उन्माद : Munshi Premchand Ki Kahani

उन्माद : Munshi Premchand Ki Kahani :-

उन्माद : Munshi Premchand Ki Kahani :-

1
मनहर ने अनुरक्त होकर कहा-यह सब तुम्हारी कुर्बानियों का फल है वागी। नहीं तो आज मैं किसी अन्धेरी गली में, किसी अंधेरे मकान के अन्दर अंधेरी जिन्दगी के दिन काट र्हा होता। तुम्हारी सेवा और उपकार हमेशा याद रहेंगे, तुमने मेरा जीवन सुधार दिया -मुझे आदमी बना दिया।

वागेश्वरी ने सिर झुकाये नम्रता से उत्तर दिया-यह तुम्हारी सज्जनता मानूं,मैं बेचारी भला तुम्हारी जिन्दगी क्या सुधारूंगी? हां, तुम्हारे साथ रहकर मैं भी एक दिन अदमी बन जाऊंगी। तुमने परिश्रम किया, उसका पुरस्कार पाया। जो अपनी मदद आप करते हैं उनकी मद परमात्मा भी करते हैं, अगर मुझ-जैसी गंवारन किसी और के पाले पड़ती, तो अब तक न जाने क्या गत बनी होती।

मनहर मानो इस बहस में अपना पक्ष-समर्थ करने के लिये कमर बांधता हुआ बोला-तुम जैसी गंवारन पर मैं एक लाख सजी हुयी गुड़ियों और रंगीन तितलियों को निछावर कर सकता हूं। तुमने मेहनत करने का वह अवसर और अवकाश दिया जिनके बिना कोई सफल हो ही नहीं सकता। अ

गर तुमने अपनी अन्य विलास प्रिय, रंगीन मिजाज बहनों की तरह मुझे अपने तकाजों से दबा रखा होता, तो मुझे उन्नति करने का अवरर कहां मिलता? तुमने मुझे निश्चिन्तता प्रदान की, जो स्कूल के दिनों में भी न मिली थी। अपने और सहकारियों को देखता हूं, तो मुझे उन पर दया आती है। किसी का खर्च पूरा नहीं पड़ता। आधा महीना भी नहीं जाने पाता और हांथ खाली हो जाता है। Munshi Premchand Ki Kahani

कोई दोस्तों से उधार मांगता है, कोई घरवालों को खत लिखता है। कोई गहनों की फिक्र में मरा जाता है कोई कपड़ों की। कभी नौकर की टोह में हैरान, कभी वैध की टोह में परेशान। किसी को शान्ति नहीं। आये दिन स्त्री-पुरुष मॆं जूते चलते हैं। अपना जैसा भाग्यवान तो मुझे कोई नहीं दीख पड़ता। मुझे घर के सारे आनन्द प्राप्त हैं और जिम्मेदारी एक भी नहीं। तुमने ही मेरे हौसलों को उभारा, मुझे उत्तेजना दी।

जब कभी मेरा उत्साह टूटने लगता, तो तुम मुझे तसल्ली देती थीं। मुझे मालूम ही नहीं हुआ कि तुम घर का प्रबन्ध कैसे करती हो। तुमने मोटे से मोटा काम अपने हाथों से किया, जिससे मुझे पुस्तकों के लिये रुपयों की कमी न हो। तुम्ही मेरी देवी हो और तुम्हारी ही बदौलत आज मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं तुम्हारी इन सेवाओं की स्मृति को हृदय में सुरक्षित रखूंगा वागी, और एक दिन वह आयेगा, जब तुम अपने त्याग और तप का आनन्द उठाओगी।

वागेश्वरी ने गदगद होकर कहा-तुम्हारे ये शब्द मेरे लिये सबसे बड़े पुरस्कार हैं, मानू! मैं और किसी पुरस्कार की भूखी नहीं! मैंने जो कुछ तुम्हारी थोड़ी बहुत सेवा की, उसका इतना यश मुझे मिलेगा, मुझे तो आशा भी न थी। Munshi Premchand Ki Kahani
मनहरनाथ का हृदय इस समय उदार भावों से उमड़ा हुआ था।

वह यों बहुत ही अल्पभाषी, कुछ रूखा आदमी था और शायद बागेश्वरी के मन में उसकी शुष्कता पर दःख भी हुआ हो; पर इस समय सफलता के नशे ने उसकी वाणी मॆं पर लगा दिये थे। बोला- जिस समय मेरे विवाह की बात चल रही थी, मैं बहुत शंकित था। समझ गया कि मुझे जो कुछ होना था हो गया। अब सारी उम्र देवी जी की नाजबरदारी में गुजरेगी। बड़े-बड़े अंग्रेज विद्वानों की पुस्तकें पढ़ने से मुझे विवाह से घृणा हो गयी थी।

मैं इसे उम्र कैद समझने लगा था, जो आत्मा और बुधि की उन्नति का मार्ग बन्द क्र देती है, जो मनुष्य को स्वार्थ का भक्त बना देती है, जो जीवन के क्षेत्र को संकीर्ण कर देती है। मगर दो ही चार मास के बाद मुझे अपनी भूल मालूम हुयी। मुझे मालूम हुआ कि सुभार्या स्वर्ग की सबसे बड़ी विभूति है, जो मनुष्य को उज्जवल और पूर्ण बना देती है, जो आत्मोन्नति का मूलमन्त्र है। मुझे मालूम हुआ कि विवाह का उद्देश्य भोग नहीं, आत्मा का विकास है। Munshi Premchand Ki Kahani

वागेश्वरी मनहर की नम्रता सहन नहीं कर सकी। वह किसी बात के बहाने से उठकर चली गयी।

मनहर और वागेश्वरी का विवाह हुये तीन साल गुजरे थे। मनहर उस समय एक दफ्तर में क्लर्क था। सामान्य युवकों की भांति उसे भी जासूसी उपन्यासों से बहुत प्रेम था। धीरे-धीरे उसे जासूसी का शौक हुआ।

इस विषय पर उसने बहुत सा साहित्य जमा किया और बड़े मनोयोग से उसका अध्ययन किया। इसके बाद उसने इस विषय पर स्वयं एक किताब लिखी। रचना में उसने ऐसी विलक्षण विवेचन-शक्ति का परिचय दिया, उसकी शैली भी इतनी रोचक थी, कि जनता ने उसे हाथों-हाथ लिया। इस विषय पर वह सर्वोत्तम ग्रन्थ था। Munshi Premchand Ki Kahani

देश में धूम मच गयी। यहां तक कि इटली और जर्मनी-जैसे देशों से उसके पास प्रशंसा-[अत्र आये और इस विषय की पत्रिकाओं में अच्छी-अच्छी आलोचनाएं निकली। अन्त में सरकार ने भी अपनी गुण्ग्राहकता का परिचय दिया-उसे इंग्लैण्ड जाकर इस कला का अभ्यास करने के लिये वृत्ति प्रदान की। और यह सब कुछ वागेश्वरी की भहोरणा का शूभ-फल था।

मनहर की इच्छा थी कि वागेश्वरी भी साथ चले, पर वागेश्वरी उनके पांव की बेड़ी नहीं बनना चाहती थी। उसने घर रहकर सास-ससुर की सेवा करना ही उचित समझा।

