भाषाओं का वर्गीकरण (पारिवारिक) Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran

भाषाओं का वर्गीकरण (पारिवारिक) Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran :-

भाषाओं का वर्गीकरण :-

भाषाओं का वर्गीकरण :- संसार मैं जीतने भी भाषाएं बोले जाते हैं, उनमे से कुच्छ भाषाओं मैं आपस मैं काफी संबंध दिखने को मिलता है तो कुछ भाषाओं मैं आपसी संपर्क थोड़ा सा भी नही होता हैं। पर यह जरूर सत्य हैं की भाषाओं के बीच तुलनात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन के लिए ही भाषाओं का वर्गीकरण किया जाता हैं।

सबसे पहले भाषाओं के अध्ययन के लिए ही भाषाओं का विस्तृत वर्गीकरण किया गया और यह वर्गीकरण मुख्य रूप से दो भाग में विभाजित हुआ :

जहां आकृतिमूलक वर्गीकरण में समान आकार वाले भाषा को रखा जाता है। अर्थात शब्द या पद के रचना के आधार पर जो वर्गीकरण किया जाता है, उसे आकृतिमूलक वर्गीकरण (Morphological Classification) कहा जाता है। भाषाओं का वर्गीकरण

वहीं रचना तत्व और अर्थ तत्व के सम्मिलित आधार पर किया गया वर्गीकरण, पारिवारिक वर्गीकरण (genealogical classification) कहलाता है। इस ब्लॉग पोस्ट मैं हम भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण तथा विश्व के जितने भी भाषाओं को लगभग जितने भी भाषा परिवारों में विभाजित किया गया हैं, उनके बारे में पढ़ेंगे, इसके साथ साथ भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण के लिए कौन कौन से उपादानों के व्यवहार ज्यादा किया जाता हैं, उन विषयों पर भी आलोचना करेंगे।

पर हर एक भाषा परिवारों का आलोचना यहां कुछ संक्षेप पे किया गया हैं, इसके बाद के ब्लॉग पोस्ट पे हर एक भाषा परिवारों पर विस्तृत आलोचना लाया जाएगा और समय के साथ साथ सब के लिंक को इस ब्लॉग पोस्ट पर जरूर अपडेट कर दिया जाएगा |

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

भाषाओं का वर्गीकरण
Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran

भाषाओं का वर्गीकरण (पारिवारिक वर्गीकरण) :-

विश्व की समस्त भाषाओं को कुछ प्रमुख परिवारों में विभाजित करना पारिवारिक वर्गीकरण कहलाता है। एक मूल भाषा सेकालान्तर में अनेक भाषाएँ विकसित हो जाती हैं। वे सभी भाषाएँ एक ही परिवार की मानी जाती हैं। जैसे एक पूर्वज से अनेक पीढ़ियाँ विकसित हो जाती हैं और बहुत समय के बाद उन पीढियों की अनेक पीढ़ियाँ बन जाती हैं उसी प्रकार एक मूल भाषा से भाषाओं की पीढ़ियाँ विकसित होकर परस्पर स्वतंत्र हो जाती है।

परन्तु रूप रचना और शब्द साम्य के आधार पर उन सब भाषाओं की सामान्य विशेषताओं को जाना जा सकता है और उसी आधार पर उनके परिवर का निर्णय किया जा सकता है। संस्कृत भाषा से परिचय होने के बाद अठारहवीं शताब्दी के अन्त में यूरोप में भाषाओं की परस्पर तुलना प्रारम्भ हुई और तुलनात्मक भाषा विज्ञान का जन्म हुआ।

तुलनात्मक अध्ययन के फलस्वरूप भाषाओं के विभिन्न परिवारों का निर्णय हुआ है। पारिवारिक वर्गीकरण को एतिहासिक वर्गीकरण भी कहा जाता है क्योंकि परिवारों का विकास क्रमशः हुआ है और भाषाओं के ऐतिहारसिक विकास को ध्यान में रखते हुए ही अनेक भाषाओं के मूल परिवार का निर्णय हो सका है।

ऐतिहासिक भाषाविज्ञान का प्रमुख विषय है भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण। इस विषय पर पिछले डेढ़-दो सौ वर्षों से काम किया जा रहा है और विश्व की भाषाओं को विभिन्न भाषा परिवारों में वर्गीकृत किया गया है। पारिवारिक वर्गीकरण पर विचार करने से पहले हमें भाषा परिवार की संकल्पना को समझना होगा।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

भाषाओं का वर्गीकरण मैं भाषा परिवार की संकल्पना : –

भाषा परिवार से तात्पर्य किसी सामान्य पूर्वज या प्राक् भाषा से निकली हुई तथा आनुवंशिक संबंध से जुड़ी हुई भाषाओं से है। इस आधार पर पारिवारिक वर्गीकरण को आनुवंशिक एवं ऐतिहासिक वर्गीकरण की संज्ञा भी दी जाती है।

विश्व की विभिन्न भाषाओं का तुलनात्मक पद्धति के आधार पर पारिवारिक वर्गीकरण किया गया है तथा विभिन्न भाषा परिवारों की स्थापना की गई है। जैसे भारत-यूरोपीय (भारोपीय) परिवार, द्रविड़ परिवार, चीनी परिवार, आस्ट्रेलियाई परिवार, अमरीकी परिवार आदि। भाषाविदों ने विश्व के 18 प्रमुख भाषा परिवारों का वर्णन किया है, जिनमें से भारोपीय भाषा परिवार का महत्व सबसे ज़्यादा है।

इसके कई कारण हैं – जनसंख्या की दृष्टि से इसके बोलनेवाले सर्वाधिक हैं और बहुत बड़े भूभाग में इस परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। इस परिवार से संबद्ध भाषाएँ युरोप तथा एशिया के काफ़ी बड़े भाग में बोली जाती हैं। साहित्यिक दृष्टि से भी इन भाषाओं का साहित्य उत्कृष्ट है। इस परिवार की भाषाओँ का सर्वाधिक अध्ययन हुआ है।

भाषाओं के बीच पारिवारिक संबंध को सांस्कृतिक संचरण के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। सभी भाषाओं में समय के साथ परिवर्तन होता है और अधिक समय बीतने पर अधिक परिवर्तन होता है। जब किसी भाषा का कई पीढ़ियों तक सांस्कृतिक संचरण होता रहता है तब उसमें काफ़ी परिवर्तन आ जाता है और वह मूल भाषा या प्राक् भाषा से काफी अलग हो जाती है। कभी-कभी तो उसका नाम भी अलग हो जाता है।

उदाहरण के लिए आइबेरिया प्रायद्वीप में बोली जानेवाली भारोपीय परिवार की भाषा लैटिन का स्वरूप बदलकर स्पेनिश हो गया। इसी प्रकार इंग्लैंड में प्राक्-जर्मैनिक विकसित होकर एंग्लो-सैक्सन अथवा अंग्रेज़ी बन गई।

