IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2024

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2024

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MHD 04 (नाटक और अन्य गद्य बिधाएं)

सूचना  
MHD 04 free solved assignment मैं आप सभी प्रश्नों  का उत्तर पाएंगे, पर आप सभी लोगों को उत्तर की पूरी नकल नही उतरना है, क्यूँ की इससे काफी लोगों के उत्तर एक साथ मिल जाएगी। कृपया उत्तर मैं कुछ अपने निजी शब्दों का प्रयोग करें। अगर किसी प्रश्न का उत्तर Update नही किया गया है, तो कृपया कुछ समय के उपरांत आकर फिर से Check करें। अगर आपको कुछ भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है, About Us पेज मैं जाकर हमें  Contact जरूर करें। धन्यवाद 

MHD 04 Free solved assignment (Hindisikhya) :-

1. (क) चूरन सभी महाजन खाते।
जिससे जमा हजम कर जाते।।
चूरन खाते लाला लोग।
जिसकी अकिल अजीरन रोग ।।
चूरन खावैं एडिटर जात।
जिनके पेट पचै नहं बात।।
चूरन साहेब लोग जो खाता।
सारा हिद हुजम कर जाता।।
चूरन पुलिस वाले खाते।
सब कानून हजम कर जाते।।

उत्तर-

संदर्भ – यह अवतरण एक छंद कविता का हिस्सा है और इसमें चूरन के सेवन के साथ-साथ विभिन्न समाज वरगों के लोगों के बीच के विभिन्न प्रतिक्रियाएँ और व्यवहार का चित्रण किया गया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने समाज में विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ-साथ चूरन के सेवन के प्रति उनकी दृष्टि को उजागर किया है और साथ ही यह भी दिखाया है। कि चूरन का सेवन किसी किसी के लिए पायदेमंद हो सकता है जबकि दूसरों के लिए हानिकारक हो सकता है। इस कविता के माध्यम से हम समाज में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के व्यवहार और उनकी दुष्टि के प्रति एक गहरे सोचने का अवसर प्राप्त करते हैं।

व्याख्या – प्रथम चौपाई में कवि चूरन के सेवन का उल्लेख करके समाज में व्यापारिक वर्ग के लोगों के चूरन के सेवन के साथ ही उनके वित्तीय समृद्धि के प्रति भी संकेत कर रहे हैं। यह चौपाई दिखाती है कि कुषछ लोग चूरन को एक आरामदायक और स्वास्थ्यकर आहार मानते हैं जिससे उनका व्यापार भी चलता है।

दूसरी चौपाई में कवि चूरन के सेवन करने वाले लाला लोगों का जिक्र कर रहे हैं और उनके मानसिक स्वास्थ्य के प्रति एक नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं। वे लोग चूरन के सेवन से अपनें दिमाग की समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वे इसके बावजूद अकिल और अजीरन रोगों से पीड़ित हैं। इस स्थिति में कवि चूरन के सेवन के पॉजिटिव पहलू को स्वाधिक नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं।

तीसरी चौपाई में कवि एडिटर जात के लोगों के चूरन के सेवन का वर्णन कर रहे हैं और यह चौपाई दिखाती है कि चूरन के सेवन से उनके पेट को पचाने में समस्या होती है। यह स्थिति चूरन के सेवन के प्रति उनकी नकारात्मक दृष्टि को दिखाती है। और यह भी सूचित करती है कि चूरन के सेवन के प्रति सभी की दृष्टि एक सीमित समय और स्थिति के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।

इस चौपाई में कवि चूरन के सेवन करने वाले साहेब लोगों के प्रति एक पॉजिटिव प्रतिक्रिया प्रस्तुत कर रहे हैं। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि चूरन का सेवन करने से उनके पेट को आराम मिलता है और वे समाज में समृद्धि प्राप्त करते हैं। यह चौपाई दिखाती है कि चूरन के सेवन का प्रति व्यक्ति की शारीरिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं।

पांचवीं चौपाई में कवि पृलिस वालों के चूरन के सेवन का वर्णन कर रहे हैं और यह दिखाते हैं कि चूरन के सेवन के परिणामस्वरूप वे कानून का पालन करने में असमर्थ हो जाते हैं। यह स्थिति कवि के द्वारा चूरन के सेवन के नकारात्मक प्रभाव को दिरखाती है और यह भी सूचित करती है कि कुछ लोगों के लिए चूरन का सेवन अनुचित हो सकता है और वे इससे समस्याओं में पड़ सकते हैं।

इस कविता के माध्यम से हम यह समझते हैं कि चीजों का मूल्यांकन और प्राप्ति समाज में व्यक्तिगत और सामाजिक परिपूर्णता के आधार पर हो सकता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से हमें यह सिखाने का प्रयास किया है कि हमें दूसरों के चयन और प्रतिक्रियाओं को समझने और समर्थन करने का प्रयास करना चाहिए, चाहे वो चूरन के सेवन की चर्चा हो या किसी अन्य चीज की।

इसके अलावा, यह कविता हमें यह भी बताती है कि सभी चीजें सभी लोगों के लिए एक जैसी नहीं होती और हर व्यक्ति की जरूरतें और प्रतिक्रियाएँ अलग-अलग हो सकती हैं।

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IGNOU MHD ALL FREE SOLVED ASSIGNMENT (2023-2024) 

(ख) कई- कई दिनों के लिए अपने को उससे काट लेती हूँ। पर धीरे -धीरे हर चीज फिर उसी ढर्रें पर लौट
जब तक कि हम नए सिरे
यहाँ आती हूँ तो सिर्फ इसीलिए कि
आती है। सब- कुछ फिर उसी तरह होने लगता है जब तक कि हम
से उसी खोह में नहीं पहुँच जाते। मैं यहाँ आती हूँ।

उत्तर-

संदर्भ – यह अवतरण एक व्यक्ति की भावनाओं, अनुभवों, और विचारों को व्यक्त करता है जो आपातकाल की तरह जीवन की दिशा में पुनर्निध्धारण कर रहा है। व्यक्ति का जीवन एक खोह की तरह है, जिसमें वह बार-बार फिर से प्रारंभ करता है, और इसका मतलब है कि उसे खुद को बार-बार पहचानना और नए सिरे से शुरू करने की आवश्यकता होती है।MHD 04 free solved assignment

व्याख्या – यह अवतरण सामान्यत: कई बार हम अपने जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं, परंतु धीरे-धीरे हम वापस वही रुट पर वापस आ जाते हैं जहां से हमने आगे बढने का प्रयास किया था। यह एक सामान्य अनुभव है, जो हमारे जीवन में परिवर्तन की दिक्क्तों और विफलताओं को दर्शाता है।

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व्यक्ति कहता है कि वह अपने को “कई-कई दिनों के लिए उससे काट लेती है,” जिससे यह सुझावित होता है कि वह किसी चीज़ को बदलने का प्रयास कर रहा है, शायद अपने जीवन में नई रुचियां पैदा करने के लिए । लेकिन फिर भी, उसका अनुभव यह दिखाता है कि वह “हर चीज़ फिर उसी ढरें पर लौट आती है,” जिसका मतलब है कि उसके प्रयास अक्सर विफल हो जाते हैं और वह फिर से वही पुरानी स्थिति में वापस आ जाता है।

इसके परिणामस्वरूप, व्यत्ि के जीवन में कुछ भी बदलता नहीं है और “सब कुछ फिर उसी तरह होने लगता है”। यह आवश्यकता को दिखाता है कि हमें नए और स्वयं को पुनर्निर्मित करने के लिए कुछ और करने की आवश्यकता है, न केवल पुरानी रुचियों और विचारों को दोहराने का प्रयास करने की।

फिर व्यक्ति कहता है, “जब तक कि हम नए सिरे से उसी खोह में नहीं पहुँच जाते, मैं यहाँ आतीMHD 04 free solved assignment हूँ।” इस वाक्य के माध्यम से, वह यह संकेत देता है कि वह अब एक नई दिशा में बदलने के लिए पूरी तरह से तैयार है, और वह नए सिरे से अपने जीवन की यात्रा की शुरुआत करने के लिए तैयार है। यह एक संवेगशी और सकारात्मक संदेश है कि जीवन में परिवर्तन संभव है और हमें उसे धीरे-धीरे और नए दृष्टिकोण से देखने की क्षमता होती है। MHD 04 free solved assignment

इस अवतरण से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए संवेगर्शी होने की आवश्यकता है, और हमें बदलाव की दिशा में समर्थन और निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता होती है। हालांकि यह आसान नहीं हो सकता है, लेकिन जीवन की यात्रा में हमें समय-समय पर खुद को नए और स्वयं को पुनर्निर्मित करने का अवसर देने की दृष्टि से आगे बढ़ने की आवश्यकता होती है।MHD 04 free solved assignment

