कैदी : Munshi Premchand Ki Kahani

कैदी : Munshi Premchand Ki Kahani :-

कैदी : Munshi Premchand Ki Kahani :-

चौदह साल तक निरन्तर मानसिक वेदना और शारीरिक यातना भोगने के बाद आइवन ओखोटस्क जेल से निकला; पर उस पक्षी की भाँति नहीं, जो शिकारी के पिंजरे से पंखहीन होकर निकला हो बल्कि उस सिंह की भाँति, जिसे कठघरे की दीवारों ने और भी भयंकर तथा और भी रक्त-लोलुप बना दिया हो।

उसके अन्तस्तल में एक द्रव ज्वाला उमड़ रही थी, जिसने अपने ताप से उसके बलिष्ठ शरीर, सुडौल अंग-प्रत्यंग और लहराती हुई अभिलाषाओं को झुलस डाला था और आज उसके अस्तित्व का एक-एक अणु एक-एक चिनगारी बना हुआ था क्षुधित, चंचल और विद्रोहमय।

जेलर ने उसे तौला। प्रवेश के समय दो मन तीस सेर था, आज केवल एक मन पाँच सेर। जेलर ने सहानुभूति दिखाकर कहा, तुम बहुत दुर्बल हो गये हो, आइवन। अगर जरा भी पथ्य हुआ, तो बुरा होगा। आइवन ने अपने हड्डियों के ढॉचे को विजय-भाव से देखा और अपने अन्दर एक अग्निमय प्रवाह का अनुभव करता हुआ बोला, ‘क़ौन कहता है कि मैं दुर्बल हो गया हूँ ?’

\’तुम खुद देख रहे होगे।’
‘दिल की आग जब तक नहीं बुझेगी, आइवन नहीं मरेगा, मि. जेलर,
सौ वर्ष तक नहीं, विश्वास रखिए।’

आइवन इसी प्रकार बहकी-बहकी बातें किया करता था, इसलिए जेलर ने ज्यादा परवाह न की। सब उसे अर्ध्द-विक्षिप्त समझते थे। कुछ लिखा-पढ़ी हो जाने के बाद उसके कपड़े और पुस्तकें मँगवायी गयीं; पर वे सारे सूट अब उसे उतारे हुए-से लगते थे। कोटों की जेबों में कई नोट निकले, कई नगद रूबेल। उसने सबकुछ वहीं जेल के वार्डरों और निम्न कर्मचारियों को दे दिया मानो उसे कोई राज्य मिल गया हो।

जेलर ने कहा, ‘यह नहीं हो सकता, आइवन ! तुम सरकारी आदमियों को रिश्वत नहीं दे सकते।’ आइवन साधु-भाव से हँसा, ‘यह रिश्वत नहीं है, मि. जेलर ! इन्हें रिश्वत देकर अब मुझे इनसे क्या लेना-देना है ? अब ये अप्रसन्न होकर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे और प्रसन्न होकर मुझे क्या देंगे ? यह उन कृपाओं का धन्यवाद है जिनके बिना चौदह साल तो क्या, मेरा यहाँ चौदह घंटे रहना असह्य हो जाता।’ premchand ki kahani

जब वह जेल के फाटक से निकला, तो जेलर और सारे अन्य कर्मचारी उसके पीछे उसे मोटर तक पहुँचाने चले। पन्द्रह साल पहले आइवन मास्को के सम्पन्न और सम्भ्रान्त कुल का दीपक था। उसने विद्यालय में ऊँची शिक्षा पायी थी, खेल में अभ्यस्त था, निर्भीक था। उदार और सह्रदय था। दिल आईने की भाँति निर्मल, शील का पुतला, दुर्बलों की रक्षा के लिए जान पर खेलनेवाला, जिसकी हिम्मत संकट के सामने नंगी तलवार हो जाती ।

उसके साथ हेलेन नाम की एक युवती पढ़ती थी, जिस पर विद्यालय के सारे युवक प्राण देते थे। वह जितनी रूपवती थी, उतनी ही तेज थी, बड़ी कल्पनाशील; पर अपने मनोभावों को ताले में बन्द रखनेवाली। आइवन में क्या देखकर वह उसकी ओर आकर्षित हो गयी, यह कहना कठिन है। दोनों में लेशमात्रा भी सामंजस्य न था। आइवन सैर और शराब का प्रेमी था, हेलेन कविता एवं संगीत और नृत्य पर जान देती थी। premchand ki kahani