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यदि हम स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, रोमानियाई भाषाओं की तुलना करें तो हम इन भाषाओं में एक प्रकार की “पारिवारिक समानता” पाते हैं। जर्मन और फ्रांसीसी भाषा की तुलना करते समय यह “पारिवारिक समानता” प्रकट नहीं होती। किंतु अंग्रेजी, डच, स्वीडिश या डेनिश, जर्मन की तुलना की जाए तो इन भाषाओं के बीच एक ‘’आनुवंशिक समानता” दिखाई देती है।

यही स्थिति हमें हिंदी, बांग्ला, असमिया, उड़िया. मराठी, गुजराती, पंजाबी आदि भाषाओं में भी मिलती है। यदि इन भाषाओं की तुलना करें तो हमें इनमें एक प्रकार की आनुवंशिक समानता मिलती है, ये सभी भाषाएँ आर्य भाषा परिवार से संबंध रखती हैं। किंतु यदि हम मराठी या बांग्ला या हिंदी की तुलना तेलुगु या तमिल से करें तो इनमें समानता नहीं मिलती क्योंकि ये भाषाएँ भिन्न परिवार की भाषाएँ हैं। मराठी, बांग्ला ओर हिंदी आर्य परिवार की भाषाएँ हैं तो तेलुगु और तमिल द्रविड़ परिवार की।

इस प्रकार हम पूर्वज भाषा से विकसित वंशज भाषाओं के बीच परिवारिक या आनुवंशिक संबंध की बात कर सकते हैं। पारिवारिक रूप से संबंधित भाषाओं के बीच संबंध गहरा या समीपस्थ अथवा दूरस्थ हो सकता है। संबद्धता की मात्रा (डिग्री) को वंश-वृक्ष के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। भाषा संबंधों को व्यक्त करने में वंश-वृक्ष बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पारिवारिक वर्गीकरण के लिए तुलनात्मक पद्धति का सहारा लिया जाता है। तुलनात्मक पद्धति संबंद्ध भाषाओं की तुलना करने की एक पद्धति है, जिसके अंतर्गत संबद्ध भाषाओं सें तुलनात्मक सामग्री के आधार पर भाषाओं के मूल रूप तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।

यहाँ तुलनात्मक सामग्री से तात्पर्य आधारभूत शब्दावली से है, जिसके अंतर्गत रिश्ते-नाते की शब्दावली (माता, पिता, भाई, बहन आदि), संख्यावाचक शब्द (एक, दो, तीन, चार आदि), सर्वनाम शब्दों (मैं, तुम, वह आदि) तथा आधारभूत क्रियाओं (आना, जाना, खाना, सोना, पीना आदि) को लिया जाता है, क्योंकि इस प्रकार के शब्दों में परिवर्तन अपेक्षाकृत बहुत कम होते हैं।

यदि इन शब्दों में साम्य मिलता है तो पारिवारिक रूप से संबद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी से संबंधित तुलनात्मक पुनर्रचना तथा आंतरिक पुनर्रचना के सिद्धांत भी हैं, जिनपर आगे चर्चा की जाएगी।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

पारिवारिक वर्गीकरण की संज्ञा :

जिस प्रकार से हमारे परिवार में कोई आदि पुरुष होता है। और फिर उसका शाखा-प्रशाखा होते चले जाता है, उसी तरह से ऐसा समझा जाता है कि जो भी भाषा आज हम वर्तमान में जानते हैं या जिसका अभी अस्तित्व है उस

सब का कोई आदि भाषा रहा होगा। इसी कारण से इस वर्गीकरण को ऐतिहासिक उत्पत्तिमूलक या वंशानुक्रमिक भी कहा जाता है।

भाषा का पारिवारिक वर्गीकरण का निर्णय करने में विद्वानों ने कुछ आधार निश्चित किए है, इससे पता चल जाता है कि कौन सी भाषा कौन से कुल से संबंध रखता हैं।

Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran

हालांकि इस बारे में भाषा विज्ञानियों का मत एक नहीं है, सबने अपने-अपने हिसाब से आधार बताए है। फिर भी सभी को समग्र रूप से देखने पर भाषा वर्गीकरण के निम्नलिखित चार आधार को लिया जा सकता है।  ऐसा इसीलिए क्योंकि सभी भाषा विज्ञानियों ने किसी न किसी रूप में इन तत्वों को अपनाया है।

किस आधार पर इन अनेक भाषाओं का वर्गीकरण हुआ? कौन-कौन सी भाषाएँ एक परिवार की हैं? इस सम्बन्ध में डॉ बाबूराम सक्सेना कहते हैं- “पारिवारिक सम्बन्ध के लिए प्रायः स्थानिक समीपता से विचार उठता है, शब्दों की समानता से विचार को पुष्टि मिलती है, व्याकरण-समय से विचार वादरूप हो जाता है और यदि ध्वनि साम्य भी निश्चित हो जाय तो सम्बन्ध पूरी तरह निश्चय कोटि को पहुँच जाता है। यदि व्याकरण साम्य न मिलता तो विचार, विचार कोटि से ऊपर नहीं उठ पाता।”

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

इसीलिए ज्यादातर रूप में पारिवारिक वर्गीकरण के लिए तुलनात्मक पद्धति का सहारा लिया जाता है। तुलनात्मक पद्धति संबंद्ध भाषाओं की तुलना करने की एक पद्धति है, जिसके अंतर्गत संबद्ध भाषाओं सें तुलनात्मक सामग्री के आधार पर भाषाओं के मूल रूप तक पहुँचने का प्रयास किया जाता है।

यहाँ तुलनात्मक सामग्री से तात्पर्य आधारभूत शब्दावली से है, जिसके अंतर्गत रिश्ते-नाते की शब्दावली (माता, पिता, भाई, बहन आदि), संख्यावाचक शब्द (एक, दो, तीन, चार आदि), सर्वनाम शब्दों (मैं, तुम, वह आदि) तथा आधारभूत क्रियाओं (आना, जाना, खाना, सोना, पीना आदि) को लिया जाता है, क्योंकि इस प्रकार के शब्दों में परिवर्तन अपेक्षाकृत बहुत कम होते हैं।

Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran

यदि इन शब्दों में साम्य मिलता है तो पारिवारिक रूप से संबद्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। इसी से संबंधित तुलनात्मक पुनर्रचना तथा आंतरिक पुनर्रचना के सिद्धांत भी हैं, जिनपर आगे चर्चा की जाएगी।

इसके बारे में डॉ. देवेन्द्र नाथ शर्मा लिखते हैं- “पारिवारिक वर्गीकरण अधोलिखित छः तत्त्वों पर आधारित है- ध्वनि, पद-रचना, वाक्य-रचना, अर्थ, शब्द-भण्डार तथा स्थानिक निकटता।”

