाहौर के तलवंडी नामक स्थान पर जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है, 1469 ई. में हुआ था। इनकी मृत्यु सन 1538 ई. में हुआ था। गुरु नानक की माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कालूचंद्र खत्री था। इनकी पत्नी का नाम ‘सुलक्षणी’ था। ‘लक्ष्मीचंद्र’ और श्री चंद्र’ इनके दो पुत्र थे। श्री चंद्र ने ‘उदासी संप्रदाय’ का प्रवर्तन किया।

गुरुनानक सिख संप्रदाय / पंथ के प्रवर्तक थे। ये मुगल बादशाह बाबर के समकालीन थे। कहा जाता है कि बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी। इनके साथ ‘रागी’ नामक मुसलिम शिष्य भी रहा करता था। गुरुनानक नें अपना उत्तराधिकार ‘लहना’ को सौपा तथा उसका नाम अंगद रखा। जपुजी नानक दर्शन का सारतत्त्व माना जाता है। नानक भेदाभेदवादी संत कवि हैं। MHD 06 free solved assignment

गुरु नानक की रचनाएँ निम्नलिखित हैं- जपुजी, असा री दीवार, रहिरास, सोहिला, नसीहतनामा

नानक की बानियों का संकलन गुरु ग्रंथ साहिब के ‘महला” नामक प्रकरण में संकलित है। इनके कविताओं की भाषा हिंदी, फारसी बहुल पंजाबी है। जबकि ‘नसीहतनामा’ नामक शीर्षक रचना में खड़ी बोली का रूप व्यक्त हुआ है। इनकी रचनाओं में कबीर की भाँति शान्त रस की प्रधानता है। नानक ने छंदों का प्रयोग नहीं किया है, इनके पद राग-रागिनियों में रचित हैं।

दादूदयाल :

दादू का जन्म अहमदाबाद, 1544 ई. में एक धुनिया (मुसलिम) परिवार में हुआ था। इनकी मृत्यु नराने, राजस्थान, 1603 ई. में हुआ था। दादू का मूलनाम दाऊद था। गरीबदास और मिस्कीदास इनके पुत्र थे। इन्होने दाद्रपंथ का प्रवर्तन किया।

दादूपंथ को “ब्रह्म संप्रदाय’ या ‘परमब्रह्म संप्रदाय’ भी कहा जाता है। दाद्ू पंथियों का प्रधान अड्डा नराना (जयपुर के पास) और भराने में है। इनका सत्संग स्थल ‘अलख दरीबा’ था। निर्गुण संतों की परंपरा में दादू की वाणी को कबीर की वाणी की व्याख्या मानी जाती है। दादू ने अपनी रचनाओं में बार-बार कबीर का नामोल्लेख किया है। इनकी जन्मकथा कबीर की जन्मकथा से काफी मिलती-जुलती है।

MHD 06 free solved assignment

दादूदयाल के बावन शिष्य थे, जिनमें प्रमुख हैं- रज्जब, सुंदरदास, प्रागदास, जनगोपाल, जगजीवनदास, संतदास एवं ‘जगन्नाथदास। दादू की रचनाओं का सर्वप्रथम संग्रह उनके दो प्रमुख शिष्यों संतदास एवं जगन्नाथ ने ‘हरडेबानी’ शीर्षक से किया था जिसे रज्जब ने पुनः ‘अंगवधू’ शीर्षक से संपादन किया।

डॉ. परशुराम चतुर्वेदी ने दादू की प्रामाणिक रचनाओं का संकलन ‘दाद्रदयाल’ शीर्षक से सम्पादित किया है। दादू दयाल की रचनाओं की भाषा राजस्थानी, खड़ीबोली मिश्रित ब्रज भाषा है। दादू की बनियों से शासकों में अकबर सबसे अधिक प्रभावित हुआ था।

MHD 06 free solved assignment

दादू के महाप्रयाण के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र गरीबदास और कनिष्ठ पुत्र मिस्कीदास उनके गद्दी के क्रमशः उत्तराधिकारी हुए। दादू के शिष्य जगजीवन दास ने सतनामी संप्रदाय का प्रवर्तन किया था।

MHD 06 free solved assignment

ये संत कवि, बड़ी संख्या में अन्य लोगों के साथ, भक्ति औदोलन के प्रचार और आध्या्मिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त करने की एक विधि के रूप में भक्ति को बढ़ावा देने में सहायक थे। वे असंख्य लोगों को प्रेरित रेत करने में सक्षम थे और उन्होंन जो प्रेम की कविताएँ लिखीं, उनके माध्यम से भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर दीर्धकालिक प्रभाव डाला।

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

3. छायावाद की मूल प्रवृत्तियों का सोदाहरण विवेचन कीजिए ।

भारत में 20वीं सदी की शुरुआत में, छायावाद के नाम से जाना जाने वाला एक साहित्यिक आंदोलन अस्तित्व में आया, जिसे हिंदी साहित्य में स्वच्छंदतावाद औंदोलन भी कहा जाता है।

यह एक साहित्पिक आंदोलन था जो भावनाओं की जांच, आत्मनिरीक्षण के अभ्यास और अपने स्वयं के अनुभवों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से प्रतिष्ठটित था। छायावादी कवियों ने अपने लेखन में प्रकृति की महिमा, प्रेम के जुनून और मानवीय अनुभव की जटिलता को व्यक्त करने का प्रयास किया।

कुछ उदाहरणों के साथ, कुछ सबसे मौलिक छायावाद प्रवृत्तियों की सूची निम्नलिखित है:

रोमांटिक आदर्शवादः छायावादी कवियों ने आदर्शवाद को अपनाया और जीवन के सामान्य हिस्सों से परे जाने के लिए प्रेम, सौंदर्य और आध्यात्मिकता की शक्ति में विश्वास किया। उन्हें तगा कि प्रेम, सौंदरय्य और आध्यात्मकता जीवन के सामान्य पहलुओं से आगे निकल सकते हैं।

