रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय :-

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Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay के इस पोस्ट मैं हुमने दिनकर जी के बारे मैं सविशेष तथ्यों की यथा संभव आलोचना की है। उम्मीद है आप सभी लोगों को यह बिवरणी जरूर पसंद आएगा।

रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) जी का नाम हिन्दी साहित्य मैं अपने रस्त्रीय चेतनामूलक काव्य तथा लेख के लिए सुप्रसिद्ध है। उनके कवितयोन की मुख्य सवार ओज के रूप मैं हमेशा सामने आती है। हिन्दी साहित्य के वह एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी कलम में दिनकर यानी सूर्य के समान चमक थी।

उनकी कविताएं सिर्फ़ उनके समय का सूरज नहीं हैं बल्कि उसकी रौशनी से पीढ़ियां प्रकाशमान होती हैं। आइए उनके बिषय मैं आगे पढ़ते है।

ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
Ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
पूरा नामरामधारी सिंह दिनकर
प्रमुख कार्यकवि एवं लेखक
कलम नामदिनकर
जन्म23 सितम्बर 1908 सिमरिया घाट,, बिहार
मृत्यु24 अप्रैल 1974
पिता का नामबाबू रवि सिंह
माता का नाममनरूप देवी
भाई के नामकेदारनाथ सिंह, रामसेवक सिंह
पत्नी का नामश्यामावती देवी
संतानएक पुत्र (नाम ज्ञात नही)
व्यवसाय कविलेखक
अवधिआधुनिक काल
रचनाएँ काव्य –रेणुका, हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतिज्ञा। गद्य — अर्द्ध नारीश्वर, बट-पीपल, उजली आग, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय।
पुरस्कार(1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार), (1959 में पद्म भूषण) और (1972 में भारतीय ज्ञानपीठ)
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)

रामधारी सिंह दिनकर का बचपन :-

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 मैं स्थान बेगूसराय जिले का सिमरिया गांव मैं हुआ था। उनके पिता का नाम रवि सिंह था और वह एक साधारण किसान थे। उनकी माता का नाम मनरूप देवी था।

दो वर्ष की आयु मैं उनके पिता का निधन हो गया एवं उनके पिता के गुजर जाने के बाद अब उनकी माता ही खेतीबाड़ी का काम संभालने लगी। क्यूँकी रामधारी सिंह दिनकर ज्यादातर समय अपनी माता के साथ बिताते थे, खेतों और हरियाली के बीच ही इनका ज्यादातर समय बीतता था। यही एक कारण रहा कि इन्होंने प्रकृति पर खूब कविताएं लिखी। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा :-

रामधारी सिंह दिनकर का विद्यार्थी जीवन उनके गाँव के एक प्राथमिक विद्यालय से शुरू हुआ था। उसके बाद जब वह बड़े हुए तो उन्होंने मोकामाघाट हाई स्कूल में दाखिला लिया। हिंदी, संस्कृत, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य पर उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी।

इतिहास, राजनीति और दर्शनशास्त्र जैसे विषयों को वह मन लगाकर पढ़ते थे। रामधारी सिंह दिनकर ने 1928 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। साल 1932 में इनको इतिहास में बी. ए. ऑनर्स डिग्री प्राप्त हुई। कहते हैं कि वह हाई स्कूल में पढ़ने के दौरान ही शादी के बंधन में बंध गए थे। और इसी शादी से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हो गई थी। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

साहित्यिक परिचय:-

इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार कविता है तथा देश और विदेश में ये मुख्यत कवि रूप में प्रसिद्ध हैं। लेकिन गद्य लेखन में भी ये आगे रहे और अनेक अनमोल ग्रंथ लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की। इसका ज्वलंत उदाहरण है ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जो साहित्य अकादमी से पुरस्कृत है।

इसमें इन्होंने प्रधानतय: शोध और अनुशीलन के आधार पर मानव सभ्यता के इतिहास को चार मंजिलों में बांटकर अध्ययन किया है। इसके अतिरिक्त ‘दिनकर’ के स्फुट, समीक्षात्मक तथा विविध निबंधों के संग्रह हैं। जो पठनीय हैं, विशेषता: इस कारण कि उनसे ‘दिनकर’ के कविता को समझने परखने में यथेष्ट सहायता मिलती है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इनके गद्य में विषयों की विविधता और शैली की प्राण्जलता के सर्वत्र दर्शन होते हैं। भाषा की भूलों के बावजूद शैली की प्राण्जलता ही ‘दिनकर’ के गद्य को आकर्षक बना देती है।

इनका गद्य-साहित्य काव्य की भांति ही अत्यंत सजीव एवं स्फूर्तिमय है तथा भाषा ओज से ओत-प्रोत है। इन्होंने काव्य, संस्कृति, समाज, जीवन आदि विषयों पर बहुत ही उत्कृष्ट लेख लिखे हैं। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली :-

रामधारी सिंह दिनकर की लिखने की कला जबरदस्त थी। वह अपनी लगभग सभी कविताओं में साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया करते थे। वह अपनी कविताओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी इस्तेमाल किया करते थे।

दिनकर जी की भाषा शुद्ध, साहित्यिक, खड़ी बोली है जिसमें चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता तथा मनोहारिता है। दिनकर जी की भाषा में कहीं कहीं उर्दू का प्रभाव भी दिखाई पड़ता है। ओज और प्रवाह इनकी भाषा में सर्वत्र विद्यमान है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इनकी भाषा के दो रूप पाये जाते हैं। प्रथम वह कि जिसमें तत्सम शब्दों के साथ उर्दू फारसी के शब्द भी पाये जाते है और दूसरा वह जिसमें तत्सम शब्दों की प्रधानता है। दिनकर जी की भाषा में व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियाँ अधिक खटकती हैं।

स्त्रीलिंग शब्दों का पुल्लिंग में और पुल्लिंग शब्दों का स्त्रीलिंग में प्रयोग कर देने से भाषा का सौन्दर्य नष्ट हो गया है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में चुस्ती आ गयी हैं। इसीलिए प्रबन्ध और मुक्‍तक, दोनों ही शैलियों में इन्होंने काव्य रचना की है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

क्योंकि उनका बचपन प्रकृति के आस-पास ही गुज़रा इसलिए उनकी कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य भी झलकता है। इसके साथ उनकी कविताओं में देश प्रेम को भी बहुत अच्छे से दर्शाया गया है।

