Amir Khusro Ka Jivan Parichay| अमिर खुसरो का जीवन परिचय | Amir Khusro Poetry

अमिर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay) :-

अमिर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay and Amir Khusro Poetry): आदिकाल साहित्य के लगभग अन्त भाग मैं खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि अमीर खुसरो का आविर्भाव होता है, जो की अपने अबिस्मरणीय रचनाओं के बदौलत तत्कालीन हिन्दी खड़ी बोली साहित्य को अनेकों प्रकार से समृद्ध करते है।

उनका पूरा नाम अबू अल हसन यामीन उद-दीन खुसरो माना जाता है। इस ब्लॉग पोस्ट मैं आप लोग आगे आमिर खुसरो जी के जीवन परिचय के बारे मैं बिस्तार से जान पाएंगे।

नामकवि अमीर खुसरो
जन्मसन् 1235
आयुलगभग 70 वर्ष
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश
पिता का नामतुर्क सैफुद्दीन
माता का नाम बलबनके
पेशाकवि, संगीतकार
मृत्युअक्टूबर 1325
मृत्यु स्थानदिल्ली
अमिर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay)

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अमीर खुसरो का जन्म

चंगेज खाँ को दुनिया का खूंखार और बर्बर शासक माना जाता है। चंगेज खाँ ने अपना साम्राज्य विस्तार करने के लिए खूब लोगों की हत्या की। जब उसने लाचन जाति के तुर्क लोगों पर आक्रमण करना शुरू किया तो बहुत से लोगों ने इसका विरोध किया। इनमें में से कुछ लोग तो वहां से भागकर भारत में शरणार्थी के रूप में रहने लगे। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

इन्हीं शरणार्थी में एक लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन भी थे। वह अपनी पत्नी दौलत नाज़ के साथ भारत के एटा उत्तर प्रदेश के पटियाली नामक कस्बे में रहने लगे थे। फिर एक सुनहरा दिन आया। 1253 ई.में एटा उत्तर प्रदेश में पटियाली नामक ग्राम में गंगा नदी के किनारे दौलत नाज़ ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।

सभी इस बात से बहुत खुश थे। सभी लोगों ने सैफुद्दीन खुसरो और दौलत नाज़ को बेटे पैदा होने की बधाई दी। गाँव पटियाली उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था। इस गाँव में अमीर खुसरो के जन्म की बात हुमायूँ काल के हामिद बिन फ़जलुल्लाह जमाली ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तज़किरा सैरुल आरफीन’ में सबसे पहले कही।

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

अमीर खुसरो का बचपन

अमीर खुसरो की माँ दौलत नाज़ हिन्दू (राजपूत) थीं। ये दिल्ली के एक रईस अमीर एमादुल्मुल्क की पुत्री थीं। ये बादशाह बलबन के युद्ध मंत्री थे। ये राजनीतिक दवाब के कारण नए-नए मुसलमान बने थे। इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बावजूद इनके घर में सारे रीति-रिवाज हिन्दुओं के थे।

खुसरो के ननिहाल में गाने-बजाने और संगीत का माहौल था। खुसरो के नाना को पान खाने का बेहद शौक था। इस पर बाद में खुसरो ने ‘तम्बोला’ नामक एक मसनवी भी लिखी। इस मिले जुले घराने एवं दो परम्पराओं के मेल का असर किशोर खुसरो पर पड़ा। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

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जब खुसरो पैदा हुए थे तब इनके पिता इन्हें एक कपड़े में लपेट कर एक सूफ़ी दरवेश के पास ले गए थे। दरवेश ने नन्हे खुसरो के मासूम और तेजयुक्त चेहरे के देखते ही तत्काल भविष्यवाणी की थी –आवरदी कसे राके दो कदम। अज़ खाकानी पेश ख्वाहिद बूद।”

अर्थात तुम मेरे पास एक ऐसे होनहार बच्चे को लाए हो खाकानी नामक विश्व प्रसिद्ध विद्वान से भी दो कदम आगे निकलेगा।

चार वर्ष की अल्प आयु में ही खुसरो अपने पिता के साथ दिल्ली आए और आठ वर्ष की अवस्था तक अपने पिता और भाइयों से शिक्षा पाते रहे। अमीर खुसरो के पहले भाई एज्जुद्दीन (अजीउद्दीन) (इजजुद्दीन) अली शाह (अरबी-फारसी विद्वान) थे। Amir Khusro Poetry

दूसरे भाई हिसामुद्दीन कुतलग अहमद (सैनिक) थे। तीन भाइयों में अमीर खुसरो सबसे अधिक तीव्र बुद्धि वाले थे। अपने ग्रंथ गुर्रतल कमाल की भूमिका में अमीर खुसरो ने अपने पिता को उम्मी अर्थात् अनपढ़ कहा है।

लेकिन अमीर सैफुद्दीन ने अपने सुपुत्र अमीर खुसरो की शिक्षा-दीक्षा का बहुत ही अच्छा (नायाब) प्रबंध किया था। अमीर खुसरो की प्राथमिक शिक्षा एक मकतब (मदरसा) में हुई। वे छ: बरस की उम्र से ही मदरसा जाने लगे थे। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

उनको बचपन से ही कविता करने का शौक़ था। इनकी काव्य प्रतिभा की चकाचौंध में, इनका बचपन का नाम अबुल हसन बिल्कुल ही विस्मृत हो कर रह गया।

अमीर खुसरो दहलवी ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल कपट की उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया।

प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तारीखे-फिरोज शाही‘ में स्पष्ट रुप से लिखा है कि बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने खुसरो की एक चुलबुली फ़ारसी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें ‘अमीर‘ का ख़िताब दिया था जो उन दिनों बहुत ही इज़ज़त की बात थी।

