संप्रेषण : अर्थ, स्वरूप, प्रकार और अवधारणा

संप्रेषण : अर्थ, स्वरूप, प्रकार और अवधारणा (Sampreshan : Arth, Swaroop, Prakar Aur Avdhaarana) :-

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संप्रेषण (Communication) क्या हैं (Sampreshan kya hain ) :-

संप्रेषण (Communication) एक परस्पर क्रिया है, जिसमें एक पक्ष संदेश का संप्रेषण करता है, दूसरा पक्ष उस संदेश को ग्रहण करता है। सम्प्रेषण (Communication) का मुख्य शब्द दो शब्द के मेल से बना हुआ हैं – सम + प्रेषण अर्थात संप्रेषण का अर्थ समान रूप से भेज गया हैं।

संप्रेषण को अन्य रूप या फिर सामान्य वाक्य मैं हम संचार भी बोल सकते हैं। संप्रेषण एक ऐसी व्यवस्था हैं जिसके काफी संज्ञाएं हो सकते हैं, जैसे की सम्प्रेषण (Communication) क्रियाओं का वह व्यवस्थित क्रम व स्वरूप जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को, एक समूह दूसरे समूह को एक विभाग दूसरे विभाग को एक संगठन बाहरी पक्षकारों विचारों सूचनाओं, भावनाओं व दृष्टिकोणों का आदान प्रदान करता है।

या फिर सम्प्रेषण (Communication) दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच मौखिक, लिखित, सांकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचार एवं सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया है। पर यह सत्य हैं की संप्रेषण हर जीवित प्राणी का गुणधर्म है।

उदाहरण स्वरूप चींटियाँ गंध द्वारा अपने समाज के अन्य प्राणियों को शिकार या खाद्यपदार्थ या शत्रु का संदेश देती हैं। मधुमक्खियाँ अपने साथियों को ‘नाच’ द्वारा संदेश सम्प्रेषण करती हैं। घोड़ा, कुत्ता आदि जानवर ध्वनियों के माध्यम से संप्रेषण करते हैं।

लेकिन इनका सम्प्रेषण प्रक्रिया के कथ्य, परिवेश तथा काल की दृष्टि से अति सीमित हैं। इनके मुकाबले मनुष्य की भाषा उनसे काफी उन्नत और जटिल संप्रेक्षणीय व्यवस्था है, जो काल, परिवेश की सीमाओं के बाहर जटिल से जटिल विषयों के प्रतिपादन में सक्षम है। नीचे भाषा की वस्तु के संदर्भ में हम भाषा के सामाजिक-सांस्कृतिक पक्ष के प्रकरण में विचार करेंगे और उसकी जटिलता के बारे में उसके रचना पक्ष की चर्चा में व्याख्या करेंगे।

संप्रेषण हेतु संदेश का होना आवश्यक है। सम्प्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (सन्देश प्राप्तकर्ता) होता है। सम्प्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब सन्देश मिल जाता है और उसकी स्वीकृति या प्रत्युत्तर दिया जाता है।
संप्रेषण
संप्रेषण

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मनुष्यों मैं संप्रेषण (Sampreshan kya hain ) :-

मानव की भाषा प्रारंभ में संभवतः सिर्फ़ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्प्रेषण प्रक्रिया एक साधन मात्र ही था। भाषा के इस्तेमाल के पिछले कुछ सहस्र शताब्दियों में मानव ने सम्प्रेषण प्रक्रियाके इस साधन को माँजकर संपन्न बनाया है और संप्रेषण के विविध संदर्भों और रूपों का विकास किया है।

इस दीर्घकालीन परंपरा के कारण हमारे पास ज्ञान-विज्ञान तथा साहित्य के विविध कोष उपलब्ध हैं। इसी को हम व्यापक अर्थ में सांस्कृतिक सम्प्रेषण प्रक्रिया की संज्ञा दे सकते हैं। लेखन के आविष्कार से भाषिक संप्रेषण को स्थायित्व मिला। आज भी हम शिक्षा के माध्यम से संप्रेषण को सुदृढ़ करने का यत्न कर रहे हैं।

मनुष्य का प्रारंभिक सम्प्रेषण प्रक्रिया व्यक्तिशः यानि व्यक्ति-व्यक्ति के होता था । प्रायः दो लोगों की बातचीत, सामूहिक चर्चा तथा यदा-कदा अपने वर्ग को संबोधित करना संप्रेषण के रूप थे। आधुनिक युगे में प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति आई।

संचार के साधनों ने सम्प्रेषण प्रक्रिया का स्वरूप ही बदल दिया है। अब हम व्यक्तिशः सम्प्रेषण प्रक्रिया से हटकर जनसंचार (mass communication) के युग में पहुँचे हैं। जनसंचार वास्तव में जनता के व्यापक संप्रेषण का ही दूसरा नाम है। इस तरह संचार और संप्रेषण दोनों एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह जुड़े हैं। शायद यही कारण है कि अंग्रेज़ी में दोनों के लिए एक ही शब्द है।

वर्तमान युग में कंप्यूटरों ने सूचना समाज के निर्माण में योगदान किया है। कंप्यूटर सूचनाओं का त्वरित गति से संसाधन ही नहीं करते, बल्कि इंटरनेट तथा नेटवर्क के जरिए सम्प्रेषण प्रक्रिया का संदेश इसी लक्ष्य की पूर्ति में व्यक्त होता है।

संप्रेषण के प्रमुख अंग (Sampreshan Ke Mukhya Ang) :-

सम्प्रेषण प्रक्रिया मुख्य रूप से एक व्यवस्थापिक भाव के आदान-प्रदान के प्रक्रिया हैं, जिसमे एक तरफ प्रेरक पक्ष रहता हैं, जो की संवाद भेजता हैं, तभी दूसरी और एक ग्राहक पक्ष रहता हैं, जोकी संदेश को ग्रहण करता हैं।

अर्थ सम्प्रेषण प्रक्रिया का सबसे प्रमुख कार्य है। संप्रेषण/संचार (communication) नामक विषय क्षेत्र भाषा को संप्रेषण / संचार के साधन के रूप में देखता है और जीवन के विविध संदर्भों में मानव व्यवहार के रूप में व्यक्त संदेश को, संप्रेषित वस्तु के रूप में परिभाषित करता है। इस अर्थ में संदेश का संदर्भ भाषा के अर्थ (शब्दार्थ या वाक्यार्थ) से अधिक व्यापक है।

पर यह कहना भी भूल नही होगा की संप्रेषण मैं आधार तथा भाषा का प्रमुख महत्व होता हैं।

संप्रेषण मैं भाषा का महत्व (Sampreshan Main Bhasha Ka Mahatwa) :-

भाषा का एक आंतरिक पक्ष है। भाषा एक रचना है। भाषा की व्याकरणिक रचना मन के जटिल भावों को एक-दूसरे पर प्रकट करने में सहायक है। इस दृष्टि से विचारों की अभिव्यक्ति यानी सम्प्रेषण प्रक्रिया में भाषा की संरचना एक साधन का काम करती है।

भाषा का एक बाह्य पक्ष है। भाषा का सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ ही भाषा के सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रयोजन है। यह भाषा का अर्थ पक्ष भी है। अर्थ के संदर्भ में हम सूचनाओं के आदान-प्रदान में योगदान करते हैं। जनसंचार तथा दूर संचार के माध्यम से व्यापक सम्प्रेषण प्रक्रिया संभव हो पाया था। अब वह युग आ गया है जब संचार और संगणन (Computing) एक साथ मिलेंगे और संप्रेषण को सुदृढ़ बनाएँगे ।