आइवन की निगाह में रुपये केवल इसलिए थे कि दोनों हाथों से उड़ाये जायँ, हेलेन अत्यन्त कृपण। आइवन को लेक्चर-हॉल कारागार- लगता था;हेलेन इस सागर की मछली थी। पर कदाचित् वह विभिन्नता ही उनमें स्वाभाविक आकर्षण बन गयी, जिसने अन्त में विकल प्रेम का रूप लिया। आइवन ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया और उसने स्वीकार कर लिया।

और दोनों किसी शुभ मुहूर्त में पाणिग्रहण करके सोहागरात बिताने के लिए किसी पहाड़ी जगह में जाने के मनसूबे बाँध रहे थे कि सहसा राजनैतिक संग्राम ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया। हेलेन पहले से ही राष्ट्रवादियों की ओर झुकी हुई थी। आइवन भी उसी रंग में रंग उठा। खानदान का रईस था, उसके लिए प्रजा-पक्ष लेना एक महान् तपस्या थी; इसलिए जब कभी वह इस संग्राम में हताश हो जाता, तो हेलेन उसकी हिम्मत बँधाती और आइवन उसके स्नेह और अनुराग से प्रभावित होकर अपनी दुर्बलता पर लज्जित हो जाता। premchand ki kahani

इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियों का जानी दुश्मन, दिन में दो-चार विद्रोहियों को जब तक जेल न भेज लेता, उसे चैन न आता।

आते-ही-आते उसने कई सम्पादकों पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर उन्हें साइबेरिया भेजवा दिया, कृषकों की सभाएँ तोड़ दीं, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दी और जब जनता ने अपना रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये,तो पुलिस से भीड़ पर गोलियाँ चलवायीं, जिससे कई बेगुनाहों की जानें गयीं। premchand ki kahani

मार्शल लॉ जारी कर दिया। सारे नगर में हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के घरों से न निकलते थे; क्योंकि पुलिस हर एक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी। हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा, यह अन्धेर तो अब नहीं देखा जाता, आइवन। इसका कुछ उपाय होना चाहिए। आइवन ने प्रश्न भरी आँखों से देखा उपाय ! हम क्या कर सकते हैं ?

हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा, ‘तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं ? मैं कहती हूँ, हम सबकुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथों से उसका अन्त कर दूंगी।’ premchand ki kahani

आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा-‘तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान है ? वह कभी खुली गाड़ी में नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारों का एक दल हमेशा रहता है। रेलगाड़ी में भी वह रिजर्व डब्बों में सफर करता है ! मुझे तो असम्भव-सा लगता है, हेलेन बिल्कुल असंभव।’

हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मुँह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों में तेज भरकर बोली, ‘यह सबकुछ होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ,आइवन ! आदमी एक बार अपनी जान पर खेलकर सबकुछ कर सकता है।’ premchand ki kahani

‘जानते हो, मैं क्या करूँगी ? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूँगी; उसका विश्वास प्राप्त करूँगी, उसे इस भ्रांति में डालूँगी कि मुझे उससे प्रेम है। मनुष्य कितना ही ह्रदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी-न-किसी कोने में पराग की भाँति रस छिपा ही रहता है। मैं तो समझती हूँ कि रोमनाफ की यह दमन-नीति उसकी अवरुद्ध अभिलाषा की गाँठ है और कुछ नहीं।

किसी मायाविनी के प्रेम में असफल होकर उसके ह्रदय का रस-ऱेत सूख गया है। वहाँ रस का संचार’ करना होगा और किसी युवती का एक मधुर शब्द, एक सरल मुस्कान भी जादू का काम करेगी ! ऐसों को तो वह चुटकियों में अपने पैरों पर गिरा सकती है। premchand ki kahani