वे अक्सर प्रेम को एक दिव्य ऊर्जा के रूप में चित्रित करते थे जो किसी के आध्यात्मिक स्वभाव में जागृति लाने में सक्षम थी। उदाहरण के लिए, हरिवंश राय बच्चन की कविता “मधुशाला में, कवि जीवन और प्रेम दोनों के मादक सार के रूपक के रूप में शराब की छवि का उपयोग करता है।

MHD 06 free solved assignment

प्रकृति के प्रति सम्मान छायावादी कवियों में प्रकृति में पाई जाने वाली महिमा और शांति के प्रति गहरी श्रद्धा थी। प्राकृतिक तत्वों और परिट्ृश्यों को चित्रित करने के लिए वे अक्सर ऐसी कल्पनाका उपयोग करते थे जो ज्वलंत और सम्मोहक दोनों थी। सुमित्रानंदन पंत की कविता “मेघ आए” मानसून के बादलों के टष्टिकोण का एक सुंदर वर्णन है, जो बारिश से जुड़े नवीकरण और भावनात्मक अनुनाद की भावना को व्यक्त करती है।

MHD 06 free solved assignment

आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति: छायावाद दर्शन ने आ्मनिरीक्षण और किसी के स्वयं के आंतिरिक जीवन की जांच पर जोर दिया। अपने गहरे विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए, कवि अक्सर अपने जीवन के अनुभवों, लालसाओं और संवेदनाओं से प्रेरणा लेते हैं। माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता “पुष्ष की अभिलाष” में एक फूल की परमात्मा की पूजा में नियोजित होने की लालसा को दर्शाया गया है. जो एक उच्च उद्देश्य की चाहत का प्रतीक है। कविता का शीर्षक है “पुष्धप की अभिलाषा।”

प्रतीकवाद और रूपक: अधिक गहन विचारों को संप्रेषित करने के लिए, छायावादी कवियों ने अक्सर अपने लेखन में विभित्न प्रकार के प्रतीकों और रूपक उपकरणों का उपयोग किया। वे इन साहित्यिक समेलनों का उपयोग करके महत्वपूर्ण दारशनिक और आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने में सक्षम थे। हरिवंश राय बच्चन की कविता “अग्रिपथ” अग्रि पथ की छृवि का उपयोग उस प्रयास और दढ़ता का प्रतीक है जो चुनौतियों पर काबू पाने और किसी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।

MHD 06 free solved assignment

मधुर और लयवद्ध पैटर्न को अपनाते हुए छंदः छायावादी कवियों ने अपने उंदों के मधुर और लयबद्ध पैटर्न पर सावधानीपूर्वक विचार किया। अपनी कविता को लयबद्ध और मधुर प्रवाह देने के लिए उन्होंने छंदबद्ध दोहे, लयबद्ध पैटन्न और दोहराव वाले वाक्यांशों का उपयोग किया। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएँ अपनी गीतात्मक गुणवत्ता के साथ-साथ अपनी लयबद्धर शैली के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इसका एक उदाहरण “गीतिका कविता में देखा जा सकता है, जिसमें सुक्ष्म शब्दों के खेल के साथ-साथ सुंदर लय का भी प्रयोग किया गया है। IGNOU MHD solved assignment

पक्षिमी स्वच्छंदतावाद का प्रभाव भावुक और आत्मविश्लेषणात्मक कविता की उस नई लहर में देखा जा सकता है जिसे छायावादी कवियों ने हिंदी साहित्य में पेश किया। उनके अभिव्यंजक वाक्यांश और ज्वलंत छवियां पाठकों को प्रेरित और संलग्न करती रहती हैं क्योंकि वे मानवीय अनुभवों और भावनाओं के आवश्यक गुणों को पकड़ते हैं।

वैयक्तिकता : छायावादी काव्य में वैयक्तिकता का प्राधान्य है। कविता वैयक्तिक चिंतन और अनुभूति की परिधि में सीमित होने के कारण अंतर्मुखी हो गई, कवि के अहम् भाव में निबद्ध हो गई। कवियों ने काव्य में अपने सुख-दु:ख,उतार-चढ़ाव,आशा-निराशा की अभिव्यक्ति खुल कर की। उसने समग्र वस्तुजगत को अपनी भावनाओं में रंग कर देखा। जयशंकर प्रसाद का’आंसू’ तथा सुमित्रा नंदन पंत के ‘उच्छवास’ और ‘आंसू’ व्यक्तिवादी अभिव्यक्ति के सुंदर निदर्शन हैं। इसके व्यक्तिवाद के स्व में सर्व सन्निहित है।

प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना : छायावादी कवि का मन प्रकृति चित्रण में खूब रमा है और प्रकृति के सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना छायावादी कविता की एक प्रमुख विशेषता रही है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को काव्य में सजीव बना दिया है।

MHD 06 free solved assignment

प्रकृति सौंदर्य और प्रेम की अत्यधिक व्यंजना के कारण ही डॉ. देवराज ने छायावादी काव्य को ‘प्रकृति-काव्य’ कहा है। छायावादी काव्य में प्रकृति-सौंदर्य के अनेक चित्रण मिलते हैं; जैसे 1. आलम्बन रूप में प्रकृति चित्रण 2.उद्दीपन रूप में प्रकृति चित्रण 3.प्रकृति का मानवीकरण 4.नारी रूप में प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन 5.आलंकारिक चित्रण 6.प्रकृति का वातावरण और पृष्ठभूमि के रूप में चित्रण 7. रहस्यात्मक अभिव्यक्ति के साधन के रूप में चित्रण। IGNOU MHD solved assignment

शृंगारिकता : छायावादी काव्य में शृंगार-भावना की प्रधानता है,परंतु यह शृंगार रीतिकालीन स्थूल एवं ऐन्द्रिय शृंगार से भिन्न है।छायावादी शृंगार-भावना मानसिक एवं अतीन्द्रिय है। यह शृंगार-भावना दो रूपों में अभिव्यक्त हुई है- 1. नारी के अतीन्द्रिय सौंदर्य चित्रण द्वारा 2. प्रकृति पर नारी-भावना के आरोप के माध्यम से। पंत और प्रसाद ने अछूती कल्पनाओं की तूलिका से नारी के सौंदर्य का चित्रण किया है।

