द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Language Family)

द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Language Family) :-

द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Language Family) :- भाषा परिवार उन भाषाओं का एक समूह है जो एक दूसरे के साथ आपस में संबंधित हैं, और एक सामान्य पूर्वज भाषा से निकली हैं जो अब मूल रूप में नहीं बोली जाती है।

जिस तरह से मूल प्रोटो (पूर्वज) भाषा विभाजित हो गई, प्रत्येक ‘बोली’ अपनी-अपनी भाषाओं में विकसित हुई, वह एक टैक्सोनोमिक (यहां पर भाषाई जटिल संरचना) पेड़ के समान है कि प्रजातियां कैसे अलग होती हैं और एक सामान्य पूर्वज से अलग हो जाती हैं।

भाषाओं के द्रविड़ परिवार में वे भाषाएँ शामिल हैं जो ज्यादातर दक्षिण एशिया के दक्षिणी भाग की मूल निवासी हैं, लेकिन कुछ (विशेष रूप से ब्राहुई) इसके बाहर भी बोली जाती हैं। भारोपीय परिवार के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा भाषा परिवार द्रविड़ कुल का है, जिसकी मुख्य भाषाएँ तमिल, तेलुगु मलयालम और कन्नड़ हैं।

इन चारों भाषाओं में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में पाए जाते है, जिससे काफी हद तक यह सारे भाषाएं या फिर कहा जा सकता हैं की उपभाषाएं संस्कृत भाषा से ही निकली है तथा अभी के समय में अपना एक बड़ा वर्चस्व प्रतिष्ठा कर चुकी हैं।

अत: ये भी भारत की अन्य भाषाओं से दूर ही नही रहें हैं। पर मुख्य भाषाओं के साथ साथ भी  इसमें बिना किसी विशेष क्रम के अन्य उपभाषाएं जैसे  तुलु, गोंडी, ब्राहुई, कोडवा, कुरुख और कई अन्य भाषाएँ शामिल हैं। तेलुगु भाषा सबसे अधिक देशी वक्ताओं वाली भाषा है जबकि तमिल सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, उदाहरण के लिए मलेशिया और सिंगापुर में इसके बोलने वाले लोग हैं।

द्रविड़ भाषाओं के बोलियों के ज्यादातर लगभग 26 भाषाएं दक्षिणी भारत और श्रीलंका में द्रविड़ी समूह में बोली जाती हैं। ये लगभग सारे अन्त-अश्लिष्ट- योगात्मक भाषाएँ हैं। द्रविड भाषा परिवार के भी सबसे अधिक वक्ता भारत में ही हैं। dravidian language family

भारत में कई लोगों की लोक भाषाई मान्यता के विपरीत, भाषाओं का द्रविड़ परिवार इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित नहीं है, जिसमें संस्कृत, हिंदी-उर्दू, बंगाली सहित दक्षिण एशिया के उत्तरी भाग में बोली जाने वाली अधिकांश भाषाएँ शामिल हैं।

भाषाओं का वर्गीकरण (आकृतिमूलक) Bhasha Ka Vargikaran

गुजराती, पंजाबी, सिंधी, कश्मीरी, उड़िया, असमिया, मराठी, आदि, आदि। जबकि संस्कृत का द्रविड़ भाषाओं (विशेष रूप से मलयालम) पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, मणिप्रवलम वास्तव में केवल संस्कृत और द्रविड़ का संयोजन नहीं है। संस्कृत प्रभाव वाली द्रविड़ियन), यदि आप इसे वंशावली परिप्रेक्ष्य से देखें तो अपने मूल में द्रविड़ भाषाएं संस्कृत से पूरी तरह से असंबंधित हैं। dravidian language family

इसके अलावा अशिक्षित तमिल राष्ट्रवादियों की धारणा के विपरीत, द्रविड़ भाषाएँ भी तमिल (पुरानी या मध्य या नई) से उत्पन्न नहीं हुई हैं। तमिल प्रोटो-द्रविड़ियन (सभी द्रविड़ भाषाओं का परिकल्पित सामान्य पूर्वज) का ही वंशज है, जैसा कि अन्य सभी हैं।

आगे इस भाषा के वक्ताओं के बारे में अच्छे तथा विस्तार से आलोचना किया गया हैं।

द्रविड़ भाषा परिवार
द्रविड़ भाषा परिवार (CREDIT TO – Languagesgulper and Google)

भाषाओं का वर्गीकरण (पारिवारिक) Bhasha Ka Parivaarik Vargikaran

द्रविड़ भाषा परिवार की पृष्ठभूमि और इतिहास:-

द्रविड़ भाषा परिवार, लगभग 70 भाषाओं का परिवार है, जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में बोली जाती हैं। द्रविड़ भाषाएं मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में लगभग 25 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती हैं। इसमें से भी सबसे अधिक बोली जाने वाली द्रविड़ भाषाएँ तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं, जो कि क्रमशः आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में बोली जाती है।

इसके अलावा एक और सर्वे के दौरान यह संख्या भी सामने आया है की भारत की जनसंख्या में द्रविड़ भाषाओं के बोलने वालों का प्रतिशत 22.53 है। द्रविड़ परिवार की मातृभाषाओं की संख्या 153 है जिसमें से 17 भाषाएँ प्रमुख हैं। इनमें तमिल, तेलुगु, मलयालम एवं कन्नड़ परिगणित भाषाएँ हैं, शेष 13 भाषाएँ अपरिगणित हैं। द्रविड़ भाषा परिवार

औपनिवेशिक युग के दौरान (और उसके बाद भी) प्रवास से, मॉरीशस, म्यांमार, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, जैसे देशों के साथ ही यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी काफी मात्रा में इस भाषा को बोलने वाले लोग रहते हैं।

14 वीं शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ लीलातिलकम, जो मणिप्रवालम का व्याकरण है, में कहा गया है कि वर्तमान केरल और तमिलनाडु की बोली जाने वाली भाषाएं समान थीं, उन्हें “द्रमिडा (Dramiḍa)” कहा जाता था। वहीं इस ग्रंथ में “कन्नड़” और “तेलुगु” भाषाओं को “Dramiḍa” के रूप में नहीं माना गया है, क्योंकि वे “तमिल वेद” (तिरुवयमोली {Tiruvaymoli}) की भाषा से बहुत अलग थे।

विकिपीडिया के अनुसार, द्रविड़ भाषाओं को पहली बार दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में तमिल-ब्राह्मी लिपि के रूप में तमिलनाडु के मदुरै और तिरुनेलवेली जिलों में गुफा की दीवारों पर अंकित किया गया था। इन सभी कुछ कारणों के वजह से ऐसा माना जाता है कि द्रविड़ भाषाएं भी भारतीय-आर्यन भाषाओं के जितनी ही पुरानी है। द्रविड़ भाषा परिवार

अभी तक कुछ लोग यह मानते रहे है कि उत्तर भारतीय आर्य जाति के तथा दक्षिण भारतीय द्रविड़ जाति के हैं। पर कोशकीय तथा आणविक जीव वैज्ञानिक अध्ययन इस मत का खण्डन कर प्रतिपादन कर रहे हैं कि उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय निवासियों के पूर्वजों का जेनेटिक अंश एक है।