अलंकार योजना –

दिनकर जी कविता में अलंकारों के लिए कहीं भी आग्रहशील नहीं हैं, तथापि अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकार इनकी कविता में स्वाभाविक रूप से आ गये हैं। उपमा अलंकार का अभिनव रूप निम्नलिखित पंक्तियों में देखा जा सकता है–

“लदी हुई कलियों से मादक, टहनी एक नरम सी।
यौवन की बनिता-सी भोली, गुमसुम खड़ी शरम-सी॥”

छन्द योजना–

दिनकर जी ने तुकान्त और अतुकान्त, दोनों प्रकार के छन्‍दों में काव्य रचना की है। वर्णिक तथा मात्रिक दोनों ही प्रकार के छन्दों का उन्होंने प्रयोग किया है।

रस निरूपण –

दिनकर जी वीर रस के कवि हैं। उनकी कविता ओजमयी है। वीर रस के समान ही उनके काव्य में श्रृंगार एवं करुणा को भी स्थान मिला है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

सौंदर्य और प्रेम भावना

पर दिनकर जी सिर्फ राष्ट्रवादी ही नहीं है। आरंभ से ही वे एक ही साथ अलग-अलग भावाधारित कविताएँ लिख रहे थे। जैसा पहले बताया गया है ‘हुंकार’,’द्वन्द्वगीत’ और ‘रसवन्ती’ – ये तीन संग्रह एक साल के भीतर प्रकाशित हुए।

ज़ाहिर है कि उनकी कविताएँ एक ही साथ लिखी जा रही थीं। ऊपर जो कविताएँ उद्धृत की गई हैं, उनको देखकर ही यह राय बना ली गई कि दिनकर जी जैसे कवियों में जोश बहुत है, बौद्धिकता कम है। दूसरा आरोप यह लगाया गया कि ये कविताएँ उपयोगितावादी हैं, इसलिए क्षणस्थायी हैं।

चूँकि इनमें बात बड़े साफ़ तरीके से कही गई है, उसमें कहीं उलझाव नहीं है, इसी कारण इनमें कलात्मकता की कमी होने का भी आरोप लगा दिया गया। ‘रश्मिलोक’ की भूमिका में इन आरोपों की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा है ऐसे लांछन सर इकबाल पर भी लगाये गये थे और उत्तर में उन्होंने कहा भी था कि हाँ भाई, मैं कवि नहीं हूँ। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

मगर मेरे भीतर कुछ बातें हैं, जो कविता में कही जा सकती हैं। अतएव कविता का उपयोग मैं अपनी बातें कहने के लिए कर रहा हूँ।’ जवाब देने के लिए तो उन्होंने इकबाल का सहारा लिया, पर अपने ऊपर लगने वाले आरोपों से वे व्याकुल भी रहते थे।

उन्होंने लिखा है :

“मैं भी चाहता था कि गर्जन-तर्जन छोड़कर मैं भी कोमल कविताओं की रचना करूँ, जिनमें फूल हों, सौरम हो, रमणी का सुंदर मुख और प्रेमी पुरुष के हृदय का उद्वेग हो और ऐसी अनेक कविताएँ … रेणुका, रसवन्ती और द्वन्द्वगीत में प्रकाशित हुई।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है,

‘रसवन्ती में कवि सौंदर्य के प्रति आकृष्ट होता है, परंतु उसके चित्त में शांति नहीं है।’ गर्जन भरे स्वर में राष्ट्रीयता का गान करने वाले कवि का एक स्वर यह भी है, ध्यान से सुनने योग्य है :

दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब

बड़े साँझ आल्हा गाता है,

पहला स्वर उसकी राधा को

घर से यहाँ खींच लाता है।

चोरी-चोरी खड़ी नीम की छाया में छिपकर सुनती है,

‘हुई न क्यों’ मैं कड़ी गीत की विधना, यों मन में गुनती है।

वह गाता, पर किसी वेग से

फूल रहा इसका अंतर है।

गीत अगीत, कौन सुंदर है?

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भावपक्ष एवं कलपक्ष :-

काव्य समीक्षा– दिनकर जी सामाजिक चेतना जाग्रत करने वाले कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा मानव की सामूहिक रूप में मुक्ति के लिए मानववादी आदर्श प्रस्तुत किया है। ‘रेणुका’ में उनकी यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

‘हिमालय’ शीर्षक कविता में उनकी क्रान्ति भावना का भी स्पष्ट आभास मिलता है। वे शोषक-शोषित समाज का उन्मूलन कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

यही भावना हुंकार, सामधेनी और कुरुक्षेत्र में दिखाई पड़ती है। उनके काव्य की मूल प्रवृत्तियों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित है–

प्रगतिवादी दृष्टिकोण–

प्रगतिवादी कवियों में दिनकर जी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पूंजीपतियों की शोषण नीति से दिनकर जी का शत हृदय पीड़ित हो उठता है। पूँजीवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए आपकी कल्पना प्रलयंकर रूप धारण कर लेती है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

दिनकर जी राष्ट्रीय गौरव और स्वाधीनता संग्राम की परम्परा को लेकर ही हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अवतीर्ण हुए हैं। उन्होंने निराश और विवश जनता को आश्वासन देते हुए ऊँचे स्वर में कहा-

“गरज कर बता सबको मारे किसी के मरेगा नहीं हिन्द देश।
लहू की नदी तैरकर आ गया है, कहीं से कहीं हिन्द देश।
लड़ाई के मैदान में चल रहे हैं लेके हम उनका-निशान।
खड़ा हो जवानी का झंडा उठा, ओ मेरे देश के नौजवान।”

विश्व प्रेम :-

दिनकर जी भारत एवं भारतीय संस्कृति से प्रेम रखने वाले थे, साथ ही उनके काव्य में विश्व-प्रेम एवं विश्व-कल्याण की भावना पूर्ण रूपेण विद्यमान है। विश्व विषमता उत्पीड़न कारिणी है। विश्व में विषमता मनुष्य को सुख नहीं मिलने देगी; अत: कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि–

“साम्य की यह रश्मि स्निग्ध उदार
कब खिलेगी, विश्व में भगवान्‌।

हो सुकोमल ज्योति से अभिसिक्‍त,
कब सरस होगे जलती रसा के प्राण॥”

