हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय (Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay)

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय (Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay):-

हरिशंकर परसाई जी का जीवन परिचय(Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay) मैं हम हिन्‍दी गद्य-साहित्‍य के सबसे अग्रणी व्‍यंग्‍यकार के बारे मैं आलोचना करेंगे।हिन्दी साहित्य मैं एक अपरूप बीयांगकार के रूप मैं परसाई जी का नाम सबसे पहले आता है।

इनके व्‍यंग्‍य-विषय सामािजक एवं राजनीतिक रहे। व्‍यंग्‍य के अतिरिक्‍त इन्‍होंने साळितय की अन्‍य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई थी, परन्‍तु इनकी प्रसिद्धि व्‍यंग्‍याकार के रूप में ही हुई।

पूरा नामहरिशंकर परसाई
जन्म22 अगस्त, 1922
जन्म भूमिजमानी गाँव, होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रदेश
मृत्यु10 अगस्त, 1995
मृत्यु स्थानजबलपुर, मध्य प्रदेश
कर्म भूमिभारत
कर्म-क्षेत्रलेखक और व्यंग्यकार
मुख्य रचनाएँ‘तब की बात और थी’, ‘बेईमानी की परत’, ‘भोलाराम का जीव’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौरा’, ‘ज्वाला और जल’ आदि।
विषयसामाजिक
भाषाहिंदी
विद्यालय‘नागपुर विश्वविद्यालय’
शिक्षाएम.ए. (हिंदी)
पुरस्कार-उपाधि‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शिक्षा सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’।
नागरिकताभारतीय
विधाएँनिबंध, कहानी, उपन्यास, संस्मरण
हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय (Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay)

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हरिशंकर परसाई का जन्म एवं बचपन :-

हरिशंकर परसाई का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद में इटारसी के निकट स्थित जमानी नामक ग्राम में 22 अगसत 1924 ई. को हुआ था। हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और उनकी माता का नाम चंपा बाई था।

परसाई जी के चार भाई बहन थे और उनके माता पिता का मृत्यु बचपन में ही हो गया था। जिससे सभी भाई बहनों के पालन पोषण का जिम्मेदारी हरिशंकर परसाई के ऊपर ही आ गया था। उनका जीवन बहुत ही परेशानियों से और कठिनाइयों से बचपन में व्यतीत हुआ था। हरिशंकर परसाई अपने बुआ के यहां रहते थे और वही से उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण की थी।

इन्‍होंने बाल्‍यावस्‍था से ही कला एवं साहित्‍य में रुचि लेना प्रारम्‍भ कर दिया था। वे अध्‍यापन के साथ-साथ साहित्‍य-सृजन भी करते रहे। दोनो कार्य साथ-साथ न चलने के कारण अध्‍यापन-कार्य छोड़कर साहित्‍य-साधना को ही इन्‍होंने अपने जीवन का लक्ष्‍य बना लिया । Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

इन्‍होंने जबलपुर में ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के सम्‍पादन एवं प्रकाशन का काय्र प्रारम्‍भ किया। लेकिन अर्थ के अभाव के कारण यह बन्‍द करना पड़ा। इनके निबन्‍ध और व्‍यंग्‍य समसामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्र‍कशित होते रहते थे, लेकिन इन्‍होंने नियमित रूप से धर्मयुग और साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान के लिए अपनी रचनाऍं लिखीं।

हरिशंकर परसाई की शिक्षा :-

उन्‍होंने अपना प्रारंभिक पढ़ाई अपने गांव जमानी से ही पूरा किए थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्नातक की शिक्षा मध्यप्रदेश में ही हुई तथा इनकी परास्नातक (एम॰ ए॰)की शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय से संपन्न हुई। एम॰ ए॰ की डिग्री प्राप्त करने के कुछ समय पश्चात तक अध्यापन कार्य किया।

इन्हें बालपन से ही साहित्य और कला में रुचि थी जिसके कारण अध्यापन कार्य के साथ-साथ साहित्य सर्जन किया। अध्यापन कार्य में बार-बार तबादलों से परेशान होने से तथा साहित्य में विशेष रुचि होने के कारण इन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से साहित्य में रुचि दिखाई। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

