IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

Contents

MHD 04 (नाटक और अन्य गद्य बिधाएं)

सूचना  
MHD 01 free solved assignment मैं आप सभी प्रश्नों  का उत्तर पाएंगे, पर आप सभी लोगों को उत्तर की पूरी नकल नही उतरना है, क्यूँ की इससे काफी लोगों के उत्तर एक साथ मिल जाएगी। कृपया उत्तर मैं कुछ अपने निजी शब्दों का प्रयोग करें। अगर किसी प्रश्न का उत्तर Update नही किया गया है, तो कृपया कुछ समय के उपरांत आकर फिर से Check करें। अगर आपको कुछ भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है, About Us पेज मैं जाकर हमें  Contact जरूर करें। धन्यवाद 

MHD 04 Free solved assignment (Hindisikhya) :-

1 (क) एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं।टके के वास्ते ब्राहमण से धोबी हो जाएं और धोबी को ब्राहमण कर दें, टके के वास्ते, जैसी कहो, वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करें। टके के वास्ते ब्राहमण से मुसलमान, टके के वास्ते हिन्दू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचें ।

उत्तर:-

संदर्भ प्रस्तुत गद्यांश भारतेन्दु हरिश्वंद् के व्यंग्य नाटक ‘अंधेर नगरी’ से आनीत है। यह नाटक देश की दुर्दश एवं अराजकता का यथार्थ चित्रण करता है। देश में शासन और प्रजा दोनों भ्रष्ट हैं। जात, धर्म, क्षेत्र के नाम पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है। धन का लोभ इतना बढ़ चुका है कि थोड़े से धन के लिए आदमी अपना ईमान बेचने, अपना दीन-धर्म बेचने को तत्पर है। नैतिक मूल्यों का पूरी तरह हनन हो चुका है। हर चीज टके सेर मिलना शासकों के अविवेक और दूरदर्शिता का प्रमाण है।

व्याख्या – बाजार में टके सेर चीजें ही नहीं, बल्कि धर्म ईमान, मानवता और जीवन मूल्य भी बिक रहे हैं। आदमी थोड़े से लाभ के लिए अपनी जाति बेचने को तैयार है। उच्चता का दंभ भरने वाले ब्राह्मण स्वार्थ और पैसे की खातिर थोबी बनने को तैयार हैं। झूठ को सच बनाना बहुत सरल हो गया है। थन की खातिर ब्राह्मण मुसलमान और हिन्दूर ईसाई बनने को तैयार है।

यहां तत्कालीन समाज में धर्म परिवर्तन के बढ़ते चलन और झूठी गवाही देकर झूठ को सच मानने वाली कमजोर न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है। धन की खातिर पाप को पुण्य कहने और नीच को अपना बाप बनाने से भी परहेज नहीं रहा है। जिस अंग्रेजी शासन को न्यायप्रिय कहा जाता था, उसने भारत की जनता का इतना शोषण किया है कि लोग अपना जीवन चलाने के लिए अच्छे-बुरे की पहचान भूल गए हैं। उनका आपसी सौहार्द समाप्त होता जा रहा है। उनका लक्ष्य सिर्फ धन कमाना और अपने स्वार्थ की पूर्ति करना है, चाहे जैसे भी हो।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ख) किंतु उस दिन यह सिद्ध हुआ कि जब कोई भी मनुष्य अनासक्त होकर चुनौती देता है इतिहास को उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है निर्यात नहीं है, पूर्व निर्धारित उसको हर क्षण मानव-निर्णय बनाता-मिटाता है।

उत्तर:-

प्रस्तुत पद ‘धचर्मवीर भारतीय के नाटक ‘ अंधा युग से लिया गया है। इस नाटक में लेखक ने महाभारत के प्राचीन अख्यान को आधार बनाकर वर्तमान युग की राजनीतिक स्थिति में विभिन्न समस्याओं को प्रतिबिम्बत किया है। इस नाटक में जीवन के कठोरता तथा आत्मत्याग पर बात की गई है। जब जीवन में निर्णय लेने का समय आता है तो मर्यादा, धर्म, नीति सब व्यर्थ सिद्ध होते हैं।

व्याख्या – मनुष्य अपने जीवन के प्रवृत्ति में इतना खो जाता है कि उसे क्या सही क्या गलत का ज्ञान नहीं होता है। मनुष्य के मन में एक अंधकार छाया रहता है, वह जैसे अपने भीतर कोई बर्बर पशु या अंधे पशु का वास हो। वह जब भी कोई निर्णय लेता है। वहां पर सभी विवेक और मर्यादा व्यर्थ सिद्ध होते हैं। जिस सबका कोई मोल नहीं रहता है। जीवन में जब कठोर व्यक्त आता है, वह सही निर्णय नहीं ले पाता है। सारे आदर्श खोखले रह जाते हैं।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ग) मैं खुद भी एक मजदूर हूँ ।
मैं खुद भी एक किसान हूँ ।
मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग-रग में नफरत की आग भरी है।
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो कि
मेरी भूख एक भ्रम और मेरा नंगापन एक ख्वाब।

उत्तर:-

संदर्भ प्रस्तूत अवतरण सफदर हाशमी रचित नुक्कड़ नाटक ‘औरत’ से आनीत है। यह एक समस्या प्रधान नाटक है, जिसमें पति एवं समाज द्वारा स्त्री के शोषण एवं उस पर होने वाले अत्याचारों को दर्शाया गया है। स्त्री के चुप रहने के कारण उसकी दुर्दशा बनी हुई है, किंतु अब उसने अधिकार के लिए लड़ना और अपने शोषण के विरुद्ध बोलना सीख लिया है। इन पंक्तियों में अभिनेत्री अपने मन में अपने पति और पुरुष समाज के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रही है।