शोषण के प्रति विद्रोह:-

दिनकर जी का दृष्टिकोण समाजवादी रहा है। अतीत की अपेक्षा वर्तमान का चित्रण करने में उन्हें विशेष सफलता मिली है। पूंजीपतियों द्वारा किसानों और मजदूरों का शोषण देखकर वे विद्रोही हो उठते हैं–

“आहें उठीं दीन कृषकों की, मजदूरों की तड़प पुकारें।
अरे गरीबों के लोहू पर, खड़ी हुई तेरी दीवारें॥”

शोषण से कुपित होकर कवि क्रान्ति का आह्वान करते है-

“क्रान्ति धात्रि कविते! उठ आडम्बर में आग लगा दे।
पतन, पाप, पाखंड जले, जल में ऐसी ज्वाला सुलगा दे॥”
दिनकर जी वर्तमान भौतिकवादी सभ्यता के कट्टर विरोधी हैं।

प्रकृति चित्रण:-

दिनकर जी का प्रकृति चित्रण छायावादी कवियों के समान ही है। वे प्रकृति में चेतना का अनुभव करते हैं। इसलिए उन्होने प्रकृति का सजीव मानव के रूप में चित्रण किया है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इस प्रकार इनका प्रकृति चित्रण परम्परागत है, प्रकृति का मानवीकरण रूप में वर्णन करते हुए वे उषा को एक अभिमानिनी नायिका के रूप में देखकर उसे पूछते हैं-

“कंचन थाल सजा सौरभ से ओ फूलों की रानी।
अलसाई सी चली, कहाँ करने किसकी अगवानी?
वैभव का उन्माद रूप की यह कैसी नादानी?
उषे! भूल न जाना ओस की करुणामयी कहानी।

प्रकृति का आलम्वन रूप में चित्रण करते हुए कवि हृदय में रहस्यवादी भावनाएँ भरी हुई हैं, जो प्रात: कालीन चित्र में देखी जा सकती हैं–

“व्योम सर में हो उठ़ा, विकसित अरुण आलोक शतदल।
चिरदुःखी धरणी विभा में हो रही आनन्द विह्वल॥
चूमकर प्रतिरोम से शिर पर चढ़ा वरदान प्रभु का।
रश्मि अंचल में पिता का स्नेह आशीर्वाद आया॥

मानवतावाद :-

रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता में मानवतावाद एवं मानवीय मूल्यों को विशेष महत्व दिया गया है। वे युद्ध को घृणित कर्म मानते हैं, अहिंसा का भी समर्थन करते हैं, किन्तु साथ ही यह भी चाहते हैं कि कोई किसी के अधिकारों को हनन न करे। क्षमा वीरों का आभूषण है, कायरों की ढाल नहीं। जिसमें दण्ड देने की सामर्थ है वही क्षमा कर सकता है:

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दन्तहीन विषहीन विनीत सरल हो।

‘अभिनव मनुष्य में वे मानव को सावधान करते हैं कि तू विज्ञान द्वारा आविष्कृत इन विनाशक अस्त्रों से मत खेल। ये मानवता के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे:

सावधान मनुष्य यदि विज्ञान है तलवार।
तो इसे दे फेंक तजकर मोह, स्मृति के पार।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार।
काट लेगा औंग तीखी है बड़ी यह धार॥।

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एक क्रांतिकारी के रुप मैं दिनकर :-

1929 में रामधारी सिंह दिनकर ने पटना कॉलेज में प्रवेश लिया। 1928 में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन चल रहे थे। ब्रिटिश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया जिसमें लाला लाजपत राय की कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गई।

चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर के भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने लाला लाजपत की मृत्यु का बदला लेने के लिए योजना बनाई। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने जॉन सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इस तरह की घटनाओं ने दिनकर के विचारों को राष्ट्र स्वतंत्रता के प्रति जागृत किया। महात्मा गांधी की लीडरशिप में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ हो चुका था। 1924 में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई थी जिसका नाम था छात्र सहोदर

सत्याग्रह पर उन्होंने 10 कविताएं लिखी और उसे एक पुस्तक का रूप दिया जिसका नाम विजय संदेश था। ब्रिटिश सरकार की नजरों से बचने के लिए उन्होंने अपनी कविताओं के कवि का नाम अमिताभ दिया। 1930 में उन्होंने प्राण भंग नाम की एक कविता की रचना की।

दिनकर 1952 से लेकर 1964 तक कांग्रेस की ओर से 12 वर्ष तक संसद के सदस्य रहे, इसलिए वे पंडित नेहरू के बेहद करीबी भी थे। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इसी दौरान चीन से भारत का संघर्ष हुआ और चीन के खिलाफ भारत की हर नीति फेल हुई। उसपर नेहरू के प्रशंसक होने के बावजूद दिनकर जी ने परशुराम की प्रतीक्षा लिख कर से नेहरू पर निशाना साधा था, वो पंक्तियां जो युद्ध के दौरान नेहरू पर लिखी गयी-

” घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,

लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,

जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,

समझो, उसने ही हमें यहां मारा है

जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,

या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,

उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,

यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है

चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,

जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,

जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,

या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;

यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,

भारत अपने घर में ही हार गया है।

हालांकि बाद में उन्हें सन् 1964 से 1965 ई. तक ‘भागलपुर विश्वविद्यालय‘ का कुलपति के रूप में नियुक्त कर दिया गया और अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना ‘हिन्दी सलाहकार’ नियुक्त किया और फिर से दिल्ली बुला लिया।

अहिंसा का बोदा मार्ग दिनकर जी को पसन्द नहीं है। धर्म, तप, अहिंसा करुणा और क्षमा आदि भाव व्यक्ति के लिए अवश्य हितकारी हो सकते हे किन्तु जब पूरे समाज का प्रश्न उठता है, तब हमें तप, अहिंसा, करुणा और त्याग को भूलना ही पड़ता है। ‘कुरुक्षेत्र’ नामक काव्य में दिनकर ने भीष्म पितामह के मुँह से यही बात कहलवाई है-

“हिंसा के सामने तपस्या सदैव हारी है।

भाग्यवाद में दिनकर जी का विश्वास नहीं है, वे परिश्रम पर विश्वास करते हैं। भाग्यवाद के विपरीत थे मनुष्य को श्रम करने की प्रेरणा देते हैं-

“एक मनुज संचित करता है, अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा भाग्यवाद के छल से।
राजद्रोह की ध्वजा उठाकर कहीं प्रचारा होता,
न्यायपक्ष लेकर दुर्योधन को ललकारा होता॥”

दिनकर जी के काव्य में विद्रोह एवं क्रान्ति के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं। वे अन्याय का विरोध करते हैं और अत्याचार को समाप्त करने के लिए क्रान्ति का बिगुल बजाते हैं। यदि अधिकार माँगने से न मिलें तो उसके लिए जीवन की बाजी लगाकर युद्ध करना पाप नहीं है। वे कहते हैं:

स्वत्व मांगने सेन मिले संघात पाप हो जाए।
धर्मराज बोलो वे शोषित जियें या कि मर जाएँ?