कार्यक्षेत्र :-

तत्पश्चात इन्होंने हिंदी लेखन आरंभ किया और पूर्ण रूप से साहित्य सेवाओं में जुट गए। इन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन आरंभ किया परंतु कुछ समय बाद आर्थिक घाटे एवं आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इस पत्रिका को बंद करना पड़ा।

पढ़ाई पूरा होने के बाद उन्होंने वन विभाग में भी नौकरी किया। लेकिन वह नौकरी उन्होंने कुछ ही दिनों बाद छोड़ दिया और किसी स्कूल में अध्यापक के पद पर नौकरी कर लिया लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ दिए। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

अगर कार्यक्षेत्र के सामूहिक रूप मैं बात करें तो उन्होंने मात्र अठारह वर्ष की उम्र में ही ‘जंगल विभाग’ में नौकरी की। वे खण्डवा में छ: माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। उन्होंन दो वर्ष (1941–1943 में) जबलपुर में ‘स्पेस ट्रेनिंग कॉलिज’ में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया।

1943 से हरिशंकर जी वहीं ‘मॉडल हाई स्कूल’ में अध्यापक हो गये। किंतु वर्ष 1952 में हरिशंकर परसाई को यह सरकारी नौकरी छोड़ी। उन्होंने वर्ष 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

साहित्यिक परिचय :-

परसाई जी की पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहाँ तक” है, जो कि मई, 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी। जिसमें उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ पहली बार जमकर लिखा था। धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

वैसे परसाई जी कार्लमार्क्स से अधिक प्रभावित थे। परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में “सदाचार का ताबीज” प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी जिसमें रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है।

हरिशंकर परसाई का साहित्यिक जीवन :-

परसाई जी ने पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्य करना प्रारंभ किया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लिखने की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया और लिखना प्रारंभ कर दिया उन्होंने जबलपुर जाकर एक साहित्यिक पत्रिका वसुधा में प्रकाशन प्रारंभ किया।

लेकिन इसमें उन्हें बहुत घाटा होने लगा जिस वजह से उन्होंने यह पत्रिका बंद कर दिया, और अपना स्वयं का व्यंग उपन्यास कहानी सब लिखना शुरु कर दिया। उस समय समाज में अंधविश्वास और कुप्रथा बहुत सारी फैली हुई थी। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

उसी के ऊपर उन्होंने व्यंग लिखना शुरू किया उस समय राजनीति में भ्रष्टाचार और शोषण बहुत हो रहा था इस पर भी व्यंग लिखना शुरु कर दिया और लोगों के सामने सच्चाई लाने का प्रयास करने लगे उन्‍होंने प्रहरी नामक पत्रिका में भी प्रकाशन कार्य किया था। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

जिसमें उनकी पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहां तक है” प्रकाशित हुई थी। हरिशंकर परसाई ने जबलपुर में निकलने वाली एक अखबार देशबंधु में उत्तर देने का कार्य पाठकों को करते थेउस स्तंभ का नाम उन्होंने पूछिए परसाई से रखा था। उनसे कोई भी फिल्म का या कोई भी सवाल पाठक पूछते थे, उसका वह जवाब देते थे। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

पूछिये परसाई से :-

परसाई जी जबलपुर-रायपुर से निकलने वाले अख़बार ‘देशबंधु’ में पाठकों द्वारा पूछे जाने वाले उनके अनेकों प्रश्नों के उत्तर देते थे। अख़बार में इस स्तम्भ का नाम था- “पूछिये परसाई से”। पहले इस स्तम्भ में हल्के इश्किया और फ़िल्मी सवाल पूछे जाते थे।

धीरे-धीरे परसाईजी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनीतिक प्रश्नों की ओर भी प्रवृत्त किया। कुछ समय बाद ही इसका दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह सहज जन शिक्षा थी। लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अख़बार का बड़ी बेचैनी से इंतज़ार करते थे। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई का साहित्यिक योगदान :-