इसलिए, यह अवतरण हमें जीवन के परिवर्तनों और स्वयं के पुनर्निर्माण के महत्व को समझाता है, और यह भी दिखाता है कि सकारात्मक दृष्टिकोण और संवेगशीता हमारे जीवन में सफलता प्राप्त करने के कुंजी हो सकती हैं।

इस अवतरण ने एक व्यक्ति की आत्म-पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को बताया है और सकारात्मक दृष्टिकोण ऑर संवेगशीता की महत्वपूर्ण भूमिका को बताया है। इसे एक व्यक्ति के सोचने की प्रक्रिया का प्रतीक और प्रेरणा स्रोत के रूप में देखा जा सकता है जो अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन करने के लिए प्रतिबद्ध है। MHD 04 free solved assignment

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IGNOU MHD ALL FREE SOLVED ASSIGNMENT (2023-2024) 

(ग) लोहा बड़ा कठोर होता है। कभी- कभी वह लोहे को भी काट डालता है1 उहूँ भाई! मैं तो मिट्टी हूँ –
मिट्टी जिसमें से सब निकलते हैं । मेरी समझ में तो मेरे शरीर की धातु मिट्टी है, जो किसी के लोभ
की सामग्री नहीं. और वास्तव में उसी के लिए सब धातु अस्त्र बनकर चलते हैं, लड़ते हैं, जलते हैं,
टूटते हैं, फिर मिट्टी हो जाते हैं। इसलिए मुझे मिट्टी समझो-धूल समझो।

उत्तर-

संदर्भ – यह उक्ति एक व्यक्ति द्वारा कही गई है और इसमें व्यक्ति ने अपने आत्मविश्वास और स्वानुभव के साथ अपने आत्मा की महत्वपूर्ण बातें साझा की है। इस अवतरण को समझने के लिए हमें इसे गहराई से विश्नेषण करना होगा।

व्याख्या – लोहा बड़ा कठोर होता है। पहला भाग उस धातु लोहे के प्रति इस व्यक्ति की दृष्टि को दर्शाता है जो उसे अपनी स्थिति का संकेत देता है। यहां पर लोहा को कठोरता के साथ वर्णित किया गया है, जिससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि व्यक्ति कितना मजबूत और सख्त है। लोहा एक प्रतिरक्षा और साहस का प्रतीक हो सकता है, जो उसकी स्वाभाविक प्रकृति को द्शाता है। MHD 04 free solved assignment

कभी-कभी वह लोहे को भी काट डालता है। दूसरे भाग में, उसने कहा है कि लोहा कभी-कभी कट भी सकता है। इससे हमें यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति अपने जीवन में चुूनौतियों का सामना करता है और किसी भी परिस्थिति में अपने आप को साबित करने के लिए तैयार है। यह भी दिखाता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए हमें कभी-कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्हें पार करने की क्षमता भी हममें होनी चाहिए। MHD 04 free solved assignment

मैं तो मिट्टी हूँ -मिट्टी जिसमें से सब निकलते हैं। इस भाग में, व्यक्ति ने अपने आप को मिट्टी के समान दशया है। मिट्टी एक नया पैराधीमिक तत्व है, जिससे हमें यह सिखने को मिलता है कि व्यक्ति अपने आप को बिना अहंकार और अभिमान के साथ देखता है। मिट्टी का मूल्यवान गुण है कि वह नई शुरुआतों के लिए जगह बनाती है और उन्हें समर्थन देती है, इसलिए यह एक गर्वितता और आत्मसमर्पण की भावना दिखाता है।

मेरी समझ में तो मेरे शरीर की धातु मिट्टी है, जो किसी के लोभ की सामग्री नहीं, और वास्तव में उसी के लिए सब धातु अस्व् बनकर चलते हैं, लड़ते हैं, जलते हैं, टूटते हैं, फिर मिट्टी हो जाते हैं। अंत में, व्यक्ति ने अपने शरीर को मिट्टी के समान बताया है और इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि हर जीवन अनमोल है।

व्यक्ति का अभिवादन उन सभी लोगों के प्रति है जिन्होंने आपने जीवन में उनका साथ दिया है, और वह यह भी बता रहा है कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग है हमारी आत्मा, जो निरंतर परिवर्तित होती रहती है। MHD 04 free solved assignment

इस अवतरण का संदर्भ समझने के लिए हमें इसके दो प्रमुख तत्वों की ओर ध्यान देना होगा – लोहा और मिट्टी। लोहा कठोरता, सख्तता, और साहस का प्रतीक है, जबकि मिट्टी नई शुरुआतों का प्रतीक है और आत्मसमर्पण की भावना दिखाती है। इसके अलावा, इस अवतरण में यह भी दिखाया गया है कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है हमारी आत्मा, जो हमें जीवन के हर चरण में सहने की क्षमता प्रदान करती है।

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इस अवतरण के माध्यम से व्यक्ति ने अपने आत्मविश्वास को प्रकट किया है और अपने आत्मा की महत्वपूर्ण बातें हमारे सामने रखी है। वह सीख दिलाता है कि हमें खुद को अपने मूल स्वरूप में स्वीकारना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में हमारी मूल आत्मा का साथ देना चाहिए। यह भी हमें याद दिलाता है कि हर जीवन मूल्यवान है और हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, चाहे हम जीते हैं, हारें, या टूटे।

इस अवतरण के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में हमें कभी-कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमारी आत्मा हमें सहने की और आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। यह भी हमें याद दिलाता है कि हमारा मूल स्वरूप कितना महत्वपूर्ण है और हमें खुद को स्वीकारना चाहिए जैसा हम हैं, बिना किसी अहंकार या अभिमान के।

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इस अवतरण के माध्यम से व्यक्ति ने अपने आत्मविश्वास को प्रकट किया है और अपने आत्मा की महत्वपूर्ण बातें हमारे सामने रखी है। वह सीख दिलाता है कि हमें खुद को अपने मूल स्वरूप में स्वीकारना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में हमारी मूल आत्मा का साथ देना चाहिए। यह भी हमें याद दिलाता है कि हर जीवन मूल्यवान है और हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, चाहे हम जीते हैं, या फिर हारें।

इस अवतरण के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में हमें कभी-कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमारी आत्मा हमें सहने की और आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। यह भी हमें याद दिलाता है कि हमारा मूल स्वरूप कितना महत्वपूर्ण है और हमें खुद को स्वीकारना चाहिए जैसा हम हैं, बिना किसी अहंकार या अभिमान के।

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IGNOU MHD ALL FREE SOLVED ASSIGNMENT (2023-2024) 

(घ) यह आत्महत्या होगी प्रतिध्वनि
इस पूरी संस्कृति में
दर्शन में, धरम्म में, कलाओं में
शासन व्यवस्था में
आत्मघात होगा बस अंतिम लक्ष्य मानव का

उत्तर-

संदर्भ- उपर्युक्त अवतरण का उद्देश्य है एक गहरी और विचारमय चर्चा प्रस्तुत करना जिसमें यह संदेश दिया जा रहा है कि आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि यह एक समाजिक और सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में भी विचारकिया जाना चाहिए।

इस आवतरण में यह सुझाव दिया जा रहा है कि आत्महत्या केवल व्यक्तिगत तंत्र नहीं है, बल्कि यह किसी समाज की सोच और संदेशों का परिणाम भी हो सकता है। इसके साथ ही, इस अवतरण में सुझाब दिया गया है कि हमें मानवता के अंतिम लक्षय के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना है और उसके प्रति समर्पिंत रहना चाहिए।

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व्याख्या – प्रारंभ करते हुए, इस अवतरण में यह कहा गया है कि आत्महत्या एक प्रकार की प्रतिध्वनि है। प्रतिध्वनि का अर्थ होता है किसी भी क्रिया की दूहाई, जिसका अर्थ होता है कि यह क्रिया उसके परिणामों से परिपेक्ष्य में किया जा रहा है।

आत्महत्या को प्रतिध्वनि के रूप में प्रस्तुत करने से, यह संकेत मिलता है कि यह एक व्यक्तिगत विचारने का परिणाम हो सकता है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के साथ खुशी और संतोष की कमी महसूस कर रहा है।

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इसके अलावा, यह अवतरण दिखाता है कि आत्महत्या समाज के विभिन्न पहलुओं में एक प्रकार की समस्या हो सकती है। पहले, यह आत्महत्या संस्कृति में हो सकती है। संस्कृति एक समाज की मूल आधार होती है और यदि संस्कृति में आत्महत्या को प्रोत्साहित किया जाता है, तो यह एक समाज के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