MHD 06 free solved assignment

रहस्यानुभूति : छायावादी कवि को अज्ञात सत्ता के प्रति एक विशेष आकर्षण रहा है। वह प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ में इसी सत्ता के दर्शन करता है। उसका इस अंनत के प्रति प्रमुख रूप से विस्मय तथा जिज्ञासा का भाव है। लेकिन उनका रहस्य जिज्ञासामूलक है, उसे कबीर और दादू के रहस्यवाद के समक्ष खड़ा नहीं किया जा सकता।निराला तत्व ज्ञान के कारण, तो पंत प्राकृतिक सौंदर्य से रहस्योन्मुख हुए।

प्रेम और वेदना ने महादेवी को रहस्योन्मुख किया तो प्रसाद ने उस परमसत्ता को अपने बाहर देखा। यद्यपि महादेवी में अवश्य ही रहस्य-साधना की दृढ़ता दिखाई पड़ती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में,”कवि उस अनंत अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से अभिव्यंजना करते हैं।

प्रेम चित्रण: छायावादी कवियों के प्रेम चित्रण में कोई लुका छिपी नहीं है .क्योंकि इसमें स्थूल क्रिया व्यापारों का चित्रण नहीं मिलता है या न के बराबर मिलता है । यह चित्रण मानसिक स्टार तक सिमित है .अतः इसमें मिलन की अनुभुतीओं की अपेक्षा विरहानुभूति का व्यापक चित्रण है ,निराला की कविता ख्रेह निर्भर बह गया है .पन्तकृत ग्रंथि तथा प्रसाद कृत आँसू एवं आत्मकथा में ऐसे ही प्रणय चित्रण है ।

IGNOU MHD solved assignment

छंद और अलंकार विधान : छंद के लिए भी छायावादी काव्य उल्लेखनीय है। इन कवियों ने मुक्तक छंद और ्रतूकान्त दोनों प्रकार की कविताएँ लिखी हैं .इसमें प्राचीन छंदों के प्रयोग के साथ – साथ नवीन छंदों के निर्माण की प्रवृति भी मिलती है ।

‘छायावादी कवियो में हिंदी के प्राचीन अलंकारों के साथ – साथ अंगेजी साहित्य के दो अलंकारों मानवीकरण तथा विशेषण विप्रे का अधिकाधिक प्रयोग किया है .प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण में मानवीकरण है .विशेषण विपर्याय में विशेषण को स्थान से हटाकर लाच्छकों द्वारा दूसरी जगह आरोपित किया जाता है।

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

4. स्वतंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यास पर निबंध लिखिए।

एक राष्ट्ट की स्वतंत्रता के बाद की यात्रा, हिंदी में लिखे गए एक उपन्यास में इसका चित्रण भारत की आज़ादी के बाद का समय देश के साहित्यिक माहौल में गहरे बदलाव से चिह्वित था। इस

दौरान, राष्ट्र के बदलते सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को प्रतिबिंबित करने के लिए हिंदी साहित्य फला-फूला और विकसित हुआ। 1947 में भारत की आजादी के बाद, हिंदी उपन्यास भारतीय संस्कृति के कई आयामों की खोज करने और वहां रहने वाले लोगों की आशाओं, भय और महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में विकसित हुआ।

MHD 06 free solved assignment

यह लेख आज़ादी के बाद के हिंदी उपन्यासों की दुनिया पर प्रकाश डालता है, उनके रूपांकनों, प्रवृत्तियों और देश के साहित्यिक और सांस्कृतिक ताने-बाने में उनके योगदान पर प्रकाश डालता हैं।

स्वतंत्रता के बाद हिंदी में लिखे गए उपन्यासों का विकासः 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, हिंदी साहित्य में रचनात्मक अभिव्यक्तियों की संख्या में वृ्धि हुई, और उपन्यास उस राष्ट्र की कठिनाइयों की जांच करने के लिए एक पसंदीदा शैली के रूप में उभरा जिसने हाल ही में अंपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। उस समय के लेखकों ने उस समय हो रहे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलावों की एक तस्वीर चित्रित करने का प्रयास किया, जो उस समय की आशाओं, संघर्षों और मोहभंग को दर्शाता था।

IGNOU MHD solved assignment

विषय और वर्तमान रुझानः राष्ट्र का निर्माण और स्वतंत्रता के बाद अपनी पहचान की खोज राष्ट्र का निर्माण और एक अद्वितीय राष्ट्रिय पहचान की खोज हिंदी साहित्य में बार-बार आने वाले विषय थे। लेखकों ने अपने कायों में जाति, वर्ग, धर्म और क्षेत्रीय असमानताओं के विषयों को शामिल करके एक विषम राष्ट्र की जटिलता की जांच की।

मुंशी प्रेमचंद की “गोदान” और खुशवंत सिंह की “ट्रेन टू पाकिस्तान जैसी प्रसिद्ध कथा कृतियों ने तेजी से परिकवर्तन के दौर से गुजर रहे समाज में व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनोतियों और उलझनों को दर्शाया है। MHD 06 free solved assignment

देश की आजादी के बाद, सामाजिक यथार्थवाद और आलोचना, भारतीय जीवन की कठोर वास्तविकताओं को अक्सर हिंदी उपन्यासों में प्रस्तुत किया गया, जिससे सामाजिक अन्याय, असमानताएं और गहराई से व्याप्त पूर्वाग्रहों को प्रकाश में लाया गया। MHD 06 free solved assignment

अपने उपन्यासों “बीच वाले लोग और मित्रो मरजानी” में, उषा प्रियंवदा और कृष्णा सोबती जैसे लेखकों ने समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के सदस्यों के जीवन की खोज की, और महिलाओं, निचली जातियों के सदस्यों  द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों को प्रकाश में लाया। और कम भाग्यशाली. 1947 में भारत के विभाजन की त्रासदी ने भारतीय मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी, और देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद लिखी गई कई हिंदी पुस्तकों ने इस भूकंपीय घटना के मानवीय प्रभावों को संबोधित किया।