रामधारी सिंह दिनकर जी का कथन है कि युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं होता अपितु वह घरों, कारखानों एवं बाजारों में भी लड़ा जाता है। सभी जगह मोर्चे खुले हुए हैं अतः आलस्य को त्याग
देना चाहिए। वे कहते हैं-

सरहद पर ही नहीं मोरचे खुले हुए हैं।
खेतों में खलियान, बैठकों बाजारों में
जहाँ कहीं आलस्य वहीं दुर्भाग्य देश का।

उक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि रामधारी सिंह दिनकर’ के काव्य में वीरता एवं राष्ट्रीयता के स्वर विद्यमान हैं। उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में जनजागरण का प्रयास करके कवि कर्तव्य का सही अर्थों में पालन किया है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

वे जन-जन में कर्मण्यता, शूरता एवं पराक्रम के भाव भर देना चाहते हैं। वे वास्तविक अर्थ में राष्ट्रेचेतना को जाग्रत एवं मुखरित करने वाले राष्ट्रकवि हैं। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

दिनकर जी सरकारी तंत्र के खिलाफ इतना जमकर लिखते थे कि 4 वर्ष में ही 22 बार उनका अलग अलग जगह तबादला किया गया था। रामधारी सिंह जी का निधन 24 अप्रॅल 1974 बिहार को बेगूसराय में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर की राष्ट्रीय चेतना :-

अपने अनन्य रचनाओं के कारण मैथिलीशरण गुप्त के बाद दिनकर जी को ही राष्ट्रकवि कहकर पुकारा गया। उन्होंने आज़ादी के आंदोलन के दौरान लिखना शुरू किया था और अपने चारों ओर की स्थितियाँ उन पर जबर्दस्त असर डाल रही थीं। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

अपनी चुनी हुई कविताओं के संकलन चक्रवाल ‘ में उन्होंने लिखा है,

‘मैं….वैमा कवि अवश्य बनना चाहता था, जिसकी प्रेरणा उसके सामाजिक कर्तव्य-ज्ञान से आती है, किंतु, विप्लव और राष्ट्रीयता का वरण मेरा उद्देश्य न था।’

बारदोली सत्याग्रह के दौरान उनका पहला लघु गीत-संग्रह ‘बारदोली विजय’ प्रकाशित हुआ, जिसमें राष्ट्रीयता के गीत थे। फिर भी उनके अनुसार उनके पहले खंड-काव्य (प्रण-भंग) को देखकर कोई ‘यह नहीं कह सकता था कि राष्ट्रीयता मेरी कविताओं का प्रधान गुण है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

फिर क्यों उन्हें राष्ट्रीयता की भावनाओं को व्यक्त करने वाला सबसे सशक्त कवि माना गया? 1939-1940 ई0 के दौरान उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई ‘रसवंती’, ‘द्वन्द्व -गीत’ और ‘हुंकार’

वे बताते हैं कि हुंकार के प्रकाशन से उन्हें यश मिला, जिसमें राष्ट्रीयता के भावों की ज़ोरदार अभिव्यक्ति थी। इसके बारे में वे स्पष्ट करते हैं : ‘राष्ट्रीयता मेरे व्यक्तित्व के भीतर से नहीं जन्मी, उसने बाहर से आकर मुझे आक्रांत किया।

उस समय सारे देश में एक स्थिति थी जो सार्वजनिक संघर्ष की स्थिति थी, सारे देश का एक कर्तव्य था जो स्वतंत्रता संग्राम को सबल बनाने का कर्तव्य था और सारे देश की एक मनोदशा थी जो क्रोध से क्षुब्ध, आशा से चंचल और मज़बूरियों से बेचैन थी। यह वह समय था जब ‘सामूहिक अनुभूतियों का साम्राज्य छा जाता है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

दिनकर जी के काव्य में देश- प्रेम एवं राष्ट्रीयता की भावना प्रमुख रूप से विद्यमान है। वस्तुतः वे युगीन चेतना से अनुप्राणित होकर ऐसा काव्य लिख रहे थे जो स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़ने के लिए युवकों को प्रेरित कर सके। हिमालय नामक कविता में वे भारतीयों को जाग्रत करने का प्रयास करते हुए कहते हैं:

ले अँगड़ाई हिल उठे धरा, कर नित विराट स्वर में निनाद।
तूशैलराट हुंकार भरे, फट जाय कुहा भागे प्रमाद।।

दिनकर जी के काव्य में प्रशतिशील चेतना कई रूपों में दिखाई पड़ती है। वे अन्याय और अत्याचार के विरोधी हैं। शोषण का विरोध उनकी कविता का प्रमुख स्वर है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

एक ओर तो पूंजीपति अपने कुत्तों की देखभाल पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं तो दूसरी ओर गरीब को जीवन यापन की सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। विषमता का यह चित्रण कवि ने निम्र पंक्तियों में किया है:

श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बच्चे अकुलाते हैं।
माँ की छाती से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते हैं।

प्रसाद, निराला, पंत जैसे अपने वरिष्ठ समकालीनों की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं, ‘वे फिर भी संयमशील रहे, किंतु, मुझ जैसे लोग राष्ट्रीय एवं क्रांतिकारी भावनाओं के प्रवाह में बह गए।’ खड़ी बोली हिंदी-कविता की मूल प्रेरणा राष्ट्रीयता थी – ऐसा कहना अनुचित न होगा।

दिनकर जी ने जिन कवियों को अपने गुरू के रूप में याद किया है – वे भी राष्ट्रीय भावनाओं के निर्भीक गायक थे। यह समझना भी ज़रूरी है कि उस समय राष्ट्रीय भावना क्रांतिकारी भावना थी उसमें गांधीवाद, समाजवाद या फिर सशस्त्र क्रांति के जरिए आज़ादी की राह खोजने वाले सब शामिल थे।