परसाई जी हिंदी व्यंग्य के आधार- स्तंभ थे। इन्होंने हिंदी व्यक्ति को नई दिशा प्रदान की है, और अपनी रचनाओं में व्यक्ति और समाज की विसंगतियों पर से पर्दा हटाया है। विकलांग श्रद्धा को ‘दौर’ ग्रंथ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य स्थान तथा मध्य प्रदेश कला परिषद द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। इन्होंने कथाकार, उपन्यासकार, निबंधकार, कथा संपादक के रूप में हिंदी साहित्य की महान सेवा की। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

परसाई जी की पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहाँ तक” है, जो कि मई, 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी। जिसमें उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ पहली बार जमकर लिखा था।

धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था। वैसे हरिशंकर परसाई कार्लमार्क्स से अधिक प्रभावित थे। परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में “सदाचार का ताबीज” प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी, जिसमें रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

परसाई जी हिंदी साहित्य के एक समर्थ व्यंग्यकार थे। इन्होंने हिंदी निबंध साहित्य में हास्य व्यंग्य प्रदान निबंधों की रचना करके एक विशेष अभाव की पूर्ति की है। इनकी शैली का प्राण त्याग और विनोद है। अपनी विशिष्ट शैली से परसाई जी ने हिंदी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है।

हरिशंकर परसाई की भाषा-शैली:-

परसाई जी एक सफल व्‍यंग्‍कार हैं। वे व्‍यंग्‍य के अनुरूप ही भाषा लिखने में कुशल हैं। इनकी रचनाओं में भाषा के बोलचाल के शब्‍दों, तत्‍सम शब्‍दों तथा विदेशी भाषाओं के शब्‍दों का चयन भी उच्‍च कोटि का है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

लक्षणा एवं व्‍यंजना के कुशल प्रयोग इनके व्‍यंग्‍य को पाठक के मन तक पहुँचाने में समर्थ रहे हैं। इनकी भाषा में यत्र-तत्र मुहावरों एवं कहावतों का प्रयोग हुआ हे जिससे भाषा में प्रवाह आ गया है। परसाईजी की रचनाओं मं व्‍यंग्‍यात्‍मक शैली, विवरणात्‍मक शैली तथा कथानक शैली के दर्शन होते हैं।

परसाई जी की भाषा में व्यंग्य की प्रधानता है। उनकी भाषा सामान्य और संरचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक-एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को स्पष्ट देखा जा सकता है। लोकप्रचलित हिंदी के साथ-साथ उर्दू, अंग्रेज़ी शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है।

परसाईजी की अलग-अलग रचनाओं में ही नहीं, किसी एक रचना में भी भाषा, भाव और भंगिमा के प्रसंगानुकूल विभिन्न रूप और अनेक स्तर देखे जा सकते हैं। प्रसंग बदलते ही उनकी भाषा-शैली में जिस सहजता से वांछित परिवर्तन आते-जाते हैं, और उससे एक निश्चित व्यंग्य उद्देश्य की भी पूर्ति होती है। उनकी यह कला, चकित कर देने वाली है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

परसाईजी की एक रचना की यह पंक्तियाँ कि- ‘आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, सो जाएगा’-‘राजा रंक फ़कीर‘ में सूफ़ियाना अंदाज़ है, तो वहीं दूसरी ओर ठेठ सड़क–छाप दवाफरोश की यह बाकी अदा भी दर्शनीय है- “निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं निंदा ख़ून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियाँपुष्ट होती हैं। निंदा पायरिया का तो शर्तिया इलाज है।”

संतों का प्रसंग आने पर हरिशंकर परसाई का शब्द वाक्य-संयोजन और शैली, सभी कुछ एकदम बदल जाता है, जैसे- “संतों को परनिंदा की मनाही होती है, इसलिए वे स्वनिंदा करके स्वास्थ्य अच्छा रखते हैं। मो सम कौन कुटिल खल कामी- यह संत की विनय और आत्मस्वीकृति नहीं है, टॉनिक है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