उन दिनों अमीर का ख़िताब पाने वालों का एक अपना ही अलग रुतबा व शान होती थी। इसीलिए उन्हें अमीर खुसरो देहलवी के नाम से भी जाना जाता है। आगे चल के खुसरो चौदहवीं सदी के सबसे लोकप्रिय खड़ी बोली हिंदी के कवि ,शायर,गायक और संगीतकार थे।

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बचपन का एक किस्सा :-

बचपन से ही अमीर खुसरो का मन पढ़ाई-लिखाई की अपेक्षा शेरो-शायरी व काव्य रचना में अधिक लगता था। वे हृदय से बड़े ही विनोदप्रिय, हसोड़, रसिक, और अत्यंत महत्वकांक्षी थे। वे जीवन में कुछ अलग हट कर करना चाहते थे और वाक़ई ऐसा हुआ भी।

खुसरो के श्याम वर्ण रईस नाना इमादुल्मुल्क और पिता अमीर सैफुद्दीन दोनों ही चिश्तिया सूफ़ी सम्प्रदाय के महान सूफ़ी साधक एवं संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया उर्फ़े सुल्तानुल मशायख के भक्त अथवा मुरीद थे। उनके समस्त परिवार ने औलिया साहब से धर्मदीक्षा ली थी। उस समय खुसरो केवल सात वर्ष के थे।

अमीर सैफुद्दीन महमूद (खुसरो के पिता) अपने दोनों पुत्रों को लेकर हज़रत निजामुद्दीन औलिया की सेवा में उपस्थित हुए। उनका आशय दीक्षा दिलाने का था। संत निजामुद्दीन की ख़ानक़ाह के द्वार पर वे पहुँचे। वहाँ अल्पायु अमीर खुसरो को पिता के इस महान उद्देश्य का ज्ञान हुआ।

खुसरो ने कुछ सोचकर न चाहते हुए भी अपने पिता से अनुरोध किया कि मुरीद ‘इरादा करने’ वाले को कहते हैं और मेरा इरादा अभी मुरीद होने का नहीं है। अत: अभी केवल आप ही अकेले भीतर जाइए। मैं यही बाहर द्वार पर बैठूँगा। अगर निजामुद्दीन चिश्ती वाक़ई कोई सच्चे सूफ़ी हैं तो खुद बखुद मैं उनकी मुरीद बन जाऊँगा। आप जाइए। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

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जब खुसरो के पिता भीतर गए तो खुसरो ने बैठे-बैठे दो पद बनाए और अपने मन में विचार किया कि यदि संत आध्यात्मिक बोध सम्पन्न होंगे तो वे मेरे मन की बात जान लेंगे और अपने द्वारा निर्मित पदों के द्वारा मेरे पास उत्तर भेजेंगे। तभी में भीतर जाकर उनसे दीक्षा प्राप्त कर्रूँगा अन्यथा नहीं। खुसरो के ये पद निम्न लिखित हैं –

तु आँ शाहे कि बर ऐवाने कसरत, कबूतर गर नशीनद बाज गरदद। गुरीबे मुस्तमंदे बर-दर आमद, बयायद अंदर्रूँ या बाज़ गरदद।।

अर्थात: तू ऐसा शासक है कि यदि तेरे प्रसाद की चोटी पर कबूतर भी बैठे तो तेरी असीम अनुकंपा एवं कृपा से बाज़ बन ज़ाए।

खुसरो मन में यही सोच रहे थे कि भीतर से संत का एक सेवक आया और खुसरो के सामने यह पद पढ़ा – ‘बयायद अंद र्रूँ मरदे हकीकत, कि बामा यकनफस हमराज गरदद अगर अबलह बुअद आँ मरदे – नादाँ। अजाँ राहे कि आमद बाज गरदद।।’ Amir Khusro Poetry

अर्थात – “हे सत्य के अन्वेषक, तुम भीतर आओ, ताकि कुछ समय तक हमारे रहस्य-भागी बन सको। यदि आगुन्तक अज्ञानी है तो जिस रास्ते से आया है उसी रास्ते से लौट जाए।’ खुसरो ने ज्यों ही यह पद सुना, वे आत्मविभोर और आनंदित हो उठे और फौरन भीतर जा कर संत के चरणों में नतमस्तक हो गए। इसके पश्चात गुरु ने शिष्य को दीक्षा दी। यह घटना जाने माने लेखक व इतिहासकार हसन सानी निज़ामी ने अपनी पुस्तक तजकि-दह-ए-खुसरवी में पृष्ठ ९ पर सविस्तार दी है।

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खुसरो का नामकरण

स्वयं खुसरो के कथनानुसार जब उन्होंने होश सम्भाला तो उनके वालिद ने उन्हें एक मकतब में बिठाया और खुशनवीसी की महका के लिए काजी असुदुद्दीन मुहम्मद (या सादुद्दीन) के सुपुर्द किया। उन दिनों सुन्दर लेखन पर काफी बल दिया जाता था।

अमीर खुसरो का लेखन बेहद ही सुन्दर था। खुसरो ने अपने फ़ारसी दीवान तुहफतुसिग्र (छोटी उम्र का तोहफ़ा – ६७१ हिज्री, सन १२७१, १६-१९ वर्ष की आयु) में स्वंय इस बात का ज़िक्र किया है कि उनकी गहन साहित्यिक अभिरुचि और काव्य प्रतिभा देखकर उनके गुरु सादुद्दीन या असदुद्दीन मुहम्मद उन्हें अपने साथ नायब कोतवाल के पास ले गए।

वहाँ एक अन्य महान विद्वान ख़वाजा इज्जुद्दीन (अज़ीज़) बैठे थे। गुरु ने इनकी काव्य संगीत प्रतिभा तथा मधुर संगतीमयी वाणी की अत्यंत तारीफ की और खुसरो का इम्तहान लेने को कहा। ख्वाजा साहब ने तब अमीर खुसरो से कहा कि ‘मू’ (बाल), ‘बैज’ (अंडा), ‘तीर’ और ‘खरपुजा’ (खरबूजा) – इन चार बेजोड़, बेमेल और बेतरतीब चीज़ों को एक अशआर में इस्तमाल करो।