मनहर के लिये इंग्लैण्ड एक दूसरी दुनिया थी, जहां उन्नति के मुख्य साधनों में एक रूपवती पत्नी का होना भी जरूरी था। अगर पत्नी रूपवती है, चपल है, वाणी कुशल है, प्रगल्भ है, तो समझ लो उसके पति को सोने की खान मिल गयी।

अब वह उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है। मलोयोग और तपस्या के बलबूते पर नहीं, पत्नी के प्रभाव और आकर्षण के तेज पर। उस संसार में रूप और लावण्य व्रत के बन्धनों से मुक्त, एक अबाध सम्मपत्ति थी। जिसने किसी रमणी को प्राप्त कर लिया, उसकी मानो तकदीर खुल गयी। यदि कोई सुन्दरी कोई सहधर्मिणी नहीं है, तो तुम्हारा सारा उध्योग, सारी कार्य पटुता निष्फल है, कोई तुम्हारा पुरसाहाल न होगा; अतएव वहां रूप को लोग व्यापारिक दृष्टि से देखते थे। Munshi Premchand Ki Kahani

साल ही भर के अंग्रेजी समाज के संसर्ग ने मनहर की मनोवृत्तियों में क्रान्ति पैदा कर दी। उसके मिजाज ने सांसारिकता का इतना प्रधान्य हो गया कि कोमल भावों के लिये वहां कोई स्थान ही न रहा। वागेश्वरी उसके विध्याभ्यास में सहायक होती थी, पर उस अधिकार और पद की ऊचाइयों तक न पहुंचा सकती थी। उसके त्याग और सेवा का महत्व भी अब मनहर की निगाहों में कम होता जा रहा था।

वागेश्वरी अब उसे एक व्यर्थ सी वस्तु मालूम होती थी, क्योंकि भौतिक दृष्टि से हर एक वस्तु का मूल्य उससे होने वाले साथ पर ही अवलम्बित था। अपना पूर्व जीवन अब उसे हास्यास्पद जान पड़ता था। चंचल, हंसमुख, विनोदिनी अंग्रेज युवतियों के सामने वागेश्वरी एक हल्की तुच्छ सी वस्तु जान पड़ती-इस विधुत प्रकाश में वह दीपक अब मलिन पड़ गया था। यहां तक कि शनैः शनैः उसका वह मलिन प्रकाश भी अब लुप्त हो गया।

मनहर ने अपने भविष्य का निष्चय कर लिया। वह भी एक रमणी की रूप नौका द्वारा ही अपने लक्ष्य तक पहुंचेगा। इसके सिवा कोई और उपाय न था।

Munshi Premchand Ki Kahani

2

रात के नौ बजे थे। मनहर लंदन के एक फैशनेबल रेस्ट्रां में बना-ठना बैठा था। उसका रंग-रूप और ठाठ-बाट देखकर सहसा कोई नहीं कह सकता था कि वह अंग्रेज नहीं है। लंदन ने भी उसके सौभाग्य ने उसका साथ दिया था।Munshi Premchand Ki Kahani

उसने चोरी के कई गहरे मुआमलों का पता लगा लिया था, इसलिये उसे धन और यश दोनो ही मिल रहा था। वह अब यहां के भरतीय समाज का प्रमुख अंग बन गया था, जिसके आथित्य और सौजन्य की सभी सराहना करते थे।

उसका लबो-लहजा भी अंग्रेजों से मिलता जुलता था। उसके सामने मेज के दूसरी ओर एक रमणी बैठी हुई उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसके अंग-अंग से यौवन ट्पका पड़ता था। भारत के अदभुत वृत्तान्त सुनकर उसकी आंखे खुशी से चमक रही थीं। मनहर चिड़िया के सामने दाने बिखेर रहा था।

मनहर-विचित्र देश है जेनी, अत्यन्त विचित्र।पांच-पांच साल के दूल्हे तुम्हे भारत के सिवा कहीं देखने को नहीं मिलेंगे। लाल रंग के चमकदार कपड़े, सिर पर चमकता हुआ लम्बा टोप, चेहर पर फूलों का झालर्दार बुर्का, घोड़े पर सवार चले जा रहे हैं। दो आदमी दोनों तरफ़ से छतरी लगाये हुए हैं। हांथो में मेंहदी लगी हुयी है। Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी- मेंहदी क्यों लगाते हैं?

मनहर- जिससे हांथ लाल हो जायें। पैरों मीं भी रंग भरा जाता है। उंगलियों के नाखून लाल रंग दिये जाते हैं। वह दृष्य देखते ही बनता है।

जेनी-यह तो दिल में सनसनी पैदा करने वाला दृष्य होगा। दुल्हन भी इसी तरह सजायी जाती होगी?
मनहर-इससे कई गुनी अधिक। सिर से पांव तक सोने चांदी के गहनों से लदी हुयी। ऐसा कोई अंग नहीं जिसमें दो-चार जेवर न हों। premchand ki kahani

जेनी-तुम्हारी शादी भी इसी तरह हुयी होगी। तुम्हे तो बड़ा आनन्द आया होगा?

मनहर-हां, वही आनन्द आया था जो तुम्हे मेरी-गोराउण्ड पर चढ़ने में आता है। अच्छी-अच्छी चीजे खाने को मिलती हैं, अच्छे कपड़े पहनने को मिलते हैं। खूब नाच तमाशे देखता था और शहनाइयों का गाना सुनता था। मजा तो तब आता है जब दुलहन अपने घर से बिदा होती है। सारे घर में कुहराम मच जाता है। दुलहन हर एक से लिपट-लिपट कर रोती है, जैसे मातम कर रही हो। Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी-दुलहन रोती क्यों है?

मनहर-रोने का रिवाज चला आता है। हालांकि सभी लोग जानते हैं कि वह हमेशा के लिये नही जा रही है, फिर भी सारा घर इस तरह फूट फूट कर रोता है, मानो वह काले पानी भेजी जा रही हो।

जेनी-मैं तो इस तमाशे पर खूब हंसू।

मनहर-हंसने की बात ही है।

जेनी-तुम्हारीबीवी भी रोयी होगी?

मनहर-अजी कुछ न पूंछो, पछाड़े खा रही थी, मानो मैं उसका गला घॊंट दूंगा। मएरी पालकी से निकलकर भागी जाती थी, पर मैंने जोर से पकड़ कर अपनी बगल में बैठा लिया। तब मुझे दांत काटने दौड़ी। Munshi Premchand Ki Kahani

मिस जेनी ने जोर का कहकहा मारा और हंसी के साथ लोट गयीं। बोलीं-हारिबल! हारिबल! क्या अब भी दांत काटती है?

मनहर-वह अब इस संसार में नहीं रही जेनी! मैं उससे खूब काम लेता था। मैं सोता था तो वो बदन में चम्पी लगाती थी, मेरे सिर में तेल डालती थी, पंखा झलती थी।

जेनी-मुझे तो विश्वास नहीं आता। बिल्कुल मूर्ख थी!