भाषा के बारे में लोग यही सोचते थे कि भाषा एक व्याकरणबद्ध व्यवस्था है और दो लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है। लेकिन धीरे-धीरे भाषा की संकल्पना और भाषा के बारे में अध्ययन की दृष्टि में विस्तार होता गया। जहाँ पहले लोग बोलियों को भाषा का विकृत तथा तिरस्कृत रूप मानते थे, आज हम समाजभाषाविज्ञान के अंतर्गत भाषा के विविध रूपों की जीवंतता की चर्चा करते हैं। भाषा पूरे समाज के विविध संदर्भों में संप्रेषण का माध्यम है।

इसी तरह भाषा अध्ययन के विविध संदर्भों में दृष्टि परिवर्तन दिखाई देता है। प्रैग्मैटिक्स नामक भाषाविज्ञान की नई शाखा में हम कोशीय अर्थ से हटकर भाषा व्यहवार मे निहित संप्रेषण को समझने का यत्न करते हैं। इस नई दृष्टि का प्रभाव अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के विविध क्षेत्रों पर भी पड़ा है।

भाषा के कार्य को केवल शब्दार्थ या वाक्यार्थ तक सीमित नहीं कर सकते । सम्प्रेषण प्रक्रिया का दायरा भाषिक अर्थ से ही ज्यादा विस्तृत है। हमारी संस्कृति, साहित्य और वाड्.मय, आचार- विचार सभी सम्प्रेषण प्रक्रिया से ही संभव हैं, सुरक्षित हैं।

मानव समाज मैं भाषा :-

मानव की भाषा प्रारंभ में संभवतः सिर्फ़ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्प्रेषण प्रक्रिया मात्र का साधन थी। भाषा के इस्तेमाल के पिछले कुछ सहस्र शताब्दियों में मानव ने संप्रेषण के इस साधन को माँजकर संपन्न बनाया है और संप्रेषण के विविध संदर्भों और रूपों का विकास किया है।

इस दीर्घकालीन परंपरा के कारण हमारे पास ज्ञान-विज्ञान तथा साहित्य के विविध कोष उपलब्ध हैं। इसी को हम व्यापक अर्थ में सांस्कृतिक संप्रेषण की संज्ञा दे सकते हैं। लेखन के आविष्कार से भाषिक संप्रेषण को स्थायित्व मिला। आज भी हम शिक्षा के माध्यम से संप्रेषण को सुदृढ़ करने का यत्न कर रहे हैं।

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संप्रेषण का स्वरूप (Sampreshan Ka Swaroop ) :-

सम्प्रेषण प्रक्रिया को समझने के कई ढंग हैं। इसीलिए सम्प्रेषण के स्वरूप कु साधारण रूप से समझने के लिए कुछ इन तथ्यों पर विचार किया जा सकता हैं

  • सम्प्रेषण प्रक्रिया के व्यवस्था का सबसे प्रमुख उपभोक्ता मनुष्य है। इस संदर्भ में हम जान सकते हैं कि मानवों की सम्प्रेषण प्रक्रिया व्यवस्था यानी भाषा का स्वरूप क्या है, उससे हम क्या और कैसे संप्रेषण करते हैं। हम आपसी संबंध सम्प्रेषण प्रक्रिया से कैसे स्थापित करते हैं, हम भाषा के माध्यम से संप्रेषण का विस्तार कैसे करते हैं आदि। भाषाविज्ञान के विविध रूप इस अध्ययन क्षेत्र में आते हैं।
  • हम सम्प्रेषण प्रक्रिया के सामाजिक संदर्भों की चर्चा कर सकते हैं जैसे व्यक्तिगत संप्रेषण (चिंतन), व्यक्तिशः संप्रेषण (वार्तालाप), समूह, संगठन तथा सार्वजनिक स्तर पर संप्रेषण !
  • हम सम्प्रेषण प्रक्रिया के प्रकार्यों और प्रभाव की चर्चा कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यह शोध कर सकते हैं कि संप्रेषण किस हद तक मनोरंजन का साधन है, संप्रेषण से हम जन मानव में व्यवहार परिवर्तन कैसे ला सकते हैं या उन्हें सामाजिक- राजनीतिक संदेश कैसे दे सकते हैं।
  • सम्प्रेषण प्रक्रिया की वस्तु क्या है यह भी चर्चा का विषय है। संदेश सम्प्रेषण का केंद्र बिंदु है। हम यह देखना चाहेंगे कि संप्रेषण में संदेश का क्या स्थान है।
  • हम सम्प्रेषण प्रक्रिया के व्यवहार की जीवंत प्रक्रिया का अध्ययन कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर बातचीत और रेडियो प्रसारण संप्रेषण की भिन्न स्थितियाँ हैं। स्रोत, माध्यम, संदेश, प्राप्तिकर्ता आदि दृष्टियों से इनमें अंतर होगा।

तो कुछ तरह जीवन में भाषा के उपयोग के सभी संदर्भ को ही लगभग इस प्रक्रिया के संदर्भ माना जा सकता हैं। और अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो भाषा और सम्प्रेषण की अभिन्नता परिलक्षित होती है। इस अभिन्नता का कारण दोनों के स्वरूप की विशेषता भी परिलक्षित होजाता है।

मुख्यतः भाषा ध्वनि, लिपि आदि बाह्य तत्वों से निर्मित व्यवस्था है, जिसमें उन तत्वों का काम केवल भाषिक तत्वों को पहुँचाना है। पर सम्प्रेषण प्रक्रिया मैं भाषा की व्यवस्था वह चैनल है जो इस प्रक्रिया मैं संदेश के अर्थ का वहन करता है। भाषा द्वारा संप्रेषित अर्थ वह संदेश है जो वक्ता भाषा के माध्यम से दूसरों (श्रोताओं तक पहुँचाता है। संप्रेषण में भी समान स्थिति है जिसे निम्नलिखित प्रकार से एक आरेख से दिखा सकते हैं :

संप्रेषण
संप्रेषण के अंग

वक्ता और श्रोता संदेश संप्रेषण के लिए संप्रेषण भाषा का उपयोग करते हैं। संप्रेषण के इन आयामों की विशिष्ट चर्चा तीन विशिष्ट अध्ययन क्षेत्रों में होती है।

1) सम्प्रेषण प्रक्रिया का एक भाषिक पक्ष है, जिसका अध्ययन भाषाविज्ञान के अंतर्गत होता है। भाषा के माध्यम से हम विचारों का आदान-प्रदान कैसे करते हैं, कैसे एक दूसरे को समझते हैं आदि इसके विषय क्षेत्र में आते हैं।

क्यूँकी एक अच्छा सम्प्रेषण प्रक्रिया वक्ता को अपने लक्ष्य की सिद्धि में मदद देता है, इसीलिए अगर हम किसी प्रयोजन से किसीको पत्र लिखें, लेकिन अपना अभीष्ट अर्थ संप्रेषित न कर पाएँ, तो पत्र लिखने का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। खराब विज्ञापन बिक्री में बढ़ोतरी नहीं कर सकता, ठीक से तैयार न किया गया जीवन वृत्त (Resume) नौकरी पाने में मदद नहीं कर सकता।

इन सब स्थितियों में सम्प्रेषण प्रक्रिया का भाषिक पक्ष महत्वपूर्ण है। इस तथ्य से अवगत होने के कारण आजकल संस्थाओं और संगठनों में लोगों के लिए संप्रेषण के विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है। विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक संप्रेषण (office communication), व्यावसायिक संप्रेषण ( business communication) आदि प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