भीष्म साहनी के उपन्यास “तमस” और चमन नहल के “आजादी” में भारत के विभाजन के साथ हुए अत्याचार, स्थानांतरण और सांप्रदायिक तनाव को दर्शाया गया है, और उन्होंने व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ राष्ट्रीय मानस पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की है। MHD 06 free solved assignment

अस्तित्ववाद और व्यक्तिगत पहचान: स्वतंत्रता के बाद के युग में, हिंदी उपन्यासकारों ने जीवन के अर्थ, व्यक्तिगत पहचान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की इचछा पर सवाल उठाते हुए अस्तित्ववादी विषयों पर चर्चा की। इससे हिंदी में अस्तित्ववादी लेखन की लोकप्रियता में वृद्धि हुईं।

श्रीलाल शुक्त की “राग दरबारी” और राही मासूम रज़ा की -आधा गाँव” जैसी काल्पनिक कृतियों के पात्रों को अस्तित्व संबंधी उलझनों, सामाजिक अपेक्षाओं और परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष के साथ संघर्ष करते दिखाया गया है। IGNOU MHD solved assignment

देश की आजादी के बाद मैंने साहित्य और समाज दोनों में योगदान दिया। भारत का साहित्यिक और सांस्कृतिक परिद्ृश्य हिंदी उपन्यासकारों के योगदान से काफी प्रभावित हुआ। इन उपन्यासों ने आलोचनात्मक आत्मनिरीक्षण के लिए एक मंच प्रदान किया, जिससे पाठकों को इन्हें पढते समय समग्र रूप से राष्ट्र की उपलब्धियों और विफलताओं पर विचार करने का मौका मिला।

उन्होंने सामाजिक असमानताओं को प्रकाश में लाया, उस समय की स्वीकृत परंपराओं पर सवाल उठाया, और लैगिक असमानता, सांप्रदायिक शांति और एक राष्ट्र होने के अर्थ की परिभाषा जैसे मह्वपूर्ण विषयों पर संवाद शुरू किया।

इसके अलावा, ये उपन्यास भारतीय समाज की समृद्धि और जटिलता को चित्रित करने में सक्षम थे, जिससे देश की कई अलग-अलग संस्कृतियों के लिए सहानुभूति, समझ और बेहतर प्रशंसा पैदा करने में मदद मिली।

भारत के साहित्पिक सिद्धांत में स्वतंत्रता के बाद का हिंदी साहित्य पर्याप्त मात्रा में शामिल है। यह उपन्यासों के लिए विशेष रूप से सत्य है। वे स्वतंत्रता के बाद अपने पैर जमाने, अपनी पहचान के साथ संघर्ष करने और उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों से निपटने के लिए एक राष्ट् के उतार-चढ़ाव भरे रास्ते का वर्णन करते हैं। MHD 06 free solved assignment

ये संघर्ष देश के साहित्यिक कारयों में परिलक्षित हुए। ये उपन्यास अपने भीतर निहित कथानकों की शक्ति के कारण पाठकों के बीच गुंजते रहते हैं। भारत की विकासशील संस्कृति की झलक प्रदान करने के अलावा, इन उपन्यासों नें देश के साहित्पिक और सांस्कृतिक परिट्ृश्य पर भी एक अमिट छाप छोड़ी है। IGNOU MHD solved assignment

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

5. हिंदी भाषा के विकास के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालिए।

हिंदी भाषा का विकास एक दिलचस्प साहसिक कार्य रहा है जो सदियों से चला आ रहा है। रास्ते में, यह बिभिन्न प्रकार के प्रभावों के अधीन रहा है, विकसित हुआ है और मानकीकृत किया गया है। भारत में बोली जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण भाषाओं में से एक, हिंदी का एक गहरा भाषाई इतिहास है जो विभिन्न ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताकतों द्वारा बनाया गया था।

निम्नलिखित पैराग्राफ में, हम हिंदी के इतिहास की शुरुआत से लेकर आज तक की जांच करेंगे, जिसमें इसकी उत्पत्ति, विकास, साहित्यिक योगदान और मानकीकरण की प्रक्रिया शामिल है।

हिंदी का इतिहास प्राचीन काल से खोजा जा सकता है, और यह मुख्य रूप से इंडो-आयन भाषा परिवार से ली गई है। भाषा की जड़े प्राचीन भारत में पाई जा सकती हैं। प्राचीन भारतीय शास्त्रीय भाषा जिसे संस्कृत के नाम से जाना जाता है, ने हिंदी के नाम से जानी जाने वाली आधुनिक भाषा के निर्माण की नींव रखी। अपभ्रेश एक संक्रमणकालीन भाषा थी जिसने हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विकास का रास्ता खोला। प्रकृत, संस्कृत का स्थानीय रूप, धीरे-धीरे अपभ्रंश में विकाशित हुआ। MHD 06 free solved assignment

भक्ति और मध्यकाल: साहित्थिक अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में, पूरे मध्यकाल में चले भक्ति आंदोलन के दौरान हिंदी को काफी बढ़ावा मिला। कबीर, सूरदास, तुलसीदास और मीराबाई जैसे भक्ति संत-कवियों ने भाषा में भक्ति काव्य की रचना करके हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने और समृद्ध बनाने में योगदान दिया। MHD 06 free solved assignment

पवित्र के साथ व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध पर जोर देने वाले उनके कार्यों ने आम जनता के साथ जुड़ाव पैदा किया और हिंदी के साहित्यक और सांस्कृतिक परिट्श्य को गढ़ने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। IGNOU MHD solved assignment

भारत में इस्लामी नियंत्रण की शुरूआत अपने साथ फ़ारसी और अरबी प्रभाव लेकर आई, दोनों ने हिंदी भाषा पर एक अमिट छाप छोड़ी और आज तक इसकी विशिष्ट विशेषताओं में योगदान दिया है। विशेष रूप से ऋणशब्दों के रूप में, फ़ारसी शब्दावली, मुहावरों और साहित्पिक प्रथाओं ने हिंदी में अपनी जगह बनाई। यह भाषा की शब्दावली के लिए विशेष रूप से सच था। फ़ारसी का प्रभाव साहित्य, प्रशासन और दरबारी प्रवचन सहित विभित्र क्षेत्रो मे देखा जा सकता है।

