सूफी काव्यधारा की सम्पूर्ण जानकारी (Sufi Kavyadhara Ki Sampurn Jankari)

सूफी काव्यधारा की सम्पूर्ण जानकारी (Sufi Kavyadhara Ki Sampurn Jankari) :-

सूफी काव्यधारा ने अपने उदार मानवीय दर्शन के माध्यम से सिद्ध कर दिया कि “एक ही गुप्त तार मनुष्य मात्र के हृदयों से होता हुआ गया है जिसे छूते ही मनुष्य सारे बाहरी रूपरंग के भेदों की ओर से ध्यान हटा एकात्व का अनुभव करने लगता है।” सुफ़ी कविता का न केवल अंतव्यापी-सूत्र वरन् उसकी परंपरा भी इस कथन की पुष्टि करती है।

भावुक मुसलमानों द्वारा प्रवर्तित प्रेम की पीर’ की यह काव्य-परंपरा अपनी विकास-प्रक्रिया के दौरान हर उदार मानवीय एवं कवि हुदय को अपने में समाती चली गई, बिना संप्रदाय, मत या दर्शन की परवाह किए मानवीय आवेगों ने संकीर्णताओं को बहा दिया और मानवतावादी दृष्टि की स्थापना की। हर स्तर पर व्याप्त बाहयाचार एवं कर्मकांडों की दुनिया में यही उदार दृष्टि इस काव्यधारा का महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है जो इसके कालजयी होने का प्रमुख कारण भी है।

सूफी शब्द का अर्थ :-

सूफी काव्यधारा के काव्य परम्परा में प्रयुक्त “सूफी” शब्द के विषय में विद्वानों में बोहोत सारे मतभेद पाए जाते है । इसकी व्युत्पत्ति अनेक शब्दों से मानी गई है। पर माना जाता है की “सूफी” शब्द के मूल अर्थ तक पहुंचाने में इन विभिन्न मतों की महत्वपूर्ण भूमिका है। पहला मत ‘सुप्फा’ या ‘सुफ’ से इसका संबंध मानता है। जिसका अर्थ है – ‘चबूतरा’। इस मत के मानने वालों का कहना है कि सऊदी अरब के एक पवित्र नगर मदीना की मस्जिद के सामने के चबूतरे पर एकत्र हो कर परमात्मा का चिंतन करने वाले संत ही सूफी कहलाए।

‘सूफी’ शब्द की दूसरी व्युत्पत्ति ‘सफ’ शब्द से कही गई है। इस मत के विचारकों के अनुसार जीवन पर्यन्त सपफा अर्थात स्वच्छ एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने वाले संत ही सुफी हैं । सूफी वस्तुतः उन्हें ही कहना चाहिए जो मनसा, वाचा एवं कर्मणा पवित्र कहे जा सकते हैं। एक दूसरे मत के अनुसार ‘सका’ शब्द यहाँ निष्कपट भाव के लिए ब्यबहृत हुआ है, इसलिए ‘सूफी’ ऐसे व्यक्ति को कहना चाहिए, जो न केवल परमात्मा के प्रति निश्छल भाव रखता है बल्कि तदनुसार सारे प्राणियों के साथ भी छुद्ध बर्ताव करता है। इस शब्द की एक अन्य व्युत्पति ‘सोफिया’ से भी कही गई है जिसका अर्थ है-ज्ञान और इसका वैशिष्ट्य उसकी निर्मलता में निहित है। इस व्युत्पत्ति के अनुसार निर्मल प्रतिभा संपन्न व्यक्ति ही सुफी कहलाए।

‘सूफ़’ एवं सूफी शब्दों के बीच सीधा शब्द साम्य ऐसे लोग अपने इन वस्त्रों के व्यवहार द्वारा अपना सादा जीवन तथा स्वेच्छा या दारिद्रूय भी प्रदर्शित करते थे। ये लोग परमेश्वर की उपलब्धि को ही अपना एकमात्र ध्येय मानते थे। परमेश्वर के साथ निर्बाध मिलन तथा उसके प्रति सच्चे अनुराग में ही कालयापन करना उनके जीवन का सर्वोच्च आदर्श था, और उसके अतिरिक्त सभी बातों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा करना उनके लिए स्वाभाविक सा हो गया था।