अगर हम बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक में लिखी गई ऐसी कविताओं को पढ़ें तो देखेंगे कि उनमें एक सशक्त, भयविहीन भारत की कल्पना की गई है। भारत की पाँच हज़ार साल पुरानी, लंबी संस्कृति की स्मृति भी उन कविताओं में है।

राष्ट्रीयता अपने आप में एक उदात्त भावना है, लेकिन जब वह अहंकार और श्रेष्ठत्व के भाव से मुक्त हो जाए तो विश्व बंधुत्व की उच्चता प्राप्त कर लेती है। सौभाग्य से भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जन्मी राष्ट्रीयता की भावना में ये गुण थे। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

दिनकर जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत कवि… इसी भाव से युक्त हैं। वे लिखते हैं कि कवि होने की सामर्थ्य ‘मुझमें भारतवर्ष का ध्यान करने से जाग्रत हुई, यह शक्ति मुझमें भारतीय जनता की आकुलता को आत्मसात करने से स्फुरित हई।’ दिनकर जी के पहले से कविता लिख रहे कवि भी इस आकुलता को स्वर दे रहे थे।

माखनलाल चतुर्वेदी, सोहनलाल द्विवेदी और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जैसे कवि तो राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भी थे। राष्ट्रीयता और स्वाधीनता के लक्ष्यों के प्रति उनकी गहरी उत्सर्ग-भावना पाठकों को आंदोलित करती थी।

दिनकर जी ने राष्ट्र में जन-जागरण लाने की भावना से देश के गौरवमय अतीत के अनेक चित्र उपस्थित किये हैं। दिनकर जी का अतीत गौरवज्ञान विशेष प्रभावोत्पादक है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

इसमें एक ओर अतीत का वैभव है तो दूसरी ओर वर्तमान के पतन की पराकाष्ठा है। उस समय तो उनके भावों में और भी तीव्रता आ जाती है जब वे अतीत के गौरवमय प्रतीकों को सम्बोधित करके अपनी खीझ उन पर व्यक्त करते हैं।

पाटलिपुत्र की गंगा से कवि प्रश्त करता है–

“तुझे याद है चढ़े शीश पर कितने जय सुमनों के हार?
कितनी बार समुद्रगुप्त ने धोई है तुझमें तलवार?”

भावावेश में कवि खीझ उठता है-

“जिस दिन जली चिता गौरव की जयभेरी जब मूक हुई,
जलकर पत्थर हुई न क्‍यों यदि टूट नहीं दो टूक हुई?”

हिमालय :-

हिमालय’ दिनकर जी की अत्यंत प्रसिद्ध कविता है। इसमें भी भारतीयों के मन में बसे हुए गौरवपूर्ण अतीत की स्मृति है। हिमालय जैसे विशाल भारतीय जन-मानस का एक उदात्त प्रतीक बन जाता है, जो मौन त्याग कर चेतना हो जाए तो अन्याय की कड़ियाँ टूट जाएँगी।

उसी प्रकार बुद्धदेव भी एक क्रांतिकारी के रूप में याद किए जाते हैं। भारत का राष्ट्रीय आंदोलन विदेशी शासन से मुक्ति के लिए तो था ही, वह स्वंय भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को नष्ट करने का विराट समाज-सुधार का आंदोलन था। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

जाति-प्रथा के कारण भारतीय समाज में जो जड़ता आ गई थी, उसे नष्ट करना एक प्रमुख कर्तव्य था। छुआछूत के विरूद्ध गांधी जी ने ज़ोरदार आवाज़ उठाई। जिन्हें अछूत माना जाता था, उन्हें हरिजन की उपाधि दी। मंदिरों के टरवाज़े उनके लिए बंद थे।

गांधी जी ने हरिजनों के सामाजिकसम्मान को हासिल करने के क्रम में मंदिर-प्रवेश का आंदोलन चलाया। इसी क्रम में हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल वैद्यनाथ धाम (देवधर) में मंदिर-प्रवेश के प्रयास के दौरान पंडों ने उन पर हमला किया। दिनकर जी इस घटना से क्षुब्ध हो उठे :

आह! सभ्यता के प्रांगण में आज गरल-वर्षण कैसा!

घृझा सिखा निर्वाण दिलानेवाला यह दर्शन-कैसा।

स्मृतियों का अंधेर! शास्त्र का दम्भ! तर्क का छल कैसा।

दीन-दुखी असहाय जनों पर अत्याचार प्रबल कैसा!

रामधारी सिंह दिनकर की काव्य कृतियां (Ramdhari singh dinkar ki kavita) :-

  • विजय संदेश (1928)
  • प्रणभंग (1929)
  • रेणुका (1935)
  • हुंकार (1938)
  • रसवन्ती (1939)
  • द्वंद्वगीत (1940)
  • कुरूक्षेत्र (1946)
  • धूप-छाँह (1947)
  • सामधेनी (1947)
  • बापू (1947)
  • इतिहास के आँसू (1951)
  • धूप और धुआँ (1951)
  • मिर्च का मजा (1951)
  • रश्मिरथी (1952)
  • दिल्ली (1954)
  • नीम के पत्ते (1954)
  • नील कुसुम (1955)
  • सूरज का ब्याह (1955)
  • चक्रवाल (1956)
  • कवि-श्री (1957)
  • सीपी और शंख (1957)
  • नये सुभाषित (1957)
  • लोकप्रिय कवि दिनकर (1960)
  • उर्वशी (1961)
  • परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
  • आत्मा की आँखें (1964)
  • कोयला और कवित्व (1964)
  • मृत्ति-तिलक (1964)
  • दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
  • हारे को हरिनाम (1970)
  • संचियता (1973)
  • दिनकर के गीत (1973)
  • रश्मिलोक (1974)
  • उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)