व्याख्या – एक शोषित एवं पुरुष अत्याचार से पीड़ित नारी कहती है कि पुरुष यह घमंड न करे कि वह मेहनत करता है, औरत कमजोर है और वह कुछ नहीं कर सकती। आज औरत कमजोर नहीं है वह पुरुष के समान सभी कार्य कर सकती है। वह लड़ना भी जानती है, अपने ऊपर होने वाले अत्याचार के विरूद्ध बोलना भी जानती है और पुरुष समाज के प्रति अपने आकोश को व्यक्त करना भी जानती है। अभिनेत्री कहती है-मैं पुरुषों के अत्याचार सह रही हूँ, अतः मेरे शरीर का हर अंग मेरे दर्द को अभिव्यक्त करता है।

इस पुरुष समाज के प्रति मेरे मन में नफरत है, जो उसने पति, पिता, भाई अथवा समाज में औरत का मालिक बनकर शोषण करने के कारण उपजी है। फिर भी यह पुरुष समाज इतना निर्लज्ज है कि वह मेरे और मेरी तरह समाज की हर स्त्री की इच्छा को भ्रम मात्र मानता है। उसे लगता है कि स्त्री एक निर्जीव प्राणी है, जिसे सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक किसी प्रकार की आवश्यकता नहीं है, वह सिर्फ इस्तेमाल की चीज है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ভ).मनुष्य को नंगा रखकर मनुष्य ने अपने मुनाफों के लिए बेशुमार कपड़ा तालों में बंद कर रखा, जहाँ वस्तु मनुष्य के लिए न होकर पैसे के लिए थी। कितना बड़ा व्यंग्य और विद्रूप था यह कि आज कपड़ा बनाने वाले स्वयं नंगे थे।”

उत्तर:-

प्रसंग – यह गद्याश रांगेय राघव के रिपोर्ताज ‘अदम्य जीवन’ से लिया गया है। आगरा का स्वयं सेवक दल जब बंगाल के अकाल पीड़ितों की सहायता के लिए शिद्विरगंज नामक गांव में पहुंचा और वहां का हालचाल जानने के लिए गांव का दौरा कर रहे थे, तब रहमत नामक एक जुलाहे ने उन्हें बताया कि सैकड़ों मुसलमानों को बिना कफन के दफना दिया गया है, क्योंकि कपड़ा दुकानों से गायब हो गया था। जिन्दा लोग नंगे रह रहे थे और मुर्दा लोगों को बिना कफन के कब्रों में दफनाना पड़ा था। जिन्दों के लिए कपड़ा नहीं है, तो मरों की क्या कीमत है?”

व्याख्या -रहमत के इस वाक्य पर टिप्पणी करते हुए लेखक कहता है रहमत द्वारा किया गया प्रश्न उसकी व्यक्तिगत गरीबी से सम्बद्ध नहीं था, जिसके कारण उसने अपने घरवालों की विना कफन के दफना दिया था। उसने यह सवाल अनजाने में भी नहीं किया था, सोच समझकर एक विशेष बात की और ध्यान दिलाने के लिए समाज में व्याप्त विसंगति और कुछ लोगों की क्रूरता बताने के लिए. उनके प्रति अपनी घृणा और अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए किया था।

वह बताना चाहता है कि पूंजीपतियों ने सेठों ने, कपड़ा बेचने वाले दुकानदारों ने कपड़ों के बंडल के बंडल छिपाकर अपने गोदामों में रख रखे हैं और गांव वालों को कहते हैं कि दुकान में कपड़े का एक थान भी नहीं है। वे झूठ बोलते हैं। इन बेईमानों ने कालाबाजारी करने, मुनाफाखोरी के लिए कपड़ा छिपाकर रखा है। ये चुपके- चुपके ज्यादा दाम देने वालों को छिपाकर कपड़ा बेचते हैं। इनके लिए कपड़ा, अनाज, जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुएं मनुष्य के लिए नहीं हैं। इन्हें मनुष्य से अधिक प्यारा पैसा है। पैसे के लिए ये दुष्ट राक्षस अपने परिचितों की और अपने पड़ोसियों की जान लेने में भी संकोच नहीं करते।

उन्हें भूखे नंगे रोगग्रस्त देखकर भी इनके मन दया का भाव नहीं जागता। ये मनुष्य के रूप में भेड़िये हैं, राक्षस हैं, पिशाच हैं। रहमत संकेत रूप में बताना चाहता था कि पूंजीवादी व्यवस्था राक्षसी व्यवस्था है, उसमें इन्सान हैवान बन गया है।

कितना बड़ा और क्रूर मजाक है कि अनाज पैदा करने वाले भूखों मर रहे हैं और कपड़ा बनाने तक वाले कुशल बुनकर जुलाहे नंगे हैं, अपनी घरवालियों की लज्जा बचाने के लिए भी उनके पास कपड़ा नहीं है। यह मानवता के लिए बड़ी शर्म की बात है। उनके माथे पर कलंक है। समाज के एक घिनोने पक्ष की ओर संकेत है, और इससे बड़ा अन्याय शायद कोई नही हो सकता है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

2 स्कंदगुप्त’ की रंगमंचीयता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर:-

जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित स्कंदगुप्त नाटक अपने रंगमंचीयता के दृष्टिकोण से काफी चर्चित है। और रंगमंच संबंधी संकल्पना को समझकर ही हम यह जान सकते हैं कि स्कंदगुप्त को रंगमंच पर किस हद तक सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जा सकता है। रंगमंच पर प्रस्तुति के लिए जरूरी है कि नाटक की भाषा, विशेषकर संवादों की भाषा, दृश्य योजना, संवाद निर्वहन, दृश्यों के बीच के संबंध, दृश्यों के रोमांचिकता आदि पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा नाटक की सबसे बड़ी पहचान उसकी अभिनेयता भी है।

स्कंदगुप्त की कथावस्तु 33 दृश्यों में प्रस्तुत की गई है। 33 बार दृश्य-परिवर्तन करते हुए नाटक को दिखलाने में कितना समय लगेगा इसका सहज ही अनुभव लगाया जा सकता है। इतने दृश्यों के नाटक को रंगमंच पर दिखलाने की योजना और दर्शक का आदि से अंत तक बैठे हुए उसे देखना व्यावहारिक ज्ञात नहीं होता। इसके अलावा कुछ ही दृश्यों के कुछ रंग-व्यापार सघन और सरल हैं, अधिकतर दृश्यों के रंग-व्यापार शिथिल और उबाने वाले प्रतीत हो सकते हैं।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

स्कंदगुप्त में अनेक रोमांचकारी दृश्य हैँ, जो चमत्कार तथा कौतुक बढ़ाते हैं। पांचवें अंक के दूसरे दुश्य में महादेवी की समाधि में स्कंधावार, राज मंदिर, मदिरापान, नृत्य, अंधकार, श्मशान, युद्ध, स्तूप, समाधि आदि दृश्य कथानक की क्रियाशीलता को बढ़ाते हैं, परंतु रंगमंच पर स्वागत समारोह, महाबोधि विहार, उद्यान, युद्ध आदि के दृश्य इसकी प्रस्तुति को अव्यावहारिक बना देते हैं। यह भी हो सकता है कि प्रसाद की सोच रही हो कि इस प्रकार के दृश्य पारसी रंगमंच की तरह चित्रांकित परदों द्वारा दिखाए जा सकते हैं।

इस नाटक के एक दृश्य दूसरे दृश्य से बहुत भिन्न है। एक की दृश्य-सज्जा को समेटकर दूसरे की दृश्य-सज्जा की योजना करने में बहुत समय लगता है। बहुत देर तक का अंतराल या मौन रंग-कार्य को अरोचक बना देता है। गद्यात्मक प्रवाह में ही नाट्य-प्रदर्शन का मूलभूत सौंदर्य होता है। इस नाटक मैं बहुतायत से ऐसे दृश्यों को संयोजित किया गया है, जो अतिशय रोमांचक हैं।

वे चमत्कार और कौतुक को बढ़ाने के कारण ही आकर्षक लगते हैं। दृश्यों के स्वरूप और वैविध्य को देखने से ऐसा विदित होता है कि नाटक की दृश्य-योजना पारसी रंगमंच की तरह चित्रांकित परदों का उपयोग कर दृश्यों को दिखलाने के लिए है।

स्कंदगुप्त में भाषा का काव्यात्मक प्रयोग नाट्योपयोगी नहीं है। उसमें भाषा और संवाद का प्रयोग न तो अभिनय व्यंजक गति को उकसाने वाला है, न ही स्थिति विकास की नाट्योचित गतिशीलता ही है। रंग-प्रयोग व्यावहारिक भाषा ही दर्शकीय संदर्भ की दृष्टि से उपयोगी मानी जा सकती है। सर्जनात्मक भाषा की सूक्ष्म व्यंजना और वक्रता अभिनय का आस्वाद लेते समय सामान्यतः दर्शक की पकड़ से बाहर हो जाती है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

स्पष्ट है कि सृजनात्मक भाषा का प्रयोग करने के कारण प्रसाद नाट्य-सृजन में, रंगमंचीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं। सृजनात्मक भाषा की शब्दावली पात्रों की स्वानुभूति, अंतर्बोध और कल्पनाशीलता से अभिसिंचित होकर प्रतीकात्मक, बिम्बात्मक और अलंकृत होती है। स्कंदगुप्त में भाषा का ऐसा ही सर्जनात्मक रूप मिलता है।

स्कंदगुप्त के वस्तु-विधान में अनेक दृश्यों और पात्रों की योजना थोपी हुई लगती है, क्योंकि घटनाक्रम को बनाए रखने के लिए नाटककार ने उन्हें अचानक उपस्थित कर दिया है। तृतीय अंक में क्षिप्रा के तट पर भटार्क और प्रपंचबुद्धि की भेंट, कुंभा का बाॉंध टूटने पर स्कंदगुप्त का सेना सहित बह जाना और कमला की पर्ण कुटी पर पहंचना आदि। इसी प्रकार के संयोग हैं, ये संयोग दर्शक को खटकते हैं। इस प्रकार के संयोगों की रचना नाटककार पर पारसी रंगमंच के प्रभाव को दिखाती है।

इस नाटक मैं कुल 15 गीत पाए जाते हैं। नाटक के प्रत्येक अंक में और कई दृश्यों में, गीतों का विधान किया गया है। गीत कहीं पात्रों के स्वभाव को व्यंजित करते हैं, कहीं कथानक में भाव-दीप्ति का सौंदर्य भरते हैं तथा अंतर्वस्तु के अगोचर, प्रवाह की व्यंजना करते हैं। इस प्रकार, नाट्यवस्तु के संवेदनात्मक रूपरंग को चटकीला बनाते हैं। उनके द्वारा पात्रों का अंतर्द्वद्व प्रकाशित हुआ है, तो कहीं उनकी योजना से मूर्त रंग-व्यापार या संघर्षों की रूक्षता दूर करने की प्रवृत्ति लक्षित है तथापि नाटक के कथा प्रवाह में गीत प्रायः बाधक ही बने हैं।

