ग़ैरत की कटार : Munshi Premchand Ki Kahani

ग़ैरत की कटार : Munshi Premchand Ki Kahani :-

ग़ैरत की कटार : Munshi Premchand Ki Kahani :-

1

कितनी अफ़सोसनाक, कितनी दर्दभरी बात है कि वही औरत जो कभी हमारे पहलू में बसती थी उसी के पहलू में चुभने के लिए हमारा तेज खंजर बेचैन हो रहा है। जिसकी आंखें हमारे लिए अमृत के छलकते हुए प्याले थीं वही आंखें हमारे दिल में आग और तूफान पैदा करें! रूप उसी वक्त तक राहत और खुशी देता है जब तक उसके भीतर एक रूहानी नेमत होती हैं और जब तक उसके अन्दर औरत की वफ़ा की रूह हरकत कर रही हो वर्ना वह एक तकलीफ़ देने चाली चीज़ है, ज़हर और बदबू से भरी हुई, इसी क़ाबिल कि वह हमारी निगाहों से दूर रहे और पंजे और नाखून का शिकार बने।

एक जमाना वह था कि नईमा हैदर की आरजुओं की देवी थी, यह समझना मुश्किल था कि कौन तलबगार है और कौन उस तलब को पूरा करने वाला। एक तरफ पूरी-पूरी दिलजोई थी, दूसरी तरफ पूरी-पूरी रजा। तब तक़दीर ने पांसा पलटा। गुलो-बुलबुल में सुबह की हवा की शरारतें शुरू हुईं। शाम का वक्त था।

आसमान पर लाली छायी हुई थी। नईमा उमंग और ताजुगी और शौक से उमड़ी हुई कोठे पर आयी। शफ़क़ की तरह उसका चेहरा भी उस वक्त खिला हुआ था। ऐन उसी वक्त वहां का सूबेदार नासिर अपने हवा की तरह तेज घोड़े पर सवार उधर से निकला, ऊपर निगाह उठी तो हुस्न का करिश्मा नजर आया कि जैसे चांद शफ़क़ के हौज में नहाकर निकला है। munshi premchand ki kahani

तेज़ निगाह जिगर के पार हुई। कलेजा थामकर रह गया। अपने महल को लौटा, अधमरा, टूटा हुआ। मुसाहबों ने हकीम की तलाश की और तब राह-रास्म पैदा हुई। फिर इश्क की दुश्वार मंज़िलों तय हुईं। वफ़ा ओर हया ने बहुत बेरुखी दिखायी। मगर मुहब्बत के शिकवे और इश्क़ की कुफ्र तोड़नेवाली धमकियां आखिर जीतीं।

अस्मत का खलाना लुट गया। उसके बाद वही हुआ जो हो सकता था। एक तरफ से बदगुमानी, दूसरी तरफ से बनावट और मक्कारी। मनमुटाव की नौबत आयी, फिर एक-दूसरे के दिल को चोट पहुँचाना शुरू हुआ। यहां तक कि दिलों में मैल पड़ गयी। एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये।

नईमा ने नासिर की मुहब्बत की गोद में पनाह ली और आज एक महीने की बेचैन इन्तजारी के बाद हैदर अपने जज्बात के साथ नंगी तलवार पहलू में छिपाये अपने जिगर के भड़कते हूए शोलों को नईमा के खून से बुझाने के लिए आया हुआ है। munshi premchand ki kahani

2

आधी रात का वक्त था और अंधेरी रात थी। जिस तरह आसमान के हरमसरा में हुसन के सितारे जगमगा रहे थे, उसी तरह नासिर का हरम भी हुस्न के दीपों से रोशन था। नासिर एक हफ्ते से किसी मोर्चे पर गया हुआ है इसलिए दरबान गाफ़िल हैं। उन्होंने हैदर को देखा मगर उनके मुंह सोने-चांदी से बन्द थे। ख्वाजासराओं की निगाह पड़ी लेकिन वह पहले ही एहसान के बोझ से दब चुके थे। munshi premchand ki kahani