खुसरो ने फौरन इन शब्दों को सार्थकता के साथ जोड़कर फारसी में एक सद्य:: रचित कविता सुनाई – ‘हर मूये कि दर दो जुल्फ़ आँ सनम अस्त, सद बैज-ए-अम्बरी बर आँ मूये जम अस्त, चूँ तीर मदाँ रास्त दिलशरा जीरा, चूँ खरपुजा ददांश मियाने शिकम् अस्त।

अर्थातः उस प्रियतम के बालों में जो तार हैं उनमें से हर एक तार में अम्बर मछली जैसी सुगन्ध वाले सौ-सौ अंडे पिरोए हुए हैं। उस सुन्दरी के हृदय को तीर जैसा सीधा-सादा मत समझो व जानो क्योंकि उसके भीतर खरबूजे जैसे चुभनेवाले दाँत भी मौजूद हैं।Amir Khusro Ka Jivan Parichay

ख्वाजा साहब खुसरो की इस शानदार रुबाई को सुनकर चौंक पड़े और जी भर के खूब तारीफ़ की, फ़ौरन गले से लगाया और कहा कि तुम्हारा साहित्यिक नाम तो ‘सुल्तानी’ होना चाहिए। यह नाम तुम्हारे लिए बड़ा ही शुभ साबित होगा। यही वजह है कि खुसरो के पहले काव्य संग्रह ‘तोहफतुसिग्र’ की लगभग सी फ़ारसी गज़लों में यह साहित्यिक नाम हैं।

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अमीर खुसरो के गुरु

अमीर खुसरो के सबसे पहले गुरु शम्शुद्दीन ख़्वारिज्मी थे। कहते हैं कि शम्शुद्दीन ख़्वारिज्मी का ग्रंथ पंजगंज को शुद्ध करने का श्रेय अमीर खुसरो को जाता है। अमीर खुसरो ने जब पंजगंज को अच्छे से पढ़ा तो उनके अंदर धर्म के प्रति सम्मान बढ़ गया। Amir Khusro Poetry

शम्शुद्दीन ख़्वारिज्मी ने ही अमीर खुसरो को निज़ामुद्दीन मुहम्मद बदायूनी सुल्तानुलमशायख़ औलिया के बारे में बताया। जैसे ही अमीर खुसरो ने निज़ामुद्दीन औलिया के बारे में सुना वह जैसे उनके मुरीद हो गए। अमीर खुसरो उनके पास गए और हमेशा के लिए उनके शिष्य बन गए।

निज़ामुद्दीन औलिया ने उनको एक अच्छे गुरु के समान शिक्षा दी। उनकी शिक्षा से अमीर खुसरो और भी आध्यात्मिक बन गए। वह सूफ़ी संत की तरह रहने लगे थे।

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अमीर खुसरो का साहित्यिक जीवन

हैरत की बात ये है कि अमीर खुसरो ने बाल्यावस्था से ही कविताएं लिखना प्रारंभ कर दिया था। 20 वर्ष की उम्र तक वह प्रसिद्ध कवि बन गए थे। भोर, तिलक, शनम जैसी संगीत की शैलियों के जनक अमीर खुसरो ही हैं। यह बलबन के पुत्र शहजादा मोहम्मद के व्यक्तिगत शिक्षक नियुक्त किए गए थे। यहीं से इनका दरबारी जीवन शुरू होता है।

बरवाराग में लय रखने की रीतिे के जन्मदाता अमीर खुसरो माने जाते हैं। भारतीय गायन में कव्वाली के जन्मदाता अमीर खुसरो ही हैं। अमीर खुसरो को मनोरंजन व रसिकता के कवि के रूप में भी जाना जाता है। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

हृदय को प्रसन्न रखना और कोतुहलता के द्वारा मनोरंजन की सृष्टि करना खुसरो की कविता का यही उद्देश्य है। अमीर खुसरो ने पहली बार अपनी कविता में खड़ी बोली के शब्दों का उपयोग किया है। इसलिए अमीर खुसरो को खड़ी बोली का पहला या आदि कवि कहा जाता है।

अमीर खुसरो 99 ग्रंथों के रचयिता माने जाते हैं। ईश्वरी प्रसाद ने इन्हें कवियों में राजकुमार की संज्ञा दी है। रामकुमार वम्माने अमीर खुसरो को अवधि का पहला कवि कहा है। Amir Khusro Poetry

उर्दू नज्म के जन्मदाता आअमीर खुसरो माने जाते हैं। अमीर खुसरो ने हिंदी में पहेलियां, मुकरियां, ढकोसले, दो सखूने, गजले लिखी है। इन्होंने हिंदी में मुख्यतः पहेलियां ही लिखी है। खुसरो ने मसनबीयां फारसी भाष व फारसी लिपि में लिखी है। इनका हिंदी से कोई संबंध नहीं है।

अमीर खुसरो की एक रचना है – खालिकबारी जो एक शब्दकोश है। असल में इस रचना में आरबी, फारसी एवं हिंदी के समानार्थी शब्दों को एकत्रित किया गया है। इसी से उर्द् का जन्म हो गया।

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अमिर खुसरो की भाषा :-

ख़ुसरो को हुए छः सौ वर्ष व्यतीत हो गए किंतु उनकी कविता की भाषा इतनी सजी सँवारी और कटी छँटी हुई है कि वह वर्तमान भाषा से बहुत दूर नहीं अर्थात् उतनी प्राचीन नहीं जान पड़ती। भाटों और चारणों की कविता एक विशेष प्रकार के ढाँचे में ढाली जाती थी।

