IGNOU MHD 02 Free Solved Assignment 2023

IGNOU MHD 02 Free Solved Assignment 2023

MHD 02 (आधुनिक हिन्दी काव्य)

Contents

सूचना  
MHD 02 free solved assignment मैं आप सभी प्रश्नों  का उत्तर पाएंगे, पर आप सभी लोगों को उत्तर की पूरी नकल नही उतरना है, क्यूँ की इससे काफी लोगों के उत्तर एक साथ मिल जाएगी। कृपया उत्तर मैं कुछ अपने निजी शब्दों का प्रयोग करें। अगर किसी प्रश्न का उत्तर Update नही किया गया है, तो कृपया कुछ समय के उपरांत आकर फिर से Check करें। अगर आपको कुछ भी परेशानियों का सामना करना पड रहा है, About Us पेज मैं जाकर हमें  Contact जरूर करें। धन्यवाद 

MHD 02 Free solved assignment (Hindisikhya) :-

भारतेंदु की कविताओं में नवजागरण और राष्ट्रीय चेतना का समुचित विकास हुआ है, इस कथन का सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

उत्तर:-

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। किसी युग विशेष का राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण साहिेत्य की रचना को आकार देता है। हिन्दी ससाहित्य के काल में मुगल शासन ऐश्र्य, विलासिता और भोग-विलास की दृष्टि से अपने चरमोत्कर्ष पर था। केंद्र सरकार की तरह अवध, राजस्थान, बंदेलखंड आदि हिंदी भाषी राज्य भी विलासिता की कीचड़ में डूबे हुए थे।

कविता राजाओं, उनके जागीरदारों और दरबार तक ही सीमित थी। जनता की भावनाओं और स्थितियों का प्रतिनिधित्व करने के बजाय, कवि केवल संरक्षकों का मनोरंजन करने के लिए उनकी चापलूसी करते हुए कविता रचकर उनकी प्रशंसा करते रहे। इसलिए रीतिकाल की शायरी को जनता से काट दिया गया।

1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के कुचले जाने के बाद ब्रिटिश शासकों के अमानवीय अत्याचारों एवं आतंक के फलस्वरूप जनता में निराशा, हताशा, निष्क्रियता, भय का वातावरण व्याप्त हो गया।

एक और इसाई मिशनरी ईसाई धर्म के प्रचार में शामिल थे और दूसरी ओर महारानी विक्टोरिया के ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थान पर भारतीय साम्राज्ञी बनने के बाद भी ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्यवादी शासक भारत का आर्थिक शोषण कर रहे थे।

यह भारत से था। इसलिए भारतेन्द् युग के प्रायः सभी कवियों ने, जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे और जिन्होंने जनता को यथार्थ से अवगत कराना, उनमें नई चेतना जगाना, ऑँखें खोलना अपना कर्तव्य समझा, फूंक मारी।

जागरण के शंख और उनकी रचनाओं को निबंधों, लेखों में प्रकाशित किया। नाटकों और कविताओं के माध्यम से नई चेतना का संचार किया। भारतेंदु मंडल के सदस्य, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, अम्बिकादत्त व्यास, ठाकुर जगमोहन सिंह, राधाकृष्ण गोस्वामी, बद्री नारायण चौथरी प्रेमधन सभी की अपनी-अपनी पत्रिकारएँ थीं और उनके माध्यम से वे पुनर्जगरण, समाज सुधार, राजनीतिक चेतना और विरोध का संदेश फैलाते थे।

IGNOU MHD 06 Free Solved Assignment 2023

थार्मिक अंधविश्वासों, पाखंडों, छुआछूत, ऊँच-नीच की भावना को उन्होंने आम जनता में नई जागूृति पैदा करने का सराहनीय काम किया और सोई हुईई या अर्थ-सुप्त जनता ने हथियार उठा लिए। उन्होंने आपसी मेल-मिलाप, सौहार्द, देशभक्ति, आजादी का महत्व बताकर देशवासियों को सही राह दिखाने का काम किया।

इस नई चेतना का परिणाम यह हुआ कि हिंदी कविता विषय, रूप, भाषा सभी स्तरों पर एक नया रूप लेने लगी। राजदरबारों और समाजवादी प्रवृत्ति से मुक्त होकर काव्य देश की समस्याओं को जन-जीवन से जोड़ने लगा।

सामाजिक सुधार, धार्मिक अंधविश्वासों का विरोध, रूढ़िवादिता, पाखंड, आडंबर और आर्थिक कठिनाइयोँ और देश की स्वतंत्रता उनकी प्रजा बन गई भारतेंदू इस क्षेत्र के अग्रणी साहित्यकार थे और उनसे प्ररित होकर भारतेंदु मंडल के अन्य कवियों ने इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस प्रकार भारतेन्दु युग का काव्य परम्परागत काव्य-पद्धति को त्यागकर अपने देश, समाज और युग के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर नवजागरण का काव्य बन गया ।

कुछ आलोचकों ने भारतेन्दु युग के काव्य में विवादास्पद स्वरों को इंगित कर डन कवियों की आलोचना की है। उन्हें यह अजीब लगता है कि भारतेंदु और उनके साथी कवियों ने महारानी विक्टोरिया, ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड लॉरिस, लॉर्ड मेयो, लॉ्ड रिपन के बारे में लेख और कविताएँ लिखकर उनकी प्रशंसा की है, अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है।

भारतेन्दू महारानी विक्टोरिया के पुत्र एडिनबर्ग और प्रिस ऑफ वेल्स के प्रति आभार और शुभकामनाएं व्यक्त करते हैं। उनकी रचनाओं में चाटुकारिता की महक है,

जाके दरसहित सदा नैन परत पियास ।
सो मुख चंद विलोकिहैं पूरी सब मन आस
।।

इन कवियों ने महारानी विक्टोरिया को ‘अर्थ की विक्टोरिया तक कह डाला है जो कर्मकाण्डी कवियों की राजसी स्तुति से कम नहीं है।