सूफी मत और सिद्धांत :-

भारत में आकर उदार-धर्मी सूफी मत यहां के दार्शीनिक मतों एवं उनके सिद्धांतों का प्रभाव ग्रहण कर निरंतर विकासमान रहा है। यही कारण है कि पैगम्बरी एकेश्वरवाद से आरंभ सूफी साधकों की यात्रा सर्वात्मवाद, एकतत्ववाद से होती हुई अद्वैतवाद तक पहुँचती है। सूफी काव्यधारा सूफी-साधकों की यह निरंतर विकासमान वैचारिक स्थिति जहाँ एक ओर उनके उदारमना होने का परिचय देती है वहीं दूसरी ओर स्थूल दृष्टि वाले पैगम्बरियों के लिए इनकी बातें कुफ़् समझी गई। कारण – एकेश्वरवाद का मतलब यह है कि एक सर्वशक्तिमान सबसे बड़ा देवता है, जो सृष्टि की रचना, पालन और नाश करता है।

सूफी काव्यधारा मैं अद्वैतवाद का मतलब है कि दृश्य जगत् की तह में उसका आधारस्वरूप एक ही अखंड नित्य-तत्व है और वही सत्य है। उससे स्वतंत्र और कोई अलग सत्ता नहीं है और आत्मा परमात्मा में भेद है। सूफियों के अनुसार मानव, सृष्टि का चरमोत्कर्ष है और वही ईश्वर के स्वरूप की पूर्ण अभिव्यक्ति है।

मानव का परमलक्ष्य उसकी पूर्णता की प्राप्ति होना चाहिए। सूफियों ने मनुष्य के चार विभाग स्वीकार किए हैं :-

नफ्स-अथ्थात् विषयभोग वृत्ति या इंद्रिय या जड़ तत्व | मनुष्य के शरीर में समाहित यह तत्व उसका जड़ अंश बनाते हैं। अतः साधक का प्रथम लक्ष्य नफ्स के साथ युद्ध होना चाहिए।
रूह-अर्थात आत्मा और कल्ब का अर्थ है-हृदय। कल्ब और रूह द्वारा ही साघक अपनी साधना करता है। कल्ब और रूह का भेद सूफियों के यहाँ स्पष्ट नहीं।
अक्ल या बुद्धि-यह मनुष्य का चौथा विभाग है। आचार्य चतुर्वेंदी ने मनुष्य के इन विभागों पर प्रकाश डालते हुए इनका महत्व उद्घाटित किया है।

सूफी काव्यधारा की विशेषताएं :-

प्रेममार्गी सूफी काव्यधारा के कविओं के काव्यरचना मैं कुछ प्रमुख विशेषताएं परिलक्षित होता है, जिसके वारे मैं नीचे आलोचना किया गया है :-

प्रेम का स्वरूप:-

सूफी काव्यधारा मैं सुफी साधकों द्वारा रचित प्रेमाख्यानों पर भारतीय आख्यान परंपरा के साथ-साथ फारसी की मसनवी शैली का भी पर्याप्त प्रभाव रहा है। यह प्रभाव विषय- वस्तु एवं शिल्प दोनों स्तरों पर दिखाई देता है। इनमें भारतीय लोककथाओं एवं भारतीय काव्य की कथानक रूढ़ियों को आधार रूप में ग्रहण किया गया है। फारसी की मसनवी शैली के संयोग से इन प्रेमाख्यानकों में अभिव्यक्त प्रेम का स्वरूप परम्परागत काव्य से भिन्न एवं विशिष्ट हो गया है।

प्रेम रस निरूपण :-

सूफी काव्यधारा की साहित्य की प्रत्येक विधा अपने समय और रचनाकार की आपसी टकराहट से विषय-वस्तु ग्रहण करती है। सूफी कविता फिर इसका अपवाद कैसे हो सकती है? सूफी कवियों के आख्यानों में उनकी रचना-दृष्टि और समय की आवश्यकता दोनों मौजूद हैं। इसका परिणाम यह है कि उस युग का जीवन प्रतिनिधि कवियों की रचनाओं में अपने वैविध्य के साथ चित्रित है। रति, शोक, उत्साह, भय, वीभत्स, हास, ईष्प्ा, उत्सुकता, सहानुभूति, विवशता आदि जीवन के प्रमुख भाव, प्रेमाख्यानों में संदर्भ-सापेक्ष होने के कारण जीवंत बन पड़े हैं। पर इस सबंध में मतभेद नहीं हो सकता कि इस कविता का बीज भाव-ऐहिक एवं पारलौक्क प्रेम है। प्रेम की शक्ति जीवन के तमाम भावों में सर्वोपरि है । सूफी कविता का प्रेम-तत्व भी अन्य भावों को ज्यादातर ढक लेता है।