दूसरे, यह आत्महत्या दर्शन में भी प्रतिष्टित हो सकती है। दर्शन एक व्यक्ति की आत्मा और मानवता के महत्वपूर्ण पहलु होते हैं, और यदि किसी दर्शन में आत्महत्या को समर्थन दिया जाता है, तो यह उसके अनुयायियों को गलत संदेश देता है।

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तीसरे, यह अवतरण दिखाता है कि आत्महत्या धर्म में भी प्रतिष्ठित हो सकती है। धर्म एक व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, और यदि किसी धर्म में आत्महत्या को स्वीकार किया जाता है, तो यह धार्मिक आदर्शों को उल्लंघन कर सकता है।

चौथे, यह आअवतरण दिखाता है कि आत्महत्या शासन और व्यवस्था में भी प्रतिष्ठित हो सकती है। एक समाज के शासन और व्यवस्था उसकी सुरक्षा और सामाजिक सुख-संतोष के लिए महत्वपूर्ण हैं, और यदि इसमें आत्महत्या को अनदेखा किया जाता है, तो यह उस समाज की सामाजिक संरचना को क्षति पहुँचा सकता है।

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इसके अलावा, यह अवतरण उस आत्मघात को संजीवनी देने के रूप में भी प्रस्तुत करता है कि आत्महत्या केवल एक समस्या नहीं है, बल्कि यह किसी के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकती है, जैसे कि उनका दर्शन, धर्म, शासन,और संस्कृति। इसलिए, हमें आत्महत्या को समझने और रोकने के लिए समाज, धर्म, और संस्कृति के सभी पहलुओं को समालोचना करनी चाहिए।

समर्पण के साथ, यह अवतरण हमें यह सिखाता है कि मानवता का अंतिम लक्ष्य है अपने जीवन को सफल और संतुष्ट बनाना और दूस्रों की मदद करना। आत्महत्या उस लक्ष्य से दूर करने वाला कदम है जिससे हम समाज, धर्म, और संस्कृति को बेहतर बना सकते हैं और मानवता के महत्वपूर्ण मूल्यों का पालन कर सकते हैं।

आत्महत्या को रोकने के लिए हमें समाज, धर्म, और संस्कृति के सभी पहलुओं को समालोचना करनी चाहिए। हमें आत्महत्या को नकारना और सुरक्षा नेटवर्क तैयार करना चाहिए ताकि वो लोग जो इस विचार से गुजर रहे हैं, उन्हें सही मार्ग पर लाने की मदद की जा सके।

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हमें धर्मिक आदर्शों को आत्महत्या के खिलाफ प्रोत्साहित करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि कोई धर्म आत्महत्या को समर्थन नहीं करता। हमें शासन और व्यवस्था में आत्महत्या को नकारना चाहिए और सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए ताकि लोगों को सही मार्ग पर लाने में मदद मिल सके।

समाप्ति में, हमें यह याद दिलाना चाहिए कि आत्महत्या केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज, धर्म, और संस्कृति के साथ जुड़ी हुई है। हमें मानवता के अंतिम लक्षय के प्रति समर्पित रहना चाहिए और आत्महत्या को रोकने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। इसके रूप में, हम समाज को बेहतर बना सकते हैं और मानवता के महत्वपूर्ण मूल्यों का पालन कर सकते हैं।

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3) अंधायुग के चरित्रों की प्रतीकात्मकता का उल्लेख करते हुए नाटक में वर्णित मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता बताइए।

उत्तर-

नाटक अंधायुग में मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता नाटक अंधायुग’ ने भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण रूपपांतर का निरूपण किया है और इसमें चरित्रों की प्रतीकात्मकता एवं मूल्य संघर्ष की अद्वितीयता उजागर करती है। नाटक में प्रस्तुत किए गए चरित्रों की प्रतीकात्मकता ने समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने का कारगर तरीके से किया है।

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अंधायुग के मुख्य पात्र, तामाशी, उसकी भूमिका में समाज की अंधता को प्रतिष्ठित करता है और उसकी आत्मकथा के माध्यम से जनमानस को अपनी असलियत से रूरू कराता है। उसके चरित्र में छिपे मूल्य संघर्ष का प्रस्तुतिकरण ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया है।

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नाटक में दूसरे मुख्य पात्रों की प्रतीकात्मकता भी बेहद महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, हरियाणा के जनाधिकारी वरकील छौरासिया की चित्रण में उनकी सोच में मूल्यों के साथ संघर्ष को बताया गया है।

उनके विचार और क्रियाएं समाज में न्याय की मांग करती हैं, लेकिन इसका सामना करना उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे उनका चरित्र समाज में एक सच्चे नायक की भूमिका को निभाता है, जो मूल्य संघर्ष के माध्यम से समाज में न्याय की दिशा में काम करता है।

नाटक में चरित्रों के माध्यम से मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता उजागर होती है जो समाज की अंधता को उजागर करने का कारगर तरीके से कार्य करती है। यह निरूपण दिखाता है कि कैसे मूल्य संघर्ष एक नाटक के माध्यम से नहीं केवल कला, बल्कि सामाजिक जगत को भी परिवर्तित कर सकता है।

नाटक के माध्यम से आई इस मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता से हमें यह सिखने को मिलता है कि कला न केवल हमारे मनोरंजन के लिए होती है, बल्कि यह एक सकारात्मक समाज की स्थापना में भी अहम भूमिका निभा सकती है और मूल्यों की सुरक्षा में सहायक हो सकती है।

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“अंधायुग” एक महत्वपूर्ण हिंदी नाटक है जिसे धर्मवीर भारती ने लिखा था। इस नाटक में चरित्रों की प्रतीकात्मकता और मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता का अद्वितीय संयोजन किया गया है। “अंधायुग” के चरित्र और मूल्यों की विशेषता निम्नलिखित रूप में है;

वर्णनात्मक चरित्र: “अंधायुग” के प्रमुख चरित्रों का वर्णनात्मक तरीके से चित्रण किया गया है। यह चरित्र नाटक के सन्दर्भ में स्वयं को प्रतीत करने में मदद करते हैं और व्यक्तिगत स्थितियों को दर्शति हैं। इसके बाद द्शक उनके संघर्षों और संवादों को आसानी से समझ सकते हैं।

सामाजिक मूल्यों का प्रशंसापूर्ण प्रतिषान: नाटक में सामाजिक मूल्यों का महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान है। विभिन्न चरित्रों के माध्यम से लड़की की इच्छा और स्वार्थ के बीच के मोरल डाइलेमा को प्रकट किया गया है। यह चरित्र आपसी संघर्षों का प्रतीक है जो व्यक्त और समाज के मूल्यों के बीच होते हैं।

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विशेष गुण और दोषों का चित्रण: धर्मवीर भारती ने अपने चरित्रों को विशेष गुणों और दोषों के साथ चित्रित किया है। यह चरित्रोंको जीवंत और वास्तविक बनाता है, जैसे कि उनमें सफलता की दिशा में कठिनाइयाँ और असफलता की दिशा में उनकी साहसपूर्ण कोशिशें।

प्रासंगिकता: “अंधायुग” नाटक का प्रमुख विषय मूल्य संघर्ष है। इसमें चरित्रों के जीवन में उनके आपसी संघर्षों का प्रतिष्ठान होता है, जो उनके व्यक्तिगत मूल्यों और समाज के मूल्यों के बीच होता है। नाटक के माध्यम से यह।प्रदर्शित किया जाता है कि समाज के मूल्य व्यक्तिगत मूल्यों के खिलाफ कैसे हो सकते हैं और इससे कैसे संघर्षहोता है।

चसित्रों के संघर्ष का उदाहरण: “अंधायुग” में चरित्रो के संघर्ष के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे कि मानवीय और नैतिक संघर्ष, सामाजिक संघर्ष, और स्वार्थी संघर्ष। इन संघर्षों के माध्यम से नाटक मूल्यों की प्रासंगिकता को और भी मजबूत बनाता है और दर्शकों को यह दिखाता है कि इन संघर्षों के समाधान कैसे मिल सकता है।

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चरित्रों का विकास: नाटक में चरित्रों का विकास भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें चरित्रों के विचारों और भावनाओं का परिपरिणाम स्पष्ट रूप से दिखाया जाता है, जिससे उनके मूल्यों की परिभाषा और समझ में आती।

समाज का प्रतिष्ठान: “अंधायुग” में समाज का महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान होता है। समाज के मूल्य और संघर्षों का प्रतिष्ठान इस नाटक के महत्चपूर्ण हिस्से है और इससे समाज के दर्शकों को उनके स्थान के विचार में जागरूक किया जाता है।