मनहर-कुछ न पूंछॊ।दिन को किसी के सामने मुझसे बोलती भी न थी, मगर मैं उसका पीछा करता रहता था। Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी-ओ!नाटी ब्वाय! तुम बड़े शरीफ हो। थी तो रूपवती?
मनहर-हां उसका मुंह तुम्हारे तलवों जैसा था।
जेनी-नान्सेन्स! तुम ऐसी औरत के पीछे कभी न दौड़ते।
मनहर-उस वक्त मैं भी मूर्ख था जेनी।
जेनी-ऐसी मूर्ख लड़की से तुमने विवाह क्यों किया?
मनहर-विवाह न करता तो मां बाप जहर खा लेते।
जेनी-वह तुम्हे प्यार कैसे करने लगी?

मनहर-और करती क्या? मेरे सिवा दूसरा था ही कौन? घर से बाहर न निकलने पाति थी, मगर प्यार हममें से किसी को न था। वह मेरी आत्मा को और हृदय को सन्तुष्ट न कर सकती थी ,जेनी! मुझे उन दिनों की याद आती है, तो ऐसा मालूम होता है कि कोई भयंकर स्वप्न था। premchand ki kahani

उफ! अगर वह स्त्री आज जीवित होती, तो मैं किसी अंधेरे दफ्तर में बैठा कलम घिस रहा होता। इस देश में आकर मुझे यथार्त ज्ञान हुआ कि संसार में स्त्री का क्या स्थान है, उसका क्या दायित्व है और जीवन उसके कारण कितना आनन्दप्रद हो जाता है। और जिस दिन तुम्हारे दर्शन हुये, वह तो मेरी जिन्दगी का सबसे मुबारक दिन था। याद है तुम्हे वो दिन? तुम्हारी वह सूरत मेरी आंखों में अब भी फिर रही है।

जेनी-अब मैं चली जाऊंगी। तुम मेरी खुशामद करने लगे।

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3

भारत के मजदूरदल-सचिव थे लार्ड बारबर, और उनके प्राइवेट सेक्रेट्ररी थे मि.कावर्ड। लार्ड बार्बर भारत के सच्चे मित्र समझे जाते थे। जब कंजर्वेटिव और लिबरल दलों का अधिकार था, तो लार्ड बारबर भारत की बड़े जोरों से वकालत करते थे। Munshi Premchand Ki Kahani

वह उन मन्त्रियों पर ऐसे ऐसे कटाक्ष करते थे कि उन बेचारों को कोई जवाब न सूझता था। एक बार वे हिन्दुस्तान आये थे और यहां कांग्रेस में शरीक हुये थे। उस समय उनकी उदार वक्तृताओं ने समस्त देश में आशा और उत्साह की एक लहर दौड़ा दी थी।

कांग्रेस के जलसे के बाद वह जिस शहर में गये, जनता ने उनके रास्ते में आंखे बिछायीं, उनकी गाड़ियां खींची, उन पर फ़ूल बरसाये। चारों ओर से यही आवाज आती थी-यह है भारत का उद्वार करने वाला। लोगों को विश्वास हो गया कि भारत के सौभाग्य से अगर कभी लार्ड बारबर को अधिकार प्राप्त हुआ, तो वह दिन भारत के इतिहास में मुबारक होगा।

लेकिन अधिकार पाते ही लार्ड बारबर में एक विचित्र परिवर्तन हो गया। उनके सारे स्वभाव, उनकी उदारता, न्यायपरायणत, सहातुभूति ये सभी अधिकार के भंवर में पड़ गये। और अब लार्ड बारबर और उनके पूर्वाधिकार के व्यव्हार में लेशमात्र भी अन्तर न था। Munshi Premchand Ki Kahani

वह भी वही कर रहे थे जो उनके पहले के लोगों ने किया। वही दमन था, वही जातिगत अभिमान, वही कट्टरता, वही संकीर्णता। देवता अधिकार के सिंघासन पर पांव रखते ही अपना देवत्व खो बैठा था। अपने दो साल के अधिकार काल में उन्होने सैकड़ों ही अपसर नियुक्त किये थे; पर उनमें एक भी हिन्दुस्तानी न था। premchand ki kahani

भारत्वासी निराश होकर उन्हें ‘डाईहार्ड’ ‘धन का उपासक’ और ‘साम्राज्यवाद का पुजारी’ कहने लगे थे। यह खुला हुआ रहस्य था कि जो कुछ करते थे मि. कावर्ड करते थे। हक यह था कि लार्ड बारबर नीयत के जितने शेर थे, जितने दिल के कमजोर। हालांकि परिणाम दोनों दिशाओं में एक सा था।

यह मि. कावर्ड एक ही महापुरुष थे। उनकी उम्र चालीस से अधिक गुजर चुकी थी; पर अभी तक उन्होंने विवाह नहीं किया था। शायद उनका ख्याल था कि राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे विवाह का आनन्द नहीं उठा सकते। वास्तव में नवीनता के मधूप थे। Munshi Premchand Ki Kahani

उन्हे नित्य नये विनोद और आकर्षण, नित्य नये विलास और उल्लास की टोह रहती थी। दूसरों के लगाये हुये बाग की सैर करके चित्त को प्रसन्न कर लेना इससे कहीं सरल था कि अपना बाग आप लगायें और उसकी रक्षा और सजवट में अपना सिर खपायें। उनको व्यापारिक और व्याव्हारिक दॄष्टि में यह लटका उससे कहीं आसान था। premchand ki kahani

दोपहर का समय था। मि. कावर्ड नाश्ता करके सिगार पी रहे थे कि मिस जेनी रोज के अने की खबर हुयी। उन्होने तुरन्त आईने के सामने खड़े होकर अपनी सूरत देखी,बिखरे बालों को सवांरा, बहुमूल्य इत्र मला और मुख से स्वागत की सहास छवि दर्शाते हुये कमरे से निकलकर मिस रोज से हांथ मिलाया।
जेनी ने कदम रखते ही कहा-अब मैं समझ गयी कि क्यों कोई सुन्दरी तुम्हारी बात नहीं पूंछती। आप अपने वादों को पूरा करना नहीं जानते।

मि. कावर्ड ने जेनी के लिये कुर्सी खींचते हुये कहा-मुझे बहुत खेद है मिस रोज कि कल मैं अपना वादा न पूरा कर सका। प्राइवेट सेक्रेट्ररी का जीवन कुत्तों के जीवन से भी हेय है। बार बार चाहता था कि दफ्तर से उठूं; पर एक न एक काल ऐसा आ जाता था कि रुक जाना पड़ जाता था! मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं। बाल में तुम्हे खूब आनन्द आया होगा? Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी-मैं तुम्हे तलाश करती रही। जब तुम न मिले तो मेरा जी खट्टा हो गया। मैं और किसी के साथ नहीं नाची। अगर तुम्हे नहीं जाना था तो मुझे निमन्त्रण क्यों दिया था। premchand ki kahani

कावर्ड ने जेनी को सिगार भॆंट करते हुये कहा-तुम मुझे लज्जित कर रही हो,जेनी! मेरे लिये इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती थी कि तुम्हारे साथ नाचता? एक पुराना बैचलर होने पर भी मैं उस सुख की कल्पना कर सकता हूं। बस यही समझ लो कि तड़प-तड़प कर रह जाता हूं।

जेनी ने कठोर मुस्कान के साथ कहा-तुम इसी योग्य हो कि बैचलर बने रहो। यही तुम्हारी सजा है।
कावर्ड ने अनुरक्त होकर उत्तर दिया-जेनी तुम बड़ी कठोर हो! तुम्ही क्या रमणियां सभी कठोर होती हैं। मैं कितनी ही पर्वशता दिखाऊं, तुम्हे विश्वास नहीं आयेगा। मुझे यह अरमान ही रह गया कि कोई सुन्दरी मेरे अनुराग और लगन का आदर करती। Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी- तुममें अनुराग हो भी तो? रमणियां ऐसे बहानेबाजों को मुंह नहीं लगाती।

कावर्ड-फ़िर बहानेबाज कहा। मजबूर क्यों नहीं कहती?