IGNOU MHD 03 Free Solved Assignment 2023

शाही और ब्रटिश शासन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने वाले इन कवियों के कथनों को ठीक से समझने के लिए महारानी विक्टोरिया के भारत की साम्राज्ञी बनने से पहले और बाद की परिस्थितियों को समझना आवश्यक है 1857 से पहले इस पर ईस्ट इंडिया कपनी का शासन था।

यह एक व्यापारिक संगठन था और इसका एकमात्र उ्देश्य भारत के धन को लूटना था। उसे अपनी तिजोरी भारतीयों के आर्थिक शोषण से भरनी थी।

महारानी विक्टोरिया द्वारा भारत में शासन की बागडोर संभालने के बाद, ब्रिटिश शासन की नीति में बदलाव आया, जिसका प्रमाण महारानी द्वारा 1858 में जारी घोषणापत्र से मिलता है, जिसमें भारत की जनता को आश्वस्त करने के लिए कई वादे किए गए थे और प्रारंभ में पढ़े-लिखे और साहित्यकार सभी का उन पर विश्वास था।

इस घोषणापत्र में शिक्षित और योग्य भारतीयों को शासन में भारगीदार बनाने और उनकी थार्मिक मान्यताओं में हस्तक्षेप न करने का भी वादा किया गया था।

महारानी विक्टोरिया के शासनकाल में भारत के किसानों और आम लोगों को नवाबों, राजाओं, सामंतों, जमींदारों, तालुकदारों के आतंक और शोषण से मुक्ति मिली, मुसलमानों के धमातिरण की नीति से होने वाले सामाजिक कष्टों से उन्हें मुक्ति मिली।

वे पहली बार रेलवे, टेलीग्राफ, बिजली, प्रिंटिंग प्रेस और जीवन की अन्य सुख-सुविधाओं को देखकर चकित रह गए। ज्ञान -विज्ञान, नई तकनीक, नया स्वच्छ प्रशासन, धर्म के नाम पर पक्षपात से मुक्ति ने भारतीयों के मन को आकर्थित किया। देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए पंजाब काश्तकारी अधिनियम और अवध काश्तकारी अधिनियम जैसे कानून बनाए गए। उन्हें लगा कि अग्रेजी शासन उनके लिए वरदान है।

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

राजभक्त परिवार का सदस्य होते हुए भी उनका काव्य केवल चाटुकारिता नहीं है, शासकों का स्तुतिगीत नहीं है, अपनी परंपरा पर भी गर्व करता है। राष्ट्रीय पहचान हासिल करने की ललक भी है, देशवासियों को प्रगति के नए पथ पर ले जाने की ललक भी है, विशेष रूप से आर्थिक शोषण से निर्भरता से मुक्ति पाने की ललक भी है।

हां, उनकी वफादारी के पीछे उनका भोला-भाला विश्वास है कि ब्रटिश शासन के इरादे सही हैं उनका आश्वासन सच्चा है और वह अपनी बात रखेंगे। यदि उनका यह भोला-भाला विश्वास गलत निकला, तो उनकी देशभक्ति या भारत के लोगों के प्रति उनकी भावना पर संदेह करना अनुचित होगा।

समय बीतने के साथ-साथ जब ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्रज्यवाद के रहस्य उजागर हुए तो उनके नापाक इरादों की असलियत उजागर हो गई। सुथारवादी नीति का पतन होने लगा और भारतेंद् युग के साहित्यकार यह समझने लगे कि ब्रिटिश शासकों ने सुधार के नाम पर जो। कुछ भी किया है, रेल-टेलीग्राफ, बिजली की सुविधा दी है, वह भारत की जनता के हित में नहीं है।

लेकिन हमें अपने साम्राज्यवादी कदमों को और मजबूत करना होगा। भारतीयों को शिक्षा और सरकारी दफ्तरों में निचले पदों पर नियुक्त कर अपनी जड़ें जमानी हैं, भले ही आर्थिक शोषण नीति का स्वरूप बदल गया हो, मूल रूप से वे भी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह भारत को कंगाल, दरिद्र बनाना चाहते हैं,

यहां के कारीगर-खासकर बनकरों और कच्चे माल के स्वामियों को नाष्ट कर वे अपने वाणिज्य और व्यवसाय का विस्तार करने में लगे हैं, वहीं उनमें नई सोच, नई चेतना आई। वे समझ गए थे कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद सामंतवाद के साथ हाथ मिला कर लूट -खसोट का पुराना खेल खेल रहा है और वह भारत की जनता का हितैथी नहीं बल्कि क्रूर शोषक है।

राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण और जाग्रति का एक अंग है अपनी गौरवशाली संस्कृति का स्मरण कराकर अपने देश, अपनी मातृभूमि की पूजा करना, देशवासियों के हृदय से हीन भावना की गांठ को समाप्त करना, पूर्वजों का गुणगान कर उनके आत्मबल को मजबूत करना, वर्तमान दुर्दशा के कारणों को जानें। उन्हें दूर करने के उपाय बताए और बताए। भारतेंद् युग का काव्य इन सभी कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करता है।

सारांश यह है कि भारतेंद् अपनी भोली आस्था के कारण ब्रिटिश शासन की बातों, वचनों और आश्रासनों पर विश्वास करते थे और भक्ति की कविताएँ लिखते थे, लेकिन कुछ समय बाद मोहभंग होने के बाद, वास्तविकता को पहचानने के बाद, उनकी राजनीतिक समझ बदल गई और उन्होंने आलोचना की ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उसकी कूटनीति की धज्जियां उड़ाकर देशवासियों में नई चेतना जगाने का प्रयास किया।