सूफी काव्यधारा के सूफी कवियों ने नायिका को अलौकिक शक्ति का प्रतीक मानकर उसमें अनुपम सौर्य का विधान किया है। सौंदर्य निकूपण में इन्होंने शरीर और मन दोनों के सौदर्य का वित्रण किया है। नख-शिख्, रूप-रंग, हाव-भाव के वर्णन के साथ कला-विशारदता, विदगर्थता आदि का भी अपने काव्यों में समावेश किया है। सूफी प्रेमाख्यानों के नायक अनेक बाधाओं को झेलकर भी निरंतर लक्ष्य की ओर बढ़ते चलते हैं। इस प्रणय भावना के स्वकूप को उद्धाटित करते हुए

डॉ गणपतिचंद्र गुप्त ने लिखा है – “इन आख्यानों के नायकों की प्रणय-भावना, साहस, संधर्ष, शौर्य, आत्मत्याग आदि से युक्त होकर एक ऐसा रूप प्राप्त कर लेती है जिसमें वासना, स्वार्थ, अहंकार का लोप हो जाता है। “

प्रेम पद्धति:-

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने दाम्पत्य-प्रेम की चार पद्धतियाँ कही हैं :-

(क ) पहले प्रकार का प्रेम आदिकाव्य रामायण में दिखाया गया है। इसका विकास विवाह संबंध हो जाने के बाद और पूर्ण उत्कर्ष, जीवन की विकट स्थितियों में दिलाई पड़ता है।

(ख) दूसरे प्रकार का प्रेम विाह के पूर्व का होता है, विवाह जिसका
फल होता है। इसमें नायक-नायिका संसार क्षेत्र में घूमते फिरते हुए कहीं – जैसे उपवन, नदीतट, वीथी इत्यादि में – एक दूसरे को देख मोहित होते हैं और दोनों में प्रीति हो जाती है।

(ग) तीसरे प्रकार के प्रेम का उदय प्राय: राजाओं के अंतः:पुर, उद्यान आदि के भीतर भोगविलास या रंग रहस्य के रूप में दिलाया जाता है जिसमें सपतिनियों के द्वेष, विदूषक आदि के हास, परिहास और राजाओं की स्रैपता का दृश्थ होता है।

(घ) चौथे प्रकार का वह प्रेम है जो गुण, श्रवण, वित्र दर्शन, स्वप्न दर्शन आदि से बैठे बिठाए उत्पन्न होता है और नायक या नायिका को संयोग के लिए प्रयत्नवान करता है।

सूफी काव्यधारा मैं प्रेम-पद्धति का चौथा उपलब्ध रूप दिखाई देता है। फ़ारसी की प्रेम पद्धति से प्रभावित सूफी कवियों का यह प्रेम अभिनव रूप में दिलाई देता है। सूफी काव्यधारा के कवियों ने भारतीय और विदेशी प्रेम पद्धतियों को मिलाकर प्रेम का आदर्श रूप स्थापित किया है। जायसी ने आगे चलकर नायक और नायिका दोनों के प्रेम की तीव्रता समान करके दोनों आदर्शं का एक में मेल कर दिया है। इतना ही नहीं फारसी की मसनवियों के ऐकॉंतिक, लोकबाह्य और आदर्शात्मक प्रेम को इन्होंने भारतीय प्रेम पद्धति के लोकसंबद्ध और व्यवहारात्मक रूप से संबद्ध किया। इनका प्रेम काम, सौंदर्य और प्रणय की भावना से युक्त रहा।

सूफी रहस्यवाद :-

ज्ञान के क्षेत्र का अद्वैतवाद, भावना के क्षेत्र में आकर रहस्पवाद कहलाता है। रहस्यवाद अपनी प्रकृति से दो प्रकार का होता है :-