परन्तु डॉ. भोलानाथ तिवारी दो आधारों की चर्चा करते हैं जिसमें भाषिक समानता और स्थानिक समानता तथा डॉ. शर्मा के प्रारम्भिक पाँच तत्त्व इनके ‘भाषिक समानता में ही अन्तर्भूत हो जाते हैं।

  1. भाषिक समानता
  2. स्थानिक समीपता

1. भाषिक समानता

भाषिक समानता  यह पाँच प्रकार की हो सकती है –

  • ध्वनि साम्य
  • शब्द समूह साम्य
  • रूप रचना साम्य
  • वाक्य रचना साम्य
  • अर्थ की समानता

A) ध्वनि साम्य –

ध्वनि की समानता में यह देखा जाता है कि दो या दो से अधिक। भाषाओं में कौन-सी ध्वनियाँ समान हैं? यही समान ध्वनियाँ उन भाषाओं को एक परिवार का होना प्रमाणित करती हैं। परन्तु यह भी देखना अवश्यक है कि ध्वनियों में असमानता क्यों है।

यह व्याकरण से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब दो भाषा एक दूसरे के निकट आता है और एक भाषा के शब्द में आता है, तब अपरिचित ध्वनि और संयुक्ताक्षर के स्थान पर उसी प्रकार के देशी ध्वनि और संयुक्ताक्षर आ जाता है। जैसे कि फ़ारसी का गरीब, कागज़ एवं सबूत आदि। अंग्रेजी के Signal, lantern, box के जगह पर क्रमशः सिंगनल, लालटेन, बक्सा।

इस प्रकार से स्थानिक समीपता, शब्द-साम्य, व्याकरण-साम्य तथा ध्वनि साम्य; ये चारो पारिवारिक वर्गीकरण का आधार है। इसमें व्याकरण पद रचना तथा वाक्य रचना साम्य का महत्व सर्वाधिक है तथा स्थानिक समीपता का महत्व सब से कम है। शब्द साम्य और ध्वनि साम्य से भाषा के पारिवारिक वर्गीकरण में अत्यधिक सहायता मिलती है।

 एक परिवार की भाषाओं में ध्वनि की आसमानता के निम्नलिखित तीन कारण हैं-

1. लोप- मूल भारोपीय भाषा के अनेक वर्ण यूरोपीय भाषाओं में प्राप्त नहीं होते हैं। जैसे संस्कृत में ‘ल’ का हिन्दी में लोप हो गया।

2. परिवर्तन – ध्वनि परिवर्तन के कारण संस्कृत की अनेक ध्वनियों का परिवर्तन पाया गया। जैसे-

संस्कृत         हिन्दी

क्वाथ           काढ़ा

सार्ध             साढ़े

शाटिका         साड़ी

कपर्दिका        कौड़ी आदि।

संस्कृत में ड़, ‘ढ’ ध्वनियाँ थी ही नहीं।

3. परस्पर प्रभाव- देखा गया कि एक भाषा के अधिक प्रभावी होने के कारण दूसरी भाषा में कुछ ऐसी ध्वनियों वाले शब्द आ जाते हैं, जो मूलतः उस भाषा के नहीं थे।

जैसे- हिन्दी में क, ख, ग, फु, आ आदि ।l

अतः मात्र ध्वनि की समानता इस प्रकार के निर्णय हेतु पर्याप्त नहीं है जब तक कि रूप, रचना तथा शब्द आदि अन्यों की समानता न हो।

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B) शब्द समूह साम्य –

शब्दों की समानता के आधार पर भी भाषाओं के परिवार का निर्णय करने में सहायता मिलती है। ध्यान यह रखना चाहिए कि उन शब्दों में समानता हो जो इन भाषाओं के अपने हों। जैसे-

संस्कृत       फारसी           ग्रीक                लैटिन             अंग्रेजी                  हिन्दी 

   पितृ          पिदर          Peter              Pater            Father                  पिता     

यह शब्द की समानता भी अनेक कारणों से हाती है-

एक परिवार भी भाषा होने के कारण- ऊपर पिता का उदाहरण दृष्ट्य है तथा सात का इस प्रकार हैं-

हिन्दी            संस्कृत         फारसी        ग्रीक       लैटिन           जर्मन              अंग्रेजी

सात               सप्त           हफ्त          Hepta           Septem         Sieben            Seven

2. ध्वनि परिवर्तन के समान हो जाने के कारण – इस प्रकार का एक यथासंभव उदाहरण भोजपुरी भाषा में प्रमुख मिलता हैं, जहां पे भोजपुरी भाषा मैं “नियर” (निकट) जो की अंग्रेजी के near तथा हिंदी “आम” (आम्र) तथा अरबी मैं वो “आम” आदि ध्वनि परिवर्तन के समान होने के कारण ही हुए हैं।

3. अन्य भाषाओं से आयतित होने के कारण – जैसे- अरबी शब्द इलाक, हिन्दी में इलाका तथा तमिल में इलाका है। इसी प्रकार अरबी शब्द शैतान, हिन्दी में शैतान, कन्नड़ में सैतान तथा तुर्की और मलयालम में चैतान । इसी प्रकार अंग्रेजी के अनेक शब्द हिन्दी में ज्यों का त्यों बोले या प्रयोग किए जाते हैं- स्कूल, कॉलेज, ग्लॉँस, रेडियो, टेलीविजन, रेल तथा हारमोनियम आदि। अरबी, फारसी के भी- फायदा, फैसला, जरा, बेवकूफ़ी आदि तथा तुर्की में कैंची आदि ।

4. संयोग के कारण- कई बार आकस्मिक संयोग से भी ध्वनि साम्य और अर्थ साम्य सम्भव है। जैसे- बिल्ली के लिए मिश्री, हिन्दी तथा चीनी में म्याऊँ।

C. रूप रचना साम्य –

रूप रचना पारिवारिक वर्गीकरण के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें प्रभाव की गुंजाइश कम होती है। जैसे- तर-प्रत्यय का जुड़ना एक परिवार का संकेत करता है-

संस्कृत      फारसी         अंग्रेजी        जर्मन

श्रेष्ठतर     Bedar          Better        Besser

यहाँ निर्णय में सर्वनाम रूप, क्रिया रूप, उपसर्ग तथा प्रत्यय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

इसस के अंतर्गत व्याकरणिक साम्यता को भी जगह दिया जा सकता हैं जो की नीचे वर्णित हैं।

व्याकरण साम्य – व्याकरण साम्य से आशय है – पद रचना तथा वाक्य रचना की समान शैली। अतः शब्द के समानता के ज्यादा महत्व व्याकरण साम्य का हैं।

इसका कारण ये है कि शब्द आदान-प्रदान होने पर भी संपर्क में आाने वाले किसी भाषा में व्याकरण साम्य नही होता है यानी कि उसके पद और वाक्य रचना शैली अपना ही रहता है।