चाहे वह खुसरो के पहले की अथवा पीछे की हो तो भी वह वर्तमान भाषा से दूर और, ख़ुसरो की भाषा से भिन्न और कठिन जान पड़ती है। इसका कारण साहित्य के संप्रदाय की रूढ़ि का अनुकरण ही है। चारणों की भाषा कविता की भाषा है, बोलचाल की भाषा नहीं। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

ब्रजभाषा के अष्टछाप, आदि कवियों की भाषा भी साहित्य, अलंकार और परंपरा के बंधन से खुसरो के पीछे की होने पर भी उससे कठिन और भिन्न है। कारण केवल इतना ही है कि खुसरो ने सरल और स्वाभाविक भाषा को ही अपनाया है, बोलचाल की भाषा में लिखा है, किसी सांप्रदायिक बंधन में पड़कर नहीं।

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अमीर खुसरो की विशेषता

अमीर खुसरो बहुत ही नेकदिल और उदार व्यक्ति था। उसने कभी भी कोई गलत कार्य नहीं किए। वह हर शायरी बनाने में ही मशगूल रहता। उसको दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं था। वह धार्मिक किस्म का व्यक्ति था। अक्सर यह देखने में आता है कि लोग ऐशो आराम की जिंदगी पाकर अपनी वास्तविकता भूल जाते हैं। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

लेकिन अमीर खुसरो ने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया। उन्होंने बहुत से राजाओं के यहां पर नौकरी की जैसे कि ग़ुलाम, ख़िलजी और तुग़लक़-तीन। परंतु उनको इस बात का कभी भी अभिमान नहीं आया। वह नेकदिल होकर अपना काम करते रहे। राजदरबार में खूब उतार – चढ़ाव होते थे और अनेक प्रकार के चक्रव्यूह और षडयंत्र रचे जाते थे। लेकिन अमीर खुसरो कभी भी गलत चीजों का हिस्सा नहीं बने।

वह कहते थे कि गलत काम में हिस्सा लेने से आपके हर काम गलत ही होते हैं। हो सकता है गलत काम करने पर आप खुश हो जाओ पर वह ईश्वर आपके हर कामों को देखता है। अमीर खुसरो को कभी भी सत्ता का लालच नहीं आया। वह राजदरबार में एक कवि और शायर से ज्यादा और कुछ नहीं रहे।

आज के संदर्भ में खुसरो की कविता का अनुशीलन भावात्मक एकता के पुरस्कर्ताओं के लिए भी लाभकारी होगा। खुसरो वतन परस्तों अर्थात देश प्रेमियों के सरताज कहलाए जाने योग्य हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन देश भक्तों के लिए एक संदेश है। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

देश वासियों के दिलों को जीतने के लिए जाति, धर्म, आदि की एकता की कोई आवश्यकता नहीं। अपितु धार्मिक सहिष्णुता, विचारों की उदारता, मानव मात्र के साथ प्रेम का व्यवहार, सबकी भलाई (कल्याण) की कामना तथा राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता होती है।

इस लेख में उद्घृत खुसरो की विभिन्न मसनवियों के उद्धरणों से यह बात भली-भाँति प्रभावित होती है तथा उनके भारत विषयक आत्यंतिक प्रेम का परिचय मिलता है।

अमीर खुसरो दरबारों से संबंधित थे और उसी तरह का जीवन भी व्यतीत करते थे जो साधारणतया दरबारी का होता था। इसके अतिरिक्त वे सेना के कमांडर जैसे बड़े-बड़े पदों पर भी रहे किन्तु यह उनके स्वभाव के विरुद्ध था। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

अमीर खुसरो को दरबारदारी और चाटुकारिता आदि से बहुत चिड़ व नफ़रत थी और वह समय समय पर इसके विरुद्ध विचार भी व्यक्त किया करते थे।

उनके स्वंय के लिखे ग्रंथों के अलावा उनके समकालीन तथा बाद के साहित्यकारों के ग्रंथ इसका जीता जागता प्रमाण है। जैसे अलाई राज्य के शाही इतिहासकार अमीर खुसरो ने

  • ६९० हिज्री (१२९१ ई.) में मिफताहुल फुतूह,
  • ७११ हिज्री (१३११-१२ ई.) में खजाइनुल फुतूह,
  • ७१५ हिज्री (१३१६ ई.) में दिवल रानी खिज्र खाँ की प्रेम कथा
  • ७१८ हिज्री (१३१८-१९ ई.) में नुह सिपहर,
  • ७२० हिज्री (१३२० ई.) में तुगलकनामा लिखा।

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इसके अलावा एमामी ने रवीउल अव्वल ७५१ हिज्री (मई १३५० ई.) ४० वर्ष की आयु में ‘फुतूहुस्सलातीन’, फिरदौसी का शाहनामा, (एमामी ने अमीर खुसरो के ऐसे ग्रंथ भी पढ़े थे जो इस समय नहीं मिलते।

उसने अमीर खुसरो की कविताओं का अध्ययन किया था। जियाउद्दीन बरनी का तारीख़ें फ़ीरोज़शाही ७४ वर्ष की अवस्था में ७५८ हिज्री (१३७५ ई.) में समाप्त की।

चौदहवीं शताब्दी ई. के तानजीर का प्रसिद्ध यात्री अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद इब्ने बतूता (७३७ हिज्री / १३३३ई.) में सिंध पहुँचा। भारत वर्ष लौटने पर उसकी यात्रा का वर्णन इब्बे-तुहफनुन्नज्जार फ़ी गराइबिल अमसार व अजाइबुल असफार रखा गया। मेंहंदी हुसैन ने इसका नाम रेहला रखा। (REHLA (BARODA १९५३) अनुवाद में केवल अनाइबुल असफार रखा गया है। Amir Khusro Poetry