हिंदी का मानकीकरण और भाषा का विकास हिंदी के मानकीकरण की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी में शुरू हुई, जब यह माना गया कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों को एक-दूसरे के साथ संवाद करने के लिए एक आम भाषा की आवश्यकता है। MHD 06 free solved assignment

साहित्यिक भाषा के रूप में हिंदी के मानकीकृत संस्करण को विकसित करने में भारतेंदु हरिक्ंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और मुंशी प्रेमचंद जैसे शिक्षाविदों का काम आवश्यक था। हिन्दी के इस रूप को खड़ी बोली के नाम से जाना जाता है। नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी साहित्य सम्मेलन दो संगठन थे जिन्होंने हिंदी के उपयोग को आगे बढ़ाने और भाषा के विकास में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। IGNOU MHD solved assignment

देवनागरी लिपि: देवनागरी लिपि, जिसे पुरानी ब्राही लिपि से विकसित किया गया था, अंततः हिंदी लिखने के लिए सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली लिपि बन गई। देवनागरी की वन्यात्मक स्पाष्टता और हिंदी को बनाने वाली असंख्य ध्वनियों को ईमानदारी से प्रतिबिबित करने की इसकी क्षमता देवनागरी को इसकी विशिष्टर पहचान देती है। हिंदी भाषा के लिखित रूप के लिए लिपि के रूप में देवनागरी को अपनाना भाषा के अंतिम मानकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

MHD 06 free solved assignment

आधुनिक हिंदी साहित्य आधुनिक युग में हिंदी साहित्य में पुनरु्थान देखा गया, जिसमें प्रेमचंद, जैनेंद्र कुमार, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर और हरिवंश राय बच्चन जैसे लेखकों ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

इन लेखकों ने सामाजिक यथार्थवाद, राष्ट्रवाद, नारीवाद और व्यक्तिवाद सहित कई विषयों को संबोधित किया, और उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से भारतीय संस्कृति की बदलती गतिशीलता को दर्शाया। उनके कार्योंने न केवल हिंदी के साहित्यिक सिद्धांत के विस्तार में योगदान दिया, बल्कि अधिक विविध दर्शकों के बीच भाषा की लोकप्रियता को बढ़ाने में भी मदद की।

MHD 06 free solved assignment

किस भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, यह विषय तब महत्वपूर्ण हो गया जब 1947 में देश को आजादी मिली। भारत सरकार ने हिंदी को देेश की आधिकारिक भाषा के रूप में नामित किया है क्योंकि यह उन भाषाओं में से एक है जो सबसे अधिक बार बोली जाती है। देश भर में। IGNOU MHD solved assignment

इसके बावजूद, भारत के संविधान में आधिकारिक उ्देश्यों के लिए अंग्रेजी के निरंतर उपयोग का प्रावधान शामिल था जब तक कि हिंदी को धीरे-धीरे शामिल नहीं किया जा सके। यह देश भर में मौजूद भाषाई विविधता की मान्यता में किया गया था। MHD 06 free solved assignment

जनसंचार माध्यमों के विभिन्न रूपों की शुरू आत और तकनीकी प्रगति ने दुनिया भर में हिंदी के प्रसार की गति को तेज करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

6. (क) रीतिकाल का नामकरण

नामकरण समारोह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है जो जश्र मनाता है और एक नवजात शिशु को औपचारिक रूप से उनके परिवार, दोस्तों और समुदाय से परिचित कराता है। यह एक ख़ुशी का अवसर है जो एक बच्चे की पहचान की शुरुआत का प्रतीक है और दुनिया में उनकी उपस्थिति को स्वीकार करता है।

नामकरण संस्कार विभित्र परंपराओं में सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखता है, और यह माता-पिता के लिए अपने बच्चे के लिए एक सार्थक नाम चुनने और उनकी भलाई और भविष्य के लिए आशीर्वाद मांगने का एक अवसर है।

MHD 06 free solved assignment

समारोह सास्कृतिक, धार्मिक और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों में भिन्न हो सकता है। हालॉकि, कुद्छ तत्व आमतौर पर कई नामकरण समारोहों में पाए जाते हैं; परिवार और दोस्तों का जमावड़ाः परिवार के सदस्यों, करीबी दोस्तों और शुभचिंतकों को नामकरण समारोह में भाग लेने और देखने के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनकी उपस्थिति बच्चे और परिवार के लिए समर्थन, प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक है। IGNOU MHD solved assignment

नाम का चयन और घोषणाः माता-पिता अपने बच्चे के लिए एक ऐसा नाम चुनते हैं जो महत्व रखता हो और उनकी आकांक्षाओं, सांस्कृतिक विरासत या व्यक्तिगत मान्यताओं को दर्शाता हो। समारोह के दौरान नाम की घोषणा की जाती है, अक्सर इसके अर्थ या महत्व की संक्षिप्त व्याख्या के साथ।

MHD 06 free solved assignment

आशीर्वाद और शुभकामनाएं: परिवार के सदस्य, बुजुर्ग और मेहमान बच्चे के भविष्य के लिए आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते हैं। वे बच्चे की जीवन यात्रा के लिए अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को बताते हुए उपाख्यानों, सलाह या ज्ञान के शब्दों को साझा कर सकते हैं।

धार्मिक या आध्यात्मिक अनुष्ठान: धार्मिक या आध्यातलमिक नामकरण समारोह में, परिवार की आस्था या परंपरा के अनुसार विशिष्ट अनुष्ठान और प्रार्थनाएँ की जा सकती हैं। इसमें धार्मिक छंदों का पाठ, धामिक नेताओं द्वारा आशीर्वाद या पवित्र दीपक जलाना शामिल हो सकता है।

उपहारों का आदान-प्रदानः मेहमान अक्सर अपने प्यार और आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में बच्चे के लिए उपहार लाते हैं। इन उपहारों में पारंपरिक वस्तुएं किताबें, खिलोने या प्रतीकात्मक उपहार शामिल हो सकते हैं जिनका सांस्कृतिक या भावनात्मक मूल्य हो।