उनके शुरुआती कारयों ने भले ही शाही भक्ति का भ्रम पैदा किया हो, लेकिन अंततः जब उनका मोहभंग हो गया, तो उन्होंने देश की दुर्दशा का श्रेय अग्रेजी शासन और उसकी कूटनीति को दिया और जनता को अंग्रेजी शासन और कूटनीति को जनता से जोड़ा।

भारतेंदु ने अपने जीवन के आरंभ में जगन्नराथपुरी और बंगाल की यात्रा की थी और इस यात्रा के दौरान वे बंगाल के इन मनस्वियों के विचारों से प्रभावित हुए। उन्होंने अपने प्रगतिशील विचारों से पहचान बनाई।

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

उन्हें खुलकर स्वीकार किया और उन्हीं के कारण हिंदी भाषी क्षेत्र में पुन्जागरण का प्रकाश हुआ और उसका प्रकाश थीरे-धीरे सर्वत्र फैल गया। दूसरी और पुनर्जांगरण की इस धारा को आर्यसमाज के विचारों तथा थार्मिक एवं सामाजिक सुधार से जुड़े आन्दोलन से बल मिला।
भारतेंदु अच्छी तरह समझते थे कि भारत की दुर्दशा के तीन कारण हैं।

  1. साम्राज्यवादी शोषक ब्रटिश शासन,
  2. सार्वजनिक रूढ़िवाद, धार्मिक अंधविश्वास, सामाजिक रीति -रिवाज,
  3. अज्ञानता, अशिक्षा, मिध्या अभिमान, आलस्य, निष्क्रियता, कर्तव्य के प्रति उदासीनता, देशवासियों की कायरता।

उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से यथार्थ को उजागर कर एक नई चेतना जगाने का प्रयास किया है। इस प्रकार उन्होंने जनहित में एक व्यापक आन्दोलन चलाया और आम जनता तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए नाटकों की शैली पहेली मुकरिस, लोकगीत कजली, विरहा, चांचर, छैनी, खेमता, विदेशी आदि का प्रयोग किया। उनका साहित्य पुनर्जागरण का संदेश देता है। अतः उसे पुनर्जागरण का अग्रदूत कहना उचित है।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

2 छायावादी कविता में निराला के महत्त्व को रेखांकित कीजिए।

उत्तर। छायावादी काव्य को द्धिवेदी के पत्रवाद और नैतिकतावाद के विरुद्धु विद्रोह का काव्य कहा गया है। छायावादी कवियों ने स्थूल पर सूक्ष्म का चित्रण किया है, क्योंकि उनकी दृष्टि बहिम्मुखी न होकर अन्तर्मुखी थी और उन्होंने अपने काव्य में समाज से अधिक अपने व्यक्तिगत सुख-दुःख की अभिव्यक्ति की है।

इन कवियों ने हिंदी कविता को काव्य के प्रति अपने दृष्टकोण में एक नया मोड़ दिया, खड़ी बोली को काव्यात्मक बनाने के प्रयास में और कामिनी कामिनी को अधिक से अधिक अलंकृत करने के प्रयास में भाव, भाषा, पह्य-नियमन में क्रातिकारी परिवर्तन हुए। पहले के कवि सौन्दर्य का या तो स्थूल रूप में चित्रण करते थे या गणनात्मक शैली का आश्रय लेते थे।

छायावादी कवि ने वासनामय सीन्दर्य से दूर सुक्ष्म सौन्दर्य का चित्रण किया और भारतीय मनीथियों के दार्शनिक सिद्धान्तों से प्रभावित होकर भी अपने काव्य में दर्शन का संचार किया, जिसके फलस्वरूप यह काव्य कहीं -कहीं रहस्यमय भी हो गया है।

युग की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति से प्रभावित इन कवियों का हुृदय विषादपूर्ण और निराश था। इसलिए उनके काव्य में निराशा और विषाद की भावना प्रमुख है।

हिन्दी छायावादी काव्य के चार प्रमुख स्तम्भों में निराला को दूसरा महान स्तम्भ माना जाता है। अतः उनके काव्य में भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से छायावादी काव्य के अनेक गुण मिलते हैं।

छायावादी काव्य आत्मनिष्ठ काव्य है। इसमें कवियों ने आत्म-साक्षात्कार का प्रत्यक्ष दृक्टिकोण रखा है। इसी ओर संकेत करते हुए निराला ने लिखा है मैने शैली अपना ली है स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी कविता में अपनी व्यक्तिगत व्यथा, मानसिक व्यथा एवं अन्तिम संघर्ष को व्यक्त किया है। उनका जीवन शुरू से अंत तक गरीबी और दुख में से एक था।

IGNOU MHD 06 Free Solved Assignment 2023

परिवार में पत्नी और पुत्री की असामयिक मृत्यु ने उनके हृदय को गहरा आधात पहुँचाया दूसरी ओर समकालीन कवियों, आलोचको, प्रकाशकों और संपादकों ने भी उनके साथ अन्याय किया समाज के प्रहारों से भी उसका हुदय ट्र्टा था। इसलिए उनके काव्य में दुख और पीड़ा के स्वर प्रमुख हैं ‘सरोज स्मृति, ‘राम की शक्ति पूजा’ और स्फुट गीतों में हर जगह पुरानी यादों का स्वर सुनाई देता है। उन्होंने ‘सरोज स्मृति’ में दो स्थानों पर आत्म्लानि और आत्मनिंदा की अभिव्यक्ति की है।

दुःख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज जो नहीं कही।

राम की श्ति-पूजा’ में राम के माध्यम से वे अपनी ही असफलता और पीड़ा को व्यक्त करते हैं,