मुहम्मद कासिम हिन्दू शाह अस्तराबादी जो फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध है. सोलहवीं शती का बड़ा ही विख्यात इतिहासकार है। उसने अपने ग्रंथ ‘गुलशने इब्राहीमी’ (जो तारीख़ें फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध है) की रचना १०१५ हिज्री (१६०६-०७ ई.) में समाप्त की।

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आमिर खुसरो की रचनाए (Amir Khusro Poetry)

जैसे मनुष्य के साथ उसका नाम भी संसार से उठ जाता है पर उन कार्यकुशल व्यक्तियों और कवि-समाज का जीवन और मृत्यु भी आश्चर्यजनक है कि जो मर जाने पर भी समय के अन्त तक जीवित कहलाते हैं और जिनका नाम सर्वदा के लिये अमिट और अमर हो जाता है। इनका कार्य और रचना ही अमृत है जो उन्हें अमर बना देता है, नहीं तो अमृत कल्पना मात्र है। (Amir Khusro Poetry)

इन्हीं में अमीर खुसरों भी हैं कि जिनके शरीर को इस संसार से गए हुए आज छ सौ वर्ष हो गए पर वे अब भी जीवित हैं और बोलते चालते हैं। इनके मुख से जो कुछ निकल गया वह सब संसार को अच्छी तरह से भाया। इनके गीत, पहेलियाँ आदि छ्ह शताब्दी बीतने पर भी आज तक उसी प्रकार प्रचलित है।

खुसरो यों तो अरबी, फ़ारसी, तुर्की और हिंदी भाषाओं के पूरे विद्वान थे और पर वे संस्कृत का भी बहूत्त कुछ ज्ञान रखते थे। यह फ़ारसी के प्रतिभाशाली कवि थे। इन्होंने कविता की 99 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें कई लाख के लगभग शैर थे पर अब उन ग्रंथों में से केवल बीस-बाईस ग्रंथ प्राप्य है। उन ग्रंथों की सूची कुछ इस प्रकार है :-

  • मसनवी किरानुस्सादैन
  • मसनवी मतलउल्अनवार
  • मसनवी शीरीं व खुसरू
  • मसनवी लैली व मजनूँ
  • मसनवी आईना इस्कंदरी या सिंकदरनामा
  • मसनवी हश्त बिहिश्त
  • मसनवी ख़िज्रनामः या ख़िज्र ख़ां देवल रानी या इश्किया
  • मसनवी नुह सिपहर
  • मसनवी तुग़लकनामा
  • ख़ज़ायनुल्फुतूह या तारीख़े अलाई
  • इंशाए खुसरू या ख़्यालाते ख़ुसरू
  • रसायलुलएजाज़ या एजाज़े खुसरवी
  • अफ़ज़लुल्फ़वायद
  • राहतुल्मुजीं
  • ख़ालिकबारी
  • जवाहिरुलबह
  • मुक़ालः
  • क़िस्सा चहार दर्वेश
  • दीवान तुहफ़तुस्सिग़ार
  • दीवान वस्तुलहयात
  • दीवान गुर्रतुल्कमाल
  • दीवान बक़ीयः नक़ीयः

Amir Khusro Poetry

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

आइने-सिकंदरी-या सिकंदर नामा –

निजामी के सिकंदरनामा का जवाब (६९९ हिज्री/सन १२९९ ई.) इसमें सिकन्दरे आजम और खाकाने चीन की लड़ाई का वर्णन है। इसमें अमीर खुसरो ने अपने छोटे लड़के को सीख दी है। इसमें रोज़ीरोटी कमाने, व कुवते बाज़ू की रोटी को प्राथमिकता, हुनर (कला) सीखने, मज़हब की पाबंदी करने और सच बोलने की वह तरक़ीब है जो उन्होंने अपने बड़े बेटे को अपनी मसनवी शीरी खुसरो में दी है।

इस रचना के द्वारा खुसरो यह दिखाना चाहते थे कि वे भी निजामी की तरह वीर रस प्रधान मसनवी लिख सकते हैं। (५) हशव-बहिश्त- निजामी के हफ्त पैकर का जवाब (७०१ हिज्री/सन १३०१ ई.) फ़ारसी की सर्वश्रेष्ठ कृति। इसमें इरान के बहराम गोर और एक चीनी हसीना (सुन्दरी) की काल्पनिक प्रेम गाथा का बेहद ही मार्मिक चित्रण है जो दिल को छू जाने वाली है।

इसमें खुसरो ने मानो अपना व्यक्तिगत दर्द पिरो दिया है। कहानी मूलत: विदेशी है अत: भारत से संबंधित बातें कम हैं। इसका वह भाग बेहद ही महत्वपूर्ण है जिसमें खुसरो ने अपनी बेटी को संबोधित कर उपदेशजनक बातें लिखी हैं। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

मौलाना शिबली (आजमगढ़) के अनुसार इसमें खुसरो की लेखन कला व शैली चरमोत्कर्ष को पहुँच गई है। घटनाओं के चित्रण की दृष्टि से फ़ारसी की कोई भी मसनवी, चाहे वह किसी भी काल की हो, इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती।

अमिर खुसरो की कविता (Amir Khusro Poetry)

1) आ घिर आई दई मारी घटा कारी (Amir Khusro Poetry)

आ घिर आई दई मारी घटा कारी।
बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
आज बन बोलन लागे मोर।
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
आज बन बोलन लागे मोर।

2) सकल बन फूल रही सरसों (Amir Khusro Poetry)

सकल बन फूल रही सरसों।
बन बिन फूल रही सरसों।
अम्बवा फूटे, टेसू फूले,
कोयल बोले डार-डार,
और गोरी करत सिंगार,
मलनियाँ गेंदवा ले आईं कर सों,
सकल बन फूल रही सरसों।
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गेंदवा हाथन में आए।
निजामुदीन के दरवज़्ज़े पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों।
सकल बन फूल रही सरसों।

3) आज रंग है ऐ माँ रंग है री (Amir Khusro Poetry)