MHD 06 free solved assignment

सांस्कृतिक परंपराएँ: विभिन्न संस्कृतियों में नामकरण समारोह से जुड़े अद्वितीय रीति-रिवाज और परंपराएँ हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय संस्कृति में, बच्चे की कुंडती से पररामर्श लिया जा सकता है, और एक पुजारी या ज्योतिषी समारोह के लिए शुभ समय और तारीख सुझा सकता है। इसके अतिरिक्त, सुरक्षात्मक धागे बांधना, पवित्र पदार्थ लगाना या प्रतीकात्मक इशारे करना जैसे अनुष्ठान शामिल किए जा सकते हैं।

उत्सव और दावत: औपचारिक समारोह के बाद, एक जश्न मनाने वाली सभा होती है, जहां मेहमान उत्सव की गतिविधियों में शामिल होते हैं और एक साथ भोजन या जलपान में भाग लेते हैं। यह आनंदमय बातचीत, जुड़ाव और परिवार में नए सदस्य के आने का जश्र मनाने का अवसर प्रदान करता है।

MHD 06 free solved assignment

नामकरण समारोह माता-पिता के लिए अत्यधिक भावनात्मक महत्व रखता है क्योंकि यह उनके बच्चे की जीवन यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। यह एक यादगार पल है जो परिवार, समुदाय और सांस्कृतिक विरासत के बंधन को मजबूत करता है, साथ ही बच्चे के भविष्य के लिए आशीर्वाद, शुभकामनाएं और प्यार भी व्यक्त करता है। IGNOU MHD solved assignment

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ख) प्राकृत पैंगलम :-

प्राकृत पैंगलम छन्दशास्त्र का एक ग्रन्थ है जिसमें प्राकृत और अपभ्रंश छन्दों की विवेचना की गयी है। इसमें अनेक कवियों के छन्द मितते हैं, जैसे विद्याधर, शा्ङ्धर, जज्ज्वल, बब्बर, हरिब्रह्य, लक्ष्मीधर आदि डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का मत है कि प्राकृत पेंगलम किसी एक काल की रचना नहीं है।

इसमें संकलित पदों का रचनाकाल 900 ईस्वी से लेकर 1400 ईस्वी तक का है। हिन्दी कीउपभाषाओं पर कार्य करने वाले विद्वान् भीइसकी भाषा के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं । ब्रजभाषा पर कार्य करने वाले विद्वानों ने इसे ब्रज भाषा का ग्रंथ माना है किन्तु डॉ उदयनारायण तिवारी के अनुसार इसमें अवधी, भोजपुरी, मैथिली और बंगला के प्राचीनतम रूप भी मिलते हैं। MHD 06 free solved assignment

यह ग्रन्थ आदिकालीन काव्य/ भाषा/ हिन्दी की प्रकृति को समझने में बहुत सहयक है। यह उस समय के विभिन्न वर्गों की आर्थिक स्थिति के बारे मैं जानकारी देता है। डॉ रामचन्द्र शुक्ल ने इसके अध्ययन के बाद अनुमान लगाया है कि शाई्थर अपभ्रश के “हम्मीररासो” के मूल रचयिता है। यह ग्रन्थ हिंदी साहित्य के आदिकाल की रूढ़ियों, परम्पराओं और प्रवृत्तियों को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। भाषाशास्त्रीय दृष्टि से भी यह ग्रन्थ उपादेय है। MHD 06 free solved assignment

इस ग्रन्थ में प्राकृत तथा अपभरंश के छंदों का संग्रह है। प्राकृत पैंगलम् में विद्याधर शारंग, जज्जल, बब्बर आदि कवियों की रचनाओं में कई प्रकार के विषय हैं वीर, श्रंार, नीति, शिव स्तुति, विष्णु स्तुति, ऋतु वर्णन आदि ।

डॉ. हजारीप्रसादइन कवियों के संबंध में लिखते हैं – परन्तु ये सभी रचनाएँ और संदेश रासक, पृथ्वीराज रासो, कीर्तिलता आदि के कविउस श्रेणी के कवि नहीं थेजिन्हें आदिम मनोवृत्ति के कविकहते हैं। वस्तुतः इन रचनाओं में एक दीर्घकालीन परंपरा का स्पष्ट् परिचय मिलता है। MHD 06 free solved assignment

ये कवि काव्य-लक्षणों के जानकार थे, प्राचीनतम कवियों की रचनाओं के अभ्यासी थे और अपने काव्य के गुण-दोष की तरफ सचेत थे। विद्याधर काशी कान्यकुब्ज दरबार के एक कुशल विद्वान् मंत्री थे तथाা जयचन्द के अत्यंत विश्वासपात्र थे।

कविता करने के साथ-साथ ये कविता के परम पारखी भी थे। शुक्ल जी का कहना है कि, “यदि विद्याधर को समसामयिक कवि माना जाये तो उसका समय विक्रम की वीं शताब्दी समझा जा सकता है।” प्राकृत पैंगलम् में इनके पद्यों को देखकर यह सहज में अनुमान लगाया जा सकता है कि जयचन्द के दरबार में जहाँ संस्कृत का मान था वहाँ देशी भाषा का भी काफी आदर था। IGNOU MHD solved assignment

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ग) हिंदी में प्रगतिशील काव्य की परंपरा

हिंदी में प्रगतिशील कविता की परंपरा भारत के साहित्यिक और सामाजिक आदोलनों में महत्वपूर्ण महत्वरखती है। प्रगतिशील कविता देश के सामने आने वाली सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों की प्रतिक्रिया के रूप में उभरी, खासकर आजादी से पहले और बाद के युग में। इसने कविता के माध्यम से असमानता, उत्पीड़न और अन्याय के मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश की।

प्रगतिशील कविता आंदोलन ने 20वीं सदी के मध्य में गति पकड़ी और अगले दशकों में भी फलता-फूलता रहा। यह भारतीय साहित्य में बड़े प्रगतिशील आंदोलन से निकटता से जुड़ा था, जिसका उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना और स्थापित मानदंडों और पदानुक्रमों को चुरनौती देना था।