(1)साधनात्मक रहस्यवाद, (2) भावनात्मक रहस्यवाद।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “‘हमारे यहाँ का योगमार्ग साधनात्मक रहस्यवाद है। यह अनेक अप्राकृतिक और जटिल अभ्यासों द्वारा मन को अव्यक्त तथ्यों का साक्षात्कार कराने तथा साधक को अनेक अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त कराने की आशा देता है। इसके अलावा तंत्र और रसायन भी साघनात्मक रहस्यवाद हैं, पर वे निम्न कोटि के रहस्यवाद के रूप मैं माने जाते है।

सूफी काव्यधारा में भावनात्मक रहस्यवाद की भी कई श्रेणियाँ है, जैसे भूत-प्रेम की सत्त मानकर चलने वाली भावना स्थूल रहस्यवाद के अंतर्गत रहेगी। अद्वैतवाद या ब्रह्मवाद को लेकर चलने वाली भावना से सूक्ष्म और
उच्च कोटि के रहस्यवाद की ही प्रतिष्ठा होती है।

पर भारतीय भक्ति का सामान्य स्वरूप रहस्यमय नहीं। यही कारण है कि यहाँ भक्त के क्षेत्र में रहस्यघर्मी माधुर्य भाव का अधिक प्रचार नहीं हुआ। पर सूफ़ियों के यहाँ रहस्यात्मक माधुर्थ भाव व्यापक स्तर पर देखने को मिलता है। इन्हीं के प्रभाव से सगूण भक्तिधारा की कृष्णाश्रयी शाखा में इस भाव को स्वीकृति मिली और उनके काव्यों में रहस्यवाद का प्रभाव भी देख ने को मिलता है।

पर सूफी काव्यधारा के इस रहस्यात्मक भक्ति मार्ग की कतिपय रूढ़ियां रही हैं, सूफी काव्यधारा के परंपरा में इन रूद्धियों का विस्तार बोहोत दिखाई पड़ता है। हाल की दशा में आकर मूर्छित होना, मद, प्याला, उन्माद तथा प्रियतम ईश्वर के विरह की दूरास्द़् व्यंजना भी सूफियों की बँधी हुई परंपरा है। सूफियों के इस रहस्यवाद ने निर्गुण संतों को भी व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है।

जिस प्रकार सूफियों के प्रभाव से भारतीय भक्ति साहित्य के रचनाकार प्रभावित हुए थे, उसी प्रकार सूफी भी यहां के साधनात्मक और रहस्यवाद से प्रभावित हुए। आचार्य शुक्ल ने इस प्रभाव को रेखांकिति करते हुए लिखा भी है कि “जिस समय सूफी यहाँ आए उस समय उन्हें रहस्य की प्रवृत्ति, हठयोगियों, रसायनियों और तांत्रिकों में ही दिखाई पड़ी। हठयोग की तो अधिकांश बातों का समावेश उन्होंने अपने साघना-पद्धति में कर लिया।”

इसितरह रहस्यवाद सूफी कवियों के द्वारा उनके काव्यों में ब्याबहृत होने के साथ साथ उनके कई गुण सगुण कृष्ण भक्ति धारा के काव्यों में भी दिखाई देता है।

सूफी काव्यधारा की काव्य शैली :-

सूफी काव्यधारा के कवियों ने विविध काव्य-शैलियों का संदर्भगत और विषय के अनुसार प्रयोग किया गया है। लोक-रंगत के कारण वस्तु वर्णन प्राय: इतिवृत्तत्मक, अभिधापरक शैली में किए गए हैं । लोक जीवन के विविध अध्ययन में अत्युक्ति, अतिशयोक्ति आदि का भी यथासंभव सुंदर प्रयोग किया गया है। मुख्यतः प्रकृति, नारी सौंदर्य, विरह-वेदना के प्रसंगों में इस शैली का काफी उपयोग सूफी काव्यधारा कविओं के काव्य मैं देखने को मिलता है।

सूफी काव्य में प्रयुक्त दूसरी शैली प्रतीकात्मकता है। लौकिक प्रैम-व्यापारों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना करने वाले ये आख्यान काव्य अपनी प्रकृति से कथा-रूपक ही माने जाते हैं। सभी आख्यानों के ऐतिहासिक, काल्पनिक पात्र प्रतीकात्मक भूमिका में सामने आते हैं। अलाउ्दीन, रत्नसेन, पद्मावती, हीरामन तोता, नागमती के अपने-अपने प्रतीकार्य हैं :