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समाज के चुनौतियाँ: नाटक में समाज के सामाजिक और मानवीय चुनौतियों का भी विवेचन किया गया है। चरित्रों के माध्यम से समाज के उन विपरीत पहलुओं को दिखाने के साथ ही उनके समाधान के बारे में भी विचार किया गया है।

“अंधायुग” नाटक के चरित्रों की प्रतीकात्मकता और मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता ने इसे एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प नाटक बना दिया है। इसके माध्यम से हम समाज में मूल्यों के महत्व को समझते हैं और उनके संघर्षों और उनके समाधानों के विचार करते हैं।

“अंधायुग” एक नाटक नहीं है, बल्कि यह एक मानव समाज के गहरे और चुनौतीपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत करता है जो हमारे जीवन में महत्वपर्ण हैं।

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3) लोभ और प्रीति निबंध के भावों का विवेचन करते हुए शुक्लजी की मनोभाव संबंधी अवधारणाओं पर अपना मत प्रस्तुत कीजिए ।

शुक्लजी द्वारा लिखित नाटक लोभ और प्रीति में भावनाओं का विवेचन करते समय, उनकी मनोभाव संबंधी अवधारणाओं की प्रभावशीलता और गहराईयों को अच्छे से समझाया जा सकता है। इस नाटक में लोभ और प्रीति जैसे महत्वपूर्ण भावनाएं सांस्कृतिक एवं मानवता के प्रति शुक्लजी के दृष्टिकोण को दर्शाती हैं।

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शुक्लजी की अवधारित अवधारणा के अनुसार, लोभ और प्रेम दो विपरीत भावनाएं हैं। जो मनुष्य की प्रवृत्तियों को प्रभावित करती हैं। वे मानते हैं कि लोभ व्यक्ति को स्वार्थपर बना देता है, जबकि प्रेम उसे सामाजिक एकता, सहानुभूति, और उदारता की दिशा में प्रेरित करता है।

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लोभ और प्रीति भावों की मनोवैज्ञानिक और व्यवहारपरक व्याख्या करना इसका उद्देश्य है, इसे समझने में हमें कोई कृठिनाई नहीं होती। लेकिन इतना ही इसका उद्देश्य नहीं है। लोभ और प्रीति भावों पर विचार करते हुए वे अन्य बातों पर भी अपना मत व्यक्त करते हैं।

कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि निबंध अवान्तर बातों को स्पष्ट करने के लिए ही लिखा गया है। शुक्लजी के निबंधों में उनकी जीवन दृष्टि और विश्व दुृष्टि भी व्यक्त होती है, मसलन, लोभी और प्रीति की बात करते हुए वे देश प्रेम पर भी विस्तार से विचार करते हैं।

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देश प्रेम पर यह विचार हमें इस बात को स्पष्ट करने से नहीं रोकता कि निबंध में यह विषय अनायास ही नहीं आ गया है वरन् लेखक सोद्देश्य इसकी च्च कर रहा है। इसी प्रकार प्रीति का व्याख्या करते हुए वे प्रेम के विभिन्न रूपों और स्तरों की व्याख्या करते है।भूक्ति काव्य का उदाहरण देकर वे उस प्रेम की श्रेष्ठता बताते हैं जो लोकोन्मुख हो।

स्वयं शुक्लजी के शब्दों में, उस एकान्तिक प्रेम की अपेक्षा जो प्रेमी को एक घेरे में उसी प्रकार बन्द कर देता है जिस प्रकार कोई मर्ज मरीज को एक कोठरी में डाल देता है, हम उस प्रेम का अधिक मान करते हैं जो एक संजीवन रस के रूप में प्रेमी के सारे जीवन पथ को रमणीय और सुन्दर कर देता है, उसके सारे कर्मक्षेत्र को अपनी ज्योति से जगमगा देता है जो प्रेम जीवन की नीरसता को हटाकर उसमें सरसता ला दे, वह प्रेम धन्य है।

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जीवन के प्रति अनुराग, कर्म पर बल और स्वदेश के प्रति प्रेम इन बातों को यदि एक साथ मिलाकर देखें तो हमें निबंध के उद्देश्य को समझने में कठिनाई नहीं होगी। लोभ और प्रीति के मनोभावों द्वारा वे जीवन और जगत् के प्रति एक सकारात्मक और विवेकपूर्ण दृष्टिपूर्ण विकसित करना चाहते हैं।

ऐसा दृष्टिकोण जो इन मनोभावों को असंयमित न होने दे और जो लोगों को कर्म की ओर प्रेरित करे। मनोभावों की जीवन में अहम्भू मिका होती है, लेकिन उनमें सन्तुलन् भी होना जरूरी है। इस निबंध में शुक्लजी इस बात को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं, “पर किसी मनोविकास की उचित सीमा का अतिक्रमण प्रायः वहाँ समझा जाता है।

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जहाँ और मनोवृत्तियाँ दब जाती हैं या उनके लिए बहुत कम स्थान रह जाता है। इस दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि शुक्लजी की दृष्टि में सभी मनोविकारों की जीवन में थोड़ी-बहुत सकारात्मिंक भूमिका जरूर होती है। प्रीति को तो आमतौर पर सकारॉत्मक माना ही जाता है, लेकिन लोभ भी जीवन में अच्छी भूमिका निभा सकता है। यही नहीं लोभ का सकारात्मक पक्ष ही उसे प्रेमें के रूप में परिणत करता है।

शुक्लजी का यह मानना है कि जीवन और जगत के प्रति हमारे मन में किसी तरह का आकर्षण नहीं होगा तो हममें स्वदेश के प्रति भी प्रेम जागृत नहीं होगा। प्रकृति के प्रति प्रेम, स्थान के प्रति प्रेम, वस्तुओं के प्रति प्रेम और लोगों कें प्रति प्रेम के होंने पर ही इंसान में अपने देश के प्रति प्रेम, जागृत होता है। इसी प्रक्रिया में प्रेम मनुष्य को सक्रिय बनाता है।

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उसे कर्मशील बनाता है। यहाँ कर्म पर शुक्लजी का इतना बल देना इसीलिए है क्योंकि उस युग में भारत पराधीन था। देश को पराधीनता से मुक्ति तभी प्राप्त हो सकती थी, जब लोगों में न सिर्फ स्वदेश के प्रति प्रेम हो बल्कि वह प्रेम उन्हें सक्रिय भी करे।

यह सक्रियता पराधीनता के विरुद्ध जन संघर्ष में भागीदारी के रूप में ही सामने आ सकती है। जिसके पनपने को वे उपयुक्त नहीं मानते! हमारा तात्पर्य धन के प्रति लोभ से है और जिसे वे अन्य स्थान पर व्यापारी प्रवृत्ति के बढ़ने के रूप में रेखांकित करते हैं। धन के प्रति लोभ को वे न तो व्यक्ति के लिए और न समाज के लिए हितकर मानते हैं।

इसी बात को वे इस रूप में भी कहते हैं कि क्षात्र धर्म का ह्रास देश और समाज के लिए अनिष्टकारी है। इस प्रकार शुक्लजी लोभ और प्रति निबंध के माध्यम से निबंध विधा में अपनी रचनात्मक कौशलता का ही परिचय नहीं देते बल्कि औपनिवेशिक पराधीनता के तत्कालीन दौर में लोगों के मन में स्वदेश प्रेम की भावना भरते हैं और इस दिशा में प्रयत्न करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

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नाटक में, शुक्लजी ने लोभ की प्रतिष्ठा को बहुत उच्च बताया है जो सांसारिक भोगों और स्वार्थ की ओर प्रवृत्ति करने वाले व्यक्तियों का प्रतीक है। इसे द्वारा, उन्होंने समाज में लोभपूरित व्यक्तियों के प्रति एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है जो सिर्फ अपने ही भले की परवाह करते हैं।

उनकी अवधारित अवधारणा में प्रेम को सामाजिक समरसता और सामंजस्य का प्रतीक माना गया है। शुक्लजी ने बताया है कि प्रेम से ही समाज में सामंजस्य बना रह सकता है और लोभ की स्थिति से ही सामाजिक विध्न का समाप्त हो सकता है। नाटक में, प्रेम का प्रतिष्ठान्तरण और समाज में सुथार के उदाहरणों के माध्यम से, उन्होंने दिखाया है कि कैसे प्रेम समाज में सद्गुण बदल सकता है।