जेनी-मैं किसी को मजबुर नहीं मानती। मेरे लिये यह हर्ष और गौरव की बात नहीं हो सकती, कि आपको जब अपने सरकारी, अर्द्व सरकारी और गैर सरकारी कामोम से अवकाश मिले तो, आप मेरा मन रखने के लिये एक क्षण के लिये अपने कोमल चरणों को कष्ट दें। इसी कारण तुम अब तक झीक रहे हो।

कावर्ड ने गम्भीर भाव से कहा-तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो,जेनी! मरे अविवाहित रहने का क्या कारण है, यह कल तक मुझे खुद मालूम न था। कल आप ही आप मालूम हो गया।

जेनी ने उसका परिहास करते हुये कहा-अच्छा तो यह रहस्य आपको मालुम हो गया? तब तो आप सचमुच आत्मदर्शी हैं। जरा मैं भी तो सुनूं, क्या कारण था? premchand ki kahani

कावर्ड ने उत्साह के साथ कहा-अब तक कोई ऐसी सुन्दरी न मिली जो मुझे उन्मत्त कर सकती।

जेनी ने कठोर परिहास के साथ कहा-मेरा ख्याल था कि दुनिया में ऐसी औरत पैदा ही नहीं हुई, जो तुम्हे उन्मत्त कर सकती। तुम उन्मत्त बनाना चाहते हो, उन्मत्त बनना नहीं चाहते। Munshi Premchand Ki Kahani

कावर्ड-तुम बड़ा अत्याचार करती हो जेनी!

जेनी-अपने उन्माद का प्रमाण देना चाहते हो?

कावर्ड-हृदय से जेनी! मैं उस अवसर की ताक में बैठा हूं।

उसी दिन शाम को जेनी ने मनहर से कहा-तुम्हारे सौभाग्य पर बधाई! तुम्हे वह जगह मिल गयी।

मनहर उछलकर बोला-सच! सेक्रेट्ररी से कोई बातचीत हुई थी?

जेनी-सेक्रेट्ररी से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सब कुछ कावर्ड के हांथो में है। मैंने उसी को चंग पर चढ़ाया। लगा मुझे इश्क जताने। पचास साल की तो उम्र है, चांद के बाल झड़ गये हैं, गालों पर झुर्रियां पड़ गयी हैं, पर अभी तक आपको इश्क का ख्ब्त है। अप अपने को एक ही रसिया समझते हैं।

उसके बूढ़े चोंचले बहुत ही बुरे मालूम होते थे; मगर तुम्हारे ल्ये सब कुछ सहना पड़ा। खैर मेहनत सफ़ल हो गयी है। कल तुम्हे परवाना मिल जायेगा। अब सफ़र की तय्यारी करनी चाहिये।

मनहर ने गदगद होकर कहा-तुमने मुझ पर बड़ा एहसान किया है,जेनी!

4

मनहर को गुप्तचर विभग में ऊंचा पद मिला। देश के राष्ट्रीय पत्रों ने उसकी तारी फ़ों के पुल बांधे, उसकी तस्वीर छापी और राष्ट्र की ओर से उसे बधाई दी। वह पहला भारटीय था, जिसे यह ऊंचा पद प्रदा किया गया था। ब्रिटिश सरकार ने सिद्व कर दिया था कि उसकी न्याय-बुधि जातीय अभिमान और द्वेश से उच्चतर है। Munshi Premchand Ki Kahani

मनहर और जेनी का विवाह इंग्लैण्ड में ही हो गया। हनीमून का महीना फ़्रान्स में गुजरा। वहां से दोनो हिन्दुस्तान आये। मनहर का दफ़्तर बम्बई में था। वहीं दोनो एक होटल में रहने लगे। मनहर को गुप्त अभियोग की खोज के लिये अक्सर दौरे करने पड़ते थे। कभी कश्मीर, कभी मद्रास, कभी रंगून। जेनी इन यात्राओं में बराबर उसके साथ रहती। नित्य नये दृष्य थे, नये विनोद, नये उल्लास। उसकी नवीनता प्रिय प्रकृति के लिये आनन्द का इससे अच्छा और क्या सामान हो सकता था?

मनहर का रहन-सहन तो विदेशी था ही, घर वालों से भी उसका सम्बन्ध विच्छेद हो गया था। वागेश्वरी के पत्रों का उत्तर देना तो दूर रहा, वह उन्हे खोलकर पढ़ता भी नहीं था। भारत में हमेशा उसे यह शंका बनी रहती थी कि कहीं घरवालों को उसका पता न चल जाये। जेनी से वह अपनी यथार्त स्थिति को छुपाये रखना चाहता था। Munshi Premchand Ki Kahani

उसने घरवालों को आने की सूचना तक न दी थी। यहां तक कि वह हिन्दुस्तानियों से बहुत कम मिलता था। उसके मित्र अधिकांश पुलिस और फ़ौज्के अफ़सर थे। वही उसके मेहमान होते। वाकचतुर जेनी सम्मोहनकला में सिद्वहस्त थी। premchand ki kahani

पुरुषों के प्रेम से खेलना उसकी सबसे अमोदमय क्रीड़ा थी। जलाती थी, रिझाती थी, और मनहर भी उसकी कपट्लीला का शिकार बना रहता था। उसे वह हमेशा भूल-भुलैया मॆं रखती, कभी इतना निकट कि छाती पर सवार न कभी इतना दूर कि योजन का अन्तर-कभी निष्ठुर और कठोर, और कभी प्रेम-विह्वल और व्यग्र। एक रहस्य था, जिसे वह कभी समझता था और कभी हैरान रह जाता था।

इस तरह दो वर्ष बीत गये और मनहर और जेनी कोण की दो भुजाओं की भांति एक दूसरे से दूर होते गये। मनहर इस भावना को हृदय से न निकाल सकता था कि जेनी का मेरे प्रति एक विशेष कर्तव्य है। वह चाहें उसकी संकीर्णता हो या कुल मर्यादा का असर क इवह जेनी को पाबन्द देखना चाहता था। उसकी स्वच्छन्द वृत्ति उसे लज्जास्पद मालूम होती थी। Munshi Premchand Ki Kahani

वह भूल जाता था कि जेनी से उसके सम्पर्क का आरम्भ ही स्वार्थ पर अवलम्बित था। शायद उसने समझा था कि समय के साथ जेनी को अपने कर्तव्यों का ज्ञान हो जायेगा; हालांकि उसे मालूम होना चाहिये था कि टेढ़ी बुनियाद पर बना हुआ भवन जल्द या देर से भूमिस्थ होकर ही रहेगा।