चिकू जीवन जो पाता ही आया विरोध
धिक् साधन जिसका सदा ही किया शोध

छायावादी काव्य के प्रमुख विषय सौन्दर्य-चित्रण और प्रेमानुभूति हैं। पहले के कवियों ने श्रंगार रस का काव्य लिखते समय प्रेम के भौतिक पक्ष पर अधिक बल दिया था। उनकी प्रेम- भावना वासनायुक्त थी, अतः उन्होंने स्त्री- सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कील-शिख पद्धति का आश्रय लेकर स्त्री-देह के अंगों का कामुक चित्रण किया है। छायावाद कवि निराला ने प्रेम की भावना का उदात्तीकरण किया है।

परन्तु बाद में प्रेम और श्रंगार के गीतों में पार्थिव, भौतिक, अलंकार के स्थान पर चिन्मय (आध्यात्मिक) रूप मिलता है, अलंकार भाव को आध्यात्मिक व्यंग दे दिया गया है। तन की अपेक्षा मन पर बल दिया गया है; “(प्रिय) यामिनी जागी’ कविता में स्त्री के सोंदर्य और प्रेम को दर्शन का स्पर्श देकर उदात्त किया गया है।

प्रकृति के आश्रित रूप के चित्र हमें या तो वैदिक सूक्तों में मिलते हैं या फिर कालिदास और भवभूति आदि के काव्यों में। उसके बाद लंबे समय तक या तो प्रकृति कवियों के लिए उपेक्षित रही या फिर उन्होंने उसे प्रेरक रूप में चित्रित किया। रीतिकाल तक यही स्थिति थी।

द्विवेदी युग के काव्य में प्रकृति का स्थूल रूप में चित्रण किया गया है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को सजीव, सजीव, चेतना से पूर्ण और मनुष्य के सुख-दुख में सहभागी मानते हुए चित्रित किया है। निराला के प्रकृति-चित्र की विशेषता यह है कि उन्होंने प्रकृति को चेतना से परिपूर्ण समझकर उसका सजीव चित्रण किया है। आप भी देखिए उनकी खूबसूरती को देखते हुए उनकी यह तस्वीर।

छायावादी कवियों पर पलायनवादी होने और अपने समय के समाज को खारिज करने का इुठा आरोप लगाया गया है। यह सच है कि छायावादी कवियों ने अधिकांशतः अपने सुख-दुःख की व्यक्तगत अनुभूतियों को ही अभिव्यक्ति दी है, पर उनमें देशभक्ति और देश के प्रति उत्तरदायित्व की भावना भी कम नहीं थी।

IGNOU MHD 03 Free Solved Assignment 2023

निराला ने पौराणिक प्रसंग पर आधारित ‘राम की शक्ति पूर्जा में अनेक स्थानों पर राष्ट्र को उद्धोधन देने का प्रयास किया है। जब जाम्बवान् ने राम से मौलिक रूप से शक्ति की कल्पना करने का आग्रह किया, तो निराला का आशय यह था कि गांधीजी के अहिंसा आंदोलन की विफलता को देखते हुए भारतीयों को शक्ति अ्जित करनी चाहिए।

उस शक्ति के बल पर ही विदेशी शासन को जड़ से उखाड़ना होगा। इस कविता में रावण ब्रिटिश शासन का प्रतीक है और अरधीनता की बेड़ियों को तोड़ने को आतुर भारतीय जनता के राम अद्वेत दर्शन से प्रभावित छायावादी कवियों ने बीच-बीच में रहस्यवादी पक्तियोँ भी लिखी हैं।

निराला ने ‘अपूर्वा स्कुत ‘तू तुंग हिमालय श्रंग और मैं चंचल गति सुरसरिता’ कविताओं में भी आत्मा और परमात्मा के अविच्छेद्य संबंध की बात की है। उनका मानना है कि कण-कण में ईश्वुर का अस्तित्व है, माया आवरण है और इस कारण आत्मा अपने को ब्रह्म से पृथक मानती है।

निराला ने भी प्रतीकों का भरपूर प्रयोग किया है। उनकी ‘बादल राग’ और ‘तुलसीदास’ कविताएँ इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। छायावादी कवियों ने अलंकार के लिए अलंकार का प्रयोग नहीं किया है। उन्होंने अलंकारों का प्रयोग केवल प्रेयोक्ति को अधिक प्रभावी बनाने के लिए किया है।

अलंकार अलंकारों, उपमाओं, उपमाओं का सवाधिक प्रयोग किया गया है। विशेषता यह है कि इनके रूपक नवीन हैं और सूक्ष्मतम भावों को व्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ हैं । उन्होंने विधवा को ‘भगवान के मंदिर की पूजा’ और ‘दीपशिखा सी शीट’ कहकर उसकी पवित्रता और पवित्रता का संकेत दिया है।

इसी प्रकार जब सरोज के यौवनगम की तुलना वीणा पर गाये जाने वाले मलकी राग से की जाती है तो उनके यौवन की कोमलता, माधुर्य और गम्भीरता का पता चलता है। अन्य छायावादी कवियों से भिन्र उन्होंने पह्य के क्षेत्र में अनेक नए प्रयोग किए हैं। निराला मुक्त छंद का प्रयोग करने वाले प्रथम कवि हैं।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

3 नागार्जुन के काव्य में अंतर्निहित प्रगतिवादी जीवनबोध पर प्रकाश डालिए।

राजनीति में माक्सवाद क्या है, साहित्य में प्रगतिवाद कहलाता है। प्रगतिशील लेखकों ने अपने लेखन में माक्स्सवादी सिद्धांतों, विशेष कर समाज और अर्थव्यवस्था पर माव्स के विचारों को अपनाया है। माव्स का मानना है कि समाज में केवल दो वर्ग हैं:

  1. बुर्जुआ वर्ग, जिसके पास उत्पादन के साधन जमीन मिल आदि है तथा जो अपनी आर्थिक स्थिति से अनुचित लाभ उठाकर द्सरों का शोषण करता है।
  2. सर्वहारा, जो कि मजदूर वर्ग है, जिसके पास केवल श्रम शक्ति है, जिसे दुर्जुआ वर्ग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है, जो
    शोषित है और जो जीवन भर अभाव में रहता है, गरीबी की पीड़ा झेलता है।