खवासों और कनीजों ने भी मतलब-भरी निगाहों से उसका स्वागत किया और हैदर बदला लेने के नशे में गुनहगार नईमा के सोने के कमरे में जा पहुँचा, जहां की हवा संदल और गुलाब से बसी हुई थी। कमरे में एक मोमी चिराग़ जल रहा था और उसी की भेद-भरी रोशनी में आराम और तकल्लुफ़ की सजावटें नज़र आती थीं जो सतीत्व जैसी अनमोल चीज़ के बदले में खरीदी गयी थीं। वहीं वैभव और ऐश्वर्य की गोद में लेटी हुई नईमा सो रही थी। हैदर ने एक बार नईया को ऑंख भर देखा। वही मोहिनी सूरत थी, वही आकर्षक जावण्य और वही इच्छाओं को जगानेवाली ताजगी। वही युवती जिसे एक बार देखकर भूलना असम्भव था।

हॉँ, वही नईमा थी, वही गोरी बॉँहें जो कभी उसके गले का हार बनती थीं, वही कस्तूरी में बसे हुए बाल जो कभी कन्धों पर लहराते थे, वही फूल जैसे गाल जो उसकी प्रेम-भरी आंखों के सामने लाल हो जाते थे। इन्हीं गोरी-गोरी कलाइयों में उसने अभी-अभी खिली हुई कलियों के कंगन पहनाये थे और जिन्हें वह वफा के कंगन समझ था। munshi premchand ki kahani

इसकी गले में उसने फूलों के हार सजाये थे और उन्हें प्रेम का हार खयाल किया था। लेकिन उसे क्या मालूम था कि फूलों के हार और कलियों के कंगन के साथ वफा के कंगन और प्रेम के हार भी मुरझा जायेंगे।

हां, यह वही गुलाब के-से होंठ हैं जो कभी उसकी मुहब्बत में फूल की तरह खिल जाते थे जिनसे मुहब्बत की सुहानी महक उड़ती थी और यह वही सीना है जिसमें कभी उसकी मुहब्बत और वफ़ा का जलवा था, जो कभी उसके मुहब्बत का घर था। मगर जिस फूल में दिल की महक थी, उसमें दग़ा के कांटे हैं। munshi premchand ki kahani

3

हैदर ने तेज कटार पहलू से निकाली और दबे पांव नईमा की तरफ़ आया लेकिन उसके हाथ न उठ सके। जिसके साथ उम्र-भर जिन्दगी की सैर की उसकी गर्दन पर छुरी चलाते हुए उसका हृदय द्रवित हो गया। उसकी आंखें भीग गयीं, दिल में हसरत-भरी यादगारों का एक तूफान-सा तक़दीर की क्या खूबी है कि जिस प्रेम का आरम्भ ऐसा खुशी से भरपूर हो उसका अन्त इतना पीड़ाजनक हो।

उसके पैर थरथराने लगे। लेकिन स्वाभिमान ने ललकारा, दीवार पर लटकी हुई तस्वीरें उसकी इस कमज़ोरी पर मुस्करायीं। मगर कमजोर इरादा हमेशा सवाल और अलील की आड़ लिया करता है। हैदर के दिल में खयाल पैदा हुआ, क्या इस मुहब्बत के बाब़ को उजाड़ने का अल्ज़ाम मेरे ऊपर नहीं है? जिस वक्त बदगुमानियों के अंखुए निकले, अगर मैंने तानों और धिक्कारों के बजाय मुहब्बत से काम लिया होता तो आज यह दिन न आता। मेरे जुल्मों ने मुहब्बत और वफ़ा की जड़ काटी। munshi premchand ki kahani

औरत कमजोर होती है, किसी सहारे के बग़ैर नहीं रह सकती। जिस औरत ने मुहब्बत के मज़े उठाये हों, और उल्फ़ात की नाजबरदारियां देखी हों वह तानों और जिल्लतों की आंच क्या सह सकती है? लेकिन फिर ग़ैरत ने उकसाया, कि जैसे वह धुंधला चिराग़ भी उसकी कमजोरियों पर हंसने लगा। स्वाभिमान और तर्क में सवाल-जवाब हो रहा था कि अचानक नईमा ने करवट बदली ओर अंगड़ाई ली।

हैदर ने फौरन तलवार उठायी, जान के खतरे में आगा-पीछा कहां? दिल ने फैसला कर लिया, तलवार अपना काम करनेवाली ही थी कि नईमा ने आंखें खोल दीं। मौत की कटार सिर पर नजर आयी। वह घबराकर उठ बैठी। हैदर को देखा, परिस्थिति समझ में आ गयी। munshi premchand ki kahani

4

बोली-हैदर!

