एक आँच की कसर : Munshi Premchand Ki Kahani

एक आँच की कसर : Munshi Premchand Ki Kahani :-

एक आँच की कसर : Munshi Premchand Ki Kahani

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सारे नगर में महाशय यशोदानन्द का बखान हो रहा था। नगर ही में नही, समस्त प्रान्त में उनकी कीर्ति की जाती थी, समाचार पत्रों में टिप्पणियां हो रही थी, मित्रो से प्रशंसापूर्ण पत्रों का तांता लगा हुआ था। समाज-सेवा इसको कहते है ! उन्नत विचार के लोग ऐसा ही करते है। महाशय जी ने शिक्षित समुदाय का मुख उज्जवल कर दिया।

अब कौन यह कहने का साहस कर सकता है कि हमारे नेता केवल बात के धनी है, काम के धनी नही है ! महाशय जी चाहते तो अपने पुत्र के लिए उन्हें कम से कम बीज हतार रूपये दहेज में मिलते, उस पर खुशामद घाते में ! मगर लाला साहब ने सिद्वांत के सामने धन की रत्ती बराबर परवा न की और अपने पुत्र का विवाह बिना एक पाई दहेज लिए स्वीकार किया। premchand ki kahani

वाह ! वाह ! हिम्मत हो तो ऐसी हो, सिद्वांत प्रेम हो तो ऐसा हो, आदर्श-पालन हो तो ऐसा हो । वाह रे सच्चे वीर, अपनी माता के सच्चे सपूत, तूने वह कर दिखाया जो कभी किसी ने किया था। हम बड़े गर्व से तेरे सामने मस्तक नवाते है। Munshi Premchand Ki Kahani

महाशय यशोदानन्द के दो पुत्र थे। बड़ा लड़का पढ लिख कर फाजिल हो चुका था। उसी का विवाह तय हो रहा था और हम देख चुके है, बिना कुछ दहेज लिये।

आज का तिलक था। शाहजहांपुर स्वामीदयाल तिलक ले कर आने वाले थे। शहर के गणमान्य सज्जनों को निमन्त्रण दे दिये गये थे। वे लोग जमा हो गये थे। महफिल सजी7 हुई थी। एक प्रवीण सितारिया अपना कौशल दिखाकर लोगो को मुग्ध कर रहा था। दावत को सामान भी तैयार था ? मित्रगण यशोदानन्द को बधाईयां दे रहे थे। Munshi Premchand Ki Kahani

एक महाशय बोले—तुमने तो कमाल कर दिया !

दूसरे—कमाल ! यह कहिए कि झण्डे गाड़ दिये। अब तक जिसे देखा मंच पर व्याख्यान झाड़ते ही देखा। जब काम करने का अवसर आता था तो लोग दुम लगा लेते थे।

तीसरे—कैसे-कैसे बहाने गढे जाते है—साहब हमें तो दहेज से सख्त नफरत है यह मेरे सिद्वांत के विरुद्व है, पर क्या करुं क्या, बच्चे की अम्मीजान नहीं मानती। कोई अपने बाप पर फेंकता है, कोई और किसी खर्राट पर। Munshi Premchand Ki Kahani

चौथे—अजी, कितने तो ऐसे बेहया है जो साफ-साफ कह देते है कि हमने लड़के को शिक्षा – दीक्षा में जितना खर्च किया है, वह हमें मिलना चाहिए। मानो उन्होने यह रूपये उन्होन किसी बैंक में जमा किये थे।

पांचवें—खूब समझ रहा हूं, आप लोग मुझ पर छींटे उड़ा रहे है।

इसमें लड़के वालों का ही सारा दोष है या लड़की वालों का भी कुछ है।

पहले—लड़की वालों का क्या दोष है सिवा इसके कि वह लड़की का बाप है।

दूसरे—सारा दोष ईश्वर का जिसने लड़कियां पैदा कीं । क्यों ?

पांचवे—मैं यह नही कहता। न सारा दोष लड़की वालों का हैं, न सारा दोष लड़के वालों का। दोनों की दोषी है। अगर लड़की वाला कुछ न दे तो उसे यह शिकायत करने का कोई अधिकार नही है कि डाल क्यों नही लायें, सुंदर जोड़े क्यों नही लाये, बाजे-गाजे पर धूमधाम के साथ क्यों नही आये ? बताइए !
चौथे—हां, आपका यह प्रश्न गौर करने लायक है। मेरी समझ में तो ऐसी दशा में लड़कें के पिता से यह शिकायत न होनी चाहिए। premchand ki kahani

पांचवें—तो यों कहिए कि दहेज की प्रथा के साथ ही डाल, गहनें और जोड़ों की प्रथा भी त्याज्य है। केवल दहेज को मिटाने का प्रयत्न करना व्यर्थ है।

यशोदानन्द—-यह भी Lame excuse है। मैंने दहेज नही लिया है।, लेकिन क्या डाल-गहने ने ले जाऊंगा।