माक्स का मानना है कि इन दोनों वरगों का संधर्ष भारत में हमेशा से रहा है और यह तभी समाप्त होगा जब सर्वहारा बुजुआ वर्ग पर विजय प्राप्त करेगा।

बुर्जुआ वर्ग को उखाड़ फेका जाएगा, समाज में कोई वर्गभिद नहीं होगा, वर्गविहीन समाज की स्थापना होगी, जनता का राज होगा। ऐसे आदर्श वर्गीविहीन समाज की स्थापना समस्त मानव जाति का लक्ष्य होना चाहिए और साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के माध्यम से ऐसे समाज की स्थापना में सहयोग करना चाहिए।

इस लक्ष्य की पूर्ति में साहित्य ही सहायक हो सकता है, जिसकी निम्नलिखित विशेषताएँहैं:

  1. वह उत्पीडकों, शोषकों, पुंजीपतियों, दमन और शोषण के काले कारनामों को उजागर करता है, उनके प्रति घृणा, क्रोध, आक्रोश व्यक्त करता है।
  2. सर्वहारा वर्ग को शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करनी चाहिए, उनकी आर्थिक दुर्दशा और उन पर हो रहे अन्याय और अत्याचारों का वर्णन इस प्रकार करना चाहिए कि पाठकों का हृदय करुणा से द्रवित हो जाए।
  3. सर्वहारा वर्ग में अपने अधिकारों के प्रति चेतना जाग्रत करना। उसे उसकी शक्ति और सामर्थ का बोध कराएं और उसे उस शक्ति का
    उपयोग करने के लिए प्रेरित करें और शोषण व दमन के खिलाफ क्रांति का आह्वान करे।
  4. आदर्श के यूटोपिया को छोड़कर यथार्थ की कठोर भूमि पर विचरण करने वाला साहित्यकार ही उसका उत्तरदायित्व वहन कर सकता है।
  5. जनता को जगाने वाला साहित्य जनता की भाषा में लिखा जाना चाहिए ताकिे वे उसे पढ़कर वास्तविकता को समझ सर्कें और क्रांति के मार्ग पर चलने की शक्ति का प्रयोग कर सके।

1936 ई. के आसपास हिंदी में प्रगतिशील विचारधारा का आगमन हुआ, जब लखनऊ में प्रेमचंद की अध्यक्षता में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की पहली बैठक हुई। धीरे धीरे प्रगतिशील या प्रगतिशील विचारथारा और प्रगतिशील साहित्य शक्तिशाली होता गया।

IGNOU MHD 03 Free Solved Assignment 2023

हिंदी प्रगतिशील काव्य को विकसित, समृद्ध और सशक्त बनाने में नागा्जुन का यौगदान महत्वपूर्ण है। वह जनता के कवि हैं। एक गरीब, दलित किसान परिवार में जन्म। नागा्जुन, जिन्होंने जीवन भर संधर्थ किया और कठिनाइयों का सामना किया, गरीबों, शोषितों, किसानों, मजदूरों के दर्द और पीड़ा के प्रति सच्ची भावना रखते हैं और उनके प्रति सच्ची सहानुभूति रखते हैं, और उन्होंने उनके दुख और दर्द को व्यक्त किया उनके सभी कार्यों, गद्य और पद्य में।

बलपूर्वक व्यक्त किया। उनमें न तो स्वयं को कुलीन दिखाने की ललक है, न वे दर्शनशास्त्र के रहस्यों को सुलझाने का प्रयास करते हैं और न ही दार्शनिक सिद्धवातों को काव्य में अनुवादित करने का। ऐसे साहित्यकार हैं जो मिटाने के लिए कलम का इस्तेमाल करते हैं।

सर्वहारा वर्ग का यह प्रतिनिधि कवि अपनी रचनाओं में दूसरे शोषित वर्ग की यातनाओं का हृदय विदारक चित्रण करता है। दूसरी ओर शोषण के लिए उत्तरदायी शक्तियों के प्रति कठोर होकर उन पर निर्दयतापूर्वक आक्रमण करता है।

व्यंग्य के तीखे तीरों से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को तबाह करने की कोशिश करता है। इसके लिए वह समाज में व्याप्त कुरीतियों, विसंगतियों, कुरूपताओं को सतह के नीचे छिपी सड़ांध को निर्दयतापूर्वक सामने लाते हैं, ताकि हम उन्हें पहचान सर्कें और उनके विनाश के लिए कुछ कर सके ।

हिंदी की छायावादी कविता के जवाब में और उसके खिलाफ प्रगतिशील कविता का जन्म हुआ। अतएव विषय की दृष्टि से ही नहीं अपितु भाषा-शैली और काव्य-शिल्य की दृष्टि से भी प्रगतिशील काव्य मधुमय मूद् शब्दावली और अलंकृत शैली में न होकर सर्वसाधारण के लिए लिखा जाता है।

यहाँ शब्दावली बोलचाल की है, मुहावरों का प्रयोग हुआ है और कवि व्यंग्य के माध्यम से अपने आशय को व्यक्त करने में पूर्णतया सफल है। उन्होंने पारंपरिक छंदों का प्रयोग नहीं किया है और न ही उन्होंने प्रयोगवादी कवियों की तरह छंदों का प्रयोग किया है।

उन्होंने केवल लय को ध्यान में रखते हुए अपनी बात को ऐसी भाषा और छंदों में प्रस्तुत किया है कि उनका आख्यान अधिक से अधिक प्रभावी और सुलभ हो सके।

अतः यह कहा जा सकता है कि नागार्जुन की भाषा भानुवर्तिनी है, इसमें अधिकांशतः सहजता और सरलता है; यह एक धन्य भाषा है। उनकी कविता में बस एक बात खटकती है, कहीं-कहीं उनका लहजा प्रचार वाला भी हो गया है, लेकिन ऐसी जगहें कम हैं।

