तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulsidas Ji Ka Jivan Parichay)

तुलसीदास जी का जीवन परिचय (Tulsidas Ji Ka Jivan Parichay):-

भक्तिकालीन साहित्य के राम काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ तथा लोकप्रिय तुलसीदास जी को ही माना जाता है। उनके अप्रतिम रचनाओं के लिए उन्हे हिन्दी का जातीय कवि भी कहा जाता है। नीचे हम तुलसीदास के जीवन परिचय के वारे में विस्तार से आलोचना करेंगे।

जन्मकाल:-

तुलसीदास जी के जन्मकाल के विषय में एकाधिक मत हैं। तुलसीदास के परम शिष्य, बाबा बेणी माधवदास द्वारा रचित ‘गोसाई चरित के अनुसार इनका जन्म श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन, सम्वत् 1554 में हुआ लेकिन अनेक कारणों से विद्वान इस तिथि से सहमत नहीं है और मृत्यु संवत् 1680 विक्रमी में। ऐसा मानने पर तुलसी की आयु 126 वर्ष ठहरती है जो संभव नहीं जान पडती।

अतः पं. रामगुलाम द्विवेदी और जार्ज ग्रियर्सन का मत अधिक स्वीकार्य है जिसके अनुसार तुलसी का जन्म संवत् 1589 विक्रमी अर्थात् 1532 ई. में हुआ था और मृत्यु 1680 वि. अर्थात् 1623 ई. में हुई।

पर इससे यह निश्चित है कि ये महाकवि 16वीं शताब्दी में विद्यमान थे। तुलसी के जन्मस्थान के विषय में काफी विवाद है। कोई उनहें सोरों का बताता है, कोई राजापुर का और कोई अयोध्या का। ज्यादातर लोगों का झुकाव राजापुर की ओर है।

उनकी रचनाओं में अयोध्या, काशी, चित्रकूट आदि का वर्णन बहुत आता है। इन स्थानों पर उनके जीवन का पर्याप्त समय व्यतीत हुआ होगा। बालकाण्ड के एक दोहे में उन्होंने लिखा है कि मैंने रामकथा सूकरखेत में अपने गुरु के मुँह से सुनी।

तुलसीदास जी के मातापिता:

कहाजाता है की तुलसीदास सरयूयारी ब्रह्ममण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। मिश्रबन्धुओं ने इन्हें कान्यकुब्ज माना है। अभुक्तमूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण बालक तुलसीदास को जन्म के बाद ही पिता द्वारा त्याग दिया गया। कहा जाता है कि उनकी माता की मृत्यु प्रसूतिकाल में ही हो गई थी।

उनका पालन-पोषण मुनिया नामक दासी ने किया बाद में बालक रामबोला (तुलसी का बचपन का नाम) बाबा नरहरिदास के पास आ गया जिन्होंने उन्हें शिक्षा-दीक्षा दी। इन्हीं गुरु से उन्हें रामकथा सुनने को मिली। बाबा नरहरिदास के साथ ही बालक रामबोला काशी में आया जहाँ परम विद्वान महात्मा शेष सनातनजी की पाठशाला में 15 वर्ष तक अध्ययन करके शास्त्र पारंगत बने और अपनी जन्मभूमि राजापुर लौटे।

तुलसी का बचपन घोर दरिद्रता एवं असहायावस्था में बीता था। उन्होंने लिखा हैं, माता-पिता ने दुनिया में पैदा करके मुझे त्याग दिया।

तुलसीदास मध्यकाल के उन कवियों में से हैं, जिन्होंने अपने बारे में जो थोड़ा-बहुत लिखा है, वह बहुत काम का है। तुलसी का बचपन घोर दरिद्रिता एवं असहायावस्था में बीता था। उन्होंने लिखा है,

“मातु पिता जग जाइ तज्यो,
विधि ह न लिखी कछ भाल भलाई।”

अर्थात् “माता-पिता ने दुनिया में पैदा करके मुझे त्याग दिया। विधाता ने भी मेरे भाल (भाग्य) में कोई भलाई नहीं लिखी'”

“तनु जन्यों कुटिल कीट
ज्यों तज्यो माता पिता हूँ।”

अर्थात “जैसे कुटिल कीट को पैदा करके छोड़ देते हैं, वैसे ही मेरे माँ-बाप ने मुझे त्याग दिया”