2) सम्प्रेषण प्रक्रिया का एक भौतिक पक्ष है, जिस अर्थ में हम हिंदी में ‘संचार‘ शब्द का व्यवहार करते हैं। संचार चैनलों के माध्यम से होता है। अगर ये चैनल ठीक से काम न करें, तो संदेश सही ढंग से नहीं पहुँचेगा। इस विषय क्षेत्र में इसके स्वरूप के भीतर यह अध्ययन किया जाता हैं कि संचार माध्यम कितने सक्षम हैं और संदेश वाहन में कहाँ तक कारगर हैं। दूसरी तरफ़ इसके स्वरूप के भीतर यह भी अध्ययन किया जाता हैं कि विभिन्न प्रकार के संप्रेषणों के आयोजन में हम किस प्रकार के संचार माध्यम का उपयोग करते हैं।

उदाहरण के लिए टेलीकांफ्रेंसिंग आधुनिक युग में सामूहिक प्रक्रिया का एक सशक्त संदर्भ है, जिसमें संसार के हर कोने के लोग भाग ले सकते हैं। यह तभी संभव होगा. जब संदेश के प्रसारण के लिए उपग्रह संचार की सुविधा मिल जाए । संचार में प्रौद्योगिक विकास की स्थिति से हम इस पूरे प्रक्रिया की क्षितिज रेखा बढ़ाते जा रहे हैं।

3) सम्प्रेषण का एक सामाजिक पक्ष हैं। सम्प्रेषण भाषा के अर्थ पक्ष के समान ही कार्य करता हैं। हम इसके माध्ययम से जो भी तथ्य देते हैं उनमे से सबसे प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया गया वार्तालाप है। जैसे :

ग्राहक : भैया, माचिस है ?

दुकानदार : हाँ, है।

ग्राहक : एक दीजिए।

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संप्रेषण का तकनीकी पक्ष :-

ऊपर हमने सम्प्रेषण के अर्थ, स्वरूप, तथा उनके अंगों के वारे मैं आलोचना की हैं। अब यहाँ हम सम्प्रेषण के पूरी व्यवस्था को तकनीकी संदर्भ मैं समझने के लिए प्रयास करेंगे।

इस पूरे प्रक्रिया को समझने के लिए ‘कोड’ ( code ) शब्द को समझना आवश्यक होगा। आप सब तार के लिए व्यवहृत मोर्स कोड से परिचित ही हैं। इसमें अंग्रेज़ी के अक्षरों के लिए ध्वनि संकेतों (signals) का प्रयोग कर मोर्स के चिह्न (sign) निर्मित किए जाते हैं। अंग्रेज़ी वर्तनी को चिह्नों में बदलने की प्रक्रिया को हम कोडबद्ध करना ( encoding) कहते हैं और प्राप्त ध्वनियों से मूल शब्द शब्दों को पहचानने की क्रिया कोड खोलना (decoding) कहलाती है।

भाषा के मुकाबले ‘कोड‘ शब्द का प्रयोग इसी कारण सार्थक है कि हम इस कोड का प्रयोग किसी भी भाषा के लिए कर सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम निश्चित करें कि संदेश को किन नियमों से कोडों में बाँधें। अगर व्यक्ति उन नियमों से अपरिचित हो, तो वह संदेश तक नहीं पहुँच सकता । इस दृष्टि से भाषा भी एक कोड व्यवस्था है। हम यह निश्चित करते हैं कि उच्चरित ध्वनियों से बने प्रतीकों (शब्दों) को किन व्याकरणिक नियमों से संदेश के संप्रेषण के लिए कोड व्यवस्था का रूप देते हैं।

भाषा बोलते समय हमारे मन में विचार हैं, जो संप्रेषणीय संदेश हैं ।। इन्हें हम किन्हीं नियमों के अधीन भाषिक उक्तियों रूप में व्यक्त करते हैं। यह कोडबद्ध करने की प्रक्रिया है। सुनने वाला कोड की व्यवस्था को उन्हीं नियमों के अधीन खोलता है और संदेश तक पहुँचता है। इस तरह वक्ता और श्रोता दोनों कोड के संसाधन (processing) द्वारा संदेश देने और लेने की प्रक्रिया (यानी संप्रेषण) से गुज़रते हैं। इस की स्थिति में कोड में व्यवधान ( noise) भी आता है जो संदेश को समझने में बाधा पहुँचाता है ।

कोड में व्यवधान (noise) :-

व्यवधान का एक सरल, समझ में आने वाला उदाहरण है वर्तनी का दोष । कभी एक गलती भी हो तो संदेश को समझने में कुछ कठिनाई होती है। अगर हमें संदेश का पूर्वानुमान हो, तो हम अंदाज़ से संदेश को समझ लेते हैं।

यह भी इस प्रक्रिया के संसाधन की ही एक प्रक्रिया है। अगर एक वाक्य में कई गलतियाँ हों, तो संदेश (अर्थ) को समझने में बड़ी कठिनाई होती है। भाषा में लगभग हर स्तर पर ऐसे व्यवधान की संभावना रहती है, जैसे उच्चारण, वाक्य विन्यास, शब्द प्रयोग, शैली आदि। व्यक्ति जब तक भाषा का सही प्रयोग न करे, तो भाषा के माध्यम से हो रहे सम्प्रेषण की प्रक्रिया सफल नहीं होता। इसलिए भाषा शिक्षणविद् भाषा के सहज संप्रेषण पर बल देते हैं।

इस प्रक्रिया की दृष्टि से व्यवधान ( noise) दो तरह के हैं। एक व्यवधान को हम भौतिक अर्थ में ‘शेर‘ ही कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर दो व्यक्ति भरे बाज़ार में खड़े हों और बात कर रहे हों तो उन्हें एक दूसरे को समझने में कठिनाई हो सकती है, क्योंकि चारों तरफ़ शोरगुल का वातावरण है। हालांकि उनके कोड में कोई दोष नहीं है।

इस तरह के व्यवधान को हम माध्यम का व्यवधान (Channel noise) कहते हैं। भाषा के संदर्भ में हमें अक्सर माध्यम व्यवधान के बीच में से अर्थ ग्रहण करना पड़ता है। ऐसे उदाहरण हैं शोर वाला रेडियो कार्यक्रम, भीड़भाड़ में बातचीत, टेलीफ़ोन पर बातचीत जहाँ आवाज़ स्पष्ट नहीं है, जहाँ चार-पाँच लोग एक साथ बोल रहे हो, या जब व्यक्ति बीमारी या खुमारी की वजह से ठीक से बोल न पा रहा हो। इन सब स्थितियों में भाषा को समझने का अभ्यास भी भाषा अध्ययन का अंग होना चाहिए।

दूसरी स्थिति वर्तनी दोष, वाक्य संरचना दोष आदि हैं जो कोड को भी प्रभावित करते हैं। इन्हें हम कोड का व्यवधान (code noise) कहते हैं। इस प्रक्रिया से जुड़े हुए व्यक्तियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे माध्यम के व्यवधान में भी किस तरह संदेश पहुँचा या प्राप्त कर सकते हैं। प्रभावी संप्रेषण के लिए यह भी आवश्यक है कि हम संप्रेषण में कोड के व्यवधान (या भाषा दोषों) का परित्याग करें जिससे संदेश विकृत न हो।

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संप्रेषण के प्रकार (Sampreshan Ke Prakar):-