उदाहरण के लिए मैथिली, हिन्दी या इसी कोटि के अन्यान्य भाषा में भरमार साम्य रहते हुए भी उस सब के वाक्य-रचना प्रायः अप्रभावित ही रहा है। अतः जहां शब्द समानता से किसी भाषा का एक होने की संभावना प्रकट होता है वहीं व्याकरण साम्य से उसी संभावना की पुष्टि हो जाती है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

D) वाक्य रचना साम्य – इस पर दूसरी भाषा का प्रभाव भी अधिक पड़ता है तथा परिवर्तन भी अधिक होता है, फिर भी मूल समानताएँ कुछ हद तक सुरक्षित रह जाती हैं। अन्यों की तृलना में यह भी पारिवारिक वर्गीकरण का प्रामाणिक आधार प्रस्तुत करता है।

E) अर्थ साम्य- अर्थ की समानता भी एक ही परिवार की भाषाओं में अनेक स्तरों पर प्राप्त होती हैं। अतः अर्थ की समानता भी पारिवारिक वर्गीकरण का उत्तम आधार है। समानता देखते समय अर्थ परिवर्तन को ध्यान में रखना अत्यावश्यक है।

जैसे-

पहले दो वाक्यों में

संस्कृत में वदन का अर्थ मुख है, और फारसी में बदन का अर्थ शरीर है।

यहाँ अर्थ की समानता नहीं है।

पर अभी के दो वाक्यों में

संस्कृत में मृग, और फारसी में मृग।

यहाँ अर्थ की समानता है।

अतः समस्त प्रभावों एवं परिवर्तनों पर विचार करते हुए भाषाओं के मध्य मूलभूत समानता की खोज होनी चाहिए। साथ ही मात्र एक आधार जैसे ध्वनि, रूप अथवा अर्थ के प्राप्त होने पर कभी भी एक परिवार की भाषा मान लेना उचित नहीं है। प्रयास यह होना चाहिए कि ध्वनि शब्द, रूप, वाक्य और अर्थ सभी स्तरों पर न्यूनाधिक रूप से समानता देखी जाय।

2. स्थानिक समीपता

सामान्यतः एक परिवार से सम्बद्ध भाषाएँ स्थान की दृष्टि से एक दूसरे के निकट होती हैं। जो आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती हैं उन भाषाओं की एक परिवार से सम्बद्ध होने की सम्भावना बढ़ जाती है। भारतीय भाषाओं में हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, बांग्ला, मराठी आदि।

इनमें स्थान समीपता पायी जाती है परन्तु स्थान समीपता ही पारिवारिक वर्गीकरण का एकमात्र आधार नहीं बन सकती। कुछ भाषाएँ तो निकट होते हुए भी एक परिवार की नहीं हैं। जैसे- मराठी और तेलगू या कन्नड़ और मराठी। इस प्रकार एकमात्र रूप मैं स्थान समीपता पारिवारिक वर्गीकरण का प्रामाणिक आधार प्रस्तुत नहीं करती। भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

पर कुछ भाषाएं ऐसे भी होते हैं जिनमे स्थानिक समीपता कुछ तरह से असर करते हैं, जैसे भारोपीय परिवार का मूल स्थान यूरोप मैं या एशिया-यूरोप की सीमा पर माना गया हैं, कारण यह हैं की उसके आसपास इसस परिवार की भाषाएं कुछ ज्यादा ही संख्याओं मैं पाया जाता हैं।

पर भारत देश के आसपास ऐसा नही हैं, जिससे भारत को मूल स्थान साधारणतः माना नही गया हैं। और शायद इसी कारण  के लिया भाषाओं को पारिवारिक वर्गीकरण के लिए ईकमात्र आधार नही माना गया हैं, क्योंकी संसार मैं जितन्ने भी भासाओं के पारिवार मौजूद हैं उनमे से कभी कभी एकाधिक परिवारों के भाषाओं मैं स्थानीय समीपता मिलता हैं, जिससे एक परिवार के ना होते हुए भी वे सब एक जैसे मालूम पड़ते हैं, पर यह पारिवारिक वर्गीकरण के नियमों के अनुसार गलत ठहराया जाता सकता हैं।

ऊपर पारिवारिक वर्गीकरण के आधारों पर विस्तृत चर्चा की गई है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि अच्छी तरह तुलनात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन के उपरांत ही इस सम्बन्ध में निश्चित निर्णय दिया जा सकता है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

विश्व के भाषा-परिवार का संक्षिप्त परिचय:

हालांकि अभी तक विश्व के बहुत सारे भाषा का अध्ययन ठीक-ठीक नहीं हो पाया है फिर भी जिन भाषाओं का अध्ययन हो चुका है उसके पारिवारिक समानता के अध्ययन पर विद्वानों ने भाषा को विभिन्न वर्ग में वर्गीकृत किया है। हालांकि विद्वानों का इस मामले मैं मत एक नहीं है।

फिर भी अगर प्रचलित मत की बात करें तो विद्वानों ने सम्पूर्ण भाषा को भौगोलिक आधार पर पहले चार खंड में विभाजित किया है, जो कि कुछ इस तरह है;

  1. यूरेशिया खंड
  2. अफ्रीका खंड
  3. प्रशांत महासागर खंड
  4. अमेरिकी खंड

भाषा का पारिवारिक वर्गीकरण की बात करें तो इस मामले में भी एक मत नहीं है कुछ भाषा विद्वान भाषाओं को 250 परिवार में वर्गीकृत किया है तो कुछ विद्वान ने 18 परिवारों में। किसी किसी पुस्तक में यह 10 परिवार या फिर 12 परिवार तथा भिन्न भिन्न आलोचकों के मतों के अनुसार अन्य परिवारों को भी महत्व दिया जाता हैं, पर हम यहाँ पर समुदाय18 परिवारों वाले वर्गीकरण पर ही चर्चा करने वाले है क्योंकि ये लगभग सभी भाषा को अपने अंदर समेट लेता है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

ये 18 भाषा परिवार कुछ इस प्रकार हैं;

  1. भारोपीय परिवार (Indo-European family)
  2. द्रविड परिवार (Dravidian famiy)
  3. बुरुशास्की परिवार (Burushaski Family)
  4. युराल-अल्टाइ परिवार (Ural-Altai famiy)
  5. काकेशी परिवार  (Caucasian Languages)
  6. चीनी परिवार (chinese family)
  7. अत्युत्तरी परिवार (हाइपर बोरी परिवार) (Paleo-Asiatic Languages)
  8. जापानी-कोरियाई परिवार (Japanese-Korean family)
  9. बास्क परिवार (Basque family)
  10. सामी-हामी परिवार (Semitic-Hamitic famiy)
  11. सुडानी परिवार (Sudanese famiy)
  12. बाँटू परिवार (Bantu famiy)
  13. होतेन्तोत बुशमैन परिवार (Bushman famly)
  14. मलय-पोलिनेशियाई परिवार (Malayo-Polynesian family)
  15. दक्षिण पूर्व परिवार (Austroasiatic languages)
  16. पापुई परिवार (papuan family)
  17. ऑस्ट्रेलियाई परिवार (australian family)
  18. अमेरिकी परिवार (american famiy)

अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से कुछ विद्वान इन 18 भाषा परिवारों को भौगोलिक आधार पर किए गए खंड मैं समाहित करते हैं। ऐसा करने पर हमें इसका और भी सरल रूप प्राप्त होता है; जो कि कुछ इस प्रकार होता है –

1. यूरेशिया खंड – इसके अंतर्गत उपरोक्त क्रम संख्या 1 से लेकर 10 तक परिवार को रखा जाता है।

2. अफ्रीका खंड – इसके अंतर्गत 10 से लेकर 13 तक परिवार को रखा जाता है। यहाँ पर ये याद रखिए कि सामी-हामी परिवार अफ्रीका और एशिया दोनों में आता है इसीलिए इसे दोनों के अंतर्गत रखा जाता है।

3. प्रशांत महासागरीय खंड – इसके अंतर्गत 14 से लेकर 17 तक के परिवार को रखा जाता है।

4. अमेरिकी खंड – इस खंड में 18वें परिवार को रखा जाता है।

1. यूरेशिया खंड

ये खंड विश्व के सबसे सम्पन्न भाषा खंड के अंतर्गत आता है। इसीलिए इस भाषा परिवार में विश्व के विकास प्राप्त जाति सब के सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास लेखबद्ध प्राप्त होता

  • भारोपीय परिवार (Indo-European family) –

इस परिवार को बहुत सारे नाम दिये गए हैं जैसे कि भारत-जर्मेंनीक परिवार, संस्कृत परिवार, आर्य परिवार, भारोपीय परिवार। इस सब में भारोपीय परिवार निर्विवाद रू्प से माना जाता है।

भारोपीय भाषाएं पश्चिमी और दक्षिणी यूरेशिया के मूल निवासी भाषा परिवार हैं। इसमें उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप और ईरानी पठार के साथ-साथ यूरोप की अधिकांश भाषाएँ शामिल हैं।

इस परिवार की कुछ यूरोपीय भाषाएं, जैसे अंग्रेजी, फ्रेंच, पुर्तगाली, रूसी, डेनिश, डच और स्पेनिश, आधुनिक काल में उपनिवेशवाद के माध्यम से विस्तारित हुई हैं और अब कई महाद्वीपों में बोली जाती हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

भारोपीय परिवार कई शाखाओं या उप-परिवारों में विभाजित है, जिनमें से आठ समूह हैं जिनकी भाषाएं आज भी जीवित हैं: अल्बानियाई, अर्मेनियाई, बाल्टो-स्लाविक, सेल्टिक, जर्मनिक, हेलेनिक, इंडो -ईरानी और इटैलिक;

आज, सबसे अधिक आबादी वाली व्यक्तिगत भाषाएं अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, स्पेनिश, बंगाली, प्रेंच, रूसी, पुर्तगाली, जर्मन, फ़ारसी और पंजाबी हैं, जिनमें से प्रत्येक में 100 मिलियन से अधिक वक्ता हैं। कई अन्य भारोपीय भाषाएं छोटी हैं और विलुप्त होने के खतरे में हैं।

कुल मिलाकर, दुनिया की आबादी का 46 प्रतिशत (3.2 अरब) पहली भाषा के रूप में एक इंडो-यूरोपीय भाषा बोलता है, जो अब तक किसी भी भाषा परिवार में सबसे ज्यादा है। एथनोलॉग के अनुमान के अनुसार, लगभग 445 जीवित इंडो-यूरोपीय भाषाएं हैं, जिनमें से दो-तिहाई (313) भारत- ईरानी शाखा से संबंधित हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

भारोपीय परिवार के अन्य नाम हैं- इण्डो-जर्मनिक, भारत-हित्ती परिवार, आर्य परिवार। ध्वनि के आधार पर भारोपीय परिवार की दस शाखाओं को ‘शतम (सतम) और ‘केन्तुम’ दो वगों में बाँटा जाता है-सतम वर्ग की भाषाएँ: 1. भारत-ईरानी (आर्य), 2. बाल्टो स्लाविक, 3. अ्मींनी और 4. अल्बानी (इलीरियन)।केतुम वर्गः 1. जमंनिक (ट्यूटॉनिक), 2. केल्टिक, 3. ग्रीक 4. तोखरी, 5. हिटाइट और 6. इटालिक।

भारत में आदिवासियों द्वारा भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएँ हिन्दी भाषी प्रदेशों में विशेष रूप से बोली जाती हैं। हिन्दी भाषा-भाषी क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य भारोपीय भाषाओं के क्षेत्र गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं। यहाँ पर पाये जाने वाले आदिवासी भी भारोपीय परिवार की ही भाषाएँ बोलते हैं।

आदिवासी भाषाओं में भारोपीय भाषा परिवार की सबसे अधिक व्यवहृत भाषा ‘भीली’ है, जो मुख्य रूप से भीलों और उसके उपवर्गों द्वारा तो व्यवहार में लाई ही जाती है, पर भील क्षेत्र के गैर आदिवासी भी इसका प्रयोग करते हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • सेमेटिक अथवा सामी-हामी परिवार –

ये परिवार सामी (सेमेटिक) और हामी (हेमेटिक) के योग से बना है। सेम और हेम दो भाई थे, ये दोनों भाई नोह (noah) के पुत्र थे। अरब, सीरिया आदि के लोग सेम को अपना आदि पुरुष मानते हैं। जबकि मिस्र एवं इथियोपिया आदि के लोग हेम को अपना आदि पुरुष मानते हैं।

सामी शाखा का प्राचीन भाषा अक्कादी है। इसके अलावा आमेंनियन, हिब्रू तथा अरबी भाषा इसी शाखा के अंतर्गत आता है। अरब, ईरान, इस्राइल, सीरिया, मिस्त् आदि आदि देश में इस भाषा को बोला जाता है। हामी शाखा के अंतर्गत प्राचीन मिस्री तथा बार्बर भाषा आता है। वैसे ये मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम एशिया का भाषा है, और ये पश्निेम में मोरक्को तक बोला जाता है।

सामी-हामी (अथवा अफ़्रो-एशियाई) भाषा-परिवार मध्य-पूर्व (एशिया) और उत्तरी अफ़्रीका की कई सम्बन्धित भाषाओं का समूह है। इस परिवार की सामी शाखा साउदी अरब, फ़िलिस्तीन, इस्राइल, इराक़, सीरिया (शाम), मिस्र, यार्दन, इथियोपिया, तुनीसिया, अल्जीरिया, मोरोक्को, इत्यादि में और हामी शाखा लीबिया, सोमालीलैंड, मिस्र और इथियोपिया में फ़ैली हुई हैं। इसकी शामी शाखा में इब्रानी, अरबी, अरामी, प्राचीन सुमेरियाई शामिल हैं और हामी शाखा में प्राचीन मिस्री, कॉप्टिक, सोमाली, गल्ला, नामा, आदि भाषाएँ आती हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • द्रविड़ परिवार (Dravidian family) –