शुक्लजी की अवधारित अवधारणा के अनुसार, लोभ और प्रेम सांस्कृतिक एवं मानवता के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदलने की क्षमता रखते हैं। इस नाटक के माध्यम से, उन्होंने यह सिखाया है कि प्रेम और सहानुभूति के माध्यम से ही हम समृद्धि, सुख, और समाज में सद्गुण को साध सकते हैं, जबकि लोभ ने समाज में असंतुलन, विघ्न, और असमानता को बढ़ावा दिया है।

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(4) “हिन्दी जीवनी साहित्य में कलम का सिपाही एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

हिन्दी जीवनी साहित्य में कलम का सिपाही एक महत्वपूर्ण उपलब्धिहै इस कथन की समीक्षा करते हुए, हम देख सकते हैं कि कलम का सिपाही साहित्य की अद्वितीय धारा को प्रवर्तित करने वाले व्यक्ति को संक्षेप में कहा जा सकता है।

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कलम का सिपाही एक व्यक्ति को सोचने और विचार करने की क्षमता प्रदान करने वाली एक उपलब्धि है। इस व्यक्ति की कलम की ताक़त उसके शब्दों में छुपी सोच और विचारों को सांगठित और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में होती है।

हिन्दी जीवनी साहित्य में, जिन लेखकों ने अपनी कलम को सिपाही की भूमिका में उत्कृष्ट रूप से निभाई है, उन्होंने समाज, साहित्य, और सांस्कृतिक बदलाव को गहराई से छूने में सफलता प्राप्त की है।

इसका एक उदाहरण भारतीय साहित्य के महान कवि महाकवि रामधारी सिंह दिनकर है। उनकी कलम ने भारतीय समाज के समस्याओं, राष्ट्रय भावनाओं, और सांस्कृतिक परंपराओं को अद्वितीय रूप से व्यक्त किया है।

जीवनी विधा की दृष्टि से कलम का सिपाही की अद्वितीयता स्वतः सिद्ध है, जिस रूप में यह जीवनी प्रेमचन्द जैसे साहित्य-सेवी के जीवन-संघर्ष और उनकी विचारधारा को प्रस्तुत करती है। उसमें उनके व्यक्तित्व के सभी रंग दिखाई पड़ते है।

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परिवार के छोटे-छोटे सुख-दुखों में फंसे साधारण व्यक्ति-जीवन से लेकर राष्ट्रीय-सामाजिक और साहित्यिक मसलों पर गंभीरता से विचार करने बाले बुद्धिजीवी-जीवन तक प्रेमचन्दर का जीवन फैला हुआ था।

लेखन कार्य में तललीन प्रेमचन्द को परिवार के सदस्यों का बार-बार आकर पुकारना और अंत में पत्नी शिवरानी देवी का स्वयं आकर कलम छुड़ाना और जबरदस्ती भोजन के लिए ले जाना, बच्चों का पिता के साथ हीं भोजन करने की प्रतीक्षा में सरो जाना और फिर सबका एक-साथ बैठकर रात का भोजन करना-इन सब प्रसंगों द्वारा अमृतराय ने प्रेमचन्द के पारिवारिक जीवन, उनके सहज व्यक्तित्व तथा आत्मीयता की सुन्दर संक्षिप्त झलक प्रस्तुत की है।

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कहीं पर स्वयं जी तोड़कर मेहनत करने वाले अपने बच्चों को सदैव खेलने-कुदने की नसीहत देते प्रस्तुत हुए हैं तो कहीं बीमार बेटी के स्वास्थ्य की चिंता में विचार-मग्न।

प्रेमचन्द का साहित्यिक व्यक्तित्व भले ही समृद्धि के शिखर पर रहा हो लेकिन व्यक्तिगत जीवन में वे सदैव अभावों और तकलीफों से घिरे रहे। अपने मित्रों को लिखे पढ़ों में प्रेमचन्द ने बार-बार अपनी स्थितियों का उल्लेख किया है। उन पात्रों के कुछ अंश अमृतराय ने उद्धृत किए है, जिनमें प्रेमचन्द के संघर्षरत जीवन की व्यथा-कथा झलकती है-

“मैं तो इधर बहुत परेशान रहा…बेटी के पुत्र हुआ ओर उसे प्रसृत ज्वर ने पकड़ लिया, मरते-मरते बची…… मैं अकेला रह गया था। बीमार पड़ा, दातों ने कष्ट दिया….बुढ़ाषा स्वयं रोग है और अब मुझे उसने स्वीकार करा दिया कि अब मै। उसके पंजे में आ गया हूँ।’ किन्तु बुढ़ापे का यह अहसास, अस्वस्थता और बेचारगी, प्रेमचन्द के व्यक्तित्व पर कभी हावी नहीं रहे, भले ही शारीरिक स्तर पर उन्होंने इसकी पीड़ा को भोगा हो। MHD 04 free solved assignment

अमृतराय ने बहुत सुन्दर-सटीक शब्दों में प्रेमचन्द के जीवन का परिचय दिया है-

‘बुढ़ापा वह है जब चित्त बुद्ढ़ा हो जाता है और आदमी केवल साँस के आने-जाने को जिन्दगी समझने लगता है जब निष्ठा के पैर डगमगाने लगते हैं और तरुणाई के आदर्श संकल्प सदा झूठे जान पड़ते है। जब अन्याय देखकर ऑँखों में खुून नहीं उतरता, बुढ़ापा वह है यहाँ तो अभी वैसी कोई बात नहीं हैं।”

वस्तुतः प्रेमचन्द के व्यक्तित्व में जो उत्कट जिजीबिषा और जीवं तता है सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लड़ता हुआ, साम्प्रदायिक सद्जाव के. प्रति सचेत, साहित्यिक मसलों पर निडर और दो-टूक बात करने वाला ‘प्रेमचन्द का जुझारू रूप अनेंक घटनाओं के माध्यम से उंभरकर सामने आया है। जैसा कि अमृतराय ने टिप्पणी की है-

.. कोई भी बात हो, छोटी हो बड़ा हो, अपनी हो’ पराई हो, जहाँ भी कोई अन्याय हो रहा हो, मुंशीजी जूझने के लिए तैयार हैं। राष्ट्रीय एकता और साम्प्रदायिक सद्धाव के प्रति मुंशी जी सदा जागरूक दिखते हैं। हजरत मुहम्मद की पुण्य-तिथ पर हुए जलसे और उसमें पंडित सुन्दरलाल की दी हुई स्पीच को वे अपनी पत्रिका में महत्वपूर्ण स्थान देते हैं।

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जबकि दोनों सम्प्रदायों के बीच विद्वेष बढ़ाने वाले हर व्यक्ति को वे आड़े-हाथों लेते हैं। फिर चाहे वह कोई प्रसिद्ध लेखक ही क्यों न हो- इन चतुरसेन को कया हो गया कि इस्लाम का विषवृक्ष! लिख डाला? उसकी एक आलोचना तुम लिखों और वह पुस्तक मेरे पास भेजो….इस कम्युनल प्रोपेगण्डा का जोरों से मुकाबला करना होगा….

प्रेमचन्द हिन्दू जाति का पुरोहितों, पुजारियों, पंडों और धर्मोपरजीवी कीटाणुओं से मुक्त कराने अभिलाषी है। वे मानते हैं कि हिन्दूर जाति का सबसे घृणित कोढ़ सबसे लज्जाजनक कलंक यहा टक्रेपंथी दल हर जो एक विशाल जोंक की भॉति उसका खून चूस रहा हैं। पूँजीवादी अर्थ-नेतिक विडम्बना पर भी मुंशीजी के विचार स्पष्ट रूप से इस अध्याय में उभरकर आए है।

उनके अनुसार, वरर्तमान समय में सामाजिक विसंगतियों की जड़ यही वर्ग हैं पूँजीवादी चाहे वह किसी भी देश या जाति का हो, मुंशी जी उसे एक ही प्रवृत्ति का मानते हैं और संसार मे आई हुई हर तबाही
का कारण पूँजीपति को ही मानते हैं- यह साप्राज्यवाद की विपत्ति जिससे संसार त्राहि- त्राहि कर रहा है, यह किसकी बुलाई हुई है? इन्हीं कुबेर के गुलामों की…ह जो बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ होती हैं।

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जिनमें खून की नदियाँ बह जाती हैं इसका जिम्मेदार कौन है? यही लक्ष्मी के उपासक।’ इसलिए वे मानते हैं कि जब तक सम्पत्ति पर व्यक्तिगत अधिकार रहेगा, तब तक मानव समाज का उद्धार नहीं हो सकता। पुरोहितवाद की ही तरह, इस पूँजीवाद के प्रति भी प्रेमचन्द की लेखनी में असंतोष और आक्रोश के तीखे
स्वर हैं-