तुम-जैसे सैलानियों को रिझाना इससे कहीं कठिन है। अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि मैं रूपहीन नहीं हूँ, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मेरा कार्य सफल होगा। बतलाओ मैं रूपवती हूँ या नहीं ? ‘ उसने तिरछी आँखों से आइवन को देखा।

आइवन इस भाव-विलास पर मुग्धा होकर बोला, ‘तुम यह मुझसे पूछती हो, हेलेन ? मैं तो तुम्हें संसार
की …’

हेलेन ने उसकी बात काटकर कहा, ‘अगर तुम ऐसा समझते हो, तो तुम मूर्ख हो, आइवन ! इस नगर में नहीं, हमारे विद्यालय में ही, मुझसे कहीं रूपवती बालिकाएँ मौजूद हैं। हाँ, तुम इतना ही कह सकते हो कि तुम कुरूपा नहीं हो। क्या तुम समझते हो, मैं तुम्हें संसार का सबसे रूपवान युवक समझती हूँ ? कभी नहीं। premchand ki kahani

मैं ऐसे एक नहीं सौ नाम गिना सकती हूँ, जो चेहरे-मोहरे में तुमसे कहीं बढ़कर हैं, मगर तुममें कोई ऐसी वस्तु है, जो तुम्हीं में है और वह मुझे और कहीं नजर नहीं आती। तो मेरा कार्यक्रम सुनो। एक महीने तो मुझे उससे मेल करते लगेगा। फिर वह मेरे साथ सैर करने निकलेगा। और तब एक दिन हम और वह दोनों रात को पार्क में जायँगे और तालाब के किनारे बेंच पर बैठेंगे। तुम उसी वक्त रिवाल्वर लिये आ जाओगे और वहीं पृथ्वी उसके बोझ से हलकी हो जायगी।

जैसा हम पहले कह चुके हैं, ‘आइवन एक रईस का लड़का था और क्रांतिमय राजनीति से उसका हार्दिक प्रेम न था। हेलेन के प्रभाव से कुछ मानसिक सहानुभूति अवश्य पैदा हो गयी थी और मानसिक सहानुभूति प्राणी को संकट में नहीं डालती। उसने प्रकट रूप से तो कोई आपत्ति नहीं की लेकिन कुछ संदिग्धा भाव से बोला, यह तो सोचो हेलेन, इस तरह की हत्या कोई मानुषीय कृति है ? premchand ki kahani

हेलेन ने तीखेपन से कहा, ‘दूसरों के साथ मानुषीय व्यवहार नहीं करता, उसके साथ हम क्यों मानुषीय व्यवहार करें ? क्या यह सूर्य की भाँति प्रकट नहीं है कि आज सैकड़ों परिवार इस राक्षस के हाथों तबाह हो रहे हैं ? कौन जानता है, इसके हाथ कितने बेगुनाहों के खून से रंगे हुए हैं ? ऐसे व्यक्ति के साथ किसी तरह की रिआयत करना असंगत है। तुम न-जाने क्यों इतने ठण्डे हो। मैं तो उसके दुष्टाचरण को देखती हूँ तो मेरा रक्त खौलने लगता है।

मैं सच कहती हूँ, जिस वक्त उसकी सवारी निकलती है, मेरी बोटी-बोटी हिंसा के आवेग से काँपने लगती है। अगर मेरे सामने कोई उसकी खाल भी खींच ले, तो मुझे दया न आये। अगर तुममें इसका साहस नहीं है, तो कोई हरज नहीं। मैं खुद सबकुछ कर लूँगी। हाँ, देख लेना, मैं कैसे उस कुत्ते को जहन्नुम पहुँचाती हूँ। ‘ हेलेन का मुखमंडल हिंसा के आवेग से लाल हो गया। premchand ki kahani

आइवन ने लज्जित होकर कहा, ‘नहीं-नहीं, यह बात नहीं है, हेलेन ! मेरा यह आशय न था कि मैं इस काम में तुम्हें सहयोग न दूंगा। मुझे आज मालूम हुआ कि तुम्हारी आत्मा देश की दुर्दशा से कितनी विकल है; लेकिन मैं फिर यही कहूँगा कि यह काम इतना आसान नहीं है और हमें बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ेगा।’