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

सारांश यह है कि नागार्जुन हिंदी प्रगतिशील काव्य के प्रबल हस्ताक्षर हैं और अन्य प्रगतिशील कवियों के साथ उनकी विशेषता यह है कि वे न तो कट्र हैं, न माक्सवाद के अंध अनुयायी और साम्यवाद के पूर्ण समर्थक हैं, वे प्रतिबद्ध कवि नहीं हैं।

यदि प्रतिबद्धता है तो केवल आम जनता की भलाई के लिए है इसलिए वे चीनी आक्रमण पर हैं, जबकि प्रतिबद्धता दूसरों की भलाई के लिए है। उन्होंने अपना गुस्सा खुलकर जाहिर किया।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

4 मुक्तिबोध की काव्य भाषा का वैशिष्ट्य बताइए।

अज्ञेय के अनुसार कवि होने के लिए आवश्यक है कि वह सार्थक शब्दों का साधक हो । इस दृष्टि से मुक्तिबोध एक कवि हैं, क्योंकि उनका जीवन अर्थ की खोज है, उनका मुख्य शोध और सरोकार अ्र्थ प्राप्त करना रहा है। उनकी साधना सार्थक अर्थ प्राप्त करने की रही है।

उनकी साधना ‘तारा सप्तक’ से शुरू होती है और ‘चांद का मुंह टेड़ा है’ में अपनी चरम सीमा पर पहुंचती है। उनकी काव्यभाषा तद्धव शब्दावली के प्रयोग की ओर निरन्तर अग्रसर होती रही है। ‘तारसप्तक’ की कविताओं में छायावादी पदावली, चित्रात्मकता और रहस्यवाद का स्वर है।

घनी रात, बादल रिम झिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनान्तर।
व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोई नर की बस्ती, भयकर।।

समानार्थी शब्दों का प्रयोग छायावादी काव्य शैली की विशेषता रही है। यह विशेषता मुक्तिबोध के प्रारंभिक कार्यों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसके विपरीत ‘छंद का मुठ टेड़ा है में तद्धव शब्दों का प्रयोग अधिक मात्रा में मिलता है।

मुक्तिबोध की काव्यभाषा की सबसे बड़ी विशेषता है विषय और भाव के अनुरूप शब्दावली का प्रयोग, लोक शब्दावली का प्रयोग जहाँ ग्रामीण क्षेत्र से संबंधित, वहाँं समान शब्द सबसे विनम्र, कुलीन और नागरिक भावना से जुड़े हुए हैं। मुक्तिबोध लोकतात्रिक विचारधारा के कवि हैं, इसलिए तद्धरव शब्दों के माध्यम से ही उन्होंने एक महान व्यक्ति के स्थान पर एक सामान्य अकिंचन की प्रतिष्ठा स्थापित की है।

देखिए आम आदमी की क्राति की यह तस्वीर, लत्तर, कंटोप, कंदील, सियाह हुलसी, अकुलायो आदि अनेक शब्द उनकी काव्यभाषा को लोकजीवन से जोड़ते हैं धूल -धक्कर, भभड़, गिरस्टिन, दल्लीदार, हेटा, फफोला आदि की काव्यभाषा भी ऐसे ही शब्द हैं नगरीय संवेदनाओं का चित्रण करते समय उसकी भाषा का रुख बदल जाता है, उसका शब्द चयन जैसे टकला आदि भी इस तरह बदल जाता है कि प्रसंग और कहानी सहज ही यथार्थ बन जाती है।

वास्तव में मुक्तिबोध का उद्देश्य अपने काव्य को रहस्पवादी बनाना नहीं था, बल्कि हठयोगी अध्यात्म को अर्थ और संदर्भ देकर अपनी बात को प्रभावशाली बनाना था। अपनी काव्य भावना को सटीक और सशक्त बनाने के लिए उन्हें जो भी शब्द उचित लगे, उन्होंने अपना लिया।

यही कारण है कि उन्होंने तत्सम तद्धव, अंग्रेजी, अरबी-फारसी के अतिरिक्त मराठी की संरचना अपनाते हुए नक्ष, गजर, पुर, हकल दीया आदि मराठी शब्दों का प्रयोग किया है और हिेन्दी को वक्शी, बादलयुक्त रक्त जैसे नए शब्द दिए हैं ।

उपयुक्त विशेषण न मिलने पर वह या तो नए विशेषण का आविष्कार कर लेता है या किसी अन्य विशेषण में विशेषण की जड़ जोड़ देता है, जिससे वास्तव में वह अपने भाव को बहुत सटीक और शक्तिशाली तरीके से व्यक्त कर सके, जैसे फुसफुसाहट हल्की, पफुसफुसाती साजिश किरनीली मू्तियां, अय्यारी चांदनी, सांवलाई किरण, गली की साड़ियों चहचहाती, ठंड का अंधेरा आदि। उन्होंने भदेस’ शब्दों का प्रयोग तुच्छता, क्षुद्ता आदि को इंगित करने के लिए किया है।

मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भी उनकी काव्यभाषा को समृद्ध किया है। मुहावरे भाषा को सौंदर्यबोध के साथ-साथ अर्थ में गंभीर बनाते हैं। और अपने आप में काव्य की एक इकाई प्रतीत होते हैं।

जब तारे सिर्फ साथ देते,
पर नहीं हाथ देते पल भर।

तत्सम शब्द का प्रयोग कम शब्दों में अथ्थ छटा उपस्थित करता है,

पाऊ मैं नए-नए सहचर सकर्मक सत्-चित्-वेदना – भास्कर।

यहाँ अंतिम पंक्ति में प्रयुक्त समान शब्दावली कुछ ही शब्दों में साथियों के लक्षण प्रकट करती है, ऐसे मित्र जो दृश्य वास्तविकता की पीड़ा सहकर सूर्य की तरह जल रहे हैं, इसके विपरीत ‘सभ्यता-उन्मुख, वैयक्तिकृत, ‘तदिलता’।