और ऊंचाई के साथ उसकी शंका और भी बढ़ती जाती थी। इसके विपरीत जेनी का व्यवहार परिस्थिति के बिल्कुल अनुकूल था। उसने मनहर को विनोदमय तथा विलासमय जीवन का एक साधन समझा था और उसी विचार पर वह अब तक स्थित थी। इस व्यक्ति को वह मन में पति का स्थान नहीं दे सकती थी, पाषाण प्रतिमा को वह अपना देवता न बना सकती थी। premchand ki kahani

पत्नी बनना उसके जीवन का स्वप्न न था, इसलिये वह मनहर के प्रति अपने किसी कर्तव्य को स्वीकार नहीं करती थी। अगर मनहर अपनी गाढ़ी कमाई उसके चरणों पर अर्पित करता था तो कोई अहसान न करता था। मनहर उसका बनाया हुआ पुतला, उसी का लगाया हुआ वृक्ष था। उसकी छाया और उसके फ़ल का भोग करना वह अपना अधिकार समझती थी।

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मनोमालिन्य बढ़ता गया। आखिर मनहर ने उसके साथ दावतों और जलसों पर जाना छोड़ दिया; पर जेनी पूर्ववत सैर करने जाती, मित्रों से मिलती, दावते करती, और दावतों में शरीक होती। मनहर के साथ न जाने से उसे लेश्मात्र भी दुःख या निराशा नहीं होती थी; बल्कि वह शायद उसकी उदासीनता पर और प्रसन्न होती थी। Munshi Premchand Ki Kahani

मनहर इस मानसिक व्यथा को शराब के नशे में डुबोने का उध्योग करता। पीना तो उसने इंग्लैण्ड में ही शुरु कर दिया था, पर अब उसकी मात्रा बहुत बढ़ गयी थी। वहां स्फ़ूर्ति और आनन्द के लिये पीता था, यहां स्फ़ूर्ति और आनन्द को मिटाने के लिये। वह दिन-दिन दुर्बल होता जाता था। वह जानता था कि शराब मुझे पिये जा रही है, पर उसके जीवन कयही एक अवलम्ब रह गया था।premchand ki kahani

गर्मियों के दिन थे। मनहर एक मुआमले की जांच करने के लिये लखनऊ मॆं डेरा डाले हुये था। मुआमला बहुत संगीन था। उसे सेर उठाने की फ़ुरसत न मिलती थी। स्वास्थ्य भी बहुत खराब हो चला था, पर जेनी अपने सैर-सपाटे मॆम मग्न थी। आखिर उसने एक दिन कहा; मैं नैनीताल जा रही हूं। यहां की गर्मी मुझसे सही नहीं जाती। Munshi Premchand Ki Kahani

मनहर ने लाल-लाल आंखे निकालकर कहा-नैनीताल में क्या काम है?

वह आज अपना अधिकार दिखाने पर तुल गया। जेनी भी उसके अधिकार की उपेक्षा करने पर तुली हुई थी। बोली- यहां कोई सोसायटी नही। सारा लखनऊ पहाड़ों पर चला गया है।

मनह्र ने जैसे म्यान से तलवार निकाल कर कहा-जब तक मैं य्हां हूं, तुम्हें कही जाने का अधिकार नहीं है। तुम्हारी शादी मेरे साथ हुयी है, सोसायटी के साथ नहीं। फ़िर तुम साफ़ देख रही हो मैं बीमार हूं, तिस पर भी तुम अपनी विलास प्रवत्ति को रोक नहीं सकतीं। मुझे तुमसे ऐसी आशा नहीं थी,जेनी! मैं तुमको शरीफ़ समझता था। मुझे स्वप्न मॆं भी गुमान न था कि तुम मेरे साथ ऐसी बेवफ़ाई करोगी।

जेनी ने अविचलित भाव से कहा-तो क्या तुम समझते थे, मैं भी तुम्हारी हिन्दुस्तानी स्त्री की तरह तुम्हारी लौण्डी बनकर रहूंगी और तुम्हारे तलवे सहलाऊंगी? मैं तुम्हे इतना नदान नहीं समझती। अगर तुम्हे हमारी अंग्रेज सभ्यता की इतनी सी बात नही मालूम, तो अब मालूम कर लो कि अंग्रेज स्त्री अपनी रुचि के सिवा और किसी की पाबन्द नहीं। Munshi Premchand Ki Kahani

तुमने मुझसे विवाह इसलिये किया था कि मेरी सहायता से तुम्हे सम्मान और पद प्राप्त हो। सभी पुरुष ऐसा करते हैं और तुमने भी वैसा ही किया। मैं इसके लिये तुम्हे बुरा नहीं कहती लिकिन जब तुम्हारा वह उद्देश्य पूरा हो गया, जिसके लिये तुमने मुझसे विवाह किया था, तो तुम मुझसे अधिक आशा कुओं रखते हो? premchand ki kahani

तुम हिन्दुस्तानी हो अंग्रेज नहीं हो सकते। मैं अंग्रेज हूं हिन्दुस्तानी नहीं हो सकती; एसलिये हममें में से किसी को अधिकार नहीं है कि वह दूसरों को अपनी मर्जीका गुलाम बनाने की चेष्टा करे।

मनहर हतबुद्वि सा बैठा सुनता रहा। एक एक शब्द विष की घूंट की भांति उसके कंठ के नीचे उतर रहा था। कितना कठोर सत्य था! पद लालसा के इस प्रचण्ड आवेग में, विलास तृष्णा के उस अदम्य प्रवाह में वह भूल गया था कि जीवन में कोई ऐसा तत्व भी है, जिसके सामने पद और विलास कांच के खिलौनो से अधिक मूल्य नहीं रखते। वह विस्मृत सत्य इस समय अपने दारुण विलाप से उसकी मद्मग्न चेतना को तड़पाने लगा। Munshi Premchand Ki Kahani

शाम को जेनी नैनीताल चली गयी। मनहर ने उसकी ओर आंखे उठा कर भी नहीं देखा।

6

तीन दिन तक मनहर घर से न निकला। जीवन के पांच छः वर्षों मॆं उसने जितने रत्न संचित किये थे, जिन पर वह गर्व करता था; जिन्हे पाकर वह अपने को धन्य समझता था, अब परीक्षा की कसौटी पर जाकर नकली सिद्व हो रहे थे। premchand ki kahani

उसकी अपमानित, ग्लानित, पराजित आत्मा एकांत रोदन के सिवा और कोई त्राण न पाती थी। अपनी टूटी झोपड़ी को छोड़कर वह जिस जिस सुनहले कलश वाले भवन की ओर लपका था, वह मरीचिका मात्र थी और उसे अब फ़िर अपनी टूटी झोपड़ी याद आई, जहां उसने शांतिम प्रेम और आशीर्वाद की सुधा पी थी। Munshi Premchand Ki Kahani

यह सारा आडम्बर उसे काट खाने लगा। उस सरल, शीतल स्नेह केसामने ये सारी विभूतियां उसे तुच्छ सी जंचने लगीं। तीसरे दिन वह भीषण संकल्प करके उठा और दो पत्र लिखे। एक तो अपने पद से इस्तीफाथा, और दूसरा जेनी से अंतिम विदा की सूचना।premchand ki kahani