अंततः कहना यही होगा कि स्कंधगुप्त के रंगमंचीयता अपने कथ्य के रूप मैं यथार्थ है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

3 आधे-अधूरें में व्यक्त मध्यवर्गीय जीवन का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर:-

‘आधे-अधूरे’ न केवल समकालीन हिंदी नाट्य-लेखन बल्कि राकेश के पूर्ववर्ती दोनों नाटकों से मिन्न आधुनिक मध्यवर्गीय जीवन, अनुभव और परिवेश से सीधे साक्षात्कार करने वाला पहला सार्थक एवं प्रामाणिक नाटक है। यह मौजूदा महानगरीय भारतीय पारिवारिक जीवन की विडम्बना के कुछेक सघन बिंदुओं और स्त्री-पुरुष संबंधों की विसंगतियों का जीवन्त रेखांकन करता है। इसके यथार्थपरक कथ्य को समझने से पहले हमारे लिए भारतीय परिप्रेक्ष्य में मध्यवर्ग की अवधारणा और उसकी विशेषताओं को जान लेना उपयोगी और आवश्यक होगा।

नाट्यकार के शब्दों में इस नाटक में, ‘अधूरे का मतलब इनकम्पलीट और आधे का मतलब हॉफ़ है। यह आज के सामान्य वर्ग से संबंधित है जो अपने में ‘आधा’ भी है और ‘अधूरा’ भी। यह इस शहर के एक मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है जिसे परिस्थितियाँ निचले वर्ग की ओर धकेलती जा रही हैं। उनके जोश, पराजय, इच्छाएँ, संघर्ष और इसके साथ-साथ स्थिति का हाथ से फिसलते जाना मैंने सब कुछ इसमें दिखाने की कोशिश की है।

‘विडम्बना यह है कि स्वयं आधे-अधूरे होने के बावजूद हम दूसरों के आधे-अधूरिपन को कतई बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसका कथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि पति-पत्नी के बीच किसी ऐसे सामंजस्य, संतुलन अथवा समीकरण की कोई संभावना नहीं हो सकती जिसमें ये परस्पर विरोधी जीवन एक-दूसरे को बिना फाड़ खाए साथ-साथ रह सकते हों – और इस विडम्बनापूर्ण स्थिति की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि ये अलग भी नहीं हो सकते।

प्रख्यात रंगकर्मी, निर्देशक और अभिनेता ओम शिवपुरी ने ‘आधे-अधूरे के कथ्य पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, ‘एक दुसरे स्तर पर यह नाट्च-कृति पारिवारिक विघटन की गाथा है। इस अभिशप्त कुटुंब का हर एक सदस्य एक दूसरे से कटा हुआ है। घर की त्रासदायक ‘हवा’ से वे सब अपने और एक-दुसरे के लिए जहरीले हो रहे हैं।”बड़ी लड़की’ मनोज रूपी हमदर्द द्वार को पाते ही बाहर निकल भागी है।

‘लड़का’ पत्रिकाओं में अभिनेत्रियों की रंगीन तस्वीरें काटता हुआ उस मौके के इंतजार में है, जब वह भी यहाँ से निकल सकेगा। अपने पिता के लिए उसके मन में करुणा है। माँ के लिए आक्रोश। वह बड़ी बहन के प्रेम में विश्वास नहीं करता, उसे घर से निकलने का ज़रिया मानता है।’ यही स्थिति परिवार के दूसरे सदस्यों की भी है।

हर एक अपने अधूरेपन के साथ दूसरे के अधूरेपन पर प्रहार करता है। इस प्रकार परिवार का हर सदस्य अपने जीवन से असंतुष्ट है और किसी ऐसे भविष्य का इंतजार कर रहा है, जिसका दूस-दूर तक पता नहीं है। इस पहलू पर प्रकाश डालते हुए ओम शिवपुरी कहते हैं, ‘एक अन्य स्तर पर यह नाट्य रचना मानवीय संतोष के अधूरेपन का रेखांकन है जो जिंदगी से बहुत कुछ चाहते हैं, उनकी तृप्ति अधूरी ही रहती है।’ मध्यवर्ग के इसी आधे-अधूरेपन का नाटक हैं, ‘आधे-अधूरे’।

मध्यवर्ग की अवधारणा : उदभव और विकास:-

व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्तर और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समाज व्यक्ति-समृहों के कई वर्गों में विभक्त हो जाता है। व्यक्ति को वर्ग विशेष में प्रतिष्ठित करने के लिए उसकी आय, संपत्ति, आर्थिक दृषटिकोण, वंश-परंपरा, रहने का स्तर और शिक्षा आदि का ध्यान रखा जाता है।

आदिम मानवों की आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था, मानव-जाति की वर्ग-विहीन स्थिति का संकेत देती है। परंतु उसके बाद के समाज और विशेषतः मध्य युग में उत्पादन-वृद्धि और व्यक्तिगत संपत्ति की बढ़ती हुई लालसा ने समाज को मुख्यतः उच्च और निम्न वर्गों में विभाजित कर दिया। वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक क्रांति और पूंजीवादी व्यवस्था ने विश्व की आर्थिक- सामाजिक और बौद्धिक अवस्था पर व्यापक प्रभाव डाला और लगभग 19वीं शताब्दी के शुरू में उच्च और निम्न के बीच एक तीसरे वर्ग का जन्म हुआ, जिसे मध्यवर्ग कहा गया।