IGNOU MHD 03 Free Solved Assignment 2023

समान शब्द दस्तक देते हैं, उनकी काव्यभाषा के गौरव को कलुषित करते हैं। परन्तु कुल मिलाकर उनकी काव्यभाषा भावों को व्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ है, क्योंकि वह उनके हाव-भाव और बहुविध स्वभाव के अनुसार बदलती रहती है।

डॉ. राजनारायण मौर्य के शब्दों में, “वह कभी-कभी संस्कृतकृत सामाजिक पदावली के अलंकृत अलंकूत मार्ग से गुजरती हैं। कभी – कभी अरबी-फारसी और उर्दू के नाजुक लचीले हाथों को पकड़कर चलती हैं।

मुक्तिबोध की काव्यभाषा में चित्रांकन की अद्धत क्षमता है। शब्द दर शब्द चित्र में रंग भरता है और भाव की इकाई पूर्ण होते ही चित्र भी सजीव हो उठता है। हर तस्वीर में चेतना झॉकती है और भावना दुलारती है।

लाक्षणिक विशेषणों से युक्त और शानदार शब्द कवि की कमीशन के लक्षण के लिए अनिवार्य साधन हैं कोमल अहं अस्मि वेदना, मित्रस्मिता वनवासी समीर, शिली भूत गतियों का हिम, विग्रह व्यवस्था, आत्मज अनुभव, शिशु जैसे प्रयोग कविता को दुर्बोध बना देते हैं।

उनका शब्द- विवरण भावावेश के प्रवाह में इस प्रकार विन्यस्त है कि मनोगत अर्थरात्रि शब्दों का अर्थ ध्वनि में न केवल रूपान्तरित हो गया है, अपितु उसके संवेदनात्मक लक्ष्य भी देखे गए हैं।

मुक्तिबोध के काव्य में संगीत की मनाही है, इसलिए उनके छंदों में यति गति को कायम नहीं रखा गया है। उन्होंने अपनी लंबी कविताएँ अधिकतर मुक्त छंद में लिखीं।

हिंदी में छंदों को तोड़ने का प्रयास निराला से शुरू होता है, लेकिन निराला जैसे कवियों ने अपने मुक्त छंदों में संगीत और लय का परित्याग नहीं किया इसके विपरीत मु्तिबोध का मुक्त हछंद लयबद्धता से सर्वथा मुक्त है, उनके ‘तार सप्तक के काव्यों में तुक मिलता है।

लेकिन अंत में उनकी कविता तुकांत हो गई है। इसमें काव्यात्मकता है। वस्तुतः मुक्तिबोध ने भाषा के नाटीकरण से अपने पह्य बनाने का काम लिया है, उनकी कविताएँ संगीतात्मक नहीं नाटकीय है।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

5 (क) चर्चा हमारी भी कभी संसार में सर्वत्र थी,
वह सदगुणं की कीर्ति मानो एक और कलत्र थी।
इस दुर्दशा का स्वप्न में भी क्या हमें कुछ ध्यान था?
क्या इस पतन ही को हमारा वह अतुल उत्थान था?
उन्नत रहा होगा कभी जो हो रहा अवनत अभी,
जो हो रहा उन्नत अभी, अवनत रहा होगा कभी।
हँसते प्रथम जो पद्य हैं, तम-पंक में फँसते वही,
मुरझे पड़े रहते कुमुद जो अंत में हँंसते वही।।

उत्तर:-

प्रस्तुत कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने देश के सुनहरे और गौरवशाली अतीत को याद करने के साथ-साथ वर्तमान पतन और दर्दशा पर दुख व्यक्त किया है और देशवासियों को सावधान रहने का संकेत दिया है।

कवि कहता है कि एक समय था जब हम संसार भर में प्रसिद्ध थे। हमारे गुणों और ज्ञान के सामने सारा विश्वु नतमस्तक था। अदालत में हर कोई हमारे गुणों का बखान करता था, लेकिन आज हम उस पराधीनता के कारण दर्दशा में हैं, जिसके बारे में हमने कभी सोचा था।

IGNOU MHD 04 Free Solved Assignment 2023

व्याख्याः-

क्या हमारे मन में कभी ऐसा विचार आया है कि हम अपने आप को इतना हीन समझेंगे? हमने जो यश पाया था, वह इस पतन की दशा में जाना था? आज हमारा देश जो इतना हीन, कमजोर और लाचार है, कभी इतना उन्नत था कि दुनिया हमारे सामने झुकती थी।

कवि कह रहा है कि जिस प्रकार कमल के पहले खिले हुए पत्ते अँचेरे की कीच में थैँस जाते हैं, उसी प्रकार ज्ञान का घमण्ड करने वाले भी शीघ्र नष्ट हो जाते हैं और जो फूल अंत में मुरझा जाते हैं वे हैँसते हैं अ्थात् गंभीर और थैर्यवान लोग।

वे ही अंत में सफलता प्राप्त करते हैं। इसलिए हे देशवासियों, निराश मत होइए। चैर्य और साहस के साथ परिस्थिति का सामना करें, हमें अपना खोया हुआ गौरव अवश्य वापस मिलेगा।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ख) पशु नहीं, वीर तुम,
समर-शूर व्रूर नहीं,
काल-चक्र में दबे
आज तुम राजकुँवर! – समर-सरताज
पर, क्या है सब माया है – माया है,
मुक्त हो सदा ही तुम,
बाधा-विहीन बन्ध छन्द ज्यों,
डूबे आनन्द में सच्चिदानन्द रूप
महामन्त्र ऋषियों का
अणुओं परमाणुओं मैं फूंका हुआ।

प्रस्तुत कविता निराला की कविता ‘जागो फिर एक बार’ से उद्धत है। कवि युवाओं में देशभक्ति और वीरता जगाने का प्रयास कर रहा है।