यानी दोनो आर्य तथा द्रविड़ भाषा वंश एक ही माता संस्कृत भाषा के ही उपभाषाएं हैं जो की समय चलते अपने मुख्य भाषा से अलग हो चले तथा भारतवर्ष के विस्तार भौगालिक सरंचना के चलते उत्तरी तथा दक्षिणी भाषाओं में विभाजित हो चुका हैं, पर इससे यह मतलब कभी नहीं निकलता हैं की दोनो भाषा अलग अलग हैं और भाषा को व्यवहार करने वाले लोग अलग अलग हैं।

द्रविड़ शब्‍द कर्नाटक, तेलंगाना एवं आन्‍ध्र आदि क्षेत्रों का बोधक नहीं था। स्कन्‍द पुराण में वर्णित है कि – 1․ कर्णाट, 2․ तेलंगा, 3․ गुर्ज्‍जरा 4․ आन्‍ध्र 5․ द्रविड़ा पंच विंध्‍य दक्षिणवासिनः। इस प्रकार ‘द्रविड़‘ शब्‍द मूलतः एक क्षेत्र का वाचक है , इस परिवार की सभी भाषाओं का वाचक नहीं है। इस परिवार की ब्राहुई, माल्‍तो, कुरुख/ओरॉब दक्षिण भारत में नहीं बोली जाती।

ब्राहुई तो पाकिस्‍तान-अफगानिस्‍तान के सीमान्‍त क्षेत्र ‘ब्‍लूचिसतान‘ में बोली जाती है। इसी प्रकार श्रीलंका के उत्‍तरी भाग की सिंधली भाषा आर्य परिवार की भाषा है। इसी कारण यह धारणा एवं मान्यता कि आर्य परिवार की भाषाएँ उत्तर भारत में एवं द्रविड़ परिवार की भाषाएँ दक्षिण भारत में बोली जाती हैं- वैज्ञानिक एवं तर्क संगत नहीं है।

द्रविड़ भाषा परिवार

द्रविड़ भाषाओं का कुछ विस्तार अवलोकन –

द्रविड़ भाषा परिवार आजकल दक्षिण एशिया तक ही सीमित है और इसके अधिकांश वक्ता दक्षिण भारत में रहते हैं। यह संभावना है कि अतीत में यह पूरे उपमहाद्वीप में फैला हुआ था, जैसा कि तीन हज़ार साल से भी पहले प्राचीन भारत के उत्तर-पश्चिम में रचित ऋग्वेद में द्रविड़ उधार शब्दों को शामिल करने से पता चलता है। हालाँकि, द्रविड़ भाषाओं और दक्षिण एशिया के बाहर किसी अन्य भाषा के बीच आनुवंशिक संबंध स्थापित करना संभव नहीं हो पाया है।

    द्रविड़ भाषा में बीस से ज़्यादा भाषाएँ शामिल हैं, जिनमें कई अलग-अलग विशेषताएँ हैं। हालाँकि कई भाषाएँ लिखित नहीं हैं, लेकिन उनमें से चार ( तमिल , तेलुगु , कन्नड़ और मलयालम ) ने अपनी खुद की लिपियाँ और बेहतरीन साहित्य विकसित किया है; जबकि कुछ को करोड़ों लोग बोलते हैं, जबकि अन्य को बोलने वाले सिर्फ़ कुछ सौ लोग हैं; जबकि कुछ को एक सहस्राब्दी या उससे ज़्यादा समय से जाना जाता है, जबकि अन्य की खोज 19वीं और 20वीं सदी में हुई थी; जबकि कुछ की संरचना को अंतिम विवरण तक स्थापित किया गया है, जबकि अन्य की संरचना अभी भी अनिश्चित है।

dravidian language family

    द्रविड़ भाषाएँ इंडो-यूरोपियन की इंडो-आर्यन शाखा के सदस्यों के साथ लंबे समय तक सह-अस्तित्व में रहीं हैं और उनसे प्रभावित हुई हैं जैसा कि कई उधार शब्दों और उनकी ध्वनि प्रणालियों में परिवर्तनों से पता चलता है। यह प्रभाव केवल एकतरफा नहीं रहा है और द्रविड़ ने संस्कृत और उसके वंशजों को कई तरीकों से प्रभावित किया है, कुछ स्पष्ट, कुछ सूक्ष्म। वास्तव में, भारतीय सभ्यता काफी हद तक आर्यों और द्रविड़ों के बीच निरंतर अंतर्संबंध का उत्पाद है।

इसके अलावा भी टी.पी.मीनाक्षीसुन्दरन् ने तमिल भाषा का इतिहास पुस्तक में द्रविड़ परिवार की भाषाओं के भौगोलिक क्षेत्र के सम्बन्ध में निम्न टिप्पणी की है:

जहाँ तक द्रविड़ भाषी क्षेत्र का प्रश्न है, वह ब्राहुई क्षेत्र को छोड़कर, लगातार है – दक्षिण भारत और श्रीलंका का उत्तरी भाग। तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु – ये साहित्यिक भाषाएँ समुद्रतटवर्ती प्रदेशों और उनके आन्तरिक भागों में बोली जाती हैं। यह एक विचित्र संयोग है कि ऐसी द्रविड़ भाषाएँ, जिनका इतिहास नहीं मिलता, भौगोलिक दृष्टि से ऊँचे क्षेत्रों में ही बोली जाती हैं – जैसे ब्लूचिस्तान के पठार पर, उत्तर भारत और दकन के मध्यवर्ती इलाके में और दक्षिण में छोटे-छोटे पहाड़ी भागों में।

तमिल भाषा का क्षेत्र वर्तमान मद्रास राज्य (तमिलनाडु) है। मलयालम केरल में बोली जाती है, तेलुगु आन्ध्र प्रदेश में और कन्नड़ मैसूर में। किन्तु इन सभी क्षेत्रों के समीपवर्ती प्रदेश द्विभाषी हैं। मद्रास के उत्तर में तेलुगु का क्षेत्र पड़ता है और पश्चिम में कन्नड़ और मलयालम का। तुलु मंगलौर के आसपास बोली जाती है। कोडगु कुर्ग के निवासियों की मातृभाषा है, जो अब मैसूर राज्य का अंग है। बड़गा, कोटा और टोडा नीलगिरि के क्षेत्रों में बोली जाती हैं।

तेलुगु प्रदेश के एक ओर उड़िया भाषी क्षेत्र पड़ता है और दूसरी ओर मराठी भाषी क्षेत्र। तुलुगु के ही पड़ोस में गोंडी का क्षेत्र है। कुइ और कोण्डा उस पठार पर बोली जाती हैं, जो महानदी घाट के दोनों ओर पड़ता है। कोलामी और परजी मध्यप्रदेश और हैदराबाद में बोली जाती हैं। कन्नड़ प्रदेश मराठी, कोंकणी, तेलुगु और तमिल भाषी क्षेत्रों से घिरा हुआ है। गोंडी की सीमाओं पर तेलुगु, कोलामी, मुण्डा और मराठी बोली जाती हैं।

यह अनोखा तथ्य है कि साहित्यरहित द्रविड़ भाषाओं को बोलने वाले पहाड़ों पर मिलते हैं। छोटा नागपुर में बोली जाने वाली गदबा, कुरुख या ओरांव और राजमहल में बोली जाने वाली माल्तो के अड़ोस-पड़ोस में मुण्डा भाषाएँ व्याप्त हैं। ब्राहुई पश्चिमी पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों में व्यवहृत होती है।