सम्प्रेषण को मुख्य रुप से दो भागों में बांटा जा सकता हैः-

  1. मौखिक सम्प्रेषण
  2. अमौखिक सम्प्रेषण

मौखिक संप्रेषण (Moukhik Sampreshan) :-

जब दो या दो से अधिक लोगों के बीच शब्दों का प्रयोग साधारण बातचीत के लिये किया जाए, तब उसे हम मुख्य रूप से मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं । मौखिक का मतलब ही मुख से निर्गत हैं, जिसके लिए इसे मौखिक संप्रेषण कहा जा सकता है। यह लिखित व मौखिक दोनों रूप में हो सकता है। मौखिक संप्रेषण हमें लोगों के बीच तर्कपूर्ण बातचीत के साथ-साथ जानकारी तथा दिशा भी प्रदान करता है।

यह हमारे जीवन की मूलभूत जरुरत है। शोधकर्त्ताओं ने यह पाया है कि लोग सामान्यतः एक दिन के लगभग 2 से 3 घंटे मौखिक संप्रेषण में लगाते हैं, जिसमें पढ़ना, बोलना, लिखना तथा सुनना आता है। मौखिक संप्रेषण के कुछ सामान्य रूप बातचीत, भाषण, पत्र, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, फोन पर होने वाली बातचीत आदि हैं।

अमौखिक संप्रेषण (Aoukhik Sampreshan) :-

सम्प्रेषण मौखिक नही होता पर हाँ यह मौखिक संप्रेषण का एक अंग होता हैं, क्यूँकी मौखिक संप्रेषण के समय मुख से जो भी शब्द निर्गत होते हैं, वे मौखिक के अंतर्गत आते हैं, जबकि अमौखिक खश तौर पर मन के विचार तथा चिंताओं मैं ही रह जाता हैं।

यहाँ ध्यान देना बहुत आवश्यक है कि सम्प्रेषण या हाव-भाव, पूरे प्रक्रिया का लगभग 70 प्रतिशत भाग होता है, जबकि शब्द का भाग केवल 0 प्रतिशत होता हैं। इसलिए मानवीय प्रक्रिया के लिए अमौखिक सम्प्रेषण बहुत महत्वपूर्ण है। क्यूँकी इसमे के ज्यादातर निर्गत अमौखिक प्रक्रिया के तहत ही हो पता हैं, खास कर इसलिए क्यूँ की इस इस पूरे प्रक्रिया के प्रकार मैं मन के विचार का अंतर्गत ज्यादा देखने को मॉइलता हैं। इसके अलावा शारीरिक चेष्टां, चेहरे के हाव भाव, शारीरिक मुद्राएँ, नेत्र सम्पर्क, आसन, शारीरिक उन्मुखता, दूरियाँ आदि कुछ अमौखिक संप्रेषण के रूप हैं।

अमौखिक सम्प्रेषण निम्नलिखित मदद सम्प्रेषण प्रक्रिया मैं करते हैं:-

  • मौखिक सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्त्वों से हटकर प्रभाव बनाना;
  • जो कहा गया उसे दृढ़तर करना;
  • हमारी भावनाओं तथा अन्तरवैयक्तिक मनोवृत्ति को प्रकट करना;
  • शक्ति, स्नेह, सम्मान, प्रभुत्ता को प्रकट करने में सहायक;
  • दूसरे के साथ होने वाली बातचीत को व्यवस्थित व नियंत्रित करना, और
  • आत्म-प्रस्तुतिकरण में सहायक ।

लिखित संप्रेषण :-

वह संप्रेषण जिसमें संदेश लिखित या मुद्रित रूप में प्रेषित होता है, लिखित संदेश के रूप में जाना जाता है। यह संचार का सबसे विश्वसनीय तरीका है, और यह अपनी औपचारिक और परिष्कृत प्रकृति के कारण व्यापार की दुनिया में बहुत पसंद किया जाता है। लिखित संचार के विभिन्न चैनल पत्र, ई-मेल, पत्रिकाएं, पत्रिकाएं, समाचार पत्र, पाठ संदेश, रिपोर्ट आदि हैं।

लिखित संचार, इस तरह, संगठनात्मक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है; टेलीफोन, टेलेक्स, फैक्स मशीनों ने किसी भी तरह से पत्रों के महत्व को प्रभावित नहीं किया है; उन्होंने केवल ट्रांसमिशन के मोड को बदल दिया है और अक्षरों या मेमो के आदान-प्रदान को बहुत तेज कर दिया है; इसीलिए पत्र, ज्ञापन, एजेंडा, नियमावली, हैंडबुक, रिपोर्ट आदि सहित लिखित संचार अभी भी जारी है।

एक “लिखित संचार” का अर्थ है पत्र, परिपत्र, मैनुअल, रिपोर्ट, टेलीग्राम, कार्यालय ज्ञापन, बुलेटिन, आदि के माध्यम से संदेश, आदेश या निर्देश भेजना; यह संचार का एक औपचारिक तरीका है और कम लचीला है; आज के कारोबार की दुनिया में लिखित संचार का बहुत महत्व है।

लिखित संचार की विशेषताएं (likhit sampreshan ki visheshatayen):

लिखित संचार अनिवार्य रूप से एक रचनात्मक गतिविधि है; यह एक ऐसी गतिविधि है जिसके लिए सचेत और रचनात्मक प्रयास की आवश्यकता होती है; इस प्रयास की रचनात्मकता मन द्वारा उत्पादित उत्तेजनाओं से आती है।

मौखिक संचार की उत्तेजनाओं को संवेदी रिसेप्टर्स द्वारा बाहर से उठाया जाता है; दूसरे शब्दों में; लिखित संचार अधिक विशेष रूप से, मौखिक संचार की तुलना में अधिक सावधानी से सोचा जाता है, जो संकेतों को एक सहज प्रतिक्रिया के आधार पर बाहर से उठाया जाता है।

एक उदाहरण के रूप में, हम उस रिपोर्ट को लिखना शुरू करते हैं जिसे हम प्रस्तुत करना चाहते हैं या जिसे हमें लिखने के लिए कहा गया है; इस उद्देश्य के लिए, हम सभी आवश्यक जानकारी या डेटा एकत्र करते हैं; फिर, हम इसे अपनी तार्किक विचार प्रक्रियाओं के माध्यम से संसाधित करते हैं और हमारे संचार को कूटबद्ध करते हैं।

यह आमने-सामने की संचार स्थिति नहीं है; संदेशों या बाहरी उत्तेजनाओं का कोई आदान-प्रदान नहीं होता है; यह लगभग पूरी तरह से मन की रचनात्मक गतिविधि है।

यूं तो अमौखिक प्रक्रिया घटित होने के लिए के विभिन्‍न मार्ग हैं। पर यहाँ यह ध्यान रखना जरुरी है, कि अमौखिक संप्रेषण पर संस्कृति का प्रभाव थोड़ा ज्यादा होता है, इसलिए उसे संस्कृति से जोड़ कर समझना जरुरी है। हाव-भाव, शारीरिक गतिविधियों से तथा नेत्र सम्पर्क आँख की गतिविधियों से सम्बन्धित हैं।

अभी आपने पढ़ा कि मौखिक तथा अमौखिक सम्प्रेषण हमारे जीवन में कैसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यह आवश्यक है कि शिक्षा, व्यावसायिक क्षेत्र की उन्नति के साथ-साथ अपने अन्तवैयक्ति सम्बन्धों को अच्छा बनाने के लिए हम दूसरों से प्रभावी संप्रेषण करना चाहिए। कई बार हम आंशिक या पूरी तरह गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं। इन दोनों ही स्थितियों में संप्रेषण नहीं हो पाता। इसलिए ऐसी कुछ जरुरी बातें हमें अपने मस्तिष्क में रखनी चाहिए जो हमारे संप्रेषण को प्रभावी बनाएँ ।