व्याख्या:-

इन पंक्तियों में कवि भारतीयों को उनकी शक्ति की याद दिलाता है और कहता है कि तुम पशु नहीं, युद्ध में बीरता दिखाने वाले वीर योद्धा हो, तुम क्रूर व्यक्त नहीं हो, तुम न्याय के लिए वीरता दिखाने वाले हो।

आप काल के चक्र में दबे राजकुमार और रणभूमि के श्रेष्ठ योद्धा हैं, पर आप ऐसे क्यों हैं ? नैतिकता माया का बंधन है और आप इससे सदा मुक्त रहे हैं । जैसे यति, विराम, लघु और गुरु आदि नियमों के बन्धन से मुक्त अर्थात् मु्त छंद कविताएँ भावपूर्ण लगती हैं, उसी प्रकार सांसारिकता से मुक्त होकर आप सदा सच्विदानंद में लीन रहते हैं, वह है, परमब्रह्म, इस देश के कण-कण में ऋषियों के महामंत्र परमाणुओं में व्याप्त हैं,

जो मनुष्य के लिए सुखद और मुक्तिदायक हैं, इसलिए भारत के लोगों, आप हमेशा महान रहे हैं, आपके मन में कायरता और वासना के प्रति मोह दोनों ही भावनाएँ नष्ट होने वालीहैं, इसलिए आप ब्रह्मा के रूप है, यह सारा संसार आपके चरणों की धूल से कम नहीं है।

अर्थ वह यह है कि आप ईश्वुर की रचना के सबसे शक्तिशाली प्राणी हैं, इसलिए आप अपनी शक्ति को पहचानें और फिर से जागें।

विशेष ‘जागो फिर एक बार’ कविता एक संबोधन गीत है। कवि इस गीत के माध्यम से भारतीय युवाओं को संबोधित कर उनके पराक्रम को जगाने का प्रयास कर रहा है।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

(ग) यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो।
यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा?
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे पफिर कौन कृती लायेगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा।
यह अद्वितीय : यह मेरा यह मैं स्वयं विसर्जित :
यह दीप, अकेला, स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता, पर इस को भी पंक्ति को दे दो।

ये पक्तियोँ अजेयता की कविता ये दीप अकेला से उद्धत हैं। वह अज्ञानी व्यक्त को महत्व देते हुए उसे समाज में एक पहचान दिलाना चाहते थे, उसे समाज से जोड़ना चाहते थे। उनकी दृष्टि में मानवता मनुष्य और समाज के सम्बन्धों का मूल बिन्दु है, दीये के माध्यम से मानवता की बात करना चाहते थे।

व्याख्याः-

जो व्यक्ति दीपक के रूप में होता है वह स्नेह या तेल से भरा होता है. वह थोड़ा घमंडी भी है, लेकिन वह बहुत खुश है, लेकिन उसे भी समाज की रेखा के प्रति समर्पण कर देना चाहिए। ताकि वह समाज के काम आ सके और उसका जीवन सार्थक हो सके वह एक ऐसे शख्स हैं, जो अनोखे गानों की रचना करते हैं।

जिसे कोई और नहीं बना सकता। यह एक गोताखोर की तरह है जो विचार के मोती एकत्र करता है और वापस लाता है। जिसे और कोई नहीं चुन सकता अर्थात जिस प्रकार एक गोताखोर पानी में कूदकर मोती चुन लेता है उसी प्रकार यह व्यक्ति भी इतना कुशल है कि विचारों के मोती चुन लेता है।

IGNOU MHD 06 Free Solved Assignment 2023

यह प्रतिभावान व्यक्ति उस लकड़ी के समान हैं, जो वातावरण में शुद्धता फैलाने के लिए स्वयं को जलाती है। यानी इस व्यक्ति जैसा कोई नहीं है जो अपने विचारों से क्रांति की आग लगा सके। मैं इस दीपक के माध्यम से खुद को समाज को समर्पित कर रहा हूं। कवि कहता है कि यह दीया स्नेह, प्रेम और वात्सल्य से भरा है पर अकेला है।

अर्थात जो पुरुष है उसमें अभिमान, अहंकार और भी बहुत कुछ है। आप शक्तियों से भरे हैं। ताकि वह शेखी बधारता रहे। इसलिए अनेक शक्तियां होते हुए भी यह अकेला है, हमें इसे समाज में शामिल करना चाहिए ताकि इसकी शक्तियों से राष्ट्र का कल्याण हो सके। देशहित का गीत गाने वाला यही है, अगर इसे समाज में शामिल नहीं किया जाएगा तो ऐसे मथुर गीत कौन गाएगा।

यह तो वह गोताखोर है जो भावों के सागर की गहराई में जाकर सुंदर कृतियों के रूप में मोती दूंढ़ता है और फिर उसे कौन खोजेगा। यह यज्ञ यज्ञ है अर्थात् ऐसी जलती हुई अमि अनेकों में से एक-एक को एक-एक को प्रकाशित कर सकेगा। यह अनुपम है, इसके समान दूसरा कोई नहीं है, यह मेरा है। अर्थात इसमें स्वयं का बोध है।

MHD 02 free solved assignment

IGNOU MHD solved assignment

Your Top Queries To Be Solved :-

  • MHD 02 free solved assignment
  • IGNOU MHD solved assignment
  • IGNOU MHD 06 solved assignment
  • IGNOU MHD free solved assignment
  • IGNOU solved assignment
  • IGNOU free solved assignments
  • IGNOU MHD 02 free solved assignments
  • MHD solved assignment
  • MHD solved free assignment
  • MHD solved assignment free
  • MHD free assignment
  • IGNOU MHD free assignment solved
  • IGNOU MA HINDI solved assignment
  • IGNOU MA HINDI free solved assignment

Leave a Comment