पहले—महाशय आपकी बात निराली है। आप अपनी गिनती हम दुनियां वालों के साथ क्यों करते हैं ? आपका स्थान तो देवताओं के साथ है। Munshi Premchand Ki Kahani

दूसरा—-20 हजार की रकम छोड़ दी ? क्या बात है।

यशोदानन्द– मेरा तो यह निश्चय है कि हमें सदैव principles पर स्थिर रहना चाहिए। principal के सामने money की कोई value नही है। दहेज की कुप्रथा पर मैंने खुद कोई व्याख्यान नही दिया, शायद कोई नोट तक नही लिखा। हां, conference में इस प्रस्ताव को second कर चुका हूं। मैं उसे तोड़ना भी चाहूं तो आत्मा न तोड़ने देगी। मैं सत्य कहता हूं, यह रूपये लूं तो मुझे इतनी मानसिक वेदना होगी कि शायद मैं इस आघात स बच ही न सकूं। Munshi Premchand Ki Kahani

पांचवें– अब की conference आपको सभापति न बनाये तो उसका घोर अन्याय है।

यशोदानन्द—मैंने अपनी duty कर दी उसका recognition हो या न हो, मुझे इसकी परवाह नही। इतने में खबर हुई कि महाशय स्वामीदयाल आ पंहुचे । लोग उनका अभिवादन करने को तैयार हुए, उन्हें मसनद पर ला बिठाया और तिलक का संस्कार आरंम्भ हो गया। Munshi Premchand Ki Kahani

स्वामीदयाल ने एक ढाक के पत्तल पर नारियल, सुपारी, चावल पान आदि वस्तुएं वर के सामने रखीं। ब्राहृम्णों ने मंत्र पढें हवन हुआ और वर के माथे पर तिलक लगा दिया गया।

तुरन्त घर की स्त्रियो ने मंगलाचरण गाना शुरू किया। यहां पहफिल में महाशय यशोदानन्द ने एक चौकी पर खड़े होकर दहेज की कुप्रथा पर व्याख्यान देना शुरू किया। व्याख्यान पहले से लिखकर तैयार कर लिया गया था। उन्होनें दहेज की ऐतिहासिक व्याख्या की थी। Munshi Premchand Ki Kahani

पूर्वकाल में दहेज का नाम भी न थ। महाशयों ! कोई जानता ही न था कि दहेज या ठहरोनी किस चिड़िया का नाम है। सत्य मानिए, कोई जानता ही न था कि ठहरौनी है क्या चीज, पशु या पक्षी, आसमान में या जमीन में, खाने में या पीने में । बादशाही जमाने में इस प्रथा की बुंनियाद पड़ी। हमारे युवक सेनाओं में सम्मिलित होने लगे । Munshi Premchand Ki Kahani

यह वीर लोग थें, सेनाओं में जाना गर्व समझते थे। माताएं अपने दुलारों को अपने हाथ से शस्त्रों से सजा कर रणक्षेत्र भेजती थीं। इस भॉँति युवकों की संख्या कम होने लगी और लड़कों का मोल-तोल शुरू हुआ। आज यह नौवत आ गयी है कि मेरी इस तुच्छ –महातुच्छ सेवा पर पत्रों में टिप्पणियां हो रही है मानों मैंने कोई असाधारण काम किया है। मै कहता हूं ; अगर आप संसार में जीवित रहना चाहते हो तो इस प्रथा क तुरन्त अन्त कीजिए। premchand ki kahani

एक महाशय ने शंका की—-क्या इसका अंत किये बिना हम सब मर जायेगें ?

यशोदानन्द-अगर ऐसा होता है तो क्या पूछना था, लोगो को दंड मिल जाता और वास्तव में ऐसा होना चाहिए। यह ईश्वर का अत्याचार है कि ऐसे लोभी, धन पर गिरने वाले, बुर्दा-फरोश, अपनी संतान का विक्रय करने वाले नराधम जीवित है। और समाज उनका तिरस्कार नही करता । मगर वह सब बुर्द-फरोश है——इत्यादि। Munshi Premchand Ki Kahani

व्याख्यान बहुंतद लम्बा ओर हास्य भरा हुआ था। लोगों ने खूब वाह-वाह की । अपना वक्तव्य समाप्त करने के बाद उन्होने अपने छोटे लड़के परमानन्द को, जिसकी अवस्था ७ वर्ष की थी, मंच पर खड़ा किया। उसे उन्होनें एक छोटा-सा व्याख्यान लिखकर दे रखा था। Munshi Premchand Ki Kahani

दिखाना चाहते थे कि इस कुल के छोटे बालक भी कितने कुशाग्र बुद्वि है। सभा समाजों में बालकों से व्याख्यान दिलाने की प्रथा है ही, किसी को कुतूहल न हुआ।बालक बड़ा सुन्दर, होनहार, हंसमुख था। मुस्कराता हुआ मंच पर आया और एक जेब से कागज निकाल कर बड़े गर्व के साथ उच्च स्वर में पढने लगा…………

प्रिय बंधुवर,
नमस्कार !