आज रंग है ऐ माँ रंग है री,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर,
मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया,
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया,
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया।
वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री,
वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री,
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

Amir Khusro Poetry

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो,
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ,
देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा,
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

Amir Khusro Poetry

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही।
मेरे महबूब के घर रंग है री।

4) ऐ री सखी मोरे पिया घर आए (Amir Khusro Poetry)

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए
भाग लगे इस आँगन को
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के,
चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए,
मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की,
हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन,
उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहि,
आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ,
लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री,
मै मन भाऊँ साजन को।

5) अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया (Amir Khusro Poetry)

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री – कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री – कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा मामू तो बांका री – कि सावन आया

6) बहुत दिन बीते पिया को देखे (Amir Khusro Poetry)

बहुत दिन बीते पिया को देखे,
अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ
मैं हारी वो जीते पिया को देखे बहुत दिन बीते ।

Amir Khusro Poetry

सब चुनरिन में चुनर मोरी मैली,
क्यों चुनरी नहीं रंगते ?
बहुत दिन बीते ।
खुसरो निजाम के बलि बलि जइए,
क्यों दरस नहीं देते ?
बहुत दिन बीते ।

7) बहुत कठिन है डगर पनघट की (Amir Khusro Poetry)

बहुत कठिन है डगर पनघट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निज़ाम पिया।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
ज़रा बोलो निज़ाम पिया।
पनिया भरन को मैं जो गई थी।
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी।
बहुत कठिन है डगर पनघट की।
खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए।
लाज राखे मेरे घूँघट पट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की।

8) बहुत रही बाबुल घर दुल्हन (Amir Khusro Poetry)

बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई।
बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई।
न्हाय धोय के बस्तर पहिरे, सब ही सिंगार बनाई।
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई।
चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत नाई।
चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई।
अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई।
मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई।
मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई।
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई।
अंगुरि पकरि मोरा पहुँचा भी पकरे, कँगना अंगूठी पहिराई।
एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई।
नौशा के संग मोहि कर दीन्हीं, लाज संकोच मिटाई।
सोना भी दीन्हा रुपा भी दीन्हा बाबुल दिल दरियाई।
गहेल गहेली डोलति आँगन मा पकर अचानक बैठाई।
बैठत महीन कपरे पहनाये, केसर तिलक लगाई।
गुण नहीं एक औगुन बहोतेरे, कैसे नोशा रिझाई।
खुसरो चले ससुरारी सजनी संग, नहीं कोई आई।

Amir Khusro Poetry

9 छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके (Amir Khusro Poetry)

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा
अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
खुसरो निजाम के बल बल जाए
मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके

10 दैया री मोहे भिजोया री (Amir Khusro Poetry)

दैया री मोहे भिजोया री
शाह निजाम के रंग में।
कपरे रंगने से कुछ न होवत है
या रंग में मैंने तन को डुबोया री
पिया रंग मैंने तन को डुबोया
जाहि के रंग से शोख रंग सनगी
खूब ही मल मल के धोया री।
पीर निजाम के रंग में भिजोया री।

11) हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल (Amir Khusro Poetry)

हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल,
बाइस ख्वाजा मिल बन बन आयो
तामें हजरत रसूल साहब जमाल।
हजरत ख्वाजा संग..।
अरब यार तेरो (तोरी) बसंत मनायो,
सदा रखिए लाल गुलाल।
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल।

12) जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर (Amir Khusro Poetry)

जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।

तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।

जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।

Amir Khusro Poetry

मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।

खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।

13) जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ (Amir Khusro Poetry)

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ, घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती।
इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न।
मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी।
मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई
पियू संत उमंग मेरी आस नई।

अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी, मैं तो बन के दुल्हन पछताई सखी।
होती न अगर दुनिया की शरम मैं तो भेज के पतियाँ बुला लेती।
उन्हें भेज के सखियाँ बुला लेती।
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ।

Amir Khusro Poetry

14) जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए (Amir Khusro Poetry)

जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए,
अजहुँ न आए स्वामी हो
ऐ जो पिया आवन कह गए अजुहँ न आए।
अजहुँ न आए स्वामी हो।
स्वामी हो, स्वामी हो।
आवन कह गए, आए न बाहर मास।
जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए।
अजहुँ न आए।
आवन कह गए।
आवन कह गए।

15) काहे को ब्याहे बिदेस (Amir Khusro Poetry)

काहे को ब्याहे बिदेस,
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

Amir Khusro Poetry

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन में छाए पछाड़
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
भोर भये उड़ जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़
छूटा सहेली का साथ
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

खुसरो की मनसाबियों (Amir Khusro Poetry) :-

खुसरों की मसनवियों में कोरा इतिहास नहीं है। उस सहृदय कवि ने इस रूखे सूखे विषय को सरस बनाने में अच्छी सफलता पाई है और उस समय के सुल्तानों के भोग विलास, ऐश्वर्य, यात्रा, युद्ध आदि का ऐसा उत्तम चित्र खींचा है कि पढ़ते ही वह दृश्य आँखों के सामने आ जाता है। इन मसनवियों में क़िरानुस्सादैन मुख्य हैं। इस शब्द का अर्थ दो शुभ तारों का मिलन है। Amir Khusro Poetry

बलबन की मृत्यु पर उसका पौत्र कैकुबाद जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तब कैकुबाद का पिता नसीरुद्दीन बुग़रा ख़ाँ जो अपने पिता के आगे ही से बंगाल का सुल्तान कहलाता था इस समाचार को सुनकर ससैन्य दिल्ली की ओर चला। पुत्र भी यह समाचार सुनकर बड़ी भारी सेना सहित पिता से मिलने चला और अवध में सरयू नदी के किनारे पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