रामधारी सिंह दिनकर की गद्य कृतियां

  • मिट्टी की ओर 1946
  • चित्तौड़ का साका 1948
  • अर्धनारीश्वर 1952
  • रेती के फूल 1954
  • हमारी सांस्कृतिक एकता 1955
  • भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955
  • संस्कृति के चार अध्याय 1956
  • उजली आग 1956
  • देश-विदेश 1957
  • राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955
  • काव्य की भूमिका 1958
  • पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958
  • वेणुवन 1958
  • धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969
  • वट-पीपल 1961
  • लोकदेव नेहरू 1965
  • शुद्ध कविता की खोज 1966
  • साहित्य-मुखी 1968
  • राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968
  • हे राम! 1968
  • संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970
  • भारतीय एकता 1971
  • मेरी यात्राएँ 1971
  • दिनकर की डायरी 1973
  • चेतना की शिला 1973
  • विवाह की मुसीबतें 1973
  • आधुनिक बोध 1973

प्रेम पर रामधारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध पद्य

प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता, एक कोने में न रुक सारे हृदय को घेर लेता है। पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा, नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है। प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है, प्रेम उसकी जिन्दगी की साँस है;प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं फिर चाहती।

फूलों के दिन में पौधों को प्यार सभी जन करते हैं, मैं तो तब जानूँगी जब पतझर में भी तुम प्यार करो। जब ये केश श्वेत हो जायें और गाल मुरझाये हों, बड़ी बात हो रसमय चुम्बन से तब भी सत्कार करो। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

प्रातः काल कमल भेजा था शुचि, हिमधौत, समुज्जवल,और साँझ को भेज रहा हूँ लाल-लाल ये पाटल दिन भर प्रेम जलज सा रहता शीतल, शुभ्र, असंग,पर, धरने लगता होते ही साँझ गुलाबी रंग।

सुन रहे हो प्रिय? तुम्हें मैं प्यार करती हूँ। और जब नारी किसी नर से कहे, प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ, तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर, प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।

रामधारी सिंह विचार मैं :-

  • जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैंउसी प्रकार सभी गुण अंतत!स्वार्थ में विलीन हो जाता है।
  • सच है, विपत्ति जब आती है ;कायर को ही दहलाती है,सूरमा नहीं विचलित होते; क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं ; काँटों में राह बनाते है
  • रोटी के बाद मनुष्य कीसबसे बड़ी कीमती चीजउसकी संस्कृति होती है।
  • पुरुष चूमते तबजब वे सुख में होते हैं, नारी चूमती उन्हें जब वे दुख में होते हैं।
  • ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आगसबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
  • साहसी मनुष्य की पहली पहचानयह है कि वह इस बात कि चिन्तानहीं करता कि तमाशा देखने वालेलोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं।
  • दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभ ही होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय का सारांश (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)