हैदर ने अपनी झेंप को गुस्से के पर्दे में छिपाकर कहा- हां, मैं हूँ हैदर! नईमा सिर झुकाकर हसरत-भरे ढंग से बोली—तुम्हारे हाथों में यह चमकती हुई तलवार देखकर मेरा कलेजा थरथरा रहा है। तुम्हीं ने मुझे नाज़बरदारियों का आदी बना दिया है। ज़रा देर के लिए इस कटार को मेरी ऑंखें से छिपा लो। मैं जानती हूँ कि तुम मेरे खून के प्यासे हो, लेकिन मुझे न मालूम था कि तुम इतने बेरहम और संगदिल हो।

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मैंने तुमसे दग़ा की है, तुम्हारी खतावार हूं लेकिन हैदर, यक़ीन मानो, अगर मुझे चन्द आखिरी बातें कहने का मौक़ा न मिलता तो शायद मेरी रूह को दोज़ख में भी यही आरजू रहती। मौत की सज़ा से पहले आपने घरवालों से आखिरी मुलाक़ात की इजाज़त होती है। क्या तुम मेरे लिए इतनी रियायत के भी रवादार न थे? माना कि अब तुम मेरे लिए कोई नहीं हो मगर किसी वक्त थे और तुम चाहे अपने दिल में समझते हो कि मैं सब कुछ भूल गयी लेकिन मैं मुहब्बत को इतनी जल्दी भूल जाने वाली नहीं हूँ।

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अपने ही दिल से फैसला करो। तुम मेरी बेवफ़ाइयां चाहे भून जाओ लेकिन मेरी मुहब्बत की दिल तोड़नेवाली यादगारें नहीं मिटा सकते। मेरी आखिरी बातें सुन लो और इस नापाक जिन्दगी का हिस्सा पाक करो। मैं साफ़-साफ़ कहती हूँ इस आखिरी वक्त में क्यों डरूं। मेरी कुछ दुर्गत हुई है उसके जिम्मेदार तुम हो।

नाराज न होना। अगर तुम्हारा ख्य़ाल है कि मैं यहां फूलों की सेज पर सोती हूँ तो वह ग़लत है। मैंने औरत की शर्म खोकर उसकी क़द्र जानी है। मैं हसीन हूं, नाजुक हूं; दुनिया की नेमतें मेरे लिए हाज़िर हैं, नासिर मेरी इच्छा का गुलाम है लेकिन मेरे दिल से यह खयाल कभी दूर नहीं होता कि वह सिर्फ़ मेरे हुस्न और अदा का बन्दा है। munshi premchand ki kahani

मेरी इज्जत उसके दिल में कभी हो भी नहीं सकती। क्या तुम जानते हो कि यहां खवासों और दूसरी बीवियों के मतलब-भरे इशारे मेरे खून और जिगर को नहीं लजाते? ओफ्, मैंने अस्मत खोकर अस्मत की क़द्र जानी है लकिन मैं कह चुकी हूं और फिर कहती हूं, कि इसके तुम जिम्मेदार हो। premchand ki kahani

हैदर ने पहलू बदलकर पूछा—क्योंकर?
नईमा ने उसी अन्दाज से जवाब दिया-तुमने बीवी बनाकर नहीं, माशूक बनाकर रक्खा। तुमने मुझे नाजुबरदारियों का आदी बनाया लेकिन फ़र्ज का सबक नहीं पढ़ाया। तुमने कभी न अपनी बातों से, न कामों से मुझे यह खयाल करने का मौक़ा दिया कि इस मुहब्बत की बुनियाद फ़र्ज पर है, तुमने मुझे हमेशा हुसन और मस्तियों के तिलिस्म में फंसाए रक्खा और मुझे ख्वाहिशों का गुलाम बना दिया।