प्रभावी संप्रेषण :-

प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया के बारे में पढ़ने से पहले हमें इस में होने वाली रुकावटों को समझ लेना चाहिए। अधिकतर यह होता है कि सन्देश को तोड़-मोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है, उदाहरण के रूप में कुछ लोग अपने मालिक को खुश करने के लिए, तथ्यों को बदल देते हैं।

यह भी होता है कि लोगों के अपने प्रत्यक्षीकरण चुनावी होते हैं। उनका देखना-सुनना उनकी आवश्यकताओं, अभिप्रेरणा, अनुभव और वैयक्तिक विशेषता पर निर्भर करता है।

सन्देश का कूटानुवाद करते समय लोग अपनी रुचियों और प्रत्याशाओं को प्रक्षेपित कर सकते हैं। लोगों में सन्देश ग्रहण करने की सीमित क्षमता होती है। ऐसे में जब सन्देश अधिक होते हैं तो सूचना का भार अधिक हो जाता है।

तब लोग सूचना का या तो चुनाव करते हैं या अनदेखा करते हैं या उसे भूल जाते है। साथ ही साथ, जब हम भावुक होते हैं, जैसे उदास, क्रुद्ध या बहुत उत्तेजित तब हम कुछ सूचनाओं को छोड़ देते हैं। अन्तत: यह कहा जा सकता है कि शब्द प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग अर्थ रखता है। भाषा का प्रयोग उम्र, लिंग तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से प्रभावित होता है।

मौखिक और अमौखिक सम्प्रेषण प्रक्रिया दोनों शक्तिशाली माध्यम हैं। अगर सही ढंग से एवं सावधानी से प्रभावी संप्रेषण का प्रयोग किया जाए तो उससे बहुत जल्दी सन्देश दिया जा सकता है। विज्ञापनदाता इस पूरे प्रक्रिया का प्रयोग अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए करते हैं।

इसमे ध्यान देने की बात है किस प्रकार विज्ञापनदाता जानी-पहचानी हस्तियों, दृष्टि-चित्रों, शब्दों व लिखित शब्दों और संगीत का प्रयोग करते हैं, ताकि अपना सामान खरीदने के लिए जैसे गाड़ी, साबुन, मोटरसाइकिल या कपड़े खरीदने के लिए हमें प्रभावित कर सके। क्या आप ऐसे ही कुछ जाने-माने विज्ञापनों के गीत याद कर सकते हैं जैसे ‘ठण्डा मतलब कोका कोला, ‘दाग अच्छे हैं, ‘ढूंढ़ते रह जाओगे। क्या ऐसे ही कुछ ओर पदबंध आप याद कर सकते हैं?

सम्प्रेषण का अर्थ ही यही है पूरे देश में एक-दूसरे में सूचना बांटना । जबकि अमौखिक प्रक्रिया से जुड़ा अर्थ हर संस्कृति में अलग होता है। ऐसा कहा गया है कि बोलने वाली भाषा हमारे संप्रेषण का 7 से 35 प्रतिशत हिस्सा होती है। इसमे अधिकतर हिस्सा अमौखिक ही होता है, इसलिए जब मौखिक भाषा स्पष्ट रूप से अर्थ नहीं समझा पाती तो अधिक जानकारी के लिए हम अमौखिक संकेतों को खोजते हैं ।

संप्रेषण का महत्व :-

  1. श्रम में गतिशीलता- इस पूरे प्रक्रिया के कारण आसान साधनों से दूरी के दुख दर्द कम हो गये है, परिवार व मित्रो से निरन्तर सम्पर्क बनाये रख सकते है। इसीलिए काम धंधे के लिए लोग अब आसानी से दूर जाने लगे है।
  2. सामाजीकरण- इस पूरे प्रक्रिया के कारण विविध साधनों से लोग अपने सगे-सम्बन्धी, मित्रों, परिचितों से नियमित रूप से सन्देशों का आदान -प्रदान करते हैं। इसमे आपसी सम्बन्ध, प्रगाढ़ हुए है और सामायीकरण बढ़ा है।
  3. समन्वय एवं नियंन्त्रण- व्यावसायिक गृहों एवं सरकार के कार्यालय अलग अलग स्थानों पर स्थित होते है और एक ही भवन के अन्दर कई विभाग हो सकते हैं। उनके बीच प्रभावी सम्प्रेषण उनके कार्यो में समन्वय स्थापित करने तथा उन पर नियन्त्रण रखने में सहायक होता है।
  4. कार्य निष्पादन में कुशलता- इस प्रक्रिया के प्रभावी होने से इसके कार्य निष्पादन में श्रेष्ठता लाने में बडा़ योगदान होता है। व्यावसायिक इकाई में नियमित संचार व्यवस्था के कारण दूसरों से ऐच्छिक सहयोग प्राप्त होता है क्योंकि वह विचार एवं निर्देशो को भली-भांति समझते हैं।
  5. पेशेवर लोगों के लिए सहायक- वकील अलग-अलग कोर्ट में जाते हैं जो दूर दूर स्थित होते हैं। डाक्टर कई नर्सिग होम में जाते है और चार्टर्ड एकाउन्टेंट कम्पनियों के कार्यालयों में जातें हैं। मोबाइल टेलीफोन से उन्हें अपना कार्यक्रम निर्धारित करने में तथा उसमे आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने में सहायता मिलती हैं।
  6. आपातकाल में सहायक- यदि कोई दुर्द्यटना घटित हो जाए या आग लग जाए तो आधुनिक संचार माध्यमों की सहायता से तुरन्त सहायता मांगी जा सकती है या सहायता प्राप्त हो सकती हैं।
  7. समुद्री तथा हवाई/वायु यातायात- संचार माध्यम समुद्री जहाज तथा हवाईजहाज की सुरक्षित यात्रा के लिए बहुत सहायक रहते हैं क्योंकि इनका मार्गदर्शन एक स्थान विशेष पर स्थित नियन्त्रण कक्ष से प्राप्त संप्रेषण द्वारा किया जाता है।
  8. शिक्षा का प्रसार- शिक्षा सम्बन्धी अनेक कार्यक्रम रेडियो द्वारा प्रसारित किये जाते हैं और टेलीविजन पर दिखाए जाते है। यह प्रणाली व्यक्तिगत अध्ययन के स्थान पर विद्यार्थियों कों शिक्षा देने की एक अधिक लोकप्रिय प्रणाली बन चुकी हैं।
  9. विज्ञापन- रेडियो तथा टेलीविजन जन साधारण से संवाद के साधन हैं तथा व्यावसायिक फर्मो के लिए विज्ञापन के महत्वपूर्ण माध्यम है क्योंकि इनके व्दारा बड़ी संख्या में लोगों तक पहुचा जा सकता हैं।

सम्प्रेषण का सामाजिक उद्देश्य :-

अब इस पूरे परिस्थिति मैं अगर हम जनजातियों के भाषा के वारे मैं विचार करें तो आमतौर पर यह कहा जाता है कि जनजातियों की भाषाएँ अविकसित होती हैं। यह भी माना जाता है कि उनकी भाषा का कोई व्याकरण नहीं होता । पर यह भ्रमपूर्ण कथन है हम इस प्रक्रिया के संदर्भ में जानते हैं कि हर भाषा या बोली अपने में स्वायत्त स्वयंपूर्ण व्यवस्था होती है।

यह भी हम जानते हैं कि भाषा एक कोड है और उसके सकोडीकरण और विकोडीकरण में निश्चित व्यवस्था होती है। अगर कोड नियमबद्ध न हो तो किसी भी भाषा में सम्प्रेषण संभव नहीं हो सकता है। विकसित भाषा में और जनजातियों की अविकसित भाषाओं में अंतर व्याकरणिक व्यवस्था के कारण नहीं है बल्कि संप्रेषण के अन्य साधनों के कारण है।