(दे. तमिल भाषा का इतिहास, पृ. 16-17 – टी. पी. मीनाक्षीसुन्दरन् (अनुवादक: डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा) (मध्यप्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, प्रथम संस्करण, (1984))

द्रविड़ भाषा का आबंटन :-

द्रविड़ भाषाएँ भारत के कई हिस्सों में बोली जाती हैं, लेकिन बोलने वालों की सबसे बड़ी संख्या दक्षिण भारत के चार राज्यों (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल) में पाई जाती है। कई तमिल भाषी श्रीलंका के उत्तर में भी रहते हैं। ब्राहुई पाकिस्तान (बलूचिस्तान प्रांत) में बोली जाती है। द्रविड़ भाषी लोगों की छोटी अल्पसंख्यक आबादी बांग्लादेश, भूटान और नेपाल में भी पाई जाती है, और दक्षिण-पूर्व एशिया, फिजी, दक्षिण अफ्रीका और कैरिबियन में प्रवासी रहते हैं।

वर्गीकरण और वक्ता : द्रविड़ भाषाएँ करीब 259 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती हैं। सबसे बड़ी भाषाएँ तेलुगु (करीब 86 मिलियन), तमिल (करीब 78 मिलियन), कन्नड़ (करीब 44 मिलियन) और मलयालम (करीब 39 मिलियन) हैं। dravidian language family

    वे चार समूहों (उत्तरी, मध्य, दक्षिण-मध्य, दक्षिणी) में विभाजित हैं, जो लगभग 4000 ईसा पूर्व में काल्पनिक पूर्ववर्ती प्रोटो-द्रविड़ से अलग होने लगे थे। भाषाई निकटता कुछ हद तक भौगोलिक निकटता से मेल खाती है:

द्रविड़ भाषा का इंडो-आर्यन भाषाओं के साथ संबंध :-

इंडो-आर्यन की शुरुआती किस्में संस्कृत के रूप हैं। ऋग्वेद (1500 ईसा पूर्व), वैदिक संस्कृत में लिखी गई है, इसी में से एक दर्जन से अधिक ऐसे शब्दों का पता लगाया गया है, जो कि द्रविड़ भाषाओं में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि उलेखला (यानी कि ओखली), कुंडा (यानी कि गड्ढा), खला (यानी कि खलियान), काना (यानी कि एक आँख वाला), और मयूरा (यानी कि मोर)।

इस सब से यह स्थापित हुआ है कि इंडो-आर्यन और द्रविड़ भाषा परिवारों ने दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में संपर्क के कारण ध्वनि प्रणाली (ध्वन्यात्मकता) और व्याकरण में अभिसरण संरचनाएं विकसित कीं।

dravidian language family

ऋग्वेद में द्रविड़ शब्दों की उपस्थिति का एक अर्थ यह भी लगाया जाता है कि द्रविड़ और आर्य भाषी, शुरुआती दौर में, गंगा के मैदान में एक भाषा समुदाय के रूप में साथ ही रहते थे। धीरे-धीरे द्रविड़ वक्ताओं का स्वतंत्र समुदाय भारत की परिधि की ओर जाते गए। और इस तरह से उत्तर-पश्चिम में ब्राहुई, पूर्व में कुरुख-माल्टो और मध्य भारत में गोंडी-कुई), का विस्तार हुआ। द्रविड़ भाषा परिवार

द्रविड़ परिवार का भारत की आर्य भाषाओं पर प्रभाव- संस्कृत से इस परिवार की भाषाएँ बहुत प्रभावित हैं। इन सबकी लिपि ब्राह्मी से निकली है, किन्तु इन्होंने भी आर्यभाषाओं को काफी प्रभावित किया है और आज तक प्रभावित करती जा रही हैं। शब्द-समूह के क्षेत्र में संस्कृत का बहुत अधिक प्रभाव द्रविड पर पड़ा है। तमिल भाषा का एक रूप शेन (= पूर्ण) कहलाता है, जिसमें संस्कृत शब्दों का बाहुल्य है। ब्राह्मणों के प्रभाव से मलयालम भी संस्कृत-बहुल हो गई है। मलयालम की संस्कृत-बहुल साहित्यिक शैली को मणि-प्रवाल कहते हैं। कन्नड़ और तेलुगु ने भी संस्कृत शब्द उदारतापूर्वक लिये हैं ।

कुछ प्रमुख प्रभाव :-

  • आर्य परिवार की मूर्धन्य ध्वनियों को मूलतः द्रविड़ परिवार के प्रभाव-स्वरूप विकसित माना जाता है, यद्यपि कुछ विद्वान इस मत के विरोधी भी हैं।
  • ध्वनि-परिवर्तन में र का ल के स्थान पर (गला = गर) और ‘र का ‘ल (हरिद्रा = हल्दी) होना भी इस परिवार का प्रभाव कहा जाता है। यों मूल भारोपीय परिवार में भी यह था।
  • मराठी आदि में अब तक तीन लिंगों का सुरक्षित रहना भी इन्हीं का प्रभाव है, क्योंकि इनमें भी तीन लिंग हैं।
  • आर्यभाषाओं में सोलह पर आधारित (सेर-छटाँक,रुपया-आना) माप भी इसी परिवार की देन है।
  • कुछ लोगों के अनुसार ‘परस्गों का प्रयोग इन्हीं का प्रभाव है।
  • भारतीय आर्यभाषाओं में तिडन्त की अपेक्षा कृदन्ती रूपों का प्रयोग भी इनका प्रभाव कहा जाता है।
  • सहायक क्रिया तथा संयूक्त क्रिया का आर्यभाषाओं में प्रयोग भी कुछ लोग द्रविड प्रभाव के फलस्वरूप ही मानते हैं।
  • आदान- प्रदान् में अटवी, आलि, नीर, मीन, उलूखल, कठिन तथा कोण आदि कई सौ शब्द भी इस परिवार ने संस्कृत तथा अन्य भारतीय आर्यभाषाओं को दिये हैं।

द्रविड़ भाषा परिवार

dravidian language family

इतना समझने के बाद आइये अब द्रविड़ भाषा परिवार के वर्गीकरण को अच्छे से समझते हैं;

द्रविड़ भाषा परिवार का वर्गीकरण:-

अधिकांश विद्वान द्रविड़ भाषाओं को मुख्य रूप से चार समूहों में वर्गीकृत किए है:

  1. दक्षिण द्रविड़ (South Dravidian)
  2. दक्षिण-मध्य द्रविड़ (South-Central Dravidian)
  3. मध्य द्रविड़ (Central Dravidian)
  4. उत्तर द्रविड़ (North Dravidian)

नीचे इन सभी भाषा समूहों के बारे में उचित तथा न्यायपूर्ण ढंग से विस्तृत आलोचना किया गया हैं ……