मध्यवर्ग की कुछ विशेषताएँ :-

यह मुख्यतः पढ़े-लिखे लोगों का वर्ग है। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में ऊँचे-ऊँचे या छोटे-छोटे पदों पर काम करने वाले नौकरी पेशा, अफसर- कर्मचारी, प्रोफेसर वकील, डॉक्टर, लेखक, आरकीटैक्ट, इंजीनियर, व्यापारी और औसत दर्जे के उद्योगपति इत्यादि इसी वर्ग में आते हैं। इस वर्ग का चरित्र लचीला तथा अंतर्विरोधी है।

ब्रिटिश शासन में उसकी नौकरशाही को चलाने वाले और उसका विरोध कर आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले बूुद्धिजीवी इसी वर्ग से आए थे। अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के चलते अपने मौजूदा वर्ग से, कुछ भी करके, अपने से ऊपर वाले वर्ग में जाने के लिए हमें प्रयत्नरत ये लोग परिस्थितियों की मार से पिटकर लगातार निचले वर्ग की और धकेले जाते रहते हैं।

इससे इनमें हमेशा तनाव और अंतर्द्वंद्व की स्थिति पाई जाती है। अपनी सुरक्षा और सुविधा के लिए यह वर्ग प्रायः किसी भी समझौते और अवसरवादिता के लिए तैयार रहता है। सोचने, कहने और करने के बीच की रुखाई तथा दिखावे की भावना इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। परिवार छोटे और पति-पत्नी केंद्रित होते गए। नारी-शिक्षा के कारण समानाधिकारों की माँग करती स्त्री स्वालम्बन और अर्थिक स्वतंत्रता की ओर बढी।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

स्त्री के घर से बाहर निकलने तथा अन्य पुरुषों के संपर्क में आने से स्वच्छंद प्रेम संबंधों को बढ़ावा मिला। जिससे पुरुष के परम्परागत संस्कारों और स्त्री के नवअर्जित स्वाधीन व्यक्तित्व के कारण अहं का टकराव शुरू होता गया। स्त्री- पुरुष संबंधों में संघर्ष, पारिवारिक मूल्यों तथा सेक्स संबंधी नैतिकता के मानदण्डों में बदलाव आया।

भारतीय समाज में परम्परागत मूल्यों में परिवर्तन, विवाह-संस्था में दूसरे और परिवारों में विघटन की यह प्रक्रिया छठे-सातवें दशक में महानगरों से शुरू हुई और क्रमशः शहरों और करबों तक फैलती चली गई। मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह वर्ग लगातार असंतुष्ट, अनिश्चित, आत्म-प्रदर्शनकारी, चिड़चिड़ा, निराश, मूल्यहीन और कुंठित होता चला गया है।

आधे-अधूरे हमारे आज के समाज के ऐसे ही कुछ तमाम लोगों की अभिशप्त जिंदगी का प्रामाणिक दस्तावेज़ है जिन्होंने जीवन की तमाम इच्छाओं-आकांक्षाओं और उपलब्धियों को उन भौतिक सुख-
सुविधाओं से जोड़ लिया और इस मृग मरीचिका में फंसकर पारिवारिक संबंधों की सहज प्राप्य आत्मीयता, ऊ्मा और भावनात्मक सुरक्षा तथा आत्मिक शांति को पूरी तरह खो दिया है। जिससे उनके सांसारिक अर्थ के चक्कर में उनके जीवन का मूल अर्थ ही कहीं गुम सा हो गया है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

4 ‘अदम्य जीवन’ में बंगाल के दारूण यथार्थ के चित्रण का विवेचन कीजिए।

अदम्य जीवन रांगेय राघव के द्वारा लिखित “तूफानों के वीच” नामक रिपोर्ट से लिया गया है जो की मुख्य रूप से बंगाल के शीधिरगंज नामक गांव पर केंद्रित है। इस गांव मार्मिक चित्र के माध्यम से ही उन्होंने बंगाल के उस समय के दारुण चित्रों को दिखाने का प्रयास किया है।

सन 1942 के आसपास बंगाल में पड़े भयंकर महामारी तथा अकाल के वजह से काफी लोगों की दर्दनाक मृत्यु हुई थी, जिसके वजह से आगरा से डॉक्टरके साथ एक मेडिकल टीम वहां बचाव कार्य के लिए जाता है, जिसमे रांगेया राघव जी भी शामिल होते है एक लेखक के रूप मैं। और उन्होंने जो भी दृश्य वहां पर देखें उनका मार्मिक चित्रण अदम्य जीवन में किया है।

बचाव कार्य के दौरान जव वे शीधिरगंज नामक गांव में पहुंचते है, वहां का हालत बड़ा बदतर हो चुका होता है। इससे पहले की वे किसी मनुष्य से मिलते, उन्हे कहीं न कहीं कब्र मिल जाता है। हर कब्र में दो दो तीन लाशें दफनाए गई होती है। हर घर में किसी न किसी की मृत्यु, खाने पीने की घोर अभाव के साथ दिन में लग भाग चालीस लोगों की जीवन जाना उनके हृदय को विचलित कर देती है। किसकी घर के आधे मनुष्य चल बसे तो किसी के घर के सारे के सारे मनुष्य, खाना पीना और दावा के अभाव से मां के सामने उनके बच्चे चल बसते है।