विकसित भाषाओं में हम भाषा के परिमार्जन की योजना बनाते हैं और भाषा काम करने के लिए सहायक संदर्भ ग्रंथ और साधन जुटाते हैं। समाज भाषावैज्ञानिक इस प्रक्रिया को कोड विस्तार की संज्ञा देते हैं। कोड विस्तार की संज्ञा पर विविध विषयों में भाषा में काम करने के लिए पारिभाषिक शब्द बनते हैं और अभिव्यक्तियों का भंडार एकत्र होता है। इन्हीं सहायक सामग्रियों को हम शब्दकोष, व्याकरण आदि संदर्भ ग्रंथों के रूप में उपलब्ध कराते हैं।

यूं कह सकते हैं कि विकसित और मौखिक भाषाओं के अंतर कोड व्यवस्था के कारण नहीं है बल्कि कोड विस्तार की प्रक्रिया के कारण है। यह बात सही है कि लिखित भाषाओं में लेखन की दीर्घकालीन परंपरा के कारण कोड विस्तार संभव हो पाता है जबकि भाषा की भाषिक परंपरा में कोड विस्तार नहीं हो पाता ।

फिर इस दृष्टि से ये भी सही है कि जिन भाषाओं को हम अविकसित कहते हैं उनमें विविध विषयों में काम करने की क्षमता कम होती है। संक्षेप में, जनजातियों की भाषाएँ उनकी अपनी संस्कृति की अभिव्यक्ति के लिए सक्षम हैं लेकिन व्यापक वैशविक ज्ञार्नाजन के लिए उनकी क्षमता कम है।

यह भी अक्सर कहा जाता है कि जनजातियों की संस्कृतियाँ मुख्यधारा लेकिन यह भ्रमपूर्ण कथन भी सुनने में आता है कि जनजातियों की संस्कृतियाँ दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। जिस तरह से कोई मानव समाज भाषाविहीन नहीं हो सकता उसी तरह कोई मानव समाज संस्कृतिविहीन नहीं हो सकता ।

इसमे अंतर अगर है तो, संस्कृति के स्वरूप के सवाल के कारण आदिम संस्कृतियाँ व्यक्तियों के व्यवहार के नियंत्रक – नियोजक के रूप में काम करती हैं। लेकिन ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में अनभिज्ञ होने के कारण यह संभव है कि उनकी कुछ मान्यताएँ या विचार तर्कसंगत न हों। लेकिन इससे किसी संस्कृति को अविकसित नहीं कहा जा सकता।

और फिर जहाँ तक ज्ञान-विज्ञान के व्यवहार का सवाल हैं आदिम संस्कृतियों में भी कुछ ऐसी ज्ञान राशियाँ हैं जो तथाकथित वैज्ञानिक समाज के पास भी नहीं हैं। लेकिन विकसित और अविकसित समाजों में सांस्कृतिक स्वरूप के अंतर का क्या कारण है, अगर हम इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने जाएं तो जिस तरह भाषा के क्षेत्र में लेखन की व्यवस्था के कारण ज्ञानराशि जुड़ती गई उसी तरह सांस्कृतिक दृष्टि से विकसित समाज में ज्ञान का भंडार जुड़ता गया है।

यह ज्ञानराशि (Body of Knowledge) विकसित भाषाओं का प्रमुख अभिलक्षण है। धर्म दर्शन के ग्रंथ, हजारों वर्षों से संचित उनके साहित्यिक कृतियाँ, चिकित्साविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि विविध अध्ययन क्षेत्रों में उपलब्ध वाङ् मय हर विकसित समाज में सांस्कृतिक धरोहर हैं। इस ज्ञानराशि की उपलब्धि में उस संस्कृति के लिखित संप्रेषण का बहुत बड़ा योगदान है।

इन्हें हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि विकसित भाषाओं में कोड विस्तार और ज्ञान विस्तार साथ-साथ चलते हैं जबकि कम विकसित समाजों में कोड और वांड्मय का प्रभाव क्षेत्र सीमित होता है । इस दृष्टि से सम्प्रेषण विशेषकर लिखित सम्प्रेषण प्रक्रिया, समाज और संस्कृति के विकास के प्रमुख कारक तत्व हैं।

संप्रेषणीय प्रक्रिया के बढ़ते चरण :-

प्रारंभिक युगों में सम्प्रेषण व्यक्तिगत संपर्क का दूसरा नाम था । मानव संस्कृति के विकास के साथ सम्प्रेषणीय प्रक्रिया में व्यापकता आती गई । लेखन के कारण लोगों के विचार काल और समय से परे संप्रेषित हो सके।

आधुनिक युग में संचार साधनों के विकास के कारण सम्प्रेषणीय प्रक्रिया ने संचार का रूप धारण किया और सम्प्रेषणीय प्रक्रिया सामूहिक सहभागिता के संदर्भ में जन संचार के रूप में व्यवहार में आया। आज कंप्यूटरों के कारण सम्प्रेषणीय प्रक्रिया में अभूतपूर्व क्रांति आयी है। चूँकि हम संचार साधनों के माध्यम से व्यापक स्तर पर संप्रेषण करते हैं, हमारे लिए आवश्यक हो जाता है कि हम सही ढंग संदेश संप्रेषित करें।

सूचना समाज ( The information society ) :-

सभ्यता के आरंभ से अब तक के मनुष्य के इतिहास का वर्णन करते हुए उसे तीन विशिष्ट युगों में बाँटा जाता है। सबसे पहला युग था कृषि प्रधान समाज का । उसके बाद युग था औद्योगिक विकास के समाज का आज के युग में सूचना समाज की प्रधानता है।

इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सूचना ने कृषि या उद्योगों को स्थानापन्न कर दिया हो । कृषि प्रधान समाज में सारे लोग कृषि पर आधारित थे। औद्योगिक विकास के युग में कृषि का विकास और विस्तार हुआ, फिर भी समाज के कुछ ही लोग कृषि कार्यों में लीन थे।

शेष उद्योगों की स्थापना करने लगे। इसी तरह सूचना युग में सूचना प्रौद्योगिकी के कारण कृषि और उद्योगों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, लेकिन इनमें पहले के मुकाबले में कम लोग लगे हैं, शेष सूचना प्रौद्योगिकी को समुन्नत करने में लगे हैं।

जिस समाज में सूचना और संचार का महत्व अधिक हो, वहाँ कृषि कैसे उन्नत हो सकती है ? संचार के कारण अब लोगों के पास कृषि के तरीकों के बारे में अच्छी जानकारी है। इसलिए वे कम समय में अच्छे तरीके से अपना काम कर पाते हैं।

एक मिलता-जुलता उदाहरण लियाजाये तो “कृषि प्रधान समाज में एक एकड़ ज़मीन को जोतने में कई व्यक्ति, हफ़्तों लगकर काम करते थे। औद्योगिक विकास के कारण अब यह काम एक व्यक्ति ट्रैक्टर की सहायता से एक दिन में करता है। इस तरह नये साधन और नयी जानकारी लोगों के काम को आसान बना देते हैं। आज सूचना संचार ‘ज्ञान का उद्योग’ (knowledge industry) कहलाता है, जो अन्य उद्योगों से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