“यह आशा करना कि पूँजीपति किसानों कौ दीन दशा से लाभ उठाना छोडु देंगे, कुत्ते से चमड़े की रखवाली करने की आशा करना है। इस खूंखार जानवर से अपनी रक्षा करने के लिए हमें स्वयं सशस्त्र होना पड़ेगा। प्रेमचन्दर का जीवन और उनका बहु-आयामी व्यक्तित्व हर मोचें पर कमर कसे दिखाई देता है।

राष्ट्रीय-अंतरष्ट्रीय हर महत्वपूर्ण मसले पर उनका गंभीर चिंतन उनके सरकारों का स्पष्ट उदाहरण है, चाहे सीमा प्रदेश में हो रही बमबारी हो या पुलिस के अमानवीय कृत्य, कोर्ट कचहरी कर लचर व्यवस्था हो या जेलों की स्थिति। मुंशी जी की लेखनी हर मसले पर उठती है, एक अन्य घटना जिसका संबंध त्कालीन साहित्यिक माहोल से है, प्रस्तुत अध्यया में विस्तार से वर्णित कौ गई है।

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ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने बनारसीदासका इंटरव्यू लेकर उसमें अपनी तरफ से नमक-मिर्च लगाकर पत्रिका में छाप दिया, मुंशी जी इस मसले परभी चुप नहीं रहे और “साहित्यिक गुंडापन’ शीर्षक से “इंस’ में इस मामले की चर्चा करते हुए कूद पड़े और बनारसीदास जी की ओर से जोरदार पैरवी कर डाली। इस प्रसंग से जहँ प्रेमचन्दर की या सहृदयता, निर्भीकताऔर बेलाग बात करने की प्रवृत्ति पर प्रकाश पड़ता है वहीं तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं को साधनहीनता और उनकी दयनीय स्थिति का भी संकेत मिलता है।

कलम का सिपाही में प्रेमचन्द का जुझारू व्यक्तित्व ही उभरकर सामने आता है, जो हर कठिनाई, हर चुनौती का सामना करने को प्रस्तुत है लेकिन कहीं- कहीं उनकी निराशा और टूटन की झलक भी मिलती है। विशेष रूप से पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में।

प्रेमचन्द ने अपने प्रसिद्ध पत्र ‘हंस के साथ-साथ “जागरण का दायित्व भी संभाला था लेकिन पत्रिकाओं की दयनीय दशा का असर उनके प्रकाशन पर भी पड़ा, उनके पूरे श्रम और समर्पण के बावजूदभी दोनों पत्र घाटे में चलते रहे।

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कभी कागज के पैसे चुकाने में कठिनाई हो, कभी मजदूरों के वेितन की समस्या, जिससे निपटने के लिए वे पूरजीपतियों से गुजारिश करते हैं ताकि विज्ञापन मिल सके, इधर-उधर हाथ-पैर मारते हैं, पर फिर भी प्रकाशन का कार्य छोड़ नहीं पाते। अपनी किताबों की आमदनी फूँककर अपनी जिन्दगी का आराम-चैन
गंवाकर भी इस कार्य को संभाले रहते हैं। अपने सहयोगी मित्रों को लिखे पत्रों में उनकी हताशा, छटपटाहट और जद्दोजहद बड़ी शिद्दत से उभरी है-

“दूस हजार रुपए और ग्यारह साल की मेहनत सब आकस्थ हो गई। इस प्रेस के पीछे कितने मित्रों से बुरा बना, कितनों से वादा खिलाफी की, कितना बहुमूल्य समय जो लिखने में कटता बेकार प्रूफ देखने में कटा। मेरी जिन्दैंगी को यह सबसे बड़ी गलतो है।” इस तरेह, संबेदना के स्तर पर प्रेमचन्द के संघर्षशील व्यक्तित्व को रूपायित करने के साथ-साथु तय्यगीन समस्याओं, साम्प्रदायिकता और पूँजीवाद के स्वरूप को भी प्रकट करता है।

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आज प्रेमचन्द की प्रतिष्ठां एक युग- प्रवर्तक स्राहित्यकार के रूप में है लेकिन उस समय में वे किस तरह साहित्यिक विवादों के घेरे में फंसे रहे और साहित्य को व्यवसाय बनाने वाले साहित्य- कर्मियों का उन्होंने कैसे डट्कर विरोध किया उससे उनके जीवट का पता चलता है। साहित्य को अपने जीवन का उद्देश्य मानने वाले प्रेमचन्द ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हंस और ‘जागरण’ को चलाने का भरसके प्रयत्न किया लेकिन अपने निकट उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा कि शायद यह उनके जीवन् की सबसे बड़ी गलती थी।

फ़िर भी तमाम निराशाओं के बावजूद वे निरुत्साहित नहीं हुए बल्कि जीवन के अंत तक अपनी इस साधेना में लीन रहे। प्रेमचन्द के ऐसे अपराजेय, युगद्रष्टा और क्रान्द्रृदर्शी व्यक्तित्व का साकार करने में अमृतराय निश्चित रूप से सफल रहे हैं।

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वीर शिरोमणि और उधेड़-बुन जैसी काव्य-ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने राष्ट्र निर्माण, स्वतंत्रता, और धर्म के महत्वपूर्ण मु्दोंपर अपने दृष्टकोण को साझा किया। उनकी कलम ने राष्ट् की भूमि पर एक सिपाही की भावना को जीवंत किया और उसने साहित्यिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत किया।

कलम का सिपाही जिस प्रकार से समाज के बीच से उठ उठ कर उसे समझाता है, वही उसे एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बनाता है। इससे समाज में चेतना और जागरूकता उत्पन्न होती है जिससे समाज की समस्याएं समझी जा सकती हैं और इनका समाधान निकाला जा सकता है।

इसी प्रकार, हिन्दी जीवनी साहित्य में कलम का सिपाही एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है इस कथन को समीक्षात्मक रूप से देखते हैं, तो हम यहां तक पहुँचते हैं कि साहित्यकारों और कवियों की कलम ने समाज को सकारात्मक दिशा में प्रेरेत किया है और उन्होंने समाज की समस्याओं को बोझिल बनाने में मदद की है।

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5) अदम्य जीवन की विषयवस्तु के प्रति लेखकीय दृष्टिकोण का सोदाहरण विश्लेषण कीजिए।

अदम्य जीवन एक ऐसा साहित्यिक तथा दार्शनिक कृति है जिसमें लेखक ने मानव जीवन के अदम्य पहलुओं को गहराई से छूने का प्रयास किया है। इसमें लेखकीय दृष्टिकोण से मानवता के विभिन्न पहलुओं, समस्याओं, और दुखों का विश्लेषण होता है।

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अदम्य जीवन में लेखक ने मानव जीवन को एक साहित्यिक दृष्टिकोण से देखा है जिसमें समझदारी, दया, और सामंजस्य की भावना उजागर होती है। लेखक ने यहाँ तक कहा है कि अदम्य जीवन उस अनदेखे और अज्ञात सत्य की ओर मानवता को मोड़ने का प्रयास करता है।

बंगाल स्थित शिद्धिरगंज गाँव की स्थिति, अकाल जनित तबाही एवं संकट-

अकाल ने शिद्धिरगंज की स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। लेखक रिपोर्टर के रूप में चिकित्सक-दल के साथ बंगाल स्थित शिद्धिरगंज पहुँचता है। वह बंगाल में पड़े भीषण अकाल की त्रासदी एवं व्यथा-कथा का प्रत्यक्षदर्शी होना चाहता है।

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शिद्धिरगंज पहुँचने पर सबसे पहले उसे एक मिट्टी का ढूह दिखलाई देता है। वह एक कब्र है। साथी बताता है कि आज ‘इस गाँव की यही तारीफ है। आदमी मिलने से पहले यहाँ कबें शुरू हो जाती हैं।’ गाँव में कहीं-कहीं टूटे घर हैं किंतु उनके पास भी कब्र हैं। लेखक एक टूटे घर के पास पेड़ों की छाया में चौदह कब्रों को देखता है। इस गाँव में हर घर में मौत हो चुकी है, हजारों व्यक्ति मर चुके हैं, जो नहीं मर सके वे कंकाल बने जीवित हैं।

रहमत के घर में पचीस लोग थे, जिनमें से बीस मर गये। अब्दुर्रहमान के घर में सोलह आदमी थे, आज वह अकेला बचा है। आदू मियाँ के घर में उन्नीस आदमी थे आज उनमें से कोई जीवित नहीं है। मरे हुए व्यक्तियों को ठीक से कब्र भी नसीब नहीं हुई है।