  • रामधारी सिंह दिनकर का रचनाकालीसवीं सदी के तीसरे दशक से शुरू होकर आठवे दशक तक फैला हुआ है। आधुनिक भारत के लिए यह बड़ा महत्वपूर्ण काल है। तीसरे दशक से पाँचवें दशक के बीच अंग्रेजी हुकूमत को भारत से उखाड़ फेंकने का आंदोलन अपनी निर्णायक लड़ाई लड़ रहा था। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • एक तरफ, महात्मा गांधी अखिल भारतीय स्तर पर जन-नायक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। अहिंसा, सत्याग्रह और असहयोग के उनके तरीके राजनीतिक अस्त्र तो थे ही, वे एक व्यापक सांस्कृतिक बदलाव की माँग कर रहे थे।
  • उन्नीसवीं सदी में देश के विभिन्न हिस्सों में जो पुरानी रूढ़ियों, कुरीतियों, अंधविश्वास के खिलाफ सुधार आंदोलन चल रहे थे, महात्मा गांधी ने उन सबको स्वाधीनता संग्राम का अंग बना दिया। स्वाधीनता का संग्राम अब समाज के संभ्रांत, अतिशिक्षित समुदाय का मामला नहीं रह गया।
  • निहत्था, निरक्षर, निरीह से निरीह साधारण भारतीय जन अब उसकी धुरी बन गया। इसने पूरे देश में जबर्दस्त उत्साह की लहर पैदा की। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • इसके समानांतर साम्यवादी आदर्शों से सुधारवाद से असंतुष्ट और क्रांति में विश्वास रखने वाले विचार भी तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे थे। हिंदी साहित्य और हिंदी कविता पर इसका प्रभाव पड़ना अनिवार्य था। द्विवेदी युग के बाद छायावाद ने इस नए स्वतंत्र मनुष्य के व्यक्तित्व को पहचाना।
  • लेकिन उस जमाने की बेचैनी, छटपटाहट की उग्रता को अभिव्यक्त किया स्वच्छंद राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा के कवियों ने, जिनमें माखनलाल चतुर्वेदी अग्रणीय थे। इनका असर लेकर छायावाद के परवर्ती काल में उत्तर छायावादी या छायावादोत्तरी प्रवृत्ति के कुछ सशक्त कवि उभरे, जिनमें बच्चन, भगवती चरण वर्मा और दिनकर प्रमुख हैं।ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • मस्ती, फक्कड़पन, बेपरवाही इनके लक्षण थे। पर दिनकर के स्वर की विशिष्टता को अलग से लक्ष्य किया गया। उनकी कविताओं में मस्ती तो थी, पर साथ ही एक गंभीर समाजोन्मुखता थी, क्रांति का आह्वान था, शोषण और अत्याचार पर टिकी समाज-व्यवस्था का विरोध था।
  • प्रखर राष्ट्रवादी तेवर के कारण दिनकर जी युवकों में खासे लोकप्रिय हुए। पर उनकी राष्ट्रवादिता में धर्म की मिलावट नहीं है।
  • वह भारतीय संस्कृति की सामासिकता को महत्व देती है। उनका राष्ट्रवाद अंधराष्ट्रवाद भी नहीं है। उसमें दूसरों को दलित करके खुद को प्रतिष्ठित करने की चाह नहीं है।
  • उनकी आक्रामक राष्ट्रीयता भारत पर हुए चीनी हमले के दौरान उभरी! ‘कुरुक्षेत्र में उग्र चोट खाए हुए राष्ट्र के क्रोध का विकट स्वर सुनाई पड़ता है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान सामाजिक बनावट, जाति व्यवस्था आदि को लेकर जो मंथन चल रहा था, उस ‘रश्मिरथी’ का नायक कर्ण है और उसकी केंद्रीय समस्या यह है कि कुमारी माता के गर्भ से उत्पन्न संतान को समाज में गुण के अनुसार स्थान मिलना चाहिए या नहीं।
  • दिनकर जी राष्ट्रवादी स्वर की कविताओं के साथ भिन्न प्रकार की कविताएँ भी लिख रहे थे। ‘रसवंती और ‘द्वंद्वगीत’ में इस प्रकार की कविताएँ सम्मिलित हैं। प्रेम और श्रृंगार के प्रति आकर्षण उनमें शुरू से ही देखा जा सकता है।
  • लेकिन उनके उच्च, धनगर्जन-भरे राष्ट्रवादी स्वर के नीचे यह दब सा जाता रहा है। प्रेम, सौंदर्य और श्रृंगार के प्रति आकर्षण का परिपाक आगे चलकर उनके प्रसिद्ध काव्य ‘उर्वशी’ में दिखलाई पड़ता है। लेकिन यह एक पुरुषकवि द्वारा नारी को मात्र भोग्य या श्रृंगार की सामग्री समझकर नहीं लिखा गया। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • इसमें आध्यात्मिकता का भी स्पर्श है, प्रेम भावना और सहज काम-वासना के बीच भी द्वंद्व चलता है। क्या काम से मनुष्य को मुक्ति मिलती है? ऐसे प्रश्न दिनकर जी की इस प्रकार की कविताओं में उठाए गए हैं।
  • आरंभ से ही दिनकर जी की कविताओं को बहिर्मुखी स्वभाव का माना गया। पर स्वंय उन पर बदलती हुई साहित्यिक विचारधाराओं का प्रभाव पड़ रहा था।
  • 1943 के आसपास वे टी.एस. इलियट की कविताओं के संपर्क में आए। इन कविताओं ने उन पर गहरा असर डाला। द्विवेदीयुगीन और छायावादी काव्य-संस्कारों से निकलकर वे औद्योगिक, आधुनिक सभ्यता की खंडित मानवीय चेतना के द्वंद्व से परिचित हुए। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • आगे चलकर इस प्रभाव ने उनकी काव्य-रचना पर असर डाला। पर उनका स्वर प्रमुखतः वही रहा जो पहले था। पर जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनके स्वर में पाई जाने वाली निश्चयात्मकता कम होती गई और वे मानवीय स्वभाव की जटिलता को समझने और उसे अभिव्यक्त करने में लगे।ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • देशभक्ति और राष्ट्रवाद के उद्घोष के बीच उनकी अपनी वेदनाएँ दब सी गई थीं। पहले निराशा, असफलता को जैसे उनके यहाँ कोई जगह नहीं है। पर ‘आत्मा की आँखे’ और ‘हारे को हरिनाम’ में उनका यह निजी स्वर उभरता है। इनमें छंट भी टूटते हैं, गेयता भी पीछे चली जाती है।
  • दिनकर जी ने छायावादी संस्कारों के साथ लिखना शुरू किया था। उन्होंने स्वंय लिखा है कि छायावाद के रोष से बचना मुश्किल था। पर उनके काव्य-आदर्श हिंदी से बाहर के कवि थे – उर्दू के इक़बाल और बंगला के रवीन्द्रनाथ ठाकुर । ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • इन दोनों ने दिनकर की काव्य-दृष्टि के निर्माण और विकास में गहरा योगदान किया। वैचारिक स्तर पर एक ओर वे कार्ल मार्क्स के साम्यवादी सिद्धांत से प्रभावित थे, वहीं दूसरी ओर महात्मा गांधी की करूणा से भरा हुआ मानवता वाद भी उन्हें आकर्षित करता था।
  • इन प्रभावों के बीच उनका कवि व्यक्तित्व निर्मित हुआ। कविता में उन्होंने हमेंशा इसका ध्यान रखा कि पाठकों को परेशानी न हो। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • इसलिए सुस्पष्टता को कविता के सबसे बड़े कलात्मक गुणों के रूप में देखा। छंदो का विरोध उनके समक्ष आरंभ हो गया था। निराला ने इसमें उदाहरण उपस्थित किया था। पर दिनकर जी का लक्ष्य था पंत के सपने को मैथिलीशरण गुप्त की सफाई से लिखना। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  • इसलिए मुक्त छंद के प्रभूत्व के बाद भी वे आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ने वाली, गेयता के गुणों से युक्त कविता लिखते रहे। सुस्पष्टता के प्रति आग्रह अंत तक बना रहा।

रामधारी सिंह दिनकर जीबन के बारे मैं कुछ रोचक तथ्य :-

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ काशी प्रसाद जायसवाल इनको पुत्र की तरह प्यार करते थे. उन्होंने इनके कवि बनने के शुरुवाती दौर में हर तरीके से मदद की. परन्तु उनका भी 1937 में निधन हो गया. जिसका इन्हें बहुत गहरा धक्का लगा. इन्होने संवेदना व्यक्त की थी कि, “जायसवाल जी जैसा इस दुनिया में कोई नहीं था.”

रेणुका (1935) और हुंकार की कुछ रचनाएँं यहाँ वहाँ प्रकाश में आई और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक गलत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं। और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी।

बात-बात पर क्ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं. चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

मशहुर कवि प्रेम जनमेजय के अनुसार दिनकर जी ने गुलाम भारत और आजाद भारत दोनों में अपनी कविताओं के जरिये क्रांतिकारी विचारों को विस्तार दिया. जनमेजय ने कहा

“आजादी के समय और चीन के हमले के समय दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाया.”

हरिवंश राय बच्चन ने कहा कि, “दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये.”

प्रमुख कविताओं के कुछ अंश:-

प्रेम की आकुलता का भेद
छिपा रहता भीतर मन में
काम तब भी अपना मधु वेद
सदा अंकित करता तन में

2. चुहे की दिल्ली-यात्रा

चूहे ने यह कहा कि चुहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
बिल्ली एक बड़ी पाजी है रहती घात लगाए,

3. बापू

संसार पूजता जिन्हें तिलक,
रोली, फूलों के हारों से,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ
बापू ! अब तक अंगारों से।
अंगार, विभूषण यह उनका
विद्युत पीकर जो आते हैं,
ऊँघती शिखाओं की ली में
चेतना नयी भर जाते हैं।

उनका किरीट जो भंग हुआ,
करते प्रचंड हूँकारों से,
रोशनी छिटकती है जग में,
जिनके शोणित के धारो से,

झेलते वहिन के वारो को,
जो तेजस्वी बन वहीं प्रखर,
सहते ही नहीं दिया करते,
विष का प्रचंड विष के उत्तर,

अंगार हार उनका की मृत्यु ही,
जिनकी आग उगलती है,
सदियों तक जिनकी सही,
हवा के वक्षस्थल पर जलती है,

पर तू इन सबसे परे, देख,
तुझको अंगार लजाते हैं,
मेरे उद्वेलित जलित गीत,
सामने नहीं हो पाते हैं।।

4. कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मौल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुँह खोल।

5. वीर

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विध्नों को गले लगाते हैं.