इस सूचना समाज के क्रांतिकारी आविर्भाव में दो प्रमुख कारक तत्व हैं। एक, कंप्यूटर, जो सूचनाओं के कच्चे माल को ग्रहण करता है और संसाधित कर उसे उपभोक्ताओं लायक ‘ज्ञान’ बदलकर प्रस्तुत करता है। दूसरे, उपग्रह संचार आदि संचार के उन्नत तरीके, जो उस ज्ञान को विश्व के कोने-कोने में पहुँचाते हैं।

अब हम इस प्रक्रिया के माध्यमों के संदर्भ में संचार के विविध रूपों की चर्चा करेंगे और देखेंगे कि आने वाले युग में भाषा के क्षेत्र में संचार के कितने नए आयाम खुलते हैं और भाषा के अध्ययन में रत व्यक्तियों के लिए कितने नये कार्य क्षेत्र खुलते हैं।

संचार के युग में व्यवहृत नई तकनीकों और सुविधाओं से आप अपरिचित नहीं हैं। आज हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति कंप्यूटर के कार्यों और इंटरनेट की संभावनाओं से अपरिचित नहीं हैं। इसी तरह दूर संचार में भी अभूतपूर्व क्रांति हुई है और लोग अपनी जेब में मोबाइल फ़ोन

लेकर चलते हैं, मानो वे अपना टेलीफ़ोन एक्सचेंज अपने साथ लेकर चल रहे हों। लोगों के साथ इस प्रक्रिया के दूसरे छोर पर जो लोग हैं वे अपने पाठकों और श्रोताओं तक हर पल पहुँचने में सफल हुए हैं। टी.वी. पर विज्ञापन, इंटरनेट पर विज्ञापन, मोबाइल पर खबरें, 24 घंटे के समाचार चैनल, वीडियो टेक्स्ट आदि आक्रामक रूप से श्रोताओं तक पहुँचते हैं।

वाणिज्य-व्यापार, प्रशासन / प्रबंध, शिक्षा आदि कई क्षेत्रों में इस संचार क्रांति के दूरगामी परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं। हम आगे कुछ प्रमुख क्रांतिकारी प्रयत्नों की चर्चा करेंगे ।

संचार (Communications) :-

To Communicate का तात्पर्य है संदेश देना । इस अर्थ में व्यक्तिगत वार्तालाप संप्रेषण का एक प्रमुख रूप है, क्योंकि इसमें हम एक-दूसरे के साथ संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। क्षेत्र का विस्तार करते हुए हम रेडियो, अखबार आदि के माध्यम से भी संदेश संप्रेषित करते हैं।

अखबार आदि के माध्यम से भी संदेश संप्रेषित करते हैं। माध्यम के महत्व के कारण इस तरह के संप्रेषण को संचार कहा जाता है। रेडियो, टेलीफ़ोन आदि संचार के साधन हैं। इस प्रकार अंग्रेज़ी शब्द Communication के लिए हिंदी में दो शब्द हैं संप्रेषण और संचार । संदेश देने के अर्थ में संप्रेषण व्यापक शब्द है। संप्रेषण की कुछ विशिष्ट स्थितियों को संचार की संज्ञा दी जाती है। अखबार, टेलीविजन आदि संचार के माध्यम भी संदेश संप्रेषित करते हैं।

दूर संचार (Tele-Communications) :-

व्यक्तिगत सम्प्रेषण की स्थिति के अतिरिक्त हम टेलीफ़ोन आदि की सहायता से संदेश संप्रेषित करें तो यह दूर संचार कहलाएगा। इस शब्द से संदेश की अपेक्षा चैनल का प्रकार्य प्रमुख है। टेलीफ़ोन, टेलेक्स, टेलीप्रिंटर आदि दूर संचार के साधन हैं।

प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ यह बात जानना चाहते हैं कि किस तरह बिना व्यवधान के सही ढंग से संदेश इन माध्यमों से संप्रेषित हो पाता है। अगर माध्यम ठीक से काम न करे तो, संदेश स्पष्ट नहीं होगा, यानी संप्रेषण सफल नहीं होगा। अतः संदेश की प्रकृति के अनुसार माध्यम को कारगर बनाना आज की प्रौद्यागिकी का लक्ष्य है।

जन संचार (Mass Communication) :-

जहां व्यक्तिगत प्रक्रिया में व्यक्ति संदेश देने के लिए एक व्यक्ति को या एक विशाल जन सभा को संबोधित कर सकता है। यह प्रक्रिया के क्षेत्र, समय तथा श्रोतागण की दृष्टि से सीमित है। हम लेखन के माध्यम से इन तीनों सीमाओं को लाँघ सकते हैं और माइक की सुविधा से लाखों की संख्या में लोगों को संबोधित कर सकते हैं। पुस्तक लेखन या लाउड स्पीकर से संबोधन दोनों व्यक्तिगत संप्रेषण ही कहलाएँगे।

इसकी तुलना में जनसंचार एक अतिविकसित आधुनिक व्यवस्था है, जिसमें संदेश प्रसारण करने वाला एक व्यक्ति नहीं, पूरा समाज है और संदेश प्रसारण पूरे समाज के लिए है। इस तरह यह सामाजिक व्यवस्था है, जो जन संचार के साधनों से ही संभव हो पाया है।

रेडियो, टेलीविज़न, पत्रकारिता इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इनमें संदेश एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि अनेकों व्यक्तियों का समन्वित प्रक्रिया है, जो सारी जनता के लिए है। माध्यम को महत्व देने के कारण इसे जन संचार कहा जाता है ( जो mass communication का सहज अनुवाद लगता है), वास्तव में प्रयोजन की दृष्टि से यह जन संप्रेषण है।

संचार माध्यमों ने लेखन में कई नई विधाओं को जन्म दिया, जैसे रेडियो रूपक, रिपोर्ताज, परिचर्चा आदि। संचार साधनों के कारण टेलीकांफ्रेंसिंग, दूर संचार के साधनों का उपयोग करते हुए श्रोताओं के सक्रिय सहयोग से भेंट वार्ता आदि नये कार्यक्रम विकसित हुए ।

जन संचार की व्यापक पहुँच के कारण व्यापारिक / व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए विज्ञापन “का विकास हुआ और जनतांत्रिक रूप से जनमत के संग्रह के शोधपरक आयाम खुले। इस तरह जन संचार नै आधुनिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। इस अर्थ में भी सूचना समाज की संज्ञा सार्थक लगती है।

इस व्यापक पहुँच के कारण जन संचार लोगों की सोच, व्यवहार तथा कार्यविधि पर प्रभाव डालता है। अक्सर यह कहा जाता है कि यौन तथा हिंसा की घटनाओं से भरी फिल्मों के कारण बच्चों में नकारात्मक गुण पैदा हो जाते हैं।

जन संचार के वैश्विक स्वरूप के कारण घटनाओं और विचारधाराओं का सारे विश्व पर प्रभाव पड़ता है। समाजशास्त्री यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि आगे के युग में सूचना संचार का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

संप्रेषण और संचार में अंतःसंबंध

हम आधुनिक युग में समाज पर संचार के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में चर्चा करते हैं। अक्सर हम चर्चा सुनते हैं कि सिनेमा, टेलीविज़न जन संचार के माध्यमों के कारण युवाओं में सेक्स तथा हिंसा के प्रति रुझान होता जा रहा है। इसी तरह यह भी चर्चा सुनने में आती है कि भारतीय जनता पश्चिम के कार्यक्रमों के कारण भारतीय परंपरा और मूल्यों से विमुख होते जा रहे हैं। इस प्रकार की चर्चा का आधार क्या है ?