द्रविड़ भाषाओं का वितरण :-

1) दक्षिण द्रविड़ भाषा (South Dravidian) :-

संख्यात्मक रूप से, दक्षिणी समूह निस्संदेह सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें चार सबसे बड़ी भाषाओं में से तीन शामिल हैं (तमिल, मलयालम और कन्नड़), जिन्हें एक साथ लगभग 160 मिलियन से भी अधिक लोगों द्वारा बोला जाता है। चूंकि भारत का आंतरिक राजनीतिक विभाजन काफी हद तक भाषा वितरण पर आधारित है, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि तमिलनाडु राज्य में तमिल सर्वोच्च है तथा  कर्नाटक में कन्नड़ और केरल में मलयालम के लिए भी यही सच है । द्रविड़ भाषा परिवार

253 ईसा पूर्व से प्रमाणित तमिल, न केवल सबसे प्राचीन द्रविड़ भाषा है, बल्कि एकमात्र ऐसी भाषा है जो अपेक्षाकृत हाल के प्रवासी लोगों के कारण दक्षिण एशिया की सीमाओं से बाहर निकल गई है, जो इसे कैरिबियन, फिजी और दक्षिण अफ्रीका जैसे दूरदराज के स्थानों के साथ-साथ पड़ोसी दक्षिण पूर्व एशिया (म्यांमार, मलेशिया, सिंगापुर) तक ले गए। दो सहस्राब्दी पहले ही यह श्रीलंका के उत्तर में स्थापित हो चुकी थी। dravidian language family

    पश्चिमी घाट के अंतिम खंडों ने केरल के अलगाव में योगदान दिया, जिससे भाषाई भिन्नता और मलयालम का जन्म हुआ। तमिलनाडु के सुदूर उत्तर-पश्चिम में स्थित नीलगिरि पर्वत और उसी भूगर्भीय प्रणाली से संबंधित, आदिवासी आबादी, कोटा और टोडा को आश्रय देते हैं , जो हाल ही तक, राहत द्वारा बाहरी संपर्कों से सुरक्षित, अपनी भाषाओं को संरक्षित करने में कामयाब रहे, हालांकि अब वे विलुप्त होने के खतरे में हैं। अन्य नीलगिरि जनजातियाँ इरुला हैं जिनकी भाषा तमिल से बहुत मिलती-जुलती है और बडागा जिनकी भाषा कन्नड़ के समान है। द्रविड़ भाषा परिवार

दो अन्य दक्षिणी द्रविड़ भाषाएँ कोडगु और तुलु हैं । पहली दक्षिण-पश्चिम कर्नाटक के एक जिले तक सीमित है जबकि दूसरी उसके उत्तर में एक बड़े क्षेत्र में फैली हुई है। दो मिलियन वक्ताओं के साथ और 14वीं-15वीं शताब्दियों से प्रलेखित, तुलु समूह की चौथी सबसे महत्वपूर्ण भाषा है जो दक्षिणी प्रोटो-द्रविड़ से जल्दी अलग हो गई थी।

अब इन सभी पे अगर अलग से नीचे आलोचना किया गया हैं :-

तमिल (Tamil) :–

द्रविड़ परिवार में चार साहित्यिक भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़ एवं मलयालम) में, तमिल सबसे पुरानी मानी जाती है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन जीवित भाषा भी है। तमिल को पहली बार 200 ईसा पूर्व में तमिल ब्राह्मी लिपि में लिखा गया था और पिछले 2000 वर्षों से इसका लगातार प्रयोग किया जा रहा है। द्रविड़ भाषा परिवार

तमिल भाषा दुनिया की सबसे शुद्ध भाषाओं में से एक है तथा सबसे पुरानी बढ़ती शास्त्रीय भाषाओं में से एक है, जिसमें 80% से अधिक मूल द्रविड़ शब्दावली है, शेष 20% संस्कृत और अन्य भाषाओं से उधार लिए गए शब्द हैं। तमिल भाषा को संस्कृत और अन्य भाषा के उधार शब्दों को हटाकर शुद्ध तमिल आंदोलन के बाद से शुद्ध किया जा रहा है ।

एक अनुमान के अनुसार, 7 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा तमिल बोली जाती है, जिसमें से ज्यादातर तमिलभाषी लोग भारत में रहते हैं। इसके अलावा इसे बोलने वाले लोग उत्तरी श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मॉरीशस, फिजी और म्यांमार (बर्मा) में भी रहते थे। द्रविड़ भाषा परिवार

तमिल भाषा में पहला ज्ञात कार्य, तोल्काप्पियम (पहली से चौथी शताब्दी ई. का प्राचीन साहित्य) है, जो कि व्याकरण और काव्य पर एक ग्रंथ है। हालांकि प्रारंभिक संस्कृत व्याकरण का प्रभाव कुछ व्याकरणिक अवधारणाओं जैसे ‘काल (Tense), ‘संज्ञा (Noun)’ एवं वेरुमाई (wēṟṟumai) यानी कि कारक (case) में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।

तमिल ब्राह्मी लिपि (अशोकन ब्राह्मी का एक रूपांतर) में शिलालेख दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पाए जाते हैं। ग्रीक और अरबी भाषाओं की तरह, तमिल में भी डिग्लोसिया (diglossia) है, यानी कि भाषा के दो रूप भाषण समुदाय में सह-अस्तित्व में हैं। dravidian language family

तमिल की मानक लिखित और बोली जाने वाली किस्म, को सेंटामी (centamiẓ) कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘सुंदर तमिल’। इसके अलावा तमिल की कई बोली जाने वाली किस्मों को koṭuntamiẓ यानी कि ‘अशिष्ट तमिल’ कहा जाता है और औपचारिक भाषण और लेखन में इसका उपयोग नहीं किया जाता है।

मलयालम (Malayalam) :-

द्रविड़ परिवार में चार साहित्यिक भाषाओं (तमिल, तेलुगू, कन्नड़ एवं मलयालम) में से, मलयालम भी एक प्रमुख भाषा है।

यह एक मुख्य द्रविड़ भाषा है जो भारतीय राज्य केरल और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और पुडुचेरी (माहे जिले) में बोली जाती है। यह कहना सही नहीं है कि मलयालम द्रविड़ और आर्य दोनों भाषा परिवारों का मिश्रण है।

मलयालम की उत्पत्ति विद्वानों के बीच विवाद का विषय बनी हुई है। एक दृष्टिकोण यह मानता है कि मलयालम और आधुनिक तमिल मध्य तमिल की शाखाएँ हैं और 7वीं शताब्दी ई.पू. के कुछ समय बाद इससे अलग हो गए। दूसरा दृष्टिकोण प्रागैतिहासिक युग में “प्रोटो-द्रविड़ियन” या “प्रोटो-तमिल-मलयालम” में से दो भाषाओं के विकास का तर्क देता है। मलयालम लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे प्रारंभिक लिपि वट्टेलुट्टू वर्णमाला थी, और बाद में कोलेझुट्टू, जो इससे निकली थी।

वर्तमान मलयालम लिपि वट्टेलुट्टू लिपि पर आधारित है, जिसे संस्कृत से इंडो-आर्यन ऋणशब्दों को अपनाने के लिए ग्रंथ लिपि अक्षरों के साथ विस्तारित किया गया था। कुल 52 अक्षरों के साथ, मलयालम लिपि में भारतीय भाषाओं की शब्दावली में अक्षरों की संख्या सबसे अधिक है। द्रविड़ भाषा परिवार