हेलेन ने उसके कंधो पर हाथ रखकर कहा, ‘तुम इसकी कुछ चिन्ता न करो, आइवन ! संसार में मेरे लिए जो वस्तु सबसे प्यारी है, उसे दाँव पर रखते हुए क्या मैं सावधानी से काम न लूँगी ? लेकिन तुमसे एक याचना करती हूँ। अगर इस बीच में कोई ऐसा काम करूँ, जो तुम्हें बुरा मालूम हो तो तुम मुझे क्षमा करोगे न ?’ आइवन ने विस्मयभरी आँखों से हेलेन के मुख की ओर देखा। उसका आशय उसकी समझ में न आया। premchand ki kahani

हेलेन डरी, आइवन कोई नयी आपत्ति तो नहीं खड़ी करना चाहता। आश्वासन के लिए अपने मुख को उसके आतुर अधारों के समीप ले जाकर बोली,’प्रेम का अभिनय करने में मुझे वह सबकुछ करना पड़ेगा, जिस पर एकमात्र तुम्हारा ही अधिकार है। मैं डरती हूँ, कहीं तुम मुझ पर सन्देह न करने लगो।’ आइवन ने उसे कर-पाश में लेकर कहा, ‘यह असम्भव है हेलेन, विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी है।’ अंतिम शब्द कहते-कहते उसकी आँखें झुक गयीं। इन शब्दों में उदारता का जो आदर्श था, वह उस पर पूरा उतरेगा या नहीं, वह यही सोचने लगा।

इसके तीन दिन पीछे नाटक का सूत्रापात हुआ। हेलेन अपने ऊपर पुलिस के निराधर संदेह की फरियाद लेकर रोमनाफ से मिली और उसे विश्वास दिलाया कि पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट हैं कि वह उनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही है। यह सत्य है कि विद्यालय में उसकी संगति कुछ उग्र युवकों से हो गयी थी; पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। premchand ki kahani

रोमनाफ जितना चतुर था, उससे कहीं चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी जीवन में उसे किसी ऐसी रमणी से साबिका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन-लोलुप की भाँति सहसा यह धन-राशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पड़ गया।

अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातों का पता लगाकर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालों को बहुत सिर मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थीं; पर इन बातों में मिथ्या का कितना मिश्रण है, वह न भाँप सका। इस आधा घंटे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था। premchand ki kahani

जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुर्सी से खड़े होकर कहा, ‘मुझे आशा है, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।’
हेलेन ने हाथ बढ़ाकर कहा, ‘हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।’
‘कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।’ रब्त-जब्त बढ़ने लगा।

हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। ‘रोमनाफ वास्तव में जितना बदनाम है, उतना बुरा नहीं। नहीं, वह बड़ा रसिक, संगीत और कला का प्रेमी और शील तथा विनय की मूर्ति है।’
इन थोड़े ही दिनों में हेलेन से उसकी घनिष्ठता हो गयी है और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा है। premchand ki kahani

अन्त में वह निश्चित तिथि आयी। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे-बैठे इसी प्रश्न पर विचार करते रहे। आइवन का मन आज बहुत चंचल हो रहा था। कभी अकारण ही हँसने लगता, कभी अनायास ही रो पड़ता। शंका,प्रतीक्षा और किसी अज्ञात चिंता ने उसके मनो-सागर को इतना अशान्त कर दिया था कि उसमें भावों की नौकाएँ डगमगा रही थीं न मार्ग का पता था न दिशा का। हेलेन भी आज बहुत चिन्तित और गम्भीर थी।

आज के लिए उसने पहले ही से सजीले वस्त्र बनवा रखे थे। रूप को अलंकृत करने के न-जाने किन-किन विधानों का प्रयोग कर रही थी; पर इसमें किसी योद्धा का उत्साह नहीं, कायर का कम्पन था। सहसा आइवन ने आँखों में आँसू भरकर कहा, ‘तुम आज इतनी मायाविनी हो गयी हो हेलेन, कि मुझे न-जाने क्यों तुमसे भय हो रहा है !’ premchand ki kahani

हेलेन मुस्कायी। उस मुस्कान में करुणा भरी हुई थी -‘मनुष्य को कभी-कभी कितने ही अप्रिय कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है आइवन, आज मैं सुधा से विष का काम लेने जा रही हूँ। अलंकार का ऐसा दुरुपयोग तुमने कहीं और देखा है ?’