सिनेमा, टेलीविज़न, पत्र-पत्रिकाएँ आदि केवल जन संचार के माध्यम हैं और समाज ही उनके संदेश का निर्धारण करता है। आजकल भारत में भक्ति, साधना, स्वास्थ्य संबंधी पत्रिकाओं का बढ़ता मार्केट है। इसकी तुलना में यह भी उल्लेख कर सकते हैं कि पश्चिम के समाज ने संघर्ष करके यौन स्वच्छंदता की पत्रिकाओं के प्रकाशन की स्वतंत्रता हासिल की है।

इस तरह हम संचार माध्यमों से किस संदेश का सम्प्रेषण कर रहे हैं या करना चाहते हैं यह समाज सापेक्ष है। इसका सीधा संबंध सामाजिक मूल्यों से है। मूल्यों की भिन्नता के कारण ही विदेशी कार्यकमों के अवांछित प्रभाव की बात कही जाती है।

एक तरफ़ हम विदेशी कार्यक्रमों के प्रतिबंध, सेंसर द्वारा काट-छाँट आदि की बात सोच सकते हैं। दूसरी ओर यह भी कहा जा सकता है कि हम विदेशी संस्कृति को विदेशी ही मानकर ग्रहण करें और अपनी परंपराओं से नाता जोड़े रखें।

निष्कर्ष :-

भाषा सम्प्रेषण का साधन है अर्थात् दो व्यक्ति भाषा के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। जब व्यक्ति माइक का इस्तेमाल करता है, तो सम्प्रेषण का क्षेत्र बढ़ जाता है; जब व्यक्ति लेखन का उपयोग करता है, तो उसका पाठक वर्ग क्षेत्र और काल की दृष्टि से विस्तृत हो जाता है। इस तरह विज्ञान में उन्नति और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संप्रेषण का विस्तार होता गया ।

हम जिन माध्यमों से सम्प्रेषण करते हैं उन्हें संचार साधन कहते हैं और वह सम्प्रेषण भी आधुनिक संदर्भ में संचार कहा जाता है। यह रोचक तथ्य है कि अंग्रेज़ी में सम्प्रेषण , संचार दोनों के लिए एक ही शब्द है – Communication | हिंदी में भाषिक व्यापार सम्प्रेषण है, सम्प्रेषण के साधनों के संदर्भ में भौतिक संदेश सम्प्रेषण संचार है।

अकसार पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):-

सम्प्रेषण का क्या अर्थ होता है?

सम्प्रेषण एक परस्पर क्रिया है, जिसमें एक पक्ष संदेश का सम्प्रेषण करता है, दूसरा पक्ष उस संदेश को ग्रहण करता है। सम्प्रेषण हर जीवित प्राणी का गुणधर्म है। चींटियाँ गंध द्वारा अपने समाज के अन्य प्राणियों को शिकार या खाद्यपदार्थ या शत्रु का संदेश देती हैं। मधुमक्खियाँ अपने साथियों को ‘नाच’ द्वारा संदेश संप्रेषित करती हैं।


संप्रेषण के प्रकार क्या है?

बस इतना है कि उसे वक्ता और श्रोता दोनों समान रूप से समझ सकें । सम्प्रेषण मौखिक और लिखित रूप में तो होता ही है, किंतु आंगिक सम्प्रेषण का भी कम महत्व नहीं है। इस प्रकार संप्रेषण के मुख्य तीन प्रकार हैं मौखिक सम्प्रेषण , लिखित सम्प्रेषण और अशाब्दिक अथवा आंगिक सम्प्रेषण


संप्रेषण में कितने तत्व होते हैं?

वस्तुतः प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक संदेश पहुँचने की प्रक्रिया को ही संप्रेषण कहते हैं । इस प्रकार सम्प्रेषण के तीन हिस्से होते हैं – प्रेषक, संदेश, प्राप्तकर्ता । पत्र इसका सबसे उत्तम उदाहरण है ।


सम्प्रेषण का कार्य क्या है?

सम्प्रेषण का अर्थ है मन में आये विचारों का आदान प्रदान करना। सामाजिक जगत से हम अपने समाज को समझते है, एक दुसरे की भावनाओं के आदान प्रदान का माध्यम भाषा तथा सम्प्रेषण है।

संप्रेषण का उद्देश्य क्या है?

सम्प्रेषण का उद्देश्य है सूचनाओं और सहमति को प्रेषित करना, और उद्देश्य, हित और प्रयत्नों की समानता लाना। सम्प्रेषण एक निरंतर प्रक्रिया है जिससे जारी काम-काज, नियोजन और नीति निर्धारण में प्रभावशीलता एवं कार्यक्षमता आती है ।

संप्रेषण और संचार में क्या अंतर है?

सम्प्रेषण एक एकत्रित संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की प्रक्रिया है। इसमें संदेश बनाने, भेजने और प्राप्त करने के लिए उपकरणों जैसे कि टेलीफोन, फैक्स, इमेल, पत्र आदि का उपयोग किया जाता है। वहीं, संचार एक दूसरे के साथ जानकारी और विचारों को विनिमय करने की प्रक्रिया है।


सम्प्रेषण के आधुनिक साधन कौन कौन से हैं?

सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यम हैं- डाक पत्र प्रेषण सेवा, कुरीयर सेवा, टेलीफोन, टेलीग्राम, इन्टरनेट, फैक्स, ई-मेल, वायस मेल, आदि।


सम्प्रेषण शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

सम्प्रेषण हिंदी का शब्द है जिसका अर्थ है अपनी बात को या किसी भी सूचना को दूसरी जगह भेजना। इसको अंग्रेजी में communication कहते हैं। जैसे कि फैक्स भेजना, टेलीफोन से बात करना इत्यादि को सम्प्रेषण कहाँ जाता है और पूरे सिस्टम को सम्प्रेषण सिस्टम कहा जाता है। इसका दूसरा अर्थ ये है कि अपनी बात दूसरे से कहना।


संचार का अर्थ और प्रक्रिया क्या है?

संचार एक दोतरफा प्रक्रिया है जिसमें सूचना या संदेशों को एक व्यक्ति या समूह से दूसरे व्यक्ति तक स्थानांतरित करना शामिल है। यह प्रक्रिया चलती रहती है और इसमें संदेशों को भेजने के लिए कम से कम एक प्रेषक और प्राप्तकर्ता शामिल होता है। ये संदेश या तो कोई विचार, कल्पना, भावनाएँ या विचार हो सकते हैं।

अंतिम कुछ शब्द :-

दोस्तों मै आशा करता हूँ आपको “संप्रेषण : अर्थ, स्वरूप, प्रकार और अवधारणा” Blog पसंद आया होगा अगर आपको मेरा ये Blog पसंद आया हो तो अपने दोस्तों और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे अन्य लोगो को भी इसकी जानकारी दे। यह Blog Post मुख्य रूप से अध्यायनकारों के लिए तैयार किया गया है, हालांकि सभी लोग इसे पढ़कर ज्ञान आरोहण कर सकते है।

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Wikipedia Page :- सम्प्रेषण

इस संदर्व मैं कुछ आवश्यकीय प्रश्न :-

  • संप्रेषण का अर्थ
  • संप्रेषण का क्षेत्र कैसा होता है
  • संप्रेषण की बाधाएं
  • संप्रेषण का महत्व
  • संप्रेषण की प्रक्रिया
  • संचार और संप्रेषण की संकल्पनाएँ स्पष्ट कीजिए
  • संप्रेषण के स्वरूप की विवेचना
  • संचार साधनों के संदर्भ में सूचना समाज की अवधारणा
  • संचार और संप्रेषण का अंतःसंबंध
  • संप्रेषण का सामाजिक पक्ष
  • सूत्रता समाज
  • जनसंचार

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