लगभग 9वीं शताब्दी तक मलयालम तमिल की पश्चिमी तट के आसपास की बोली थी, जो कि आजकल केरल की प्रमुख भाषा है। इसे लगभग 3.5 करोड़ लोगों द्वारा बोला जाता है। मलयालम में पहली साहित्यिक कृति रामचरितम (12वीं-13वीं शताब्दी) की है।

पहला व्याकरण, लीलातिलकम् (यानी कि पवित्र चिह्न की पुस्तक), 14वीं शताब्दी में संस्कृत में लिखा गया था। तमिल के विपरीत, और कन्नड़ और तेलुगू की तुलना में अधिक हद तक, मलयालम ने उदारतापूर्वक संस्कृत से न केवल शब्द बल्कि विभक्ति के विभिन्न रूपों को भी उधार लिया है।

कन्नड़ (Kannada) :-

कन्नड़ भी एक साहित्यिक भाषा है और यह कर्नाटक राज्य की आधिकारिक भाषा है। वर्तमान में 4 करोड़ से अधिक लोग इस भाषा को बोलते हैं। कन्नड़ में शिलालेख 5 वीं शताब्दी ई. से हैं, जबकि पहली साहित्यिक कृति, “कविराजमार्ग”, 9वीं शताब्दी का एक काव्य ग्रंथ है।

केसिराजा का “शब्द मणि दर्पण” कन्नड़ में लिखा गया पहला व्यापक व्याकरण है और यह 13 वीं शताब्दी का है। आधुनिक मानक कन्नड़ दक्षिणी कर्नाटक (मैसूर और बेंगलुरु) के शिक्षित भाषण पर आधारित है और उत्तरी (धारवाड़) और तटीय किस्मों से काफी अलग है। प्रत्येक क्षेत्र के भीतर जाति की बोलियाँ भी पायी जाती है। द्रविड़ भाषा परिवार

जैसा कि हमने ऊपर चर्चा किया है इन साहित्यिक भाषाओं के अलावा भी कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ है, जो कि गैर-साहित्यिक है क्योंकि इन भाषाओं में न के बराबर साहित्यिक रचनाएँ हुई हैं;

इरुला (Irula) –

यह इरुला लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक द्रविड़ भाषा है जो भारत के तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों में नीलगिरि पहाड़ों के क्षेत्र में निवास करती है। इसका तमिल से गहरा संबंध है।

कोडावा (Kodava) –

कोडावा एक लुप्तप्राय द्रविड़ भाषा है और यह दक्षिणी कर्नाटक के कोडागु जिले में बोली जाती है। कोडवा दरअसल एक भाषा एक साथ-साथ संस्कृति का भी नाम है, जिसके तहत कोडागु के कई समुदाय आते हैं। कोडवाभाषा न केवल कोडवाओं की प्राथमिक भाषा है, बल्कि कोडागु में कई अन्य जातियों और जनजातियों की भी है। dravidian language family

कोरगा (koraga) –

कोरगा दक्षिण पश्चिम भारत में दक्षिण कन्नड़, कर्नाटक और केरल के अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक द्रविड़ भाषा है। केरल में कोरगा जनजाति द्वारा बोली जाने वाली बोली, ‘मुदु कोरागा’, काफी भिन्न है। dravidian language family

2) दक्षिण-मध्य द्रविड़ भाषा :-

दक्षिण-मध्य समूह की सबसे बड़ी भाषा तेलुगु है , जो आंध्र प्रदेश की राज्य भाषा है, जिसका पहला शिलालेखीय साक्ष्य 620 ई. का है।

तेलुगू (Telugu) –

द्रविड़ भाषाओं में, तेलुगु सबसे बड़ी आबादी द्वारा बोली जाती है। हिंदी और बंगाली के बाद यह सभी भारतीय भाषाओं में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह लगभग 8.5 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है।

पहला तेलुगु शिलालेख 575 CE का है। इस भाषा की पहली साहित्यिक कृति नन्नया भट्ट द्वारा लिखित महाभारत के एक हिस्से का काव्यात्मक अनुवाद है, जो कि 11 वीं शताब्दी में लिखी गई थी। पहला तेलुगु व्याकरण, “आंध्र शब्द चिंतामणि”, संस्कृत में लिखा गया था और कहा जाता है कि इसकी रचना नन्नया भट्ट ने की थी। द्रविड़ भाषा परिवार

आधुनिक मानक तेलुगु केंद्रीय तटीय बोली के अभिजात वर्ग के भाषण और लेखन पर आधारित है। एक साहित्यिक भाषा के रूप में तेलुगु का कन्नड़ के साथ काफी हद तक संपर्क है; विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय कन्नड़ और तेलुगु दोनों कविताओं के संरक्षक थे। नतीजतन, तेलुगु और कन्नड़ के बीच व्यापक शाब्दिक आदान-प्रदान हुआ है। dravidian language family

समूह की अन्य छह सदस्य भाषाएं साहित्यिक भाषा नहीं हैं और जनजातीय आबादी द्वारा बोली जाती हैं। उनमें से पहली है गोंडी , जिसके 3 मिलियन से अधिक वक्ता और कई बोलियाँ हैं, जो दो अलग-अलग क्षेत्रों में फैली हुई हैं: मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उत्तर-पश्चिमी बोलियाँ, और छत्तीसगढ़ और आसन्न क्षेत्रों में दक्षिण-पूर्वी बोलियाँ। द्रविड़ भाषा परिवार

गोंडी (Gondi) –

गोंडी एक दक्षिण-मध्य द्रविड़ भाषा है, जो लगभग 30 लाख गोंडी लोगों द्वारा बोली जाती है, मुख्यतः भारतीय राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पड़ोसी राज्यों में छोटे अल्पसंख्यकों द्वारा बोली जाती है।

कोंडा (जिसे कुबी भी कहा जाता है) गोंडी के समान है जो पूर्वोत्तर आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। हालाँकि यह गोंड लोगों की भाषा है, लेकिन यह अत्यधिक संकटग्रस्त है। गोंडी में लोक साहित्य है, जिसके उदाहरण विवाह गीत और आख्यान हैं। गोंडी लोग जातीय रूप से तेलुगु से संबंधित हैं।

शेष चार भाषाएँ उड़ीसा की पहाड़ियों और जंगलों में स्थित हैं और निकटवर्ती संबंधित हैं

कुई (Kui) –

कुई (जिसे कि कंध, खोंडी, खोंड, खोंडो, कांडा, कोडु, कोडुलु, कुइंगा, कुय भी कहा जाता है) कांधों द्वारा बोली जाने वाली एक दक्षिण-पूर्वी द्रविड़ भाषा है। इसके साथ एक और भाषा कुवी हैं जो की खोंड जनजाति द्वारा बोली जाती हैं और यह ज्यादातर ओडिशा में बोली जाती है, और ओडिया लिपि में लिखी जाती है।

लगभग 10 लाख लोगों द्वारा इस भाषा को बोला जाता है। कुई भाषा को ऐतिहासिक काल के दौरान कुइंग भाषा के रूप में भी जाना जाता है। इसका गोंडी और कुवी भाषाओं से गहरा संबंध है।