आइवन उड़े हुए मन से बोला, ‘इसी को राष्ट्र-जीवन कहते हैं।’
‘यह राष्ट्र-जीवन है, यह नरक है।’

‘मगर संसार में अभी कुछ दिन और इसकी जरूरत रहेगी।’
‘यह अवस्था जितनी जल्द बदल जाय, उतना ही अच्छा।’

पाँसा पलट चुका था, आइवन ने गर्म होकर कहा, अत्याचारियों को संसार में फलने-फूलने दिया जाय, जिससे एक दिन इनके काँटों के मारे पृथ्वी पर कहीं पाँव रखने की जगह न रहे। हेलेन ने कोई जवाब न दिया; पर उसके मन में जो अवसाद उत्पन्न हो गया था, वह उसके मुख पर झलक रहा था। राष्ट्र उसकी दृष्टि में सर्वोपरि था, उसके सामने व्यक्ति का कोई मूल्य न था। अगर इस समय उसका मन किसी कारण से दुर्बल भी हो रहा था, तो उसे खोल देने का उसमें साहस न था। premchand ki kahani

दोनों गले मिलकर विदा हुए। कौन जाने, यह अन्तिम दर्शन हो ? दोनों के दिल भारी थे और आँखें सजल।
आइवन ने उत्साह के साथ कहा, ‘मैं ठीक समय पर आऊँगा।’ हेलेन ने कोई जवाब न दिया। आइवन ने फिर सानुरोध कहा, ‘ख़ुदा से मेरे लिए दुआ करना, हेलेन !’ premchand ki kahani

हेलेन ने जैसे रोते हुए गले से कहा, ‘मुझे खुदा पर भरोसा नहीं है।’
‘मुझे तो है !’
‘कब से ?’
‘जब से मौत मेरी आँखों के सामने खड़ी हो गयी।’

वह वेग के साथ चला गया। सन्ध्या हो गयी थी और दो घंटे के बाद ही उस कठिन परीक्षा का समय आ जायगा, जिससे उसके प्राण काँप रहे थे। वह कहीं एकान्त में बैठकर सोचना चाहता था। आज उसे ज्ञात हो रहा था कि वह स्वाधीन नहीं है। बड़ी मोटी जंजीर उसके एक-एक अंग को जकड़े हुए थी। इन्हें वह कैसे तोड़े ? दस बज गये थे।

हेलेन और रोमनाफ पार्क के एक कुंज में बेंच पर बैठे हुए थे। तेज बर्फीली हवा चल रही थी। चाँद किसी क्षीण आशा की भाँति बादलों में छिपा हुआ था। हेलेन ने इधर-उधर सशंक नेत्रों से देखकर कहा, ‘अब तो देर हो गयी, यहाँ से चलना चाहिए।’ रोमनाफ ने बेंच पर पाँव फैलाते हुए कहा, ‘अभी तो ऐसी देर नहीं हुई है, हेलेन ! कह नहीं सकता, जीवन के यह क्षण स्वप्न हैं या सत्य; लेकिन सत्य भी हैं तो स्वप्न से अधिक मधुर और स्वप्न भी हैं तो सत्य से अधिक उज्ज्वल।’ premchand ki kahani

हेलेन बेचैन होकर उठी और रोमनाफ का हाथ पकड़कर बोली, ‘मेरा जी आज कुछ चंचल हो रहा है। सिर में चक्कर-सा आ रहा है। चलो मुझे मेरे घर पहुँचा दो।’
रोमनाफ ने उसका हाथ पकड़कर अपनी बगल में बैठाते हुए कहा, ‘लेकिन मैंने मोटर तो ग्यारह बजे बुलायी है ! हेलेन के मुँह से चीख निकल गयी ग्यारह बजे ! munshi premchand ki kahani