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किसी किश्ती पर अगर फ़र्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसे दरिया में डूब जाने के सिवा और कोई चारा नहीं। लेकिन अब बातों से क्या हासिल, अब तो तुम्हारी गैरत की कटार मेरे खून की प्यासी है ओर यह लो मेरा सिर उसके सामने झुका हुआ है। हॉँ, मेरी एक आखिरी तमन्ना है, अगर तुम्हारी इजाजत पाऊँ तो कहूँ। यह कहते-कहते नईमा की आंखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई और हैदर की ग़ैरत उसके सामने ठहर न सकी। premchand ki kahani

उदास स्वर में बोला—क्या कहती हो? नईमा ने कहा-अच्छा इजाज़त दी है तो इनकार न करना। मुझें एक बार फिर उन अच्छे दिनों की याद ताज़ा कर लेने दो जब मौत की कटार नहीं, मुहब्बत के तीर जिगर को छेदा करते थे, एक बार फिर मुझे अपनी मुहब्बत की बांहों में ले लो। मेरी आख़िरी बिनती है, एक बार फ़िर अपने हाथों को मेरी गर्दन का हार बना दो। munshi premchand ki kahani

भूल जाओ कि मैंने तुम्हारे साथ दगा की है, भूल जाओ कि यह जिस्म गन्दा और नापाक है, मुझे मुहब्बत से गले लगा लो और यह मुझे दे दो। तुम्हारे हाथों में यह अच्छी नहीं मालूम होती। तुम्हारे हाथ मेरे ऊपर न उठेंगे। देखो कि एक कमजोर औरत किस तरह ग़ैरत की कटार को अपने जिगर में रख लेती है। यह कहकर नईमा ने हैदर के कमजोर हाथों से वह चमकती हुई तलवार छीन ली और उसके सीने से लिपट गयी। हैदर झिझका लेकिन वह सिर्फ़ ऊपरी झिझक थी। premchand ki kahani

अभिमान और प्रतिशोध-भावना की दीवार टूट गयी। दोनों आलिंगन पाश में बंध गए और दोनों की आंखें उमड़ आयीं। नईमा के चेहरे पर एक सुहानी, प्राणदायिनी मुस्कराहट दिखायी दी और मतवाली आंखों में खुशी की लाली झलकने लगी। बोली-आज कैसा मुबारक दिन है कि दिल की सब आरजुएं पूरीद होती हैं लेकिन यह कम्बख्त आरजुएं कभी पूरी नहीं होतीं। munshi premchand ki kahani

इस सीने से लिपटकर मुहब्बत की शराब के बगैर नहीं रहा जाता। तुमने मुझे कितनी बार प्रेम के प्याले हैं। उस सुराही और उस प्याले की याद नहीं भूलती। आज एक बार फिर उल्फत की शराब के दौर चलने दो, मौत की शराब से पहले उल्फ़त की शराब पिला दो। एक बार फिर मेरे हाथों से प्याला ले लो। मेरी तरफ़ उन्हीं प्यार की निगाहों से दंखकर, जो कभी आंखों से न उतरती थीं, पी जाओ। मरती हूं तो खुशी से मरूं। premchand ki kahani

नईमा ने अगर सतीत्व खोकर सतीत्व का मूल्य जाना था, तो हैदर ने भी प्रेम खोकर प्रेम का मूल्य जाना था। उस पर इस समय एक मदहोशी छायी हुई थी। लज्जा और याचना और झुका हुआ सिर, यह गुस्से और प्रतिशोध के जानी दुश्मन हैं और एक गौरत के नाजुक हाथों में तो उनकी काट तेज तलवार को मात कर देती है। munshi premchand ki kahani

अंगूरी शराब के दौर चले और हैदर ने मस्त होकर प्याले पर प्याले खाली करने शुरू किये। उसके जी में बार-बार आता था कि नईमा के पैरों पर सिर रख दूं और उस उजड़े हुए आशियाने को आदाब कर दूं। फिर मस्ती की कैफ़्रियत पैदा हुई और अपनी बातों पर और अपने कामों पर उसे अख्य़ियार न रहा। वह रोया, गिड़गिड़ाया, मिन्नतें कीं, यहां तक कि उन दग़ा के प्यालों ने उसका सिर झुका दिया।