MHD 06 free solved assignment

हिंदी में प्रगतिशील कविता की परपरा से जुड़े प्रमुख कवियों में फैज़ अहमद फ़ैज, अली सरदारजाफ़री, साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी और मजरूह सुल्तानपुरी शामिल हैं। इन कवियों ने अपनी रचनाओं में गरीबी, वर्ग संघर्ष, सांप्रदायिक सन्द्राव और सामाजिक न्याय की आवश्यकता के बारे में अपनी चिंताएँ व्यक्त कीं।

प्रगतिशील कवियों ने अपने संदेशों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए भाषा और कल्पना की शक्ति का उपयोग किया। उन्होंने सामाजिक असमानताओं की आलोचना करने और अधिक समावेशी और समतावादी समाज की वकालत करने के लिए रूपक, प्रतीकवाद और व्यंग्य सहित काव्य तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला का इस्तेमाल किया। MHD 06 free solved assignment

इस परंपरा की कविताएँ अक्सर मजदूर वर्ग, किसानों और समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के संघर्षों को प्रतिबिंबित करती हैं। इसने एकता, समानता और उत्पीड़ितों के सशक्तिकरण के महत्व पर जोर दिया। प्रगतिशील कवियों का मानना था कि साहित्य को सामाजिक परिवर्तन के लिए उतरेक के रूप में काम करना चाहिए और लोगों को यथास्थिति पर सवाल उठाने और चुनौती देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। MHD 06 free solved assignment

हिंदी में प्रगतिशील कविता की विरासत भारत में समकालीन कवियों और लेखकों को प्रभावित करती रही है। यह देश के साहित्यिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग बना हुआ है और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए कला की शक्ति की याद दिलाता है।

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(घ) रामकाव्य में समन्वय साधना :-

रामकाव्य में, महाकाव्य काव्य जो भगवान राम के जीवन और कार्यों को सम्पित है, सन्द्दाव के विचार पर अक्सर जोर दिया जाता है, और यह कई अलग-अलग चीजों को संदर्भित कर सकता है। रामकाव्य की कहानी, साथ ही इसके पात्रं का चित्रण और इसमें सही और गलत के बारे में जो पाठ हैं, वे सभी सनद्वाव के मूल विचार द्वारा निर्देशित हैं।

रामकाव्य में सामंजस्य के कुछ सबसे महत्वपूर्ण पहलूनिम्नलिखित हैं। रामकाव्य नियमित रूप से मनुष्य और प्रकृति के बीच एक शांतिपूर्ण संबंध का चित्रण करता है। MHD 06 free solved assignment

इस विषय को पूरे पाठ में देखा जा सकता है। मनुष्य और प्राकृतिक दुनिया के सामंजस्यपूर्ण सहवास को लेखक ने नदियों, पहाड़ों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक दुनिया के परिद्श्यों क विशद वर्णन के माध्यम से जीवंत किया है। जंगलों का शांत वातावरण, जैसा कि दंडक वन में देखा जाता है, प्रकृति के साथ सनद्धाव का एक प्रमुख उदाहरण है।

रिश्तों में सनद्राव का महत्व महाकाव्य सभी प्रकार के रिश्तों में सनद्धाव के महत्व पर प्रकाश डालता है, जिसमें एक ही परिवार के सदस्यों के बीच, दोस्तों के बीच और समुदायों के बीच के रिशते भी शामिल हैं।

भगवान राम के अपने पिता दशरथ, उनकी प्री सीता, उनके भाइयों लक्ष्ण, भरत और शत्रुघ्न और हनुमान जैसे उनके भक्तों के साथ जो रिश्ते थे, वे पारस्परिक प्रेम, सम्मान और समर्थन की अवधारणाओं का उदाहरण देते हैं। हनुमान भगवान राम के भक्तों में से एक थे। धर्म और सदाचार की खोज में पात्रों की एकता और सहयोग महाकाव्य के समग्र सामंजस्य में योगदान देता है।

MHD 06 free solved assignment

सामाजिक सनद्राव को बढ़ावा देने के लिए रामकाव्य में न्याय, निष्पक्षता और समानता की अवधारणाओं पर जोर दिया गया है। यह रामकाव्य के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक है। यह स्वयं भगवान राम के रूप में एक आदर्श राजा पर प्रकाश डालता है, जो निष्पक्षता से शासन करता है और अपनी प्रजा की भलाई को बढ़ावा देता है। इस अनुदछेद में इस आदर्श राजा पर प्रकाश डाला गया है।

MHD 06 free solved assignment

महाकाव्य विभिन्न समूहों, जैसे वानर (योद्धा बंदर) और राक्षस (राक्षसी संस्थाएं) को एक-दूसरे की समझ में आकर और एक बड़े लक्ष्य के लाभ के लिए सहयोग करके सामाजिक सद्धाव बनाए रखने के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।

रामकाव्य आध्यात्मिकता के कषेत्र में उतरता है और मनुष्य और परमात्मा के बीच मौजूद सामंजस्प की जांच करता है। इसमें भगवान राम को नैतिकता और दिव्यता के अवतार के रूप में चित्रित किया गया है, उनके कार्य एक ऐसे उद्देश्य से प्रेरित हैं जोउनसे भीऊंचा है। महाकाव्य में, व्यक्तियों से धर्म के मार्ग पर चलकर और नैतिक आदशों पर टिके रहकर आध्यात्मिक सन्द्धाव कायम करने का आप्रह किया गया है।

MHD 06 free solved assignment

सामान्य तर पर, रामकाव्य सद्धाव को एक ऐसे घटक के रूप में प्रस्तुत करता है जो एक अच्छे जीवन के लिए आवश्यक है। यह लोगों के लिए न केवल अपने भीतर बल्कि अपने रिश्तों, समाज और प्राकृतिक वातावरण में भी सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर देता है।

रामकाव्य अपने पाठकों को एकता, संतुलन और आपसी समझ के महत्व पर जोर देकर अपने जीवन के सभी पहलुओं में सद्राव कायम करने के लिए प्रोत्साहित करता है। MHD 06 free solved assignment