‘हाँ, अब ग्यारह बजा चाहते हैं। आओ तब तक और कुछ बातें हों। रात तो काली बला-सी मालूम होती है। जितनी ही देर उसे दूर रख सकूँ उतना ही अच्छा। मैं तो समझता हूँ, उस दिन तुम मेरे सौभाग्य की देवी बनकर आयी थीं हेलेन, नहीं तो अब तक मैंने न जाने क्या-क्या अत्याचार किये होते। उस उदार नीति ने वातावरण में जो शुभ परिवर्तन कर दिया, उस पर मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा है। premchand ki kahani

महीनों के दमन ने जो कुछ न कर पाया था, वह दिनों के आश्वासन ने पूरा कर दिखाया। और इसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ, हेलेन, केवल तुम्हारा। पर खेद यही है कि हमारी सरकार दवा करना नहीं जानती, केवल मारना जानती है। जार के मंत्रिायों में अभी से मेरे विषय में सन्देह होने लगा है, और मुझे यहाँ से हटाने का प्रस्ताव हो रहा है।

सहसा टार्च का चकाचौंधा पैदा करनेवाला प्रकाश बिजली की भाँति चमक उठा और रिवाल्वर छूटने की आवाज आयी। उसी वक्त रोमनाफ ने उछलकर आइवन को पकड़ लिया और चिल्लाया –‘पकड़ो, पकड़ो ! खून ! हेलेन, तुम यहाँ से भागो।’ premchand ki kahani

पार्क में कई संतरी थे। चारों ओर से दौड़ पड़े। आइवन घिर गया। एक क्षण में न-जाने कहाँ से टाउन-पुलिस, सशस्त्र पुलिस, गुप्त पुलिस और सवार पुलिस के जत्थे-के-जत्थे आ पहुँचे। आइवन गिरफ्तार हो गया। रोमनाफ ने हेलेन से हाथ मिलाकर सन्देह के स्वर में कहा, ‘यह आइवन तो वही युवक है, जो तुम्हारे साथ विद्यालय में था। munshi premchand ki kahani

हेलेन ने क्षुब्ध होकर कहा, ‘हाँ, है। लेकिन मुझे इसका जरा भी अनुमान न था कि वह क्रान्तिकारी हो गया है।’
‘गोली मेरे सिर पर से सन्-सन् करती हुई निकल गयी।’
‘या ईश्वर !’

‘मैंने दूसरा फ़ायर करने का अवसर ही न दिया। मुझे इस युवक की दशा पर दु:ख हो रहा है, हेलेन ! ये अभागे समझते हैं कि इन हत्याओं से वे देश का उद्धार कर लेंगे। अगर मैं मर ही जाता तो क्या मेरी जगह कोई मुझसे भी ज्यादा कठोर मनुष्य न आ जाता ? premchand ki kahani

लेकिन मुझे जरा भी क्रोध, दु:ख या भय नहीं है हेलेन, तुम बिलकुल चिन्ता न करना। चलो, मैं तुम्हें पहुँचा दूं।’ रास्ते-भर रोमनाफ इस आघात से बच जाने पर अपने को बधाई और ईश्वर को धन्यवाद देता रहा और हेलेन विचारों में मग्न बैठी रही। दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के इजलास में अभियोग चला और हेलेन सरकारी गवाह थी। आइवन को मालूम हुआ कि दुनिया अँधेरी हो गयी है और वह उसकी अथाह गहराई में धॉसता चला जा रहा है। munshi premchand ki kahani

चौदह साल के बाद।
आइवन रेलगाड़ी से उतरकर हेलेन के पास जा रहा है। उसे घरवालों की सुध नहीं है। माता और पिता उसके वियोग में मरणासन्न हो रहे हैं, इसकी उसे परवाह नहीं है। वह अपने चौदह साल के पाले हुए हिंसा-भाव से उन्मत्त, हेलेन के पास जा रहा है; पर उसकी हिंसा में रक्त की प्यास नहीं है, केवल गहरी दाहक दुर्भावना है। premchand ki kahani

इन चौदह सालों में उसने जो यातनाएँ झेली हैं, उनके दो-चार वाक्यों में मानो सत्त निकालकर, विष के समान हेलेन की धामनियों में भरकर, उसे तड़पते हुए देखकर, वह अपनी आँखों को तृप्त करना चाहता है। और वह वाक्य क्या है ? ‘हेलेन, तुमने मेरे साथ जो दगा की है, वह शायद त्रिया-चरित्र के इतिहास में भी अद्वितीय है। मैंने अपना सर्वस्व तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दिया।