संत बड़ा काइंयां होता है। हम समझते हैं, वह आत्मस्वीकृति कर रहा है। पर वास्तव में वह विटामिन और प्रोटीन खा रहा है।” एक अन्य रचना में वे “पैसे में बड़ा विटामिन होता है” लिखकर ताकत की जगह ‘विटामिन‘ शब्द से वांछित प्रभाव पैदा कर देते हैं, जैसे बुढ़ापे में बालों की सफेदी के लिए ‘सिर पर कासं फूल उठा’ या कमज़ोरी के लिए ‘टाईफाइड ने सारी बादाम उतार दी। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

‘ जब वे लिखते हैं कि ‘उनकी बहू आई और बिना कुछ कहे, दही-बड़े डालकर झम्म से लौट गई‘ तो इस ‘झम्म सेलौट जाने से ही झम्म-झम्म पायल बजाती हुई नई-नवेली बहू द्वारा तेज़ीसे थाली में दही-बड़े डालकर लौटने की समूची क्रिया साकार हो जाती है।

एक सजीव और गतिशील बिंब मूर्त्त हो जाता है। जब वे लिखते हैं कि- ‘मौसी टर्राई‘ या ‘अश्रुपात होने लगा’ तो मौसी सचमुच टर्राती हुई सुन पड़ती है और आंसुओं की झड़ी लगी नजर आती है।

‘टर्राई’ जैसे देशज और ‘अश्रुपात’ जैसे तत्सम शब्दों के बिना रचना में न तो यह प्रभाव ही उत्पन्न किया जा सकता था और न ही इच्छित व्यंग्य। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

एक व्यंगकार के रूप मैं कवि परसाई :-

एक उच्‍च कोटि के व्यंगकार एवं प्रसिद्ध लेखक थे उन्‍होंने अपनी पहचान व्यंग लिखकर एक अलग ही बना लिया था। इसीलिए भारतिय हिंदी साहित्य जगत में हरिशंकर परसाई का स्थान व्यंगकार के रूप में अद्वितीय माना जाता है। उनकी लोकप्रियता उनके व्यंग की वजह से है।

उन्होंने बहुत सारी कहानियां उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं, लेकिन उनकी पहचान का कारण व्यंग ही ज्यादा है। उन्होंने समाज में अंधविश्वास और रूढ़िवादी पर मजाक बना कर व्यंग के रूप में लोगों के सामने दिखाया है। इन्होंने एक अलग तरह का व्यंग लिखकर हिंदी साहित्य में व्यंग को एक अलग दर्जा दे दिया है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

उन्होंने आधुनिक युग के राजनीति में जो दोगली और खोखले व्यवस्था है उसके बारे में अपने व्यंग के माध्यम से लोगों के सामने रखा ताकि लोग समझ सके और अपने समाज में सही तरीके से रह सके।

वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है।

जिनसे किसी भी और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों के अलावा जीवन पर्यन्त विस्ल्लीयो पर भी अपनी अलग कोटिवार पहचान है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापन महसूस होता है कि लेखक उसके सामने ही बैठे हैं। ठिठुरता हुआ गणतंत्र की रचना हरिशंकर परसाई ने की जो एक व्यंग्य है।

परसाई जी हमेशा चौंक्‍कने रहते थे कि समाज में कहां क्या गड़बड़ हो रहा है उसी पर ध्यान केंद्रित करके वह अपने व्यंग के रूप में रचना करके लोगों को दिखाते थे। उन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास और राजनीति में भ्रष्टाचार और शोषण को लोगों के को दिखाने के लिए अपने व्यंग को माध्यम बनाया। और वह इस्तरह के व्यंग की रचानाएं अपनी मातृभाषा में ही लिखते थे। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई का व्‍यक्तित्‍व:-