इस्तीफे मॆं उसने लिखा- मेरा स्वास्थ्य नष्ट हो गया है और मैं इस भार को नहीं सम्भाल सकता। जेनी के पत्र में उसने लिखा-हम और तुम दोनो ने भूल की है और हमें जल्द से जल्द उस भूल को सुधार लेना चाहिये। मैं तुम्हे सारे बन्धनों से मुक्त करता हूं। तुम भी मुझे मुक्त कर दो। मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं है।

अपराध न तुम्हारा है, न मेरा। समझ का फेर तुम्हे भी था और मुझे भी । मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और अब तुम्हारा मुझ पर कोई अहसान नहीं रहा। मेरे पास जो कुछ है, वह तुम्हारा है, वह सब मैं छोड़े जाता हूं। मैं तो निमित्त-मात्र था स्वामिनी तुम थी। उस सभ्यता को दूर से ही सलाम है, जो विनोद और विलास के सामने किसी बन्धन को स्वीकार नहीं करती। premchand ki kahani

उसने खुद जाकर दोनों की रजिस्ट्री करायी और उत्तर का इंतजार किये बिना ही वहां से चलने को तैयार हो गया।

Munshi Premchand Ki Kahani

7

जेनी ने जब मनहर का पत्र पाकर पढ़ा तो मुस्कुराई। उसे मनहर की इच्छा पर शासन करने का ऐसा अभ्यास पड़ गया था कि पत्र से उसे जरा भी घबराहट नहीं हुयी। उसे विश्वास था कि दो चार दिन चिकनी-चुपड़ी बातें करके वह उसे फिर वशीभूत कर लेगी।

अगर मनहर की इच्छा केवल धमकी देनी न होती, उसके दिल पर चोट लगी होती तो वह अब तक यहां न होता। कब का यह स्थान छोड़ चुका होता। उसका यहां रहना ही बता रहा है कि वह केवल बन्दर घूड़की दे रहा है। Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी ने स्थिर चित्त होकर कपड़े बदले और तब इस तरह मनहर के कमरे में आई, मानो कोई अभिनय करने स्टेज पर आई हो। premchand ki kahani

मनहर उसे देखते ही ठट्ठा मार कर हंसा। जेनी सहम कर पीछे हट गयी। इस हंसी में क्रोध का प्रतिकार न था। उसमें उन्माद भरा हुआ था। मनहर के सामने मेज पर बोतल और गिलास रखा हुआ था। एक दिन में उसने न जाने कितनी शराब पी ली थी। उसकी आंखो से जैसे रक्त उबला पड़ता था।

जेनी ने समीप आकर उसके कन्धे पर हांथ रखा और बोली-क्या रात भर पीते ही रहोगे? चलो आराम से लेटो, रात ज्यादा हो गयी है। घण्टॊ से बैठी तुम्हारा इंतजार कर रही हूं। तुम इतने निष्ठुर तो कभी नहीं थे।
मनहर खोया हुआ सा बोला-तुम कब आ गयीं वागी? Munshi Premchand Ki Kahani

देखो मैं कब से तुम्हे पुकार रहा हूं। चलो आज सैर कर आयें। उसी नदी के किनारे ,तुम वही अपना प्यारा गी सुनाना, जिसे सुनकर मैं पागल हो जाता था। क्या कहती हो, मैं बेमुरव्वत हूं? यह तुम्हारा अन्याय है वागी! मैं कसम खाकर कहता हूं, ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरा जब तुम्हारी याद ने मुझे न रुलाया हो।

जेनी ने उसका कन्धा हिलाकर कहा-तुम यह क्या ऊल-जलूल बक रहे हो? वागी यहां कहां है?
मनहर ने उसकी ओर देखकर अपर्चित भाव से कुछ कहा, फिर जोर से हंसकर बोला- मैं यह न मानूंगा वागी! तुम्हे मेरे साथ चलना होगा। वहां मैं तुम्हारे लिये एक फूलों की एक माला बनाऊंगा।

जेनी ने समझ यह शराब बहुत पी गये हैं। बकझक कर रहे हैं। इनसे इस वक्त कुछ भी बात करना व्यर्थ है। चुपके से कमरे के बाहर चली गयी। उसे जरा सी शंका हुई थी। यहां उसका मूलोच्छेद हो गया। जिस आदमी का वाणी पर अधिकार नही, वह इच्छा पर क्या अधिकार रख सकता है?

उसघड़ी से मनहर को घरवालो की रट लग गयी। कभी वागेश्वरी को पुकारता, कभी अम्मां को, कभी दादा को। उसकी आत्मा अतीत में विचरती रहती, उसातीत मॆं जब जेनी ने काली छाया की भांति प्रवेश नहीं किया था और वाग्र्श्वरी अपने सरल्व्रत से उसके जीवन में प्रकाश फैलाती थी। premchand ki kahani

दूसरे दिन जेनी ने उसे जाकर कहा-तुम इतनी शराब क्यों पीते हो? देखते नहीं तुम्हारी क्या दशा हो रही है? Munshi Premchand Ki Kahani

मनहर ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा-तुम कौन हो?
जेनी-तुम मुझे नहीं पहचानतेहो? इतनी जल्द भूल गये।
मनहर- मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा। मैं तुम्हे नहीं पहचानता।

जेनी ने और अधिक बातचीत नहीं की। उसने मनहर के कमरे से शराब की बोतलें उठवा दीं और नौकरों को ताकीद कर दी कि उसे एक घूंट भी शराब की न दी जाय।

उसे अब कुछ सन्देह होने लगा था। क्योंकि मनहर की दशा उससे कहीं शंकाजनक थी जितना वह सम्झती थी। मनहर का जीवित और स्वस्थ रहना उसके लिये आवश्यक था।इसी घोड़े पर बैठकर वह शिकार खेलती थी। घोड़े के बगैर शिकार का आनन्द कहां? Munshi Premchand Ki Kahani

मगर एक सप्ताह हो जाने पर भी मनहर की दशा में की अंतर न हुआ। न मित्रों को पहचान्ता, न नौकरों को। पिछ्ले तीन वर्षों का जीवन एक स्वप्न की भांति मिट गया था।
सातवें दिन जेनी सिविल सर्जन को लेकर आयी तो मनहर का कहीं पता नहीं था।

8

पांच साल के बाद वागेश्वरी का लुट हुआ सुहाग फ़िर चेता। मां-बाप पुत्र के वियोग में रो-रोकर अन्धे हो चुके थे। वागेश्वरी निराशा में भी आस बांधे बैठी हुयी थी। उसका मायका सम्पन्न था। बार-बार बुलावे आते, बाप आया, भाई आया, पर धैर्य और व्रत की देवी घर से न टली।

जब मनहर भारत आया, तो वागेश्वरी ने सुना कि वह विलायत से एक मेम लाया है। फिर भि उसे आशा थी कि वह आयेगा, लेकिन उसकी आशा पूरी न हुयी। फिर उसने सुना वह ईसाई हो गया है। आचार-विचार त्याग दिया है। तब उसने माथा ठोंक लिया। Munshi Premchand Ki Kahani