विवाह और जीवन परिवर्तन:

तुलसी का विवाह रत्नावली से हुआ था। कहा जाता है कि ये अपनी पत्नी पर इतने अनुरक्त थे कि एक बार उसके मायके चले जाने पर ये नदी को तैरकर पार करते हुए उसके पास जा पहुँचे और रत्नावली ने इन्हें धिक्कारते हुए कहा-

लाज न लागत आपकों दौरे आयह साथ।
धिक-धिक ऐसे प्रेम कौ कहा कहाँ मैं नाथ।।

अस्थि चर्म मय देह मम तामैं ऐसी प्रीति।
तैसी जौ श्रीराम महं होति न तौ भवभीति॥।

रत्नावली के इन वचनों का ऐसा प्रभाव तुलसीदास के ऊपर पड़ा कि वे विरक्त होकर काशी चले गए। इस घटना का विवरण प्रयादास कृत भक्तमाल की टीका में तथा तुलसी चरित्र और गोसाई चरित्र में मिलता है।

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तुलसीदास जी के साहित्यिक पक्ष :-

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उन्हें हिंदी का जातीय कवि कहा जाता है। उन्होंने हिंदी क्षेत्र की मध्यकाल में प्रचलित दोनों काव्य भाषा- ब्रजभाषा और अवधी में समान अधिकार से रचना की है।

तुलसी की रचनाओं की संख्या आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बारह मानी है जिसमें पांच बड़े और सात छोटे ग्रंथ हैं-

बड़े ग्रंथों मैं रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवित्त रामायण (कवितावली), दोहावली, गीतावली।एवं छोटे ग्रंथों में- रामलला नहछू, कृष्णगीतावली, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्नावली, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल के नाम आता है।

एक अनय महत्तवपूर्ण बात यह है कि उन्होंने मध्यकाल में व्यवहत प्राय: सभी काव्य-रूपों का उपयोग किया है। केवल तुलसीदास की ही रचनाओं को देखकर समझा जा सकता है कि मध्यकालीन हिंदी साहित्य में किन काव्य-रूपों में रचनाएँ होती थीं।

उन्होंने वीरगाथा काव्य की छप्पय-पद्धति, विद्यापति और सूरदास की गीत-पद्धति, गंग आदि कवियों की कवित्त – सवैया पद्धति, रहीम के समान दोहे और बरवै, जायसी की तरह चौपाई-दोहे के क्रम से प्रबंध-काव्य की रचना की है।

पं. रामचद्र शुक्ल के शब्दों में, “हिंदी काव्य की सब प्रकार की रचना-शैली के ऊपर गोस्वामी जी ने अपना ऊँचा आसन प्रतिष्ठित किया है। यह उच्चता और किसी को प्राप्त नहीं।”

तुलसीदास ने अपने जीवन और अपने युग के विषय में हिंदी के किसी भी मध्यकालीन कवि से सबसे अधिक लिखा है। तुलसीदास जी राम के सगुण भक्त थे, लेकिन उनकी भक्त में लोकोन्मुखता थी। वे राम के अनन्य भक्त थे लैकिन यहां तुलसीदास जी के राम सगुण रूप मैं उनके लिए विद्यमान है।

राम ही उनकी कविता के विषय हैं। नाना काव्य रूपों में उन्होंने राम का ही गुणगान किया है, किंतु उनके राम परमब्रह्म होते हुए भी मनुष्य हैं और अपने देशकाल के आदर्शों से निर्मित हैं।

तुलसी के राम ब्रह्म भी हैं और मानव भी। रामचरितमानस में अनेक मार्मिक अवसरों पर तुलसी पाठक को टोककर सावधान कर देते हैं कि यहां राम लीला कर रहे हैं, इन्हें सचमुच मनुष्य न समझ लेना। कारण यह है कि राम ब्रह्म होते हुए भी अवतार ग्रहण करके मानवी लीला में प्रवृत्त हैं।

वस्तुत: रामचरितमानस के प्रारंभ में ही तुलसी ने कौशलपूर्वक राम के ब्रह्मत्व और मनुजत्व की सह-स्थिति के विषय में पार्वती द्वारा शंकर से प्रश्न करा दिया है और रामचरितमानस की पूरी कथा शंकर ने पार्वती को इस शंका के निवारणार्थ सुनाई है।