मैं केवल तुम्हारे इशारों का गुलाम था। तुमने ही मुझे रोमनाफ की हत्या के लिए प्रेरित किया और तुमने ही मेरे विरुद्ध साक्षी दी; केवल अपनी कुटिल काम-लिप्सा को पूरा करने के लिए ! मेरे विरुद्ध कोई दूसरा प्रमाण न था। munshi premchand ki kahani

रोमनाफ और उसकी सादी पुलिस भी झूठी शहादतों से मुझे परास्त न कर सकती थी; मगर तुमने केवल अपनी वासना को तृप्त करने के लिए, केवल रोमनाफ के विषाक्त आलिंगन का आनन्द उठाने के लिए मेरे साथ यह विश्वासघात किया। premchand ki kahani

पर आँखें खोलकर देखो कि वही आइवन, जिसे तुमने पैर के नीचे कुचला था,आज तुम्हारी उन सारी मक्कारियों का पर्दा खोलने के लिए तुम्हारे सामने खड़ा है। तुमने राष्ट्र की सेवा का बीड़ा उठाया था। तुम अपने को राष्ट्र की वेदी पर होम कर देना चाहती थीं; किन्तु कुत्सित कामनाओं के पहले ही प्रलोभन में तुम अपने सारे बहुरूप को तिलांजलि देकर भोग-लालसा की गुलामी करने पर उतर गयीं। अधिकार और समृद्धि के पहले ही टुकड़े पर तुम दुम हिलाती हुई टूट पड़ीं, धिक्कार है तुम्हारी इस भोग-लिप्सा को, तुम्हारे इस कुत्सित जीवन को ?’ munshi premchand ki kahani

सन्ध्या-काल था। पश्चिम के क्षितिज पर दिन की चिता जलकर ठंडी हो रही थी और रोमनाफ के विशाल भवन में हेलेन की अर्थी को ले चलने की तैयारियाँ हो रही थीं। नगर के नेता जमा थे और रोमनाफ अपने शोक-कंपित हाथों से अर्थी को पुष्पहारों से सजा रहा था एवं उन्हें अपने आत्म-जल से शीतल कर रहा था। उसी वक्त आइवन उन्मत्त वेश में, दुर्बल, झुका हुआ, सिर के बाल बढ़ाये, कंकाल-सा आकर खड़ा हो गया। किसी ने उसकी ओर ध्यान न दिया। समझे, कोई भिक्षुक होगा, जो ऐसे अवसरों पर दान के लोभ से आ जाया करते हैं ! premchand ki kahani

जब नगर के बिशप ने अन्तिम संस्कार समाप्त किया और मरियम की बेटियाँ नये जीवन के स्वागत पर गीत गा चुकीं, तो आइवन ने अर्थी के पास जाकर आवेश से काँपते हुए स्वर में कहा, ‘यह वह दुष्टा है, जिसे सारी दुनिया की पवित्र आत्माओं की शुभ कामनाएँ भी नरक की यातना से नहीं बचा सकतीं। वह इस योग्य थी कि उसकी लाश …’ munshi premchand ki kahani

कई आदमियों ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और धक्के देते हुए फाटक की ओर ले चले। उसी वक्त रोमनाफ ने आकर उसके कन्धों पर हाथ रख दिया और उसे अलग ले जाकर पूछा, ‘दोस्त, क्या तुम्हारा नाम क्लॉडियस आइवनाफ है ? हाँ, तुम वही हो, मुझे तुम्हारी सूरत याद आ गयी। मुझे सब कुछ मालूम है, रत्ती-रत्ती मालूम है। हेलेन ने मुझसे कोई बात नहीं छिपायी। premchand ki kahani

अब वह इस संसार में नहीं है, मैं झूठ बोलकर उसकी कोई सेवा नहीं कर सकता। तुम उस पर कठोर शब्दों का प्रहार करो या कठोर आघातों का, वह समान रूप से शान्त रहेगी; लेकिन अन्त समय तक वह तुम्हारी याद करती रही। premchand ki kahani