घर की व्यवस्था दिन दिन बिगड़ने लगी। वर्षा बन्द हो गयी और सागर सूखने लगा। घर बिका, कुछ जमीन थी वह बिकी, फिर गहनों की बारी आई। यहं तक कि अब केवल आकाशी वृत्तिथी। कभी चूल्हा जल गया, कभी ठंडा पड़ा रहा।

एक दिन संध्या समय वह कुऐ पर पानी भरने गयी थी के एक थका हुआ, जीर्ण, विपत्ति का मारा जैसा आदमी आकर कुऐ की जगत पर आकर बैठ गया। वागेश्वरी ने देखा तो मनहर! उसने तुरन्त घूंघट काढ़ लिया। Munshi Premchand Ki Kahani

आंखों पर विश्वास नहीं हुआ, फिर भी आनन्द और विस्मय की हृदय में फ़ुरेरियां उड़ने लगीं। रस्सी और कलसा कुऐ पर छोड़कर लपकी हुयी घर आयी और सास से बोली-अम्मांजी, जरा कुएँ पर जाकर देखो कौन आया है। सास न कहा-तू पानी भरने गयी थी, या तमाशा देखने? घर में एक बूंद पानी की नहीं है। कौन आया है कुएँ पर? premchand ki kahani

‘चलकर देख लो न’

कोई सिपाही प्यादा होगा। अब उनके सिवा कौन अने वाला है। कोई महाजन तो नहीं है?
‘नही अम्मां तुम चली क्यों नहीं चलती?’

बूढ़ी माता भांति-भांति की शंकाये करती हुयी कुऐ पर पहुंची, तो मनहर दौड़कर उनके पैरों में लिपट गया। माता ने उसे छाती से लगाकर कहा-तुम्हारी यह दशा है, मानू? क्या बीमार हो? असबाब कहां है?
मनहर ने कहा-पहले कुछ खाने को दो अम्मा! बहुत भूखा हूं। मैं बड़ी देर से पैदल चला आ रहा हूं।

गांव मॆं खबर फैल गयी कि मनहर आया है। लोग उसे देखने दौड़ पड़े। किस ठाट से आया है? ऊंचे पद पर है। हजारों रुपये पाता है। अब उसके ठाट का क्या पूंछना! मेम भी साथ आयी है या नहीं?

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मगर जब आकर देखा, तो आफत का मारा आदमी, फटेहाल, कपड़े तार-तार, बाल बढ़े हुये, जैसे जेल से आया हो। premchand ki kahani

प्रश्नों की बौछार होने लगी-हमने तो सुना था तुम किसी ऊंचे पद पर हो।

मनहर ने जैसे किसी भूली बात को याद करने का विफल प्रयास किया-मैं! मैं तो किसी ओहदे पर नहीं।
‘वाह! विलायत से मेम नहीं लाये थे?’ Munshi Premchand Ki Kahani

मनहर ने चकित होकर कहा-विलायत! कौन विलायत गया था?
‘अरे भंग तो नहीं खा आये हो। विलायत नहीं गये थे?
मनहर मूढ़ों की भांति हंसा-मैं विलायत क्या करने जाता?

‘अजी तुमको वजीफा मिला नहीं था? यहां से तुम विलायत गये थे। तुम्हारे पत्र बराबर आते थे। अब कहते हो मैं विलायत गया ही नहीं। होश में हो, या हम लोगों को उल्लू बना रहे हो?’

मनहर ने उन लोगों की तरफ़ आंखे फाड़ कर देखा और बोला-मैं तो कहीं नहीं गया था। आप लोग न जाने क्या कह रहे हैं। Munshi Premchand Ki Kahani

अब इसमें सन्देह की गुन्जाइश न रही कि वह अपने होशोहवास में नहीं है। उसे विलायत जाने के पहले की सारी बातें याद थीं।गांव और घर के एक-एक आदमी को पहचानता था; लेकिन जब इंग्लैण्ड , अंग्रेज बीवी और ऊंचे पद का जिक्र आता तो भौचक्का होकर ताकने लगता।

वागेश्वरी को अब उसके प्रेम में एक अस्वाभाविक अनुराग दीखता, जो उसे बनावटी मालूम होता था। वह चाहती थई कि उसके व्यवहार और आचरण में पहले जैसी बेतकल्लुफी हो। वह प्रेम का स्वांग नहीं, प्रेम चाहती थी। premchand ki kahani

दस ही पांच दिनों में उसे ज्ञात हो गया कि इस विशेष अनुराग का कारण बनावट या दिखावा नहीं है, वरन कोई मानसिक विकार है। मनहर ने मां बाप का इतना अदब पहले कभी नहीं किया था। उसे अब मोटे से मोटा काम करने में कोई संकोच नहीं था। Munshi Premchand Ki Kahani

वह, जो बाजार से साग-सब्जी लाने में अपना अनादर समझता था, अब कुऐ से पानी खींचता, लकड़्यां फाड़ता और घर में झाड़ू लगाता थाऔर अपने घर में ही नहीं, सारे मुहल्ले में उसकी सेवा और नम्रता की चर्चा होती थी।

एक बार मुहल्ले में चोरी हो गयी। पुलिस ने बहुत दौड़-धूप की; पर चोरों का पता न चला। मनहर ने चोरी का पता ही नहीं लगा दिया, वरन माल भी बरामद करा दिया। इससे आस-पास के गांवो और मुहल्लों में उसका यश फैल गया। premchand ki kahani

कोई चोरी होती तो लोग उसके पास दौड़े आते और अधिकांश उध्योग उसके सफल भी होते। इस तरह उसकी जीविका की एक व्यवस्था हो गयी। वह अब वगेश्वरी के इशारों का गुलाम था। उसी की दिल्जोई और सेवा में उसके दिन कटते। अगर उसमें विकार या बीमारी का कोई लक्षण था तो ,तो वह इतना ही। यही सनक उसे सवार हो गयी थी।

वागेश्वरी को उसकी दशा पर दुःख होता; पर उसकी यह बीमारी उस स्वास्थय से उसे कहीम प्रिय थी, जब वह उसकी बात भी न पूंछता था।

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9

छः महीनों के बाद एक दिन जेनी मनहर का पता लगाती हुयी आ पहुंची। हांथ में जो कुछ था, वह सब उड़ा चुकने के बाद अब उसे किसी आश्रय की खोज थी। उसके चाहने वालों में कोई ऐसा न था, जो उसकी आर्थिक सहायता करता। शायद अब जेनी को कुछ ग्लानि भी होती थी। वह अपने किये पर लज्जित थी।Munshi Premchand Ki Kahani

द्वार पर हार्न की आवाज सुनकर मनहर बाहर निकला और इस प्रकार जेनी को देखने लगा मानो कभी देखा ही नहीं हो। premchand ki kahani

जेनी ने मोटर से उतरकर उससे हांथ मिलाया और अपनी आप-बिती सुनाने लगी-तुम इस तरह छिपकर मुझसे क्यों चले आये? और फिर आकर एक पत्र भी नहीं लिखा। आक्खिर मैंने तुम्हारे साथ क्या बुराई की थी। फिर मुझमें कोई बुराई देखी थी, तो तुम्हे था कि मुझे सावधान कर देते। छिपकर चले आने का क्या फायदा हुआ। ऐसी अच्छी जगह मिल गयी थी वो भी हाथ से निकल गयी।

