कश्मीरी सेब : Munshi Premchand Ki Kahani

कश्मीरी सेब : Munshi Premchand Ki Kahani :-

कश्मीरी सेब : Munshi Premchand Ki Kahani :-

कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार,गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टमाटो को पहले कोई सेंत में भी न पूछता था। premchand ki kahani

अब टमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है। गाजर भी पहले ग़रीबों के पेट भरने की चीज थी। अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी बहुत विटामिन हैं, इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है।

और सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज खाइए तो आपको डाक्टरों की जरूरत न रहेगी। डाक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं। सेब तो रस और स्वाद में अगर आम से बढक़र नहीं है तो घटकर भी नहीं। हाँ, बनारस के लंगड़े और लखनऊ के दसहरी और बम्बई के अल्फाँसो की बात दूसरी है। premchand ki kahani

उनके टक्कर का फल तो संसार में दूसरा नहीं है मगर; मगर उनमें विटामिन और प्रोटीन है या नहीं, है तो काफी है या नहीं, इन विषयों पर अभी किसी पश्चिमी डाक्टर की व्यवस्था देखने में नहीं आयी। सेब को यह व्यवस्था मिल चुकी है। अब वह केवल स्वाद की चीज नहीं है, उसमें गुण भी है। हमने दूकानदार से मोल-भाव किया और आध सेर सेब माँगे।

दुकानदार ने कहा-बाबूजी बड़े मजेदार सेब आये हैं, खास कश्मीर के। आप ले जाएँ, खाकर तबीयत खुश हो जाएगी। premchand ki kahani

मैंने रूमाल निकालकर उसे देते हुए कहा-चुन-चुनकर रखना।

दूकानदार ने तराजू उठाई और अपने नौकर से बोला-लौंडे आध सेर कश्मीरी सेब निकाल ला। चुनकर लाना।

लौंडा चार सेब लाया। दूकानदार ने तौला, एक लिफाफे में उन्हें रखा और रूमाल में बाँधकर मुझे दे दिया। मैंने चार आने उसके हाथ में रखे। munshi premchand ki kahani

घर आकर लिफ़ाफा ज्यों-का-त्यों रख दिया। रात को सेब या कोई दूसरा फल खाने का कायदा नहीं है। फल खाने का समय तो प्रात:काल है। आज सुबह मुँह-हाथ धोकर जो नाश्ता करने के लिए एक सेब निकाला, तो सड़ा हुआ था।

एक रुपये के आकार का छिलका गल गया था। समझा, रात को दूकानदार ने देखा न होगा। दूसरा निकाला। मगर यह आधा सड़ा हुआ था। अब सन्देह हुआ, दुकानदार ने मुझे धोखा तो नहीं दिया है। तीसरा सेब निकाला। munshi premchand ki kahani

यह सड़ा तो न था; मगर एक तरफ दबकर बिल्कुल पिचक गया। चौथा देखा। वह यों तो बेदाग था; मगर उसमें एक काला सूराख था जैसा अक्सर बेरों में होता है। काटा तो भीतर वैसे ही धब्बे, जैसे किड़हे बेर में होते हैं। एक सेब भी खाने लायक नहीं।

चार आने पैसों का इतना गम न हुआ जितना समाज के इस चारित्रिक पतन का। दूकानदार ने जान-बूझकर मेरे साथ धोखेबाजी का व्यवहार किया। एक सेब सड़ा हुआ होता, तो मैं उसको क्षमा के योग्य समझता। सोचता, उसकी निगाह न पड़ी होगी। munshi premchand ki kahani

मगर चार-के-चारों खराब निकल जाएँ, यह तो साफ धोखा है। मगर इस धोखे में मेरा भी सहयोग था। मेरा उसके हाथ में रूमाल रख देना मानो उसे धोखा देने की प्रेरणा थी। उसने भाँप लिया कि महाशय अपनी आँखों से काम लेने वाले जीव नहीं हैं और न इतने चौकस हैं कि घर से लौटाने आएँ। आदमी बेइमानी तभी करता जब उसे अवसर मिलता है।

बेइमानी का अवसर देना, चाहे वह अपने ढीलेपन से हो या सहज विश्वास से, बेइमानी में सहयोग देना है। पढ़े-लिखे बाबुओं और कर्मचारियों पर तो अब कोई विश्वास नहीं करता। किसी थाने या कचहरी या म्यूनिसिपिलटी में चले जाइए, आपकी ऐसी दुर्गति होगी कि आप बड़ी-से-बड़ी हानि उठाकर भी उधर न जाएँगे। व्यापारियों की साख अभी तक बनी हुई थी। munshi premchand ki kahani

यों तौल में चाहे छटाँक-आध-छटाँक कस लें; लेकिन आप उन्हें पाँच की जगह भूल से दस के नोट दे आते थे तो आपको घबड़ाने की कोई जरूरत न थी। आपके रुपये सुरक्षित थे। मुझे याद है, एक बार मैंने मुहर्रम के मेले में एक खोंचे वाले से एक पैसे की रेवडिय़ाँ ली थीं और पैसे की जगह अठन्नी दे आया था।

घर आकर जब अपनी भूल मालूम हुई तो खोंचे वाले के पास दौड़ा गये। आशा नहीं थी कि वह अठन्नी लौटाएगा, लेकिन उसने प्रसन्नचित्त से अठन्नी लौटा दी और उलटे मुझसे क्षमा माँगी। और यहाँ कश्मीरी सेब के नाम से सड़े हुए सेब बेचे जाते हैं? मुझे आशा है, पाठक बाज़ार में जाकर मेरी तरह आँखे न बन्द कर लिया करेंगे। नहीं उन्हें भी कश्मीरी सेब ही मिलेंगे ? munshi premchand ki kahani

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