मृतकों को बिना कफन के गाड़ दिया गया है। जब जिन्दों के लिए कपड़ा नहीं है तब मृतकों की क्या गिनती है। एक-एक कब्र में दो-दो, तीन-तीन लाशें दफन हैं। अकाल से पहले शिद्धिरगंज एक भरा-पूरा गाँव था।

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अब अधिकांश घरों की टीनें उखड़ गई हैं। कितनों ने ही भूख से बचने के लिए अपनी टीनें बेच दी हैं। जो टीने नहीं बिकी हैं उसका कारण यह है कि वे उन्हें बेचने के लिए बाजार तक नहीं जा सके। टीन के घरों के अतिरिक्त गाँव में गरीबों के झोंपड़े थे, वे अब भी कुछ बचे हुए हैं।

शिद्धिरगंज में ढाके की प्रसिद्ध साड़ियाँ बुनने वाले जुलाहों के बहुत से परिवार थे। अब वहाँ दो-चार घर ही रह गये हैं। शिद्धिरगंज में जो जीवित बचे हैं उसके पास रोजी-रोटी का कोई उपाय नहीं है। आज वहाँ कुछ लंगर खाने खुल गये हैं, जिनसे भूखे व्यक्तियों को कुछ राहत दी जाती है। हिन्दू और मुसलमान बच्चों के लिए वहाँ एक-एक लंगरखाना खुल गया है।

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दोनों में सौ-सौ बच्चे खाते हैं। उनको पूरा भोजन नहीं मिल पाता है। वे किसी तरह जी पा रहे हैं। अनाज इतना महँगा हो गया है कि लोग उसे खरीद नहीं सकते। अधिकांश लोगों को एक शाम खाकर गुजारा करना पड़ता है। कई तो शकरकंद खाकर गुजारा कर रहे हैं। भुखमरी के अतिरिक्त गाँव में रोगों का भी भारी प्रकोप है। जिन रोगों ने गाँव के लोगों को पीड़ित किया है, वे हैं-मलेरिया, बसंत (चेचक) और चर्म रोग।

तबाही एवं संकट के कारणों का संकेत-

पूर्वी बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थित भीषण संकट और तबाही का प्राथमिक कारण अकाल है किंतु उस संकट के दीर्घकाल तक बने रहने और उससे अनेक दूसरे संकटों के उत्पन्न होने के दूसरे कारण हैं। वे हैं-

  • ब्रिटिश सरकार की दायित्वहीनता एवं संवेदना शून्यता;
  • पूँजीपतियों का भ्रष्टाचार, जमाखोरी एवं मुनाफाखोरी;
  • सहायता-सामग्री का अभाव एवं समय पर उसका न मिलना;
  • जनता में एकता का अभाव।

1942 में भारत में ब्रिटिश सरकार का शासन था। तब पूर्वी बंगाल भारत का अभिन्न अंग था। बंगाल में अकाल पड़ने पर वहाँ बचाव-दल और सहायता-सामग्री पहुँचाने का दायित्व ब्रिटिश सरकार पर था किंतु उसने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे अकाल-जनित संकट को अविलंब रोका जा सके।

लगभग तीन वर्षों तक यह संकट बना रहा और ब्रिटिश सरकार दूर से ही यह सब देखती रही। देश के पूँजीपतियों और संपन्न लोगों ने भी उपयुक्त भूमिका नहीं की। चावल, कपड़ा, दवा आदि सभी आवश्यक वस्तुओं को बाजार से गायब कर दिया गया।

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पूँजपति अधिक मुनाफा कमाने के लिए जमाखोर हो गये, सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा पर्याप्त सहायता-सामग्री समय पर नहीं भेजी जा सकी। सहायता के लिए जो कार्ड बाँटे गये उसमें भी धांधली हुई। शिद्धिरगंज के एक व्यक्ति ने बताया कि गाँव-कमेटी और यूनियन बोर्ड के मेंबर चोर हैं। उन्होंने कार्ड उन्हें दिया जो उनके रिश्तेदार अथवा अपने आदमी थे। गाँव में एकता की भी कमी थी।

यदि उनमें एकता होती तो वे भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध लड़ सकते थे। यूनियन-बोर्ड के भ्रष्ट सदस्यों के खिलाफ वे खड़े नहीं हो सके। यदि वे संगठित हो सकते तो संवेदना शून्य सरकार, भ्रष्ट पूँजीपति एवं अधिकारी आदि के खिलाफ खड़े होते और तबाही और संकट से बहुतों को बचा लेते।

संकटग्रस्त मानवों की अन्तर्निहित अदम्य जीवनी शक्ति-

‘अदम्य जीवन’ का एक महत्त्वपूर्ण प्रतिपाद्य यह है कि भीषण संकट में पड़े होने के बावजूद लोगों ने हिम्मत नहीं हारी है। जो लोग जीवित हैं, वे संकटों से लड़ना चाहते हैं। उन्होंने अपना साहस नहीं खोया है। वहाँ के बच्चों में क्रांति भावना है। लेखक के अनुसार उनमें अद्भुत जीवनी शक्ति है। भीषण से भीषण संकट भी उन्हें दमित नहीं कर सका है। उनका जीवन अदम्य है।

इस कृति में लेखकीय दृष्टिकोण द्वारा अदम्य जीवन की विषयवस्तु का विश्लेषण किया जाता है। और विभिन्न विचार और आदशशों के माध्यम से उसकी महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया जाता
है। लेखक ने अदम्य जीवन को मानवता के सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक परिप्रेक्ष्य से देखा है।

एक उदाहरण के रूप में, लेखक ने व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर अदम्य जीवन की समस्याओं को उजागर किया है। उन्होंने उदाहरण के रूप में विभिन्न कविताओं, कहानियों, और निबंधों के माध्यम से मानव जीवन के अंदर छिपे गुहरे संघरषों और विचारों को बयान किया है।

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इस विषय में लेखकीय दृष्टिकोण के माध्यम से अदम्य जीवन का विवेचन करते हुए, लेखक ने सामाजिक न्याय, सद्धावना, और मानवाधिकारों की महत्वपूर्णता को बताया है। वे समझाते हैं कि अदम्य जीवन का सत्य उसी समर्थन, सहानुभूति, और सहयोग के माध्यम से सम्भव है, और समाज को एक सजीव और समृद्धि शील समुदाय बनाए रखने के लिए इसे अपनाना होगा।

समाप्त में, अदम्य जीवन की विषयवस्तु के प्रति लेखकीय दृष्टिकोण का सोदाहरण विश्लेषण से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि लेखक ने इस कृति के माध्यम से मानव जीवन को साहित्यिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया है और उसने सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक पहलुओं को समझाया है। MHD 04 free solved assignment

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(6) (क) तांबे के कीडे की प्रतीक योजना

उत्तर-

तांबे के कीड़े की प्रतीक योजना का मुद्दा एक गंभीर समस्या है जो खाह्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। ये कीड़े खेतों में तांबा उत्पन्न करने वाले पौधों पर हमला करते हैं और उत्पादन को कम कर सकते हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए, सरकारों और किसानों को मिलकर कदम उठाना होगा।

नए तकनीकी उत्पादों का अधिक प्रयोग, जैसे कि कीटनाशकों का सही तरीके से उपयोग और जैव उर्वरकों का प्रचार-प्रसार, इस समस्या का समाधान करने में सहायक हो सकते हैं। किसानों को शिक्षित करने, सुरक्षित तांबा उत्पादन के लिए उन्हें आवश्यक साधन प्रदान करने और सामुदायिक सहयोग से, हम इस प्रतीक योजना के खिलाफ सशक्त प्रतिबद्धि बना सकते हैं।

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ताँबे के कीडे एक असंगत नाटक है। असंगत नाटक की अवधारण पश्चिम से आई है और इसका संबंध दूसरे विश्व युद्ध की स्थितियों से है। इस एकांकी की कथावस्तु बहुत सीधी नहीं है। उसमैं घटित होने वाली घटनाओं मैं असंगति नजर आती है।

कथावस्तु का विवेचन-‘ताँबे के कौंड़े’ एंकाकी मैं क्रमबद्ध या ठोस कथा-वस्तु नहीं है। चरित्र भी विकसित या समग्रता लिए हुए नहीं है। स्थिति और विचारों को स्क्रीन के पीछे से, विभिन्‍न पात्रों के माध्यम से मंच पर प्रतिध्वनित किया गया है। मंच पर केवल महिला अनाउंसर ही रहती है। नाटक, पार्श्व-नाटक की शैली मैं लिखा गया है। यानी नाटक का मुख्य क्रिया व्यापार जितना मंच पर घटित होता है।