5

हैदर कई घण्टे तक बेसुध पड़ा रहा। वह चौंका तो रात बहुत कम बाक़ी रह गयी थी। उसने उठना चाहा लेकिन उसके हाथ-पैर रेशम की डोरियों से मजबूत बंधे हुए थे। उसने भौचक होकर इधर-उधर देखा। नईमा उसके सामने वही तेज़ कटार लिये खड़ी थी। premchand ki kahani

उसके चेहरे पर एक क़ातिलों जैसी मुसकराहट की लाली थी। फ़र्जी माशूक के खूनीपन और खंजरबाजी के तराने वह बहुत बार गा चुका था मगर इस वक्त उसे इस नज्जारे से शायराना लुत्फ़ उठाने का जीवट न था। जान का खतरा, नशे के लिए तुर्शी से ज्यादा क़ातिल है। munshi premchand ki kahani

घबराकर बोला-नईम!
नईमा ने लहजे में कहा-हां, मैं हूं नईमा।
हैदर गुस्से से बोला-क्या फिर दग़ा का वार किया?

नईमा ने जवाब दिया-जब वह मर्द जिसे खुदा ने बहादुरी और क़ूवत का हौसला दिया है, दग़ा का वार करता है तो उसे मुझसे यह सवाल करने का कोई हक़ नहीं। दग़ा और फ़रेब औरतों के हथियार हैं क्योंकि औरत कमजोर होती है। लेकिन तुमको मालूम हो गया कि औरत के नाजुक हाथों में ये हथियार कैसी काट करते हैं। munshi premchand ki kahani

यह देखो-यह आबदार शमशीर है, जिसे तुम ग़ैरत की कटार कहते थे। अब वह ग़ैरत की कटार मेरे जिगर में नहीं, तुम्हारे जिगर में चुभेगी। हैंदर, इन्सान थोड़ा खोकर बहुत कुछ सीखता है। तुमने इज्जत और आबरू सब कुछ खोकर भी कुछ न सीखा। तुम मर्द थे। नासिर से तुम्हारी होड़ थी। तुम्हें उसके मुक़ाबिले में अपनी तलवार के जौहर दिखाना था लेकिन तुमने निराला ढंग अख्तियार किया और एक बेकस और पर दग़ा का वार करना चाहा और अब तुम उसी औरत के समाने बिना हाथ-पैर के पड़े हुए हो। premchand ki kahani

तुम्हारी जान बिलकुल मेरी मुट्ठी में है। मैं एक लहमे में उसे मसल सकती हूं और अगर मैं ऐसा करूं तो तुम्हें मेरा शुक्रगुज़ार होना चाहिये क्योंकि एक मर्द के लिए ग़ैरत की मौत बेग़ैरती की जिन्दगी से अच्छी है। लेकिन मैं तुम्हारे ऊपर रहम करूंगी: मैं तुम्हारे साथ फ़ैयाजी का बर्ताव करूंगी क्योंकि तुम ग़ैरत की मौत पाने के हक़दार नहीं हो। munshi premchand ki kahani

जो ग़ैरत चन्द मीठी बातों और एक प्याला शराब के हाथों बिक जाय वह असली ग़ैरत नहीं है। हैदर, तुम कितने बेवकूफ़ हो, क्या तुम इतना भी नहीं समझते कि जिस औरत ने अपनी अस्मत जैसी अनमोल चीज देकर यह ऐश ओर तकल्लुफ़ पाया वह जिन्दा रहकर इन नेमतों का सुख जूटना चाहती है। जब तुम सब कुछ खोकर जिन्दगी से तंग नहीं हो तो मैं कुछ पाकर क्यों मौत की ख्वाहिश करूं?

अब रात बहुत कम रह गयी है। यहां से जान लेकर भागो वर्ना मेरी सिफ़ारिश भी तुम्हें नासिर के गुस्से की आग से रन बचा सकेगी। तुम्हारी यह ग़ैरत की कटार मेरे क़ब्जे में रहेगी और तुम्हें याद दिलाती रहेगी कि तुमने इज्जत के साथ ग़ैरत भी खो दी। premchand ki kahani
(‘जमाना’, जुलाई, १९९५)

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