मनहर काठ के उल्लू की भांति खड़ा रहा।

जेनी ने फिर कहा-तुम्हारे चले आने के बाद मेरे ऊपर जो संकट आये, वह सुनाऊं तो तुम घबरा जओगे। मैं इसी चिन्ता और दुःख से बीमार हो गयी। तुम्हारे बगैर मेरा जीवन निरर्थक हो गया। तुम्हारा चित्र देखकर मन को ढ़ांढ़स देती थी। Munshi Premchand Ki Kahani

तुम्हारे पत्रों को आदि से अन्त तक पढ़ना मेरे लिये सबसे मनोरंजक विषय था। तुम मेरे साथ चलो मैंने एक डाक्टर से बात की है, वह मस्तिष्क के विकारों का डाक्टर है।मुझ आशा है उसके उपचार से तुम्हे लाभ होगा। premchand ki kahani

मनहर चुपचाप विरक्त बव से खड़ा रहा, मानो न वह कूछ देख रहा है, न सुन रहा है।
सहसा वगेश्वरी निकल आयी। जेनी को देखते ही वह ताड़ गयी कि यही मेरी यूरोपियन सौत है। वह उसे बड़े आदर-सत्कार के साथ भीतर ले आयी। मनहर भी उनके पीछे-पीछे चला आया।


जेनी ने टूटी खाट पर बैठत हुये कहा। इन्होने मेरा जिक्र तो कियाही होगा। मेरी इनसे लंदन में शादी हुयी है। Munshi Premchand Ki Kahani

वागेश्वरी बोली-यह तो मैं आपको देखते ही समझ गयी थी।
जेनी-इन्होने कभी मेरा जिक्र नहीं किया?
वागेश्वरी-कभी नहीं। इन्हें तो कुछ याद नहीं। आपको यहां आने में बड़ा कष्ट हुआ होगा?
जेनी-महीनों के बाद तब इनके घर का पता चला। वहां से बिना कुछ कहे सुने चल दिये।
‘आपको कुछ मालूम है, इन्हे क्या शिकायत है?’
‘शराब बहुत पीने लगे थे। आपने किसी डाक्टर को नहीं दिखाया?’
हमने तो किसी को नहीं दिखया।’

जेनी ने तिरस्कार से कहा-क्यों? क्या आप उन्हे हमेशा बीमार रखना चाहती हैं?
वागेश्वरी ने बेपरवाही से कहा-मेरे लिये तो इनका बीमार रहना इनके स्वस्थ रहने से कहीं अच्छा है। तब वह अपनी आत्मा को भुले हुए थे अब उसे पा गये। Munshi Premchand Ki Kahani

फिर उसने निर्दय कटाक्ष करके कहा-मेरे विचार में तो वह तब बीमार थे, अब उसे पा गये।
जेनी ने चिढ़कर कहा-नान्सेंस! इनकी किसी विशेषज्ञ से चिकित्सा करानी होगी। यह जासूसू में बड़े कुशल हैं। इनके सभी अफ़सर इनसे प्रसन्न थे।

वह चाहें तो अब भी वह जगह उन्हें मिल सकती है। अपने विभाग मॆं ऊंचे से ऊंचेपद तक पहुंच सकते हैं। मुझे विश्वास है कि इनका रोग असाध्य नहीं है; हां, विचित्र अवश्य है। आप क्या इनकी बहन हैं?

वागेश्वरी ने मुस्कुराकर कहा-आप तो गाली दे रहीं हैं। यह मेरे स्वामी हैं।
जेनी पर मानो वज्रपात हुआ। उसके मुख पर से नम्रता का आवरण हट गया और मन में छुपा हुआ क्रोध जैसे दांत पीसने लगा। premchand ki kahani

उसकी गर्दन की नसें तन गयीं, दोनों मुट्ठियां बंध गयीं। उन्मत्त होकर बोली-बड़ा दगाबाज आदमी है। इसने मुझसे बड़ा धोका किया। मुझसे इसने कहा कि मेरी स्त्री मर गयी है। कितना बड़ा धूर्त है! यह पागल नहीं है। इसने पागलपन का स्वांग भरा है। मैं अदालत से इसकी सजा कराऊंगी। Munshi Premchand Ki Kahani

क्रोधावेश के कारण वह कांप उठी। फिर रोते हुये बोली-इस दगाबाजी का मैं इसे मजा चखाऊंगी। ओह! इसने मेरा कितना घोर अपमान किया है। ऐसा विश्वास घात करने वाले को जओ दण्ड दिया जाय वह थोड़ा है। इसने कैसी मीठी-मीठी बातें करके मुझे फ़ांसा।

मैने ही इसे जगह दिलायी, मेरे ही प्रयत्नों से यह बड़ा आदमी बना। इसके लिये मैने अपना घर छोड़ा, अपना देश छोड़ा और इसने मेरे साथ ऐसा कपट किया।

जेनी सिर पर हांथ रखकर बैठ गयी। फिर तैश में उठी और मनहर के पास जाकर उसको अपनी ओर खींचती हुयी बोली-मैं तुम्हे खराब करके छोड़ूंगी। तूने मुझे समझा क्या है ? premchand ki kahani

मनहर इस तरह शान्त भाव से खड़ा र्हा, मानो उससे उसे कोई प्रयोजन ही नहीं है।
फिर वह सिंहनी की भांति मनहर पर टूट पड़ी और उसे जमीन पर गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठी। वागेश्वरी ने उसका हांथ पकड़कर अलग कर दिया।और बोली-तुम ऐसी डायन न होती, तो उनकी यह दशा क्यों होती? Munshi Premchand Ki Kahani

जेनी ने तैश में आकर जेब से पिस्तौल निकाली और वागेश्वरी की तरफ़ बढ़ी। सहसा मनहर तड़पकर उठा, उसके हांथ से भरा हुआ पिस्तौल छीनकर फ़ेंक दिया और वागेश्वरी के सामने खड़ा हो गया। फिर ऐसा मुंह बना लिया मानो कुछ हुआ ही नही हो।

उसी वक्त मनहर की माताजी दोपहरी की नींद सोकर उठीं और जेनी को देखकर वागेश्वरी की ओर प्रश्न भरी आंखो से ताका। Munshi Premchand Ki Kahani

वागेश्वरी ने उपहास भाव से कहा-यह आपकी बहू है।
बुढ़िया ठिनककर बोली-कैसी मेरी बहू? यह मेरी बहू बनने जोग है बंदरिया?
लड़के पर न जाने क्या कर करा दिया, अब छाती पर मूंग दलने आयी है?

जेनी एक क्षण तक मनहर को खून भरी आंखो से देखती रही। फिर बिजली की भांति कौंधकर उसने आंगन में पड़ा पिस्तौल उठा लिया और वागेश्वरी पर छोड़ना ही चाहती थी कि मनहर सामने आ गया। वह बेधड़क जेनी के सामने चला गया। उसके हांथ से पिस्तौल छीन लिया और अपनी छाती में गोली मार ली। Munshi Premchand Ki Kahani

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