जहां एक और मृत्यु का तांडव है वहीं दूसरी और बीमारियों की भीषण यंत्रणा ने अकाल की स्थिति को और भी खराब बना दिया होता है। मलेरिया, चिकनगुनिया, चेचक और चरम रोग जैसी बीमारियों से जूझने के लिए लोगों के पास कोई साधन नहीं होता है।

सहायता के नाम पर बस एक सरकारी दवाखाना था जहां ना तो कोई दवाई थी और न ही कोई डाक्टर। सब ओर अभाव और अभावजन्य भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चावल किसी भी दाम नहीं मिलता। हर चीज़ का मुनाफाखोरी और चोरबाज़ारी हो रही है। अधिकांश लोग एक वक्त खाकर ही जीवित रह रहे हैं। तीन-साढ़े तीन सौ लोग गाँव छोड़कर भाग गए।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

आम आदमी के लिए यह स्थिति और भी भयंकर होती है। यह सब देखते हुए भी प्रशासन बिल्कुल चुप बैठा है और चुप चाप सब कुछ देखता है। इस अकाल को मानव निर्मित ठहराते हुए लेखक उस व्यवस्था पर प्रश्न-चिहन लगाता है जो साधनों को कुछ हाथों में केंद्रित करके व्यापक जन समुदाय को इस भीषण संघर्ष की ओर ढकेल देती है। जहाँ वस्तु व्यक्ति के लिए न होकर पैसे क लिए हो जाती है।

अदम्य जीवन केवल इस स्थिति का ही आभास नहीं देता है। इसके अलावा जनता के प्रति लेखक की सच्ची सहानुभूति, संवेदनशील दृष्टि और व्यापक जनसमुदाय के प्रति उसकी पक्षधरता इस रिपोर्ताज को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था के विरूद्ध एक सक्रिय हस्तक्षेप का रूप भी देती है।

व्यक्ति के संकुचित स्वार्थ पर टिकी इस व्यवस्था के विरू्ध लेखक उस स्वार्थ की परिकल्पना करता है जो सबका स्वार्थ हो, जिसमें सबका सुख और सबका हित निहित हो। चारों और व्याप्त अकाल के संत्रास से पीड़ित मनुष्य की वेदना में रांगेय राघव को एक नई जीवन- दृष्टि प्राप्त हुई है। भूख, रोग और मृत्यु के बावजूद भी लेखक का विश्वास है कि बंगाल मर नहीं सकता।

अतः अदम्य जीवन तत्कालीन युग की उन समस्याओं की अभिव्यक्ति है जो प्रत्यक्षतः अकाल का परिणाम देखती है, लेकिन वस्तुतः वह अंग्रेज़ों के साम्राज्यवादी शासन, पूंजीवाद और व्यक्ति के स्वार्थ का परिणाम है। यहाँ जीवन का वह रूप है जिसमे जिंदगी को ‘सही-गलत ‘ के सरलीकृत कटघरों में रखकर नहीं देखा जा सकता।

भूख और मृत्यु की भीषण यंत्रणा के सम्मुख मानव मूल्यों व नैतिक धारणाओं की पहचान पूरी तरह से धुंधला जाती है। लेखक का आक्रोश उस व्यवस्था के प्रति है जो मनुष्य को इस अंधेर गृह की ओर ढकेल रही है और उसकी पक्षधरता मनुष्य के उस रूप के साथ है जहाँ मानवता के जयघोष के लिए मानव संतान क्रांति के चिरजीवी होने का आकांक्षी है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

5 ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ के महत्त्व और सामाजिक उपादेयता का विश्लेषण कीजिए।

हरिवंश राय बच्चन की इस आत्मकथा की सबसे बड़ी विशेषता हैं अपने जीवन के अनेक रूपों की संदर्भ सहित व्याख्या, जो कि अन्य आत्मकथाओं में कम ही उपलब्ध होती है। बीच-बीच में वे अपने
लेखक, सूजन-प्रक्रिया, प्रकाशन, साहित्यिक विकास, गोष्ठि सम्मेलनों आदि की चर्चा करते है और प्रसंगों से अपने आपको जोड़ते हुए तत्कालीन साहित्यिक परिवेश का चित्रण करते है।

सामान्य शब्दों में ‘क्या भूलूँ क्या याद करू’ का कथ्य लेखक रचनात्मक विकास नहीं, बल्कि उनके रचनात्मक व्यक्तित्व विकास दिखाता है जिसे वह जाति, यंश, परंपरा और परिवार के कठिन जीवन-संघर्ष के साथ जोड़कर प्रस्तुत करता है। इस क्रम में वह ऐसे अनेक प्रसंगों और घटनाओं का उल्लेख करता है जिनका गहरा संबंध उसके व्यक्तिगत जीवन से रहा है। चाहे वह चम्पा से प्रेम का प्रसंग हो अथवा श्यामा से संयमपूर्ण व्यवहार का। बिना किसी संकोच के वह अपने जीवन के इस ‘सच’ को प्रकट करता है।

वास्तव में हरिवंशराय बच्चन की आत्माकथा का यह पहला भाग उनकी पहली पली ष्टयामा की मृत्यु तक की जिंदगी को संपूर्णता में उपस्थित करता है चाहे वह परिवार हो या युगीन परिवेश, परंपरा हो अथवा समाज! क्या बाबा, क्या राधा बुआ, क्या कर्कल, कया चंपा और क्या श्रीकृष्ण सूरी-श्यामा के साथ ही उसकी जिंदगी में आए ये सारे लोग लोक के जीवन और उसकी सोच को विस्तार देते हैं और समय तथा समाज के साथ जोड़ते हुए फ्रांसीसी लेखक मानतेन के शब्दों में उसकी जिनकी निजी जिंदगी की जरूरतों को हमारे सामने संपूर्णता में उपस्थित कर देते हैं।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