द्रविड भाषाएं 220 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का एक परिवार है, जो कि मुख्य रूप से दक्षिण भारत और उत्तर -पूर्व श्रीलंका में एवं दक्षिण एशिया में कहीं जगहों पर बोली जाती हैं।

औपनिवेशिक युग के बाद से, मॉरीशस, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फरांस, कनाडा, जर्मनी, दक्षिण अपफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर छोटे लेकिन महत्वपूर्ण अप्रवासी समुदाय रहे हैं।

द्रविड भाषाओं को पहली बार दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में तमिल-ब्राह्मी लिपि के रूप में तमिलनाडु के मदुरै और तिरुनेलवेली जिलों में गुफा की दीवारों पर अंकित किया गया हैं।

सबसे अधिक बोलने वाली द्रविड भाषाएँ (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें से सभी की लंबी साहित्यिक परंपराएँ हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ तुलु और कोडवा हैं। कई द्रविड़ भाषी अनुसूचित जनजातियाँ भी हैं, जैसे पूर्वीं भारत में कुरख और मध्य भारत में गोंंडी।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

इस परिवार के भाषा को दक्षिण भारत सहित उत्तरी श्रीलंका, बलूचिस्तान, मध्य भारत आदि में बोला जाता है। इसके अंतर्गत तमिल, टेलगु, कन्नड, मलयालम, गोंडी, कोंकण, कोलामी और ब्रहई आदि भाषा आता है।

द्रविड़ भाषा परिवार को पहली बार 1816 में एक स्वतंत्र परिवार के रूप में मान्यता दी गई थी। द्रविड़ शब्द का परिचय रॉबर्ट ए. कैलडवेल ने अपनी पुस्तक द्रविड़ या दक्षिण भारतीय भाषा परिवार के तुलनात्मक व्याकरण (1856) में दिया था।

द्रविड़ भाषाएँ लगभग 70-80 अलग-अलग भाषाओं का एक परिवार है, जिसने भारत के भीतर और बाहर अन्य भाषाओं की उत्पत्ति और निर्माण को बहुत प्रभावित किया है। चार प्रमुख द्रविड़ भाषाएँ दक्षिणी भारत में पाई जाती हैं। ये तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम हैं। इन चारों में से तेलुगु दुनिया में सबसे ज़्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण - अधिक जानकारी के लिए द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Language Family)

  • काकेशी परिवार (caucasus family) –

 इसका नाम भौगोलिक आधार पर आधारित है। यूरोप के पूर्व में कैस्पियनसागर एवं काला सागर के 40′ उत्तरी अक्षांश से 45 डिग्री अक्षांश मध्यवर्तीं काकेशी पर्वत भू-भाग के भाषा इसी पर्वत के नाम पर पड़ा है। इसकी प्रमुख भाषा उत्तरी काकेशी एवं दक्षिणी काकेशी के अंतर्गत आता है। उत्तरी काकेशी में सिर कैसियन, किस्तिमन, लेस्यियन एवं दक्षिणी काकेशी में जात्तीयन, सुकईयन, मियोलियान आदि आता है।

काकेशियन भाषाओं में काकेशस पर्वत में और उसके आसपास दस मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की एक बड़ी और अत्यंत विविध श्रेणी शामिल है। इसका अपना लिपि है।

पूर्वोत्तर कोकेशियान , जिसे नख-दागेस्तानियन या कैस्पियन परिवार भी कहा जाता है, के कुल 4.3 मिलियन वक्ता हैं। इसमें लगभग 1.7 मिलियन वक्ताओं वाली चेचन भाषा , 1 मिलियन वक्ताओं वाली अवार भाषा , 500,000 वक्ताओं वाली इंगुश भाषा , 800,000 वक्ताओं वाली लेज़्जियन भाषा और अन्य शामिल हैं।

कोकेशियाई भाषाएँ ग्रेटर काकेशस रेंज के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्र में पाई जाती हैं; विभिन्न वर्गीकरणों के अनुसार उनकी संख्या 30 से 40 तक होती है। इतने छोटे क्षेत्र में इतनी सारी भाषाओं का जमावड़ा वाकई उल्लेखनीय है। कोकेशियाई भाषाओं के लगभग 8 मिलियन वक्ता हैं; उनके भाषाई समुदाय का आकार कुछ सौ लोगों से लेकर लाखों लोगों के बड़े राष्ट्रीय समूहों तक है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • यूराल-अल्टाइक परिवार (Ural-Altic family) –

 यह भी एक भौगोलिक नामकरण है। इस परिवार के भाषा को दक्षिणी फ़िनलैंड, उत्तरी फ़नलैंड, उत्तरी नो्वे, हंगरी, अस्तोनिया, साइबेरिया, तु्कीं, किरगीज, मंगोलिया, अजरबेजान, उज्बेकिस्तान, मंचूरिया आदि स्थान पर बोला जाता है। क्षेत्र विस्तार की दृष्टि से भारोपीय भाषा परिवार के बाद दूसरे स्थान पर आता है। इस परिवार में एस्टोनी, हंगेरियन, समोयद, याकूत, फिनो-उग्री, तुर्की, आदि अनेक भाषा आता है।

  • बुरुशस्की परिवार (Bushsky Family) –

इसे खजुना परिवार के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान इस परिवार को मुंडा एवं द्रविड़ परिवार से सम्बद्ध मानते हैं। इसका मुख्यकारण ये है कि इसके तहत आने वाला भाषा उपर्युक्त परिवार से घिरा होता है।

बुरुशस्की एक भाषा है जो पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र के उत्तरी भागों में बुरुशो समुदाय द्वारा बोली जाती है। यह एक भाषा वियोजक है, यानि विश्व की किसी भी अन्य भाषा से कोई ज्ञात जातीय सम्बन्ध नहीं रखती और अपने भाषा-परिवार की एकमात्र ज्ञात भाषा है।

सन् २००० में इसे हुन्ज़ा-नगर ज़िले, गिलगित ज़िले के उत्तरी भाग और ग़िज़र ज़िले की यासीन व इश्कोमन घाटियों में लगभग ८७,००० लोग बोलते थे। इसे जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगर क्षेत्र में भी लगभग ३०० लोग बोलते हैं।भारत में बुरुशस्की के अलावा केवल मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के सीमावर्ती बुलढाणा क्षेत्र की निहाली भाषा ही दूसरी ज्ञात भाषा वियोजक है।