तुलसी की रचनाओं में हमारा देश, उसकी प्रकृति, वन-नदियाँ, पशु – पक्षी, फसलें, भाषा, मुहावरे, सोंदर्य, कुरूपता सब भरपूर रूप से बिखरे पड़े हैं। वे देश में बहुत घूमे थे और उन्हें देश से अपार प्रेम था। यद्यपि तुलसी को तत्कालीन नगर-जीवन का भी पर्याप्त अनुभव रहा होगा, तथापि वे प्रधानत: किसान जीवन के कवि हैं।

अपनी प्रसिद्वतम रचना के प्रारंभ में जो विशाल रूपक उन्होंने बाँधा है, उससे प्रकट होता है कि उनका पर्यवेक्षण कितना गहरा था! इसी प्रकार, चित्रकूट के कोल-किरातों का उन्होंने जो वर्णन किया है उससे लगता है कि उनसे तुलसी की गहरी अत्मीयता रही होगी। इसी प्रकार उन्होंने नारी-जीवन के विविध चित्र खींचे हैं।

उन्होंने नारी की निंदा भी बहुत की है, किंतु विभिन्न संदर्भों में उन्होंने नारी के प्रति अपार करुणा का भी भाव दिखलाया है। मध्यकाल में शायद ही किसी अन्य कवि ने नारी की पराधीनता का उल्लेख इतने स्पष्ट तौर पर अपने काव्यों में किया हो। tulsidas ji ka jivan parichay

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तुलसीदास की भाषा:-

तुलसीदास जी ने अपने तात्कालीन समय मैं अवधी तथा ब्रज दोनों भाषाओं में लगभग समान अधिकारसे अपनी काव्यगत रचनाएँ लिखीं। जिसमे से रामचरितमानस अवधी भाषा में है, जबकि कवितावली, गीतावली और विनयपत्रिका आदि रचनाओं में ब्रजभाषा का प्रयोग देखा गया है।

रामचरितमानस में प्रबन्ध शैली का प्रयोग, तो वहीं विनयपत्रिका में मुक्तक शैली और दोहावली में साखी शैली का प्रयोग किया गया है। भाव पक्ष तथा कला-पक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसीदास का काव्य हिंदी साहित्य मैं अद्वितीय कृति के रूप मैं माना जाता है।

तुलसीदास जी ने अपने काव्य में तत्कालीन लगभग सभी काव्य- शैलियों का प्रयोग किया है। दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, पद आदि काव्य शैलियों में कवि ने काव्य रचना की है। सभी अलंकारों का प्रयोग करके तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं को अत्यन्त प्रभावशाली उपाय मैं किया जो की उन काव्यों को अद्वितीय बना देता है।

काव्यगत विशेषता:-

विषय की व्यापकता:-

तुलसीदास ने अपने तात्कालीन यूग का गहन एवं गंभीर अध्ययन किया है। उन्होंने अपने युग के जीवन के लगभग सभी समास्याओं पर लेखनी चलाई है। उनके काव्य में धर्म, दर्शन, संस्कृति, भक्ति, कला आदि का आति सुन्दर रूप से समन्वय हुआ है। विभिन्न भावों और लगभग सभी रसों को उनकी रचनाओं में स्थान मिला है।

श्रीराम का स्वरूपः-

महाकवि तुलसीदास ने अपने काव्य में श्रीराम को विष्णु का अवतार मानते हुए उसके सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों का उल्लेख किया है। श्री राम को धर्म का रक्षक और अधर्म का विनाश करने वाला माना है। उन्होंने श्रीराम के चरित्र में शील, सौन्दर्य एवं शक्ति का समन्वय प्रस्तुत किया है। पर उनके वर्णन मैं प्रभु श्रीराम ब्रह्म होने के बाबजूद मानवीय अवतार लीला करते हुए खूब पाए जाते है।

समन्वय की भावनाः-

तुलसीदास के काव्य में समन्वय की भावना का अदभुत चित्रण हुआ है| तत्कालीन समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी समस्याओं का किसी-न-किसी रूप में उन्होंने अपने काव्य में उल्लेख किया है।