परंतु पहले कुछ पत्रव्यवहार होने से आपस में संधि हो गई और पिता का पुत्र का मिलाप हो गया। बुग़रा खाँ ने अपने पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया और वह स्वयं बंगाल लौट गया। क़िरानुस्सादैन में इसी घटना का 3944 शैरों में वर्णन है।

यह मसनवियाँ राजनीतिक इतिहास ग्रंथ है। जो इस प्रकार है :-

  • किरान -उल-सादेन
  • मिस्ता- उल- फतूह
  • नूह सिपिहर
  • खजाइनल फतूह
  • आशिका
  • तुगलकनामा

नूह सिपिहर में भारत के प्राकृतिक परिस्थितियों का सुंदर वर्ण्णन हुआ है। गजल के एक पंक्ति में फारसी और दूसरी पंतक्ति में ब्रजभाषा मिश्रित खड़ी बोली का प्रयोग देखा जा सकता है।

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

‘जिहाल- ए-मिस्की मुकुल तगाफुल,
दूराये नैना बनाते बतिया।
कि ताब-ए-हिजरा नदारम ऐ जान, न
लेहो काहे लगाये छतियां ।

भाषा का ऐसा रूप रेख्ता कहलाता है। खुसरो अपनी हिंदवी पर गर्व करने वाले कवि हैं। इन्होंने हिंदी को अरबी – फारसी से कम नहीं आंका है।

खुसरो के दोहे (Amir Khusro Poetry) :-

गोरी सोये सेज पर, मुख पर डाले केश
चल खुसरू घर अपने, रैन भई चहूँ देश ।

खुसरो दरिया प्रेम का,सो उलटी वा की धार
जो उबरो सो डूब गया जो डूबा हुवा पार

सेज वो सूनी देख के रोवुँ मैं दिन रैन,
पिया पिया मैं करत हूँ पहरों, पल भर सुख ना चैन।

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ,
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग,
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।

चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय,
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय,
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।

खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश,
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।

उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान,
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।

श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत,
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।

पंखा होकर मैं डुली साती तेरा चाव,
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।

नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय,
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।

साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन,
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।

रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन,
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।

अंगना तो परबत भयो देहरी भई विदेस,
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।

आ साजन मोरे नयनन में सो पलक ढाप तोहे दूँ,
न मैं देखूँ और न को न तोहे देखन दूँ।

Amir Khusro Poetry

अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय,
वेद, क़ुरान, पोथी पढ़े प्रेम बिना का होय।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत,
वे नर ऐसे जाऐंगे जैसे रणरेही का खेत।

खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन,
कूच नगारा सांस का बाजत है दिन रैन ।

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

खुसरो की ग़ज़लें (Amir Khusro Poetry) :-

1) ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां |
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,न लेहो काहे लगाये छतियां||

शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़ वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह,
सखि पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां||

यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं,
किसे पडी है जो जा सुनावे, पियारे पी को हमारी बतियां||

चो शम्मा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह|
न नींद नैना, ना अंग चैना, ना आप आवें, न भेजें पतियां||

बहक्क-ए-रोज़े, विसाल ए-दिलबर कि दाद मारा, गरीब खुसरौ|
सपेट मन के, वराये राखूं जो जाये पांव, पिया के खटियां ||

Amir Khusro Poetry

2) ख़बरम रसीदा इमशब, के निगार ख़ाही आमद
सर-ए-मन फ़िदा-ए-राही के सवार ख़ाही आमद।
हमा आहवान-ए-सेहरा, र-ए-ख़ुद निहादा बर कफ़
बा उम्मीद आं के रोज़ी, बा शिकार ख़ाही आमद।
कशिशी के इश्क़ दारद, नागुज़ारदात बादीनशां
बा जनाज़ा गर न आई, बमज़ार ख़ाही आमद।

खुसरो की कह मुखरियाँ (Amir Khusro Poetry) :-

अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!

शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन!

Amir Khusro Poetry

जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!

बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!

सगरी रैन छतियां पर राख

रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन? ना सखि हार!

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

अमिर खुसरो की पहेलियां (Amir Khusro Poetry) :-

  • अंतलपिका पहेली (Amir Khusro Poetry) :

जिस पहेली का उत्तर उसी में छिपा हो।
उदाहरण के तौर पे :

श्याम बरन हैं दांत अनेक, लचकत
जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहं
तू आरी।

  • बहिलापिका पहेली (Amir Khusro Poetry) :

जिस पर लिखा उत्तर बाहर से आता हो। जैसे :

“श्याम बरन की है एक नारी, माथे
ऊपर लगे प्यारी।
जो मानुष इस अर्थ को खोले, कुत्त
की वह बोली बोले। /”

  • मुकरियां (Amir Khusro Poetry):-

इसमें ए सखि साजन / ना सखि साजन के रूप
में एक प्रश्नोउत्तर रहता है। जैसे कि :

“खा गया, पी गया, दे गया बुत्ता।
ए सखि साजन, ना सखि कुत्ता।

  • दो सखुने (Amir Khusro Poetry):

इसमें दो भिन्न प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है।

“ब्राह्मण प्यासा क्यं?
गधा उदासा व्यों?
उत्तर-लौटा न था।
इसका उत्तर हमेशा श्लेष में होता है।

  • बराबरी या संबंध पहेली (Amir Khusro Poetry) :

इसमें दो भिन्न पदा्थों में समानता दिखलाई
जाती है। जैसे कि :

“आदमी और गेहं में क्या समानता है
उत्तर -बाल।

  • ढकोसले (Amir Khusro Poetry) :

बेमतलब की शब्दावली। जैसे कि :

“पीपल पकी पकौडियां झड-झड रहे
हैं बेर
सर में लगा खटाक से,
वाह रे तेरी मिठास,
ला पानी फिला”

  • व्याख्या सहित कुछ पहेली (Amir Khusro Poetry)