मांडा (Manda) –

मांडा ओडिशा की एक द्रविड़ भाषा है, जो कालाहांडी जिले के थुआमुल रामपुर ब्लॉक के ऊंचे इलाकों में बोली जाती है। इस भाषा के साथ और एक भाषा हैं जो की छोटी जनजातियों के द्वारा बोली जाती है वो हैं पेंगो। इसके वक्ताओं को आम तौर पर बाहरी लोगों द्वारा ‘खोंड परजस’ के रूप में जाना जाता है, लेकिन खुद को मांडा, खोंड के रूप में पहचानते हैं। dravidian language family

1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में, भाषा लगभग 60 गांवों में बोली जाती थी और बोलने वालों की कुल संख्या 4000-5000 होने का अनुमान लगाया गया था। हालाँकि भाषा को उड़िया से खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें सभी वक्ता द्विभाषी हैं।

3) मध्य द्रविड़ भाषाएँ :-

हाल ही में दक्षिण-मध्य से अलग द्रविड़ भाषाओं के एक केंद्रीय समूह  के अस्तित्व को कई शोधकर्ताओं द्वारा स्वीकार किया गया है, हालांकि अन्य लोग मध्य और दक्षिण-मध्य समूहों को एक ही मानते हैं। केंद्रीय समूह की चार भाषाएँ जनजातियों द्वारा बोली जाती हैं। द्रविड़ भाषा परिवार

यह मध्य द्रविड़ भाषाएँ लगभग 2 लाख व्यक्तियों द्वारा बोली जाती हैं। उनमें से मुख्य है: महाराष्ट्र और उत्तरी आंध्र प्रदेश में बहुत समान कोलामी और नाइकी। इनमे से कोलामी भाषा के बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है, लगभग सवा लाख लोग, और उन्होंने तेलुगु से बहुत अधिक उधार लिया है। नीचे उन भाषाओं के बारे में कुछ तथ्य :

कोलामी :-

कोलामी भारत के महाराष्ट्र और तेलंगाना राज्यों में बोली जाने वाली एक आदिवासी केंद्रीय द्रविड़ भाषा है। यह, कोलामी-नाइकी भाषा समूह के अंतर्गत आता है। यह सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली केंद्रीय द्रविड़ भाषा है।

नायकी (Naiki) :-

नायकी (Naiki) को दक्षिणपूर्वी कोलामी भी कहा जाता है क्योंकि यह कोलामी-नाइकी भाषा समूह का ही हिस्सा है, भारत के महाराष्ट्र राज्य में इस्तेमाल की जाने वाली एक आदिवासी केंद्रीय द्रविड़ भाषा है।

इसके बाद मैं सब मुख्य भाषा के रूप में ओलारी (Ollari) आताभाईं जिसे बारे में नीचे कुछ टिप्पणी दिया गया हैं। द्रविड़ भाषा परिवार

ओलारी (Ollari) :-

ओलारी (Ollari) भाषा एक केंद्रीय द्रविड़ भाषा है। यह कोंडेकोर (Kondekor) से संबन्धित है। हालांकि दोनों को या तो बोलियों के रूप में, या अलग-अलग भाषाओं के रूप में माना गया है। वे पोट्टांगी, कोरापुट जिले, उड़ीसा और श्रीकाकुलम जिले, आंध्र प्रदेश, भारत में और उसके आसपास बोली जाती हैं।

इन सब भाषाओं के अलावा अन्य अनेक से गौण भाषाएं हैं जो स्थानीय जनजाति के लोगों के द्वारा बोला जाता हैं जिनमे से छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के दक्षिण में परजी (या दुरुवा) और इसके पूर्व में उड़ीसा और पूर्वोत्तर आंध्र प्रदेश में गदबा (या गदबा), तथा कोंडेकोर (Kondekor) आदि भाषाएं भी स्थानीय जनजातियों के द्वारा बोला जाता हैं।

द्रविड़ भाषा परिवार

dravidian language family

4) उप-महाद्वीप के उत्तर :-

उपमहाद्वीप के उत्तर में द्रविड़ भाषाओं की उपस्थिति पुरातनता में उनके व्यापक विस्तार का सुझाव देती है, हालांकि अभी तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। यह कमोबेश हाल के प्रवास का परिणाम भी हो सकता है।
उत्तरी समूह की तीन भाषाओं में से दो (कुरक्स और ब्राहुई) में प्रत्येक के दो मिलियन से अधिक वक्ता हैं।

कुरुख (Kurukh):-

कुरुख (Kurukh), जिसे उरांव भी कहा जाता है, पूर्वी भारत के राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार और त्रिपुरा के लगभग दो मिलियन आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक द्रविड़ भाषा है, जहां यह इंडो-आर्यन और मुंडा दोनों भाषाओं के संपर्क में है। कुरुख की एक बोली, जिसे धनगर कहा जाता है, नेपाल में बोली जाती है। द्रविड़ भाषा परिवार

माल्टो इसके उत्तर में बिहार और पश्चिम बंगाल में बोली जाती है। वर्तमान में, कुरुख और माल्टो भौगोलिक रूप से सन्निहित नहीं हैं। यह ब्राहुई और माल्टो (Malto) या पहाड़िया से सबसे निकट से संबंधित है। माल्टो या पहाड़िया एक उत्तरी द्रविड़ भाषा है जो मुख्य रूप से पूर्वी भारत में बोली जाती है। कुरुक्स (या कुरुख) झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल में इंडो-आर्यन भाषाओं के महासागर में बिखरे द्वीपों के रूप में प्रकट होता है।

ब्राहुई (Brahui) :-

इसके पश्चात उत्तरी द्रविड़ भाषाओं में से, ब्राहुई (Brahui) भौगोलिक दृष्टि से सबसे दूर है, जो पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में बोली जाती है। यह भाषा ने उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी किनारों पर एक क्षेत्र पर कब्जा करने वाली अन्य द्रविड़ भाषाओं से भौगोलिक अलगाव के कारण विद्वानों को चकित कर दिया है। द्रविड़ भाषा परिवार

इसके बोलने वाले आज पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहते हैं कुछ लोग, वास्तविक प्रमाण के बिना, ब्राहुई को विलुप्त द्रविड़ समूह का अवशेष मानते हैं, जो संभवतः सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा था, लेकिन अधिक संभावना यह है कि इस दूरस्थ क्षेत्र में इसका स्थान ब्राहुई पूर्वजों की मातृभूमि उड़ीसा या बिहार से पश्चिमी प्रवास का परिणाम है। ईरान, अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के कुछ हिस्सों में बिखरे हुए वक्ताओं के छोटे समुदायों और इराक, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में प्रवासी ब्राहुई समुदायों द्वारा बोली जाती है। द्रविड़ भाषा परिवार

माल्टो भाषा :-

विपरीत, माल्टो (जिसे सौरिया पहाड़िया भी कहा जाता है) बहुत छोटा है और मुख्य रूप से झारखंड (बिहार और बांग्लादेश में छोटे-छोटे इलाकों के साथ) तक ही सीमित है। माल्टो की दो किस्में हैं जिन्हें कभी-कभी अलग-अलग भाषाओं के रूप में माना जाता है, कुमारभाग पहाड़िया और सौरिया पहाड़िया। कुमारभाग भारत के झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में बोली जाती है, और सौरिया भारत के पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार राज्यों में बोली जाती है। दोनों के बीच शाब्दिक समानता 80% होने का अनुमान है। dravidian language family