दार्शनिक भावना तुलसीदास का सम्पूर्ण काव्य दार्शनिक पृष्ठ भुमि पर आधारित है। तुलसीदास ने दर्शन के नीरस सिद्वान्त को भावपूर्ण एवं कोमल भाषा में बड़ी सफलता पूर्वक अपने काव्य में उद्घाटित किया है। तुलसीदास ने विविध दार्शनिक मतों को ग्रहण करते हुए भी उनमें तारतम्य बैठाकर उनका अदभुत समन्वय किया है। उनकी दार्शनिक विचारधारा मौलिकता से पूर्ण है।

प्रकृति-चित्रण:-

तुलसीदास ने प्रकृति का अत्यन्त मनोरम चित्रण किया है। तुलसी काव्य में प्रकृति के विभिन्न रूपों का चित्रण किया गया है। उनके काव्य में वन, नदी, पर्वत, पक्षी आदि का विस्तृत तथा सुन्दर वर्णन मिलता है।

प्रबन्ध योजनाः

तुलसी की प्रबन्ध-योजना अद्वितीय है। उनकी लगभग सभी रचनाओं में कथा-सूत्र पाया जाता है, जो एक दूसरे से आपस में बंधे हुए रहते है, जिसमे रामचरितमानस की प्रबन्धपटुता सर्वश्रेष्ठ है। सारी कथा मार्मिक प्रसंगों से भरी पड़ी है जो पाठक को बांध के रखने में सक्षम होती है।

कला-पक्षः-

तुलसी के काव्य का कलापक्ष काफी समन्वित एवं विकसित है। उन्होंने अपने समय की प्रसिद्ध अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में काव्य रचना की। ‘रामचरितमानस’ में अकधी तथा ‘विनय पत्रिका मैं ब्रजभाषा का सफल प्रयोग हुआ है। रामाचारितमानस में भी इसका उदाहरण साफ झलकता है।

तुलसीदास के कला पक्ष:-

तुलसी आदर्श व्यवस्था का स्वप्न ही नहीं देखते, उसके अनुसार वे अपने पात्रों को गढ़ते भी हैं। वे राम को आदर्श राजा, पुत्र, भाई, पति, स्वामी, शिष्य; सीता को आदर्श पत्नी और हनुमान को आदर्श सेवक के रूप में चित्रित करते हैं। इससे यह न मानना चाहिए कि इन पात्रों के रूप में तुलसी केवल आदर्श निर्मित कर रहे हैं। वस्तुत: रामोन्मुखता तुलसी का सबसे बड़ा आदर्श और मूल्य है। राम से विमुख होकर सभी संबंध त्याज्य हैं –

तजिए ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
जनकसुता, जगजननी जानकी। अतिसय प्रिय करुणानिधान की।

तुलसीदास ने तत्कालीन सामंतों की लोलुपता पर प्रहार किया है। प्रजा -द्रोही शासक तुलसी की रचनाओं में प्राय: उनके गुस्से के पात्र बनते हैं । उन्होंने अकाल महामारी के साथ-साथ प्रजा से अधिक कर वसूलने की भी निंदा की है।

अपने समय की विभिन्न धार्मिक साधनाओं के पाखंड का भी उन्होंने उद्घाटन किया है। तुलसी के अनुसार जो बुरा है, वह कलिकाल का प्रभाव है। यहाँ तक कि यदि लोग वर्णाश्रम का पालन नहीं कर रहे हैं तो वह भी कलिकाल का प्रभाव है।

विषमताग्रस्त कलिकाल तुलसीदास का युग है, जिसमें वे दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से रहित स्वसुखद रामराज्य को स्वप् बुनते हैं। रामराज्य तुलसी की आदर्श व्यवस्था है। इसके नायक एवं व्यवस्थापक तुलसी के राम हैं। tulsidas ji ka jivan parichay

तुलसीदास रचित कुछ प्रमुख रचनाएं:-

रामचरितमानस:-

तुलसी की अक्षय कीर्ति का आधार उनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस है। रामचरितमानस की रचना का प्रारंभ अयोध्या में संवत् 1631 वि (1574 ई.) में हुआ और उसे 2 वर्ष 7 माह में समाप्त किया। इसका कुछ अंश विशेषत: किष्किंधाकांड काशी में रचा गया।