  • परसाई एक ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज में फैले सामाजिक पाखंड कुप्रथा कुरीतियों अंधविश्वास आदि के खिलाफ अपनी रचनाओं से व्यंगात्मक और आध्यात्मिक तरीके से विरोध किया। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • वह अपनी कलम के माध्यम से समाज को सुधारना चाहते थे, लोगों को समाज में फैले अनछुए पहलू, समाजिक पाखंड को दुनिया के सामने रखने का प्रयास किया।
  • हरिशंकर परसाई का पहचान एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार व्यंगात्मक रचनाएं लिखने से है। परसाई जी की सबसे पहली रचना पत्रिका में वसुधा नाम से प्रकाशन हुआ था। उन्होंने अपने लेखक जीवन का शुरुआत जबलपुर से किया था।
  • उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज के रूढ़िवादिता समाज की कई पुरानी रीति-रिवाजों का विरोध किया, जिससे कि समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुआ और हरिशंकर परसाई भारतीय हिंदी साहित्य में एक सामाजिक व्यंगकार की उपाधि से पहचाने जाने लगे।
  • परसाई जबलपुर में देशबंधु अखबार में पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते थे। उसमें मनोरंजन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, इश्क, फिल्मी, सामाजिक मुद्दों से जुड़े जो भी क्वेश्चन होते थे उसका आंसर हरिशंकर परसाई देते थे।
  • परसाई जो भी रचनाएं लिखे हैं उसमें पढ़ने पर ऐसा लगता है कि उसमें सच्चाई है अपनापन है और जो भी पढता है उसे ऐसा महसूस होता है कि लिखने वाला लेखक उसके सामने ही बैठ कर के अपने मन की बात बोल रहा है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • परसाई जी की पहली रचना स्वर्ग से नरक जहां तक 1948 में प्रहरी पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
  • इस रचना में उन्होंने पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए लिखा था। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • हरिशंकर परसाई कार्ल मार्क्स के विचारों से बहुत प्रभावित थे उन्होंने अपने कृतियों में पाखंड के खिलाफ व्यंग के द्वारा और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करके विरोध किया है।

हरिशंकर परसाई की रचनाएँ (harishankar parsai quotes)

हरिशंकर परसाई ने बहुत सारी कहानी उपन्यास निबंध और व्यंग लिखे हैं, लेकिन उनकी पहचान एक व्यंग कार के रूप में ही होती है। उनके रचनाओं की भाषा मातृभाषा होती थी। उन्होंने अपने रचनाओं में भाषा शैली इस तरह का प्रयोग किया था जैसे कोई भी उसे पढेगा तो उसको ऐसा लगेगा की वह सारी घटना जो उस कहानी में या व्यंग में है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

उन्होंने अपने मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनाई थी समाज में रूढ़िवादी कुप्रथाओं के विरुद्ध लिखते थे. उनकी रचनाएं कुछ इस प्रकार है

कहानियाँ :-

  • भोलाराम का जीव
  • हंसते हैं रोते हैं
  • जैसे उनके दिन फिरे

व्यंग्य :-

  • एक लड़की और पाँच दीवाने
  • आध्यात्मिक पागलों का मिशन
  • बदचलन
  • मैं नरक से बोल रहा हूँ
  • विकलांग श्रद्धा का दौर
  • दो नाक वाले लोग
  • क्रांतिकारी की कथा
  • पवित्रता का दौरा
  • पुलिस मंत्री का पुतला
  • वह जो आदमी है न
  • नया साल
  • घायल बसंत
  • संस्कृति
  • बारात की वापसी
  • उखड़े खंभे
  • पीटने पीटने में फर्क
  • ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड
  • शर्म की बात पर ताली पीटना
  • भगत की गत
  • मुंडन
  • एक शुद्ध बेवकूफ
  • इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर
  • भारत को चाहिए जादूगर और साधु
  • सुदामा का चावल
  • कंधे श्रवण कुमार के
  • एक मध्यमवर्गीय कुत्ता
  • खेती
  • 10 दिन का अनशन
  • सन् 1950 ईस्वी
  • बस की यात्रा
  • टॉर्च बेचने वाले