द्रविड भाषा परिवार की विशेषताएँ :-

  • इस परिवार की भाषाएँ तुर्की आदि की तरह अश्लिष्ट अतः योगात्मक हैं। मृूल शब्द या धातु में प्रत्यय एक के बाद दूसरे से जुड़ते चले जाते हैं। अपवाद स्वरूप उपसर्ग भी लग जाता है। जैसे- अथू – वह वस्तु, इथु – यह वस्तु, एथू – कौन वस्तु?
  • ये भाषाएँ स्वर अनुरूपता की दृष्टि से यूराल- अल्टाई से मिलती-जुलती है।
  • मूर्धन्य ध्वनियाँ (ट वर्ग) यहाँ प्रचुरता से प्राप्त होती है।
  • इस परिवार में वचन दो ही होते हैं। नपुंसक शब्द प्रायः एकवचन ही होते हैं। अन्य पुरुष व स्त्रीलिंग भी प्रयुक्त होते हैं।
  • संज्ञा के दो वर्ग होते हैं- उच्च (संज्ञानी) तथा निम्न ( अज्ञानी) तथा कुछ संज्ञाएँ क्रिया का भी काम करती हैं। ১ क्रिया में कर्मवाच्य का प्रयोग न होकर कृदन्तों की अधिकता है ।
  • विभक्तियों का काम प्रत्ययों या परसर्गों से लिया जाता है।
  • विशेषणों के रूप संज्ञा के अनुसार नहीं चलते।
  • शब्द के अन्तिम व्यंजन के उच्चारण में एक प्रकार की ध्वनि जोड़ ली जाती है।
  • कुछ भाषाओं यह प्रवृत्ति लिखने तथा बोलने दोनों में प्रयुक्त होती है परन्तु कुछ में मात्र लिखने में । जैसे – आप = आपु, राम = रामू (भक्ति और रीतिकाल के कवियों का प्रयोग)।
  • शब्द के प्रारम्भ में प्रायः घोष व्यंजन प्राप्त नहीं होते हैं। परन्तु मध्य में आने वाले अनुनासिक या एकाकी व्यंजन के पश्चात् घोष व्यंजन अवश्य प्राप्त होते हैं।

द्रविड़ भाषा परिवार का व्याकरण :-

सभी द्रविड़ भाषाएँ संयोजी हैं, यानी, व्याकरणिक संबंधों को मूल शब्दों में प्रत्यय जोड़कर दर्शाया जाता है। इन्हें एक के बाद एक जोड़ा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी बहुत लंबे शब्द बनते हैं। सभी संयोजी भाषाओं की तरह, द्रविड़ भाषाएँ व्याकरणिक संबंधों को चिह्नित करने के लिए पूर्वसर्गों के बजाय पश्चात पदों का उपयोग करती हैं। द्रविड़ भाषा परिवार

संज्ञा :-

  • दो संख्याएँ हैं: एकवचन और बहुवचन। बहुवचन को प्रत्यय द्वारा चिह्नित किया जाता है।
  • मामलों की संख्या भाषा के अनुसार भिन्न होती है।
  • कुछ द्रविड़ भाषाओं में तीन लिंग होते हैं: पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक। अन्य भाषाओं में संज्ञाएँ दो वर्गों में आती हैं: तर्कसंगत और अपरिमेय; तर्कसंगत संज्ञाओं में मनुष्य और देवता शामिल हैं (भाषा/बोली के आधार पर महिलाएँ तर्कसंगत या अपरिमेय हो सकती हैं); अपरिमेय संज्ञाओं में जानवर, वस्तुएँ और बाकी सब कुछ शामिल हैं। ये वर्गीकरण निरपेक्ष नहीं हैं।
  • व्यक्तिगत सर्वनाम व्यक्ति, कारक और संख्या के लिए चिह्नित किए जाते हैं। लिंग केवल तृतीय पुरुष एकवचन में चिह्नित किया जाता है।
  • प्रथम पुरुष बहुवचन समावेशी हो सकता है, अर्थात वक्ता और संबोधित दोनों को शामिल कर सकता है, या अनन्य हो सकता है, अर्थात संबोधित को बाहर कर सकता है।
  • तीसरे व्यक्ति बहुवचन सर्वनाम का उपयोग सम्मानजनक संबोधन के रूप में किया जाता है
  • प्रदर्शनात्मक सर्वनामों को निकटता/दूरस्थता के साथ-साथ संदर्भ के प्रति सम्मान के स्तर के आधार पर विभेदित किया जाता है।
  • विशेषण संख्या, लिंग या कारक के आधार पर विभक्त नहीं होते।

क्रियाएं :-

द्रविड़ क्रियाएँ काल, भाव, स्वर, कारण और दृष्टिकोण के लिए विभक्त होती हैं। मूल शब्द क्रम कर्ता-कर्ता-क्रिया है। तेलुगु क्रियाओं में एक मूल होता है जिसके बाद प्रत्यय होते हैं जो काल, भाव , निषेध, कारण , व्यक्ति, संख्या और लिंग को व्यक्त करते हैं जो एक निर्धारित क्रम में एक दूसरे का अनुसरण करते हैं।

अधिकांश द्रविड़ भाषाओं में, क्रियाएँ लिंग, संख्या और व्यक्ति में अपने विषयों से सहमत होती हैं।

द्रविड़ भाषा परिवार

विषय सर्वनाम आमतौर पर छोड़ दिए जाते हैं क्योंकि विषय के बारे में जानकारी क्रिया द्वारा ही दी जाती है। द्रविड़ क्रियाओं में अधिकांश द्रविड़ भाषाओं में क्रियाओं की निम्नलिखित विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं। सभी भाषाओं में ये सभी विशेषताएँ नहीं होती हैं:

  • दो संख्याएँ: एकवचन और बहुवचन
  • तीन लिंग: पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुंसक
  • तीन व्यक्ति: पहला, दूसरा, तीसरा
  • दो आवाज़ें जो इंडो-यूरोपीय भाषाओं में आवाज़ों के सक्रिय-निष्क्रिय या प्रतिवर्ती-गैर-प्रतिवर्ती विभाजन के समतुल्य नहीं हैं
  • तीन सरल काल (वर्तमान, भूत और भविष्य) सरल प्रत्ययों द्वारा चिह्नित, और सहायक क्रियाओं द्वारा चिह्नित यौगिक काल की एक श्रृंखला
  • एक विशेष क्रिया प्रतिमान जिसमें नकारात्मक काल चिह्न को क्रिया के मूल में जोड़कर नकारात्मक काल बनाया जाता है
  • चार भाव जो यह संकेत देते हैं कि क्रिया की क्रिया अवास्तविक, संभव, संभावित या वास्तविक है
  • सकर्मकता और अकर्मकता ।
  • सहायक क्रियाओं द्वारा व्यक्त किया गया दृष्टिकोण, क्रिया द्वारा व्यक्त किसी घटना के प्रति वक्ता की भावनाओं को दर्शाने के लिए, जैसे, नकारात्मक राय, विरोध, राहत, आदि।