रामचरितमानस की रचना पूरी करने के बाद तुलसी काशी में रहने लगे थे तथा अनेक शास्त्रज्ञ विद्वानों से उनका शास्त्रार्थ हुआ था। प्रसिद्ध विद्वान मधुसूदन सरस्वती से भी इनका शास्त्रार्थ हुआ था और उन्होंने तुलसी की प्रशंसा की थी।

विनयपत्रिका:-

तुलसीदास की रचनाओं में विनय -पत्रिका का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस काव्य ग्रंथ में 279
पद हैं तथा यह ब्रजभाषा में लिखी गई है। तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस पढ़ना चाहिए और तुलसी को जानने के लिए विनयपत्रिका।

भक्तिभावना की दृष्टि से यह ग्रंथ अद्वितीय है। इस ग्रंथ का प्रधान रस है-शांत रस। सूरदास की पद शैली में इस ग्रंथ की रचना तुलसी ने की है। ये पद विभिन्न राग- रागिनियों में निबद्ध किए गए हैं जिनमें प्रमुख हैं -राग विलावल, राग रामकली, राग बसंत, राग भैरव, रोग केदार, राग कान्हरा, राग टोडी, राग सोरठ, राग, मल्हार आदि।

गीतावली:-

गीतावली भी गीतिकाव्य शैली में सात कांडों में रचित काव्य ग्रंथ है जिसमें रामकथा के मधुर
प्रसंगों का गान मुक्तक शैली में किया गया है।

राम के सौंदर्य, शील, शक्ति का सुंदर चित्रण इस एक ग्रंथ में हुआ है, गीतावली में राम के बाल रूप की झाँकी अकित करते हुए वात्सल्य रस का सुंदर विधान किया गया है। वात्सल्य के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों का सुंदर निरूपण इस ग्रंथ में है। श्रंगार रस के मधुर चित्र भी इसमें अंकित हैं।

कवितावली:-

कवितावली की रचना ‘कवित्त- सरवैया’ शैली में हुई है। यह भी मुक्तक काव्य ग्रंथ है जिसमें
कवित्त, सवैया और छप्पय इन तीन छंदों का प्रयोग हुआ है। इसे तुलसी की अतिम कृति माना जाता है। इसमें भी सात कांड हैं, किंतु प्रबंधत्व नहीं है। रामकथा से संबंधित कवित्त लंकाकांड तक संकलित हैं तथा तुलसी के निजी जीवन एवं तत्कालीन समाज की दशा से संबंधित कवित्त उत्तरकांड में हैं।

इसके अलावा कहा जाता है कि हनुमान बाहुक की रचना तुलसी ने बाहु पीड़ा से मुक्ति पाने हेतु की थी।

रामाज्ञा प्रश्न की रचना तुलसी ने अपने मित्र प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित गंगाराम के अन्रोध पर की थी
काशी में प्रहलाद घाट पर रहते थे।

कृष्ण गीतावली की रचना वृंदावन यात्रा के अवसर पर तुलसी ने की। गोसाई चरित में बेनीमाधवदास
लिखा है कि कृष्ण गीतावली और रामगीतावली की रचना तुलसी ने चित्रकूट में उसके बाद लिखी जब
सूरदास जी उनसे मिलने चित्रकूट आए थे।

बरवै रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने अपने मित्र अब्दुर्रहीम खानखाना (रहीम) के आग्र
पर की थी। इसमें प्रयुक्त छंद वही हैं जो रहीम के ग्रंथ बरवै नायिका भेद में हैं।

तुलसीदास के जीवन के कुछ रोचक घटनवाली:-

तुलसीदास जी के हनुमान जी से मुलाकात:-

तुलसी दास ने अपनी कई रचनाओं में भगवान हनुमान से मुलाकात होने का वर्णन किया है। तुलसीदास की पहली मुलाकात भगवान हनुमान से वाराणसी में हुई थी जहाँ वह भगवान हनुमान के चरणों में गिर गए और चिल्ला चिल्ला कर रो रो कर उनको पहचान लेने का दावा करने लगे जिससे हनुमान जी उनके सामने प्रकट लेके उनको आशीर्वाद दिए और तब तुलसीदास जी ने उनसे भगवान श्रीराम से मिलने का रास्ते के वारे में पूछा।