सूफी जन-मानस के कवि हैं। अत: जन-मानस की लौकिक-प्रलौकिक आकांक्षाएँ उनके साहित्य में यथास्थान अभिव्यक्त हुई हैं। इसलिए उन्होंने अन्योक्ति, समासोक्ति का माध्यम ग्रहण किया। प्रस्तुत के भाध्-से अप्रस्तुत का संकेत या प्रस्तुत के साथ-साथ अप्रस्तुत का संकेत इनके यहाँ काफी दिखाई पड़ता है। सांसारिक जीवन की क्षण भंगुरता, अतः उसका पूर्ण भोग, जीवन खेल-खेलना और लोकोत्तर ईश्वर तत्व की और बढ़ना पदमावत की पंक्तियों में काफी देखने को मिलता है।

सूफी काव्यधारा की काव्य भाषा :-

सूफी काव्यधारा के कवियों अधिकांश देश के पूर्वी भाग में बिद्यामाना थे, इसीलिए उनके काव्यों के भाषा मुख्यत आबादी ही रहा है। इसके अलावा उन्होंने अपने काव्यों मैं अवधी भाषा का लोक प्रचलित तथा सरल रूपों का ही प्रयोग किया है, जिससे उनके काव्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।

सारांश :-

भक्ति-आंदोलन का मुख्य केंद्र ही सूफी प्रेमाख्यानों का पल्लवन और विकास जिस क्षेत्र में हुआ वह ही रही। लोक भूमि में पल्लवित तथा पोषित होने के कारण ही इसमें लोक मन की साहित्यिक अभिव्यक्ति हो पाई। इन्होंने मनुष्य के भीतर छिपे प्रेम की रचनात्मक शक्ति को पहचाना और युगीन-आवश्यकता की जमीन पर उसका प्रतिपादन किया। सूफी कवियों जैसी उदार प्रकृति ही इस जीवन-शक्ति को उद्घाटित करने में समर्थ हो सकती है।

उन्होंने न केवल अपने आख्यानों द्वारा बल्कि अपने मत, सिद्धांत, रहस्यानुभूति, काव्य-रूप, भाषा एवं अभिव्यक्ति के नाना रूपों द्वारा मनुष्य-मात्र के भीतर विद्यमान तार को झंकृत किया। इस लक्ष्य को समन्वय दृष्टि से ही सिद्ध कर पाना संभव था। क्योंकि परंपरा को रूढ़ि समझ कर त्यागने की भूल करने वालों के लिए यह कविता एक चुनौती है इसीलिए परम्परा और युग धर्म के समन्वय से ही सूफी रचनाकारों की कविता कालजयी हो गई। सूफी काव्यधारा अपने प्रेम भाव की सरसता एवं जनधर्मिता के कारण ही व्यापक स्वीकृति पा सकी।

अक्सर पूछे जाने वाल्व सवाल (FAQs):-

सूफी काव्यधारा का मूल आधार क्या है?

सूफीकाव्य का मूल भाव ‘प्रेम‘ है। ‘लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति’ सूफी – काव्य की प्रधान विशेषता है।

सूफी काव्यधारा के कवि कौन कौन से हैं?

मुला दाऊद, जायसी, मंझन, कुतुबन इत्यादि हिंदी साहित्य के प्रमुख सूफी कवि माने जाते हैं। इसके अलावा हिन्दी के प्रसिद्ध सूफी कवियों में उसमान, कुशललाभ, असाइत आदि प्रसिद्ध हैं।

सूफी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

प्रेम का स्वरूप, प्रेम रस निरूपण, रहस्यवाद आदि सूफी काव्यधार कुछ प्रमुख बिशेषता के रूप मैं माना जाता हैं।

सूफी काव्यधारा सूफी कवियों की काव्य शैली क्या है?

सूफी काव्यों में सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह मिलती है कि इनमें लौकिक प्रेमकथा कही गयी हैं।

सूफी काव्यधारा के प्रथम कवि कौन है?

हिन्दी के प्रथम सूफी कवि ‘मुल्लादाऊद’ को माना जाता है।

सूफी काव्यधारा का दूसरा नाम क्या है?

हिंदी सूफी काव्य के अन्य नाम है- प्रेममार्गी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा, रोमांचित कथा काव्य परंपरा आदि है।

अंतिम कुछ शब्द :-

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Wikipedia Page :- निर्गुण सूफी काव्यधारा

hindisikhya.in

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