इसका क्षेत्र भारत के उत्तर पश्चिम कश्मीर (गिलगित- बाल्टिस्तान) में पसरा हुआ है। कहा जाता है कि यह भाषा परिवार खत्म होने के कगार पर है क्योंकि मुश्किल से कुछ सौ लोग ही इसे जानते हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • चीनी या एकाक्षरी परिवार (Chinese or monosyllabic family) –

 सिनो-तिब्बती (एसटी) दुनिया के सबसे बड़े भाषा परिवारों में से एक है, जिसमें इंडो-यूरोपियन से भी ज़्यादा प्रथम-भाषा बोलने वाले हैं। सिनिटिक (चीनी बोलियाँ) के 1.1 बिलियन से ज़्यादा वक्ता दुनिया के सबसे बड़े भाषण समुदाय का गठन करते हैं। एसटी में सिनिटिक और तिब्बती-बर्मी दोनों भाषाएँ शामिल हैं।

इस भाषा का क्षेत्र चीन, बर्मा आदि है। इस परिवार के तहत चीनी भाषा प्रमुख है। लगभग 30 भाषा इस परिवार के अंतर्गत बोला जाता है। श्यामी, थाईलैंड में बोली जाती है। बर्मी, बर्मा में और तिब्बती, तिब्बत में। इन भाषाओं की ख़ासियत ये है कि नाक से ज़्यादा ध्वनि निकाली जाती है।

  • अत्युत्तरी परिवार (हाइपरबोरी परिवार) –

साइबेरिया के उत्तरी एवं पूर्वी भागों में इस परिवार की भाषाएं बोली जाती है। युकगिर, कमचटका, चूकची एवं एनू आदि यहाँ की प्रमुख भाषाएं है।

इसे हाइपरबोरी परिवार इसीलिए कहा जाता है क्योंकि हाइपर का मतलब होता है ‘अत्यंत’ एवं बोरी का मतलब ‘उत्तरी’ अर्थात सबसे उत्तरी भाषा।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • जापानी-कोरियाई परिवार (Japanese-Korean family) –

जापान और कोरियाई प्रायद्वीप पर बोली जाने वाली भाषा को इसके तहत रखा जाता है। इस परिवार के तहत मुख्य रूप से दो भाषा आता है जिसे कि ‘कोरियन (Korean) और (Japanese) भाषा के नाम से जाना जाता हैं।

जापानी भाषा जहां एक पृथक भाषा (अर्थात, किसी अन्य भाषा से असंबंधित भाषा) और दुनिया की प्रमुख भाषाओं में से एक है, जिसके 21वीं सदी की शुरुआत में 127 मिलियन से अधिक वक्ता थे।

वहीं कोरियाई, जिसे भाषा में कुगो के नाम से जाना जाता है, पूर्वोत्तर एशिया में कोरियाई प्रायद्वीप की भाषा है। डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके, या उत्तर कोरिया) में 20 मिलियन वक्ता हैं और कोरिया गणराज्य (आरओके, या दक्षिण कोरिया) में 42 मिलियन वक्ता हैं। कोरियाई भाषा चीन में भी लगभग 2 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती है, मुख्य रूप से उत्तर कोरिया की सीमा से लगे प्रांतों में।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

  • बास्क परिवार (Basque family) –

फ्रंस और स्पेन की सीमा पर मुख्य रूप से पेरिनीज़ पर्वत के पश्चिमी भाग में इस परिवार के भाषा को बोला जाता है। मुख्य रूप से 7 बोलियाँ इसमें प्रचलित है जो कि लगभग 2 लाख लोगों द्वारा बोली जाती है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग तीन मिलियन की कुल आबादी में से लगभग 900,000 लोग बास्क बोलते हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

2. अफ्रीका खंड

  • सूडानी परिवार (sudanese family) –

इस परिवार की भाषाएं आमतौर पर भूमध्य रेखा के उत्तर में पूर्व से पश्चिम तक बोली जाती है। इस परिवार के तहत लगभग 435 भाषाएं आती है। जिसमें से वुले, मन-फू, कनेरी, निलोटिक एवं हीसा इत्यादि प्रमुख भाषाएं है।

सूडान देश तथा दक्षिणी सूडान के संविधान में अरबी को आधिकारिक दर्जा दिया गया है और यह अफ्रीकी देश में प्रमुख भाषा है। भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से एक बोली में किया जाता है जिसका नाम है सूडानी अरबी। इस बोली को एफ्रो-एशियाई परिवार में वर्गीकृत किया गया है और यह मिस्र की अरबी से अलग है। सूडानी अरबी में हेजाज़ी अरबी के साथ समानताएँ हैं। सूडान में बोली जाने वाली अरबी में क्षेत्र के अनुसार उल्लेखनीय अंतर हैं।

  • बाँटू परिवार (Bantu family) –

इस परिवार की भाषाएं आमतौर पर भूमध्य रेखा के दक्षिण में दक्षिण अफ्रीका के अधिकांश भागों में एवं जंजीबार द्वीप पर बोली जाती है।

इस परिवार के तहत लगभग 150 भाषाएं आती है। जिसमें से जूलु, स्वाहिली, काफिर, सेसुतो एवं कांगो इत्यादि प्रमुख भाषाएं है।

  • होतेन्तोत-बुशमैनी परिवार (Hottentot-Bushman family) –

इस परिवार की भाषाएं दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका में ऑरेंज नदी से नागामी झील तक बोली जाती है। सान, होतेन्तोत, दमारा एवं संदवे इत्यादि इस भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं है।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

3. प्रशांत महासागरीय खंड

  • मलय-पोलिनेशियाई परिवार (Malay-Polynesian family) –

पश्चिम में अपफ्रीका के मेडागास्कर द्वीप से लेकर पूर्व में ईस्टर द्दीप तक एवं उत्तर में फ़रमोसा से लेकर दक्षिण में न्यूजीलैंड तक इस परिवार की भाषाएं बोली जाती है।

इसमें इन्डोनेशिया के सुमात्रा, जावा एवं बोर्नियो द्वीप भी सम्मिलित है। मुख्य रूप से इस परिवार के तहत द्वीपीय देश आते हैं। मलय, जावी, फारमोसी, फिजियन, माओरी, हवाइयन एवं टोंगन आदि इस परिवार की प्रमुख भाषाएं है।

  • दक्षिण पूर्व परिवार या आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार –

भारत के उत्तरी पहाड़ी भाग एवं मध्य-प्रदेश एवं ओड़ीसा के कुछ भाग तथा पूर्व में थाईलैंड, कंबोडिया एवं अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह पर इस परिवार की भाषाएं बोली जाती है। मुंडा, मोन-ख्मेर, मुआङ्ग एवं निकोबारी इस परिवार की प्रमुख भाषाएं है।