आकृति विज्ञान :-

  • द्रविड़ भाषाएँ एक मूल में विभक्ति प्रत्यय जोड़कर क्रिया, व्यक्ति, संख्या और काल को इंगित करती हैं। अन्य प्रत्यय व्युत्पन्न हैं जिनका उपयोग नए शब्द बनाने या किसी शब्द की वाक्यविन्यास श्रेणी को बदलने के लिए किया जाता है (उदाहरण के लिए विशेषण से क्रियाविशेषण तक)। नए शब्द बनाने का दूसरा तरीका संज्ञा और/या विशेषणों को जोड़ने वाले नाममात्र यौगिकों के माध्यम से है। द्रविड़ भाषा परिवार
  • प्रोटो-द्रविड़ियन में आठ मामले थे (नाममात्र, कर्मकारक, संप्रदान कारक, समाजकारक, संबंधकारक, वाद्य, स्थानकारक, अपभ्रंश) जिनमें से अधिकांश इसके वंशजों में संरक्षित हैं। इसके अलावा, पद-स्थापन वाक्यविन्यास संबंधी जानकारी देने में मदद करते हैं। द्रविड़ भाषा परिवार
  • तमिल में प्राथमिक लिंग भेद ‘तर्कसंगत’ (देवता और मनुष्य) और ‘तर्कसंगत’ (अन्य सभी संज्ञाएँ) के बीच है। तर्कसंगत संज्ञाएँ एकवचन में संख्या और लिंग में भेद करती हैं (पुल्लिंग एकवचन, स्त्रीलिंग एकवचन, बहुवचन) जबकि अपरिमेय संज्ञाएँ केवल संख्या (एकवचन और बहुवचन) में भेद करती हैं। द्रविड़ भाषा परिवार
  • द्रविड़ मौखिक विभक्ति में मौखिक स्टेम में प्रत्यय चिह्न जोड़ना शामिल है। उत्तरार्द्ध में शाब्दिक जानकारी के अलावा, सकर्मकता, प्रतिवर्तीता और कारणता के बारे में संकेत शामिल हो सकते हैं। विभिन्न चिह्न मूड (वैकल्पिक), काल और लिंग-संख्या-व्यक्ति को इंगित करते हैं। क्रियाएँ सक्रिय या निष्क्रिय आवाज़ में संयुग्मित हो सकती हैं। मूल रूप से, केवल दो काल थे, भूतकाल और अ-भूतकाल। वर्तमान काल बाद में, प्रत्येक भाषा में स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। द्रविड़ भाषा परिवार
  • चूंकि सरल क्रियाओं की सूची सीमित है, वे प्रायः अन्य क्रियाओं के साथ मिलकर शाब्दिक यौगिक बनाती हैं, जिससे संभावित अर्थों की सीमा बढ़ जाती है।

FAQs (अकसर पूछे जाने वाले सवाल) :-


द्रविड़ परिवार की भाषा कौन सी है?

उत्तर : सबसे अधिक बोलने वालों वाली द्रविड़ भाषाएँ (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं जिनमें से सभी की लंबी साहित्यिक परंपराएँ हैं।


द्रविड़ कौन सी भाषाएं हैं?

उत्तर : द्रविड़ भाषा में सबसे ज़्यादा बोलने वाले लोग हैं (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम , जिनमें से सभी की साहित्यिक परंपराएँ लंबी हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ हैं तुलु और कोडवा।


द्रविड़ लोग कौन सी भाषा बोलते थे?

उत्तर :सबसे अधिक बोलने वालों वाली द्रविड़ भाषाएँ (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगु , तमिल , कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें से सभी की लंबी साहित्यिक परंपराएँ हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ तुलु और कोडवा हैं।


द्रविड़ भाषाएं कितनी हैं?

उत्तर : द्रविड़ भाषाएँ, लगभग 70 भाषाओं का परिवार है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में बोली जाती हैं। द्रविड़ भाषाएँ भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में 215 मिलियन से ज़्यादा लोगों द्वारा बोली जाती हैं।


द्रविड़ साहित्य क्या है?

उत्तर : द्रविड़ साहित्य में तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम सहित दक्षिण भारत के द्रविड़ भाषी क्षेत्रों की साहित्यिक परंपराएँ शामिल हैं। दो सहस्राब्दियों से भी ज़्यादा पुराने द्रविड़ साहित्य में कविता, गद्य और नाटक का समृद्ध और विविध संग्रह है।

द्रविड़ कौन सी भाषा है?

उत्तर : द्रविड़ भाषा में सबसे ज़्यादा बोलने वाले लोग (बोलने वालों की संख्या के अवरोही क्रम में) तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें से सभी की साहित्यिक परंपराएँ लंबी हैं। छोटी साहित्यिक भाषाएँ तुलु और कोडवा हैं।

द्रविड़ की सबसे प्राचीन भाषा कौन सी है?

उत्तर :चारों द्रविड़ भाषाओं में तमिल भाषा सबसे प्राचीन है तथा इसमें सबसे पहले साहित्य लेखन आरंभ हुआ इसमें संगम साहित्य के अतिरिक्त शिलाप्पदिकारम, मणिमैखलै तथा जीवक चिंतामणि महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।


द्रविड़ लिपि क्या है?

उत्तर : द्रविड़ भाषाएँ , 24 भाषाओं का परिवार जो मूल रूप से दक्षिण एशिया में 214 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं। द्रविड़ भाषाओं में से चार दक्षिण भारत की प्रमुख साहित्यिक भाषाओं में से हैं-तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम। इन सभी की स्वतंत्र लिपियाँ और लंबा प्रलेखित इतिहास है।


द्रविड़ कौन सी जाति होती है?

द्रविड़ लोग एक नहारत के जनसंख्यान के दरूसतीकों से अहम भाषाई सुपरएथनिकिटी हैं जो दक्षिण एशिया (मुख्य रूप से भारत ) के मूल निवासी कई अलग-अलग भाषाई समूहों से बनी है। वे द्रविड़ भाषाएँ बोलते हैं, जिनके संयुक्त कुल मिलाकर लगभग 250 मिलियन मूल वक्ता हैं और यह सारी भाषाओं का सम्बद्ध कहीं न कहीं सांकृत जुड़ी हुई पाई जाती हैं। द्रविड़ दक्षिण भारत और उत्तरी श्रीलंका की आबादी का बहुमत बनाते हैं।

अंतिम कुछ शब्द :-

दोस्तों मै आशा करता हूँ आपको “द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Language Family)” Blog पसंद आया होगा अगर आपको मेरा ये Blog पसंद आया हो तो अपने दोस्तों और अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर करे अन्य लोगो को भी इसकी जानकारी दे। यह Blog Post मुख्य रूप से अध्यायनकारों के लिए तैयार किया गया है, हालांकि सभी लोग इसे पढ़कर ज्ञान आरोहण कर सकते है।

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द्रविड़ भाषा परिवार

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  • द्रविड़ भाषा की लिपि क्या है?
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  • द्रविड़ लोग किस धर्म का पालन करते थे?
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  • द्रविड़ भाषा परिवार के अंतर्गत कौन सी भाषा नहीं है
  • चीनी-तिब्बती भाषा परिवार
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  • भारत में कौन सा सबसे छोटा भाषाई समूह है?

संदर्भ :- 
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- भाषा विज्ञान – भोलनाथ तिवारी
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- भाषा विज्ञान – DDE MD University [Text Book]
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- Wonderhindi
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- Mustgo
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- Pravakta
  • द्रविड़ भाषा परिवार :- Language gulper

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