निबंध :-

  • प्रेमचंद के फटे जूते (प्रेमचंद पर आधारित)
  • ऐसा भी सोचा जाता है
  • अपनी-अपनी बीमारी
  • आवारा भीड़ के खतरे
  • काग भगोड़ा
  • बेईमानी की परत
  • तुलसीदास चंदन घिसैं
  • ठिठुरता हुआ गणतंत्र
  • पगडंडियों का जमाना
  • तब की बात और थी
  • शिकायत मुझे भी है
  • हम एक उम्र से वाकिफ हैं
  • सदाचार का ताबीज
  • भूत के पांव पीछे
  • माटी कहे कुम्हार से

उपन्यास:-

  • तट की खोज
  • रानी नागफनी की कहानी
  • ज्वाला और जल

पत्रिका का सम्पादन :-

नौकरी छोड़ने के बाद वे हिन्दी साहित्यिक पत्रिका के सम्पादन के क्षेत्र से जुड़ गए। सबसे पहले उन्होंने जबलपुर से ‘वसुधा’ नाम की हिन्दी मासिकी पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन शुरू किया।

लेकिन कुछ दिनों के बाद आर्थिक तंगी के कारण इस बंद करना पड़ा। उनके कॉलम कई प्रसिद्ध पत्रिका में छापते थे। उनकी नयी कहानियों में ‘पाँचवाँ कालम’¸ नई दुनिया में ‘सुनो भाई साधो’ और ‘उलझी–उलझी’ तथा कल्पना में ‘और अन्त में’ कॉलम छपते थे। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई की काव्य की विशेषता :-

परसाई जी ने जो भी काव्‍य लिखे हैं जो भी निबंध कहानी संग्रह उपन्यास लिखे हैं उनकी एक खास विशेषता है वह अपने निबंध उपन्यास कहानी के माध्यम से समाज में राजनीति में जो भ्रष्टाचार और शोषण फैला हुआ है।

उसके खिलाफ उन्होंने करारा व्यंग किया है उनका मानना था कि जब तक समाज के तौर-तरीकों समाज के रहन-सहन का अनुभव नहीं हो सकता है तब तक कोई भी व्यक्ति वास्तविक साहित्य लिख नहीं सकता है अपनी व्‍यंग के माध्यम से ही सभी सामाजिक बुराइयों को दूर करना चाहते थे।

परसाई जी को मिले पुरस्‍कार :-

हरिशंकर परसाई को उनके महान लेखनी के लिए पुरस्कार भी मिले हैं जैसे कि साहित्य अकादमी पुरस्का,र शिक्षा सम्मान पुरस्कार, और डी लिट की मानद उपाधि से और शरद जोशी सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया था। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई की मृत्यु :-

परसाईजी का मृत्यु 10 अगस्त 1995 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही हुआ था। उनके मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत से एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार का अंत हो गया।

अपनी लेखनी के माध्यम से समाज राजनीतिक सामाजिक भ्रष्टाचार शोषण पाखंड विसंगति अंधविश्वास कुप्रथा कुरीतियां आदि को दूर करने की कोशिश वह हमेशा करते रहे हरिशंकर परसाई में खासियत था कि सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था में जो मध्यम वर्ग के लोग फंसते जाते हैं। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

सच्चाई को दबाया जाता है उसको बहुत ही अच्छे से पहचान जाते थे और उसको खोखली रीति-रिवाजों को वह अपने लेखनी के बल से विरोध करते थे प्रसिद्ध व्यंग्यकार की मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई की कलम से :-