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ভ) द्विवेदी युगीन निबंध

द्विवेदी युग हिंदी साहित्य का एक उल्लेखनीय काल था जिसकी शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी। इस काल को छायावाद काल या नव-रूमानियतवाद का काल भी कहा जाता है।

यह अवधि साहित्यिक सौदर्यशास्त्र में बदलाव की विशेषता थी, जिसमें प्रेम, आध्यात्मिकता और आत्मनिरीक्षण की खोज शामिल थी। इस बदलाव का नेतृत्व कई प्रसिद्ध कवियों और लेखकों ने किया। इस निबंध का उद्देश्य द्विवेदी युग की सामान्य समीक्षा और हिंदी साहित्य पर उसके प्रभाव को प्रस्तुत करना है। MHD 06 free solved assignment

द्विवेदी युग, जिसे इसके सबसे प्रभावशाली सदस्य, महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से जाना जाता है, एक साहित्यिक आदोलन था जो पूर्वर्ती साहित्यिक आंदोलनों की राष्ट्रवादी और सामाजिक- राजनीतिक विषयों की प्रबलता की प्रतिक्रया के रूप में विकसित हुआ था।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और जयशंकर प्रसाद जैसे अन्य प्रमुख कवियों के साथ, द्विवेदी ने लेखक की अपनी भावनाओं, कल्पना और जीवन के अनुभवों पर अधिक जोर देने के लिए साहित्यिक सिद्धांत को फिर से तैयार करने के लक्ष्य की दिशा में काम किया। MHD 06 free solved assignment

द्विवेदी युग की विशेषता रोमांटिक और काव्यात्मक विषयों की जांच थी, जो इसकी परिभाषित विशेषताओं में से एक थी। इस समय लिखने वाले कवियों ने मानवीय भावनाओं, प्रेम और आध्यात्मिक पूर्ति की इच्छा की गहराई में उतरते हुए, आत्मनिरीक्षण और आत्मविश्लेषणात्मक स्वर अपनाया। उनकी रचनाओं में दुःख की गहरी भावना के साथ-साथ उदासीनता और अधिक  आदर्श समय अवधि की चाहत भी थी।

द्विवेदी युग के दौरान, छायावाद के नाम से जानी जाने वाली गेय शैली, जिसका अनुवाद “छायावाद” या “रोमांटिकवाद” के रूप में भी किया जा सकता है, प्रमुख् रूप के रूप में उभरी।

IGNOU MHD solved assignment

कवियों ने अपने लेखन में रूपकों, विचारोत्तेजक कल्पनाओं और विस्तृत विवरणों का उपयोग करके सौदर्य की भावना पैदा की और अपने पाठकों में शक्तिशाली भावनाएं पैदा की। जिस भाषा का उपयोग किया गया वह अक्सर काव्यात्मक, मधुर और अत्यंत अभिव्यंजक थी, जो किसी की भावनाओं को बढ़ाने की अनुभूति में योगदान करती थी। MHD 06 free solved assignment

इसके अतिरिक्त, द्विवेदी युग के दौरान, कई महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाएँ और पत्रिकाएँ अस्तित्व में आई। इन प्रकाशनों ने नए साहित्थिक सौदर्यशास्त्र की चर्चा और प्रसार के लिए मंच के रूप में काम किया, और वे इस पूरे समयावधि में सामने आए। सरस्वती, भारती और सुधा जैसे प्रकाशन छायावाद कविता के विकास के साथ-साथ बड़े दर्शकों तक इसके कार्यों के प्रसार के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे।

MHD 06 free solved assignment

द्विवेदी युग का हिंदी साहित्य के विकास पर महत्वपूर्ण और दीर्कालिक प्रभाव पड़ा। इसने स्वयं को अभिव्यक्त करने के नए तरीकों की अनुमति दी, जिसके परिणामस्वरूप बाद के साहित्यिक आंदोलनों और प्रयोगात्मक लेखन शैलियों के लिए द्वार प्रशस्त हुआ। IGNOU MHD solved assignment

इस युग के कवियों ने लेखकों की बाद की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में काम किया, जिससे उन्हें अपने लेखन में भावनाओं, व्यक्तिगत अनुभवों और आध्या्िकता की दुनिया में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया गया। MHD 06 free solved assignment

हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि व्यक्तिगत और व्यक्तिपरक पर आअत्यधिक ध्यान केैंद्रित करने के लिए द्विवेदी युग की भी निंदा की गई थी। सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों से हटने के कारण इस पर अक्सर हमले होते रहे हैं और इस पर विचार करने की जरूरत है। कुछ लोगों द्वारा यह तर्क दिया गया कि इस समय के कवि भावनात्मक रूप से जीवन की कठोर वास्तविकताओं से दूर थे और खुद पर, अपनी भावनाओं और अपनी आंतरिक दुनिया पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते थे।

आलोचना के बावजूद, हिंदी साहित्यिक इतिहास के इतिहास में द्विवेदी युग को आज भी एक महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इसने शब्दों की सुंदरता और मानवीय भावनाओं की जांच पर जोर दिया, जिससे एक गीतात्मक और रोमांटिक मानसिकता सामने आई । MHD 06 free solved assignment

इस युग के कवियों ने ऐसी कविताएँ लिखीं जो समय की कसौटी पर खरी उतरीं और पाठकों के बीच गूंजती रहीं, जो मानवीयअनुभव की आवश्यक प्रकृति को व्यक्त करने के लिए कविता की क्षमता का प्रदर्शन करती हैं। IGNOU MHD solved assignment

MHD 06 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

Your Top Queries To Be Solved :-

  • MHD 06 free solved assignment
  • IGNOU MHD solved assignment
  • IGNOU MHD 06 solved assignment
  • IGNOU MHD free solved assignment
  • IGNOU solved assignment
  • IGNOU free solved assignments
  • IGNOU MHD 06 free solved assignments
  • MHD solved assignment
  • MHD solved free assignment
  • MHD solved assignment free
  • MHD free assignment
  • IGNOU MHD free assignment solved
  • IGNOU MA HINDI solved assignment
  • IGNOU MA HINDI free solved assignment

hindisikhya.in

IGNOU ऑफिसियल वेबसाईट :- IGNOU

Leave a Comment