6. जयप्रकाश

झंझा सोई, तूफान रूका,
पलावन जा रहा कगारो में;
जीवित है सबका तेज किन्तु,
अब भी तेरे हुंकारों में।
ी दिन पर्वत का मूल हिला,
फेर उतर सेन्धु का ज्वार गया,
पर, सौंप देश के हाथों में

7. आशा का दीपक

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है;
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल टूर नहीं है।
चिंगारी बन गयी लह की बूंद गिरी जो पग से;
चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह जगमग से।
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है;

कृष्ण की चेतावनी
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विध्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,

8. परशुराम की प्रतीक्षा

गर्दन पर किसका पाप वीर, धोते हो?
शोणित से तुम किस का कलंक, धोते हो?

उनका, जिनमे कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य ताप था नहीं, न रंच गरल था,
सस्ती सुकृति पर कर जो फूल गए थे,
निर्वीय कल्पनाओं में भूल गए थे,

गीता में जो त्रि-पिटक निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते है,
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का,

सारी वसुंधरा में गुरु-पद पाने को,
प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को,
जो संत लोग सीधे पाताल चले थे,
(अच्छे हैं अब – पहले भी बहुत भले थे)

हम उसी धर्म की लाश यहां धोते हैं,
शोणित से संतों का कलंक धोते हैं ।।

ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

पुरस्कार :-

  1. आजादी के बाद 1947 में वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के ‘प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष’ नियुक्त किये गए। इसके पश्चात 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राष्ट्रपति की ओर से राज्यसभा का सदस्य नॉमिनेट किया गया और वह मुंगेर की गलियों से दिल्ली आ गए।
  2. “परशुराम की प्रतिष्ठा” (1952) काव्य कृति में दिनकर ने परशुराम के महिमा मय चरित्र को प्रशंसित किया है। इसमें धर्म, सत्य, और न्याय के महत्वपूर्ण संकेत प्रस्तुत किए गए हैं।
  3. उर्वशी (1949) एक महत्त्वपूर्ण और प्रशंसित काव्य कृति है जो साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुई। इस काव्य में उन्होंने मिथुन प्रेम की कथा को सुंदरता और गहराई से व्यक्त किया है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
  4. “हंस” (1957) यह काव्य रचना दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित की गई। इसमें विचारों, प्रेम, और आत्म-विचार के महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं।
  5. “चंद्रगुप्त” (1964) काव्य रचना चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित है। इसमें वीरता, राजनीति, और न्याय के मुद्दे पर चर्चा की गई है।
  6. “बारह खंड” (1966) काव्य कृति में भारतीय संस्कृति, दानवीरता, और साहित्यिक विचारों के विषय में बात की गई है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):-

दिनकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
23 सितंबर 1908 को सिमरियाघाट जिला बेगूसराय, उत्तरप्रदेश में जन्म लिया था।

दिनकर जी की पहली रचना कोनसी है ?
रामधारी सिंह दिनकर जी की पहली रचना विजय सन्देश थी जो कि वर्ष 1928 में लिखी गई थी।

रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यू 65 की उम्र में 24 अप्रैल 1974 को मद्रास (चेन्नई) तमिलनाडु भारत में हुई थी। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

रामधारी सिंह दिनकर क्यों प्रशिद्ध है ?
रामधारी सिंह दिनकर की कविताओं ने आजादी की लड़ाई में लोगो को जागरूक किया था।

दिनकर की पहली रचना क्या है?
दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की. उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं. उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया.

रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?
उनकी प्रसिद्ध रचनाएं उर्वशी, रश्मिरथी, रेणुका, संस्कृति के चार अध्याय, हुंकार, सामधेनी, नीम के पत्ते हैं। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

रामधारी सिंह दिनकर को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?
मानव-मात्र के दुख-दर्द से पीड़ित होने वाले कवि थे. राष्ट्रहित उनके लिए सर्वोपरि था. शायद इसीलिए वह जन-जन के कवि बन पाए और आज़ाद भारत में उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा मिला.

दिनकर जी की कौन सी रचना महाकाव्य है?
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। उर्वशी रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित काव्य नाटक है। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

दिनकर जी का सम्पूर्ण नाम क्या है?
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ‘

हुंकार के रचयिता कौन है?
‘हुंकार’ रामधारी सिंह दिनकर की रचना है , यह रचना दिनकर ने 1938 ई. में लिखा ।

रामधारी सिंह दिनकर कौन थे?
रामधारी सिंह दिनकर एक भारतीय हिंदी और मैथिली भाषा के कवि, निबंधकार, स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और अकादमिक थे।

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कब हुआ था?
दिनकर जी का जन्म 23 सितम्बर सन् 1908 में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कहां हुआ था?
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार राज्य के जिला बेगूसराय के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर की पत्नी का नाम?
दिनकर जी के पत्नी का नाम श्यामावती देवी था।

रामधारी सिंह दिनकर के पिता का नाम?
बाबू रवि सिंह

रामधारी सिंह दिनकर को क्या कहा जाता है?
रामधारी सिंह दिनकर को, जन कवि होने के नाते राष्ट्रकवि कहा जाता है।

रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना कौन सी है?
दिनकर जी की पहली रचना ‘प्रणभंग’ है।

रामधारी सिंह दिनकर को कौन पुरस्कार प्राप्त हुआ था?
रामधारी सिंह दिनकर जी को भारतीय ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। ramdhari singh dinkar ka jivan parichay

‘रामधारी सिंह दिनकर’ किस राज्य के वासी थे ? उनकी दो पुस्तकों के नाम लिखिए।
दिनकर जी बिहार राज्य के वासी थे। उर्वशी और मिट्टी की ओर उनकी दो पुस्तकों के नाम है।

अंतिम कुछ शब्द :-

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WIKIPEDIA PAGE : रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय

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