  • जब व्यक्ति किसी प्रकार का नशा करता है तो उसमें हीनता का नशा और उच्चता का नशा बारम्बार रहता है।
  • इंसान में मौजूद अच्छी आत्मा किसी मोड़कर रख दी जाने वाली कुर्सी की भांति होनी चाहिए। जिसे आवश्यकता पड़ने पर फैलाकर बैठ जाए अन्यथा मोड़कर कोने में रख दें।
    जो लोग पानी भी छानकर पीते है लेकिन समय आने पर वह इंसान का खून बिना छाने ही पी जाया करते हैं। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • जिन लोगों को पसीना सिर्फ गर्मी और डर के कारण आता है। ऐसे व्यक्ति मेहनत के पसीने से घबराते हैं।
  • जो व्यक्ति स्वार्थ का विसर्जन कर देता है वह आगे चलकर किसी व्यक्ति को मारना अपना नैतिक अधिकार समझ लेता है। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • भारतीय समाज में प्रेम और अंतर्जातीय विवाह को लेकर हरिशंकर परसाई के क्रांतिकारी विचार
    हरिशंकर परसाई समाज की किसी भी रीत को लेकर व्यावहारिक नजरिया रखते थे।
  • उनका मानना था कि न्याय और सुख की लड़ाईयां अकेले नहीं लड़ी जा सकती हैं। इसके लिए मनुष्यों को एकजुट होना होगा। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • ठीक इसी प्रकार से, हरिशंकर परसाई के समय में जब समाज में कहीं कोई प्रेम या अंतर्जातीय विवाह करता था तो वह इसका विरोध करने वालों से कहा करते थे कि अगर कोई लड़की अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है तो इसमें हर्ज क्या है।
  • दूसरी ओर, भारतीय समाज में विवाह को लेकर हरिशंकर परसाई का मानना था कि मनुष्य ने मनुष्य से ही तो शादी की है इसमें जाति क्यों देखनी है? क्योंकि हमारे समाज में तो महान् पुरुषों ने मनुष्य जाति से बाहर भी शादियां की है। जैसे – भीम और हिंडिबा का विवाह।
  • आगे हरिशंकर परसाई कहते हैं कि भारतीय समाज में 18 साल का होने के बाद युवाओं और युवतियों को सरकार बनाने का अधिकार है तो उन्हें अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की भी आज़ादी मिलनी चाहिए। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay
  • इस प्रकार हरिशंकर परसाई ने अपनी कलम हमेशा ही सामाजिक मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए उठाई। साथ ही हिंदी साहित्य में व्यंग विधा को स्पष्ट और सृदृढ़वादी तरीके से रखने के लिए सम्पूर्ण हिंदी साहित्य जगत हरिशंकर परसाई का सदा ऋणी रहेगा।
  • मां भारती का यह पुत्र जो सदैव अपनी व्यंग रचनाओं से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का दंभ भरता था, उन्होने 10 अगस्त सन् 1995 को जबलपुर में अपनी जिंदगी को पूर्ण विराम दिया।
  • हरिशंकर परसाई की कलम की प्रशंसा में विश्वनाथ उपाध्याय लिखते हैं कि…… “हरिशंकर परसाई की लंबी और पतली काया किसी बंदूक की नली के समान है, जिसमें से व्यंग दौड़ता हुआ निकलता है और सामने वाले जन शत्रु को चीर कर रख देता है।”

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs) :-

हरिशंकर परसाई कौन थे?

उत्तर- हरिशंकर परसाई एक भारतीय लेखक थे। वे आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात व्यक्ति कार और ठिठोलिया थे और अपनी सरल और सीधी शैली के लिए जाने जाते थे।

हरिशंकर परसाई जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त 1922 में हुआ था।

हरिशंकर परसाई जी का जन्म कहां हुआ था?

उत्तर- हरिशंकर परसाई जी का जन्म होशंगाबाद में हुआ था।

हरिशंकर परसाई की माता और पिता का नाम क्या था?

उत्तर- हरिशंकर परसाई के माता का नाम चंपाबाई था और पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद था।

हरिशंकर परसाई की कहानियों के नाम बताइए।

उत्तर- हरिशंकर परसाई के द्वारा रचित कहानियां – भोलाराम का जीव, हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिर आदि। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

हरिशंकर परसाई जी की प्रसिद्ध रचना क्या है?

कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव। उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल। संस्मरण: तिरछी रेखाएँ आदि

हरिशंकर परसाई की मृत्यु कब हुई थी।

उत्तम- हरिशंकर परसाई की मृत्यु 10 अगस्त 1995 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी आयु 72 वर्ष थी। Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

अंतिम कुछ शब्द :-

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