तुलसीदास ने भगवान हनुमान के सामने जब अपनी भावना व्यक्त की कि वह राम को एक-दूसरे का सामना करते देखना चाहते हैं तब हनुमान ने उनका मार्गदर्शन किया और उनसे कहा कि चित्रकूट जाओ जहां तुम वास्तव में श्रीरामजी को साक्षात कर पाओगे।

भगवान श्रीराम से मुलाकात:-

तुलसीदास जी हनुमान जी के निर्देशानुसार वे चित्रकूट के रामघाट स्थित आश्रम में रहने लगे। एक दिन जब वे कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा पर गए तो उन्होंने दो राजकुमारों को घोड़े पर सवार देखा, जो की प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी थे, पर तुलसीदास जी ने उन्हे पहचान न सके।

बाद में जब उन्होंने स्वीकार किया कि वे भगवान हनुमान द्वारा राम और लक्ष्मण थे, तो वे निराश हो गएऔर इन सभी घटनाओं का वर्णन स्वयं अपनी गीताावली में किया है।

अगली सुबह, जब वे चंदन का लेप बना रहे थे, तब उनकी फिर से राम से मुलाकात हुई। राम उनके पास आए और चंदन के लेप का एक तिलक मांगा, जहां पर उन्होंने राम को स्पष्ट रूप से देखा।

तब तुलसीदास इतने प्रसन्न हुए और वे चंदन के लेप के बारे में भूल गए, और तब राम ने स्वयं तिलक लिया और उसे अपने माथे पर और तुलसीदास के माथे पर भी लगाया। विनयपत्रिका में, तुलसीदास ने चित्रकूट में चमत्कारों का उल्लेख किया था और राम को बहुत धन्यवाद दिया था।

बाल्मिकी जी के अवतार:-

ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास महर्षि वाल्मीकि के अवतार थे। हिंदू शास्त्र भविष्योत्तर पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को बताया था कि वाल्मीकि कलयुग में कैसे अवतार लेंगे।

इसके अलावा जनश्रुतियों के आधार पर, ऐसा माना जाता है कि हनुमान वाल्मीकि के पास रामायण गाते हुए सुनने के लिए जाते थे। रावण पर भगवान राम की विजय के बाद, हनुमान हिमालय में राम की पूजा करते रहे।

तुलसीदास जी के दोहें (Tulsidas ke dohe) :-

तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥

भावार्थ:- गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में उसको फल काटने को मिलेंगे। इसमें भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी उसे बुरा ही मिलेगा।

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,

तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।

भावार्थ: तुलसीदास जी ने कहा की धर्म, दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तोजीवन में केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक उसे दया भावना का त्याग कभी नहीं करी चाहिए।

सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि,

ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि।”

भावार्थ:- जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी पापमय या फिर उचित नहीं होता है।

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और,

बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.”

भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन चारों तरफ हरदम सुख फैलाते हैं, किसी को भी वश में करने का ये एक मंत्र होते हैं इसलिए मानव ने कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करना चाहिए।

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस,

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास.”

भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की मंत्री, वैद्य, और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाना तय है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल :-

तुलसी जी का जन्म कब और कहां हुआ?

तुलसीदास जी के जन्म के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते है। पर जनश्रुतियों तथा लोकवानियों के अनुसार इनका का जन्म चित्रकूट जिले के राजापुर में संवत् 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था।

तुलसीदास ने हनुमान चालीसा कैसे लिखी?

हिंदू इतिहास के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने पूरे चालीस दिनों तक हनुमान चालीसा का गायन किया था, जो मंत्र के चालीस छंदों को दर्शाता है ।

तुलसीदास जी के ग्रंथ कौन कौन से हैं?

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों में श्रीरामचरितमानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण इत्यादि प्रमुख हैं।

तुलसीदास जी ने कितने ग्रंथों की रचना की?

तुलसीदास जी ने कुल 12 ग्रंथों की रचना की है।

तुलसीदास ने कितने दोहे लिखे हैं?

दोहावली तुलसीदास के दोहों का एक संग्रह ग्रंथ है, जिसमे 573 दोहे हैं।

अंतिम कुछ शब्द :-

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Wikipedia Page :- तुलसीदास जी का जीवन परिचय (tulsidas ji ka jivan parichay)

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