आत्मकथाकार न तो अपने जीवन के दोषों को छुपाता है और न ही गु्णों कों। अपने सरल, सहज और साधारण जीवन स्वरूप को बह अत्यंत स्वाभ्विक शैली में प्रस्तुत करता है। शायद यही कारण है कि साहित्य की अन्य विधाओं की तरह इस कृति में कहीं भी उस तरह के उतार-चढ़ाव अथवा क्लाइमैक्स के दर्शन नहीं होते हैं जेसा कि अन्यत्र होता है।

बस है तो सिर्फ लेखक का सच्चा और संवेदनशील जीवन, जिसमें कुछ सुख हैं तो बहुत सारे दुःख भी। वह न तो किसी को त्यागता है और न ही किसी के प्रति अतिशय आग्रह दिखाता है। सब कुछ समान रूप और आत्मकथा में दर्ज हुआ है। भाषा में वर्णनात्मकता और पात्र तथा परिवेश के अनुकूल शब्दों का चयन एवं प्रयोग इस कृति को महत्वपूर्ण बनाते हैं।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

6 (क) ‘ठकुरी बाबा’ का प्रतिपाद्य

ठकुरी बाबा साधारण अर्थ में रेखाचित्र ही नहीं है। महादेवी ने इसके माध्यम से ग्राम्य समाज के उस हिस्से की सामाजिक दशा का यथार्थ चित्रण किया है जो जीने के लिए जरूरी बुनियादी साधनों से भी वंचित है। लेकिन इसके बावजूद उनमें गहरी मानवीय सहानुभूति, करुणा, जीवन राग और कर्मठता मौजूद है।

यह महादेवी वर्मा के अन्य रेखाचित्रों से कई अर्थों में भिन्न है। इसमें ठकुरी बाबा और उनके संगी-साथियों का जो जीवन-चित्र प्रस्तुत किया है और उससे भारतीय ग्राम्य समाज के सबसे दरिद्र और उत्पीड़ित लोगों के जीवन की करुणा गाथा हमारे सामने उभर आई है। लेकिन लेखिका ने इसके माध्यम से उन सवालों को भी गहरी पीड़ा के साथ प्रस्तुत किया है जिसने उनके जीवन को कष्टमय बना रखा है।

ठकुरी बाबा में महादेवी वर्मा ने रेखाचित्र के परंपरागत ढॉँचे को तोड़ा है। भाषा की जो रचनात्मक शक्ति दिखाई देती है, वह इस बात का प्रमाण है कि महादेवी का गद्य कितना उत्कृष्ट है। एक ओर संस्कृत रूपी तत्सम शब्दावली और दूसरी ओर देशज तथा जनपदीय भाषा का प्रयोग ऐसे गद्य की सृष्टि करता है, जिसकी तुलना किसी अन्य लेखक की भाषा से नहीं की जा सकती।

इसकी का मूल्यांकन सिर्फ रेखाचित्र और उसकी कलात्मक उत्कर्षता के आधार पर करना पर्याप्त नहीं है। इसके माध्यम से उन्होंने अपने समय और समाज, दोनों के गहरे अंतर्विरोधों को भी उजागर किया है। महादेवी की सहानुभूति समाज के पद- दलित और उत्पीड़ित लोगों के प्रति है। विशेषतः नारी समाज को जिस तरह की सामाजिक और मानसिक यातनाओं से गुज़रना पड़ता है, उसका जैसा चित्र महादेवी प्रस्तुत करती है, वह अतुलनीय है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ख) साक्षात्कार का महत्त्व

साक्षात्कार का तात्पर्य दो या उससे अधिक लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान से है, जहाँ साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारकर्ताओं से अपेक्षित जानकारी निकालने के लिए उनसे तरह तरह के उसे विषय मैं प्रश्न पूछते हैं। इसके अलावा साक्षात्कार की प्रक्रिया में विभिन्न मौखिक उत्तेजनाओं को सामने रखकर जानकारी प्राप्त करना और मौखिक रूपों में प्रतिक्रिया प्राप्त करना शामिल है। साक्षात्कार के महत्व मैं बोहोत सारे श्रेणियों के बीच कुछ मुख्य श्रेणियों पे आलोचना निम्न में किया गया है।

साक्षात्कार के द्वारा साक्षात्कारकर्त्ता को अवलोकन का अवसर प्राप्त होता है। जिससे वह साक्षात्कार के साथ-साथ कई घटनाओं का अवलोकन भी कर सकता है। दोनों पद्धतियों से प्राप्त सामग्री ज्यादा विश्वसनीय होती है। इसमे प्रत्येक प्रश्न और उत्तर की जांच विश्वसनीय तरीके से होती रहती है। पारस्परिक विचारों के आदान-प्रदान के द्वारा समस्याओं और घटनाओं के स्पष्टीकरण मे मदद मिलती है। इस पद्धति के द्वारा घटना का अध्ययन उसके ऐतिहासिक सन्दर्भ मे किया जाता है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