लपट-लपट के वाके होई।

छाती पाँव लगा के सोई॥

दाँत से दाँत बजे तो ताड़ा।

ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा॥

व्याख्या :- एक सखी ने कहा—मैं रात में लिपट-लिपट कर उसकी बन गई अर्थात उसी से घिरी रही और छाती पर पाँव रखकर अर्थात पैरों को छाती तक सिकोड़ कर सोई। सोते समय ठिठुरन से दाँत बजने लगे तो उसने मुझे ताड़ा। सुनने वाली ने पूछा कि क्या वह प्रियतम था? उत्तर दिया गया कि नहीं सखी, वह तो जाड़ा था।

(स्रोत :
पुस्तक : अमीर खुसरो (पृष्ठ 99) रचनाकार : अमीर खुसरो प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन संस्करण : 1993)

आप हिलै वह मोय हिलावे।

वाका हिलना मोको भावे॥

हिल-हिल के वह हुआ नसंखा।

ऐ सखी साजन! ना सखी पंखा॥

व्याख्या :- वह स्वयं भी हिलता है और मुझे भी हिलाता है। उसका हिलना मुझे अच्छा या सुखदायक लगता है। वह हिल-हिल कर अर्थात लगातार हिलने से कुछ कमज़ोर हो गया है। वर्णन करने वाली से पूछा गया कि क्या प्रियतम है? तो इसका उत्तर दिया गया कि नहीं, वह तो पंखा है।

सोभा सदा बढ़ावन हारा।

आँखों ते छिन होत न न्यारा॥

आए फिर मेरे मन रंजन।

ऐ सखी साजन! न सखी अंजन॥

व्याख्या :- एक सखी ने कहा कि वह हमेशा आँखों की शोभा बढ़ाने वाला है, आँखों से वह क्षण भर भी अलग नहीं होता है तथा जब भी वह आए मेरे मन को आनंद मिलता है। यह वर्णन सुनने पर पूछा गया कि क्या वह प्रियतम था? उत्तर दिया गया कि नहीं, वह अंजन है।

ऊँची अटारी पलँग बिछायो।

मैं सोई मेरे सिर पर आयो॥

खुल गई अखियाँ भई अनंद।

ऐ सखी साजन! ना सखी चंद॥

व्याख्या :- हे सखि! मैं जब ऊँची अटारी पर पलंग बिछाकर सोई, तो वह मेरे सिरहाने आया। मेरी आँखें खुलीं तो उसे देखकर मुझे आनंद हुआ। जिज्ञासा करने वाली ने पूछा कि क्या वह प्रियतम था? उत्तर दिया गया कि नहीं सखी, वह तो चंद्रमा था।

सेज पड़ी मेरे आँखों आया।

डाल सेज मोहिं मज़ा दिखाया॥

किससे कहूँ मज़ा मैं अपना।

ऐ सखी साजन! ना सखी सपना॥

व्याख्या :- सखी ने कहा कि जब मैं शैय्या पर लेटी तो वह मेरी आँखों में आया, शैय्या पर लिटाकर उसने मुझे ख़ूब आनंदित किया। उससे मिले आनंद या ख़ुशी का वर्णन मैं किससे कहूँ? सुनने वाली ने प्रश्न किया कि क्या वह तुम्हारा प्रियतम था? उत्तर दिया गया कि नहीं सखी, वह तो सपना था।

Amir Khusro Poetry

निधन

अपने जीवन के अंतिम समय तक आते आते इनके पास जो कुछ था सब इन्होंने आवामों पर लुटा दिया और वे स्वयं उनके मज़ार पर जा बैठे। अंत में कुछ ही दिनों में उसी वर्ष (18 शव्वाल, बुधवार) इनकी मृत्यु हो गई। Amir Khusro Ka Jivan Parichay

ये अपने गुरु की क़ब्र के नीचे की ओर पास ही गाड़े गए। सन् 1605 ई. में ताहिरबेग नामक अमीर ने वहाँ पर मक़बरा बनवा दिया। खुसरो ने अपने आँखों से गुलमावंश का पतन, ख़िलजी वंश का उत्थान और पतन तथा तुग़लक वंश का आरंभ देखा।

इनके समय में दिल्ली के तख्त पर 11 सुल्तान बैठे जिनमें सात की इन्होंने सेवा की थी। ये बड़े प्रसन्न चित्त, मिलनसार और उदार थे। सुल्तानों और सरदारों से जो कुछ धन आदि मिलता था वे उसे बाँट देते थे। सल्तनत के अमीर होने पर और कविसम्राट् की पदवी मिलने पर भी ये अमीर और दरिद्र सभी से बारबर मिलते थे। इनमें धार्मिक कट्टरपन नाम मात्र को भी नहीं था।

Amir Khusro Ka Jivan Parichay

अंतिम कुछ शब्द :-

दोस्तों मै आशा करता हूँ आपको ” अमिर खुसरो का जीवन परिचय (Amir Khusro Ka Jivan Parichay)” Blog पसंद आया होगा। अगर आपको मेरा ये Blog पसंद आया हो तो अपने दोस्तों और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे अन्य लोगो को भी इसकी जानकारी दे। यह Blog Post मुख्य रूप से अध्यायनकारों के लिए तैयार किया गया है, हालांकि सभी लोग इसे पढ़कर ज्ञान आरोहण कर सकते है।

अगर आपको लगता है की हमसे पोस्ट मैं कुछ गलती हुई है या फिर आपकी कोई प्रतिकिर्याएँ हे तो हमे आप About Us में जाकर ईमेल कर सकते है। जल्दी ही आपसे एक नए ब्लॉग के साथ मुलाकात होगी तब तक के मेरे ब्लॉग पर बने रहने के लिए ”धन्यवाद”

WIKIPEDIA PAGE :- अमिर खुसरो का जीवन परिचय

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