  • पापुई परिवार (papui family) –

यह भाषा परिवार बहुत ही छोटा है एवं मुख्य रूप से मध्य न्यू गिनी एवं सोलोमन द्वीप आदि पर बोला जाता है। मफोर इस परिवार की प्रमुख भाषा है।

  • ऑस्ट्रेलियाई परिवार (australian family) –

सम्पूर्ण ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप एवं तस्मानिया में इस परिवार की भाषाएं बोली जाती है। मैक्वारी एवं कामिलरोई इस परिवार की प्रमुख भाषाएं है।

यहाँ के मूल निवासी इस भाषा को बोलते हैं जो कि अंग्रेजी भाषा के व्यपाक चलन के कारण लगभग सिमट सा गया है। और 80 हज़ार से भी कम लोग अब इस भाषा को बोलते हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

4. अमेरिकी खंड

अमेरिकी खंड के तहत एक ही भाषा परिवार आता है वो है।

  • अमेरिकी भाषा परिवार (american family) –

इसके तहत सम्पूर्ण उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिणी अमेरिका आ जाता है। वैसे तो यहाँ आमतौर पर इंग्लिश का ही बोलबाला है, लेकिन फिर भी कई अन्य भाषाएं है इस परिवार में जो आज भी कमोबेश बोली जाती है।

अमेरिका की मूल भाषाएँ वे भाषाएँ हैं जो गैर-मूल लोगों के आने से पहले अमेरिका के मूल लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं । इनमें से एक हज़ार से ज़्यादा भाषाएँ आज भी इस्तेमाल की जाती हैं, जबकि कई और अब विलुप्त हो चुकी हैं ।

अमेरिका की मूल भाषाएँ सभी एक-दूसरे से संबंधित नहीं हैं ; इसके बजाय, उन्हें सौ या उससे ज़्यादा भाषा परिवारों (बड़ी संख्या में भाषा अलगावों सहित ) में वर्गीकृत किया गया है, साथ ही कई विलुप्त भाषाएँ भी हैं जो उनके बारे में जानकारी की कमी के कारण अवर्गीकृत हैं।

अथपस्कन, अज़तेक, मय, करीव, कुईचुआ एवं अरवक इस भाषा परिवार की प्रमुख भाषाएं है। इनमें से बहुत सारी भाषाओं को बोलने वाले की संख्या महज़ कुछ हज़ार रह गई हैं।

भाषाओं का पारिवारिक वर्गीकरण

अकसार पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):-

विश्व की समस्त भाषाओं को कितने भाषा परिवार में बांटा?

आपस में सम्बंधित भाषाओं को भाषा-परिवार कहते हैं। कौन भाषाएँ किस परिवार में आती हैं, इनके लिये वैज्ञानिक आधार हैं। इस समय संसार की भाषाओं की तीन अवस्थाएँ हैं।

कुल कितने भाषा परिवार हैं?

भारत में कितने प्रकार की भाषा बोली जाती है? भाषाशास्त्र के अनुसार भारत में 4 भाषा परिवार की भाषाएं बोली जाती हैं । उर्दू , असमिया, गुजराती, डोगरी, उड़िया,पंजाबी, मैथिली,भोजपुरी ,मगही ,गढ़वाली, कोंकणी आदि शामिल हैं । इसके बोलने वालों की संख्या 73 % है।

भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण का आधार क्या है?

भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण का अर्थ है – विश्व की भाषाओं को परिवार में बाँटना। सन्दर्भ पंक्ति – भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण का अर्थ है विश्व की भाषाओं को परिवार में बाँटना। जैसे एक माता-पिता से उत्पन्न व्यक्ति एक ही परिवार के कहें जाते हैं, उसी प्रकार एक-भाषा से निकली हुई बोलियाँ भी, एक परिवार की ही कहलाती हैं।


भाषा का वर्गीकरण कितने प्रकार के होते हैं?

भाषाविज्ञान में भाषाओं के वर्गीकरण के दो प्रकार हैं: आनुवंशिक (या वंशावली) और टाइपोलॉजिकल। आनुवंशिक वर्गीकरण का उद्देश्य भाषाओं को उनके ऐतिहासिक संबंधों की डिग्री के अनुसार परिवारों में समूहित करना है।

भाषाओं के परिवार से आप क्या समझते हैं?

भाषा परिवार उन भाषाओं का समूह है जो सभी एक ही पूर्वज से उत्पन्न हुई हैं। एक भाषा परिवार के भीतर की भाषाएँ शब्दावली और व्याकरण में कई समानताएँ साझा करती हैं। एक भाषा परिवार के भीतर कुछ निकट-संबंधित भाषाएँ परस्पर समझने योग्य भी होती हैं।

भाषा परिवार से आप क्या समझते हैं?

भाषा परिवार उन भाषाओं का समूह है जो सभी एक ही पूर्वज से उत्पन्न हुई हैं। एक भाषा परिवार के भीतर की भाषाएँ शब्दावली और व्याकरण में कई समानताएँ साझा करती हैं। एक भाषा परिवार के भीतर कुछ निकट-संबंधित भाषाएँ परस्पर समझने योग्य भी होती हैं।

भारत में सबसे बड़ा भाषाई परिवार कौन सा है?

भारत में सबसे बड़ा भाषाई परिवार हिन्द आर्य भाषा परिवार हैं।

भारत में कितने भाषा परिवार हैं?

दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषाएँ कम से कम चार प्रमुख भाषा परिवारों से संबंधित हैं: इंडो-यूरोपियन (जिनमें से अधिकांश इसकी उप-शाखा इंडो-आर्यन से संबंधित हैं), द्रविड़ियन, ऑस्ट्रो-एशियाटिक और सिनो-तिब्बती।

अंतिम कुछ शब्द :-

दोस्तों मै आशा करता हूँ आपको ” भाषाओं का वर्गीकरण (पारिवारिक) Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran ” Blog पसंद आया होगा अगर आपको मेरा ये Blog पसंद आया हो तो अपने दोस्तों और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे अन्य लोगो को भी इसकी जानकारी दे। यह Blog Post मुख्य रूप से अध्यायनकारों के लिए तैयार किया गया है, हालांकि सभी लोग इसे पढ़कर ज्ञान आरोहण कर सकते है।

अगर आपको लगता है की हमसे पोस्ट मैं कुछ गलती हुई है या फिर आपकी कोई प्रतिकिर्याएँ हे तो हमे आप About Us में जाकर ईमेल कर सकते है। जल्दी ही आपसे एक नए ब्लॉग के साथ मुलाकात होगी तब तक के मेरे ब्लॉग पर बने रहने के लिए ”धन्यवाद”।

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इसस ब्लॉग पोस्ट के बीबरण का स्रोत :-
1. भाषा विज्ञान (डॉ भोलानाथ तिवारी)
2. Wonderhindi के ब्लॉगपोस्ट्स
3. भाषा विज्ञान DDE MD University [Text Book]
4. Reference of Wikipedia page

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