सामाजिक पद्धति के द्वारा हम सामाजिक घटनाओं तक पहुँचाने का प्रयास करते हैं। इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटनाओं का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। साक्षात्कार पद्धति द्वारा सभी स्तर के लोगों से सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है। यदि श्रमिकों का अध्ययन करना है तो श्रमिकों से साक्षात्कार किया जा सकता है, यदि वैश्यावृत्ति का अध्ययन करना है तो वैश्यावृत्ति से साक्षात्कार किया जा सकता है।

अनेक घटनाएं ऐसी होती है जिनका अध्ययन अवलोकन प्रणाली के द्वारा नही किया जा सकता है। अनेक बातें गोपनीय और आन्तरिक जीवन से सम्बंधित होती है। साक्षात्कार के द्वारा हम इन बातों को आसानी से जान लेते है। इस पद्धति का सबसे बड़ा महत्व इसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता है। प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार, धारणा एवं उद्देश्य होते हैं।

इन सबका अध्ययन आसानी से नही किया जा सकता है। परन्तु साक्षात्कार प्रणाली से इन सबके मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव का अध्ययन करता रहता है। यह पद्धति एक लचीली पद्धति है, जिसमें आवश्यकतानुसार विषय-वस्तु एवं साक्षात्कार संचालन मे परिवर्तन किया जा सकता है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ग) जीवनी और कहानी में अंतर।

एक जीवनी जिसे बायो (Bio) भी कहा जाता है किसी व्यक्ति द्वारा लिखित या किसी अन्य व्यक्ति के जीवन का एक विस्तृत विवरण है। यह संबंधित व्यक्ति के जन्म स्थान ,शैक्षिक पृष्ठभूमि, कार्य , संबंधों और निधन के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। जीवनी हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। जीवनी में किसी विशिष्ट व्यक्ति या महापुरुष के जन्म से लेकर मृत्यु तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का चित्रण किया जाता है।

यह जीवन के बारे में विषय के अंतरंग विवरण प्रस्तुत करता है, उसके जीवन के उतार-चढ़ाव पर ध्यान केंद्रित करता है और उनके पूरे व्यक्तित्व का विश्लेषण करता है। एक जीवनी आमतौर पर लिखित रूप में होती है, लेकिन संगीत रचना या साहित्य के अन्य रूपों में फिल्म की व्याख्या के लिए भी बनाई जा सकती है। जीवनी में लेखक पूरी तरह तटस्थ रहता है। इसमें प्रमाणिकता की भी आवश्यकता होती है।

पर कहानी गद्य साहित्य की वह सबसे अधिक रोचक एवं लोकप्रिय विधा है, जो जीवन के किसी विशेष पक्ष का मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक वर्णन करती है। यह हिन्दी गद्य की वह विधा है जिसमे लेखक किसी घटना, पात्र अथवा समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा देता है, जिसे पढ़कर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न होता है, उसे कहानी कहते हैं।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

कहानी गद्य साहित्य की सबसे प्राचीन विधा है। मानव सभ्यताओं के विकास के साथ-साथ कहानी का भी जन्म हुआ, और कहानी सुनाना एवं सुनना मानव का जन्मजात स्वभाव बन गया। प्राचीनकाल में प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं।

इसी कारण से आज भी प्रत्येक समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। भारत में कहानियों की बड़ी लंबी, उत्तम और सम्पन्न परंपरा रही है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(घ) आत्मकथा लेखन

आत्मकथा वह लेखन है जिसमे लेखक के द्वारा कही गयी बातों पर विश्वास करते हुए उस को सच माना जाता है, क्यों कि उस के लिए लेखक खुद साक्षी एवं जिम्मेदार होता है। आत्मकथा लेखन आत्मकथाकार के जीवन के व्यक्तित्व उद्घाटन, ऐतिहासिक तत्वों की प्रामाणिकता तथा उद्देश्य के कारण महान होता है।आत्मकथा के लिए अंग्रेजी में ‘आटोबायोग्राफी’ शब्द प्रचलित है। जब लेखक स्वयं के जीवन का क्रमिक घटनाओं को प्रस्तुत करता है, तो उसे आत्मकथा कहा जाता है। आत्मकथा में स्वयं की अनुभूति होती है।

इस में लेखक उन तमाम बातों का विवरण देता है, जो बातें उस के जीवन में घटी होती हैं। आत्मकथा में लेखक अपने जीवन के बारे में लिखता है तथा समाज के सामने स्वयं को प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करता है। जिस से समाज उस के जीवन के पहलुओं से परिचित होता है। आत्मकथा विधा के कई पयार्यवाची नाम भी मिलते हैं।

आत्मकथा का उद्देश्य मुख्य रूप से लेखक द्वारा स्वयं का आत्मनिर्माण करना तथा आत्मपरीक्षण करना और उस के साथ अतीत की स्मृतियों को पुनः जीवित करना होता है। इस का लाभ अन्य लोगों को भी मिलता है। इस से अन्य पाठक भी कुछ प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं। आत्मकथा में लेखक अपने अन्तर्जगत को बहिर्जगत के सामने प्रस्तुत करता है, इस में आत्मविश्लेषण होता है।

MHD 04 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

Your Top Queries To Be Solved :-

  • MHD 04 free solved assignment
  • IGNOU MHD solved assignment
  • IGNOU MHD 03 solved assignment
  • IGNOU MHD free solved assignment
  • IGNOU solved assignment
  • IGNOU free solved assignments
  • IGNOU MHD free solved assignments
  • MHD solved assignment
  • MHD solved free assignment
  • MHD solved assignment free
  • MHD free assignment
  • IGNOU MHD free assignment solved
  • IGNOU MA HINDI solved assignment
  • IGNOU MA HINDI free solved assignment

Leave a Comment