आपके पत्र से विदित होता है कि आपको मुझ पर विश्वास नही है। मैं ईश्वर को साक्षी करके धन आपकी सेवा में इतनी गुप्त रीति से पहुंचेगा कि किसी को लेशमात्र भी सन्देह न होगा । हां केवल एक जिज्ञासा करने की धृष्टता करता हूं। इस व्यापार को गुप्त रखने से आपको जो सम्मान और प्रतिष्ठा – लाभ होगा और मेरे निकटवर्ती में मेरी जो निंदा की जाएगी, उसके उपलक्ष्य में मेरे साथ क्या रिआयत होगी ? मेरा विनीत अनुरोध है कि २५ में से ५ निकालकर मेरे साथ न्याय किया जाय………..।

महाशय यशोदानन्द घर में मेहमानों के लिए भोजन परसने का आदेश करने गये थे। निकले तो यह बाक्य उनके कानों में पड़ा—२५ में से ५ मेरे साथ न्याय किया कीजिए ।‘

चेहरा फक हो गया, झपट कर लड़के के पास गये, कागज उसके हाथ से छीन लिया और बौले— नालायक, यह क्या पढ रहा है, यह तो किसी मुवक्किल का खत है जो उसने अपने मुकदमें के बारें में लिखा था। यह तू कहां से उठा लाया, शैतान जा वह कागज ला, जो तुझे लिखकर दिया गया था।

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एक महाशय—–पढने दीजिए, इस तहरीर में जो लुत्फ है, वह किसी दूसरी तकरीर में न होगा।

दूसरे—जादू वह जो सिर चढ के बोलें !

तीसरे—अब जलसा बरखास्त कीजिए । मैं तो चला।

चौथै—यहां भी चलतु हुए।

यशोदानन्द—बैठिए-बैठिए, पत्तल लगाये जा रहे है।

पहले—बेटा परमानन्द, जरा यहां तो आना, तुमने यह कागज कहां पाया ?

परमानन्द—बाबू जी ही तो लिखकर अपने मेज के अन्दर रख दिया था। मुझसे कहा था कि इसे पढना।

अब नाहक मुझसे खफा रहे है।

यशोदानन्द—- वह यह कागज था कि सुअर ! मैंने तो मेज के ऊपर ही रख दिया था। तूने ड्राअर में से क्यों यह कागज निकाला ? Munshi Premchand Ki Kahani

परमानन्द—मुझे मेज पर नही मिला ।

यशोदान्नद—तो मुझसे क्यों नही कहा, ड्राअर क्यों खोला ? देखो, आज ऐसी खबर लेता हूं कि तुम भी याद करोगे। पहले यह आकाशवाणी है।

दूसरे—-इस को लीडरी कहते है कि अपना उल्लू सीधा करो और नेकनाम भी बनो।

तीसरे—-शरम आनी चाहिए। यह त्याग से मिलता है, धोखेधड़ी से नही।

चौथे—मिल तो गया था पर एक आंच की कसर रह गयी।

पांचवे—ईश्वर पांखंडियों को यों ही दण्ड देता है।

यह कहते हुए लोग उठ खडे हुए। यशोदानन्द समझ गये कि भंडा फूट गया, अब रंग न जमेगा। बार-बार परमानन्द को कुपित नेत्रों से देखते थे और डंडा तौलकर रह जाते थे। इस शैतान ने आज जीती-जिताई बाजी खो दी, मुंह में कालिख लग गयी, सिर नीचा हो गया। गोली मार देने का काम किया है। उधर रास्ते में मित्र-वर्ग यों टिप्पणियां करते जा रहे थे——- premchand ki kahani

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एक ईश्वर ने मुंह में कैसी कालिमा लगायी कि हयादार होगा तो अब सूरत न दिखाएगा।

दूसरा–ऐसे-ऐसे धनी, मानी, विद्वान लोग ऐसे पतित हो सकते है। मुझे यही आश्चर्य है। लेना है तो खुले खजाने लो, कौन तुम्हारा हाथ पकड़ता है; यह क्या कि माल चुपके-चुपके उडाओ और यश भी कमाओ !
तीसरा–मक्कार का मुंह काला ! Munshi Premchand Ki Kahani

चौथा—यशोदानन्द पर दया आ रही है। बेचारे ने इतनी धूर्तता की, उस पर भी कलई खुल ही गयी। बस एक आंच की कसर रह गई।

(Lame excuse=थोथी दलील, principles=सिद्धांतों, principal=पूँजी, money=धन, value=मूल्य, conference=सभा, second=अनुमोदन, duty=कर्तव्य, recognition=कदर)

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