उस प्रसंग की स्मृति उसे सदैव रुलाती रहती थी। उसके जीवन की यह सबसे बड़ी कामना थी कि तुम्हारे सामने घुटने टेककर क्षमा की याचना करे, मरते-मरते उसने यह वसीयत की, कि जिस तरह भी हो सके उसकी यह विनय तुम तक पहुँचाऊँ कि वह तुम्हारी अपराधिनी है और तुमसे क्षमा चाहती है। munshi premchand ki kahani

क्य तुम समझते हो, जब वह तुम्हारे सामने आँखों में आँसू भरे आती, तो तुम्हारा ह्रदय पत्थर होने पर भी न पिघल जाता ? क्या इस समय भी तुम्हें दीन याचना की प्रतिमा-सी खड़ी नहीं दीखती ? चलकर उसका मुस्कराता हुआ चेहरा देखो। मोशियो आइवन, तुम्हारा मन अब भी उसका चुम्बन लेने के लिए विकल हो जायगा। मुझे जरा भीर् ईर्ष्या न होगी। premchand ki kahani

उस फूलों की सेज पर लेटी हुई वह ऐसी लग रही है, मानो फूलों की रानी हो। जीवन में उसकी एक ही अभिलाषा अपूर्ण रह गयी आइवन, वह तुम्हारी क्षमा है। प्रेमी ह्रदय बड़ा उदार होता है आइवन, वह क्षमा और दया का सागर होता है। ईर्ष्या और दम्भ के गन्दे नाले उसमें मिलकर उतने ही विशाल और पवित्र हो जाते हैं। जिसे एक बार तुमने प्यार किया, उसकी अन्तिम अभिलाषा की तुम उपेक्षा नहीं कर सकते।’ premchand ki kahani

उसने आइवन का हाथ पकड़ा और सैकड़ों कुतूहलपूर्ण नेत्रों के सामने उसे लिये हुए अर्थी के पास आया और ताबूत का ऊपरी तख्ता हटाकर हेलेन का शान्त मुखमण्डल उसे दिखा दिया। उस निस्पन्द, निश्चेष्ट, निर्विकार छवि को मृत्यु ने एक दैवी गरिमा-सी प्रदान कर दी थी, मानो स्वर्ग की सारी विभूतियाँ उसका स्वागत कर रही हैं। premchand ki kahani

आइवन की कुटिल आँखों में एक दिव्य ज्योति-सी चमक उठी और वह दृश्य सामने खिंच गया, जब उसने हेलेन को प्रेम से आलिंगित किया था और अपने ह्रदय के सारे अनुराग और उल्लास को पुष्पों में गूँथकर उसके गले में डाला था। उसे जान पड़ा, यह सबकुछ जो उसके सामने हो रहा है, स्वप्न है और एकाएक उसकी आँखें खुल गयी हैं और वह उसी भाँति हेलेन को अपनी छाती से लगाये हुए है। premchand ki kahani

उस आत्मानन्द के एक क्षण के लिए क्या वह फिर चौदह साल का कारावास झेलने के लिए न तैयार हो जायगा ? क्या अब भी उसके जीवन की सबसे सुखद घड़ियाँ वही न थीं, जो हेलेन के साथ गुजरी थीं और क्या उन घड़ियों के अनुपम आनन्द को वह इन चौदह सालों में भी भूल सका था ? premchand ki kahani

उसने ताबूत के पास बैठकर श्रद्धा के काँपते हुए कंठ से प्रार्थना की ‘ईश्वर, तू मेरे प्राणों से प्रिय हेलेन को अपनी क्षमा के दामन में ले !’ और जब वह ताबूत को कन्धो पर लिये चला, तो उसकी आत्मा लज्जित थी अपनी संकीर्णता पर, अपनी उद्विग्नता पर, अपनी नीचता पर और जब ताबूत कब्र में रख दिया गया, तो वह वहाँ बैठकर न-जाने कब तक रोता रहा। दूसरे दिन रोमनाफ जब फातिहा पढ़ने आया तो देखा, आइवन सिजदे में सिर झुकाये हुए है और उसकी आत्मा स्वर्ग को प्रयाण कर चुकी है। premchand ki kahani

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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

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