ताँबे के कोड़े में द्वितीय विश्वयुद्ध से उत्पन्न संत्रास और भय को चित्रित किया गया है। विज्ञान के निर्माण और विनाशक अविष्कारों के सामने हम बोने हो गये हैं। हमारे अस्तित्व का संकट उभर कर सामने आ जाता है।

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भौतिक लिप्सा ने हमको अत्यधिक स्वार्थी और अजनबी बना दिया है। हम अकेले, लक्ष्यहीन अपने अस्तित्व की खोज मैं लगे है। स्क्रीन कै पीछे से उठती आवाजें कहती है-‘किसने अपने पड़ोसी का चेहरा पहचाना? किसने अपनी आत्मा में जीवन के आदि मुहूर्त को सिसकते-सुबकते नहीं सुना? अकेले और बेसरोसम्मान हम भूले हुए रास्ते खोजती है।’

अनाउंसर कहती है कि ‘हम खुद नियम और मनुष्य को कायल कर देती है और हमारे अंतर के अंधकार से शक्ति फूट पड़ती है। हम अपनी आत्मा से रचते है और शरीर से नाश कर देते है कि हम फिर अपने सत्य से उसे सजाएँ।

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(ख) साक्षात्कार और ‘ऑक्टेवियो पॉज

उत्तर-

ऑक्टेवियो पॉज एक श्रेष्ठ आत्मकथा लेखक हैं जिन्होंने अपने उपनिवेशक का नाम जीवन और दूसरे हाशिए से बना लिया है। उनकी साक्षात्कार कला अत्यंत सूक्ष्म और सौम्य है, जिससे वह अपने पाठकों को गहरे मंस्तब्ध भावनाओं के साथ जोड़ने में सक्षम हैं। उनके साक्षात्कारों में, वे अपने साक्षात्कारी सुझावों के माध्यम से अद्वितीय दृष्टिकोण दर्शति हैं, जो व्यक्ति के जीवन और उनकी सोच को परिवर्तित कर सकता है।

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आक्टेवियो पॉज विद्वान लैटिन अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान कवि चिंतक हैं  । हिंदी के वरिष्ठ कवि और कथाकार श्रीकांत वर्मा द्वारा इनका साक्षात्कार लिया गया । “साक्षात्कार”  में विशिष्ट व्यक्ति से  किसी विषय पर प्रमाणिक जानकारी ली जाती है तथा बातचीत के द्वारा उसके दृष्टिकोण , मंतव्यों – मान्यताओं को समझने का प्रयास किया जाता है । MHD 04 free solved assignment

साक्षात्कार के प्रकार आम व्यक्ति से साक्षात्कार चुनाव से संबंधित हत्या से संबंधित इत्यादि हो सकते हैं
इसमें पड़ोस के व्यक्तियों या घटना स्थल पर उपस्थित लोगों से बातचीत की जाती है इस तरह के
साक्षात्कार लेना काफी मुश्किल भी होता है क्योंकि किसी व्यक्ति से घटना के बारे में पूछताछ करने पर
उसे संदेह में भी डाल सकता है आ सकता है यह कार्य रिपोर्टर का ही है कि वह उन व्यक्तियों का विश्वास
जीतें इस तरह के साक्षात्कार का कोई मार्ग नहीं होता है परेशानियां उठानी पड़ती है।

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असम बंध और बातें सुननी पड़ती है और यह सब ‘रिपोर्टरों को सुनना और सहना पड़ता है ताकि उसके उद्देश्य की पूर्ति हो सके।

ऑक्टेवियो पाज का साहित्य क्षेत्र में योगदान महत्वपूर्ण है और उनके रचनात्मक प्रवृत्ति की बजह से उन्हें विशेष रूप से माना जाता है। उनके साक्षात्कार उनकी विचारशीलता, साहित्यिक दृष्टिकोण, और विशेष रूप से उनके कला सौंदर्य को सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में स्थापित करने में मदद करते हैं।

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(ग) धोखा निबंध का प्रतिपाद्य

उत्तर-

धोखा भारतेंदु युग के एक प्रमुख निबंधकार प्रतापनारायण मिश्रा के निबंध हैं जहां धोखा, छल, बेईमानी, झांसा देना, डराना-धमकाना और छल करना सच बोलने के ऐसे तरीके हैं जो पूरी तरह से सच नहीं हैं। यह आधा सच और आधा झूठ का मिश्रण है। धोखे में दिखावा, झूठा प्रचार और हाथ की सफाई शामिल हो सकती है। इसका उपयोग व्याकुलता, छल या छुपाने के लिए भी किया जा सकता है। ऐसे में कोई भी धोखा खा सकता है।

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धोखाधड़ी एक प्रमुख संबंधपरक उल्लंघन है, जो अक्सर संबंधित भागीदारों में विश्वासघात और अविश्वास की भावनाओं को जन्म देता है। धोखा देना संबंधपरक नियमों का उल्लंघन करता है और इसे अपेक्षाओं का नकारात्मक उल्लंघन माना जाता है। अधिकांश लोग मित्रों, संबंधित भागीदारों और यहां तक ​​कि अजनबियों से हमेशा सच्चे रहने की अपेक्षा करते हैं।

लेकिन धोखेबाज लोगों की ज्यादातर बातचीत झूठी होती है, वे दूसरों से विश्वसनीय जानकारी हासिल करने या उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए छलावरण का काम करते हैं। किसी भी दिन, यकीनन ज्यादातर लोग या तो धोखा देते हैं या किसी को धोखा देते हैं। रोमांटिक और संबंधित भागीदारों के बीच धोखे की एक महत्वपूर्ण डिग्री है।

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धोखा एक चिंता भरा विषय है जो सामाजिक, व्यक्तिगत, और नैतिक संदर्भों में अधिक प्रासंगिक हो रहा है। धोखा व्यक्ति की आत्मा में असहायता, दुख, और आत्मविश्वास की कमी डाल सकता है। समाज में, विशेषकर व्यक्ति के बीच सामंजस्य और भरोसा बहुत अहम हैं। एक व्यक्ति जब किसी से धोखा खाता है, तो इससे सामाजिक संबंधों में गहरा दरार पैदा हो सकता है और व्यक्ति की भविष्य में भी असर कर सकता है। MHD 04 free solved assignment

धोखा न केवल व्यक्ति के बीच होता है, बल्कि व्यापारिक, राजनीतिक, और सामाजिक क्षेत्रों में भी हो सकता है। ऐसा आचरण विशेषकर विश्वास और न्याय के प्रति लोगों की आस्था को कमजोर कर
सकता है। इसलिए, समाज में विशेषकर युवा पीढ़ी को धोखे से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए और अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए सही मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक है। MHD 04 free solved assignment

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(घ) ‘ठकुरी बाबा’ की चारित्रिक विशेषताएं

उत्तर-

ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। MHD 04 free solved assignment

वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है। MHD 04 free solved assignment

लोगों से वस्तुओं के विनिमय अर्थात आदान-प्रदान में वो सरल व सीधे हैं और ये नही देखते कि लोगों उनसे क्या लेकर बदले में क्या दिया।कोई उन्हें मात्र एक गुड़ की डली देकर बदले में आधा सेर आटा ले जाता है तो कोई तोला भर दही देकर कटोरा भर चावल ले जाता है। कोई छंटाक भर घी देकर लोटा भर दूध चाहता है और कोई केवल चार मिर्चों के बदले शकरकंद का आनन्द लेना चाहता है।

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ठाकुरी बाबा, जिनका असली नाम रामकृष्णा ठाकुर था, एक महान आध्यात्मिक गुरु थे जो भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन को प्रेरित करने वाले व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाते हैं। इनकी चारित्रिक विशेषताएं उनके समर्पण, त्याग, विवेक, और उदारता में प्रमिलित हैं। ठाकुरी बाबा का समर्पण अपने शिष्यों और भक्तों के प्रति अत्यधिक था। MHD 04 free solved assignment

उन्होंने अपने जीवन को सामर्थ से भरकर भगवान के सेवानिवृत्त होने में बिताया। त्याग और विवेक में ठाकुरी बाबा ने अपने शिष्यों को आदर्श दिखाया। उनकी अन्योन्य विवादनीयता और संतुलन ने उन्हें एक आदर्श गुरु बनाया। ठाकुरी बाबा की उदारता भारतीय समाज में एक प्रेरणा स्रोत बन गई है।

उन्होंने अविवेक, असंतुलन, और असमानता के खिलाफ उठने के लिए प्रेरित किया और मानवता के लिए समर्पित जीवन जीने की महत्वपूर्ण बातें सिखाई। MHD 04 free solved assignment

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